Thursday 11 July 2013

किसी महिला पर तेजाब डालना बलात्कार जैसा ही संगीन अपराध है,

महिलाओं पर तेजाबी हमले की बढ़ती घटनाओं के मद््देनजर सामाजिक संगठनों की ओर से इस मसले पर स्पष्ट और सख्त कानून बनाने की मांग की जाती रही है। उच्चतम न्यायालय भी सरकार को इस बारे में हिदायत दे चुका था। मगर टालमटोल का आलम यह है कि सर्वोच्च न्यायालय को एक बार फिर सरकार को फटकार लगाते हुए यह कहना पड़ा कि वह तेजाब की खुली बिक्री रोकने के मामले में कभी गंभीर नहीं रही है। देश भर में रोजाना लड़कियों पर तेजाबी हमले हो रहे हैं और वे मर रही हैं, मगर केंद्र सरकार ने अब भी इस संबंध में कोई कारगर कदम नहीं उठाया है। अब अदालत ने अगले एक हफ्ते में नीति बनाने में विफल रहने पर खुद ही आदेश पारित करने की बात कही है। करीब तीन महीने पहले सर्वोच्च अदालत ने केंद्र सरकार से कहा था कि वह राज्यों के मुख्य सचिवों के साथ बैठक कर तेजाबी हमलों के पीड़ितों के इलाज और उन्हें मुआवजा देने के साथ-साथ तेजाब की आसान उपलब्धता को रोकने का भी प्रावधान करे। मगर अदालत के निर्देश के बावजूद अभी तक कुछ नहीं हो सका है। सोलह दिसंबर के बलात्कार कांड के बाद यौनहिंसा से संबंधित कानूनों की समीक्षा और उनमें संशोधन सुझाने के लिए केंद्र ने समिति गठित करने में देर नहीं की। फिर समिति की सिफारिशों के मद््देनजर कानून में बदलाव लागू करने के लिए अध्यादेश भी जारी कर दिया। क्या सरकार तभी चेतती है जब हजारों लोग सड़कों पर उतरें?
प्रयोगशालाओं और औद्योगिक इकाइयों में रसायन के तौर पर इस्तेमाल होने वाला तेजाब काफी समय से महिलाओं पर हमले का हथियार भी है। किसी लड़की या स्त्री के चेहरे को विरूप कर देने से उसका जीवन बरबाद हो जाएगा, इसी मंशा से तेजाब फेंका जाता है। इस लिहाज से किसी महिला पर तेजाब डालना बलात्कार जैसा ही संगीन अपराध है, और इसे रोकने के लिए सख्त कानून निहायत जरूरी है। सल्फ्यूरिक अम्ल की दाहक क्षमता इतनी तेज होती है कि उसकी एक बूंद भी किसी व्यक्ति को स्थायी तौर पर अपंग बनाने या जान तक ले लेने के लिए काफी हो सकती है। आसान उपलब्धता के चलते तेजाब पीकर खुदकुशी करने की खबरें भी आती रहती हैं। मगर इतने घातक असर के बावजूद इसके उत्पादन और वितरण पर निगरानी की कोई व्यवस्था नहीं है। इसमें पानी मिला कर हाइड्रोक्लोरिक अम्ल तैयार किया जाता है जो गुसलखाने की सफाई, मोटर वाहनों में इस्तेमाल होने वाली बैटरियों के नाम पर कहीं भी आसानी से मिल जाता है। इसके निर्माण या उपयोग के दौरान सामान्य रूप से भी दुर्घटनाएं होती रहती हैं।
लेकिन आज यह उन महिलाओं या युवतियों के लिए जानलेवा या जिंदगी भर की त्रासदी साबित हो रहा है जो किसी पुरुष या युवक के इकतरफा प्रेम को स्वीकार करने से मना कर देती हैं। किसी कुंठित या मानसिक रूप से विकृत युवक के तेजाबी हमले की शिकार युवती के दुख का महज अंदाजा लगाया जा सकता है जो अगर जिंदा बच जाती है तो अपने पूरी तरह बिगड़ गए चेहरे या शरीर को ढोते हुए जीने को अभिशप्त होती है। दूसरी ओर, तेजाब फेंक कर भाग जाने वाले बहुत कम हमलावरों की पहचान हो पाती है। इस त्रासदी पर काबू पाने के लिए तेजाब के उत्पादन और बिक्री से संबंधित नियम-कानून सख्त करने होंगे। देर से ही सही, सर्वोच्च न्यायालय के हस्तक्षेप से इसकी उम्मीद जगी है।
जनसत्ता से जागरूकता के लिए साभार

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