Tuesday, 24 December 2013

आयशा अजीज, क्वीन ऑफ स्काई

आयशा अजीज कोई आम लडकी नहीं हैं। 17 साल की उम्र में वह एक उडनपरी बन चुकी हैं। आसमान में उडती हैं और अपने ड्रीम को अचीव करने के लिए बुलंद इरादे रखती हैं। जिस एज में बाकी यंगस्टर्स फ्यूचर की प्लानिंग करने में लगे होते हैं, आयशा ने महज पंद्रह साल की उम्र में बॉम्बे फ्लाइंग क्लब से स्टूडेंट पायलट लाइसेंस हासिल कर लिया था। आज इनके पास फ्लाइट रेडियो टेलीफोन ऑपरेटर का भी लाइसेंस है। ये इंडियन वूमन पायलट एसोसिएशन की मेंबर हैं और कमर्शियल पायलट बनने के लिए कडी मेहनत कर रही हैं।
ड्रीम ऑफ फ्लाइंग
आयशा का जन्म भले ही मुंबई में हुआ, लेकिन कश्मीर से उनका एक खास कनेक्शन रहा है। इनकी मां कश्मीर के बारामूला की रहने वाली थीं। जिस कारण आज भी अक्सर इनका कश्मीर आना-जाना होता है। आयशा कहती हैं, जब भी मैं मुंबई से कश्मीर जाती थी, तो मुझे आसमान में प्लेन को उडते देखना, एयरपोर्ट पर एरोप्लेंस को आते-जाते देखना फैसिनेट करता था। धीरे-धीरे ये फीलिंग एक पैशन बन गया और मैंने डिसाइड कर लिया कि पायलट ही बनना है। आयशा ने बताया कि वे 8वीं क्लास में थीं, तभी उनका विजन क्लियर था कि आगे क्या करना है। इसलिए फोकस होकर तैयारी की। स्टडीज इंपॉर्र्टेट थी, सो स्कूल में पढाई करते हुए बॉम्बे फ्लाइंग क्लब में 4 महीने की ट्रेनिंग शुरू कर दी। क्लब में आयशा सबसे कम उम्र (15 साल के करीब) की पायलट थीं, इसलिए सभी उनकी काफी हौसलाअफजाई करते थे। इस तरह वे आगे बढती गईं।
स्कूलिंग के साथ ट्रेनिंग
आयशा ने 2013 में मुंबई के क्राइस्ट चर्च स्कूल से हायर सेकंडरी किया है, लेकिन नवंबर 2011 में ही इन्होंने स्टूडेंट पायलट लाइसेंस का एग्जाम पास कर लिया था। इसके बाद आयशा ने दूसरा एग्जाम भी क्लियर किया और बॉम्बे फ्लाइंग क्लब से एफआरटीओएल का लाइसेंस हासिल किया। आयशा अब तक 30 घंटे से ज्यादा समय तक सेसना 172-आर प्लेन उडा चुकी हैं।
नासा में लाइफ टाइम एक्सपीरियंस
आयशा को सिर्फ विमान उडाने का क्रेडिट नहीं जाता है, बल्कि 16 साल की उम्र में वे नासा में ट्रेनिंग कर चुकी हैं। जब वे स्कूल में थीं, तो नासा के स्पेस ट्रेनिंग प्रोग्राम के लिए सेलेक्शन हुआ था। आयशा कहती हैं, इट वाज वंस इन अ लाइफ टाइम एक्सपीरियंस। आयशा ने नासा के स्पेस एकेडमी हंट्सविल के स्पेस शटल मिशन में दो महीने माइक्रोग्रैवेटी, मैन मनूवियरिंग यूनिट, मल्टी एक्सिस ट्रेनिंग, एक्स्ट्रा वेहिक्यूलर एक्टिविटी, स्कूबा डाइविंग, मून वॉक, स्पेस शॉट की ट्रेनिंग ली है, लेकिन उनका सबसे मेमोरेबल मोमेंट सुनीता विलियम्स से मिलना रहा। आयशा कहती हैं, इट वाज अ ड्रीम कम ट्रु। मैंने उनसे एविएशन और स्पेस में करियर से रिलेटेड टिप्स लिए। उन्होंने मेरा काफी हौसला बढाया और कहा कि छोटी उम्र में मैंने बहुत अच्छा काम किया है, जो दूसरी ग‌र्ल्स के लिए मिसाल है।
करियर इन एविएशन
आयशा एविएशन सेक्टर में काम करना चाहती हैं। इसीलिए बॉम्बे फ्लाइंग क्लब से एविएशन में बीएससी कर रही हैं। इसके अलावा, कमर्शियल पायलट लाइसेंस के एग्जाम की तैयारी भी पूरे जोर-शोर से चल रही है। इसमें आयशा को उनकी फैमिली, मां खालिदा अजीज और इंडस्ट्रियलिस्ट पिता अब्दुल अजीज का पूरा सपोर्ट मिलता है। इतनी छोटी सी उम्र में इतना कुछ हासिल करने वाली आयशा का सपना खुद से प्लेन उडाकर मक्का जाना है। वे कश्मीर भी जाना चाहती हैं।
फॉलो करें ड्रीम
आयशा कहती हैं, आज कश्मीर में लोगों को गर्व महसूस होता है कि उनके यहां की किसी लडकी ने इतना सब कुछ हासिल किया है क्योंकि वहां आज भी जितने पायलट्स हैं, उनमें कोई लडकी नहीं है। आयशा कहती हैं कि मेडिकल और इंजीनियरिंग जैसे ट्रेडिशनल फील्ड्स में करियर बनाने के अलावा एविएशन सेक्टर में लडकियों के लिए काफी ऑप्शंस हैं। वे यंगस्टर्स से अपील करती हैं कि वे अपने ड्रीम को फॉलो करें और अपनी एक अलग पहचान बनाने की कोशिश करें।

FICTION के बाजीगर

ऑरेन्ज हैंगओवर
जिंदगी की छोटी-छोटी बातें ही एक बडा कैनवास बना देती है, जिसमें इंसान अपने अनुभवों की कूची से ऐसे रंग उकेरता है, जिन्हें लोग देखकर यही कहते हैं कि अरे वाह, ये तस्वीर तो मेरी है। अपनी किताबों में कुछ ऐसी ही कोशिश करते हैं जालंधर के राहुल सैनी।
ऑर्किटेक्ट से राइटर तक
बचपन से ही राहुल आर्किटेक्ट बनना चाहते थे। गुडगांव से 2007 में आर्किटेक्ट में डिग्री लेकर उन्होंने आर्किटेक्ट की जॉब भी शुरू की। करीब दो साल काम करने के बाद उनका मन आर्किटेक्ट फील्ड से उचट-सा गया। जो सपने, जो इरादे और पैशन लेकर वे इस फील्ड में आए थे, वे सब उन्हें छोटे और आर्टिफिशियल लगने लगे। बिल्डिंग्स डिजाइन करते-करते वह बोर हो गए। उन्हें लगा कि इन बेजान और बनावटी चीजों में सिर खपाने से अच्छा है जिंदगी के फलसफे को समझा जाए। आस-पास की जिंदगी की संवेदनाओं को उन्होंने गहराई से महसूस किया। इसके बाद उनकी कल्पनाओं ने आकार लेना शुरू किया, लेकिन किसी बिल्डिंग के रूप में नहीं बल्कि इन बिल्डिंग्स में रहने वाले जीते-जागते इंसानों की जिंदगी के रूप में।
सोचो मत, बस शुरू हो जाओ
राहुल शुरुआत में अपने बिजी शिड्यूल से टाइम निकालकर दिन में दो-तीन घंटे बैठकर लिखने लगे। अब तक जो जुनून डिजाइंस से खेलने का था, वो अब शब्दों से खेलने लगा था। राहुल बताते हैं, हम सब एक ही समाज में रहते हैं, सबकी लाइफ ऑलमोस्ट एक जैसी होती है, लेकिन कुछ बेसिक चीजें हैं, जो हर इंसान को दूसरों से अलग करती हैं। मैं सोचता गया और एक दिन शुरू हो गया लिखना।
क्लैरिटी ऑफ थॉट्स
राहुल कहते हैं, राइटिंग के लिए सबसे ज्यादा जरूरी है- क्लैरिटी ऑफ थॉट्स। मतलब यह कि आपके दिमाग में क्या चल रहा है, आप किस पर लिखना चाहते हैं, यह क्लियर होना चाहिए। स्टोरी को धागे की तरह पकडकर चलना पडता है, स्टोरी के ताने-बाने में कैरेक्टर्स को कैसे फिट करना है, क्लाइमेक्स क्या होगा, अच्छा या बुरा और वहां तक स्टोरी को कैसे पहुंचाना है, ये सब इमेजिन करना पडता है।
स्टोरी रिलेटिबल हो
राहुल इस बात का खास ख्याल रखते हैं कि उनकी स्टोरी रिलेटिबल हो। लोग पढें, तो उन्हें लगे कि जैसे उनकी ही स्टोरी हो। राहुल कहते हैं, स्टोरी चाहे जैसी हो, मैंने उसमें ज्यादा फिलॉसफी नहीं डाली, लेकिन बेसिक वैल्यूज हमेशा इनक्लूड करता हूं। मेरी कोशिश हमेशा यही रहती है कि मैं कुछ ऐसा लिखूं, जिससे पढने वाले को अच्छा लगे।
स्टोरी बिहाइंड स्टोरी
राहुल ज्यादातर टाइम ट्रैवल करते हैं, क्योंकि उनका मानना है कि एक्सपीरियंस के बिना आप नहीं लिख सकते। राहुल बताते हैं, स्टोरी के प्लॉट के लिए मैं लोगों के बीच घूमता हूं, लेकिन जब स्टोरी लिखनी होती है, तब एकदम शांति चाहिए।
स्टोरी हिट करने का फॉर्मूला
बेहतर राइटिंग का कोई शॉर्ट कट नहीं है। आज के दौर में बहुत सी किताबे हैं, जिनमें रियल स्टोरी में रोमांस का मसाला लपेटकर अश्लीलता और ड्रामे की छौंक लगा दी जाती है। ऐसी किताब चल तो सकती है, लेकिन कुछ ही समय तक। अगर आपको लंबी दौड लगानी है, तो आपको कुछ नया लिखना होगा। राहुल की किताबों में भी रियल स्टोरीज ही हैं, लेकिन लिखने का अंदाज फिक्शन का है।
प्रमोशन पर ज्यादा खर्च
राहुल बताते हैं, बुक पब्लिश कराने के लिए आपको पैसे नहीं चाहिए। अगर आपकी किताब पब्लिशर को पसंद आ जाती है, तो वो बिना पैसे लिए पब्लिश कर देगा, लेकिन उसके बाद आपको किताब की पब्लिसिटी पर खर्च करना होगा।
राइटर्स टिप्स
-राइटर वही बन सकता है, जिसमें पैशन और पेशेंस हो।
-फीलिंग्स के साथ फील करके लिखें।
-आम जिंदगी से कनेक्टेड स्टोरी प्लॉट चुनें।
-अपने टारगेट रीडर्स फिक्स करें।
-सराउंडिंग की ऑब्जर्वेशन से स्टोरी और कैरेक्टर्स मिलेंगे।
-लिखने के लिए कोई उम्र नहीं होती, जब चाहे शुरू हो जाएं।
-ऐसा लिखें, जिससे रीडर्स कैरेक्टर से सीधे कनेक्ट हो सकें।
कॉरपोरेट स्टोरी टेलर
रेडियो सिटी 91.1 एफएम की सीईओ अपूर्वा पुरोहित मीडिया और एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री की चुनिंदा हस्तियों में शामिल हैं, जिन्होंने जूम टीवी और रेडियो सिटी जैसे ब्रांड्स को स्टैब्लिश करने में बेहद इंपॉटर्ेंट रोल निभाया है, लेकिन कॉरपोरेट रिस्पॉन्सिबिलिटीज के बीच इन्होंने अपने अंदर के राइटर को एक्टिवेट किया और एक ऐसी बुक लिख डाली, जो मार्केट में आते ही बेस्ट सेलर कैटेगरी में शामिल हो गई।
बुक से मैसेज
अपूर्वा के मुताबिक मीडिया इंडस्ट्री में टॉप रैंक पर काम करते हुए उन्होंने पाया है कि कॉरपोरेट व‌र्ल्ड में 30 परसेंट के करीब ही महिलाएं आती हैं। इनमें भी 15 परसेंट मैनेजर लेवल रैंक तक पहुंचते-पहुंचते कंपनी छोड देती हैं। उन्हें लगा कि वूमन प्रोफेशनल्स को मोटिवेट करना चाहिए ताकि वे बीच में काम न छोडें। खासकर जब कॉरपोरेट्स सेक्टर फीमेल एंप्लाइज के लिए काफी कुछ कर रहा हो, तो लेडीज को भी अपने करियर ग्रोथ का ध्यान रखना चाहिए। अपूर्वा कहती हैं कि बुक लिखने के पीछे वजह भी यही है, ताकि एक मैसेज दे सकें कि डोंट गिव अप।
लाइफ ऑफ वर्रि्कग वूमन
अपूर्वा कहती हैं, जब उन्होंने बुक लिखने का डिसीजन लिया, तो पहला ख्याल वर्किंग वूमन का ही आया।‘Lady, You‘Re Not A Man! The adventures of a woman at work (w®vx) नाम की इस किताब में अपूर्वा ने अपने 25 साल के लंबे करियर के ढेरों रियल लाइफ एग्जांपल्स को कहानी की शक्ल दी है। वे कहती हैं, जब उनकी किताब मार्केट में आई, तो सिर्फ प्रोफेशनल वूमन ही नहीं, बल्कि होममेकर्स का भी काफी अच्छा रिस्पॉन्स मिला। उन्हें फील हुआ कि मानो उनकी लाइफ ही किताब के जरिए सबके सामने आ गई है।
फ्लाइट में राइटिंग
अपूर्वा कहती हैं, मुझे अक्सर काम के सिलसिले में ट्रैवल करना होता था, तो बस फ्लाइट में लिखना स्टार्ट कर दिया। बाकी वीकेंड्स पर जब भी टाइम मिलता घर पर लिखती। इस तरह चार महीने में बुक को कंप्लीट कर लिया। फिर पब्लिशर को प्रपोजल भेजा और करीब आठ से दस महीने में बुक मार्केट में आ गई।
सक्सेस का जायका
सक्सेस हर किसी की लाइफ में अलग-अलग तरीके से आती है। किसी की लाइफ में इसकी सीधे इंट्री होती है, तो कुछ को इसके लिए थोडा एफर्ट करना पडता है। दिल्ली के राइटर और पब्लिशर सचिन गर्ग की लाइफ में भी सक्सेस ने सीधे इंट्री दी। सचिन ने अपनी फ‌र्स्ट बुक में ही सक्सेस का जायका चखा। सचिन ने ब्लॉग राइटिंग से इस फील्ड में कदम रखा। ब्लॉग पर फें्रंड्स और लोगों के अच्छे कमेंट्स ने उन्हें एक राइटर बनने का हौसला दिया। बल्कि अपने जैसे यंग राइटर्स के लिए इस फील्ड में एक मिसाल भी पेश की।
फ्री टाइम में लिखने की शुरुआत
आमतौर पर हम अपने खाली टाइम को दूसरे कामों में लगा देते हैं, लेकिन सचिन ने अपना वक्त फ्री राइटिंग में बिताया। 2007-08 में उन्होंने पहली बार ब्लॉग से लिखने की शुरुआत की।
सक्सेस स्टेप बाई स्टेप
राइटिंग के हर कदम पर सचिन को सक्सेस मिलती गई। आई ऐम नॉट टिवेंटी फोर का प्रॉपोजल बनाकर पब्लिशर को भेजा, वहां से पॉजिटिव रिप्लाई आ गया। अगस्त 2009 में बुक को जबरदस्त सक्सेस मिली।
स्टोरी कैरेक्टर
एमडीआई से एमबीए करने के बाद सचिन ने कर्नाटक में जॉब की शुरुआत की और उन्हें यहीं से आई ऐम नॉट टिवंटी फोर बुक का कॉन्सेप्ट आया। आई एम नॉट टिवेंटी फोर में सौम्या नाम का फिक्शन कैरेक्टर तैयार किया, जो दिल्ली की है और उसकी जॉब कर्नाटका के एक छोटे से टाउन में स्टील की एक कंपनी में लगी है। जॉब स्टार्ट करने से पहले उसने कुछ डिफरेंट सोचा था, लेकिन यहां आकर वह शॉक हो जाती है। सचिन ने सौम्या के कैरेक्टर को इस अंदाज में इंट्रोड्यूस किया है कि रीडर का पूरे टाइम इंट्रेस्ट बना रहता है।
फुल टाइम करियर
फ‌र्स्ट सक्सेस के बाद सचिन को लगा कि इस पैशन को क्यों न फुलटाइम करियर बना लिया जाए। 2011 में उन्होंने अपना पब्लिशिंग हाउस ओपन किया। दूसरी बुक फ‌र्स्ट लव को उन्होंने अपने पब्लिशिंग हाउस में पब्लिश की। घूमने-फिरने के शौकीन सचिन अपनी बुक में नए-नए एक्सपीरियंस रीडर्स से शेयर करते हैं।
अ ग्लैमरस राइटर
हर रोज सुबह उठना, उठकर तैयार होना, ऑफिस जाना और शाम को फिर घर आकर सो जाना, इस लाइफ से क्या आप सैटिस्फाइड हैं? शायद हों, शायद न भी हों, लेकिन शिकागो में पली-बढी इंडियन ओरिजिन की प्रोफेशनल मॉडल तूलिका मेहरोत्रा नहींथींऔर उन्होंने अपनी टॉप क्लास की कॉरपोरेट जॉब को सिर्फ इसलिए छोड दिया, ताकि वह इस दुनिया को कुछ अच्छा दे सकें।
पैसा ही सब कुछ नहीं
तूलिका लॉस एंजेल्स में कॉरपोरेट जॉब से बुरी तरह बोर हो गई थीं। अपनी उम्र के कई सारे राइटर्स को देखा। कहीं कुछ ऐसा नहीं मिला, जिसमें मॉडर्न इंडिया के बारे में कुछ अच्छा लिखा हो। बस, फिर वह जॉब छोडकर राइटर बन गईं।
पैशन मेक्स मैराथन राइटर
तूलिका अपने डेस्क के अलावा कॉफी शॉप या लाइब्रेरी में लिखती हैं। ऐसा अक्सर होता है कि वह रात भर लिखती ही रह जाती हैं। लिखती है, डिलीट करती हैं, सैकडों लाइंस लिखने के बाद भी कई बार पूरी की पूरी डिलीट करनी पडती है, क्योंकि सैटिफैक्शन नहीं मिलता।
राइटर्स टिप्स
-लाइफ को क्यूरियोसिटी से समझें।
-लाइफ को ऑब्जर्व करने की क्वॉलिटी हो।
-नई-नई बुक्स पढते रहें, खासकर फिक्शन।
-शॉर्ट स्टोरी या नॉवेल जो हो सके, लिखते रहें।
-ऐसा लिखें, जो रीडर्स को डाइजेस्ट हो सके।
-कुछ ऐसा लिखें जो आपने पहले कभी न लिखा हो।
Best seller books
-Delhi Stopover (2012)
-Crashing B-Town (August 2013)USP
-इंडियन व्यू और मल्टीकल्चरल डायवर्सिटी
Favourite writers
-KhalledHosseini, RainbowRowell
लूजर ने दिलाई सक्सेस
ईश्वर ने सभी इंसानों को किसी न किसी टैलेंट से नवाजा है बस जरूरत है उसे पहचानने की। मुंबई के दीपेन अंबालिया ने अपने अंदर के टैलेंट को पहचाना और जॉब के साथ-साथ राइटिंग भी शुरू कर दी। शुरुआती फेल्योर से दीपेन ने हार नहीं मानी और अपने लिखने के शौक को जारी रखा। दीपेन नेLOSER: Life Of a Software EngineeR पर बुक लिखकर बेस्ट सेलर में नाम अपना दर्ज कराया।
स्टार्रि्टग विद ब्लॉग
दीपेन को यह सक्सेस इतनी आसानी से नहीं मिली। दीपेन ने राइटिंग की स्टार्टिंग ब्लॉग लिखने से की। पहला ब्लॉग 6 वेज टू फूल योर बॉसेस लिखा। इस पर फ्रेंड्स से फीडबैक मांगा। सभी से अच्छा फीडबैक मिला। इसकी शुरुआत उन्होंने जॉब में रहते हुए 2008 में की। सॉफ्टवेयर इंजीनियर की लाइफ पर बेस्ड एक बुक 9 हाइफन और दूसरी बुक जिनेश ऑर्कुट बाई पटेल लिखना शुरू किया, लेकिन दोनों बुक पब्लिश नहींहो पाई।
अगेन स्टार्ट ऐंड सक्सेस
दीपेन कहते हैं कि कि जब पहली बुक लिखी तो हार्डडिस्क क्रैश हो गई और डाटा रिकवर नहीं हो पाया। दूसरी बुक लिखी तो पब्लिशर को पसंद नहीं आई। वह कहते हैं, इंसान को कोशिश करते रहना चाहिए। सक्सेस जरूर मिलती है। दीपेन ने तीसरी बुक इन देयर शूज में अलग-अलग 17 कैरेक्टर को उठाया और लाइफ को कैसे फील करते हैं, यह बताने की कोशिश की। इस बुक ने कॉर्मशियल सक्सेस तो नहीं दी, लेकिन यह अहसास दिलाया कि उनमें लिखने का टैलेंट है।
फ‌र्स्ट कॉमर्शियल सक्सेस
लूजर लाइफ ऑफ सॉफ्टवेयर इंजीनियर दीपेन की फ‌र्स्ट कॉमर्शियल सक्सेस है। इस बुक में दीपेन ने आईटी सेक्टर में होने वाली लाइफ को इंट्रोड्यूस किया है। दीपेन की तीसरी बुक टु बी और नॉट टु बी को भी अच्छा रिस्पॉन्स मिला है। दीपेन स्कॉट एडम को अपना मेंटर मानते हैं।
सीरियल एंटरप्रेन्योर से राइटिंग तक
रितिका सुंदर की तरह डॉ. कांत मिरियाला भी एमएनसी के लिए फुलटाइम बिजनेस कंसल्टेंट के तौर पर काम करते रहे हैं। जॉब छोडने का रिस्क नहींले सकते थे, इसलिए कई स्टार्टअप शुरू किए। इनमें कुछ फेल्योर रहे, जबकि कुछ बेहद सक्सेसफुल। डॉ. कांत ने क्विंटेंट नाम से स्टार्टअप शुरू किया था, जिसे आईगेट कंपनी को 87 करोड रुपये में बेच दिया। ये क्यूआईके नाम की कंपनी में इनवेस्टर थे, जिसे बाद में स्काइप ने 150 मिलियन डॉलर में खरीदा। बाद में डॉ.कांत और रितिका ने एक ऐसी बुक लिखने का फैसला लिया, जिससे कि एक वेंचर के जीरो से लॉन्चिंग तक के एक्सपीरियंस को सबके साथ शेयर किया जा सके।
मैनेजमेंट इन राइटिंग रितिका सुंदर ने आईआईएम, अहमदाबाद से एमबीए करने के बाद बिजनेस कंसल्टेंट के तौर पर काम करना शुरू कर दिया था। उन्होंने फॉर्चून 500 कंपनीज के लिए कई कंसल्टिंग प्रोजेक्ट्स किए। इसके बाद एमएनसी कंपनीज को अपनी सर्विस देने के बाद अभी वे आईटी कंपनी एचसीएल के साथ सीनियर बिजनेस स्पेशलिस्ट के तौर पर जुडी हैं। रितिका का इंट्रोडक्शन सिर्फ इतना भर नहीं है। वे एक सफल राइटर भी हैं। डॉ. कांत मिरियाला के साथ इन्होंने ऐसे लोगों के लिए एक बुक लिखी है जो अपना वेंचर स्टार्ट करना चाहते हैं, लेकिन डिसीजन नहींले पा रहे।
इस बुक का नाम है Entrepreneur 5pm to 9am.
बुक्स से कंपैनियनशिप
रितिका के मुताबिक, उन्हें बचपन से राइटिंग की हॉबी रही है। दस साल की थीं, तब से किताबें पढने का शौक रहा है। गर्मी की छुट्टियों में एक दिन में तीन बुक पढ लिया करती थीं। किताबों की दुनिया उन पर मानो जादू सा कर देती थी। वॉल्डन इनकी ऑल टाइम फेवरेट बुक रही है। इस बुक का एक कोट इन्हें आज भी काफी इंस्पायर करता है, However mean your life is, meet it and live it. वे कहती हैं, बुक्स ने मेरी लाइफ को बनाया है, वैल्यूज समझाए हैं और हमेशा मेरे दोस्त रहे हैं। इन्हीं सारी बातों ने रितिका को मोटिवेट किया कि वे कुछ ऐसा करें जिससे कि दूसरों की लाइफ में मैजिक ला सकें। मन में राइटर बनने का ख्याल आया, लेकिन इससे फाइनेंशियल स्टैबिलिटी नहीं आ सकती थी, इसलिए एजुकेशन कंप्लीट की और जॉब करने लगी।
जॉब के साथ राइटिंग
जॉब के दौरान रितिका ने फील किया कि आज बहुत सारे वर्किंग प्रोफेशनल्स अपनी नौकरी से सैटिस्फाइड नहीं हैं। वे कुछ अपना करना चाहते हैं, जिसमें बॉस की दखलअंदाजी न हो, काम करने की फ्रीडम हो, लेकिन उनके पास ऑप्शन नहीं होता कि कुछ अपने मन की कर सकें। इसके अलावा स्क्रैप से शुरू करने में अक्सर लोग डरते हैं। जॉब छोडने का रिस्क लेना भी इस दौर में ईजी नहीं है। रितिका कहती हैं, इन्हीं बातों का ध्यान में रखकर मैंने डॉ. कांत के साथ किताब लिखने का डिसीजन लिया। वैसे, एक फुलफ्लैच्ड जॉब करने के साथ बुक लिखना कोई ईजी टास्क नहीं है। उसमें भी जब एक राइटर अमेरिका में हो और दूसरा इंडिया में। रितिका ने बताया कि डॉ. कांत फोन और ईमेल के जरिए बुक के लिए कॉन्ट्रिब्यूट करते थे। फाइनल मेनस्क्रिप्ट तैयार होने से पहले कई लोगों का इंटरव्यू किया गया। हर दिन 2 से 3 घंटे लिखना और फिर उसे रिव्यू करना होता था। इस तरह करीब छह महीने की मेहनत के बाद उनकी बुक पूरी हो सकी। रितिका कहती हैं कि जब वे लोग पूरी तरह से सैटिस्फाइड हो गए तो बुक को पब्लिशर के पास भेजा। रूपा पब्लिकेशन को उनका कॉन्सेप्ट क्लिक कर गया और बुक मार्केट में आ गई। पहला एडिशन तो कंप्लीट सेल आउट था। उसके बाद अब दूसरा एडिशन भी आ चुका है।
गाइड फॉर स्टार्टअप्स
रितिका कहती हैं, Enterpreneur 5pm to 9amकोई बिजनेस बुक नहीं है, बल्कि इसमें विजुअल्स और इलस्ट्रेशंस के जरिए सिंपल लैंग्वेज में अपनी बात कही गई है। राइटिंग का टोन ऐसा है कि रीडर्स को लगेगा कि हम उनसे बात कर रहे हैं। इस बुक में बताया गया है कि कैसे एक बिजनेस आइडिया को प्रॉफिटेबल स्टार्ट अप में बदला जा सकता है। रितिका के मुताबिक, उनके टारगेट रीडर्स वर्किग प्रोफेशनल्स, होममेकर्स और स्टूडेंट्स सभी हैं, लेकिन वे फिक्शन के बजाय एंटरप्रेन्योरशिप को फोकस करते हुए कुछ लिखना पसंद करेंगी। इनकी नेक्स्ट प्लानिंग भी पार्टटाइम एंटरप्रेन्योर्स के ऊपर बुक लिखने की है। वैसे, रितिका चिल्ड्रेन बुक और दूसरे सब्जेक्ट्स में भी हाथ आजमाना चाहती हैं।
नॉन रीडर्स बने रीडर्स
रितिका कहती हैं कि चेतन भगत की सक्सेस के बाद बहुत से नॉन-रीडर्स ने पढना शुरू कर दिया है। आज की जेनरेशन ज्यादातर शॉर्ट स्टोरीज पढना पसंद करती है। इसलिए न्यू एज इंडियन राइटर्स भी शॉर्ट स्टोरीज लिख रहे हैं। अच्छी बात ये है कि इंडियन पब्लिशर्स अपने यहां के राइटर्स को पब्लिश करने में दिलचस्पी ले रहे हैं। इसी का नतीजा है कि इंडियन राइटर्स की डिमांड काफी बढ गई है। रितिका का मानना है कि राइटिंग पैशन से आता है। इसलिए जो लोग लिखना पसंद करते हैं, उन्हें रेगुलरली कुछ न कुछ लिखते रहना चाहिए। अपनी राइटिंग के साथ वे जितना एक्सपेरिमेंट करेंगे, उसका उतना अच्छा रिजल्ट आएगा।
ब्यूटीफुल स्टोरी टेलर
लाइफ इज शॉर्ट, सो फॉलो योर हार्ट, चेंज योर ड्रीम ऐंड गेट इट। इसी को मंत्र मानकर प्रीति शिनॉय लाइफ में आगे बढ रही हैं। छोटी उम्र से ही लिखने का शौक था। पिता की ट्रांसफरेबल जॉब थी, तो इंडिया के डिफरेंट कल्चर्स और ट्रेडिशंस को जानने का मौका मिला। धीरे-धीरे ब्लॉग लिखना शुरू किया। इन पर हिट्स की संख्या बढती गई, लेकिन राइटिंग एक फुलटाइम प्रोफेशन बनेगा, ये सोचा नहीं था। साल 2006 में जब पिता की मौत हुई, तो प्रीति ने डिसाइड कर लिया कि उन्हें प्रोफेशनल राइटिंग करनी है और फिर पहली किताब पर काम करना शुरू किया। साल 2008 में इनकी पहली बुक 3- Bubblegums and Candies आई। आज प्रीति शिनॉय इंडिया की बेस्ट सेलिंग ऑथर्स में से एक हैं। अब तक इनकी लिखी चार बुक्स बेस्ट सेलर बन चुकी है। हो भी क्यों न, ये अपने व‌र्ड्स और पिक्चर्स से ऐसा मैजिक क्रिएट करती हैं कि रीडर इनकी कहानी में खो जाता है।
राइटिंग इन टफ टाइम
प्रीति को 2009 में पता चला कि वे बाइपोलर डिस्ऑर्डर की शिकार हैं। ऐसे में फैमिली ने यूके शिफ्ट करने का फैसला किया। जब वे 2010 में दोबारा इंडिया लौटीं, तो उनकी दूसरी बुक Life is what you make it रीडर्स के बीच थी। ये बुक 2011 की टॉप सेलर बनी। प्रीति कहती हैं, इस बुक को लिखना काफी मुश्किल था। इसमें बाइपोलर डिसॉर्डर की शिकार लेडी की लाइफ को पोरट्रे किया गया है। प्रीति सिंपल तरीके से आम लोगों की कहानी कहती हैं जिससे कि उन्हें खुद को स्टोरी से रिलेट करने में देर नहीं लगती है।
ऑथर विद अ पर्पज
प्रीति कहती हैं कि वे हर स्टोरी के जरिए एक मैसेज देना चाहती हैं कि लाइफ इज ब्यूटीफुल, वन शुड लिव लाइफ टु द फुलेस्ट। लेकिन ये कहते हुए भी वह किसी को प्रवचन नहीं देती हैं। इनकी मानें, तो हमारे बीच ही कई सारे हीरोज हैं, ऐसे में वे अपनी राइटिंग के जरिए पॉजिटिविटी फैलाना चाहती हैं। इसीलिए स्टोरीज के ज्यादातर कैरेक्टर्स रियल लाइफ से इंस्पायर्ड होते हैं। जैसे कि फरवरी 2012 में आई फिक्शन बुक ञ्जद्गड्ड द्घश्रह्म ह्ल2श्र ड्डठ्ठस्त्र ड्ड श्चद्बद्गष्द्ग श्रद्घ ष्ड्डद्मद्ग। ये इस साल इंडिया के टॉप फाइव बेस्ट सेलर्स में से एक मानी जाती है। इसमें प्रीति ने एक ऐसी महिला की कहानी कही है, जो बैड मैरेज में फंसी हुई है। प्रीति की चौथी बुक The secret wishlist है, जिसमें फ्रेंडशिप, लव और एक्सपेक्टेशंस की कहानी है। अब तक इसकी 40 हजार से ज्यादा कॉपीज बिक चुकी हैं। इन दिनों प्रीति एक नई बुक The one you cannot haveपर काम कर रही हैं।
डिसिप्लिन इज इंपॉटर्ेंट
प्रीति ने बताया कि एक बुक को कंप्लीट करने में मिनिमम 7 से 8 महीने लगते हैं। इसलिए उन्हें हर रोज कम से कम छह घंटे राइटिंग के लिए निकालने होते हैं। इस दौरान उन्हें किसी तरह का डिस्टबर्ेंस पसंद नहीं। सो, जब वे लिखती हैं तो अपना मोबाइल स्विच ऑफ रखती हैं और अकेले रहती हैं। प्रीति का कहना है कि बुक लिखने के दौरान सबसे पहले स्टोरी सोचनी होती है, वह है ओरिजनैलिटी। इसके बाद प्लॉट, कैरेक्टर्स सेलेक्ट करने होते हैं, जो लोगों से रिलेट कर सकें। इन सबके अलावा सबसे इंपॉटर्ेंट होता है, डिसिप्लिन मेनटेन करना। कंप्यूटर या लैपटॉप पर बैठने की हैबिट डालना। हर दिन लिखना होता है। प्रीति ऑथर फ्रेंड्स से उनके बुक के प्रोग्रेस के बारे में इंफॉर्मेशन लेती हैं कि उन्होंने कितने व‌र्ड्स लिखे। इसके बाद खुद की स्पीड देखती हैं। इससे उन्हें मोटिवेशन मिलती है, एक हेल्दी कॉम्पिटिशन रहता है।
फाइनल प्रोडक्ट
प्रीति ने बताया कि बहुत से लोग नहीं जानते हैं कि एक बार जब मेनस्क्रिप्ट पूरी हो जाती है और वह पब्लिशर के पास पहुंच जाती है, तो कम से कम चार से छह महीने लगते हैं बुक को मार्केट में आने में। इससे ज्यादा भी समय लग सकता है, क्योंकि मेनस्क्रि प्ट के कई रिविजंस होते हैं। ऑथर्स को कुछ स्ट्रक्चरल चेंजेज करने पड सकते हैं। इसके बाद अगर एडिटर कनविंस हो जाता है, तो प्रूफ रीडिंग का काम शुरू होता है, जो कई राउंड्स तक चलता है। करेक्शंस लगते हैं। एक-एक कॉमा, फुलस्टॉप, वर्ड, फॉन्ट्स को कई-कई बार चेक किया जाता है। इसी तरह बुक के टाइटल, एकनॉलेजमेंट और चैप्टर के टाइटल्स पर काम होता है। इतना सब होने के बाद फाइनल प्रोडक्ट मार्केट में आता है। प्रीति को रोल्ड डैल, ऑड्रे निफनेगर, मिलन कुंडेरा और किरण नागरकर को पढना अच्छा लगता है। इनकी राइटिंग से इंस्पीरेशन मिलती है।
टिप्स फॉर न्यू कमर्स
नए राइटर्स को प्रीति की एडवाइस है कि वे अलग-अलग ऑथर्स को पढें। डेली कम से कम 500 शब्दों में कुछ भी लिखें। इसके अलावा हमेशा ध्यान रखें कि राइटिंग ओरिजनल हो। जब रीडर्स आपकी स्टोरी से कनेक्ट करेगा तभी सक्सेस मिलेगी। प्रीति के मुताबिक, जो लोग राइटिंग के प्रोफेशन में आना चाहते हैं, उन्हें इस बात का ध्यान रखना होगा कि यह एक लोनली प्रोफेशन है। एक बुक को खत्म करने में साल, दो साल और ज्यादा लग जाते हैं। इस दौरान आपके साथ कोई और नहीं होता है। इसके अलावा आप किसी के लिए अकाउंटेबल नहीं होते हैं और न ही कोई प्रोग्रेस को चेक करता है।
अ थिंग बियांड फॉरएवर
जिंदगी में किसी मोड पर आकर आपको लगता है कि गलत रास्ते पर आ गए, मेरी मंजिल तो कहीं और थी, लेकिन आप इतनी दूर आ चुके होते हैं कि पीछे जाना पॉसिबल नहीं होता और आप उसी रास्ते पर बेमन से चलते जाते हैं। कोलकाता के नवनील चक्रवर्ती को ये मंजूर नहीं था, उन्होंने अपनी गलती सुधार ली और रास्ता बदल लिया।
मैंने क्यों किया बीबीए?
नवनील कहते हैं, आज भी मुझे नहीं पता कि मैंने बीबीए क्यों किया। 12वीं क्लास के बाद ऐमलेस और डायरेक्शन लेस था, ट्रेंड यही चल रहा था बीबीए, एमबीए का। मैंने भी सोचा कि शायद एमबीए करके कुछ अच्छा कर सकता हूं, बाद में फील हुआ कि इट्स नाट राइट च्वाइस फॉर मी।
काश, ये पहले होता
नवनील ने बीबीए सेंकड ईयर से ही लिखना शुरू कर दिया था। शुरू में शॉर्ट स्टोरीज लिखा करते थे। समर इंटर्नशिप के दौरान ही नवनील को अहसास हो गया कि यह काम उनसे नहीं होने वाला। बीबीए की समर इंटर्नशिप के दौरान ही राइटर बनने का कीडा काट गया। अगर ये कीडा थोडा पहले काटता तो अच्छा होता।
लडकी ने लिखवा दी किताब
नवनील की नई किताब है-एक्स। इसके लिए उन्हें कैरेक्टर जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में मिली। एक अनजान लडकी अचानक आकर उनसे मिली थी और उनकी राइटिंग की तारीफ की थी। उसी लडकी से इंस्पायर्ड होकर नवनील को अपनी नई स्टोरी का प्लॉट और कैरेक्टर का आइडिया मिला
डोंट बी राइटर टु बाय बीएमडब्ल्यू
नवनील कहते हैं कि अगर राइटर बनकर बीएमडब्ल्यू खरीदना चाहते हैं, तो आपकी जगह इस फील्ड में नहीं है, लेकिन अगर आप सुकून, सैटिफैक्शन और पैशन के लिए राइटर बनना चाहते हैं, तो आप कर सकते हैं।
राइटर्स टिप्स
-फीलिंग के साथ पॉजिटिव चीजों पर लिखने की कोशिश करें।
-सेल्फ सैटिफैक्शन के लिए लिखें।
-आपका सबसे ज्यादा फोकस स्टोरी के कैरेक्टर पर होना चाहिए।
पैशन ने बनाया राइटर
2004 मिस इंडिया ब्यूटी कॉन्टेस्ट की पार्टिसिपेंट इरा त्रिवेदी ने बॉस्टन के वैलेसली कॉलेज से ग्रेजुएशन और फिर कोलंबिया बिजनेस स्कूल से एमबीए किया। इरा कॉरपोरेट व‌र्ल्ड में शानदार करियर बना सकती थीं, लेकिन अपने पैशन को फॉलो करने का डिसीजन लिया और बन गईं एक राइटर। 2006 में 19 साल की एज में पहला बुक लिख डाला, What would you do to save the world? इसके बाद कभी पीछे नहीं देखा। इरा त्रिवेदी इन दिनों अपने चौथे नॉन-फिक्शनल बुक¤ India in love : love, sexuality and marriage in 21st century पर वर्क कर रही हैं।
बैंकर से राइटर
इरा ने बताया कि राइटिंग प्रोफेशन में आना, प्री-प्लांड नहीं था। वे इनवेस्टमेंट बैंकर बनना चाहती थीं, लेकिन एक दिन ख्याल आया कि इससे सोसायटी में वह इंपैक्ट नहीं डाला जा सकता जो एक फुलटाइम राइटर बनकर किया जा सकता है। इस तरह पहली बुक का आइडिया आया, जिसमें उन्होंने ब्यूटी कॉन्टेस्ट के दौरान के एक्सपीरियंसेज को शेयर किया है। What would you do to save the world? में ब्यूटी और ग्लैमर व‌र्ल्ड की वह कहानी है, जो खूबसूरत नहीं है, यानी यह रियलिटी से इंस्पायर्ड ये एक फिक्शनल स्टोरी है। क्रिटिक्स ने इस बुक को काफी सराहा है और यह इरा की बेस्ट सेलर बुक मानी जाती है।
टाइम के साथ परफेक्शन
इरा कहती हैं, शुरू में लिखने की स्पीड थोडी कम थी। डेली एक पेज ही लिखना होता था, लेकिन पहली बुक मार्केट में आने के बाद कॉन्फिडेंस और परफेक्शन, दोनों बढते गए। यही कारण रहा कि तीन साल बाद 2009 में दूसरी बुक ¤ The great Indian love story और इसके दो साल बाद 2011 में तीसरी बुकThere is no love on wallstreetसबके सामने थी। बडी बात ये भी रही कि पेंग्विन द्वारा पब्लिश्ड इस बुक को ग्रीक, हिंदी, मराठी और मलयालम में ट्रांसलेट किया गया है। इरा ने अपनी कहानियों में आज की अर्बन लाइफ, एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर्स, यूथ, सोसायटी के अलग-अलग एस्पेक्ट्स को शामिल कर, यंग रीडर्स से कनेक्ट करने की कोशिश की है। इरा राइटर के अलावा ट्रेन्ड योगा टीचर भी हैं। योगा से ही इन्हें लिखने का इंस्पीरेशन मिलता है।
जिंदगी ना मिलेगी दोबारा
आपमें से कितने यूथ ऐसे हैं, जो राजस्थान के कोटा जाते हैं इंजीनियरिंग की तैयारी करने और बनकर आते हैं राइटर! क्या आप कभी सोच सकते हैं कि इंजीनियर बनने के लिए कोई जी-तोड मेहनत करे, फिर इंजीनियर बन भी जाए और फिर कहे यार, मजा नहीं आ रहा, छोडो, अब राइटर बनेंगे। आप इसे क्या कहेंगे? लेकिन राइटिंग के पैशन के ऐसे कई दीवाने हैं। उन्हीं में से एक हैं बरेली के रहने वाले हर्ष अग्रवाल। An Excursion Of Insight के राइटर हर्ष कहते हैं, एक ही लाइफ मिली है, उसे आप जितने अच्छे से हो सके, जी लीजिए, दोबारा नहीं मिलेगी ये, थोडा रिस्क उठा लीजिए।
इंजीनियर से निकला राइटर
इंजीनियरिंग कॉलेज से हर्ष को बहुत ज्यादा उम्मीदें थीं, लेकिन कॉलेज का करिकुलम हर्ष को कुछ पसंद नहीं आया। हर्ष के दिल में बहुत गुबार है, वह बताते हैं, यहां पर बस आपको आना है, पढना है, एग्जाम में स्कोर करना है, फिर इंजीनियर की जॉब रोबोट वाली। सुबह 8 बजे जाइए, रात के 8 बजे आइए। दिन भर काम कीजिए। आपका बॉस आपके ऊपर चिल्लाएगा, साइट पर जाइए, विजिट करिए। समझिए आप अपनी लाइफ बर्बाद कर रहे हैं। आप किसी बुक स्टाल पर जाते हैं, शेल्फ में अपनी किताब देखकर आपको जो खुशी मिलती है, वो इंजीनियर बनने पर तो नहीं मिल सकती।
अपॉच्र्युनिटी फॉर न्यू राइटर्स
बुक राइटिंग के साथ-साथ हर्ष ने अपनी वेबसाइट भी बनाई है, theasylum.in। हर्ष बताते हैं, जब मैंने शुरू किया था, तो मुझे किसी से हेल्प नहीं मिली, उसी वक्त मैंने डिसाइड किया कि खुद जो परेशानी झेली, किसी और को नहीं होने दूंगा।?
राइटर्स टिप्स
-पैशन और पेशेंस बहुत जरूरी है
-अंदर के राइटर को जगाएं
-बंधकर जीना छोडें, जो करना चाहते हैं वो करें
-ह्यूमन ऐंड इवेंट ऑब्जर्वेशन सीखें
v{..v|ऐंड डन मद्रास यूनिवर्सिटी से कम्युनिकेशन में मास्टर्स करने के बाद एडवर्टाइजिंग कंपनी में काम कर रही विभा बत्रा का इंट्रेस्ट बचपन से राइटिंग में था। उन्हें घर का माहौल भी वैसा ही मिला। कई किताबें पढींऔर फिर फैसला लिया कि खुद भी कुछ लिखा जाए। इस तरह स्वीट सिक्सटीन के रूप में सामने आई विभा बत्रा की क्रिएटिविटी।
चैलेंजिंग था पहला टास्क
विभा ने सबसे पहले अपने नाना विष्णुकांत शास्त्री की किताब ज्ञान और कर्म का ट्रांसलेशन किया था। यह एक बडा चैलेंज था, क्योंकि इसकी लैंग्वेज टफ थी और इसमें अपनी तरफ से कुछ लिखा भी नहीं जा सकता था। इसे पूरा करने में डेढ साल लगे और यहीं से उनकी शुरुआत हुई।
इमेजिनेशन ऐंड सैटायर
अपनी स्टोरीज और नॉवेल के बारे में विभा बताती हैं कि थीम और कैरेक्टर चुनते समय वह रियलिटी का पूरा ध्यान रखती हैं। अपने इमेजिनेशन और एक्सपीरियंस से कैरेक्टर डिसाइड करती हैं। मैं अपनी भाषा में थोडा सैटायर का लुक जरूर देती हूं, क्योंकि अब जो नए रीडर्स सामने आ रहे हैं उन्हें हल्की-फुल्की भाषा में मनोरंजन के साथ चीजें एक्सेप्ट करने की आदत है।
भगवद्गीता जरूर पढें
मैंने बहुत से राइटर्स की कई बुक्स पढी हैं। कुछ को तो दो-तीन बार या उससे भी ज्यादा बार पढा हैं, लेकिन सच कहूं तो मुझे सबसे बढिया किताब अगर कोई लगी है तो वह है श्रीमद्भगवद्गीता। इसमें आपको वह सब मिल जाएगा, जो जीवन को नई दिशा और विजन देने के लिए जरूरी है।
राइटर्स टिप्स
-स्टोरी यूथ बेस्ड हो, तो अच्छा है।
-फिक्शन में रियल एक्सपीरियन्स भी जरूरी है।
-लिखने के लिए ग्राउंड रियलिटी भी देखें।
-सिचुएशनली फैक्ट डालना जरूरी है।

सीरियल एंटरप्रेन्योर से राइटिंग तक
रितिका सुंदर की तरह डॉ. कांत मिरियाला भी एमएनसी के लिए फुलटाइम बिजनेस कंसल्टेंट के तौर पर काम करते रहे हैं। जॉब छोडने का रिस्क नहींले सकते थे, इसलिए कई स्टार्टअप शुरू किए। इनमें कुछ फेल्योर रहे, जबकि कुछ बेहद सक्सेसफुल। डॉ. कांत ने क्विंटेंट नाम से स्टार्टअप शुरू किया था, जिसे आईगेट कंपनी को 87 करोड रुपये में बेच दिया। ये क्यूआईके नाम की कंपनी में इनवेस्टर थे, जिसे बाद में स्काइप ने 150 मिलियन डॉलर में खरीदा। बाद में डॉ.कांत और रितिका ने एक ऐसी बुक लिखने का फैसला लिया, जिससे कि एक वेंचर के जीरो से लॉन्चिंग तक के एक्सपीरियंस को सबके साथ शेयर किया जा सके।
मैनेजमेंट इन राइटिंग
रितिका सुंदर ने आईआईएम, अहमदाबाद से एमबीए करने के बाद बिजनेस कंसल्टेंट के तौर पर काम करना शुरू कर दिया था। उन्होंने फॉर्चून 500 कंपनीज के लिए कई कंसल्टिंग प्रोजेक्ट्स किए। इसके बाद एमएनसी कंपनीज को अपनी सर्विस देने के बाद अभी वे आईटी कंपनी एचसीएल के साथ सीनियर बिजनेस स्पेशलिस्ट के तौर पर जुडी हैं। रितिका का इंट्रोडक्शन सिर्फ इतना भर नहीं है। वे एक सफल राइटर भी हैं। डॉ. कांत मिरियाला के साथ इन्होंने ऐसे लोगों के लिए एक बुक लिखी है जो अपना वेंचर स्टार्ट करना चाहते हैं, लेकिन डिसीजन नहींले पा रहे।
इस बुक का नाम है Entrepreneur 5pm to 9am.
बुक्स से कंपैनियनशिप
रितिका के मुताबिक, उन्हें बचपन से राइटिंग की हॉबी रही है। दस साल की थीं, तब से किताबें पढने का शौक रहा है। गर्मी की छुट्टियों में एक दिन में तीन बुक पढ लिया करती थीं। किताबों की दुनिया उन पर मानो जादू सा कर देती थी। वॉल्डन इनकी ऑल टाइम फेवरेट बुक रही है। इस बुक का एक कोट इन्हें आज भी काफी इंस्पायर करता है, However mean your life is, meet it and live it. वे कहती हैं, बुक्स ने मेरी लाइफ को बनाया है, वैल्यूज समझाए हैं और हमेशा मेरे दोस्त रहे हैं। इन्हीं सारी बातों ने रितिका को मोटिवेट किया कि वे कुछ ऐसा करें जिससे कि दूसरों की लाइफ में मैजिक ला सकें। मन में राइटर बनने का ख्याल आया, लेकिन इससे फाइनेंशियल स्टैबिलिटी नहीं आ सकती थी, इसलिए एजुकेशन कंप्लीट की और जॉब करने लगी।
जॉब के साथ राइटिंग
जॉब के दौरान रितिका ने फील किया कि आज बहुत सारे वर्किंग प्रोफेशनल्स अपनी नौकरी से सैटिस्फाइड नहीं हैं। वे कुछ अपना करना चाहते हैं, जिसमें बॉस की दखलअंदाजी न हो, काम करने की फ्रीडम हो, लेकिन उनके पास ऑप्शन नहीं होता कि कुछ अपने मन की कर सकें। इसके अलावा स्क्रैप से शुरू करने में अक्सर लोग डरते हैं। जॉब छोडने का रिस्क लेना भी इस दौर में ईजी नहीं है। रितिका कहती हैं, इन्हीं बातों का ध्यान में रखकर मैंने डॉ. कांत के साथ किताब लिखने का डिसीजन लिया। वैसे, एक फुलफ्लैच्ड जॉब करने के साथ बुक लिखना कोई ईजी टास्क नहीं है। उसमें भी जब एक राइटर अमेरिका में हो और दूसरा इंडिया में। रितिका ने बताया कि डॉ. कांत फोन और ईमेल के जरिए बुक के लिए कॉन्ट्रिब्यूट करते थे। फाइनल मेनस्क्रिप्ट तैयार होने से पहले कई लोगों का इंटरव्यू किया गया। हर दिन 2 से 3 घंटे लिखना और फिर उसे रिव्यू करना होता था। इस तरह करीब छह महीने की मेहनत के बाद उनकी बुक पूरी हो सकी। रितिका कहती हैं कि जब वे लोग पूरी तरह से सैटिस्फाइड हो गए तो बुक को पब्लिशर के पास भेजा। रूपा पब्लिकेशन को उनका कॉन्सेप्ट क्लिक कर गया और बुक मार्केट में आ गई। पहला एडिशन तो कंप्लीट सेल आउट था। उसके बाद अब दूसरा एडिशन भी आ चुका है।
गाइड फॉर स्टार्टअप्स
रितिका कहती हैं, Enterpreneur 5pm to 9am कोई बिजनेस बुक नहीं है, बल्कि इसमें विजुअल्स और इलस्ट्रेशंस के जरिए सिंपल लैंग्वेज में अपनी बात कही गई है। राइटिंग का टोन ऐसा है कि रीडर्स को लगेगा कि हम उनसे बात कर रहे हैं। इस बुक में बताया गया है कि कैसे एक बिजनेस आइडिया को प्रॉफिटेबल स्टार्ट अप में बदला जा सकता है। रितिका के मुताबिक, उनके टारगेट रीडर्स वर्किग प्रोफेशनल्स, होममेकर्स और स्टूडेंट्स सभी हैं, लेकिन वे फिक्शन के बजाय एंटरप्रेन्योरशिप को फोकस करते हुए कुछ लिखना पसंद करेंगी। इनकी नेक्स्ट प्लानिंग भी पार्टटाइम एंटरप्रेन्योर्स के ऊपर बुक लिखने की है। वैसे, रितिका चिल्ड्रेन बुक और दूसरे सब्जेक्ट्स में भी हाथ आजमाना चाहती हैं।
नॉन रीडर्स बने रीडर्स
रितिका कहती हैं कि चेतन भगत की सक्सेस के बाद बहुत से नॉन-रीडर्स ने पढना शुरू कर दिया है। आज की जेनरेशन ज्यादातर शॉर्ट स्टोरीज पढना पसंद करती है। इसलिए न्यू एज इंडियन राइटर्स भी शॉर्ट स्टोरीज लिख रहे हैं। अच्छी बात ये है कि इंडियन पब्लिशर्स अपने यहां के राइटर्स को पब्लिश करने में दिलचस्पी ले रहे हैं। इसी का नतीजा है कि इंडियन राइटर्स की डिमांड काफी बढ गई है। रितिका का मानना है कि राइटिंग पैशन से आता है। इसलिए जो लोग लिखना पसंद करते हैं, उन्हें रेगुलरली कुछ न कुछ लिखते रहना चाहिए। अपनी राइटिंग के साथ वे जितना एक्सपेरिमेंट करेंगे, उसका उतना अच्छा रिजल्ट आएगा।
ब्यूटीफुल स्टोरी टेलर
लाइफ इज शॉर्ट, सो फॉलो योर हार्ट, चेंज योर ड्रीम ऐंड गेट इट। इसी को मंत्र मानकर प्रीति शिनॉय लाइफ में आगे बढ रही हैं। छोटी उम्र से ही लिखने का शौक था। पिता की ट्रांसफरेबल जॉब थी, तो इंडिया के डिफरेंट कल्चर्स और ट्रेडिशंस को जानने का मौका मिला। धीरे-धीरे ब्लॉग लिखना शुरू किया। इन पर हिट्स की संख्या बढती गई, लेकिन राइटिंग एक फुलटाइम प्रोफेशन बनेगा, ये सोचा नहीं था। साल 2006 में जब पिता की मौत हुई, तो प्रीति ने डिसाइड कर लिया कि उन्हें प्रोफेशनल राइटिंग करनी है और फिर पहली किताब पर काम करना शुरू किया। साल 2008 में इनकी पहली बुक 3- Bubblegums and Candiesआई। आज प्रीति शिनॉय इंडिया की बेस्ट सेलिंग ऑथर्स में से एक हैं। अब तक इनकी लिखी चार बुक्स बेस्ट सेलर बन चुकी है। हो भी क्यों न, ये अपने व‌र्ड्स और पिक्चर्स से ऐसा मैजिक क्रिएट करती हैं कि रीडर इनकी कहानी में खो जाता है।
राइटिंग इन टफ टाइम
प्रीति को 2009 में पता चला कि वे बाइपोलर डिस्ऑर्डर की शिकार हैं। ऐसे में फैमिली ने यूके शिफ्ट करने का फैसला किया। जब वे 2010 में दोबारा इंडिया लौटीं, तो उनकी दूसरी बुक Life is what you make itरीडर्स के बीच थी। ये बुक 2011 की टॉप सेलर बनी। प्रीति कहती हैं, इस बुक को लिखना काफी मुश्किल था। इसमें बाइपोलर डिसॉर्डर की शिकार लेडी की लाइफ को पोरट्रे किया गया है। प्रीति सिंपल तरीके से आम लोगों की कहानी कहती हैं जिससे कि उन्हें खुद को स्टोरी से रिलेट करने में देर नहीं लगती है।
ऑथर विद अ पर्पज
प्रीति कहती हैं कि वे हर स्टोरी के जरिए एक मैसेज देना चाहती हैं कि लाइफ इज ब्यूटीफुल, वन शुड लिव लाइफ टु द फुलेस्ट। लेकिन ये कहते हुए भी वह किसी को प्रवचन नहीं देती हैं। इनकी मानें, तो हमारे बीच ही कई सारे हीरोज हैं, ऐसे में वे अपनी राइटिंग के जरिए पॉजिटिविटी फैलाना चाहती हैं। इसीलिए स्टोरीज के ज्यादातर कैरेक्टर्स रियल लाइफ से इंस्पायर्ड होते हैं। जैसे कि फरवरी 2012 में आई फिक्शन बुक Tea for two and a piece of cake। ये इस साल इंडिया के टॉप फाइव बेस्ट सेलर्स में से एक मानी जाती है। इसमें प्रीति ने एक ऐसी महिला की कहानी कही है, जो बैड मैरेज में फंसी हुई है। प्रीति की चौथी बुक The secret wishlistहै, जिसमें फ्रेंडशिप, लव और एक्सपेक्टेशंस की कहानी है। अब तक इसकी 40 हजार से ज्यादा कॉपीज बिक चुकी हैं। इन दिनों प्रीति एक नई बुक The one you cannot haveपर काम कर रही हैं।
डिसिप्लिन इज इंपॉटर्ेंट
प्रीति ने बताया कि एक बुक को कंप्लीट करने में मिनिमम 7 से 8 महीने लगते हैं। इसलिए उन्हें हर रोज कम से कम छह घंटे राइटिंग के लिए निकालने होते हैं। इस दौरान उन्हें किसी तरह का डिस्टबर्ेंस पसंद नहीं। सो, जब वे लिखती हैं तो अपना मोबाइल स्विच ऑफ रखती हैं और अकेले रहती हैं। प्रीति का कहना है कि बुक लिखने के दौरान सबसे पहले स्टोरी सोचनी होती है, वह है ओरिजनैलिटी। इसके बाद प्लॉट, कैरेक्टर्स सेलेक्ट करने होते हैं, जो लोगों से रिलेट कर सकें। इन सबके अलावा सबसे इंपॉटर्ेंट होता है, डिसिप्लिन मेनटेन करना। कंप्यूटर या लैपटॉप पर बैठने की हैबिट डालना। हर दिन लिखना होता है। प्रीति ऑथर फ्रेंड्स से उनके बुक के प्रोग्रेस के बारे में इंफॉर्मेशन लेती हैं कि उन्होंने कितने व‌र्ड्स लिखे। इसके बाद खुद की स्पीड देखती हैं। इससे उन्हें मोटिवेशन मिलती है, एक हेल्दी कॉम्पिटिशन रहता है।
फाइनल प्रोडक्ट
प्रीति ने बताया कि बहुत से लोग नहीं जानते हैं कि एक बार जब मेनस्क्रिप्ट पूरी हो जाती है और वह पब्लिशर के पास पहुंच जाती है, तो कम से कम चार से छह महीने लगते हैं बुक को मार्केट में आने में। इससे ज्यादा भी समय लग सकता है, क्योंकि मेनस्क्रि प्ट के कई रिविजंस होते हैं। ऑथर्स को कुछ स्ट्रक्चरल चेंजेज करने पड सकते हैं। इसके बाद अगर एडिटर कनविंस हो जाता है, तो प्रूफ रीडिंग का काम शुरू होता है, जो कई राउंड्स तक चलता है। करेक्शंस लगते हैं। एक-एक कॉमा, फुलस्टॉप, वर्ड, फॉन्ट्स को कई-कई बार चेक किया जाता है। इसी तरह बुक के टाइटल, एकनॉलेजमेंट और चैप्टर के टाइटल्स पर काम होता है। इतना सब होने के बाद फाइनल प्रोडक्ट मार्केट में आता है। प्रीति को रोल्ड डैल, ऑड्रे निफनेगर, मिलन कुंडेरा और किरण नागरकर को पढना अच्छा लगता है। इनकी राइटिंग से इंस्पीरेशन मिलती है।
टिप्स फॉर न्यू कमर्स
नए राइटर्स को प्रीति की एडवाइस है कि वे अलग-अलग ऑथर्स को पढें। डेली कम से कम 500 शब्दों में कुछ भी लिखें। इसके अलावा हमेशा ध्यान रखें कि राइटिंग ओरिजनल हो। जब रीडर्स आपकी स्टोरी से कनेक्ट करेगा तभी सक्सेस मिलेगी। प्रीति के मुताबिक, जो लोग राइटिंग के प्रोफेशन में आना चाहते हैं, उन्हें इस बात का ध्यान रखना होगा कि यह एक लोनली प्रोफेशन है। एक बुक को खत्म करने में साल, दो साल और ज्यादा लग जाते हैं। इस दौरान आपके साथ कोई और नहीं होता है। इसके अलावा आप किसी के लिए अकाउंटेबल नहीं होते हैं और न ही कोई प्रोग्रेस को चेक करता है।
अ थिंग बियांड फॉरएवर
जिंदगी में किसी मोड पर आकर आपको लगता है कि गलत रास्ते पर आ गए, मेरी मंजिल तो कहीं और थी, लेकिन आप इतनी दूर आ चुके होते हैं कि पीछे जाना पॉसिबल नहीं होता और आप उसी रास्ते पर बेमन से चलते जाते हैं। कोलकाता के नवनील चक्रवर्ती को ये मंजूर नहीं था, उन्होंने अपनी गलती सुधार ली और रास्ता बदल लिया।
मैंने क्यों किया बीबीए?
नवनील कहते हैं, आज भी मुझे नहीं पता कि मैंने बीबीए क्यों किया। 12वीं क्लास के बाद ऐमलेस और डायरेक्शन लेस था, ट्रेंड यही चल रहा था बीबीए, एमबीए का। मैंने भी सोचा कि शायद एमबीए करके कुछ अच्छा कर सकता हूं, बाद में फील हुआ कि इट्स नाट राइट च्वाइस फॉर मी।
काश, ये पहले होता
नवनील ने बीबीए सेंकड ईयर से ही लिखना शुरू कर दिया था। शुरू में शॉर्ट स्टोरीज लिखा करते थे। समर इंटर्नशिप के दौरान ही नवनील को अहसास हो गया कि यह काम उनसे नहीं होने वाला। बीबीए की समर इंटर्नशिप के दौरान ही राइटर बनने का कीडा काट गया। अगर ये कीडा थोडा पहले काटता तो अच्छा होता।
लडकी ने लिखवा दी किताब
नवनील की नई किताब है-एक्स। इसके लिए उन्हें कैरेक्टर जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में मिली। एक अनजान लडकी अचानक आकर उनसे मिली थी और उनकी राइटिंग की तारीफ की थी। उसी लडकी से इंस्पायर्ड होकर नवनील को अपनी नई स्टोरी का प्लॉट और कैरेक्टर का आइडिया मिला
डोंट बी राइटर टु बाय बीएमडब्ल्यू
नवनील कहते हैं कि अगर राइटर बनकर बीएमडब्ल्यू खरीदना चाहते हैं, तो आपकी जगह इस फील्ड में नहीं है, लेकिन अगर आप सुकून, सैटिफैक्शन और पैशन के लिए राइटर बनना चाहते हैं, तो आप कर सकते हैं।
राइटर्स टिप्स
-फीलिंग के साथ पॉजिटिव चीजों पर लिखने की कोशिश करें।
-सेल्फ सैटिफैक्शन के लिए लिखें।
-आपका सबसे ज्यादा फोकस स्टोरी के कैरेक्टर पर होना चाहिए।
पैशन ने बनाया राइटर
2004 मिस इंडिया ब्यूटी कॉन्टेस्ट की पार्टिसिपेंट इरा त्रिवेदी ने बॉस्टन के वैलेसली कॉलेज से ग्रेजुएशन और फिर कोलंबिया बिजनेस स्कूल से एमबीए किया। इरा कॉरपोरेट व‌र्ल्ड में शानदार करियर बना सकती थीं, लेकिन अपने पैशन को फॉलो करने का डिसीजन लिया और बन गईं एक राइटर। 2006 में 19 साल की एज में पहला बुक लिख डाला, What would you do to save the world? इसके बाद कभी पीछे नहीं देखा। इरा त्रिवेदी इन दिनों अपने चौथे नॉन-फिक्शनल बुक India in love : love, sexuality and marriage in 21st century पर वर्क कर रही हैं।
बैंकर से राइटर
इरा ने बताया कि राइटिंग प्रोफेशन में आना, प्री-प्लांड नहीं था। वे इनवेस्टमेंट बैंकर बनना चाहती थीं, लेकिन एक दिन ख्याल आया कि इससे सोसायटी में वह इंपैक्ट नहीं डाला जा सकता जो एक फुलटाइम राइटर बनकर किया जा सकता है। इस तरह पहली बुक का आइडिया आया, जिसमें उन्होंने ब्यूटी कॉन्टेस्ट के दौरान के एक्सपीरियंसेज को शेयर किया है। What would you do to save the world? में ब्यूटी और ग्लैमर व‌र्ल्ड की वह कहानी है, जो खूबसूरत नहीं है, यानी यह रियलिटी से इंस्पायर्ड ये एक फिक्शनल स्टोरी है। क्रिटिक्स ने इस बुक को काफी सराहा है और यह इरा की बेस्ट सेलर बुक मानी जाती है।
टाइम के साथ परफेक्शन
इरा कहती हैं, शुरू में लिखने की स्पीड थोडी कम थी। डेली एक पेज ही लिखना होता था, लेकिन पहली बुक मार्केट में आने के बाद कॉन्फिडेंस और परफेक्शन, दोनों बढते गए। यही कारण रहा कि तीन साल बाद 2009 में दूसरी बुक The great Indian love storyऔर इसके दो साल बाद w®vv में तीसरी बुक There is no love on wallstreet सबके सामने थी। बडी बात ये भी रही कि पेंग्विन द्वारा पब्लिश्ड इस बुक को ग्रीक, हिंदी, मराठी और मलयालम में ट्रांसलेट किया गया है। इरा ने अपनी कहानियों में आज की अर्बन लाइफ, एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर्स, यूथ, सोसायटी के अलग-अलग एस्पेक्ट्स को शामिल कर, यंग रीडर्स से कनेक्ट करने की कोशिश की है। इरा राइटर के अलावा ट्रेन्ड योगा टीचर भी हैं। योगा से ही इन्हें लिखने का इंस्पीरेशन मिलता है।
जिंदगी ना मिलेगी दोबारा
आपमें से कितने यूथ ऐसे हैं, जो राजस्थान के कोटा जाते हैं इंजीनियरिंग की तैयारी करने और बनकर आते हैं राइटर! क्या आप कभी सोच सकते हैं कि इंजीनियर बनने के लिए कोई जी-तोड मेहनत करे, फिर इंजीनियर बन भी जाए और फिर कहे यार, मजा नहीं आ रहा, छोडो, अब राइटर बनेंगे। आप इसे क्या कहेंगे? लेकिन राइटिंग के पैशन के ऐसे कई दीवाने हैं। उन्हीं में से एक हैं बरेली के रहने वाले हर्ष अग्रवाल। An Excursion Of Insightके राइटर हर्ष कहते हैं, एक ही लाइफ मिली है, उसे आप जितने अच्छे से हो सके, जी लीजिए, दोबारा नहीं मिलेगी ये, थोडा रिस्क उठा लीजिए।
इंजीनियर से निकला राइटर
इंजीनियरिंग कॉलेज से हर्ष को बहुत ज्यादा उम्मीदें थीं, लेकिन कॉलेज का करिकुलम हर्ष को कुछ पसंद नहीं आया। हर्ष के दिल में बहुत गुबार है, वह बताते हैं, यहां पर बस आपको आना है, पढना है, एग्जाम में स्कोर करना है, फिर इंजीनियर की जॉब रोबोट वाली। सुबह 8 बजे जाइए, रात के 8 बजे आइए। दिन भर काम कीजिए। आपका बॉस आपके ऊपर चिल्लाएगा, साइट पर जाइए, विजिट करिए। समझिए आप अपनी लाइफ बर्बाद कर रहे हैं। आप किसी बुक स्टाल पर जाते हैं, शेल्फ में अपनी किताब देखकर आपको जो खुशी मिलती है, वो इंजीनियर बनने पर तो नहीं मिल सकती।
अपॉच्र्युनिटी फॉर न्यू राइटर्स
बुक राइटिंग के साथ-साथ हर्ष ने अपनी वेबसाइट भी बनाई है, theasylum.in। हर्ष बताते हैं, जब मैंने शुरू किया था, तो मुझे किसी से हेल्प नहीं मिली, उसी वक्त मैंने डिसाइड किया कि खुद जो परेशानी झेली, किसी और को नहीं होने दूंगा।
राइटर्स टिप्स
-पैशन और पेशेंस बहुत जरूरी है
-अंदर के राइटर को जगाएं
-बंधकर जीना छोडें, जो करना चाहते हैं वो करें
-ह्यूमन ऐंड इवेंट ऑब्जर्वेशन सीखें
v{..v|ऐंड डन
मद्रास यूनिवर्सिटी से कम्युनिकेशन में मास्टर्स करने के बाद एडवर्टाइजिंग कंपनी में काम कर रही विभा बत्रा का इंट्रेस्ट बचपन से राइटिंग में था। उन्हें घर का माहौल भी वैसा ही मिला। कई?किताबें पढींऔर फिर फैसला लिया कि खुद भी कुछ लिखा जाए। इस तरह स्वीट सिक्सटीन के रूप में सामने आई विभा बत्रा की क्रिएटिविटी।
चैलेंजिंग था पहला टास्क
विभा ने सबसे पहले अपने नाना विष्णुकांत शास्त्री की किताब ज्ञान और कर्म का ट्रांसलेशन किया था। यह एक बडा चैलेंज था, क्योंकि इसकी लैंग्वेज टफ थी और इसमें अपनी तरफ से कुछ लिखा भी नहीं जा सकता था। इसे पूरा करने में डेढ साल लगे और यहीं से उनकी शुरुआत हुई।
इमेजिनेशन ऐंड सैटायर
अपनी स्टोरीज और नॉवेल के बारे में विभा बताती हैं कि थीम और कैरेक्टर चुनते समय वह रियलिटी का पूरा ध्यान रखती हैं। अपने इमेजिनेशन और एक्सपीरियंस से कैरेक्टर डिसाइड करती हैं। मैं अपनी भाषा में थोडा सैटायर का लुक जरूर देती हूं, क्योंकि अब जो नए रीडर्स सामने आ रहे हैं उन्हें हल्की-फुल्की भाषा में मनोरंजन के साथ चीजें एक्सेप्ट करने की आदत है।
भगवद्गीता जरूर पढें
मैंने बहुत से राइटर्स की कई बुक्स पढी हैं। कुछ को तो दो-तीन बार या उससे भी ज्यादा बार पढा हैं, लेकिन सच कहूं तो मुझे सबसे बढिया किताब अगर कोई लगी है तो वह है श्रीमद्भगवद्गीता। इसमें आपको वह सब मिल जाएगा, जो जीवन को नई दिशा और विजन देने के लिए जरूरी है।
राइटर्स टिप्स
-स्टोरी यूथ बेस्ड हो, तो अच्छा है।
-फिक्शन में रियल एक्सपीरियन्स भी जरूरी है।
-लिखने के लिए ग्राउंड रियलिटी भी देखें।
-सिचुएशनली फैक्ट डालना जरूरी है।
2014 में आएगी नेक्स्ट बुक
डीटीयू से इंजीनियरिंग करने के बाद दुर्जाय ने गुडगांव के एमडीआई से पोस्ट ग्रेजुएशन किया। गुडगांव में पोस्ट ग्रेजुएशनके साथ ही दुर्जाय ने ऑफ कोर्स आई लव यू लिखी, जो बेस्ट सेलर बनी। मैनेजमेंट की डिग्री के बाद उन्होंने अमेरिकन एक्सप्रेस में जॉब की, लेकिन फाइनली राइटिंग को उन्होंने अपना करियर बनाया। दुर्जाय की आठ बुक्स में से चार बेस्ट सेलर के लिए चुनी जा चुकी हैं। दुर्जाय अभी तक रिलेशनशिप पर फोकस करते आए हैं, लेकिन अब वो दूसरे टॉपिक पर भी फोकस कर रहे हैं। जून 2014 तक दुर्जाय की अगली बुक मार्केट में आ जाएगी।
राइटिंग इज लाइफ
शौक और करियर दो ऐसी चीजें हैं, जिनका आपस में कोई रिलेशन नहीं होता, लेकिन अगर शौक को करियर बना लिया जाए, तो समझिए कि आप को शिखर पर पहुंचने से कोई रोक नहीं सकता। दिल्ली के 26 वर्षीय दुर्जाय दत्ता ने फ‌र्स्ट बुक लिखकर ही राइटर्स के बीच अपनी अलग पहचान बना ली थी। दुर्जाय अब तक आठ बुक्स लिख चुके हैं, जिसमें से चार बुक्स बेस्ट सेलर में आती हैं।
शौक भी-करियर भी
बचपन से लिखने-पढने के शौकीन दुर्जाय दत्ता की फैमली में एजुकेशन का अच्छा महौल था। स्कूलिंग करने के बाद दुर्जाय ने दिल्ली स्कूल ऑफ इंजीनियरिंग में एडमिशन लिया। उसके बाद गुडगांव के मैनेजमेंट डेवलप्मेंट इंस्टीट्यूट से मैनेजमेंट में डिप्लोमा किया। पढाई के दौरान ही दुर्जाय ने अपनी फ‌र्स्ट बुक ऑफ कोर्स आई लव यू लिखी। बुक पब्लिश कराने के लिए उन्होंने कोई खास तैयारी नहीं की और न ही बुक के लिए किसी तरह का प्रमोशन, लेकिन जब बुक पब्लिश होकर मार्केट में आई, तो बेस्ट सेलर में दर्ज हो गई। फ‌र्स्ट बुक ने उन्हें इस तरह से इंस्पायर किया कि उन्होंने राइटिंग को अपना पैशन और करियर बना लिया। Of Course I Love You ..! Till I Find Someone Better में दुर्जाय ने अपनी खुद की लाइफ, कॉलेज के दिनों के पर्सनल एक्सपीरियंस को शेयर किया था, जिसे यंगस्टर्स ने खूब पसंद किया।
सक्सेस स्टेप बाई स्टेप
पहली बुक की सक्सेस ने उन्हें दूसरी बुक लिखने के लिए इंस्पायर किया। दुर्जाय कहते हैं कि जब फ‌र्स्ट बुक मार्केट में आई, तो लोगों ने उनसे सेकंड बुक के बारे में पूछना शुरू कर दिया। फिर उन्होंने सेकंड बुक की तैयारी स्टार्ट कर दी। उन्होंने दूसरी बुक¤ Now That You‘re Rich ने भी मार्केट में बहुत अच्छा रिस्पांस दिया। इस बुक को उन्होंने अपनी को-राइटर मानवी आहुजा के साथ लिखी। दुर्जाय कहते हैं कि सेकं ड बुक के रिस्पॉन्स के बाद उन्होंने पीछे मुडकर नहीं देखा। उनकी तीसरी बुक She Broke Up, I Didn‘t!ने भी उन्हें जबरदस्त सक्सेस दी। 2010 में आई उनकी चौथी बुक Ohh Yes I Am Single...उन्होंने अपनी को-राइटर नीती के साथ मिलकर लिखी। दुर्जाय और नीती की इस बुक ने बेस्ट सेलर में अपना नाम दर्ज कराया। आज दुर्जाय के लिए राइटिंग ही सब कुछ है। दुर्जाय कहते हैं कि बिना लिखे मैं रह नहीं सकता।
टीवी और बॉलीवुड से ऑफर
लगातार मिली सक्सेस के बाद दुर्जाय को टीवी और बॉलीवुड से भी राइटिंग के ऑफर आने लगे। दुर्जाय इस समय टेलीविजन और बॉलीवुड के लिए भी लिख रहे हैं। इसके लिए उन्होंने कुछ कॉन्ट्रैक्ट भी साइन किए हैं। दुर्जाय कहते हैं कि जल्द ही उनकी बुक्स पर बेस्ड बॉलीवुड में फिल्म भी आएगी।
पब्लिकेशन हाउस की शुरुआत
बचपन से लिखने-पढने के शौकीन दुर्जाय दत्ता ने अपने एक कॉलेज फें्रंडऔर राइटर सचिन गर्ग के साथ ग्रेप्वाइन नाम से एक पब्लिकेशन हाउस की शुरुआत की। पब्लिकेशन हाउस खोलने का मकसद अपने जैसे यंग राइटर्स को एक प्लेटफार्म देना है, क्योंकि बडे पब्लिकेशन हाउस में राइटर्स की लंबी लाइन है, जहां यंग राइटर्स को मौका देर से मिलता है या नहीं मिल पाता।
कॉम्बिनेशन विद फ्रेंड्स
दुर्जाय का अपने फ्रेंड्स के साथ कॉम्बिनेशन भी बहुत अच्छा है। को-राइटर मानवी आहूजा और नीति के साथ मिलकर उन्होंने नॉउ दैट यू आर रिच और ओ यस आईएम सिंगल लिखी जो बेस्ट सेलर बनी।
नंबर ऑफ बुक्स
-ऑफ कोर्स आई लव यू
-नॉउ दैट यू आर रिच
-शी ब्रोकअप आई डिडनॉट
-ओ यस आईएम सिंगिल
-टिल दि लास्ट ब्रीथ
-समवन लाइक यू
-होल्ड माई हैंड
-यू वर माई क्रश
राइटर्स टिप्स
-राइटर में क्रिएटिविटी होनी चाहिए।
-चीजों को ऑब्जर्व करना आना चाहिए।
-रीडर से रिलेट करने की क्वॉलिटी होनी चाहिए। - लैंग्वेज पर अच्छी कमांड होना चाहिए।
-स्टोरी में ब्रेक नहीं होना चाहिए।
-पूरी स्टोरी एक सीक्वेंस में होनी चाहिए।
अगर यह सब क्वॉलिटी आपके अंदर है, तो लिखने की शुरुआत कर सकते हैं।
मिथ्स ऐंड ट्रुथ इन राइटिंग
यंग राइटर्स के मन में एक बुक लिखने और फिर उसे पब्लिश कराने को लेकर तमाम तरह के मिथ होते हैं, जबकि हकीकत में जो मिथ यंग राइटर्स के मन होते हैं, वे रियलिटी से बिल्कुल अलग होते हैं। यंग राइटर्स यही सोचते हैं कि बुक पब्लिश कराने के लिए पब्लिशर को पैसे देने पडते हैं, लेकिन ऐसा नहीं है। राइटर को बुक लिखने के बाद उसे पब्लिशर के पास ले जाने से पहले बुक का अट्रैक्टिव सा प्रपोजल बनाना पडता है। प्रपोजल में बुक के तीन सिनॉप्सिस शामिल करने होते हैं, थीम चैप्टर होता है, ऑथर को अपना प्रोफाइल ऐड करना होता है और अगर ट्विटर और फेसबुक पर उसे फॉलो करने वालों की लिस्ट लंबी है, तो उन्हें भी प्रॉपोजल में शामिल कर सकते हैं। यह ऑथर के लिए एक एडवांटेज होता है। इससे पता चलता है कि सोशल मीडिया में उसके थॉट्स को कितने फॉलो किया जाता है और कितना लोग उसे इंपॉर्र्टेस देते हैं।
प्रपोजल इज इंपॉर्टेट
बुक पब्लिश कराने से पहले एक यंग राइटर के मन में तमाम तरह के मिथ और कंफ्यूजन होते हैं, लेकिन जैसा लोग सोचते हैं रियलिटी उससे बिल्कुल अलग होती है। पैंग्विन पब्लिशिंग हाउस की सीनियर कमिशनिंग एडिटर वैशाली माथुर का कहना है कि लोगों के मन में बुक पब्लिशिंग को लेकर जो कंफ्यूजन है। वे पूरी तरह से सही नहींहै। राइटर चाहे यंग हो या एक्सपीरियंस्ड प्रपोजल पसंद आने के बाद ही उस पर काम किया जाता है। प्रपोजल आने पर टीम के मेंबर उस पर स्टडी करते हैं। अगर लगता है कि प्रपोजल ठीक है और उस पर काम करना चाहिए, तो फिर ऑथर के साथ डिस्कशन किया जाता है। सभी राइटर्स के लिए एक ही रूल्स-रेग्युलेशन होते हैं। ऑथर छोटा हो या बडा पब्लिशर अपनी पूरी मेहनत उस पर करता है। क्योंकि बुक के साथ पब्लिशर का भी इंट्रेस्ट जुडा होता है।
मार्केट स्ट्रैटेजी एंड प्रमोशन
प्रपोजल पसंद आ गया, तो ऑथर को पब्लिशर के साथ बुक के बारे में डिस्कशन के लिए बुलाया जाता है। हर पब्लिशिंग हाउस के अपने कुछ रूल्स रेग्युलेशन होते हैं, जिन्हें फॉलो करना होता है। कॉन्ट्रैक्ट साइन करते वक्त सारी बातों पर चर्चा की जाती है। इसमें बुक का साइज, कवर पेज, एडिटिंग, मार्केट स्ट्रैटेजी और बुक के प्रमोशन से जुडे पार्ट पर बातचीत की जाती है, जो भी कंफ्यूजन होता है उसे ऑथर और पब्लिशर मिलकर सॉल्व करते हैं।
रॉयल्टी
बुक पब्लिश कराने से पहले रॉयल्टी पर डिस्कशन होता है। हर पब्लिशिंग हाउस की रॉयल्टी फिक्स होती है, लेकिन कई बार ऑथर की मार्केट वैल्यू देखकर रॉयल्टी में थोडा बहुत चेंज भी हो जाता है, लेकिन यह सब दोनों की अंडरस्टैंडिंग पर डिपेंड करता है।
कॉस्ट
बुक की कॉस्ट मार्केट स्ट्रैटेजी पर तय की जाती है। मार्केट में बुक के रीडर कैसे हैं। यह सब देखने के बाद बुक की कॉस्ट फाइनल की जाती है। इसमें बुक को कंप्लीट करने में कितनी कॉस्ट आई है, यह भी ध्यान रखा जाता है। बडे पब्लिशिंग हाउस बुक की कॉस्ट अक्सर ज्यादा रखते हैं। दरअसल बडे पब्लिशिंग हाउस की टीम बडी होती है। वह बुक पर काफी वर्क करते हैं। इसमें डिजाइनिंग पार्ट इंपॉर्टेट होता है। इसमें ऑथर को कुछ भी नहीं करना पडता है। सारी रिस्पॉन्सिबिलिटी पब्लिशर की होती है। इसलिए वह बुक की कॉस्ट अक्सर ज्यादा रखते हैं।
बुक एडिटिंग
बुक पब्लिश करने से पहले उसमें एडिटिंग पार्ट काफी अहम होता है। पब्लिशर ऑथर के साथ बैठकर उसमें एडिटिंग और कवर पेज के बारे में डिस्कशन करते हैं। एडिटिंग पार्ट में ही बुक की तमाम कमियां निकाल दी जाती है। यंग राइटर्स के लिए एडिटर इंपॉटर्ेंट रोल प्ले करता है। मार्केट में बुक लॉन्च करने से पहले ऑथर अपने एक्सपीरियंस के बेस पर बुक को एक रीडेबल प्रोडक्ट के रूप में तैयार करता है। मार्केट में एक ऑथर के साथ पब्लिशर की भी क्रेडिबिलिटी जुडी होती है।
कंफ्यूजन
कुछ लोगों के मन में अक्सर कंफ्यूजन होता है कि बुक पब्लिश कराने के लिए पैसे देने पडते हैं, लेकिन ऐसा नहीं है। पब्लिशर को अगर प्रॉपोजल पसंद आ गया, तो वह बुक पब्लिश करते हैं। कुछ पब्लिशर पैसे लेकर बुक पब्लिश करते हैं, लेकिन वह अलग होते हैं। उन्हें वैनिटी पब्लिशिंग कहते हैं। उनके रूल्स-रेग्युलेशन अलग होते हैं।
ई-बुक : टिप्स
सर्विस यूज करने से पहले ध्यान रखें
-कॉन्ट्रैक्ट की शर्र्ते क्या है ?
-बुक की प्राइस पर आपका कंट्रोल है ?
-अपफ्रंट फीस कितनी? रॉयल्टी कितनी ?
-क्या कोई हिडेन फीस या चार्ज भी है ?
-ई-बुक फाइल पर मालिकाना हक किसका ?
-पाइरेसी रोकने के लिए क्या इंतजाम हैं ?
यूजफुल लिंक्स
-www.notionpress.com
-www.pothi.com
-www.ebookpublisher.in
-www.cinnamonteal.in
कॉन्सेप्ट : अंशु सिंह, मो. रजा, मिथिलेश श्रीवास्तव और शरद अग्निहोत्री
With thanks, Taken from Jagran.