Monday, 27 October 2014

भारत में घटी ऐतिहासिक घटनाओं की क्रमवार सूची

भारत के सभी ऐतिहासिक घटनाओं की सूची यहाँ दी जा रही हैयह सूची निश्चय ही उन सभी विद्यार्थियों के लिए उपयोगी सिद्ध होगी जो की किसी प्रतियोगी परीक्षा के लिए प्रयासरत हैं या जो भारत के इतिहास मे रूचि रखते हैं

ईसा पूर्व-
2500-1800:  सिंधु घाटी सभ्यता।
599: महावीर का जन्म; 523 ईसा पूर्व मे निर्वाण प्राप्त।
563:  गौतम बुद्ध का जन्म, 483 ईसा पूर्व में निर्वाण प्राप्त।
327-26: सिकंदर द्वारा भारत की खोज एवं यूरोप व भारत के मध्य भूमि मार्ग की शुरुआत।
269-232: भारत में अशोक का काल ।
261: कालिंग का युद्ध ।
57: विक्रम काल की शुरुआत।
30: दक्कन में सातवाह्न वंश की शुरुआत. तथा दक्षिण में पांडय का शासन।

ईसवी-
78: सका काल की शुरुआत।
320: गुप्त काल की शुरुआत।
360: समुद्रगुप्त ने संपूर्ण उत्तर भारत तथा दक्कन के अधिकांश भाग को जीत लिया ।
380-413: चंद्रगुप्ता विक्रमादित्य का शासन, कालिदास का काल, तथा हिंदूवाद का पुनरूत्तान।
606-647: हर्षवर्धन का शासन।
629-645: ह्वेन सांग का भारत आगमन।
622: हिजरी काल की शुरुआत।
712: मुहम्म्द बिन क़ासिम द्वारा सिंध पर अरब का आक्रमण।
1025: महमूद द्वारा सोमनाथ मंदिर को लूटा गया।
1191:  पृथ्वीराज चौहान एवं मुहम्म्द गौरी के मध्य तराईन का प्रथम युद्ध।
1192: तराईन का द्वितीय युद्ध जिसमें पृथ्वीराज चौहान की मुहम्म्द गौरी द्वारा हार।
1206: कुतुब्बुद्दीन ऐबक द्वारा गुलाम वंश की स्थापना।
1329:  पहला भारतीय धरमप्रदेश की स्थापना पोप जॉन आइक्सीच के द्वारा हुई एवं जॉर्डानुस को प्रथम बिशप नियुक्त किया गया।
1459: सन सिटी, जोधपुर , भारत की स्थापना राव जोधा द्वारा की गयी।
1497:  वास्को डी गामा ने भारत यात्रा हेतु कूच किया।
1498: भारत के कालीकट पर वास्को डी गामा का आगमन।
1502: वॅस्को डी गामा की लिस्बन, पुर्तगाल से भारत के लिए दूसरी यात्रा की शुरुआत।
1565: तालिकोटा का युद्ध.  मुस्लिमों द्वारा विजयनगर सेना का ख़ात्मा।
1575:  मुगल बादशाह अकबर ने बंगाल सेना को तूक्रोई के युद्ध में हराया।
1597: डच ईस्ट इंडिया कंपनी  के जहाज़ सुदूर पूर्व की यात्रा पर निकले।
1602: युनाइटेड डच ईस्ट इंडियन कंपनी (वॉक) की स्थापना।
1608: प्रथम इंग्लिश रक्षा सेना का सूरत के तट पर आगमन।
1612: सूरत ,भारत में अँग्रेज़ों एवं पुर्तगालियों के मध्य युद्ध।
1621: डच वेस्ट इंडिया कंपनी को न्यू नेदरलॅंड्स का शासन प्राप्त ।
1633: मिंग  वंश का डच ईस्ट इंडिया कंपनी के साथ युद्ध जिसमें मिंग वंश की विजय ।
1639:  स्थानीय नायक शासकों के लिए ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा चाँदी की भूमि का निर्माण ।
1641: युनाइटेड ईस्ट इंडियन कंपनी  द्वारा मलक्का शहर का जीता जाना ।
1641: वेस्ट इंडिया कंपनी द्वारा साओ पौलो दे लोअंडा को जीता गया ।
1658:  भारत में हार्बर शहर पर डच सेना का कब्जा ।
1668: बंबई पर इंग्लैंड का शासन ।
1668:  चार्ल्स द्वितीय द्वारा बंबई को इसाट इंडिया कंपनी को सौपां गया ।
1690: जॉब चारनॉक द्वारा कलकत्ता शहर की स्थापना ।
1739: करनाल का युद्ध ईरानी बादशाह नादिर शाह एवं पराजित मुगल बादशाह मुहम्म्द शाह के मध्य लड़ा गया ।
1739: नादिर शाह ने भारत के दिल्ली पर कब्जा किया ।
1752: त्रिचीनपल्ली में फ्रांससीसी सेना का अँग्रेज़ी सेना के समक्ष समर्पण ।
1756: भारतीय विद्रोहियों द्वारा ब्रिटिश सेना की पराजय ।
1756: फ्रांस एवं भारत युद्ध: किट्तंनिंग अभियान ।
1756: रॉबर्ट क्लाइव के नेतृत्व मे भारत के फुल्ता पर ब्रिटिश सेना का कब्जा ।
1757: ब्रिटिश सेना का कलकत्ता पर कब्जा ।
1757: रोस्सबच में युद्ध की शुरुआत ।
1760: वणडेवाश का युद्ध. ब्रिटिश सेना द्वारा फ्रांस की हार ।
1761: पानीपत का युद्ध. अफ़ग़ान सेना द्वारा महाराणा प्रताप की पराजय ।
1786: चार्ल्स कॉर्नवॉलिस को भारत का गवर्नर-जनरल नियुक्त किया गया ।
1795: कुर्डला का युद्ध. महाराणा द्वारा मुगलों की हार ।
1798: इंग्लेंड व हैदराबाद के निजाम के मध्य संधि पर हस्ताक्षर ।
1803: आस्सेए का युद्ध. ब्रिटिश-भारतीय सेना द्वारा मराठा सेना की हार ।
1839: ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा आदान पर कब्जा ।
1846: बॅटल ऑफ अल्लवाल , ब्रिटिश सेना द्वारा पंजाब में सिक्खों की हार ।
1846: सोबराओन का युद्ध: ब्रिटिश सेना द्वारा सिक्खों की हार. यह भारत में प्रथम सिक्ख युद्ध था ।
1853: प्रथम यात्री रेल की भारत में शुरूआात यह ट्रेन बंबई से थाने की मध्य चलाई गयी ।
1866: इलाहाबाद उच्च न्यायालय की स्थापना ।
1892: दादाभाई नोरॉजी को ब्रिटेन की संसद के लिए प्रथम भारतीय सदस्य के रूप मे चुना गया ।
1905: बंगाल विभाजन ।
1914: प्रथम विश्व युद्ध की शुरुआत ।
1925: कम्यूनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया की स्थापना ।
1929: प्रथम नौन-स्टॉप वायु यात्रा इंग्लैंड से भारत के मध्य शुरू ।
1932:  भारतीय वायु सेना की स्थापना ।
1936: उड़ीसा को ब्रिटिश भारत के प्रांत के रूप मे मान्यता ।
1939: नेताजी सुभाष चंद्र बोस द्वारा ऑल इंडिया फॉर्वर्ड ब्लॉक की स्थापना ।
1944: जेससामी, ईस्ट-इंडिया  की जापानी सेना द्वारा हार ।
1947: ब्रिटिश शासन से भारत की आज़ादी ।
1947: लॉर्ड माऊंटबेटन को भारत का अंतिम वायासाराय नियुक्त किया गया ।
1947: भारत पाकिस्तान के मध्य रेडकलिफ्फ रेखा की घोषणा ।
1948: लॉर्ड माऊंटबेटन का भारत के गवर्नर जनरल के पद से इस्तीफ़ा ।
1950: भारत एक गणतंत्र के रूप में स्थापित ।
1950: सिक्किम भारत का संरक्षित राज्य बना ।
1952: राज्य सभा की पहली बैठक ।
1956: दिल्ली को भारतीय संघ का क्षेत्र बनाया गया ।
1960: बंबई राज्य को महाराष्ट्र एवं गुजरात मे विभाजित किया गया ।
1971: ग़रबपुर का युद्ध:  भारतीय सेना द्वारा पाक सेना की हार ।
1974: एटम बम के प्रयोग में भारत विश्व का 6ठा राष्ट्र बना ।
1975: सोवियत संघ की सहायता से भारत ने 1स्ट्रीट सेटिलाइट का प्रक्षेपण किया ।
1980: रोहिणी 1, प्रथम भारतीय सेटिलाइट, का कक्षा में प्रक्षेपण ।
1994: भारतीय सुंदरी सुष्मिता सेन ने  43वाँ मिस यूनिवर्स का खिताब जीता ।
1994: ऐश्वर्या राय ने 44वाँ मिस वर्ल्ड का खिताब भारत के नाम किया ।
2008: भारत ने प्रथम अमानवीय चन्द्र मिशन चंद्रयान -1 का प्रक्षेपण किया ।

Sunday, 26 October 2014

भारतीय नृत्य कला

हड़प्पा सभ्यता में नृत्य करती हुई लड़की की मूर्ति पाई गई है, जिससे साबित होता है कि इस काल में ही नृत्यकला का विकास हो चुका था। भरत मुनि का नाट्य शास्त्र नृत्यकला का सबसे प्रथम व प्रामाणिक ग्रंथ माना जाता है। इसको पंचवेद भी कहा जाता है।
नाट्यशास्त्र के सिद्धांत के अनुसार नृत्य दो तरह का होता है- मार्गी (तांडव) तथा लास्य। तांडव नृत्य भगवान शंकर ने किया था। यह नृत्य अत्यंत पौरुष और शक्ति के साथ किया जाता है। दूसरी ओर लास्य एक कोमल नृत्य है जिसे भगवान कृष्ण गोपियों के साथ किया करते थे।
एक काल में भारत में नृत्य काफी प्रचलित थे। लेकिन 19वीं शताब्दी तक आते-आते इनका पूरी तरह से पराभाव हो गया। किंतु 20वीं शताब्दी में कई लोगों के प्रयास से नृत्यकला को पुनर्जीवन मिला।

भरतनाट्यम
भरत मुनि के नाट्यशास्त्र पर आधारित भरतनाट्यम अत्यंत परंपराबद्ध तथा शैलीनिष्ठ है। इस नृत्य शैली का विकास दक्षिण भारत के तमिलनाडु में हुआ। प्रारंभ में यह नृत्य मंदिरों में देवदासियों द्वारा किया जाता था, तब इसे आट्टम और सदिर करते थे। इसे वर्तमान रूप प्रदान करने का श्रेय तंजौर चतुष्टय अर्थात पौन्नैया,पिल्लै तथा उनके बंधुओं को है। 20वीं शताब्दी में इसे रवीन्द्रनाथ टैगोर, उदयशंकर और मेनका जैसे कलाकारों के संरक्षण में यह नाट्यकला पुनर्जीवित हो गई।
भरतनाट्यम में पैरों को लयबद्ध तरीके से जमीन में पटका जाता है, पैर घुटने से विशेष रूप से झुके होते हैं एवं हाथ, गर्दन और कंधे विशेष प्रकार से गतिमान होते हैं।
रुक्मिणी देवी अरुण्डेल भारत की सबसे पहली प्रख्यात नृत्यांगना हुई हैं। अन्य प्रमुख कलाकारों में यामिनी कृष्णमूर्ति, सोनल मानसिंह, मृणालिनी साराभाई, मालविका सरकार शामिल हैं।



कुचिपुड़ी
आंध्र प्रदेश के कुचेलपुरम नामक ग्राम में इस नृत्य शैली का उद्भव हुआ। यह शास्त्रीय नृत्य भरतमुनि के नाट्यशास्त्र के नियमों का पालन करता है। इस शैली का विकास तीर्थ नारायण तथा सिद्धेन्द्र योगी ने किया। यह मूलत: पुरुषों का नृत्य है, पर इधर कुछ समय से महिलाओं ने भी इसे अपनाया है। इस नृत्य के लिए कर्नाटक संगीत का प्रयोग किया जाता है और इसका प्रदर्शन रात में होता है। कुचिपुड़ी के प्रमुख कलाकारों में वेदांतम सत्यनारायण, वेम्पत्ति चेन्नासत्यम, यामिनी कृष्णमूर्ति, राधा रेड्डी, राजा रेड्डी आदि शामिल हैं।


ओडिसी
भरतमुनि की नृत्य शैली पर आधारित इस शास्त्रीय नृत्य शैली का उद्भव व विकास दूसरी शताब्दी ई.पू. में उड़ीसा के राजा खारवेल के शासनकाल के दौरान हुआ। 12वीं शताब्दी के बाद वैष्णव धर्म से यह काफी प्रभावित हुई और जयदेव द्वारा रचित अष्टपदी इसका एक आवश्यक अंग बन गई।
ओडिसी में सबसे महत्वपूर्ण तत्व च्भंगीज् और च्कर्णज् होते हैं। इसमें विभिन्न शारीरिक भंगिमाओं में शरीर की साम्यावस्था का अत्यन्त महत्व होता है।
आधुनिककला में ओडिसी के पुनरुत्थान का श्रेय केलूचरण महापात्र को है। संयुक्ता पाणिग्राही, सोनल मानसिंह, मिनाती दास, प्रियवंदा मोहंती आदि ओडिसी की प्रसिद्ध नृत्यांगना हैं।

कत्थक
उत्तर भारत का यह शास्त्रीय नृत्य मूलत: भरतमुनि के नाट्यशास्त्र पर आधारित है। इसका उद्भव वैदिक युग से माना जाता है। बाद में मुस्लिम शासकों के दौरान यह नृत्य शैली मंदिरों से निकलकर राजदरबारों में पहुँच गई। जयपुर, बनारस, राजगढ़ तथा लखनऊ इसके मुख्य केेंद्र थे। लखनऊ के  वाजिद अली शाह के काल में यह कला अपने चरमोत्कर्ष पर पहुँच गई।
यह अत्यंत नियमबद्ध एवं शुद्ध शास्त्रीय नृत्य शैली है, जिसमें पूरा ध्यान लय पर दिया जाता है। इस नृत्य में पैरों की थिरकन पर विशेष जोर दिया जाता है। इसके प्रसिद्ध कलाकार हैं- लच्छू महराज, शम्भू महराज, बिरजू महराज, सितारा देवी, गोपीकृष्ण, शोभना नारायण, मालविका सरकार इत्यादि।


कथकली
केरल राज्य में जन्मी यह नृत्य शैली भरतमुनि के नाट्यशास्त्र पर आधारित है। कथकली भी मंदिरों से जुड़ा नृत्य है और इसे मात्र पुरुष ही करते हैं।
कथकली नृत्य में गति अत्यन्त उत्साहपूर्ण और भड़कीली होती है। इसके साथ इसमें शारीरिक भाव-भंगिमाओं का विशेष महत्व होता है। नर्तक अत्यन्त आकर्षक श्रृंगार का प्रयोग करते हैं। कथाओं के पात्र देवता या दानव होते हैं। 20वीं शताब्दी में वल्लाठोल ने इसके पुनरुत्थान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। कथकली के प्रख्यात कलाकारों में गोपीनाथ, रागिनी देवी, उदयशंकर, रुक्मिणी देवी अरुण्डेल, कृष्णा कुट्टी, माधवन आनंद, शिवरमण इत्यादि शामिल हैं।

मणिपुरी
15-16वीं शताब्दी में वैष्णव धर्म के प्रचार-प्रसार की वजह से मणिपुर में इस नृत्य शैली का उद्भव व विकास हुआ। मणिपुरी के विषय मुख्यतया कृष्ण की रासलीला पर आधारित होते हैं। मणिपुरी की सबसे खास बात शरीर की अत्यन्त आकर्षक एवं मृदु गति होती है जो इसे एक विशिष्ट सौंदर्य प्रदान करती है।
1917 में रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा इस नृत्य को शांतिनिकेतन में प्रवेश दिलाने के बाद यह पूरे देश में लोकप्रिय हो गया। इसके प्रमुख कलाकार हैं- गुरु अमली सिंह, आतम्ब सिंह, झावेरी बहनें, थम्बल यामा, रीता देवी, गोपाल सिंह इत्यादि।


मोहिनी अट्टम
यह केरल राज्य में प्रचलित देवदासी परंपरा का नृत्य है। 19वीं सदी में भूतपूर्व त्रावणकोर के महाराजा स्वाति तिरुनाल ने इसे काफी प्रोत्साहन दिया। बाद में कवि वल्लाठोल ने इसका पुनरुत्थान किया। इस नृत्य के प्रमुख कलाकार हैं- कल्याणी अम्मा, भारती शिवाजी, हेमामालिनी इत्यादि।

कृष्णअट्टम
यह नृत्य शैली लगातार आठ रातों तक चलती है और इसमें भगवान कृष्ण के सम्पूर्ण चरित्र का वर्णन किया जाता है। यह केरल में प्रचलित है।

यक्षगान
कर्नाटक में प्रचलित यह मूल रूप से ग्रामीण प्रकृति का नृत्य नाटक है। हिंदू महाकाव्यों से संबंधित इस नृत्य शैली में विदूषक और सूत्रधार मुख्य भूमिका निभाते हैं।

प्राकृतिक संसाधन और भूमि प्रयोग

पृथ्वी हमें प्राकृतिक संसाधन उपलब्ध कराती है जिसे मानव अपने उपयोगी कार्र्यों के लिए प्रयोग करता है। इनमें से कुछ संसाधन को पुनर्नवीनीकृत नहीं किया जा सकता है, उदाहरणस्वरूप- खनिज ईंधन जिनका प्रकृति द्वारा जल्दी से निर्माण करना संभव नहीं है।पृथ्वी की भूपर्पटी से जीवाश्मीय ईंधन के भारी भंडार प्राप्त होते हैं। इनमें कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस और मीथेन क्लेथरेट शामिल हैं। इन भंडारों का उपयोग ऊर्जा व रसायन उत्पादन के लिए किया जाता है। खनिज अयस्क पिंडों का निर्माण भी पृथ्वी की भूपर्पटी में ही होता है।
पृथ्वी का बायोमंडल मानव के लिए उपयोगी कई जैविक उत्पादों का उत्पादन करता है। इनमें भोजन, लकड़ी, फार्मास्युटिकल्स, ऑक्सीजन इत्यादि शामिल हैं। भूमि आधारित पारिस्थिकीय प्रणाली मुख्य रूप से मृदा की ऊपरी परत और ताजा जल पर निर्भर करती है। दूसरी ओर महासागरीय पारिस्थितकीय प्रणाली भूमि से महासागरों में बहकर गये हुए पोषणीय तत्वों पर निर्भर करती है।


विश्व में भूमि प्रयोग
  

खेती योग्य भूमि 13.13 प्रतिशत
स्थाई फसलें 4.71 प्रतिशत
स्थाई चारागाह 26 प्रतिशत
वन 32 प्रतिशत
शहरी क्षेत्र  1.5 प्रतिशत
अन्य  30 प्रतिशत


तापमान 
तापमान ऊष्मा की तीव्रता अर्थात वस्तु की तप्तता की मात्रा का ज्ञान कराता है। ग्लोब को तीन तापमान क्षेत्रों में विभाजित किया गया है-

उष्णकटिबंधीय क्षेत्र (Tropical zone)- यह कर्क रेखा व मकर रेखा के मध्य स्थित होता है। वर्षपर्यंत उच्च तापमान रहता है।

समशीतोष्ण क्षेत्र (Temperate zone)- यह दोनों गोलाद्र्धों में 23श 30Ó और 66श ३०ज् अक्षांशों के मध्य स्थित है।

शीत कटिबंध क्षेत्र (Frigid Zone) - दोनों गोलाद्र्धों में यह ध्रुवों और 66श ३०ज् अक्षांश के मध्य स्थित है। वर्षपर्यंत यहाँ निम्न तापमान रहता है।
पृथ्वी का औसत तापमान सदैव समान रहता है।


वायुदाब
वायुदाब को प्रति इकाई क्षेत्रफल पर पडऩे वाले बल के रूप में मापते हैं। इसका स्पष्टï तात्पर्य है कि किसी दिए गए स्थान तथा समय पर वहाँ की हवा के स्तम्भ का सम्पूर्ण भार। इसकी इकाई 'मिलीबार' कहलाती है। वायुदाब के क्षैतिज वितरण को देखने पर धरातल पर वायुदाब की 4 स्पष्ट पेटियाँ पाई जाती हैं।
भूमध्यरेखीय निम्न वायुदाब की पेटी (Equational Low Pressure Belt) - धरातल पर भूमध्यरेखा के दोनों ओर ५श अक्षांशों के बीच निम्न वायुदाब की पेटी का विस्तार पाया जाता है। शांत वातावरण के कारण इस पेटी को शांत पेटी या डोलड्रम भी कहते हैं।
उपोष्ण कटिबंधीय उच्च वायुदाब की पेटियाँ (The subtropical high pressure)- भूमध्य रेखा से ३०श-३५श अक्षांशों  पर दोनों गोलाद्र्धों में उच्च वायुदाब की पेटियों  की उपस्थित पाई जाती है। उच्च वायुदाब वाली इस पेटी को 'अश्व अक्षांश' (horse latitude) कहते हैं।
उपध्रुवीय निम्न वायुदाब की पेटियाँ (Sub-Polar low pressure belt)- दोनों गोलाद्र्धों में ६०श से ६५श अक्षांशों के बीच निम्न वायुदाब की पेटियाँ पाई जाती हैं।
ध्रुवीय उच्च वायुदाब की पेटियाँ (Polar high)- यह पेटियाँ ध्रुवों पर पाई जाती हैं। इन क्षेत्रों में न्यूनतम तापमान के कारण ध्रुवीय उच्च वायुदाब की पेटियों का निर्माण होता है।


पवन
क्षैतिज रूप में गतिशील होने वाली हवा को ही पवन कहते है। वायुदाब की विषमताओं को संतुलित करने की दिशा में यह प्रकृति का एक स्वभाविक प्रयास है। धरातल पर निम्न प्रकार की पवन पाई जाती हैं-
प्रचलित पवन (Prevailing Wind) - जो पवन वायुदाब के अक्षांशीय अंतर के कारण वर्ष भर एक से दूसरे कटिबंध की ओर प्रवाहित होती रहती हैं, उसे प्रचलित पवन कहते हैं।  व्यापारिक पवन (trade Winds), पछुआ पवन (westerlies) व ध्रुवीय पवन (Polar winds) इत्यादि प्रचलित पवन के उदाहरण हैं|

सामयिक पवन (periodic winds)- मौसम या समय के साथ जिन पवनों की दिशा में परिवर्तन पाया जाता है, उन्हें सामयिक या कालिक पवन कहा जाता है। पवनों के इस वर्ग में मानसून पवनें, स्थल तथा सागर समीर शामिल हैं।
स्थानीय पवन (Local Winds) - स्थानीय पवनों की उत्पत्ति तापमान तथा दाब के स्थानीय अंतर की वजह से होता है। लू स्थानीय पवन का एक बेहतर उदाहरण है।
आद्र्रता वायुमण्डल में विद्यमान अदृश्य जलवाष्प की मात्रा ही आद्र्रता (Humidity) कहलाती है।

निरपेक्ष आद्र्रता (Absolute humidity) - वायु के प्रति इकाई आयतन में विद्यमान जलवाष्प की मात्रा को निरपेक्ष आद्र्रता कहते हैं.
विशिष्टï आद्र्रता (Specific Humidity) - हवा के  प्रति इकाई भार में जलवायु के भार का अनुपात विशिष्टï आद्र्रता कहलाती है।
सापेक्ष आद्र्रता (Relative Humidity) - एक निश्चित तापमान पर निश्चित आयतन वाली वायु की आद्र्रता सामथ्र्य तथा उसमें विद्यमान वास्तविक आद्र्रता के अनुपात को सापेक्ष आद्र्रता कहते हैं।
बादल
वायुमण्डल में काफी ऊँचाई में जलवाष्प के संघनन से बने जलकणों या हिमकणों की विशाल राशि को बादल कहते हैं। मुख्यत: बादल हवा के रूद्धोष्म (Adiabatic) प्रक्रिया द्वारा ठण्डे होने तथा उसके तापमान के ओसांक बिन्दु तक गिरने के परिणामस्वरूप निर्मित होते हैं। ऊँचाई के अनुसार बादल निम्नलिखित प्रकार के होते हैं-
ऊँचे मेघ - धरातल से 6,000 से 12,000 मी.।
मध्यम मेघ - धरातल से 2,000 से 6,000 मी.
निचले मेघ - धरातल से 2,000 मी. तक।

मानव भूगोल
जनसंख्या का तात्पर्य किसी क्षेत्र अथवा सम्पूर्ण विश्व में निवास करने वाले लोगों की संपूर्ण संख्या से होता है। पृथ्वी के कुल क्षेत्रफल का मात्र आठवां हिस्सा ही मानव के रहने योग्य है। संपूर्ण पृथ्वी के तीन-चौथाई हिस्से में महासागर स्थित हैं जबकि थलमंडल का के 14 फीसदी हिस्से में मरुस्थल और 27 फीसदी हिस्से में पर्वत स्थित हैं। इसके अतिरिक्त काफी ऐसा क्षेत्र है जो मानव के निवास योग्य नहीं है। पृथ्वी के सुदूर उत्तरी क्षेत्र में अंतिम मानव बस्ती एलर्ट है जो नुनावुत, कनाडा के इल्लेसमेरे द्वीप पर स्थित है। दूसरी ओर सुदूर दक्षिण में अंटार्कटिका पर अमुंडसेन-स्कॉट पोल स्टेशन है। 1650 के बाद के लगभग 300 वर्र्षों में विश्व जनसंख्या में इतनी तीव्र गति से वृद्धि हुई है जितनी किसी पूववर्ती काल में अनुमानित नहीं थी। दिसंबर 2009 के आंकड़ों के अनुसार विश्व की जनसंख्या 6,803,000,000 थी। एक मोटे अनुमान के अनुसार 2013 और 2050 में विश्व की जनसंख्या क्रमश: 7 अरब और 9.2 अरब हो जाएगी। जनसंख्या वृद्धि मुख्य रूप से विकासशील देश में ही होगी। जनसंख्या घनत्व के लिहाज से भी विश्व जनसंख्या में काफी विविधता है। दुनिया की बहुसंख्यक जनसंख्या एशिया में निवास करती है। एक अनुमान के अनुसार 2020 तक दुनिया की 60 फीसदी जनसंख्या शहरी क्षेत्रों में निवास कर रही होगी।

Friday, 24 October 2014

भारत के प्रमुख ऐतिहासिक शहर व स्थल

अहिछत्र - उ. प्र. के बरेली जिले में स्थिति यह स्थान एक समय पाँचालों की राजधानी थी।

आइहोल- यह स्थान कर्नाटक में स्थित है। इसकी मुख्य विशेषता चालुक्यों द्वारा बनवाए गए पाषाण के मंदिर हैं।

अजंता की गुफाएँ- यह स्थान महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में स्थित है। इसमें 29 बौद्ध गुफाएँ मौजूद हैं। यह गुफाएँ अपनी चित्रकारी के  लिए प्रसिद्ध हैं। इनका काल 2 सदी ई. पू. से 7 शताब्दी ई. तक है।
अमरावती- यह ऐतिहासिक स्थल आधुनिक विजयवाड़ा के निकट स्थित है। सातवाहन वंश के समय में यह स्थान काफी फला-फूला।

अरिकामेडू- चोल काल के दौरान पाँडिचेरी के निकट स्थित समुद्री बंदरगाह।

बादामी या वातापी- कर्नाटक में स्थित यह स्थान चालुक्य मूर्तिकला के  लिए प्रसिद्ध है जो कि गुहा-मंदिरों में पाई जाती है। यह स्थान द्रविड़ वास्तुकला का उत्तम उदाहरण हैै।

चिदाम्बरम- यह स्थान चेन्नई के 150 मील दक्षिण में स्थित है और एक समय यह चोल राज्य की राजधानी थी। यहाँ के मंदिर भारत के प्राचीनतम मंदिरों में से हैं और वे द्रविड़स्थापत्य व वास्तुकला का बखूबी प्रतिनिधित्व करते हैं।
बोध गया- यह स्थान बिहार के  गया जिले में स्थित है। इसी स्थान पर बुद्ध ने ज्ञान प्राप्ति किया था।

एलीफेंटा की गुफा- यह मुंबई से लगभग 6 मील की दूरी पर स्थित है। इसमें 7वीं व 8वीं शताब्दी की पत्थर को काटकर बनाई गई गुफाएँ स्थित हैं।

अयोध्या- यह आधुनिक फैज़ाबाद से कुछ दूरी पर स्थित है। यह कोसल राज्य की राजधानी थी और राम का जन्मस्थान यही है।

एलोरा गुफायें - यह स्थान महाराष्ट्र राज्य के औरंगाबाद जिले के उत्तर-पश्चिम में स्थित है। इसमें पत्थर को काटकर बनाई गईं 34 गुफाएं स्थित हैं।

फतेहपुर सीकरी- यह स्थान आगरा से 23 मील की दूरी पर स्थित है। इसकी स्थापना 1569 में अकबर ने की थी। यहाँ पर 176 फीट ऊँचा बुलंद दरवाजा मौजूद है।

हड़प्पा- पाकिस्तान के पँजाब प्रांत के माँटगोमेरी जिले में स्थित यह स्थल हड़प्पा संस्कृति काल में एक प्रमुख शहर था।

हम्पी - कर्नाटक में स्थित यह स्थान मध्यकालीन युग में विजयनगर साम्राज्य की राजधानी थी।

आगरा- इस शहर की नींव लोदी वंश के बादशाह सिकंदर लोदी ने 1509 में रक्खी थी। बाद में मुगल सम्राटों ने इसे अपनी राजधानी बनाया। शाहजहाँ ने यहीं अपनी पत्नी मुमताज महल की याद में ताजमहल का निर्माण कराया था।

अमृतसर- यहीं पर सिक्खों का पवित्र स्थल स्वर्ण मंदिर स्थित है। इसका निर्माण सिक्खों के चौथे गुरू रामदास ने करवाया था।

अवन्ति- पुराणों में अवन्तिका के नाम से प्रसिद्ध भारत का यह प्राचीन शहर 16 महाजनपदों में शामिल था।

इंद्रप्रस्थ- नई दिल्ली के निकट स्थित यह नगर महाभारत काल में कुरू राज्य की राजधानी थी।

उज्जयिनी- छठी सदी ई. पू. में यह शहर उत्तरी अवन्ति की राजधानी था।

कन्नौज- उत्तर प्रदेश में स्थित यह शहर हर्ष की राजधानी थी।

कन्याकुमारी- पद्मपुराण में वर्णित यह शहर भारत के सुदूर दक्षिण में स्थित है।

कपिलवस्तु- नेपाल के तराई में स्थित इसी जगह में महात्मा बुद्ध का जन्म हुआ था
कांचीपुरम- वर्तमान में कांजीवरम के नाम से विख्यात यह प्राचीन नगर सात पवित्र नगरों में से एक है।

कुशीनगर- उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले में स्थित इसी स्थान पर महात्मा बुद्ध का महापरिनिïर्वाण हुआ था।

खजुराहो- दसवीं से बारहवीं शताब्दी के मध्य चंदेल शासकों द्वारा निर्मित मंदिरों के लिए प्रसिद्ध खजुराहों मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले में स्थित है।

गया- बिहार में स्थित इस नगर की गणना पवित्र नगरियों में की जाती है। यहीं पर बुद्ध को ज्ञान की प्राप्त हुई थी।

जयपुर- 1721 में कछवाहा शासक सवाई जयसिंह ने इस नगर की स्थापना की थी।

झांसी- उत्तर प्रदेश का यह नगर रानी लक्ष्मी बाई की वजह से प्रसिद्ध है।

दौलताबाद- प्राचीनकाल में देवगिरि के नाम से विख्यात यह नगर महाराष्ट्र के औरंगाबाद में स्थित है। मुहम्मद बिन तुगलक ने इसे अपनी राजधानी बनाया था।

पाटलिपुत्र- बिहार स्थित पाटलिपुत्र वर्तमान में पटना के नाम से प्रसिद्ध है। यह मौर्र्यों की राजधानी थी।

पूणे- मराठा सरदार शिवाजी तथा उनके पुत्र शम्भाजी की राजधानी पूणे महाराष्ट्र का एक प्रमुख शहर माना जाता है।

पुरूषपुर- प्रथम शताब्दी ई.पू. में कनिष्क द्वारा स्थापित पुरूषपुर पाकिस्तान के पश्चिमोत्तर सीमा प्रांत में स्थित है। इसे वर्तमान में पेशावर के नाम से जाना जाता है।

प्लासी- प्लासी 1757 में ईस्ट इंडिया कंपनी एवं बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला के बीच हुए युद्ध के लिए प्रसिद्ध है।

प्रयाग- तीर्थराज कहलाने वाला यह नगर गंगा-यमुना के संगम पर बसा है। प्राचीन काल से ही इस स्थली की गणना पवित्र नगरियों में की जाती है। बाद में अकबर ने इसका नाम बदलकर इलाहाबाद कर दिया था।

बीजापुर- युसूफ आदिलशाह द्वारा स्थापित यह नगर कर्नाटक में स्थित है। यहां गोल गुंबज मुहम्मद आदिलशाह का मकबरा है।

भुवनेश्वर- वर्तमान समय में उड़ीसा की राजधानी भुवनेश्वर प्राचीन समय में उत्कल की राजधानी के रूप में प्रसिद्ध था। यहाँ के मंदिर विशेष रूप से प्रसिद्ध हैं।

माउंट आबू- दिलवाड़ा के जैन मंदिर के लिए प्रसिद्ध यह स्थान अरावली पर्वत पर स्थित है।

मथुरा- उत्तर प्रदेश में स्थित यह नगरी भगवान श्रीकृष्ण की जन्म स्थली होने की वजह से प्रसिद्ध है।

मामल्लपुरम- पल्लव नरेश नरसिंह वर्मन द्वारा चेन्नई के पास निर्मित यह नगर वर्तमान में महाबलीपुरम के रुप में विख्यात है। यहां के मंदिर विशेष रूप से प्रसिद्ध हैं।

विजयनगर- इस राज्य की नींव 1336 में तुंगभद्रा नदी के तट पर हरिहर व बुक्का द्वारा रखी गई थी।

श्रवणबेलगोला- कर्नाटक के हसन जिले में स्थित श्रवणबेलगोला जैन धर्म के मुख्य केेंद्र के रूप में प्रसिद्ध है। यहां जैन तीर्र्थंकर बाहुबली की विशाल मूर्ति है।

सारनाथ- यह स्थान उत्तर प्रदेश के वाराणसी के पास स्थित है जहां बुद्ध ने अपना पहला उपदेश दिया था।

कोणार्क- यह स्थान सूर्य मंदिर के लिए विख्यात है।

रामेश्वरम- तमिलनाडु में स्थित यह स्थान रामनाथ स्वामी मंदिर के लिए प्रसिद्ध है।

मदुरै- पाण्ड्य राजाओं की राजधानी एवं तमिलनाडु में स्थित यह नगर मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है।

भीतरगांव- उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले में स्थित यह स्थल गुप्तकालीन ईंटों से बने मंदिर के लिए प्रसिद्ध है।

Thursday, 23 October 2014

भारत के राष्ट्रीय प्रतीक

राष्ट्रीय ध्वज
भारत के राष्ट्रीय ध्वज में तीन रंग हैं। राष्टरीय ध्वज  में समान अनुपात में तीन आड़ी पट्टियाँ हैं, गहरा केसरिया रंग ऊपर, सफेद बीच में और गहरा हरा रंग सबसे नीचे है। ध्वज की लम्बाई-चौड़ाई का अनुपात 3:2 है। सफेद पट्टी के बीच में नीले रंग का एक चक्र है। इसका प्रारूप सारनाथ में अशोक सिंह स्तम्भ पर बने चक्र से लिया गया है। इसका व्यास लगभग सफेद पट्टी की चौड़ाई जितना है और इसमें चौबीस तीलियाँ हैं। भारत की संविधान सभा ने राष्ट्रीय-ध्वज का प्रारूप 22 जुलाई 1947 को अपनाया।
राष्ट्रीय पशु
भारत का राष्ट्रीय पशु बाघ है। इसकी आठ प्रजातियों में से भारत में पाई जाने वाली प्रजाति को रायल बंगाल टाइगर के नाम से जाना जाता है। उत्तर पश्चिमी भारत को छोड़कर बाकी सारे देश में यह प्रजाति पाई जाती है। देश के बाघों की घटती संख्या जो 1972 में घटकर 1827 तक आ गयी थी, को थामने के लिए अप्रैल 1973 में बाघ परियोजना नाम से एक वृहद संरक्षण कार्यक्रम शुरू किया गया। बाघ परियोजना के अन्तर्गत देश में अब तक 27 बाघ अभयारण्य स्थापित किए गए हैं जिनका क्षेत्रफल 33,875 वर्ग किलोमीटर है।

राष्ट्रीय पक्षी
भारत का राष्ट्रीय पक्षी मयूर  है। हंस के  आकार  के  इस  रंग-बिरंगे पक्षी की गर्दन लंबी, आँख के नीचे एक सफेद निशान और सिर पर पंखे के आकार की कलगी लगी होती है। नर मयूर,मादा मयूर की अपेक्षा अधिक सुंदर होता है। मयूर भारतीय उप-महाद्वीप में सिंधु नदी के दक्षिण और पूर्व से लेकर, जम्मू और कश्मीर, असम के पूर्व मिजोरम के दक्षिण तक पूरे भारतीय प्रायद्वीप में व्यापक रूप से पाया जाता है। मयूर को लोगों का पूरा संरक्षण मिलता है। इसे धार्मिक या भावात्मक आधार पर कभी भी परेशान नहीं किया जाता है। भारतीय वन्य प्राणी (सुरक्षा) अधिनियम, 1972 के  अंतर्गत  इसे  पूर्ण  संरक्षण प्राप्त है।

राष्ट्रीय चिन्ह
भारत का राष्ट्रीय चिन्ह सारनाथ स्थित अशोक सिंह स्तम्भ की अनुकृति है जो सारनाथ के संग्रहालय में सुरक्षित है। मूल स्तम्भ में शीर्ष पर चार सिंह हैं जो एक-दूसरे की ओर पीठ किए हुए हैं। इनके नीचे घंटे के आकार के पद्म के  ऊपर एक चित्रवल्लरी में एक हाथी, चौकड़ी भरता हुआ एक घोड़ा, एक साँड़ तथा एक सिंह की उभरी हुई मूर्तियाँ हैं जिनके बीच-बीच में चक्र बने हुए हैं। एक ही पत्थर को काटकर बनाए गए इस सिंह स्तम्भ के ऊपर 'धर्मचक्र' रखा था।
भारत सरकार ने यह चिन्ह 26 जनवरी 1950 को अपनाया। इसमें केवल तीन सिंह दिखाई पड़ते हैं, चौथा दिखाई नहीं देता। पट्टी के मध्य में उभरी हुई नक्काशी में चक्र है, जिसके दाईं ओर एक साँड और बाईं ओर एक घोड़ा है। आधार का पद्म छोड़ दिया गया है। दाएं तथा बाएं छोरों पर अन्य चक्रों के किनारे हैं। फलक के नीचे मुंडकोपनिषद का सूत्र 'सत्यमेव जयते' देवनागरी लिपि में अंकित है, जिसका अर्थ है- 'सत्य की ही विजय होती है'।

राष्ट्रगान
रवीन्द्रनाथ ठाकुर द्वारा रचित और संगीतबद्ध 'जन-गण-मन' को संविधान सभा ने भारत के राष्टï्रगान के रूप में 24 जनवरी 1950 को अपनाया था। यह सर्वप्रथम 27 दिसम्बर 1911 को भारतीय राष्टरीय काँग्रेसके कलकत्ता अधिवेशन में गाया गया था। पूरे गीत में पाँच पद हैं। प्रथम पद, राष्ट्रगान का पूरा पाठ है, जो इस प्रकार है :

जन-गण-मन अधिनायक,
जय हे भारत-भाग्य विधाता
पंजाब-सिंधु-गुजरात-मराठा-
द्राविड़ उत्कल बंग
विंध्य-हिमाचल-यमुना-गंगा
उच्छल-जलधि तरंग
तब शुभ नामे जागे,
तब शुभ आशिष माँगे,
गाहे तब जय-गाथा
जन-गण-मंगलदायक जय हे,
भारत-भाग्य विधाता
जय हे, जय हे, जय हे,
जय जय जय जय हे।

राष्ट्रगान के गायन की अवधि लगभग 52 सेकेण्ड है। कुछ अवसरों पर राष्ट्रगान को संक्षिप्त रूप से गाया जाता है जिसमें इसकी प्रथम और अंतिम पंक्तियाँ (गाने का समय लगभग 20 सेकेण्ड) होती हैं।

राष्ट्रगीत
बंकिमचंद्र चटर्जी का लिखा 'वन्दे मातरम्' गीत स्वतंत्रता संग्राम में जन-जन का प्रेरणा स्रोत था। यह गीत प्रथम बार 1896 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन में गाया गया था। इसका प्रथम पद इस प्रकार है :

वन्दे मातरम्
सुजलाम्, सुफलाम्,
मलयज-शीतलाम्,
शस्यश्यामलाम्, मातरम् !
शुभ्रज्योत्सना,
पुलकितयामिनीम्
फुल्लकुसुमित द्रुमदल शोभिनीम्
सुहासिनीम् सुमधुर भाषिणीम्
सुखदाम्, वरदाम्, मातरम् !


राष्ट्रभाषा
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 343 के अनुसार संघ गणराज्य भारत की राजभाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी तय की गई है। इसके अतिरिक्त संविधान द्वारा कुल 18 भाषाएँ शासकीय घोषित की गयी हैं।
भारत की राष्ट्रभाषा हिन्दी है। विश्व में हिन्दी तीसरी सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा (45.7 करोड़ व्यक्ति) है। 

राष्ट्रीय पंचाँग (कैलेण्डर)
ग्रिगेरियन कैलेण्डर के साथ-साथ देशभर के लिए शक संवत् पर आधारित एकरूप राष्ट्रीय पंचाँग स्वीकार किया गया है, जिसका पहला महीना चैत्र है और सामान्य वर्ष 365 दिन का होता है। इसे 22 मार्च 1957 को अपनाया गया।
राष्ट्रीय पंचांग का आधार हिन्दी महीने होते हैं, महीने के दिनों की गणना तिथियों के अनुसार होती है। इनमें घट-बढ़  होने के कारण ही देश में मनाये जाने वाले त्यौहार भी आगे-पीछे होते रहते हैं।

Wednesday, 22 October 2014

Happy Dipawali

We meditate on the glory of the creator,
Who has created the Universe,
Who is worthy of Worship,
Who is the embodiment of Knowledge & Light,
Who is a remover of all Sin and Ignorance.
May he enlighten our Intellect.
Happy Deepavali 2014.
We Chiragan NGO & Oknext Group wishes to all of you a vary vary Happy Deepavali.

Wednesday, 1 October 2014

कर्मचारी चयन आयोग (एसएससी) ने एसएससी संयुक्त माध्यमिक स्तरीय परीक्षा 2014 करवाने की घोषणा की है.

कर्मचारी चयन आयोग (एसएससी) ने एसएससी संयुक्त माध्यमिक स्तरीय परीक्षा 2014 करवाने की घोषणा की है. उपरोक्त पीक्षा का आयोजन डाटा इंट्री ऑपरेटर और लोअर डिवीजन क्लर्क के पदों को लिए विभिन्न विभागों में किया जाना है.
विदित हो कि उपरोक्त परीक्षा का आयोजन 02 नवंबर 2014 को किया जाना है. इ, परीक्षा काआयोजन देश भर के परीक्षा केद्रों पर किया जाना है.
परीक्षा प्रश्न पत्र में सामान्य योग्यता, अंग्रेजी भाषा, क्वांटिटिव एप्टीट्यूड और सामान्य अध्यन के लिए किया जाना है.
नीचे परीक्षा की तैयारी कर रहे अभ्यर्थियों के लिए कुछ टिप्स दिए जा रहे हैं-
  • परीक्षा केंद्र पर समय से पहले पहुँचेपरीक्षा देने जा रह सभी अभ्यर्थियों को परीक्षा केंद्र पर निर्धारित समय से 30 मिनट पहले पहुँचना चाहिए.यदि संभव हो तो अभ्यर्थियों को परीक्षा केंद्र का एक दिन पहले निरीक्षण कर लेना चाहिए, इससे उन्हें परीक्षा केंद्र पर पहुँचने के समय का एक अनुमान हो जाएगा.
  • आवश्यक कागजात साथ रखें- hdjप्रत्येक अभ्यर्थी के लिए परीक्षा से एक दिन पहले बैग पैक करना बहुत आवश्यक है. प्रवेश पत्र और कोई एक आईडी प्रूफ जैसे वोटर आईडी, पासपोर्ट या पैन कार्ड रख लेना चाहिए. एक वैध आईडी प्रूफ होने से आप सभी संभावित समस्यायों से बच सकते हैं.
  • ज्ञात प्रश्नों को पहले हल करना: परीक्षा भवन में पहुँचने के बाद hdप्रश्नों को हल करने की समय सीमा देख लेनी चाहिए.आसान और ज्ञात प्रश्नों को सर्वप्रथम हल करना चाहिए. यह आपका समय बचाने में मदद करेगा. आसान प्रश्नों को हल करने के बाद मुश्किल और अधिक समय लेने वाले प्रश्नों को हल करना चाहिए.
  • उत्तरमाला जाँचना: सभी अभ्यर्थियों को प्रश्न पत्र हल करने के बाद 15 मिनट तक उत्तरमाला को ध्यानपूर्वक जाँचना चाहिए और फिर जमा करना चाहिए इससे गलत दिए प्रश्नों के उत्तरों को बदला जा सकता है.