जापानी एनसेफेलिटिस ( दिमागी बुखार )
चावलों के खेतों में पनपने वाले मच्छरों से (प्रमुख रूप से क्युलेक्स ट्रायटेनियरहिंचस समूह)। यह मच्छर जापानी एनसिफेलिटिस वायरस से संक्रमित हो जाते हैं (सेंट लुई एलसिफेलिटिस वायरस एंटीजनीक्ली से संबंधित एक फ्लेविवायरस)। जापानी एनसिफेलिटिस वायरस से संक्रमित मच्छरों के काटने से होता है। जापानी एनसेफेलाइटिस वायरस से संक्रांत पालतू सूअर और जंगली पक्षियों के काटने पर मच्छर संक्रांत हो जाते है। इसके बाद संक्रांत मच्छर पोषण के दौरान जापानी एनसेफेलिटिस वायरस काटने पर मानव और जानवरों में जाते हैं। जापानी एनसेफेलिटिस वायरस पालतू सूअर और जंगली पक्षियों के रक्त प्रणाली में परिवर्धित होते हैं।
जापानी एनसेफेलिटिस के वायरस का संक्रमण एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में नहीं होता है। उदारहण के लिए आपको यह वायरस किसी उस व्यक्ति को छूने या चूमने से नहीं आ सकता जिसे यह रोग है या किसी स्वास्थ्य सेवा कर्मचारी से जिसने किसी इस प्रकार के रोगी का उपचार किया हो।केवल पालतू सूअर और जंगली पक्षी ही जापानी एनसेफेलिटिस वायरस फैला सकते हैं।
लक्षण
सिर दर्द के साथ बुखार को छोड़कर हल्के संक्रमण में और कोई प्रत्यक्ष लक्षण नहीं होता है। गंभीर प्रकार के संक्रमण में सिरदर्द, तेज बुखार, गर्दन में अकड़न, घबराहट, कोमा में चले जाना, कंपकंपीं, कभी-कभी ऐंठन ( विशेष रूप से छोटे बच्चों में) और मस्तिष्क निष्क्रिय(बहुत ही कम मामले में), पक्षाघात होता है।जापानी एनसेफेलाइटिस की संचयी कालवधि सामान्यतः 5 से 15 दिन होती है। इसकीमृत्युदर 0.3 से 60 प्रतिशत तक है।
उपचार
इसकी कोई विशेष चिकित्सा नहीं है. गहन सहायक चिकित्सा की जाती है। यह रोग अलग अलग देशों में अलग अलग समय पर होता है. क्षेत्र विशेष के हिसाब से ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले, वहां प्रतिनियुक्त सक्रिय ड्यूटी वाले सैनिक और ग्रामीण क्षेत्रों में घूमने वालों को यह बीमारी अधिक होती है। शहरी क्षेत्रों में जापानी एनसेफेलाइटिस सामान्यतः नहीं होता है।जापानी एनसेफेलाइटिस के लिए भारत में निष्क्रिय मूसक मेधा व्युत्पन्न (इनएक्टीवेटेड माउस ब्रेन-डिराइव्ड जे ई) जापानी एनसेफेलाइटिस टीका उपलब्ध है।
www.kinjalkumar.blogspot.com में छपा Knjal Kumar जी का लेख........! साभार
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