Monday, 28 November 2011
Saturday, 26 November 2011
Art Competition at Adarsh saraswati gyan mandir, Tulapur katka, Allahabad, UP.
We are organized A student motivation & Child Mental Development Art Competition on 23 November 2011 at Adarsh saraswati gyan mandir, Tulapur katka, Allahabad, UP.
Wednesday, 23 November 2011
Eye Donation..... And We?
लड़का चिल्लाया "पिताजी, वो देखो, पेड़ पीछे जा रहा हैं". उसके पिता ने स्नेह से उसके सर पर हाँथ फिराया. वो लड़का फिर चिल्लाया "पिताजी वो देखो, आसमान में बादल भी ट्रेन के साथ साथ चल रहे हैं". पिता की आँखों से आंसू निकल गए. पास बैठा आदमी ये... सब देख रहा था. उसने कहा इतना बड़ा होने के बाद भी आपका लड़का बच्चो जैसी हरकते कर रहा हैं. आप इसको किसी अच्छे डॉक्टर से क्यों नहीं दिखाते?? पिता ने कहा की वो लोग डॉक्टर के पास से ही आ रहे हैं. मेरा बेटा जनम से अँधा था, आज ही उसको नयी आँखे मिली हैं. नेत्रदान करे. किसी की जिंदगी में रौशनी भरे. PLEASE share this if u support eye donation.... By Chiragan
मशरूम ग्रामीण युवाओं का अपना रोजगार
मशरूम का उत्पादन ग्रामीण युवाओं के लिए एक अच्छा व्यवसाय साबित हो रहा है। मशरूम सेहत का रखवाला है, इसलिए मांग बढ़ रही है, पर आपूर्ति उतनी नहीं हो रही। ऐसे में यह व्यवसाय फायदे का सौदा है।
स्वरोजगार आज आजीविका कमाने का प्रमुख साधन बन चुका है। केंद्र सरकार हो या राज्य सरकारें, लगातार स्वरोजगार को बढ़ावा देने वाली योजनाओं पर बल दे रही हैं। इन्हीं स्वरोजगार योजनाओं में मशरूम उत्पादन भी एक है। इसे गांवों में छतरी व कुकुरमुत्ता आदि नामों से जाना जाता है। इसका उत्पादन ग्रामीण युवाओं के लिए एक अच्छा व्यवसाय साबित हो रहा है। डॉक्टर और डाइटीशियन मोटापा, हार्ट-डिजीज और डायबिटीज के रोगियों को इसका सेवन करने की सलाह देते हैं। इसका चलन निरंतर बढ़ता जा रहा है। भारत में मशरूम की मांग में इजाफा हो रहा है। इसे देखते हुए मशरूम के बड़े पैमाने पर उत्पादन की आवश्यकता है। वैसे तो मशरूम के उत्पादन में लगातार इजाफा हो रहा है, लेकिन जितनी मांग है, उसे देखते हुए वह बहुत कम है। हालांकि अब गांव ही नहीं, शहरों में भी शिक्षित युवा मशरूम उत्पादन को करियर के रूप में अपनाने लगे हैं। मशरूम की खेती को छोटी जगह और कम लागत में शुरू किया जा सकता है और लागत की तुलना में मुनाफा कई गुना ज्यादा होता है। बेरोजगार युवकों के लिए स्वरोजगार के नजरिए से भी यह सेक्टर फायदेमंद साबित हो सकता है। क्या है मशरूम
मशरूम एक पौष्टिक आहार है। इसमें एमीनो एसिड, खनिज, लवण, विटामिन जैसे पौष्टिक तत्व होते हैं। मशरूम हार्ट और डायबिटीज के मरीजों के लिए एक दवा की तरह काम करता है। मशरूम में फॉलिक एसिड और लावणिक तत्व पाए जाते हैं, जो खून में रेड सेल्स बनाते हैं। पहले मशरूम का सेवन विश्व के चुनिन्दा देशों तक सीमित था, पर अब आम आदमी की रसोई में भी उसने अपनी जगह बना ली है। भारत में उगने वाले मशरूम की दो सर्वाधिक प्रसिद्ध प्रजातियां वाइट बटन मशरूम और ऑयस्टर मशरूम है। हमारे देश में होने वाले वाइट बटन मशरूम का ज्यादातर उत्पादन मौसमी है। इसकी खेती परम्परागत तरीके से की जाती है। कहां पैदा हो सकता है मशरूम
मशरूम उत्पादन में मौसम का खास महत्व है, इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। मशरूम की एक वैराइटी वॉल वैरियल्ला के लिए तापमान 30 से 40 डिग्री सेल्सियस व नमी 80 से ज्यादा होनी चाहिए। इसका उत्पादन अप्रैल से अक्तूबर के बीच किया जाता है। ऑयस्टर मशरूम के लिए तापमान 20 से 30 डिग्री सेल्सियस तथा नमी 80 फीसदी से अधिक होनी चाहिए। इसके उत्पादन के लिए सितम्बर-अक्तूबर का महीना बेहतर माना जाता है। टेम्परेंट मशरूम के लिए 20 से 30 डिग्री सेल्सियस तापमान व 70 से 90 फीसदी नमी जरूरी है। इसका उत्पादन अक्तूबर से फरवरी के बीच ठीक रहता है। कितने दिन में तैयार हो जाता है मशरूम
मशरूम दो से तीन महीनों में कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं। मशरूम रेफ्रिजेरेटर में 3 से 6 दिनों तक ताजा बना रहता है। सामान्यत: एक बार में दो से तीन बड़ी पैदावार ली जा सकती हैं। कमाल का मशरूम
मशरूम से तरह-तरह के व्यंजन तैयार किए जा सकते हैं। मशरूम के प्रोडक्ट बना कर उनको बेचना एक अच्छा व्यवसाय हो सकता है। मशरूम पाउडर, मशरूम पापड़ और मशरूम का अचार तैयार करने का काम कुटीर उद्योग स्तर पर किया जा सकता है। मशरूम सैंडविच, मशरूम चावल, मशरूम सूप और मशरूम करी जैसे आइटम बाजार में पहले से ही काफी पॉपुलर हैं। भारतीय बागबानी अनुसंधान संस्थान बेंगलुरू ने नारंगी रंग का खूबसूरत मशरूम पैदा करने की तकनीक विकसित की है, जो पुष्प प्रेमियों के लिए आकर्षण का केंद्र है। फार्मास्युटिकल कंपनियों में भी मशरूम की मांग की जाने लगी है। खाने योग्य मशरूम की करीब दो हजार किस्मों में से 280 भारत में पैदा होती हैं। गुच्छी किस्म का मशरूम भारत में सबसे ज्यादा पैदा किया जाता है। घरेलू उपभोग की बजाय इसका एक बड़ा हिस्सा विदेशों में निर्यात किया जाता है। फैक्ट फाइल शैक्षिक योग्यता
आमतौर पर ऐसे प्रशिक्षण कार्यक्रमों में प्रवेश के लिए शैक्षिक ज्ञान और आयु सीमा संबंधी कोई बाध्यता नहीं होती, लेकिन मशरूम की खेती बड़े वैज्ञानिक तरीके से की जाती है, इसलिए तकनीकी पहलुओं को समझने के लिए अगर आप आठवीं या दसवीं पास हैं तो बेहतर होगा। पाठय़क्रम का स्वरूप
मशरूम उत्पादन में रुचि लेने वाले उम्मीदवारों के लिए देशभर के विभिन्न कृषि विश्वविद्यालयों व कृषि अनुसंधान केंद्रों में एक से दो हफ्ते और मासिक अवधि के कोर्स संचालित किए जाते हैं। इन पाठय़क्रमों का उद्देश्य मशरूम उत्पादन की तकनीक व बीजों की अच्छी नस्ल से रू-ब-रू कराना है। मशरूम का उत्पादन शुरू करने से पहले तकनीकी जानकारी हासिल करना बहुत जरूरी है। तकनीकी हुनर से ही अच्छा उत्पादन किया जा सकता है। मशरूम के लिए मौसम का विशेष ध्यान रखना पड़ता है, क्योंकि इसके उत्पादन में उचित तापमान और मौसम का खास महत्व होता है। सरकारी सहायता
मशरूम उत्पादन स्वरोजगार के लिहाज से अच्छा माना जा रहा है। यह काम कम पूंजी और छोटी जगह पर भी हो सकता है। सरकार कृषि से संबंधित इस क्षेत्र को प्रोत्साहित करने के लिए अनेक योजनाएं चला रही है। मशरूम उत्पादन को स्वरोजगार के रूप में अपनाने वाले उम्मीदवारों को भारत सरकार के कृषि मंत्रालय द्वारा पांच लाख रुपए तक की आर्थिक सहायता की व्यवस्था की जाती है। इसके अलावा एससी/एसटी उम्मीदवारों को सरकारी ऋण में राहत की भी व्यवस्था है। संस्थान
जीबी पंत युनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर एंड टेक्नोलॉजी, पंत नगर, उत्तराखंड
वेबसाइट: www.gbpuat.ac.in पादप रोग संभाग, भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान पूसा, नई दिल्ली
वेबसाइट: www.iari.res.in आणंद एग्रीकल्चर युनिवर्सिटी, आणंद, गुजरात
वेबसाइट: www.aau.in राजेन्द्र कृषि विश्वविद्यालय पूसा, समस्तीपुर, बिहार,
वेबसाइट: www.pusavarsity.org.in राष्ट्रीय खुंब अनुसंधान केंद्र, चम्बाघाट, सोलन, हिमाचल प्रदेश हिसार कृषि अनुसंधान, हिसार, हरियाणा इलाहाबाद एग्रीकल्चर इंस्टीटय़ूट, इलाहाबाद, यूपी कमाई की संभावनाएं
सामान्य तकनीक से मशरूम का उत्पादन करने वालों की तुलना में आधुनिक एवं ट्रेंड लोग कई गुना अधिक मशरूम का उत्पादन कर लेते हैं। हर हफ्ते कम से कम पांच से दस हजार रुपये तक कमा लेते हैं। उत्पादन की अधिकता सीधे-सीधे आय को कई गुना तक बढ़ा देती है। देश में मशरूम की बढ़ती डिमांड को तभी पूरा किया जा सकता है, जब इसकी पैदावार में तीव्र गति से इजाफा किया जाए।
The article is downloaded from google web.... With heartily, thankfully Regards.... If any One have problem using with this article, so please call or mail us with your detail, we unpublished or delete this Article.
स्वरोजगार आज आजीविका कमाने का प्रमुख साधन बन चुका है। केंद्र सरकार हो या राज्य सरकारें, लगातार स्वरोजगार को बढ़ावा देने वाली योजनाओं पर बल दे रही हैं। इन्हीं स्वरोजगार योजनाओं में मशरूम उत्पादन भी एक है। इसे गांवों में छतरी व कुकुरमुत्ता आदि नामों से जाना जाता है। इसका उत्पादन ग्रामीण युवाओं के लिए एक अच्छा व्यवसाय साबित हो रहा है। डॉक्टर और डाइटीशियन मोटापा, हार्ट-डिजीज और डायबिटीज के रोगियों को इसका सेवन करने की सलाह देते हैं। इसका चलन निरंतर बढ़ता जा रहा है। भारत में मशरूम की मांग में इजाफा हो रहा है। इसे देखते हुए मशरूम के बड़े पैमाने पर उत्पादन की आवश्यकता है। वैसे तो मशरूम के उत्पादन में लगातार इजाफा हो रहा है, लेकिन जितनी मांग है, उसे देखते हुए वह बहुत कम है। हालांकि अब गांव ही नहीं, शहरों में भी शिक्षित युवा मशरूम उत्पादन को करियर के रूप में अपनाने लगे हैं। मशरूम की खेती को छोटी जगह और कम लागत में शुरू किया जा सकता है और लागत की तुलना में मुनाफा कई गुना ज्यादा होता है। बेरोजगार युवकों के लिए स्वरोजगार के नजरिए से भी यह सेक्टर फायदेमंद साबित हो सकता है। क्या है मशरूम
मशरूम एक पौष्टिक आहार है। इसमें एमीनो एसिड, खनिज, लवण, विटामिन जैसे पौष्टिक तत्व होते हैं। मशरूम हार्ट और डायबिटीज के मरीजों के लिए एक दवा की तरह काम करता है। मशरूम में फॉलिक एसिड और लावणिक तत्व पाए जाते हैं, जो खून में रेड सेल्स बनाते हैं। पहले मशरूम का सेवन विश्व के चुनिन्दा देशों तक सीमित था, पर अब आम आदमी की रसोई में भी उसने अपनी जगह बना ली है। भारत में उगने वाले मशरूम की दो सर्वाधिक प्रसिद्ध प्रजातियां वाइट बटन मशरूम और ऑयस्टर मशरूम है। हमारे देश में होने वाले वाइट बटन मशरूम का ज्यादातर उत्पादन मौसमी है। इसकी खेती परम्परागत तरीके से की जाती है। कहां पैदा हो सकता है मशरूम
मशरूम उत्पादन में मौसम का खास महत्व है, इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। मशरूम की एक वैराइटी वॉल वैरियल्ला के लिए तापमान 30 से 40 डिग्री सेल्सियस व नमी 80 से ज्यादा होनी चाहिए। इसका उत्पादन अप्रैल से अक्तूबर के बीच किया जाता है। ऑयस्टर मशरूम के लिए तापमान 20 से 30 डिग्री सेल्सियस तथा नमी 80 फीसदी से अधिक होनी चाहिए। इसके उत्पादन के लिए सितम्बर-अक्तूबर का महीना बेहतर माना जाता है। टेम्परेंट मशरूम के लिए 20 से 30 डिग्री सेल्सियस तापमान व 70 से 90 फीसदी नमी जरूरी है। इसका उत्पादन अक्तूबर से फरवरी के बीच ठीक रहता है। कितने दिन में तैयार हो जाता है मशरूम
मशरूम दो से तीन महीनों में कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं। मशरूम रेफ्रिजेरेटर में 3 से 6 दिनों तक ताजा बना रहता है। सामान्यत: एक बार में दो से तीन बड़ी पैदावार ली जा सकती हैं। कमाल का मशरूम
मशरूम से तरह-तरह के व्यंजन तैयार किए जा सकते हैं। मशरूम के प्रोडक्ट बना कर उनको बेचना एक अच्छा व्यवसाय हो सकता है। मशरूम पाउडर, मशरूम पापड़ और मशरूम का अचार तैयार करने का काम कुटीर उद्योग स्तर पर किया जा सकता है। मशरूम सैंडविच, मशरूम चावल, मशरूम सूप और मशरूम करी जैसे आइटम बाजार में पहले से ही काफी पॉपुलर हैं। भारतीय बागबानी अनुसंधान संस्थान बेंगलुरू ने नारंगी रंग का खूबसूरत मशरूम पैदा करने की तकनीक विकसित की है, जो पुष्प प्रेमियों के लिए आकर्षण का केंद्र है। फार्मास्युटिकल कंपनियों में भी मशरूम की मांग की जाने लगी है। खाने योग्य मशरूम की करीब दो हजार किस्मों में से 280 भारत में पैदा होती हैं। गुच्छी किस्म का मशरूम भारत में सबसे ज्यादा पैदा किया जाता है। घरेलू उपभोग की बजाय इसका एक बड़ा हिस्सा विदेशों में निर्यात किया जाता है। फैक्ट फाइल शैक्षिक योग्यता
आमतौर पर ऐसे प्रशिक्षण कार्यक्रमों में प्रवेश के लिए शैक्षिक ज्ञान और आयु सीमा संबंधी कोई बाध्यता नहीं होती, लेकिन मशरूम की खेती बड़े वैज्ञानिक तरीके से की जाती है, इसलिए तकनीकी पहलुओं को समझने के लिए अगर आप आठवीं या दसवीं पास हैं तो बेहतर होगा। पाठय़क्रम का स्वरूप
मशरूम उत्पादन में रुचि लेने वाले उम्मीदवारों के लिए देशभर के विभिन्न कृषि विश्वविद्यालयों व कृषि अनुसंधान केंद्रों में एक से दो हफ्ते और मासिक अवधि के कोर्स संचालित किए जाते हैं। इन पाठय़क्रमों का उद्देश्य मशरूम उत्पादन की तकनीक व बीजों की अच्छी नस्ल से रू-ब-रू कराना है। मशरूम का उत्पादन शुरू करने से पहले तकनीकी जानकारी हासिल करना बहुत जरूरी है। तकनीकी हुनर से ही अच्छा उत्पादन किया जा सकता है। मशरूम के लिए मौसम का विशेष ध्यान रखना पड़ता है, क्योंकि इसके उत्पादन में उचित तापमान और मौसम का खास महत्व होता है। सरकारी सहायता
मशरूम उत्पादन स्वरोजगार के लिहाज से अच्छा माना जा रहा है। यह काम कम पूंजी और छोटी जगह पर भी हो सकता है। सरकार कृषि से संबंधित इस क्षेत्र को प्रोत्साहित करने के लिए अनेक योजनाएं चला रही है। मशरूम उत्पादन को स्वरोजगार के रूप में अपनाने वाले उम्मीदवारों को भारत सरकार के कृषि मंत्रालय द्वारा पांच लाख रुपए तक की आर्थिक सहायता की व्यवस्था की जाती है। इसके अलावा एससी/एसटी उम्मीदवारों को सरकारी ऋण में राहत की भी व्यवस्था है। संस्थान
जीबी पंत युनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर एंड टेक्नोलॉजी, पंत नगर, उत्तराखंड
वेबसाइट: www.gbpuat.ac.in पादप रोग संभाग, भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान पूसा, नई दिल्ली
वेबसाइट: www.iari.res.in आणंद एग्रीकल्चर युनिवर्सिटी, आणंद, गुजरात
वेबसाइट: www.aau.in राजेन्द्र कृषि विश्वविद्यालय पूसा, समस्तीपुर, बिहार,
वेबसाइट: www.pusavarsity.org.in राष्ट्रीय खुंब अनुसंधान केंद्र, चम्बाघाट, सोलन, हिमाचल प्रदेश हिसार कृषि अनुसंधान, हिसार, हरियाणा इलाहाबाद एग्रीकल्चर इंस्टीटय़ूट, इलाहाबाद, यूपी कमाई की संभावनाएं
सामान्य तकनीक से मशरूम का उत्पादन करने वालों की तुलना में आधुनिक एवं ट्रेंड लोग कई गुना अधिक मशरूम का उत्पादन कर लेते हैं। हर हफ्ते कम से कम पांच से दस हजार रुपये तक कमा लेते हैं। उत्पादन की अधिकता सीधे-सीधे आय को कई गुना तक बढ़ा देती है। देश में मशरूम की बढ़ती डिमांड को तभी पूरा किया जा सकता है, जब इसकी पैदावार में तीव्र गति से इजाफा किया जाए।
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बालश्रम :जिन नाजुक अंगुलियों को कलम थामनी होती है, वे बर्तन साफ करने या दीगर किस्म के श्रम में अपनी व्यथा कथा लिख रहे होते हैं।
कहने को बाल मजदूरी करवाना कानून के खिलाफ है पर प्रदेश में कई घरों, ढाबों व अन्य प्रतिष्ठानों में यह बुराई अब भी जारी है, यह खुलासा करती है बिहार के एक बालक की मार्मिक दास्तान जिसे अब अंतत: कुल्लू में सहारा मिला है। संभवत: ऐसी ही घटनाएं सामने आने पर केंद्र नेहिमाचल सरकार को बाल मजदूरी के खिलाफ सख्त रवैया अपनाने के निर्देश दिए हैं। यह उदास करने वाला तथ्य है कि जिन नाजुक अंगुलियों को कलम थामनी होती है, वे बर्तन साफ करने या दीगर किस्म के श्रम में अपनी व्यथा कथा लिख रहे होते हैं। यह दुखद है कि कानूनन जुर्म होने के बावजूद बहुत से घरों की साजसज्जा और सफाई में छोटू नामक बच्चों के हाथ झलकते हैं। उस आजादी को क्या कहें जहां दो वक्त की रोटी व तन ढकने के लिए कपड़े की जरूरत बच्चों से खुलकर रोने का अधिकार भी छीन ले। बच्चे कारखानों का कच्चा माल न बनें, यही सोच कर केंद्र ने प्रदेश सरकार को कड़ा रुख अपनाते हुए बाल मजदूरी पर लगाए जाने वाले जुर्माने में तीन से बढ़ोतरी करने को कहा है। एक्साइज एक्ट की स्वीकृति पर तब तक रोक लगाई है जब तक सरकार विधानसभा में संबंधित संशोधन पास नहीं करवाती। आकाशवाणी व विभिन्न चैनलों के माध्यम से भी बाल मजदूरी पर रोक लगाने के लिए संदेश दिए जा रहे हैं। हिमाचल के संदर्भ में कहना गलत नहीं होगा कि बाहरी राज्य के लोगों के बच्चे भी यहां पर माता-पिता के साथ रोजी रोटी कमाने के लिए ढाबों व कारखानों में काम करते हैं। शीत मरुस्थल में सर्द हुआ बिहार का आठ साल का रामशेष तो महज एक उदाहरण है, धार्मिक और पर्यटक स्थलों पर भी बचपन हाथ फैलाता देखा जा सकता है। चिंता की बात यह है कि कानून बनाने के बावजूद अभी तक बाल मजदूरी पर रोक नहीं लग पाई है। इस मामले में सबसे पहले प्रशासन को चुस्त होने की जरूरत है। किसी भी बुराई को देखने के बाद अपनी आंखें बंद करने से वह खत्म नहीं हो जाती। समाज का भी फर्ज है कि वे बच्चों से उनकी मासूमियत न छीने। ये निष्पाप सपने भटके तो देश ही दुस्वप्न देखेगा। गैर सरकारी संस्थाएं भी कुछ कारगर करते हुए इसमें भूमिका निभा सकती हैं। यह इसलिए जरूरी है कि कोई रामशेष समाज की मुख्यधारा में शामिल हो, लाहुल-स्पीति में पठारों को चीरती हूक पैदा करने न पहुंचे।
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Wednesday, 16 November 2011
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