Sunday, 26 August 2012

Poster and template of A one day awareness workshop/Seminar on the topic Child Abuse in AWWA Week 2012 (17th august to 23 august 2012) on 23 August 2012 At Sangam SGN Institute, Red Eagle, Allahabad. Organized by: 9th Engineering Regiment (Indian Army), FWO Red Eagle (Indian army) with collaboration Of CHIRAGAN (Har Ummid Ki Jyoti).

Saturday, 25 August 2012

A workshop/Seminar on the topic Child Abuse in AWWA Week 2012 (17th august to 23 august 2012) on 23 August 2012 At Sangam SGN Institute, Red Eagle, Allahabad. Organized by: 9th Engineering Regiment (Indian Army), FWO Red Eagle (Indian army) with collaboration Of CHIRAGAN (Har Ummid Ki Jyoti).

Performing A Play & Dance on the topic Child Abuse By A group of  Chiragan children (Divya Sangeet Kala Kendra) in AWWA Week 2012 (17th august to 23 august 2012) on 23 August 2012 At Sangam SGN Institute, Red Eagle, Allahabad. Organized by: 9th Engineering Regiment (Indian Army), FWO Red Eagle (Indian army) with collaboration Of CHIRAGAN (Har Ummid Ki Jyoti).

Showing Presentation on the topic Child Abuse By Dr. Priyanka sharma in AWWA Week 2012 (17th august to 23 august 2012) on 23 August 2012 At Sangam SGN Institute, Red Eagle, Allahabad. Organized by: 9th Engineering Regiment (Indian Army), FWO Red Eagle (Indian army) with collaboration Of CHIRAGAN (Har Ummid Ki Jyoti).
The Ladies Audience viewing and listing program  in AWWA Week 2012 (17th august to 23 august 2012) on 23 August 2012 At Sangam SGN Institute, Red Eagle, Allahabad. Organized by: 9th Engineering Regiment (Indian Army), FWO Red Eagle (Indian army) with collaboration Of CHIRAGAN (Har Ummid Ki Jyoti).

Some Team Member & Kids of Chiragan. Who Participated  in AWWA Week 2012 (17th august to 23 august 2012) on 23 August 2012 At Sangam SGN Institute, Red Eagle, Allahabad. Organized by: 9th Engineering Regiment (Indian Army), FWO Red Eagle (Indian army) with collaboration Of CHIRAGAN (Har Ummid Ki Jyoti).

Child abuse does not report itself.... by chiragan बाल शोषण के खिलाफ आवाज उठाये.. चिरागन

Child abuse does not report itself.... by Chiragan बाल शोषण के खिलाफ आवाज उठाये.. चिरागन

Your war our lives, protect children rights.... by chiragan बाल शोषण के खिलाफ आवाज उठाये.. चिरागन

Your war our lives, protect children rights.... by chiragan बाल शोषण के खिलाफ आवाज उठाये.. चिरागन

Thousand of children die every year. due to child abuse, wake up stop child abuse.... by chiragan बाल शोषण के खिलाफ आवाज उठाये.. चिरागन

Thousand of children die every year. due to child abuse, wake up stop child abuse.... by chiragan बाल शोषण के खिलाफ आवाज उठाये.. चिरागन

Celebrating the 66th Independence day (15th august) पंद्रह अगस्त स्वाधीनता दिवस समारोह

Chiragn Celebrating the 66th Independence day with the contribution of various group. 
20 x 20 feet Chandra sekhar azad painting Created by Student of  DIVINE ARTIST GROUP on the occasion on 66th independence day. 

A seminar and prayer on the occasion on 66th independence day. at Sahid sthal, Chandrasekhar azad park, company garden, allahabad.

A Tribute to Legend Chandra sekhar Azad on the occasion of 15th august at Chandra sekhar azad park allahabad by Team of chiragan (har ummid ki jyoti).

Monday, 20 August 2012

धनुस्तंभ ( Tetanus / टिटेनस ) चोट लगने पर टिटनेस का इंजेक्शन लेना न भूलें by chiragan


धनुस्तंभ ( Tetanus / टिटेनस ) एक संक्रामक रोग है, जिसमें कंकालपेशियों को नियंत्रित करने वाली तंत्रिका-कोशिकाएँ प्रभावित होतीं हैं। कंकालपेशियों के तंतुओं (फाइबर) के लम्बे समय तक खिंचे रह जाने से यह अवस्था प्रकट होती है। यह रोग मिट्टी में रहनेवाले बैक्टीरिया से घावों के प्रदूषित होने के कारण होती है। इस बैक्टीरिया को बैक्टीरियम क्लोस्ट्रीडियम कहा जाता है। यह मिट्टी में लंबी अवधि तक छेद बना कर दीमक के समान रह सकता है। जब कोई घाव इस छेदनुमा घर में रहनेवाले दीमक रूपी बैक्टीरिया से प्रदूषित होता है, तो टेटनस बीमारी पैदा होती है। जब ये बैक्टीरिया सक्रिय होकर तेजी से बढ़ने लगते हैं और मांसपेशियों को प्रभावित करनेवाला जहर पैदा करने लगते हैं, तो टेटनस का संक्रमण फैलता है। टेटनस बैक्टीरिया पूरे वातावरण में, आमतौर पर मिट्टी, धूल और जानवरों के मल में पाया जाता है। हमारे शरीर में बैक्टीरिया के प्रवेश के रास्ता आमतौर पर फटे हुए घाव होता है, जो जंग लगी कीलों, धातु के टुकड़ों या कीड़ों के काटने, जलने या त्वचा के फटने से बनता है।

लक्षण

tetanus bacteria by chiragan
  • सामान्य टेटनस शरीर की संरचना की सभी मांसपेशियों को प्रभावित कर सकती है। यह सबसे सामान्य और सभी चार प्रकार में सबसे गंभीर है,
  • स्थानीय टेटनस बैक्टीरिया से संक्रमित घाव के आसपास की मांसपेशियों को प्रभावित करता है,
  • सिफेलिक टेटनस में शुरुआत में चेहरे की मांसपेशियां तेजी से प्रभावित होती हैं (एक से दो दिन में)। यह आमतौर पर सिर पर चोट या कान में संक्रमण के कारण होता है,
  • नीयोनेटल टेटनस सामान्य टेटनस जैसा ही होता है, लेकिन यह एक माह से कम उम्र के शिशुओं (जिन्हें नीयोनेट कहा जाता है) को प्रभावित करता है। विकसित देशों में यह स्थिति बहुत कम होती है।

कारण

  • इस बीमारी के लिए जिम्मेदार क्लोस्ट्रीडियम टेटानी नामक बैक्टीरिया है। बैक्टीरिया दो स्वरूप में पाये जाते हैं: दीमक या गुणक कोशिका, जो तेजी से बढ़ते हैं।
  • दीमक के स्वरूप वाला बैक्टीरिया मिट्टी, धूल या जानवरों के मल में रहता है और कई वर्षों तक जीवित रह सकता है। दीमक रूपी बैक्टीरिया भीषण तापमान भी सह लेते हैं,
  • टेटनस बैक्टीरिया से, घावों का संक्रमित होना आम बात है। टेटनस हालांकि तभी होता है, जब बैक्टीरिया प्रजनन करते हैं और सक्रिय कोशिका बन जाते हैं,
  • सक्रिय कोशिकाएं दो तरह के जहर, टेटानोलाइसिन और टेटानोस्पैसमिन पैदा करते हैं। टेटानोलाइसिन का काम स्पष्ट नहीं है, लेकिन टेटानोस्पैसमिन ही बीमारी के लिए जिम्मेदार है,
  • यह बीमारी चोट के कारण फटी हुई त्वचा से शुरू होती है। अधिकांश मामलों में त्वचा के कटने या छिलने के कारण त्वचा में पैदा हुई दरार से ही बीमारी शुरू होती है,
  • टेटनस से संक्रमित हो सकनेवाले अन्य घावों में शामिल हैं:
    • शल्य चिकित्सा
    • पिसे हुए घाव
    • छिलना
    • शिशु जन्म और
    • दवा के प्रयोक्ता (सूई के प्रवेश की जगह)
  • मृत उतकों के घाव, जैसे जलना या पिसना या बाहरी तत्वों के घाव में प्रवेश से टेटनस का खतरा बढ़ जाता है।
उन लोगों को भी टेटनस हो सकता है, जिन्हें इसका टीका नहीं पड़ा हो या जो लोग इसकी बूस्टर खुराक नहीं ले रहे हों।

लक्षण

सामान्य टेटनस निम्न लक्षण प्रदर्शित करता है:
  • खुजली, मांसपेशियों में खिंचाव, सूजन, कमजोरी या निगलने में कठिनाई सामान्य रूप से देखा गया है,
  • अक्सर चेहरे की मांसपेशियां सबसे पहले प्रभावित होती हैं। जबड़ों की जकड़न या ट्रिसमस आम बात है। यह स्थिति चबाने के लिए जरूरी मांसपेशियों में आयी जकड़न के कारण पैदा होती है,
  • मांसपेशियों की जकड़न लगातार आगे बढ़ती है और पीठ की मांसपेशियों में दर्द होता है, जिसे ओपीस्थोटोनस कहते हैं। मांसपेशियों की जकड़न इतनी भयानक होती है कि इससे हड्डियां टूट सकती हैं और जोड़ हिल सकते हैं,
  • गंभीर अवस्था में बोलने और सांस लेने की नली में जकड़न होती है,
  • सीफैलिक टेटनस में जबड़े के जकड़ने के अलावा चेहरे की कम से कम एक मांसपेशियों में कमजोरी होती है। दो-तिहाई मामलों में इससे सामान्य टेटनस विकसित होता है,
  • स्थानीय टेटनस में घाव की जगह के आसपास की मांसपेशियों में जकड़न पैदा होती है। यह स्थिति आगे चल कर सामान्य टेटनस में बदल सकती है,
  • नीयोनेटल टेटनस सामान्य टेटनस के जैसा ही है। अंतर केवल इतना है कि यह नवजात शिशुओं को प्रभावित करता है। इससे नवजात बेचैन हो जाते हैं और उन्हें चूसने और निगलने में कठिनाई होती है,

बचाव

  • टीकाकरण द्वारा टेटनस से पूरी तरह बचाव संभव है: 1920 के दशक में शुरू किया गया टेटनस टॉक्सॉयड सबसे सुरक्षित साबित हुआ है। टेटनस टॉक्सॉयड में निष्क्रिय टेटनस टॉक्सीन को रसायनों और ताप के प्रभाव में लाकर उसके जहरीले प्रभाव को कम किया जाता है, लेकिन इसके एंटीजिनिक प्रभाव को बरकरार रखा जाता है,
  • टेटनस टॉक्सॉयड किसी भी टीके के रूप में आमतौर पर आसानी से उपलब्ध है। इसे शिशुओं के आरंभिक टीकाकरण के लिए डिप्थेरिया टॉक्सॉयड और पर्टूसिस वैक्सीन (डीटीपी) और बड़ों तथा बच्चों के टीकाकरण के लिए कम किये हुए डिप्थेरिया टॉक्सॉयड (टीडी) के साथ मिलाया जा सकता है।
  • वयस्कों के आरंभिक टीकाकरण के लिए चार से छह सप्ताह के अंतराल पर टेटनस टॉक्सॉयड की दो खुराक दी जाती है, जबकि छह से 12 महीने बाद तीसरी खुराक। हर 10 साल पर बूस्टर खुराक की सिफारिश की जाती है, ताकि शरीर में जहर रोधी स्तर बना रहे,
50 या उससे अधिक उम्र के वयस्कों में टीकाकरण की सिफारिश की जाती है, क्योंकि हाल के दिनों में इस आयुवर्ग में टेटनस के कई मामले सामने आये हैं। इन लोगों में टेटनस की आशंका अधिक होती है:
  • जो लोग इस बात को लेकर सुनिश्चित नहीं रहते कि उन्हें बूस्टर की आरंभिक खुराक मिली है या नहीं,
  • गर्म और नम वातावरण वाले बाहरी देशों में जानेवाले,
  • धूल या गोबर की खाद के बीच काम करनेवाले खेतिहर मजदूर,
  • जो लोग ऐसा काम करते हैं, जिसमें कटने या छिलने का खतरा रहता है।
  • वैसी गर्भवती महिलाएँ, जिन्हें टीका नहीं दिया गया हो या अपर्याप्त टीका दिया गया हो या जो स्वच्छ माहौल में प्रसव नहीं करती हैं। टीकाकरण के बाद निरोधी तत्व गर्भाशय के द्रव (प्लेसेंटा) के माध्यम से मां से शिशु में चले जाते हैं।
  • tetanus Patient by Chiragan

ईद मुबारक....द्वारा चिरागन wish to all of you happy eid by Chiragan

ईद मुबारक....द्वारा चिरागन
wish to all of you happy eid by Chiragan

एक प्रयास, आप तक उजाले को पहुचने की तरफ एक कदम बढ़ने का.... चिरागन Ek prayas aap tak ujale ko pahuchane ki taraf kadam badhane ka by chiragan

एक प्रयास, आप तक उजाले को पहुचने की तरफ एक कदम बढ़ने का.... चिरागन Ek prayas aap tak ujale ko pahuchane ki taraf kadam badhane ka by chiragan

Tuesday, 14 August 2012

HAPPY INDEPENDENCE DAY

I am in love, I am passionate about him,
I loving every moment of it and why not its her 66rd Birth Day.
Its APNA HINDUSTAAN. Wish to all of you HAPPY INDEPENDENCE DAY. By: Chiragan Family

क्या भारत के इसी स्वरूप के लिए हम सबने बलिदान दिया?

प्रथम स्वतंत्रता दिवस के मौके पर पंडित जवाहर लाल नेहरू ने दृढ़ प्रतिज्ञा लेते हुए यह घोषणा की थी कि हम निश्चय ही एक शक्तिशाली भारत का निर्माण करेंगे। यह भारत न केवल विचारों में, कार्यो में और संस्कृति में शक्तिशाली होगा, बल्कि मानवता की सेवा के मामले में भी आगे होगा। लेकिन क्या हम ऐसा सचमुच कर पाए? क्या हमने एक ऐसे भारत का निर्माण नहीं किया है, जो विचारों में सतही, कार्यो में अकुशल, संस्कृति में उथला और मानवता की सेवा में कमजोर है?
14-15 अगस्त की अ‌र्द्धरात्रि में अपने ऐतिहासिक भाषण में नेहरू ने भरपूर जोश के साथ अपने काव्यात्मक अंदाज में कहा, 'मध्यरात्रि की इस बेला में, जबकि पूरा विश्व सोया हुआ है, भारत स्वतंत्रता और नए जीवन के लिए जगेगा। यह एक ऐसा क्षण है, जो इतिहास में बहुत ही दुर्लभ होता है। यह एक ऐसा क्षण है, जब हम पुराने से नए में प्रवेश कर रहे हैं। यह एक नए युग का आरंभ है। यह एक ऐसा समय है, जब वर्षो से दमित राष्ट्र की आत्मा फिर से जागने जा रही है।' परंतु भारत क्या वास्तव में जगा और अपनी आत्मा को नई अभिव्यक्ति दे सका? क्या यह सच नहीं है कि जगी हुई भारत की आत्मा को फिर से सुला दिया गया और इस पर दमन की और परतें चढ़ा दी गई?
हमने अपने लिए एक संविधान का निर्माण किया और भारत में संप्रभुतासंपन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक गणराज्य की धारणा को स्थापित किया गया। परंतु यहां लोकतांत्रिक गणराज्य की बजाय वंशवादी प्रभुत्व है, संप्रभुता का उपयोग विधायिका में चुने गए अपराधी कर रहे हैं और इसी तरह पंथनिरपेक्षता का व्यावहारिक उपयोग जाति और समूह के आधार पर राजनीतिक निर्णयों में देखा जा सकता है। इसी तरह समाजवाद की धारणा आज उच्चतम आय यानी असमानता का कारण बन रही है?
हमारे राष्ट्रीय प्रतीक चिह्न के नीचे सत्यमेव जयते यानी सत्य की ही विजय होती है, लिखा हुआ है। आखिर क्या वजह है कि असत्य का साम्राज्य फैला हुआ है और लोगों पर लग रहे कलंक और झूठ को लेकर बहसें हो रही हैं? झंडे में बना चक्र हमारी प्राचीन संस्कृति का प्रतीक है, लेकिन क्या हम आज अपनी प्राचीन संस्कृति की जड़ों पर ध्यान दे रहे हैं?
आज स्वच्छ, मजबूत, रचनात्मक, सकारात्मक, प्रतिबद्ध और समर्पित शासकीय मशीनरी की आवश्यकता है। इसकी बजाय हम अपने आसपास भ्रष्ट, सामान्य, अकुशल और संघर्ष में उलझी हुई प्रशासकीय तंत्र पाते हैं, जो राष्ट्र के सामने खड़ी गंभीर चुनौतियों, संकटों को सुलझा पाने में असक्षम हैं। फिर चाहे मामला आतंकवाद का हो या सामाजिक व आर्थिक वंचना का?
सरकार लगातार प्रचार कर रही है कि उसका लक्ष्य 8-10 प्रतिशत आर्थिक विकास हासिल करना है, हालांकि इससे महज 4-5 फीसदी लोगों को ही लाभ होना है, फिर हमारी सरकार मात्र इतने से खुश क्यों हो रही है? भारत में अब भी सर्वाधिक गरीबों और निरक्षर लोगों का देश बना हुआ है। कुपोषण से ग्रस्त लोगों की संख्या के मामले में भी हम विश्व में सबसे आगे हैं।
यूएनडीपी द्वारा जारी मानव विकास सूचकांक वाले देशों की सूची में भी भारत काफी नीचे 134वें स्थान पर है।
संभवत: कुछ क्षेत्रों में हम बाकी से आगे भी हैं, लेकिन यह प्रगति हमारी जरूरतों और क्षमता के मुकाबले काफी कम है। इसी तरह क्या हम विकास की कीमत अपनी स्थिरता, अखंडता और अपनी संस्कृति की कीमत पर नहीं कर रहे हैं? ऐसा क्यों हो रहा है कि हमारा बौद्धिक और नैतिक पतन तेजी से हो रहा है?
आज हम क्यों नहीं विवेकानंद, महर्षि अरविंद, टैगोर, राममोहन और रानाडे जैसे महान सुधारकों और राष्ट्र निर्माता व चेतना को परिष्कृत करने वाले लोगों को पैदा कर पा रहे हैं। इन प्रश्नों के उत्तर के लिए हमें खुद से प्रश्न पूछना चाहिए कि आजादी के 63 वर्ष बीत जाने पर भी क्यों इतनी विषमताएं उभर रही हैं और जिन क्षेत्रों में प्रकाश फैलना चाहिए था, वहां अंधेरा और गहरा होता गया?
मेरे मस्तिष्क में जो उत्तर उभरता है, वह है 1947 के बाद नेतृत्व की विफलता। स्वतंत्र भारत में एक नई सभ्यता के निर्माण की आवश्यकता थी, जो नहीं हो सका। यह सभ्यतागत मूल्य ही है, जो राज्य के संस्थानों को दिशा देता है, समाज के लोगों में एक मूल्य की स्थापना करता है और दृष्टिकोण देता है यानी लोगों को एक नजरिया देता है। इन मूल्यों की आज महती आवश्यकता है और स्वस्थ मन-मस्तिष्क व आत्मा वाले लोगों को विकसित करने की जरूरत है, जो उपेक्षित हैं।
आज इस बात को भुला दिया गया है कि ईमानदार मन-मस्तिष्क वाले लोगों के बिना ईमानदार प्रशासन का निर्माण संभव नहीं है। सुंदर राष्ट्रीय धारणा के बिना सुंदर राष्ट्रीय महल की नींव नहीं रखी जा सकती।
सभ्यता एक निर्धारित समय में समूचे राष्ट्र की कुल सामाजिक, नैतिक और बौद्धिक उपलब्धियों का योग है। अगस्त 1947 में हमारे भाग्य के निर्णायक मोड़ के समय हमें इस बात का विचार करना चाहिए कि इतिहास के 5000 वर्षो के कालखंड में हमारी सकारात्मक और नकारात्मक बातें कौन-सी रही हैं। हम सभी एक ऐसे सामाजिक और सांस्कृतिक पिंजरे में रहते हैं, जिसका ताना-बाना हमारे अतीत से निर्मित किया गया है।
हालांकि इसकी स्वच्छ हवा की बयार और रोशनी हमें पिंजरे की सलाखों के बीच के खाली स्थान से निरंतर मिलती रहती है। वास्तव में हमारा भूत, भविष्य और वर्तमान इन्हीं जटिल तानों-बानों से बना हुआ है। हम अपने वर्तमान से भूत और भविष्य दोनों को ही देख सकते हैं और इसे देखा भी जाना चाहिए।
महान अंग्रेज कवि टीएस इलियट ने ठीक ही कहा है, 'वर्तमान और भूत दोनों ही भविष्य में समाहित हैं। और हमारा भविष्य हमारे अतीत में समाहित होता है।'
अगर हम अपने अतीत को खंगालें तो हमें बहुत ही मूल्यवान और कीमती चीजें मिल सकती हैं। हालांकि यह अभी दिख नहीं रहीं। हमें अपनी संस्कृति में मौजूद महान विचारों को तलाशना चाहिए। इन महान विचारों और आदर्शो से हम अपने जीवन में भी वैसी ही दिव्यता हासिल कर सकते हैं।
अस्तित्व की एकता और ब्रह्मांड में व्याप्त कॉस्मिक किरणें एक ऐसा तत्व है, जो हमें एक-दूसरे से जोड़ती है। हमें कर्मयोगी होने के महत्व को समझना होगा और बिना किसी लालच या कमजोरी के हमें निस्स्वार्थ कर्तव्य करना होगा।
हमें मैक्समूलर द्वारा कहे गए इस वाक्य पर ध्यान देना चाहिए, 'मानव मस्तिष्क में जीवन की जिस महान समस्या को लेकर गहन चिंतन किया जाता रहा है, उसका उत्तर केवल और केवल मुझे भारत में मिला। यहां मानव इतिहास का सबसे कीमती और रचनात्मक तत्व का खजाना है।'
इन सबसे न केवल समूचा राष्ट्र प्रोत्साहित होता है, बल्कि इससे स्वस्थ लोकतंत्र और सही अर्थो में मानवतावादी और सेवा उन्मुख सामाजिक व्यवस्था का आधार भी हासिल किया जा सकता है।
उदाहरण के तौर पर यह समान दिव्यता सभी लोगों में निहित हो तो न केवल समानता, बल्कि स्वतंत्रता और भ्रातृत्व को भी सुनिश्चित किया जा सकता है। हालांकि इस बात को उपेक्षित नहीं किया जा सकता कि लंबे समय से बहुत सारा कूड़ा-कचरा हममें भरा जा रहा है, जिस कारण हमारा लगातार क्षरण होता गया। अब इन सबको साफ करने की जिम्मेदारी हमें लेनी होगी। इसमें सभी तरह की बुराइयों यथा पंथ, जाति, लिंग भेदभाव जैसी बातों को शामिल करना होगा।
अंततोगत्वा क्या हम अपनी सांस्कृतिक और बौद्धिक विरासत में इन पवित्र, मूल्यवान और कीमती प्राचीन आदर्श और आधुनिक विज्ञान के साथ तालमेल बिठा पाएंगे। हमें अपनी संस्कृति का पुनर्उत्थान और पुनर्सुधार करना होगा। इस तरह की सभ्यता से ही हमें नए भारत, नए मस्तिष्क, नए मिशन और नए संदेश का आधारभूत मूल्य मिलेगा। संभवत: अभी भी बहुत देर नहीं हुआ है, जबकि हम ऐसे सभ्यतागत सुधार द्वारा देश को एक सही दिशा दे सकते हैं।
आजाद नेता, बेडि़यों में जनता
भरत मिश्र प्राची। आज देश के जो हालात सामने हैं, उससे कोई अनभिज्ञ नहीं है। देश की सुरक्षा और अस्मिता दिनोदिन खतरे में पड़ती जा रही है। देश के संवैधानिक पद की भी गरिमा दिन पर दिन धूमिल होती जा रही है। स्वतंत्रता उपरांत स्वयंभू की प्रवृत्ति आज इतनी बढ़ चली है कि राष्ट्रहित से स्वहित सर्वोपरि दिखने लगा है, जबकि स्वतंत्रता पूर्व देश की आजादी की लड़ाई में सभी के दिल में राष्ट्रहित की भावना सर्वोपरि बनी हुई थी। फिर आज यह क्या हो गया?
आजादी मिलते ही हम इतने स्वार्थी हो गए कि आजाद कराने वाले अनेक गुमनाम शहीदों की कुर्बानियों को भूलकर उनके आदर्श सपनों को मटियामेट करते हुए देश की अस्मिता को भी दाव पर लगाते जा रहे है। भ्रष्टाचार, लूट-खसोट, आतंकवाद, महंगाई, बेईमानी और धोखाधड़ी की घटनाएं बेहिसाब बढ़ती जा रही हैं। इन पर कोई लगाम नहीं है। जनसेवा का संकल्प लिए लोकतंत्र के जनप्रतिनिधि वेतनभोगी हो गए हैं। वे अपनी सेवा का वेतन देश के अन्य वेतनभोगियों की तरह लेने लगे हैं। हत्या, लूट, अपराध में लिप्त लोग आज हमारे जनप्रतिनिधि बनकर लोकतंत्र के पवित्र आगन को अपने अलोकतात्रिक आचरण से अपवित्र किए जा रहे हैं और हम इनका विरोध करने के बजाए अभिनंदन करते जा रहे हैं।
आज कोई संसद-विधानसभा में बाहुबल का खुला प्रयोग कर संविधान की धज्जिया उड़ा रहा है। आज देश फरेबियों के जाल में फंसता जा रहा है।
जाली नोटों का गोरखधंधा इस तरह अपना पग पसार चुका है, जिससे आज रिजर्व बैंक भी अछूता नहीं रहा। नकली सामानों और नकली दवाओं की तो चारों ओर भरमार है। उद्योग धंधे तो बंद होते जा रहे हैं, रोजगार के नाम हर जगह लूट-खसोट की राजनीति पनाह ले रही है। न्याय की तलाश में आज भी लोग भटक रहे हैं, जहा अंग्रेजों की ही नीतिया कायम है। अंग्रेज तो चले गए, पर आज भी अंग्रेजियत हावी है, जिसका खुला नजारा हर सरकारी कार्यालयों और हर संसदीय कार्यवाही में देखने को मिल सकता है। आज इसी कारण देश की संसद ही नहीं, अनेक जगहों का स्वरूप भी विदेशी-सा दिखाई देता है।
आजादी के उपरांत देश में अपहरण, भ्रष्टाचार, बलात्कार, अनैतिकता के मामले दिन प्रतिदिन बढ़ते जा रहे हैं। आतंकवाद से देश को चुनौतिया मिलने लगी हैं। देश के विकास स्तंभ सरकारी, अ‌र्द्धसरकारी संस्थाएं सफेद हाथी बन चुकी हैं। जो जहा है, वहीं अपने-अपने तरीके से देश को लूट रहा है। आजादी से पूर्व इस देश को विदेशियों ने लूटा, आजादी के बाद देश वाले लूट रहे हैं। फिर देसी-विदेशी, आजादी-गुलामी की परिभाषा इस संदर्भ में किस तरह परिभाषित हो पाएगी, विचार किया जाना चाहिए।
जहा इस तरह के जनप्रतिनिधियों की संख्या लोकतंत्र में बढ़ती जा रही है। जहा आज आम जनता पर विभिन्न तरह के टैक्स के बोझ का दायरा बढ़ता जा रहा है। सुरसा की तरह बढ़ती जा रही महंगाई अनियंत्रित होती जा रही है, वहीं अनेक लोग राजनीतिक छाव में अवैध रूप से धन बटोरने और राजनीतिज्ञों को सुख सुविधा के तमाम संसाधन जुटाने में तत्पर हैं।
देश का सर्वोच्च पद भी स्वार्थ से प्रेरित अनैतिक राजनीति का शिकार बन चुका है। लोकतंत्र के इस सर्वोच्च पद पर भी राजनीतिक शिकंजा कसता नजर आ रहा है। हत्या, अपहरण, अवैध गतिविधियों में लिप्त आज लोकतंत्र के सम्मानित सासद, विधायक हैं। जेल में बंद हैं, फिर भी सासद हैं। जो जंगल में घूम रहे हैं, वे संसद में दिख रहे हैं। आखिर आजादी के बाद उभरे इस तरह के परिदृश्य के लिए कौन जिम्मेवार है?
अब प्रश्न यह उठता है कि क्या देश के इन्हीं हालातों के लिए लाखों लोगों ने कुर्बानिया दी? इस तरह के उभरते हालातों पर आज मंथन करने की विशेष जरूरत है। वर्ष 1857 से लेकर 9 अगस्त 1947 के मध्य छिड़ी आजादी की जंग पर एक नजर डालें, जहा देश की आजादी के लिए अनोखी जंग छिड़ गई थी। एक तरफ अंग्रेजों को छक्के छुड़ाने वाली लक्ष्मी बाई तो दूसरी ओर जीवन के अंतिम पड़ाव पर पड़े बूढ़े शेर बाबू कुंवर सिंह के बाजुओं की ताकत के आगे निढाल पड़ी अंग्रेजी हुकूमत।
साथ ही साथ देश भक्ति में सराबोर हुए आजादी के दीवानों का जत्था, जिनकी कुर्बानियों के आगे अंग्रेजी हुकूमत को यहा से बिदा होना पड़ा।
हम याद करें, मंगल पाडे की कहानी, जिन्होंने निस्स्वार्थ भाव से अंग्रेजों के विरूद्ध अलख जगाकर आजादी की जंग छेड़ दी। राम प्रसाद विस्मिल, भगत सिंह, आजाद आदि के त्याग एवं बलिदान की कहानी को इतना जल्दी कैसे भूल गए? आज गाधी, बाल गंगाधर तिलक, के साथ-साथ देश की आजादी की जंग में सक्रिय भूमिका निभाने वाले अनेक गुमनाम शहीद हर भारतीय से पूछ रहे हैं, क्या भारत के इसी स्वरूप के लिए हम सबने बलिदान दिया?