Saturday, 10 August 2013

सपने सच होने के लिए जरूरी है कि पहले आप सपने तो देखें।

1947 में नई-नई आजादी का स्वाद चख रहे हिंदुस्तान के लिए पुरानी तकनीक, अंग्रेजों द्वारा छोडी खस्ताहाल विरासत के साथ देशवासियों को दो वक्त की रोटी मुहैया करा पाना टेढी खीर साबित हो रहा था। लिहाजा हम पूरी तरह दोयम दर्जे के सोवियत, अमेरिकी गेहूं पर निर्भर हो गए। सबसे पहले विशेषज्ञों की नजर इन्हीं पर पडी। विशेषज्ञों के अनुसार, आजादी के बाद सबसे बडे सेक्टर्स में से एक कृषि से संबंधित जॉब्स की तरफ युवाओं का काफी रुझान बढा है। एक अनुमान के मुताबिक, ग्रामीण जॉब समझे जाने वाले कृषि से संबंधित कोर्स करने वालों में शहरी युवा की संख्या 52 प्रतिशत तक बढ गई है। अगर इसी तरह की लोकप्रियता रही, तो कृषि आनेवाले समय में सबसे अधिक रोजगार और पैसा देनेवाला क्षेत्र बन सकता है। सरकार भी इसकी महत्ता को समझते हुए दूसरी हरित क्रांति की तैयारी कर रही है। निरंतर विकास का ही परिणाम है कि कभी दूसरों के सामने कटोरा लेकर खडा रहने वाला भारत खुद अनाज का कटोरा बन गया है। इसके लिए सबसे बडी जिम्मेदार रही 60-70 के दशक में आई हरित क्रांति, जिसने देश केगोदामों को न केवल अनाज से भर दिया, साथ ही देश की रगों में भर दिया उससे भी ज्यादा आत्मविश्वास। शायद यह पहली बार कृषि की उपजाऊ जमीन से मिला भरोसा था जिससे हमें दूसरे सेक्टर्स में भी शानदार प्रदर्शन में मदद मिली। आगामी 15-20 सालों में इस जीत का सुर्ख हरा रंग देश के हर गांव, हर खेत में नजर आने लगा। इस दौरान प्रति हेक्टेयर अनाज उत्पादन में दस गुने से ज्यादा की बढोत्तरी हुई, खाद्य निगमों के गोदाम भर गए और अकाल की मार से त्रस्त जनता के लिए भुखमरी गुजरे जमाने की बात हो गई। जब मिट्टी में मेहनत की पौध रोपी जाएगी, उसे पसीने से सींचा जाएगा तो नतीजे तो चमत्कारी आएंगे ही। पिछले दशकों में हमारे ऐसे ही कुछ प्रयास आज रंग ला रहे हैं।
पैदावार के मामले में हम आत्मनिर्भर हुए हैं व यही अन्न हमारे लिए विदेशी मुद्रा का भी जरिया बन रहा है। आज देश में करीब आधा दर्जन से ज्यादा अनाज व फसलें निर्यात की जाती हैं, जिससे अमूमन हर साल हमें 400-450 अरब रु. की विदेशी मुद्रा प्राप्त हो रही है। आज तो खेती व्यवसाय का रूप ले चुकी है, जिसमें आधुनिक युवा कॅरियर का जबर्दस्त स्कोप देख रहा है। यही कारण है कि इन दिनों प्रदेश से लेकर ब्लॉक, ग्राम स्तर तक खेती से जुडे अनेक कोर्स युवाओं की वरीयता सूची में हैं।
मीडिया
क्रांति ने बदला अंदाज
पराधीन भारत में हमारे देश के सभी प्रमुख नेता और नीति-नियंता यह जान गए थे कि देश का विकास तभी संभव हो सकेगा, जब सभी काम पारदर्शी तरीके से होंगे और सभी तरह के लोगों को अपनी बातें कहने का हक मिलेगा। इनकी महत्ता को समझते हुए हमारे संविधान ने हमें कई लोकतांत्रिक आजादियां दी हैं, जिसमें सबसे खास है हमारे मौलिक अधिकार। कहा जा सकता है कि मीडिया व संचार के साधनों ने 15 अगस्त 1947 को मिली राजनीतिक आजादी को सही अर्थो में घर-घर तक पहुंचाया।
21वीं सदी में इसका अंदाज, इसके तेवर 47 के पहले के औपनिवेशिक भारत के चोले को उतार फेंक चुके हैं और आज मीडिया प्रमुख जॉब प्रोवाइडर बन गया है। सोशल मीडिया ने इस बोलने की आजादी को अगले स्तर पर पहुंचाया है। पहले अखबार, फिर टीवी और अब फेसबुक व ट्विटर के सहारे हमने जो खुद को जाहिर करना शुरू किया है, वह शायद हमें मिली आजादी का सबसे बडा फायदा है। कॅरियर के तमाम परंपरागत विकल्पों के बीच मीडिया आज के जमाने का कॅरियर माना जा रहा है।
आइटी
चौंधियाई दुनिया की आंखें
ब्रिटिश शोषणकारी व्यवस्था पर तंज कसते हुए जाने माने राष्ट्रवादी विचारक दादाभाई नौरोजी ने एक बार कहा था कि देश में ब्रिटिश आर्थिक गतिविधियां एक विशालकाय फोम की तरह हैं, जो देश की समृद्धि के सागर को सोखकर इंग्लैंड में निचोड रही हैं। लेकिन उन्हें नहीं पता था कि इस फोम की तासीर तो दोतरफा होती है। आज यही तासीर अपना रंग दिखा रही है और देश की समृद्धि वापस इन्हीं सोख्तों के जरिए देश लौट रही है। समृद्धि की इस वापसी में आईटी सेक्टर का सबसे बडा योगदान है। बाजार जानकार तो आईटी क्षेत्र के अभ्युदय को आजादी के बाद देश में हुआ सबसे बडा परिवर्तन मानते हैं। 1991 में देश में चली उदारीकरण की हवा ने इस क्षेत्र को नई ताजगी दी व यह क्षेत्र देश का सबसे कमाऊ सेक्टर बन गया।
बदल गई सूरत- इकोनॉमी बदलाव लाती है, यह तो हमने सुना था लेकिन बदलाव की गति इतनी तेज होगी इसका हमें अंदाजा न था। देश की अर्थव्यवस्था के लिए आईटी सेक्टर कुछ ऐसे ही पविर्तन लेकर आया है। इसकी हालिया ग्रोथ रेट और देश की तरक्की में योगदान देखकर शायद ही कोई?यकीन करें कि यह वही देश है, जो बमुश्किल दो दशक पहले आईटी, कंप्यूटर के नाम पर कंगाल था। लेकिन आज इससे देश को प्रति वर्ष 100 अरब डॉलर का राजस्व मिलता है। यही नहीं 9 फीसदी वृद्धि दर के साथ देश केनिर्यात में भी इसकी 25 प्रतिशत हिस्सेदारी है। ब्रेन ड्रेन नहीं अब रिवर्स ब्रेन ड्रेन-यदि आपको याद हो अपने स्कूली दिनों की तो उस समय डिबेट कंपटीशन में एक मुद्दा तो हमेशा तैयार रहता था-ब्रेन ड्रेन यानि प्रतिभा पलायन। पर आज आईटी सेक्टर ने इस शब्द के निहितार्थ बदले हैं। जी हां, इन दिनों आईटी व बीपीओ सेक्टर में रिवर्स ब्रेन ड्रेन जोरों पर है। अब भारतीय प्रतिभाएं काम की तलाश में विदेश नहीं जा रहीं बल्कि उन्हें यहीं देश में अपनी क्षमता के अनुरूप काम मिल रहा है, तो विदेश से वापस लौटी स्वदेशी आईटी कंपनियों में हाथ आजमाने वाले युवा भी कम नहीं हैं। अब इसे कुदरत का बदला कहें या भारतीय मेधा की धमक, कभी नौकरी के लिए पश्चिम की बाट जोहने वाला भारत, अपनी कंपनियों टाटा, इंफोसिस, विप्रो के जरिये विदेशियों को भी नौकरियां ऑफर कर रहा है। जॉब माकेर् ट में प्रोफेशनलिज्म शब्द हम लोगों के लिए कुछ समय पूर्व तक अंजाना था। लेकिन आईटी, बीपीओ सेक्टर ने न केवल इन शब्दों से हमें परिचित कराया बल्कि कॅरियर ग्रोथ को अलग परिभाषा भी दी। यही कारण है कि आज देश में आईटी ब्रांच से बीटेक, एमटेक करने वाले युवाओं की संख्या सर्वाधिक है, वहीं बीसीए, एमसीए करने वाले स्टूडेंट्स भी कम नहीं हैं।
साइंस एंड टेक
प्रतिभा को दी ऊंचाई
भले ही देश में विज्ञान और प्रौद्योगिकी की परंपरा 5000 साल पुरानी हो, लेकिन आजादी के बाद हमारे पास साइंस टेक्नोलॉजी में बताने के लिए उल्लेखनीय कुछ भी न था। उस पर बाहरी दुनिया की तेज प्रगति हमें लगातार पीछे छोडे जा रही थी। तत्कालीन नीति-नियंताओं को यह पता चल गया था कि हमें यदि विकसित राष्ट्र बनना है, तो सांइस और टेक्नोलॉजी के साथ ही भारी उद्योगों को विकास की पटरी पर लाना होगा। विशेषज्ञों के अनुसार, विकसित राष्ट्र आप तभी बन सकते हैं, जब आपका औद्योगिक पहिया घूमेगा और अनेक तरह के रिसर्च से नए नए आविष्कार करेंगे। आज 65 साल बीत चुके हैं। बेशक दौड में हम अव्वल न हों, लेकिन शीर्ष देशों में हमारी पहचान जरूर है। दक्ष इंजीनियरों, वैज्ञानिकों की संख्या का मापदंड लें तो हम इस क्षेत्र में दुनिया की तीसरी बडी शक्ति हैं। अंतरिक्ष, न्यूक्लियर, बायोटेक, डिफेंस, टेलीकम्यूनिकेशन में हमने गजब की उडान भरी है। इस उडान के मायने इसलिए और भी हैं कि विरोधाभासों, कम संसाधनों व आबादी के बोझ के चलते पहले जहां देश की सामान्य जरुरतें पूरी होना मुश्किल थीं, आज रॉकेट प्रक्षेपण, बलेस्टिक मिसाइल, लडाकू विमानों के निर्माण के साथ ही हम अपनी सभी जरूरतें पूरी करने में सक्षम हैं।
नॉलेज बेस्ड इंडस्ट्री ने पलटे समीकरण-कहते हैं ज्ञान लिया जाए या दूसरों को बांटा जाए, दोनों ही सूरत में बढता है। भारत के ज्ञान आधारित इंडस्ट्री बनने के पीछे काफी कुछ इस मंत्र की भूमिका रही है। इस बदलाव को जानकार क्रांति का नाम दे रहे हैं। खुद सरकार इस चीज को संज्ञान में लेते हुए ज्यादा से ज्यादा युवाओं को शोध व विकास के काम में बढने को प्रेरित कर रही है। इस कडी में आज देश के 162 विश्वविद्यालय, 16 आईआईटी, 13 आईआईएम व सैकडों निजी संस्थानों से हर साल निकलने वाले स्नातक, परास्नातक, पीएचडी हमारे बदले आज की कहानी कह रहे हैं।
सपने ने दिखाई मंजिल : सालों पहले पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम ने अपने एक भाषण में कहा था कि सपने सच होने के लिए जरूरी है कि पहले आप सपने तो देखें। आज विज्ञान व प्रौद्योगिकी का क्षेत्र युवाओं में ऐसे ही सपने देखने की ललक पैदा कर रहा है। इसकी विस्तृत शाखाएं व विचार, युवाओं में जोश भरते हुए कह रहे हैं कि आगे बढो आसमां सामने ही है। जी हां, आज इस क्षेत्र में बडे परिर्वतन देखने को मिले हैं। आजादी के आस पास जहां इस क्षेत्र में जाने वाले लोग अतिविशिष्ट समझे जाते थे, तो आज सामान्य हाईस्कूल में पढने वाले छात्र भी अपनी वैज्ञानिक प्रतिभा से दुनिया को चमत्कृत कर रहे हैं। सरकार भी इस बीच साइंटिफिक पॉलिसी रिजोल्यूशन (1958), टेक्नोलॉजी पॉलिसी स्टेटमेंट(1983),साइंस एंड टेक्नोलॉजी पॉलिसी (2003) के माध्यम से युवा क्षमताओं को तराश रही है।

हम है नए अंदाज क्यों हो पुराना

कहा जाता है कि वक्त की रफ्तार आज तक कोई नहीं रोक पाया, यह ऐसा चलनशील पहिया है, जिसकी गतिं ंपर पूरी दुनिया टिकी हुई है। ऐसे में बेहतर होगा कि हम भी इस पहिये की रफ्तार से तारतम्य बैठाएं, नहीं तो पीछे छूटते देर नहीं लगेगी। यही बात कॅरियर के फ्रंट पर भी लागू होती है। आज इंम्प्लॉयर्स की जरूरतें बदली हैं। यदि जॉब चाहिए तो हर लिहाज से खुद का मेकओवर करना होगा। इस मेकओवर में अपनी स्किल्स को धार देना जरूरी बन गया है। जानकार मानते हैं कि इन दिनों युवा जल्दी से जल्दी जॉब पाने की जुगत में महंगे कोर्स तो कर लेते हैं, लेकिन जब इन कोर्सो से मिले तजुर्बे की बात आती है, तो वे फिट नहीं बैठते। यही कारण है कि आज डिग्रीधारी तो बहुत हैं, लेकिन उनके लिए जॉब नहीं हैं। एजूकेशन फॉर ऑल ग्लोबल मॉनिटरिंग रिपोर्ट 2010 के मुताबिक भी यही तस्वीर सामने आती है। बकौल रिपोर्ट आज देश में 60 फीसदी टेक्निकल/वोकेशनल कोर्स किए हुए छात्र कोर्स के बाद अमूमन तीन साल बेरोजगार रहते हैं। ऐसे में आज बडी जरूरत है कि स्टूडेंट्स को क्वालिफाइड बनाने के साथ ही उनके अंदर कार्य करने लायक गुणवत्ता भी विकसित की जाए।
1. मैनेजमेंट : चलाना है तो चलना सीखो
आज वह दौर नहीं रहा, जब अंगुलियों पर गिने जाने लायक एमबीए हुआ करते थे और नौकरी खुद उनके पास चलकर आती थी। आज तो एमबीए डिग्रीधारकों की बहुतायत है। अब जॉब उसी को मिल रहा है, जो कंपनी की अपेक्षाओं पर खरा उतर रहा है। इस कसौटी पर सफल होने के लिए खास स्किल्स डेवलप करनी होगी।
प्रबंधकीय कौशल- इस क्षेत्र में सफल होने के लिए आपको चीजों को बेहतर ढंग से मैनेज करने की कला आनी चाहिए। इस तरह के गुण तभी आ सकते हैं, जब आपमें लोगों की बातें समझने और बेहतर निर्णय लेने की क्षमता होगी।
स्पीकिंग इंग्लिश- आज इंग्लिश भाषा अपना ग्लोबल प्रभाव रखती है। इस कारण इस क्षेत्र में कामयाब वहीं हैं, जो इंग्लिश बोलने में सहज हैं। इस इंडस्ट्री में अधिकतर मैनेजमेंट डिग्री प्राप्त प्रोफेशनल, बेरोजगार इसी कारण हैं कि उन्हें अच्छी अंग्रेजी नहीं आती है।
अपडेटेड नॉलेज- इन गुणों के अलावा व्यवसायिक क्षेत्रों में क्या बदलाव हो रहे हैं, इस बारे में सरकारी नीतियां क्या हैं, कॉरपोरेट सेक्टर का क्या मूड है, आने वाले दिनों में मार्केट ट्रेंड कैसा रहने वाला है, ब्रांड्स की समझ इत्यादि यहां बहुत आवश्यक हैं। यह गुण तभी आ पाएंगे, जब आपको इस क्षेत्र में रुचि होगी।
टीम वर्क- टीम में काम करने की कला एक बडी क्वालिटी होती है। यदि आप कॉरपोरेट सेक्टर में काम कर रहे हैं और टीम वर्क पर यकीन नहीं करते तो जान लें कि कंपनी के साथ-साथ आप पर भी इसका बुरा असर पडेगा।
2. इंजीनिय¨रग : गुणवत्ता से समझौता नहीं
आज यह क्षेत्र देश का सबसे बडा जॉब प्रोवाइडर है। पिछले एक डेढ दशक में इस क्षेत्र की तेज ग्रोथ के चलते बेशक यहां अवसर बढे हैं, लेकिन अवसरों के साथ नियोक्ताओं का सेलेक्शन क्राइटेरिया ऊंचा हो जाने से जॉब की चुनौती भी बडी हुई है। शायद यही कारण है कि आज बीटेक/एमटेक बेरोजगारों की संख्या में साल दर साल इजाफा हो रहा है।
जिज्ञासु नजरिया- अच्छा इंजीनियर वही है, जो हर तकनीकी गुत्थी को सुलझाने में यकीन रखे। लेकिन आजकल के युवा में इसकी कमी देखी जा रही है। यहां यदि तकनीकी विषयों जैसे मैथ्स, फिजिक्स व केमिस्ट्री पर पकड के साथ रुचि नहीं है, तो सफल नहीं हो सकते हैं।
टेक्नोसवी- प्रोफेशनल वर्किग के दौरान ये चीजें खासी मदद देंगी। विशेषज्ञों का मानना है कि डिग्री होल्डर इंजीनियर कंप्यूटर फ्रैंडली तो हैं, लेकिन जिस क्षेत्र में उनसे विशेषज्ञता की दरकार है, उसमें उन्हें महारत नहीं हासिल है।
3. मेडिकल: जज्बात के साथ दृढता भी जरूरी
देश की बढती आबादी, स्वास्थ्य सेवाओं की लगातार कमी के चलते सरकार ने इस ओर तेजी से ध्यान देना शुरू किया है। इसके चलते यहां युवाओं के पास बढिया अवसर तो हैं लेकिन चुनिंदा स्किल्स में मात खा जाने के कारण वे इन अवसरों को कैश नहीं करा पा रहे हैं।
समर्पण- रोगियों, लाचारों का इलाज करते वक्त उनके प्रति समर्पण की भावना इस फील्ड में सफलता की गारंटी है। आज डॉक्टर का पेशा अपनाने वालों में समर्पण की भावना कम, वित्तीय रुझान ज्यादा है।
मानसिक दृढता- यहां कई मौके ऐसे आते हैं, जब आपकी मानसिक दृढता की परीक्षा होती है। दृढता मानसिक मजबूती से आती है। ऑड वर्किग ऑवर, मरीजों का दर्द, लंबे काम के घंटों के बीच युवाओं में जो मानसिक दृढता चाहिए, आज उनमें इसकी कमी है।
सही समय पर सही निर्णय- भूल शब्द डॉक्टर की डिक्शनरी में नहीं होता। उनकी एक चूक से जान चली जाती है। यही कारण है कि उन्हें धरती पर भगवान का दर्जा प्राप्त है। लेकिन यह गुण लंबे अनुभव से ही आता है।
4. डिफेंस: चाहिए परफेक्शन
डिफेंस में काम करना शान का सबब माना जाता है। आखिर ऐसा हो भी क्यों न, देश की रक्षा से बडा काम और हो भी कौन सकता है। इस क्षेत्र में इंट्री के पहले सुनिश्चित कर लें कि आपमें इस तरह के गुण हैं।
फिजिकल फिटनेस- इस फील्ड में वही लोग बेहतर कर सकेंगे, जिनके फिजिकल फिटनेस का स्तर व स्टेमिना असाधारण होगा। पर आज युवाओं की शारीरिक क्षमता/फिटनेस स्तर नीचे आया है। शायद यही कारण है कि बडी से बडी रिक्रूटमेंट ड्राइव में भी सेना को निराशा ही हाथ लगती है। यहां आज उन्हें अपने स्तर के लायक युवा नहीं मिल पा रहे।
निर्णय क्षमता- युद्ध की परिस्थितियों या फिर आंतकरोधी अभियानों में कुछ सेंकेड में लिए गए निर्णय लडाई?का रुख मोड देते हैं। इस कारण डिफेंस में तेज निर्णय क्षमता की सख्त जरूरत होती है।
अनुशासन- डिफेंस में इंट्री का पहला और आखिरी मंत्र अनुशासन है। बगैर इसके यहां एक पग बढाना भी मुश्किल होगा।
5. बैंक : स्किल्स हैं तो मुश्किल नहीं
बैकिंगसेक्टर में आज कॅरियर बूम किसी से छिपा नहीं है। यहां अवसरों की बढी दर के कारण युवा तेजी से इस ओर रुझान कर रहे हैं। लेकिन इसके समानांतर बैंकों से युवाओं का स्विचओवर रेट भी बढा है। इसका सबसे प्रमुख कारण है बैंक में काम करने के लिए जरूरी स्किल्स की कमी।
बढिया कैलकुलेशन- यह क्षेत्र पूरी तरह गणनाओं पर ही चलता है। वे छात्र जिनकी कैलकुलेशन पॉवर अच्छी है, यहां बहुत आगे तक बढते हैं। इसके साथ ही करेंट नॉलेज भी जरूरी है।
कूल माइंडेडनेस- इस सेक्टर में आपको कई?बार शार्टटेंपर्ड ग्राहकों से भी निपटना होता है। ऐसे मे मानसिक रूप से सुलझे व ठंडा दिमाग रखने वाले युवा बैकों की पहली पसंद होते हैं।
6. टीचिंग : अध्ययन आएगा काम
टीचिंग में इन दिनों कॅरियर बनाने वालों की कमी नहीं है। बेहतर सैलरी, काम के निश्चित घंटे, सुविधाओं के चलते यह क्षेत्र हॉट फे वरेट बन चुका है। लेकिन बहुत बार इस फील्ड से युवा असंतुष्ट रहते हैं, कारण-अध्यापन के लिए जरूरी क्वालिटी/ स्किल्स की कमी।
डीप नॉलेज- विषय की गहरी नॉलेज शिक्षा क्षेत्र में स्थिरता पाने की पहली शर्त?है। इस फील्ड में इंट्री लेने वाले युवाओं में आज धीरज की बहुत कमी देखी जा रही है, जिसके चलते अध्यापन के दौरान छात्रों से सामंजस्य न बिठा पाना, आपा खो देना जैसी समस्याएं बहुत आम हैं।
7. मीडिया-परहेज न करें संघर्ष से
मीडिया ऊपर से देखने में तो ग्लैमरस है, लेकिन इस ग्लैमर को पाने का सफर संघर्षो से भरा है। आज बहुत से युवा इस ऊपरी चमक-दमक को देखकर इस फील्ड में आ तो जाते हैं। परिणाम यह होता है कि बहुत बढिया काम आने के बाद भी वे इस क्षेत्र में मनचाही सफलता नहीं पा पाते।
भाषा पर पकड- इस फील्ड में हिंदी-इंग्लिश दोनों ही भाषाओं पर पकड बहुत जरूरी है। अगर आप इन दोनों ही भाषाओं में निपुण हैं तो आपको यहां कामयाब होने से कोई नहीं रोक सकता है।
टाइम मैनजमेंट- मीडिया डेड लाइन बेस्ड प्रोफेशन है, जहां टाइम का मतलब ही है सफलता, दूसरों से आगे। लेकिन वक्त के साथ की जाने वाली इस भागमभाग में अक्सर मीडिया प्रोफेशल्स पर बहुत अधिक दबाव हो जाता है। यही कारण है कि आज इस फील्ड में टिकने वाले लोग कम ही हैं।
नो वर्किग ऑवर : इस फील्ड में आप तभी आएं, जब किसी भी समय काम करने के लिए तैयार रहें और देश के किसी भी कोने में जाने को तत्पर रहें। इस तरह की वर्किग कंडीशन में ढलने में कई युवा असफल हो जाते हैं।
स्किल डेवलपमेंट सतत प्रक्रिया है। अगर जिज्ञासु हैं, तो आप किसी भी क्षेत्र में अपनी स्किल्स बढा सकते हैं.. एक जमाना था जब पढाई लिखाई, डिग्री, क्वालीफिकेशन ही जॉब के लिए पर्याप्त हुआ करती थीं। लेकिन बदलती वैश्विक जरूरतों, बदलते समय में कॅरियर की जरूरतें भी पहले से जुदा हुई हैं। आज आप सिर्फ फलां कोर्स करके या फलां डिग्री हासिल कर कामयाब कॅरियर नहीं बना सकते हैं। आज तो गला काट प्रतिस्पर्धा में ज्यादातर जॉब्स में इंट्री व प्रोग्रेस का पैमाना ही बदल चुका है। एक वैश्विक सर्वे से मिले आकंडे भी इन बदलावों की वकालत करते हैं, जिसके मुताबिक आज कोई भी कंपनी अपने कर्मचारियों के वर्किग आउटपुट के लिए इंतजार नहीं करती। वह चाहती है कि इम्प्लाई पहले ही दिन से कंपनी की मेन स्ट्रीम वर्किग में शामिल हो जाए। ऐसे में कॉलेज लेवल पर चलने वाले फिनिशिंग स्कूल,इंटर्नशिप कोर्सेस जॉब फ्रंट पर आपको और काबिल बनाते हैं।
स्किल्स हैं कामयाबी की कुंजी
एप्पल के सह संस्थापक स्टीव जॉब्स का जीवन, कॅरियर मार्केट में स्किल्स की अहमियत बयां करने वाली परफेक्ट केस स्टडी है, जिसका अध्ययन कर कोई भी तरक्की के पंख पा सकता है। 20 साल की उम्र में उन्होंने एक छोटे से गैराज में एप्पल कंपनी खोली थी। जो महज दस साल के अंतराल में 2 बिलियन डॉलर व 4000 कर्मचरियों वाली विशाल कंपनी बन गई। लेकिन 30 के होते-होते स्टीव को खुद उनकी ही बनाई?कंपनी से निकाल दिया गया। स्टीव बेराजेगार हो गए, उनका देखा हुआ सपना सार्वजनिक तौर पर फेल होता दिखा, उनके जैसे तमाम उद्यमियों के लिए यह बडा झटका था। पर असल कहानी तो यहां से शुरू हुई थी। इसके बाद उन्होंने अपनी नई कंपनियां नेक्स्ट व पिक्सर शुरू कीं, जो आगे चलकर सिलकॉन वैली की सबसे चमचमाता नाम बन गई। आगे स्टीव ने खुद माना कि एप्पल से निकाला जाना उनके कॅरियर का सबसे बडा बे्रकथ्रू था, यह न हुआ होता तो शायद स्टीव स्टीव न होते। आज कॅरियर के फ्रंट पर स्टीव जॉब्स की यह छोटी सी कहानी लाखों युवाओं को सबक दे रही है, और बता रही है कि आपके पास किसी काम करने का खास गुण है, तो अच्छा होगा कि इन गुणों के जरिए कॅरियर मार्केट में बेस्ट डील अंजाम दें। यदि आप में काम का हुनर है, तो काम से दूसरों को मंत्रमुग्ध करने की कोशिश करें।
स्किल डेवलपमेंट का सरकारी प्रयास
आज सरकार अपने देश की कार्ययोग्य जनता की कार्यदक्षता बढाने हेतु प्रयासरत है। लिहाजा इस बार के वित्तीय बजट में सरकार ने नेशनल स्किल डेवलपमेंट फंड के अंतर्गत दिए जाने वाले फंड को 1000 करोड रुपये से बढाकर 2500 करोड कर दिया है। इसके अलावा के्रडिट गांरटी स्कीम व रोजगारपरक कोर्स संचालित करने वाले संस्थानों को सर्विस टैक्स के दायरे से बाहर किया गया है। यही नहीं, युवाओं की स्किल बेस्ड इंडस्ट्री में राह आसान करने के लिए सरकार बैंकों, के जरिए भी उन्हें वित्तीय मदद पहुंचाती है।
एनएसडीसी: स्किल्स होंगी आसान
देश में कौशलपूर्ण कामगारों, कर्मचरियों की जरूरत अरसे से महसूस की जा रही थी। इस कमी को पूरा करने के लिए अक्टूबर 2009 में एनएसडीसी (नेशनल स्किल डेवलेपमेंट कॉर्पोरेशन) की शुरुआत की गई। क्रमश: 49 व 51 फीसदी सरकारी व निजी सहभागिता से चलने वाली अपनी तरह की यह पहली संस्था सन 2022 तक देश में 50 करोड स्किल्ड इंप्लाई?बनाने का लक्ष्य लेकर चल रही है। अभी तक एनएसडीसी ने 21 की सेक्टर चिथ्ति किए हैं, जिनमें मैन्यूफैक्चरिंग, कंस्ट्रक्शन, ऑटोमोबाइल टैक्सटाइल, रिटेल, हेल्थकेयर आदि शामिल हैं। एनएसडीसी के अंतर्गत क्षेत्रीय कौशल परिषदों (एसएससी) का भी प्रावधान किया गया है, जहां क्षेत्रानुसार अलग-अलग सेक्टर में स्किल डेवलपमेंट प्रोग्राम चलाए जाएंगे।

LAW लॉ में करियर

आज लॉ ग्रेजुएशन के बाद करियर के कई नए ऑप्शंस सामने आए हैं। पारंपरिक तौर पर कोर्ट और वकालत का क्षेत्र तो है ही, इसके अलावा तमाम कंपनियां अपने यहां लीगल ऑफिसेज भी खोलती हैं। इसमें टैक्सेशन, सेल टैक्स, आदि मामलों को देखने के लिए लॉ ग्रेजुएट्स को रखा जाता है। अगर स्टूडेंट्स किसी दूसरे देश के लॉ के बारे में कुछ जानकारी हासिल करता है, तो उसे एब्रॉड में भी मौका मिलता है। इन सबके अलावा एक बडा काम लीगल राइटिंग का भी है। यही कारण है कि लॉ में करियर की राह आज ज्यूडिशियरी तक ही सीमित नहीं रह गई, बल्कि प्रशासन से लेकर मैनेजमेंट तक फैल गई है। इंडस्ट्री में लॉ प्रोफेशनल्स की कमी की वजह से अब क्लैट के माध्यम से सीनियर सेकंडरी के बाद ही एंट्री शुरू हो गई है। इस क्षेत्र में करियर के अनेक ऑप्शन होने के कारण यूथ के बीच लॉ ज्यादा पॉपुलर हो रहा है। अगर आपको भी यह फील्ड लुभा रहा है, तो किसी अच्छे कॉलेज में एंट्री लेकर लॉ में करियर बना सकते हैं।
कैसे लें एंट्री
लॉ में दाखिले के लिए अब अलग-अलग टेस्ट देने की बजाय कैट, मैट की तर्ज पर क्लैट शुरू किया गया है। कॉमन ला एडमिशन टेस्ट, यानी एक ही प्रवेश परीक्षा के जरिए लॉ यूनिवर्सिटी या कॉलेजेज में पढने का मौका मिल रहा है। इसके अलावा बहुत से कॉलेज अपने यहां अलग एंट्रेंस एग्जाम के जरिए भी एलएलबी में एडमिशन दे रहे हैं। 5 ईयर्स एलएलबी में 12वीं पास स्टूडेंट्स को आ‌र्ट्स, कॉमर्स या साइंस में 50 परसेंट होने चाहिए। इसके बाद दो वर्षीय एलएलएम में एडमिशन के लिए एलएलबी में 55 परसेंट मा‌र्क्स जरूरी हैं। बेहतर होगा कि आप जिस कॉलेज या यूनिवर्सिटी में एडमिशन ले रहे हैं, उस कॉलेज के बारे में पहले जानकारी ले लें।
क्वालिटी एजुकेशन पर फोकस
अक्सर स्टूडेंट्स सोचते हैं कि लॉ के लिए गवर्नमेंट इंस्टीट्यूट ही बेहतर है। विशेषज्ञों के अनुसार देश में बहुत सारे प्राइवेट लॉ कॉलेजेज हैं, जहां क्वॉलिटी एजुकेशन के साथ ही कैंपस प्लेसमेंट होता है। इसलिए स्टूडेंट्स उन्हीं कॉलेजों या इंस्टीट्यूट को प्रिफरेंस दें, जहां फैकल्टी मेंबर्स योग्य और अनुभवी हों, कैंपस प्लेसमेंट की सुविधा हो और इसके साथ ही क्वॉलिटी एजुकेशन पर फोकस हो। इस तरह की सुविधा इन दिनों अच्छी प्राइवेट लॉ यूनिवर्सिटीज और कॉलेज उपलब्ध करा रहे हैं। अगर आप क्वॉलिटी एजुकेशन लेना चाहते हैं, तो प्राइवेट इंस्टीट्यूट की तरफ रख कर सकते हैं।
स्कोप
लॉ की डिग्री हासिल करने के बाद स्टूडेंट्स के लिए कोर्ट में प्रैक्टिस तो कर ही सकते हैं, साथ ही स्टेट लेवल पर ज्यूडिशियरी में भर्ती के लिए समय-समय पर एग्जाम्स भी आयोजित किए जाते हैं। यहां प्रॉसिक्यूटर, जिसे सरकारी वकील कहा जाता है, के रूप में काम करने का मौका है। ज्यूडिशियरी सर्विसेज में एग्जाम के जरिए राज्यों में जूनियर स्तर पर जज की भर्ती होती है।
बाजारीकरण और उदारीकरण की व्यवस्था लागू होने के बाद देश भर में बैंकिंग और फाइनेंस सर्विसेज का एक्सपैंशन हुआ है। देशी-विदेशी कंपनियां शहर से लेकर गांव तक बिजनेस को बढावा दे रही हैं। इनके अलावा कॉरपोरेट सेक्टर भी अपने पैर पसार रहा है। ऐसी व्यवस्था में कॉमर्स और मैनेजमेंट के अलावा लार्ज स्केल पर लॉ ग्रेजुएट्स को भी जॉब्स मुहैया कराई जा रही हैं। कंपनियों और लीगल फर्म में बतौर ऑफिसर या एडवाइजर के रूप में लॉ स्टूडेंट्स को रखा जा रहा है।
प्राइवेट या गवर्नमेंट बैंक सिर्फ मैनेजर, अकाउंटेंट या क्लर्क ही नहीं, अपने यहां लॉ ऑफिसर भी नियुक्त कर रहे हैं। इसी तरह टैक्सेशन से जुडी कंपनियां अपने यहां लॉ के विशेषज्ञों को रख रही है। एमएनसी में मैनेजमेंट की टीम में एक लॉ एक्सपर्ट को भी मैनेजर के रूप में रखा जा रहा है। प्राइवेट कंपनियों और बैंकों के एक्सपैंशन ने लॉ ग्रेजुएट्स को जॉब के नए ऑप्शन दिए हैं। मीडिया व‌र्ल्ड में भी लॉ ग्रेजुएट्स के लिए रास्ते खुल रहे हैं। हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट की लॉ रिपोर्टिग के लिए न्यूज इंडस्ट्री लॉ प्रोफेशनल्स को प्रिफरेंस दे रही हैं। इसके अलावा टीचिंग के लिए आमतौर पर एलएलएम व नेट या पीएचडी छात्रों को करियर मुहैया कराया जा रहा है। अगर आपके पास लॉ की डिग्री है तो आपके लिए ऑप्शंस की कमी नहीं है।
करियर स्कोप
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फेफडे़ के कैंसर से बचाता है लहसुन

गुणों से भरपूर लहसुन कैंसर के खतरे को भी आधा करने की क्षमता रखता है। एक नए शोध में यह दावा किया गया है कि सप्ताह में दो दिन कच्चे लहसुन का सेवन करने से बढ़ रहे फेफड़ों के कैंसर के खतरे को आधा किया जा सकता है। यही नहीं यह धूमपान करने वाले व्यक्ति में भी इस बीमारी के खतरे को कम करता है। टेलीग्राफ के अनुसार, चीन के शोधकर्ताओं ने बताया कि जो लोग नियमित रूप से लहसुन का सेवन करते हैं उनमें फेफड़ों के कैंसर की बीमारी होने की संभावना 44 फीसद कम हो सकती है। यही नहीं ऐसे लोग धूमपान करते हैं तो भी इस बीमारी के खतरे को लहसुन 30 फीसद कम कर सकता है। फेफड़ों में कैंसर होने का सबसे बड़ा कारण धूमपान है। पहले भी शोधकर्ता लहसुन को कई गंभीर बीमारियों में प्रभावी बता चुके हैं। एक शोध में आत ट्यूमर के खतरे को लगभग एक तिहाई कम करने का दावा किया गया था। जियाग्सु प्रात के रोग नियंत्रण एवं रोकथाम केंद्र के वैानिकों ने फेफड़ों के कैंसर से पीड़ित 1424 रोगियों का 4500 स्वस्थ्य वयस्कों से तुलनात्मक अध्ययन किया। इसमें पाया गया कि जिन लोगों ने सप्ताह में कम से कम दो दिन कच्चा लहसुन खाया, उनमें फेफड़ों के कैंसर होने की संभावना काफी कम दिखी। हालाकि शोध में यह स्पष्ट नहीं हो सका है कि लहसुन को पका कर सेवन किए जाने पर यह कितना प्रभावी होगा। यह शोध कैंसर प्रिवेंशन रिसर्च में प्रकाशित हुआ है।