1947 में नई-नई आजादी का स्वाद चख रहे हिंदुस्तान के लिए पुरानी तकनीक,
अंग्रेजों द्वारा छोडी खस्ताहाल विरासत के साथ देशवासियों को दो वक्त की रोटी
मुहैया करा पाना टेढी खीर साबित हो रहा था। लिहाजा हम पूरी तरह दोयम दर्जे के
सोवियत, अमेरिकी गेहूं पर निर्भर हो गए। सबसे पहले विशेषज्ञों की नजर इन्हीं पर
पडी। विशेषज्ञों के अनुसार, आजादी के बाद सबसे बडे सेक्टर्स में से एक कृषि से
संबंधित जॉब्स की तरफ युवाओं का काफी रुझान बढा है। एक अनुमान के मुताबिक, ग्रामीण
जॉब समझे जाने वाले कृषि से संबंधित कोर्स करने वालों में शहरी युवा की संख्या 52
प्रतिशत तक बढ गई है। अगर इसी तरह की लोकप्रियता रही, तो कृषि आनेवाले समय में सबसे
अधिक रोजगार और पैसा देनेवाला क्षेत्र बन सकता है। सरकार भी इसकी महत्ता को समझते
हुए दूसरी हरित क्रांति की तैयारी कर रही है। निरंतर विकास का ही परिणाम है कि कभी
दूसरों के सामने कटोरा लेकर खडा रहने वाला भारत खुद अनाज का कटोरा बन गया है। इसके
लिए सबसे बडी जिम्मेदार रही 60-70 के दशक में आई हरित क्रांति, जिसने देश केगोदामों
को न केवल अनाज से भर दिया, साथ ही देश की रगों में भर दिया उससे भी ज्यादा
आत्मविश्वास। शायद यह पहली बार कृषि की उपजाऊ जमीन से मिला भरोसा था जिससे हमें
दूसरे सेक्टर्स में भी शानदार प्रदर्शन में मदद मिली। आगामी 15-20 सालों में इस जीत
का सुर्ख हरा रंग देश के हर गांव, हर खेत में नजर आने लगा। इस दौरान प्रति हेक्टेयर
अनाज उत्पादन में दस गुने से ज्यादा की बढोत्तरी हुई, खाद्य निगमों के गोदाम भर गए
और अकाल की मार से त्रस्त जनता के लिए भुखमरी गुजरे जमाने की बात हो गई। जब मिट्टी
में मेहनत की पौध रोपी जाएगी, उसे पसीने से सींचा जाएगा तो नतीजे तो चमत्कारी आएंगे
ही। पिछले दशकों में हमारे ऐसे ही कुछ प्रयास आज रंग ला रहे हैं।
पैदावार के मामले में हम आत्मनिर्भर हुए हैं व यही अन्न हमारे लिए विदेशी मुद्रा का भी जरिया बन रहा है। आज देश में करीब आधा दर्जन से ज्यादा अनाज व फसलें निर्यात की जाती हैं, जिससे अमूमन हर साल हमें 400-450 अरब रु. की विदेशी मुद्रा प्राप्त हो रही है। आज तो खेती व्यवसाय का रूप ले चुकी है, जिसमें आधुनिक युवा कॅरियर का जबर्दस्त स्कोप देख रहा है। यही कारण है कि इन दिनों प्रदेश से लेकर ब्लॉक, ग्राम स्तर तक खेती से जुडे अनेक कोर्स युवाओं की वरीयता सूची में हैं।
मीडिया
क्रांति ने बदला अंदाज
पराधीन भारत में हमारे देश के सभी प्रमुख नेता और नीति-नियंता यह जान गए थे कि देश का विकास तभी संभव हो सकेगा, जब सभी काम पारदर्शी तरीके से होंगे और सभी तरह के लोगों को अपनी बातें कहने का हक मिलेगा। इनकी महत्ता को समझते हुए हमारे संविधान ने हमें कई लोकतांत्रिक आजादियां दी हैं, जिसमें सबसे खास है हमारे मौलिक अधिकार। कहा जा सकता है कि मीडिया व संचार के साधनों ने 15 अगस्त 1947 को मिली राजनीतिक आजादी को सही अर्थो में घर-घर तक पहुंचाया।
21वीं सदी में इसका अंदाज, इसके तेवर 47 के पहले के औपनिवेशिक भारत के चोले को उतार फेंक चुके हैं और आज मीडिया प्रमुख जॉब प्रोवाइडर बन गया है। सोशल मीडिया ने इस बोलने की आजादी को अगले स्तर पर पहुंचाया है। पहले अखबार, फिर टीवी और अब फेसबुक व ट्विटर के सहारे हमने जो खुद को जाहिर करना शुरू किया है, वह शायद हमें मिली आजादी का सबसे बडा फायदा है। कॅरियर के तमाम परंपरागत विकल्पों के बीच मीडिया आज के जमाने का कॅरियर माना जा रहा है।
आइटी
चौंधियाई दुनिया की आंखें
ब्रिटिश शोषणकारी व्यवस्था पर तंज कसते हुए जाने माने राष्ट्रवादी विचारक दादाभाई नौरोजी ने एक बार कहा था कि देश में ब्रिटिश आर्थिक गतिविधियां एक विशालकाय फोम की तरह हैं, जो देश की समृद्धि के सागर को सोखकर इंग्लैंड में निचोड रही हैं। लेकिन उन्हें नहीं पता था कि इस फोम की तासीर तो दोतरफा होती है। आज यही तासीर अपना रंग दिखा रही है और देश की समृद्धि वापस इन्हीं सोख्तों के जरिए देश लौट रही है। समृद्धि की इस वापसी में आईटी सेक्टर का सबसे बडा योगदान है। बाजार जानकार तो आईटी क्षेत्र के अभ्युदय को आजादी के बाद देश में हुआ सबसे बडा परिवर्तन मानते हैं। 1991 में देश में चली उदारीकरण की हवा ने इस क्षेत्र को नई ताजगी दी व यह क्षेत्र देश का सबसे कमाऊ सेक्टर बन गया।
बदल गई सूरत- इकोनॉमी बदलाव लाती है, यह तो हमने सुना था लेकिन बदलाव की गति इतनी तेज होगी इसका हमें अंदाजा न था। देश की अर्थव्यवस्था के लिए आईटी सेक्टर कुछ ऐसे ही पविर्तन लेकर आया है। इसकी हालिया ग्रोथ रेट और देश की तरक्की में योगदान देखकर शायद ही कोई?यकीन करें कि यह वही देश है, जो बमुश्किल दो दशक पहले आईटी, कंप्यूटर के नाम पर कंगाल था। लेकिन आज इससे देश को प्रति वर्ष 100 अरब डॉलर का राजस्व मिलता है। यही नहीं 9 फीसदी वृद्धि दर के साथ देश केनिर्यात में भी इसकी 25 प्रतिशत हिस्सेदारी है। ब्रेन ड्रेन नहीं अब रिवर्स ब्रेन ड्रेन-यदि आपको याद हो अपने स्कूली दिनों की तो उस समय डिबेट कंपटीशन में एक मुद्दा तो हमेशा तैयार रहता था-ब्रेन ड्रेन यानि प्रतिभा पलायन। पर आज आईटी सेक्टर ने इस शब्द के निहितार्थ बदले हैं। जी हां, इन दिनों आईटी व बीपीओ सेक्टर में रिवर्स ब्रेन ड्रेन जोरों पर है। अब भारतीय प्रतिभाएं काम की तलाश में विदेश नहीं जा रहीं बल्कि उन्हें यहीं देश में अपनी क्षमता के अनुरूप काम मिल रहा है, तो विदेश से वापस लौटी स्वदेशी आईटी कंपनियों में हाथ आजमाने वाले युवा भी कम नहीं हैं। अब इसे कुदरत का बदला कहें या भारतीय मेधा की धमक, कभी नौकरी के लिए पश्चिम की बाट जोहने वाला भारत, अपनी कंपनियों टाटा, इंफोसिस, विप्रो के जरिये विदेशियों को भी नौकरियां ऑफर कर रहा है। जॉब माकेर् ट में प्रोफेशनलिज्म शब्द हम लोगों के लिए कुछ समय पूर्व तक अंजाना था। लेकिन आईटी, बीपीओ सेक्टर ने न केवल इन शब्दों से हमें परिचित कराया बल्कि कॅरियर ग्रोथ को अलग परिभाषा भी दी। यही कारण है कि आज देश में आईटी ब्रांच से बीटेक, एमटेक करने वाले युवाओं की संख्या सर्वाधिक है, वहीं बीसीए, एमसीए करने वाले स्टूडेंट्स भी कम नहीं हैं।
साइंस एंड टेक
प्रतिभा को दी ऊंचाई
भले ही देश में विज्ञान और प्रौद्योगिकी की परंपरा 5000 साल पुरानी हो, लेकिन आजादी के बाद हमारे पास साइंस टेक्नोलॉजी में बताने के लिए उल्लेखनीय कुछ भी न था। उस पर बाहरी दुनिया की तेज प्रगति हमें लगातार पीछे छोडे जा रही थी। तत्कालीन नीति-नियंताओं को यह पता चल गया था कि हमें यदि विकसित राष्ट्र बनना है, तो सांइस और टेक्नोलॉजी के साथ ही भारी उद्योगों को विकास की पटरी पर लाना होगा। विशेषज्ञों के अनुसार, विकसित राष्ट्र आप तभी बन सकते हैं, जब आपका औद्योगिक पहिया घूमेगा और अनेक तरह के रिसर्च से नए नए आविष्कार करेंगे। आज 65 साल बीत चुके हैं। बेशक दौड में हम अव्वल न हों, लेकिन शीर्ष देशों में हमारी पहचान जरूर है। दक्ष इंजीनियरों, वैज्ञानिकों की संख्या का मापदंड लें तो हम इस क्षेत्र में दुनिया की तीसरी बडी शक्ति हैं। अंतरिक्ष, न्यूक्लियर, बायोटेक, डिफेंस, टेलीकम्यूनिकेशन में हमने गजब की उडान भरी है। इस उडान के मायने इसलिए और भी हैं कि विरोधाभासों, कम संसाधनों व आबादी के बोझ के चलते पहले जहां देश की सामान्य जरुरतें पूरी होना मुश्किल थीं, आज रॉकेट प्रक्षेपण, बलेस्टिक मिसाइल, लडाकू विमानों के निर्माण के साथ ही हम अपनी सभी जरूरतें पूरी करने में सक्षम हैं।
नॉलेज बेस्ड इंडस्ट्री ने पलटे समीकरण-कहते हैं ज्ञान लिया जाए या दूसरों को बांटा जाए, दोनों ही सूरत में बढता है। भारत के ज्ञान आधारित इंडस्ट्री बनने के पीछे काफी कुछ इस मंत्र की भूमिका रही है। इस बदलाव को जानकार क्रांति का नाम दे रहे हैं। खुद सरकार इस चीज को संज्ञान में लेते हुए ज्यादा से ज्यादा युवाओं को शोध व विकास के काम में बढने को प्रेरित कर रही है। इस कडी में आज देश के 162 विश्वविद्यालय, 16 आईआईटी, 13 आईआईएम व सैकडों निजी संस्थानों से हर साल निकलने वाले स्नातक, परास्नातक, पीएचडी हमारे बदले आज की कहानी कह रहे हैं।
सपने ने दिखाई मंजिल : सालों पहले पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम ने अपने एक भाषण में कहा था कि सपने सच होने के लिए जरूरी है कि पहले आप सपने तो देखें। आज विज्ञान व प्रौद्योगिकी का क्षेत्र युवाओं में ऐसे ही सपने देखने की ललक पैदा कर रहा है। इसकी विस्तृत शाखाएं व विचार, युवाओं में जोश भरते हुए कह रहे हैं कि आगे बढो आसमां सामने ही है। जी हां, आज इस क्षेत्र में बडे परिर्वतन देखने को मिले हैं। आजादी के आस पास जहां इस क्षेत्र में जाने वाले लोग अतिविशिष्ट समझे जाते थे, तो आज सामान्य हाईस्कूल में पढने वाले छात्र भी अपनी वैज्ञानिक प्रतिभा से दुनिया को चमत्कृत कर रहे हैं। सरकार भी इस बीच साइंटिफिक पॉलिसी रिजोल्यूशन (1958), टेक्नोलॉजी पॉलिसी स्टेटमेंट(1983),साइंस एंड टेक्नोलॉजी पॉलिसी (2003) के माध्यम से युवा क्षमताओं को तराश रही है।
पैदावार के मामले में हम आत्मनिर्भर हुए हैं व यही अन्न हमारे लिए विदेशी मुद्रा का भी जरिया बन रहा है। आज देश में करीब आधा दर्जन से ज्यादा अनाज व फसलें निर्यात की जाती हैं, जिससे अमूमन हर साल हमें 400-450 अरब रु. की विदेशी मुद्रा प्राप्त हो रही है। आज तो खेती व्यवसाय का रूप ले चुकी है, जिसमें आधुनिक युवा कॅरियर का जबर्दस्त स्कोप देख रहा है। यही कारण है कि इन दिनों प्रदेश से लेकर ब्लॉक, ग्राम स्तर तक खेती से जुडे अनेक कोर्स युवाओं की वरीयता सूची में हैं।
मीडिया
क्रांति ने बदला अंदाज
पराधीन भारत में हमारे देश के सभी प्रमुख नेता और नीति-नियंता यह जान गए थे कि देश का विकास तभी संभव हो सकेगा, जब सभी काम पारदर्शी तरीके से होंगे और सभी तरह के लोगों को अपनी बातें कहने का हक मिलेगा। इनकी महत्ता को समझते हुए हमारे संविधान ने हमें कई लोकतांत्रिक आजादियां दी हैं, जिसमें सबसे खास है हमारे मौलिक अधिकार। कहा जा सकता है कि मीडिया व संचार के साधनों ने 15 अगस्त 1947 को मिली राजनीतिक आजादी को सही अर्थो में घर-घर तक पहुंचाया।
21वीं सदी में इसका अंदाज, इसके तेवर 47 के पहले के औपनिवेशिक भारत के चोले को उतार फेंक चुके हैं और आज मीडिया प्रमुख जॉब प्रोवाइडर बन गया है। सोशल मीडिया ने इस बोलने की आजादी को अगले स्तर पर पहुंचाया है। पहले अखबार, फिर टीवी और अब फेसबुक व ट्विटर के सहारे हमने जो खुद को जाहिर करना शुरू किया है, वह शायद हमें मिली आजादी का सबसे बडा फायदा है। कॅरियर के तमाम परंपरागत विकल्पों के बीच मीडिया आज के जमाने का कॅरियर माना जा रहा है।
आइटी
चौंधियाई दुनिया की आंखें
ब्रिटिश शोषणकारी व्यवस्था पर तंज कसते हुए जाने माने राष्ट्रवादी विचारक दादाभाई नौरोजी ने एक बार कहा था कि देश में ब्रिटिश आर्थिक गतिविधियां एक विशालकाय फोम की तरह हैं, जो देश की समृद्धि के सागर को सोखकर इंग्लैंड में निचोड रही हैं। लेकिन उन्हें नहीं पता था कि इस फोम की तासीर तो दोतरफा होती है। आज यही तासीर अपना रंग दिखा रही है और देश की समृद्धि वापस इन्हीं सोख्तों के जरिए देश लौट रही है। समृद्धि की इस वापसी में आईटी सेक्टर का सबसे बडा योगदान है। बाजार जानकार तो आईटी क्षेत्र के अभ्युदय को आजादी के बाद देश में हुआ सबसे बडा परिवर्तन मानते हैं। 1991 में देश में चली उदारीकरण की हवा ने इस क्षेत्र को नई ताजगी दी व यह क्षेत्र देश का सबसे कमाऊ सेक्टर बन गया।
बदल गई सूरत- इकोनॉमी बदलाव लाती है, यह तो हमने सुना था लेकिन बदलाव की गति इतनी तेज होगी इसका हमें अंदाजा न था। देश की अर्थव्यवस्था के लिए आईटी सेक्टर कुछ ऐसे ही पविर्तन लेकर आया है। इसकी हालिया ग्रोथ रेट और देश की तरक्की में योगदान देखकर शायद ही कोई?यकीन करें कि यह वही देश है, जो बमुश्किल दो दशक पहले आईटी, कंप्यूटर के नाम पर कंगाल था। लेकिन आज इससे देश को प्रति वर्ष 100 अरब डॉलर का राजस्व मिलता है। यही नहीं 9 फीसदी वृद्धि दर के साथ देश केनिर्यात में भी इसकी 25 प्रतिशत हिस्सेदारी है। ब्रेन ड्रेन नहीं अब रिवर्स ब्रेन ड्रेन-यदि आपको याद हो अपने स्कूली दिनों की तो उस समय डिबेट कंपटीशन में एक मुद्दा तो हमेशा तैयार रहता था-ब्रेन ड्रेन यानि प्रतिभा पलायन। पर आज आईटी सेक्टर ने इस शब्द के निहितार्थ बदले हैं। जी हां, इन दिनों आईटी व बीपीओ सेक्टर में रिवर्स ब्रेन ड्रेन जोरों पर है। अब भारतीय प्रतिभाएं काम की तलाश में विदेश नहीं जा रहीं बल्कि उन्हें यहीं देश में अपनी क्षमता के अनुरूप काम मिल रहा है, तो विदेश से वापस लौटी स्वदेशी आईटी कंपनियों में हाथ आजमाने वाले युवा भी कम नहीं हैं। अब इसे कुदरत का बदला कहें या भारतीय मेधा की धमक, कभी नौकरी के लिए पश्चिम की बाट जोहने वाला भारत, अपनी कंपनियों टाटा, इंफोसिस, विप्रो के जरिये विदेशियों को भी नौकरियां ऑफर कर रहा है। जॉब माकेर् ट में प्रोफेशनलिज्म शब्द हम लोगों के लिए कुछ समय पूर्व तक अंजाना था। लेकिन आईटी, बीपीओ सेक्टर ने न केवल इन शब्दों से हमें परिचित कराया बल्कि कॅरियर ग्रोथ को अलग परिभाषा भी दी। यही कारण है कि आज देश में आईटी ब्रांच से बीटेक, एमटेक करने वाले युवाओं की संख्या सर्वाधिक है, वहीं बीसीए, एमसीए करने वाले स्टूडेंट्स भी कम नहीं हैं।
साइंस एंड टेक
प्रतिभा को दी ऊंचाई
भले ही देश में विज्ञान और प्रौद्योगिकी की परंपरा 5000 साल पुरानी हो, लेकिन आजादी के बाद हमारे पास साइंस टेक्नोलॉजी में बताने के लिए उल्लेखनीय कुछ भी न था। उस पर बाहरी दुनिया की तेज प्रगति हमें लगातार पीछे छोडे जा रही थी। तत्कालीन नीति-नियंताओं को यह पता चल गया था कि हमें यदि विकसित राष्ट्र बनना है, तो सांइस और टेक्नोलॉजी के साथ ही भारी उद्योगों को विकास की पटरी पर लाना होगा। विशेषज्ञों के अनुसार, विकसित राष्ट्र आप तभी बन सकते हैं, जब आपका औद्योगिक पहिया घूमेगा और अनेक तरह के रिसर्च से नए नए आविष्कार करेंगे। आज 65 साल बीत चुके हैं। बेशक दौड में हम अव्वल न हों, लेकिन शीर्ष देशों में हमारी पहचान जरूर है। दक्ष इंजीनियरों, वैज्ञानिकों की संख्या का मापदंड लें तो हम इस क्षेत्र में दुनिया की तीसरी बडी शक्ति हैं। अंतरिक्ष, न्यूक्लियर, बायोटेक, डिफेंस, टेलीकम्यूनिकेशन में हमने गजब की उडान भरी है। इस उडान के मायने इसलिए और भी हैं कि विरोधाभासों, कम संसाधनों व आबादी के बोझ के चलते पहले जहां देश की सामान्य जरुरतें पूरी होना मुश्किल थीं, आज रॉकेट प्रक्षेपण, बलेस्टिक मिसाइल, लडाकू विमानों के निर्माण के साथ ही हम अपनी सभी जरूरतें पूरी करने में सक्षम हैं।
नॉलेज बेस्ड इंडस्ट्री ने पलटे समीकरण-कहते हैं ज्ञान लिया जाए या दूसरों को बांटा जाए, दोनों ही सूरत में बढता है। भारत के ज्ञान आधारित इंडस्ट्री बनने के पीछे काफी कुछ इस मंत्र की भूमिका रही है। इस बदलाव को जानकार क्रांति का नाम दे रहे हैं। खुद सरकार इस चीज को संज्ञान में लेते हुए ज्यादा से ज्यादा युवाओं को शोध व विकास के काम में बढने को प्रेरित कर रही है। इस कडी में आज देश के 162 विश्वविद्यालय, 16 आईआईटी, 13 आईआईएम व सैकडों निजी संस्थानों से हर साल निकलने वाले स्नातक, परास्नातक, पीएचडी हमारे बदले आज की कहानी कह रहे हैं।
सपने ने दिखाई मंजिल : सालों पहले पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम ने अपने एक भाषण में कहा था कि सपने सच होने के लिए जरूरी है कि पहले आप सपने तो देखें। आज विज्ञान व प्रौद्योगिकी का क्षेत्र युवाओं में ऐसे ही सपने देखने की ललक पैदा कर रहा है। इसकी विस्तृत शाखाएं व विचार, युवाओं में जोश भरते हुए कह रहे हैं कि आगे बढो आसमां सामने ही है। जी हां, आज इस क्षेत्र में बडे परिर्वतन देखने को मिले हैं। आजादी के आस पास जहां इस क्षेत्र में जाने वाले लोग अतिविशिष्ट समझे जाते थे, तो आज सामान्य हाईस्कूल में पढने वाले छात्र भी अपनी वैज्ञानिक प्रतिभा से दुनिया को चमत्कृत कर रहे हैं। सरकार भी इस बीच साइंटिफिक पॉलिसी रिजोल्यूशन (1958), टेक्नोलॉजी पॉलिसी स्टेटमेंट(1983),साइंस एंड टेक्नोलॉजी पॉलिसी (2003) के माध्यम से युवा क्षमताओं को तराश रही है।
मछली मछली कित्ता पानी
ReplyDeleteएड़ी तक …
मछली मछली कित्ता पानी
कमर तक …
मछली मछली …डुबक ……।
बचपन हो या युवावस्था या फिर ढलती उम्र
जीवन का पानी कभी एड़ी तक
कभी कमर तक और कभी डुबक
सब ख़त्म !
पर मछली,मछली का खेल,जीवन के रास्ते शाश्वत हैं
http://www.parikalpnaa.com/2013/12/blog-post_5.html