Friday, 16 December 2011
'आकाश' के लिए बुकिंग शुरू, 2500 रुपए कीमत
Aakaash tablet by chihragan |
दुनिया के सबसे सस्ता टैबलेट 'आकाश' का इंतजार खत्म होने वाला है। इसकी कीमत महज 2500 रुपए है। हालांकि अभी जो मॉडल बिक्री के लिए पेश किया गया है वह सिर्फ वाई-फाई पर ही चलता है।
'आकाश' के इस मॉडल का ऑपरेटिंग सिस्टम एंड्रॉयड 2.2 है। 'आकाश' में 366 मेगाहर्त्ज का प्रोसेसर और बैटरी 2100 एमएएच की है। इसके अलावा इसमें वाईफाई कनेक्टिविटी भी है।
'आकाश' को बनाने वाली कंपनी डेटाविंड के मुताबिक इसमें यूजर फोन के फीचर का भी फायदा उठा पाएंगे। अभी इसकी प्री बुकिंग शुरू की गई है।
आईआईटी राजस्थान और विदेशी कंपनी डाटाविंड ने मिलकर इस टैबलेट को बनाया है। मोबाइल कंप्यूटर की तरह दिखने वाला यह टैबलेट मोबाइल से थोड़ा बड़ा है। टचस्क्रीन होने की वजह से इसका की-बोर्ड वर्चुअल है। इसका इस्तेमाल उंगलियों अथवा विशेष पेन की सहायता से किया जा सकता है।
'आकाश' के इस मॉडल का ऑपरेटिंग सिस्टम एंड्रॉयड 2.2 है। 'आकाश' में 366 मेगाहर्त्ज का प्रोसेसर और बैटरी 2100 एमएएच की है। इसके अलावा इसमें वाईफाई कनेक्टिविटी भी है।
'आकाश' को बनाने वाली कंपनी डेटाविंड के मुताबिक इसमें यूजर फोन के फीचर का भी फायदा उठा पाएंगे। अभी इसकी प्री बुकिंग शुरू की गई है।
आईआईटी राजस्थान और विदेशी कंपनी डाटाविंड ने मिलकर इस टैबलेट को बनाया है। मोबाइल कंप्यूटर की तरह दिखने वाला यह टैबलेट मोबाइल से थोड़ा बड़ा है। टचस्क्रीन होने की वजह से इसका की-बोर्ड वर्चुअल है। इसका इस्तेमाल उंगलियों अथवा विशेष पेन की सहायता से किया जा सकता है।
और ऊंचे अमीर और नीचे गरीब
तकरीबन दो दशक पहले लागू की गई नव उदारवादी आर्थिक नीतियों और मुक्त बाजारवादी व्यवस्था का देश की अर्थव्यवस्था पर जो भी असर पड़ा हो, मगर इससे अमीरों और गरीबों के बीच की खाई और चौड़ी हुई है। आर्थिक सहयोग और विकास संगठन की ताजा रिपोर्ट यह सोचने को मजबूर करती है कि यदि भारत की अर्थव्यवस्था 1990 के दशक के मुश्किल दौर से बाहर निकलकर मजबूत हुई, तो इसका लाभ समाज के निचले तबके तक क्यों नहीं पहुंचा?
बल्कि इन दो दशकों में ऊपरी क्रम के दस फीसदी लोगों और निचले क्रम के दस फीसदी लोगों की आय में अंतर दोगुने से भी बढ़कर 12 गुना हो गया है। जबकि इसी दौर में देश ने दुनिया में अपनी आर्थिक बुलंदी के झंडे गाड़े हैं और फोर्ब्स तथा फॉरचुन जैसी समृद्धि और संपत्ति का ब्योरा देने वाली अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं की सूची में भारतीयों का दबदबा बढ़ा है। मगर तसवीर का दूसरा पहलू यह भी है कि इसी दौर में हम गरीबी से लड़ने में नाकाम रहे हैं, वरना आज भी देश में एक तिहाई से ज्यादा लोग गरीबी की रेखा से नीचे जीवन-यापन को मजबूर नहीं होते।
हालांकि इस असमानता को अनेक आर्थिक विशेषज्ञ गरीबी और अमीरी के फासले के तौर पर नहीं देखते, क्योंकि उनका मानना है कि निचले स्तर पर भी औसत आय में वृद्धि हुई है। उनके इस तर्क को यदि मान भी लिया जाए, तो इससे कैसे इनकार किया जा सकता है कि इन दो दशकों में जीवन-यापन की बुनियादी चीजें महंगी हुई हैं। कुछ समय पहले आई मानव विकास रिपोर्ट इसकी भयावह तसवीर पेश करती है, जिसके मुताबिक आमदनी, स्वास्थ्य और शिक्षा तक पहुंच के मामले में भारत की स्थिति बदतर हुई है।
हालत यह है कि 169 देशों की सूची में भारत 119 क्रम पर है। यह स्थिति इसलिए भी आई है, क्योंकि शहरों और गांवों के बीच फासला बढ़ रहा है, कृषि विकास दर में गिरावट आई है और मनरेगा जैसी योजना तक में धांधली के रास्ते ढूंढ लिए गए हैं। यह आर्थिक नियंताओं के लिए सोचने का कारण होना चाहिए कि आय में असमानता की एक बड़ी वजह वेतन में बढ़ती असमानता मानी गई है।
संगठित और असंगठित क्षेत्रों में इसमें भी काफी अंतर है। इस रिपोर्ट के मुताबिक दक्षिण अफ्रीका ही ऐसी उभरती अर्थव्यवस्था है, जिससे भारत की स्थिति को बेहतर कहा जा सकता है। मगर यह खुश होने की बात नहीं है, क्योंकि उभरती अर्थव्यवस्थाओं में गिने जा रहे चीन और ब्राजील हमसे बेहतर स्थिति में हैं। बहरहाल, खपत बढ़ने जैसे बेतुके तर्क देकर न तो अमीरों और गरीबों के बीच की खाई कम हो सकती है और न ही महंगाई पर काबू पाया जा सकता है।
The article is downloaded from google web.... With heartily, thankfully Regards.... If any One have problem using with this article, so please call or mail us with your detail, we unpublished or delete this Article.
बल्कि इन दो दशकों में ऊपरी क्रम के दस फीसदी लोगों और निचले क्रम के दस फीसदी लोगों की आय में अंतर दोगुने से भी बढ़कर 12 गुना हो गया है। जबकि इसी दौर में देश ने दुनिया में अपनी आर्थिक बुलंदी के झंडे गाड़े हैं और फोर्ब्स तथा फॉरचुन जैसी समृद्धि और संपत्ति का ब्योरा देने वाली अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं की सूची में भारतीयों का दबदबा बढ़ा है। मगर तसवीर का दूसरा पहलू यह भी है कि इसी दौर में हम गरीबी से लड़ने में नाकाम रहे हैं, वरना आज भी देश में एक तिहाई से ज्यादा लोग गरीबी की रेखा से नीचे जीवन-यापन को मजबूर नहीं होते।
हालांकि इस असमानता को अनेक आर्थिक विशेषज्ञ गरीबी और अमीरी के फासले के तौर पर नहीं देखते, क्योंकि उनका मानना है कि निचले स्तर पर भी औसत आय में वृद्धि हुई है। उनके इस तर्क को यदि मान भी लिया जाए, तो इससे कैसे इनकार किया जा सकता है कि इन दो दशकों में जीवन-यापन की बुनियादी चीजें महंगी हुई हैं। कुछ समय पहले आई मानव विकास रिपोर्ट इसकी भयावह तसवीर पेश करती है, जिसके मुताबिक आमदनी, स्वास्थ्य और शिक्षा तक पहुंच के मामले में भारत की स्थिति बदतर हुई है।
हालत यह है कि 169 देशों की सूची में भारत 119 क्रम पर है। यह स्थिति इसलिए भी आई है, क्योंकि शहरों और गांवों के बीच फासला बढ़ रहा है, कृषि विकास दर में गिरावट आई है और मनरेगा जैसी योजना तक में धांधली के रास्ते ढूंढ लिए गए हैं। यह आर्थिक नियंताओं के लिए सोचने का कारण होना चाहिए कि आय में असमानता की एक बड़ी वजह वेतन में बढ़ती असमानता मानी गई है।
संगठित और असंगठित क्षेत्रों में इसमें भी काफी अंतर है। इस रिपोर्ट के मुताबिक दक्षिण अफ्रीका ही ऐसी उभरती अर्थव्यवस्था है, जिससे भारत की स्थिति को बेहतर कहा जा सकता है। मगर यह खुश होने की बात नहीं है, क्योंकि उभरती अर्थव्यवस्थाओं में गिने जा रहे चीन और ब्राजील हमसे बेहतर स्थिति में हैं। बहरहाल, खपत बढ़ने जैसे बेतुके तर्क देकर न तो अमीरों और गरीबों के बीच की खाई कम हो सकती है और न ही महंगाई पर काबू पाया जा सकता है।
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Friday, 9 December 2011
वक्त गया, तो सब गया
नीरज कुमार सिंह
भिन्न-भिन्न कामों को करने के लिए लगाए गए समय और उनको करने के क्रम को सोच-विचार कर व्यवस्थित करना समय ही टाइम मैनेजमेंट कहलाता है। ठीक तरह टाइम मैनेजमेंट से आपकी दक्षता और प्रोडक्टिविटी बढ़ती है और काम सही समय पर पूरे होते हैं। दोस्तों अपने अक्सर लोग को कहते सुना होगा कि करना तो बहुत चाहते हैं, लेकिन समय की कमी आड़े आ जाती है। बात ऐसी नहीं है। सभी को दिन भर में समय 24 घंटे का ही मिलता है। कोई इसका अधिकतम उपयोग करता है तो कोई नहीं। अगर जिंदगी में कदम से कदम, मिला कर आगे बढ़ना है तो आज की सबसे बड़ी जरूरत समय प्रबंधन ही है।
प्रभावी रूप से टाइम मैनजमेंट करने के लिए, आपको लक्ष्य निर्धारित करने की जरूरत है। उचित लक्ष्य निर्धारित करने के बिना, आप परस्पर विरोधी प्राथमिकताओं में फंसकर एक भ्रम पर अपना समय व्यर्थ नष्ट कर देंगे। बचपन में एक कहावत सुनी होगी कि समय अमूल्य होता है। समय के साथ बचपन भले कहीं पीछे छूट गया, लेकिन इस कहावत का मतलब वैसे का वैसे ही है।
कैसे करें टाइम मैनेजमेंट
हम अपने काम करने की क्षमता को बढ़ा सकते हैं, बशर्ते हम अपने समय का ठीक तरह ख्याल रखें। इसे नष्ट न करें। इसके हिसाब से काम करने की प्लानिंग करें। टाइम मैनेजमेंट वह सबसे बड़ी कुंजी है, जो आपके भार को तो कम करती ही है, साथ ही साथ आपको औरों के मुकाबले सफलता के करीब लाती है। वहीं अगर आप समय बर्बाद करते हैं, तो तनाव बढ़ता है, तरह-तरह की समस्याएं पैदा होती है और ध्यान लक्ष्य से भटक जाता है। इसके साथ आपकी प्रोडक्टिविटी में भी कमी आ जाती है।
खुद को आंके
खुद को आंकने के लिए सबसे पहले जरूरी है कि आप एक डायरी मेनटेन करना शुरू कर दें। डायरी में आप रोज अपना समय कैसे बिताते हैं , इस बात का उल्लेख करें और ध्यान रखें कि जो कुछ भी आप लिखें , उसमें पूरी ईमानदारी बरतें। खुद का आकलन करने का यह सबसे अच्छा तरीका है। इससे आपको पता चलेगा कि आपने अपना कितना समय गैरजरूरी कामों में दिया। जब आप अकेले बैठकर इस बात पर गौर करेंगे तो दूसरे दिन खुद - ब - खुद अपने समय की कद्र करना शुरू कर देंगे।
प्लानिंग जरूरी
समय का समुचित उपयोग करने के लिए जरूरी है कि टाइम मैनेजमेंट की प्लानिंग सही तरीके से की जाए। रोज किए जाने वाले सारे कामों की लिस्ट तैयार करें और उन कामों पर अपना फोकस बनाए रखें। यह काम रोज सुबह सबसे पहले करें।
प्राथमिकताएं
अपनी प्राथमिकताओं को समझना जरूरी है। प्राथमिकताएं और अन्य दूसरे कामों की लिस्ट उनकी उपयोगिता के अनुसार बनाएं। आपने जिस काम को करने की समय सीमा पहले निर्धारित की है , उसे हर हाल में पहले करने की कोशिश करें। उसमें उसमें ज्यादा समय लग रहा है तो भले उसे छोड़ कर आगे बढ़े। नहीं तो आपका पूरा शेड्यूल खराब हो जाएगा। एक काम में उलझे रहेंगे तो कोई भी काम नहीं हो पाएगा। इससे एक बार फिर आप टेंशन में घिर जाएंगे।
ध्यान रखें :
- जो समय को बर्बाद करता है , समय उसको बर्बाद कर देता है। इसलिए समय का सही उपयोग कीजिए और दुनिया को जीत लीजिए।
- लोग कहते हैं कि समय से पहले और भाग्य से अधिक न किसी को मिला है और न किसी को मिलेगा , लेकिन आप समय के साथ चलकर देखिए।
- कठिन काम थोड़ा समय लेता है इसलिए खुद पर विश्वास कीजिए और योजना के साथ उसे करने की ठान लीजिए।
- समय का सही इस्तेमाल कीजिए और मौके का फायदा उठाइए , फिर आप विजेता बन सकते हैं।
- हर व्यक्ति के जीवन में सफलता पाने के लिए ईश्वर तीन अवसर देता है। पहला बचपन में , दूसरा जवानी में और तीसरा बुढ़ापे में। लेकिन सफल वही होता है , जो किसी भी एक अवसर का समय रहते लाभ उठाता है।
- आपका दिमाग एक समय में केवल एक ही विचार रख सकता है , जो सकारात्मक भी हो सकता है और नकारात्मक भी , लेकिन आप नकारात्मक सोच को सकारात्मक सोच में बदल सकते हैं , क्योंकि आप सब कुछ कर सकते हैं।
- समय आने पर ही गुणों की परख होती है , इसलिए गुणों को उजागर करने के लिए उचित समय की प्रतीक्षा कीजिए।
- समय एक तरह से धन है , जिसे या तो खर्च किया जा सकता है या उसका निवेश किया जा सकता है। यदि आप समय का समझदारी से निवेश करते हैं , तब आप सफल हो सकते हैं।
- पैसे की जरूरत समय के साथ बदलती रहती है , लेकिन यह इस बात पर निर्भर करता है कि उस वक्त आपका जीवन किस पड़ाव पर है और सफलता पाने के लिए आप कौन सा विकल्प चुनते हैं।
- संसार में सिर्फ चार अज्छी आदतें हैं , यानी समय का पालन , यथार्थ दृष्टि , कर्तव्यपरायणता और कार्य कुशलता। इन्हीं चार आदतों के बल पर मनुष्य सफलता प्राप्त करता है।
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भिन्न-भिन्न कामों को करने के लिए लगाए गए समय और उनको करने के क्रम को सोच-विचार कर व्यवस्थित करना समय ही टाइम मैनेजमेंट कहलाता है। ठीक तरह टाइम मैनेजमेंट से आपकी दक्षता और प्रोडक्टिविटी बढ़ती है और काम सही समय पर पूरे होते हैं। दोस्तों अपने अक्सर लोग को कहते सुना होगा कि करना तो बहुत चाहते हैं, लेकिन समय की कमी आड़े आ जाती है। बात ऐसी नहीं है। सभी को दिन भर में समय 24 घंटे का ही मिलता है। कोई इसका अधिकतम उपयोग करता है तो कोई नहीं। अगर जिंदगी में कदम से कदम, मिला कर आगे बढ़ना है तो आज की सबसे बड़ी जरूरत समय प्रबंधन ही है।
प्रभावी रूप से टाइम मैनजमेंट करने के लिए, आपको लक्ष्य निर्धारित करने की जरूरत है। उचित लक्ष्य निर्धारित करने के बिना, आप परस्पर विरोधी प्राथमिकताओं में फंसकर एक भ्रम पर अपना समय व्यर्थ नष्ट कर देंगे। बचपन में एक कहावत सुनी होगी कि समय अमूल्य होता है। समय के साथ बचपन भले कहीं पीछे छूट गया, लेकिन इस कहावत का मतलब वैसे का वैसे ही है।
कैसे करें टाइम मैनेजमेंट
हम अपने काम करने की क्षमता को बढ़ा सकते हैं, बशर्ते हम अपने समय का ठीक तरह ख्याल रखें। इसे नष्ट न करें। इसके हिसाब से काम करने की प्लानिंग करें। टाइम मैनेजमेंट वह सबसे बड़ी कुंजी है, जो आपके भार को तो कम करती ही है, साथ ही साथ आपको औरों के मुकाबले सफलता के करीब लाती है। वहीं अगर आप समय बर्बाद करते हैं, तो तनाव बढ़ता है, तरह-तरह की समस्याएं पैदा होती है और ध्यान लक्ष्य से भटक जाता है। इसके साथ आपकी प्रोडक्टिविटी में भी कमी आ जाती है।
खुद को आंके
खुद को आंकने के लिए सबसे पहले जरूरी है कि आप एक डायरी मेनटेन करना शुरू कर दें। डायरी में आप रोज अपना समय कैसे बिताते हैं , इस बात का उल्लेख करें और ध्यान रखें कि जो कुछ भी आप लिखें , उसमें पूरी ईमानदारी बरतें। खुद का आकलन करने का यह सबसे अच्छा तरीका है। इससे आपको पता चलेगा कि आपने अपना कितना समय गैरजरूरी कामों में दिया। जब आप अकेले बैठकर इस बात पर गौर करेंगे तो दूसरे दिन खुद - ब - खुद अपने समय की कद्र करना शुरू कर देंगे।
प्लानिंग जरूरी
समय का समुचित उपयोग करने के लिए जरूरी है कि टाइम मैनेजमेंट की प्लानिंग सही तरीके से की जाए। रोज किए जाने वाले सारे कामों की लिस्ट तैयार करें और उन कामों पर अपना फोकस बनाए रखें। यह काम रोज सुबह सबसे पहले करें।
प्राथमिकताएं
अपनी प्राथमिकताओं को समझना जरूरी है। प्राथमिकताएं और अन्य दूसरे कामों की लिस्ट उनकी उपयोगिता के अनुसार बनाएं। आपने जिस काम को करने की समय सीमा पहले निर्धारित की है , उसे हर हाल में पहले करने की कोशिश करें। उसमें उसमें ज्यादा समय लग रहा है तो भले उसे छोड़ कर आगे बढ़े। नहीं तो आपका पूरा शेड्यूल खराब हो जाएगा। एक काम में उलझे रहेंगे तो कोई भी काम नहीं हो पाएगा। इससे एक बार फिर आप टेंशन में घिर जाएंगे।
ध्यान रखें :
- जो समय को बर्बाद करता है , समय उसको बर्बाद कर देता है। इसलिए समय का सही उपयोग कीजिए और दुनिया को जीत लीजिए।
- लोग कहते हैं कि समय से पहले और भाग्य से अधिक न किसी को मिला है और न किसी को मिलेगा , लेकिन आप समय के साथ चलकर देखिए।
- कठिन काम थोड़ा समय लेता है इसलिए खुद पर विश्वास कीजिए और योजना के साथ उसे करने की ठान लीजिए।
- समय का सही इस्तेमाल कीजिए और मौके का फायदा उठाइए , फिर आप विजेता बन सकते हैं।
- हर व्यक्ति के जीवन में सफलता पाने के लिए ईश्वर तीन अवसर देता है। पहला बचपन में , दूसरा जवानी में और तीसरा बुढ़ापे में। लेकिन सफल वही होता है , जो किसी भी एक अवसर का समय रहते लाभ उठाता है।
- आपका दिमाग एक समय में केवल एक ही विचार रख सकता है , जो सकारात्मक भी हो सकता है और नकारात्मक भी , लेकिन आप नकारात्मक सोच को सकारात्मक सोच में बदल सकते हैं , क्योंकि आप सब कुछ कर सकते हैं।
- समय आने पर ही गुणों की परख होती है , इसलिए गुणों को उजागर करने के लिए उचित समय की प्रतीक्षा कीजिए।
- समय एक तरह से धन है , जिसे या तो खर्च किया जा सकता है या उसका निवेश किया जा सकता है। यदि आप समय का समझदारी से निवेश करते हैं , तब आप सफल हो सकते हैं।
- पैसे की जरूरत समय के साथ बदलती रहती है , लेकिन यह इस बात पर निर्भर करता है कि उस वक्त आपका जीवन किस पड़ाव पर है और सफलता पाने के लिए आप कौन सा विकल्प चुनते हैं।
- संसार में सिर्फ चार अज्छी आदतें हैं , यानी समय का पालन , यथार्थ दृष्टि , कर्तव्यपरायणता और कार्य कुशलता। इन्हीं चार आदतों के बल पर मनुष्य सफलता प्राप्त करता है।
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आसान पढ़ाई के ई-टूल्स
हर स्टूडेट के लिए क्लास के लेक्चर और उसके नोट्स बहुत जरूरी होते है। इन दिनों ऐसे कई गैजेट्स है, जो स्टूडेट्स की स्टडी में बेहद मददगार साबित हो सकते है। जानते है ऐसे गैजेट्स के बारे में..
एक स्टूडेंट के लिए क्लास रूम का एक-एक लेक्चर मायने रखता है। अगर लेक्चर को याद रखना हो तो उसके लिए जरूरी हैं नोट्स। गैजेट वर्ल्ड में ऐसे कई गैजेट हैं, जो विद्यार्थियों की पढ़ाई में काफी फायदेमद साबित हो सकते हैं। ये गैजेट्स न केवल उनकी पढ़ाई में मदद करेंगे, बल्कि उन्हें हाईटेक बनाने में भी मदद करेंगे :
टेबलेट
दोस्तो, इस मॉडर्न एज गैजेट ने कंप्यूटिंग की स्टाइल ही बदल दी है। सस्ती टेबलेट डिवाइस 'आकाश' टीनएजर्स में काफी पॉपुलर हो रही है। 7 और 10 इंच की स्क्रीन वाली यह डिवाइस आपकी कई समस्याएं चुटकियों में हल कर सकती है। इस पर न केवल आप चलते-फिरते ईमेल और नेट सर्फिंग कर सकते हैं, बल्कि सिलेबस से सबधित ईबुक्स, नोट्स भी पढ़ सकते हैं। टीचर्स के लाइव लेक्चर्स भी अटेंड कर सकते हैं और यूट्यूब जैसी साइट से सिलेबस से सबधित वीडियोज भी देख सकते हैं। वहीं इसमें वर्ड, एक्सल और पॉवरप्वाइंट के इंटीग्रेशन से अपनी क्रिएटिविटी को नया लुक दे सकते हैं। बाजार में इन दिनों मौजूद टेबलेट्स की कीमत ढाई हजार से लेकर 35 हजार रुपये तक है।
नोटबुक/नेटबुक
टेबलेट जहा स्माल कंप्यूटिंग के लिए बेस्ट है, वहीं मल्टीटॉस्किंग के लिए नोटबुक या नेटबुक बेस्ट है। ये डिवाइसेज प्रोफेशनल और क्रिएटिव स्टूडेंट्स की पहली पसंद हैं। इनकी मदद से डिस्टेंस स्टडी भी कर सकते हैं। साथ ही, मल्टीमीडिया जैसे हैवी काम के लिए नोटबुक को प्राथमिकता दे सकते हैं। इनमें स्टूडेंट्स अपने लेक्चर्स भी सेव कर सकते हैं। दरअसल, टेबलेट के साथ मेमोरी की प्रॉब्लम है, जबकि नोटबुक या नेटबुक के साथ ऐसा नहीं है।
एक्सटर्नल हार्डडिस्क
आपके पास नेटबुक हो या नोटबुक, एक पोर्टेबल हार्डड्राइव आपका डाटा बैकअप बनाने में हमेशा मदद करेगी। क्योंकि नेटबुक, नोटबुक या टेबलेट में डाटा स्पेस लिमिटेड होता है। वहीं फॉर्मेट होने की स्थिति में डाटा लॉस का खतरा रहता है। बाजार में 320 जीबी से लेकर 3 टीबी की हार्डडिस्क मौजूद है, वहीं वाई-फाई हार्डडिस्क भी लॉन्च हो चुकी है, जिसमें यूएसबी पोर्ट से कनेक्ट करने की जरूरत नहीं पड़ती।
पेनड्राइव
स्कूल या कॉलेज रोजाना एक्सटर्नल हार्डडिस्क ले जा सकना सभव नहीं है। ऐसे में पेनड्राइव काफी हेल्प कर सकती है। छोटे-मोटे प्रेजेंटेशन हों या स्कूल प्रोजेक्ट, आसानी से पेनड्राइव में कैरी कर सकते हैं। इन दिनों 2 से 32 जीबी तक की कॉमन पेनड्राइव्स के अलावा फुटबॉल, कार्टून वगैरह की शेप वाली डिजाइनर पेनड्राइव्स भी उपलब्ध हैं।
वाई-फाई या नेट डोंगल
इंटरनेट के बिना पढ़ाई असभव है। नेट आपकी स्टडी में काफी मदद कर सकता है। फिक्स्ड लाइन राउटर से एक वक्त में एक ही व्यक्ति नेट एक्सेस कर सकता है। लेकिन वाई-फाई राउटर से आप घर के किसी भी कोने में नेट एक्सेस कर सकते हैं। वहीं दूसरे लोग भी नेट से कनेक्ट रह सकते हैं। वाई-फाई के अलावा एक और ऑप्शन है नेट डोंगल का। इससे घर के अंदर और बाहर भी नेट एक्सेस कर सकते हैं।
पॉकेट स्कैनर
कई बार ऐसा होता है कि स्टूडेट्स को अचानक किसी नोट्स या बुक की फोटोकॉपी कराने की जरूरत पड़ जाती है। पेन स्कैनर इस दिक्कत को दूर कर सकता है। नोट्स की फोटोकॉपी कराने की बजाय स्टूडेट्स उन्हें स्कैन कर सकते हैं। यह पीडीएफ फॉर्मेट में स्कैन करता है। बाद में पेन को पीसी से सिक करके नोट्स को हार्डडिस्क में सेव कर सकते हैं। जल्द ही ऐसे माउस बाजार में आने वाले हैं, जो माउस के साथ-साथ स्कैनर का भी काम करेंगे। इन्हे किसी भी सरफेस पर इस्तेमाल किया जा सकेगा।
पेन डिक्टाफोन
क्लास में लेक्चर रिकॉर्ड करना चाहते हैं, तो पेन डिक्टाफोन सबसे अच्छा है। स्टूडेट्स क्लास में पढ़ाए जाने वाले लेक्चर्स या क्लासेज को आसानी से पेन में रिकॉर्ड कर सकते हैं। पेन में ईयरफोन जैक भी है, जिसे हेडफोन लगाकर सुना जा सकता है, वहीं पीसी से कनेक्ट करके ऑडियो फाइल को पीसी में सेव भी कर सकते हैं। इस पेन से लिखा भी जा सकता है।
ईबुक रीडर
अगर स्कूल बैग में किताबों का भारी-भरकम बोझ नहीं उठाना चाहते, तो ईबुक रीडर आपकी मदद कर सकता है। स्टूडेंट्स की जरूरत को देखते हुए आजकल कई सारी बुक्स ईबुक्स फॉर्मेट में उपलब्ध हैं। दोस्तो, इसमें आप बुकमार्क्स भी लगा सकते हैं। हालाकि टेबलेट्स में भी ईबुक रीडर का ऑप्शन है, लेकिन कुछ डिवाइसेज खासतौर पर बुक रीडिंग के लिए ही आती हैं।
लाइवस्क्राइब पल्स या ई-डायरी
नोट्स सजो कर रखने में दिक्कत होती है, तो हाईटेक तरीके से इस परेशानी से निबटा जा सकता है। ई-डायरी इसमें आपकी मदद कर सकती है। यह आपके नोट्स को डिजिटली कनवर्ट कर सकती है। यह आपकी लिखावट को भी आसानी से पढ़ लेती है। ई-डायरी एक बार में 100 पेज सेव कर सकती है। यूजर चाहे, तो डाटा को अपनी जरूरत के मुताबिक हैंड राइटिंग या टेक्स्ट नोट्स में भी कनवर्ट कर सकता है, जिसे बाद में पीसी में सॉफ्टवेयर इंस्टॉल करके यूएसबी केबल के जरिए बेहद आसानी से ट्रासफर किया जा सकता है।
यूजर इस डिवाइस के जरिये नाम, तारीख या नोट्स में सेव और किसी खास शब्द को टाइप करके सर्च भी कर सकता है। इस डिवाइस की मदद से बनाए गए नोट्स का प्रिंट भी लिया जा सकता है। हाथ से लिखे नोट्स को टेक्स्ट या ओरिजनल फॉर्मेट में ईमेल भी किया जा सकता है। हाथ से बने स्केचेज भी एडिटिंग सॉफ्टवेयर, जैसे-एमएस-पेंट, कोरल ड्रा या फोटोशॉप में एडिट किए जा सकते हैं।
पॉकेट प्रिंटर
कई बार अक्सर अचानक प्रिंटर की जरूरत पड़ जाती है। अब भारी-भरकम प्रिंटर का जमाना नहीं, प्रिंटर को आप पॉकेट में रख सकते हैं। इन पॉकेट प्रिंटर्स को आप स्मार्टफोन, टेबलेट या लैपटॉप से कनेक्ट करके प्रिंट ले सकते हैं। इनसे ईमेल, वेबपेजेज का प्रिंट लिया जा सकता है। हालाकि इनकी प्रिंटिग क्वालिटी प्रोफेशनल नहीं होती लेकिन इमरजेंसी में यह आपकी हेल्प कर सकता है।
नॉयज कैंसिलेशन हेडफोन
आस-पास शादी या पार्टी में तेज म्यूजिक बजता है, जिससे पढ़ाई में दिक्कत होती है। चाहे कितना भी शोर-शराबा क्यों न हो, ये नॉयज कैंसिलेशन हेडफोंस आपके कानों तक बाहर की आवाज नहीं आने देंगे। आप मन लगाकर पढ़ सकते है।
एमपी3 प्लेयर
पढ़ाई करते-करते बोर हो गए हैं, तो एमपी3 प्लेयर आपको फ्रेश होने में मदद करेगा। घटिया क्वालिटी के एमपी3 प्लेयर लेने से बेहतर है। अच्छी क्वालिटी की डिवाइस और हेडफोन का इस्तेमाल करें, ताकि आपके कानों और दिमाग को सुकून मिले।
[हरेन्द्र चौधरी]
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Wednesday, 7 December 2011
Monday, 28 November 2011
Saturday, 26 November 2011
Art Competition at Adarsh saraswati gyan mandir, Tulapur katka, Allahabad, UP.
We are organized A student motivation & Child Mental Development Art Competition on 23 November 2011 at Adarsh saraswati gyan mandir, Tulapur katka, Allahabad, UP.
Wednesday, 23 November 2011
Eye Donation..... And We?
लड़का चिल्लाया "पिताजी, वो देखो, पेड़ पीछे जा रहा हैं". उसके पिता ने स्नेह से उसके सर पर हाँथ फिराया. वो लड़का फिर चिल्लाया "पिताजी वो देखो, आसमान में बादल भी ट्रेन के साथ साथ चल रहे हैं". पिता की आँखों से आंसू निकल गए. पास बैठा आदमी ये... सब देख रहा था. उसने कहा इतना बड़ा होने के बाद भी आपका लड़का बच्चो जैसी हरकते कर रहा हैं. आप इसको किसी अच्छे डॉक्टर से क्यों नहीं दिखाते?? पिता ने कहा की वो लोग डॉक्टर के पास से ही आ रहे हैं. मेरा बेटा जनम से अँधा था, आज ही उसको नयी आँखे मिली हैं. नेत्रदान करे. किसी की जिंदगी में रौशनी भरे. PLEASE share this if u support eye donation.... By Chiragan
मशरूम ग्रामीण युवाओं का अपना रोजगार
मशरूम का उत्पादन ग्रामीण युवाओं के लिए एक अच्छा व्यवसाय साबित हो रहा है। मशरूम सेहत का रखवाला है, इसलिए मांग बढ़ रही है, पर आपूर्ति उतनी नहीं हो रही। ऐसे में यह व्यवसाय फायदे का सौदा है।
स्वरोजगार आज आजीविका कमाने का प्रमुख साधन बन चुका है। केंद्र सरकार हो या राज्य सरकारें, लगातार स्वरोजगार को बढ़ावा देने वाली योजनाओं पर बल दे रही हैं। इन्हीं स्वरोजगार योजनाओं में मशरूम उत्पादन भी एक है। इसे गांवों में छतरी व कुकुरमुत्ता आदि नामों से जाना जाता है। इसका उत्पादन ग्रामीण युवाओं के लिए एक अच्छा व्यवसाय साबित हो रहा है। डॉक्टर और डाइटीशियन मोटापा, हार्ट-डिजीज और डायबिटीज के रोगियों को इसका सेवन करने की सलाह देते हैं। इसका चलन निरंतर बढ़ता जा रहा है। भारत में मशरूम की मांग में इजाफा हो रहा है। इसे देखते हुए मशरूम के बड़े पैमाने पर उत्पादन की आवश्यकता है। वैसे तो मशरूम के उत्पादन में लगातार इजाफा हो रहा है, लेकिन जितनी मांग है, उसे देखते हुए वह बहुत कम है। हालांकि अब गांव ही नहीं, शहरों में भी शिक्षित युवा मशरूम उत्पादन को करियर के रूप में अपनाने लगे हैं। मशरूम की खेती को छोटी जगह और कम लागत में शुरू किया जा सकता है और लागत की तुलना में मुनाफा कई गुना ज्यादा होता है। बेरोजगार युवकों के लिए स्वरोजगार के नजरिए से भी यह सेक्टर फायदेमंद साबित हो सकता है। क्या है मशरूम
मशरूम एक पौष्टिक आहार है। इसमें एमीनो एसिड, खनिज, लवण, विटामिन जैसे पौष्टिक तत्व होते हैं। मशरूम हार्ट और डायबिटीज के मरीजों के लिए एक दवा की तरह काम करता है। मशरूम में फॉलिक एसिड और लावणिक तत्व पाए जाते हैं, जो खून में रेड सेल्स बनाते हैं। पहले मशरूम का सेवन विश्व के चुनिन्दा देशों तक सीमित था, पर अब आम आदमी की रसोई में भी उसने अपनी जगह बना ली है। भारत में उगने वाले मशरूम की दो सर्वाधिक प्रसिद्ध प्रजातियां वाइट बटन मशरूम और ऑयस्टर मशरूम है। हमारे देश में होने वाले वाइट बटन मशरूम का ज्यादातर उत्पादन मौसमी है। इसकी खेती परम्परागत तरीके से की जाती है। कहां पैदा हो सकता है मशरूम
मशरूम उत्पादन में मौसम का खास महत्व है, इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। मशरूम की एक वैराइटी वॉल वैरियल्ला के लिए तापमान 30 से 40 डिग्री सेल्सियस व नमी 80 से ज्यादा होनी चाहिए। इसका उत्पादन अप्रैल से अक्तूबर के बीच किया जाता है। ऑयस्टर मशरूम के लिए तापमान 20 से 30 डिग्री सेल्सियस तथा नमी 80 फीसदी से अधिक होनी चाहिए। इसके उत्पादन के लिए सितम्बर-अक्तूबर का महीना बेहतर माना जाता है। टेम्परेंट मशरूम के लिए 20 से 30 डिग्री सेल्सियस तापमान व 70 से 90 फीसदी नमी जरूरी है। इसका उत्पादन अक्तूबर से फरवरी के बीच ठीक रहता है। कितने दिन में तैयार हो जाता है मशरूम
मशरूम दो से तीन महीनों में कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं। मशरूम रेफ्रिजेरेटर में 3 से 6 दिनों तक ताजा बना रहता है। सामान्यत: एक बार में दो से तीन बड़ी पैदावार ली जा सकती हैं। कमाल का मशरूम
मशरूम से तरह-तरह के व्यंजन तैयार किए जा सकते हैं। मशरूम के प्रोडक्ट बना कर उनको बेचना एक अच्छा व्यवसाय हो सकता है। मशरूम पाउडर, मशरूम पापड़ और मशरूम का अचार तैयार करने का काम कुटीर उद्योग स्तर पर किया जा सकता है। मशरूम सैंडविच, मशरूम चावल, मशरूम सूप और मशरूम करी जैसे आइटम बाजार में पहले से ही काफी पॉपुलर हैं। भारतीय बागबानी अनुसंधान संस्थान बेंगलुरू ने नारंगी रंग का खूबसूरत मशरूम पैदा करने की तकनीक विकसित की है, जो पुष्प प्रेमियों के लिए आकर्षण का केंद्र है। फार्मास्युटिकल कंपनियों में भी मशरूम की मांग की जाने लगी है। खाने योग्य मशरूम की करीब दो हजार किस्मों में से 280 भारत में पैदा होती हैं। गुच्छी किस्म का मशरूम भारत में सबसे ज्यादा पैदा किया जाता है। घरेलू उपभोग की बजाय इसका एक बड़ा हिस्सा विदेशों में निर्यात किया जाता है। फैक्ट फाइल शैक्षिक योग्यता
आमतौर पर ऐसे प्रशिक्षण कार्यक्रमों में प्रवेश के लिए शैक्षिक ज्ञान और आयु सीमा संबंधी कोई बाध्यता नहीं होती, लेकिन मशरूम की खेती बड़े वैज्ञानिक तरीके से की जाती है, इसलिए तकनीकी पहलुओं को समझने के लिए अगर आप आठवीं या दसवीं पास हैं तो बेहतर होगा। पाठय़क्रम का स्वरूप
मशरूम उत्पादन में रुचि लेने वाले उम्मीदवारों के लिए देशभर के विभिन्न कृषि विश्वविद्यालयों व कृषि अनुसंधान केंद्रों में एक से दो हफ्ते और मासिक अवधि के कोर्स संचालित किए जाते हैं। इन पाठय़क्रमों का उद्देश्य मशरूम उत्पादन की तकनीक व बीजों की अच्छी नस्ल से रू-ब-रू कराना है। मशरूम का उत्पादन शुरू करने से पहले तकनीकी जानकारी हासिल करना बहुत जरूरी है। तकनीकी हुनर से ही अच्छा उत्पादन किया जा सकता है। मशरूम के लिए मौसम का विशेष ध्यान रखना पड़ता है, क्योंकि इसके उत्पादन में उचित तापमान और मौसम का खास महत्व होता है। सरकारी सहायता
मशरूम उत्पादन स्वरोजगार के लिहाज से अच्छा माना जा रहा है। यह काम कम पूंजी और छोटी जगह पर भी हो सकता है। सरकार कृषि से संबंधित इस क्षेत्र को प्रोत्साहित करने के लिए अनेक योजनाएं चला रही है। मशरूम उत्पादन को स्वरोजगार के रूप में अपनाने वाले उम्मीदवारों को भारत सरकार के कृषि मंत्रालय द्वारा पांच लाख रुपए तक की आर्थिक सहायता की व्यवस्था की जाती है। इसके अलावा एससी/एसटी उम्मीदवारों को सरकारी ऋण में राहत की भी व्यवस्था है। संस्थान
जीबी पंत युनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर एंड टेक्नोलॉजी, पंत नगर, उत्तराखंड
वेबसाइट: www.gbpuat.ac.in पादप रोग संभाग, भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान पूसा, नई दिल्ली
वेबसाइट: www.iari.res.in आणंद एग्रीकल्चर युनिवर्सिटी, आणंद, गुजरात
वेबसाइट: www.aau.in राजेन्द्र कृषि विश्वविद्यालय पूसा, समस्तीपुर, बिहार,
वेबसाइट: www.pusavarsity.org.in राष्ट्रीय खुंब अनुसंधान केंद्र, चम्बाघाट, सोलन, हिमाचल प्रदेश हिसार कृषि अनुसंधान, हिसार, हरियाणा इलाहाबाद एग्रीकल्चर इंस्टीटय़ूट, इलाहाबाद, यूपी कमाई की संभावनाएं
सामान्य तकनीक से मशरूम का उत्पादन करने वालों की तुलना में आधुनिक एवं ट्रेंड लोग कई गुना अधिक मशरूम का उत्पादन कर लेते हैं। हर हफ्ते कम से कम पांच से दस हजार रुपये तक कमा लेते हैं। उत्पादन की अधिकता सीधे-सीधे आय को कई गुना तक बढ़ा देती है। देश में मशरूम की बढ़ती डिमांड को तभी पूरा किया जा सकता है, जब इसकी पैदावार में तीव्र गति से इजाफा किया जाए।
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स्वरोजगार आज आजीविका कमाने का प्रमुख साधन बन चुका है। केंद्र सरकार हो या राज्य सरकारें, लगातार स्वरोजगार को बढ़ावा देने वाली योजनाओं पर बल दे रही हैं। इन्हीं स्वरोजगार योजनाओं में मशरूम उत्पादन भी एक है। इसे गांवों में छतरी व कुकुरमुत्ता आदि नामों से जाना जाता है। इसका उत्पादन ग्रामीण युवाओं के लिए एक अच्छा व्यवसाय साबित हो रहा है। डॉक्टर और डाइटीशियन मोटापा, हार्ट-डिजीज और डायबिटीज के रोगियों को इसका सेवन करने की सलाह देते हैं। इसका चलन निरंतर बढ़ता जा रहा है। भारत में मशरूम की मांग में इजाफा हो रहा है। इसे देखते हुए मशरूम के बड़े पैमाने पर उत्पादन की आवश्यकता है। वैसे तो मशरूम के उत्पादन में लगातार इजाफा हो रहा है, लेकिन जितनी मांग है, उसे देखते हुए वह बहुत कम है। हालांकि अब गांव ही नहीं, शहरों में भी शिक्षित युवा मशरूम उत्पादन को करियर के रूप में अपनाने लगे हैं। मशरूम की खेती को छोटी जगह और कम लागत में शुरू किया जा सकता है और लागत की तुलना में मुनाफा कई गुना ज्यादा होता है। बेरोजगार युवकों के लिए स्वरोजगार के नजरिए से भी यह सेक्टर फायदेमंद साबित हो सकता है। क्या है मशरूम
मशरूम एक पौष्टिक आहार है। इसमें एमीनो एसिड, खनिज, लवण, विटामिन जैसे पौष्टिक तत्व होते हैं। मशरूम हार्ट और डायबिटीज के मरीजों के लिए एक दवा की तरह काम करता है। मशरूम में फॉलिक एसिड और लावणिक तत्व पाए जाते हैं, जो खून में रेड सेल्स बनाते हैं। पहले मशरूम का सेवन विश्व के चुनिन्दा देशों तक सीमित था, पर अब आम आदमी की रसोई में भी उसने अपनी जगह बना ली है। भारत में उगने वाले मशरूम की दो सर्वाधिक प्रसिद्ध प्रजातियां वाइट बटन मशरूम और ऑयस्टर मशरूम है। हमारे देश में होने वाले वाइट बटन मशरूम का ज्यादातर उत्पादन मौसमी है। इसकी खेती परम्परागत तरीके से की जाती है। कहां पैदा हो सकता है मशरूम
मशरूम उत्पादन में मौसम का खास महत्व है, इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। मशरूम की एक वैराइटी वॉल वैरियल्ला के लिए तापमान 30 से 40 डिग्री सेल्सियस व नमी 80 से ज्यादा होनी चाहिए। इसका उत्पादन अप्रैल से अक्तूबर के बीच किया जाता है। ऑयस्टर मशरूम के लिए तापमान 20 से 30 डिग्री सेल्सियस तथा नमी 80 फीसदी से अधिक होनी चाहिए। इसके उत्पादन के लिए सितम्बर-अक्तूबर का महीना बेहतर माना जाता है। टेम्परेंट मशरूम के लिए 20 से 30 डिग्री सेल्सियस तापमान व 70 से 90 फीसदी नमी जरूरी है। इसका उत्पादन अक्तूबर से फरवरी के बीच ठीक रहता है। कितने दिन में तैयार हो जाता है मशरूम
मशरूम दो से तीन महीनों में कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं। मशरूम रेफ्रिजेरेटर में 3 से 6 दिनों तक ताजा बना रहता है। सामान्यत: एक बार में दो से तीन बड़ी पैदावार ली जा सकती हैं। कमाल का मशरूम
मशरूम से तरह-तरह के व्यंजन तैयार किए जा सकते हैं। मशरूम के प्रोडक्ट बना कर उनको बेचना एक अच्छा व्यवसाय हो सकता है। मशरूम पाउडर, मशरूम पापड़ और मशरूम का अचार तैयार करने का काम कुटीर उद्योग स्तर पर किया जा सकता है। मशरूम सैंडविच, मशरूम चावल, मशरूम सूप और मशरूम करी जैसे आइटम बाजार में पहले से ही काफी पॉपुलर हैं। भारतीय बागबानी अनुसंधान संस्थान बेंगलुरू ने नारंगी रंग का खूबसूरत मशरूम पैदा करने की तकनीक विकसित की है, जो पुष्प प्रेमियों के लिए आकर्षण का केंद्र है। फार्मास्युटिकल कंपनियों में भी मशरूम की मांग की जाने लगी है। खाने योग्य मशरूम की करीब दो हजार किस्मों में से 280 भारत में पैदा होती हैं। गुच्छी किस्म का मशरूम भारत में सबसे ज्यादा पैदा किया जाता है। घरेलू उपभोग की बजाय इसका एक बड़ा हिस्सा विदेशों में निर्यात किया जाता है। फैक्ट फाइल शैक्षिक योग्यता
आमतौर पर ऐसे प्रशिक्षण कार्यक्रमों में प्रवेश के लिए शैक्षिक ज्ञान और आयु सीमा संबंधी कोई बाध्यता नहीं होती, लेकिन मशरूम की खेती बड़े वैज्ञानिक तरीके से की जाती है, इसलिए तकनीकी पहलुओं को समझने के लिए अगर आप आठवीं या दसवीं पास हैं तो बेहतर होगा। पाठय़क्रम का स्वरूप
मशरूम उत्पादन में रुचि लेने वाले उम्मीदवारों के लिए देशभर के विभिन्न कृषि विश्वविद्यालयों व कृषि अनुसंधान केंद्रों में एक से दो हफ्ते और मासिक अवधि के कोर्स संचालित किए जाते हैं। इन पाठय़क्रमों का उद्देश्य मशरूम उत्पादन की तकनीक व बीजों की अच्छी नस्ल से रू-ब-रू कराना है। मशरूम का उत्पादन शुरू करने से पहले तकनीकी जानकारी हासिल करना बहुत जरूरी है। तकनीकी हुनर से ही अच्छा उत्पादन किया जा सकता है। मशरूम के लिए मौसम का विशेष ध्यान रखना पड़ता है, क्योंकि इसके उत्पादन में उचित तापमान और मौसम का खास महत्व होता है। सरकारी सहायता
मशरूम उत्पादन स्वरोजगार के लिहाज से अच्छा माना जा रहा है। यह काम कम पूंजी और छोटी जगह पर भी हो सकता है। सरकार कृषि से संबंधित इस क्षेत्र को प्रोत्साहित करने के लिए अनेक योजनाएं चला रही है। मशरूम उत्पादन को स्वरोजगार के रूप में अपनाने वाले उम्मीदवारों को भारत सरकार के कृषि मंत्रालय द्वारा पांच लाख रुपए तक की आर्थिक सहायता की व्यवस्था की जाती है। इसके अलावा एससी/एसटी उम्मीदवारों को सरकारी ऋण में राहत की भी व्यवस्था है। संस्थान
जीबी पंत युनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर एंड टेक्नोलॉजी, पंत नगर, उत्तराखंड
वेबसाइट: www.gbpuat.ac.in पादप रोग संभाग, भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान पूसा, नई दिल्ली
वेबसाइट: www.iari.res.in आणंद एग्रीकल्चर युनिवर्सिटी, आणंद, गुजरात
वेबसाइट: www.aau.in राजेन्द्र कृषि विश्वविद्यालय पूसा, समस्तीपुर, बिहार,
वेबसाइट: www.pusavarsity.org.in राष्ट्रीय खुंब अनुसंधान केंद्र, चम्बाघाट, सोलन, हिमाचल प्रदेश हिसार कृषि अनुसंधान, हिसार, हरियाणा इलाहाबाद एग्रीकल्चर इंस्टीटय़ूट, इलाहाबाद, यूपी कमाई की संभावनाएं
सामान्य तकनीक से मशरूम का उत्पादन करने वालों की तुलना में आधुनिक एवं ट्रेंड लोग कई गुना अधिक मशरूम का उत्पादन कर लेते हैं। हर हफ्ते कम से कम पांच से दस हजार रुपये तक कमा लेते हैं। उत्पादन की अधिकता सीधे-सीधे आय को कई गुना तक बढ़ा देती है। देश में मशरूम की बढ़ती डिमांड को तभी पूरा किया जा सकता है, जब इसकी पैदावार में तीव्र गति से इजाफा किया जाए।
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