छोटी-छोटी पूंजी के सहारे अभावग्रस्त व्यक्ति को अपने पैरों पर खडा करना माइक्रोफाइनेंस है। इनके दायरे में छोर्ट आय वाले वे सभी व्यक्ति होते हैं, जिनको अपना व्यवसाय चलाने के लिए मामूली रकम की दरकार होती है। दरअसल, इन लोगों को बैंक से छोटी रकम लेना मुश्किल होता है। इसलिए माइक्रोफाइनेंस संस्था ऐसे लोगों को पहचानकर कर्ज के रूप में ऋण देने के अलावा प्रशिक्षण भी देती है। आज देश की प्रतिव्यक्ति आय लगातार बढ रही है, कुल जीडीपी मूल्य के मामले में हम 45 लाख करोड का आंकडा पार करने वाले दुनिया क ी 12 अर्थव्यवस्थाओं में शामिल हो गए हैं, लेकिन देश में गरीबी कम नहीं हो रही है। देश की समृद्धि का सबसे बडा श्चोत मानी जाने वाली कृषि, युवाओं को आकर्षित कर पाने में विफल है। यहां माइक्रोफाइनेंस इस प्रश्न का सबसे मुफीद जवाब बन सकता है। माइक्रोफाइनेंस आज इन्हीं वित्तीय निर्णयों की मजबूत जमीन तैयार कर रहा है। अगर इस मॉडल को वृहद स्तर पर अपनाया जाता है, तो देश में गरीबी कम करने के साथ इससे जुडे लोगों का कॅरियर भी संवारा जा सकता है।
छोटे ऋण, बडे ख्वाब
आज माइक्रोफाइनेंस आम आदमी की आर्थिक बेहतरी का सबसे अच्छा विकल्प बन रहा है। यही कारण है कि सरकार भी इस दिशा में प्रयासरत है और अनेक तरह की सुविधाएं भी प्रदान कर रही है। यह ठीक है कि भारत के लिए यह कांसेप्ट नया है लेकिन लोन रिपेमेंट लेवल, एंटरपे्रन्योरशिप, सोशल एंटरप्रेन्योरशिप आदि में इसकी कामयाब भूमिका देखते हुए इसे तेजी से प्रमोट किया जा रहा है। इस कार्यक्रम के तहत न केवल टारगेट ग्रुप को लोन सब्सिडी प्रदान की जाती है, बल्कि एनजीओ, सेल्फ हेल्प गु्रप (एसएचजी) आदि के माध्यम से उपयुक्तप्रशिक्षण भी दिया जाता है। इन प्रशिक्षण कार्यक्रमों में इंटरप्रेन्योर डेवलेपमेंट प्रोग्राम (इडीआई) स्मॉल इंडस्ट्री सर्विसेज इंस्टीट्यूट (एसआईएसआई), सिडबी, नाबार्ड आदि कारगर भूमिका में होते हैं। ऐसे में यदि आपके पास एक अच्छी योजना व उसे क्रियान्वित करने की क्षमता है तो यकीन मानिए इंटरप्रेन्योरशिप का यह क्षेत्र आपके कॅरियर का ब्रेकथ्रू प्वाइंट बन सकता है। जरूरत है, तो बस स्किल पहचाने की।
गरीब आदमी, बेहतर उद्यमी
1976 में बांग्लादेश के चिटगांव यूनिवर्सिटी में पढाने वाले युवा प्रोफेसर मोहम्मद युनूस ने अपने कमाई से 27 डॉलर जरूरतमंद कारीगरों को ऋण के तौर पर दिए। उद्देश्य था आर्थिक तंगहाली से जूझ रहे इन लोगों के काम को गति देना। इन लोगों ने भी युनूस को निराश नहीं किया। उनका धंधा तो चमका ही साथ ही युवा प्रोफेसर को गरीब आदमी बेहतर उद्यमी होता है, यदि उसे आर्थिक सहूलियतें मुहैया कराईजाएं तो वह एक ईमानदार ऋण ग्राहक साबित होता है। का परिवर्तनकारी विचार भी मिला। पूरे माइक्रोफाइनेसिंग की धारणा इसी विचार पर टिकी है, जिसके सहारे आज बांग्लादेश ही नहीं, दुनिया के कई लाख परिवार पूरे स्वाभिमान के साथ अपने पैरों पर खडे हैं। इसकी कामयाबी का अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैंकि अकेले बांग्लादेश में ही 5.3 मिलियन लोग (ग्रामीण बैंक के माध्यम से) इस थ्योरी के सहारे अपनी जिंदगी संवार रहे हैं। भारत में भी यह सेक्टर युवाओं में आशा का संचार कर रहा है।
विजन से मिलता है लोन
यदि आपकेभीतर एक विजन है, लेकिन आर्थिक परिस्थितियां आपके पक्ष में नहीं हैं तो चिंता की जरूरत नहीं है। माइक्रोक्रेडिट यहां आपकी परेशानियों का हल है। आज इस क्षेत्र में कईक्रियान्वयन एजेसियां मसलन जिला ग्राम विकास अभिकरण, जिला शहरी विकास अभिकरण, खंड विकास कार्यालय पूरे देश में कार्यरत हैं, जो इंडीविजुअल व ग्रुप फ ाइनेंस की व्यवस्था करते हैं, लेकिन इसके लिए पहले आपको इन एजेसियों को अपनी योजना व उसकी रूपरेखा बतानी होगी। उसके बाद ये संस्थाएं आपके प्रोजेक्ट को निकटवर्ती बैंकों में प्रेषित करती हैं। जहां बैंक आपकी गतिविधि व उत्पादकता का अनुमान लगा आसान किस्तों पर ऋण उपलब्ध कराती है। यही नहीं इस दौरान आपको मिलने वाली सब्सिडी (अनुदान) को ऋण के साथ समायोजित किया जाता है।
सेवा के साथ कॅरियर भी
माइक्रोफाइनेंस आज व्यवसायिक सुविधाओं के अलावा सामाजिक उत्थान के क्षेत्र में भी अपना दायरा बढा रहा है। देश की कई सामजिक संस्थाएं इसकी ही मदद से समस्याओं व जनहित के मुद्दों की ओर फोकस कर रही हैं। इंटरवेंशन विद माइक्रोफाइनेंस फॉर एड्स एंड जेंडर एक्विलिटी (आइएमएजीइ) एक ऐसा ही इंटरवेंशन है, जो माइक्रोफाइनेंस सुविधाओं की मदद से दुनिया के कई हिस्सों में एड्स जागरूकता से लेकर महिला सशक्तीकरण जैसे कई कार्यक्रम चला रहा है। इन कार्यक्रमों में सिस्टर फॉर लाइफसबसे महत्वपूर्णहै। इस इंटरवेंशन में ऐसे समर्पित युवाओं का चयन किया जाता है जो पीडित मानवता के लिए काम करने को तत्पर हों। इस कार्यक्रम के प्रथम चरण में इन युवाओं के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। बाद में इन्हीं लोगों को अलग-अलग शहरों के प्रमुख सेंटर में भेज सुधार कार्यक्रमों को गति दी जाती है। देखा जा रहा हैकि आज जनसंख्या दबाव व तेजी से होते मशीनीकरण के चलते बेरोजगारी बडा संकट बन चुकी है। यह संकट उस वर्ग के लिए और भी विपदाकारी है, जो आर्थिक रूप से विपन्न है।
माइक्रोक्रेडिट, इस वर्ग को कई उम्दा विकल्प देती है। असल में माइक्रोक्रेडिट, फाइनेंसिंग की एक ऐसी धारणा है, जिसमें निम्न आय वर्ग के लोगों को व्यैक्तिक या समूह में आय अर्जन की गतिविधयों के लिए ऋण प्रदान किया जाता है। चूंकि यह ऋण आकार में छोटा होता है। इसलिए इसे माइक्रोफाइनेंस कहा जाता है। इन ऋणों के साथ सब्सिडी का भी प्रावधान होता है।
किस्मत संवारते कोर्सेज
देश में माइक्रफाइनेंस सेक्टर तेजी से बढ रहा है। उस लिहाज से अभी भी योग्य लोगों की कमी है। इस बीच बडी संख्या में सरकारी व प्राइवेट प्रोफेशेनल संस्थान माइक्रोफाइनेंसिंग के क्षेत्र में नए-नए कोसर्ेज के साथ प्रवेश कर रहे हैं। इसमे कई शॉर्ट टर्म ट्रेनिंग लेवल प्रोग्राम हैं तो कुछ डिग्री लेवल कोर्सेज (एमबीए) भी हैं। तो ग्राम, ब्लॉक, जिला स्तर पर भी स्वरोजगार कें द्रित प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाएं जा रहे हैं। इसके अलावा रूरल डेवलेपमेंट, रूरल मैनेजमेंट संस्थानों में भी इससे संबधित कार्यक्रम संचालित किए जाते हैं।
ग्रुप ग्रेडिंग करे राह आसान
समूह बनाकर फाइनेंस देने का प्रचलन पिछले दस सालों में प्रचलन में आया है, जिसमें ग्रामीण व नगरीय क्षेत्रों के लोगों के (10 से 20) समूह बनाए जाते हैं। इस समूह को बचत करना व पारस्परिक उधार लेनदेन आदि के गुण सिखाए जाते हैं। उसके बाद उस ग्रुप की समूह ग्रेडिंग की जाती है, जिसमें कुछ प्रश्नावलियों के माध्यम से उस समूह की एप्रोच देखी जाती है। (इन क्वैश्चनेयर में सफलता के लिए ग्रुप को न्यूनतम 60 फीसदी अंक लाने पडते हैं)। तत्पश्चात ही किसी वित्तीय संस्थान से उन्हें सामूहिक लाभार्जन गतिविधियों के लिए लोन मिलता है। इस दौरान समूह की गतिविधियों पर उक्त एजेसियां न केवल नजर रखती हैं बल्कि उन्हें समय-समय पर मार्गदर्शन भी देती हैं। अब तो इन एजेंसियों के साथ कई एनजीओ भी ऋण दिलवाने के काम में विशेष प्रयास कर रहे हैं।
जहां पगडंडियां लेती हैं हाईवे की शक्ल
स्वरोजगार के साथ ही सामाजिक प्रतिष्ठा दिलानेवाला क्षेत्र है माइक्रोफाइनेंस। यदि आप भी समाजिक परिवर्तनों की श्रृंखला में अपना योगदान देने चाहते तो इससे बेहतर क्षेत्र कोई नहीं है .. इन दिनों माइक्रोफाइनेंस के क्षेत्र में आएबूम के चलते यहां कॅरियर की कई पगडंडियां बडे रास्तों का रूप ले चुके हैं। आंकडे बताते हैं कि आज देश में 10 करोड जरूरतमंद परिवार ऐसे हैं, जिनको माइक्रोफाइनेंस की आवश्यकता है। तो वहीं तमाम सरकारी, गैर सरकारी प्रयासों के बावजूद अभी भी केवल देश के 10 फीसदी लोगों तक ही इसकी पहुंच बन पाई है।
प्राइवेट सेक्टर: पहल से बनती पहचान
माइक्रोफाइनेंस आज की तारीख में देश में आर्थिक सामाजिक बदलावों का अहम टूल बन कर उभरा है। इसकी सबसे बडी खासियत यही है कि यहां किसी भी व्यक्ति को शुरुआत करने के लिए फंड की नहीं बल्कि विशिष्ट सोच की दरकार होती है, जिसके सहारे आप आसानी से फंड के हकदार बन सकते हैं। वैसे भी सरकारी के साथ प्राइवेट सेक्टर भी इन दिनों माइक्रोफाइनेंस क्षेत्र में लोगों की वित्तीय जरूरतें पूरी करने के लिए आगे आ रहे हैं। खुद देश में पिछले कुछ समय में नॉन बैकिंग फाइनेंस कं पनी, एनजीओ, एमएफआई (माइक्रोफाइनेंस इंस्टीट्यूट) की संख्या तेजी से बढी है। ये संस्थान आज अपने प्रयासों से देश में जमीनी स्तर पर बदलाव के साथ, युवाओं को अवसरों की सौगात भी दे रहे हैं।
सरकारी क्षेत्र: बढी जागरूकता, बढे अवसर
दुनिया में माइक्रोक्रेडिट कॉन्सेप्ट को पॉपुलर बनाने वाले बांग्लादेश के मोहम्मद यूनिस का एक कथन काफी चचिर्त है जिसके अनुसार गरीब आदमी की स्थिति घने जंगल में उस बोनसाई पौधे की तरह होती है जो धूप पानी जैसे मौलिक संसाधनों के अभाव के कारण ग्रोथ नहीं पा पाता। ठीक उसी तरह समाज के अभावग्रस्त लोग भी संसाधनों तक पहुंच न हो पाने के चलते अपेक्षित ग्रोथ से दूर ही रह जाते हैं। आज गवर्नमेंट सेक्टर, गरीबों व संसाधनों के बीच इसीअंतर को पाटने में लगा है।
सेल्फ इंप्लॉयमेंट: सेल्फ मेड मैन बनने की राह
अपनी किस्मत अपने हाथ लिखने वालों के लिए माइक्रोक्रेडिट सेक्टर बहुत कुछ ऑफर करता है। वैसे भी फाइनेंसिंग के इस प्रारूप का मूल उद्देश्य स्वरोजगार को ही बढावा देना है। उस पर तेजी से बढती अर्थव्यवस्था के बीच सरकार भी इस क्षेत्र में (स्वरोजगार) रूचि दिखा रही है। अपने इन्हीं प्रयासों की कडी में आज सरकार, देश में वित्तीय संसाधन मुहैया कराने वाले संस्थानों की पूरी श्रृंखला खडी कर रही है।ं जिनकी मौजूदगी मेंआप एग्रीकल्चर, बी कीपिंग, ग्रॉसरी, डेयरी, हार्टीकल्चर, पौल्ट्री, जैसे क्षेत्रों में अवसर तलाश सकते हैं। ग्रामीण, कस्बाई क्षेत्रों में तो ये कार्यक्रम नए सामाजिक, आर्थिक परिवर्तनों के वाहक बन रहे हैं।
महिलाएं : फ्रंट रनर
महिलाओं के लिए इस फील्ड में अवसर बेहतर हुए हैं। सरकार भी आज इस तरह की लोन सुविधाओं के लिए महिलाओं को मुख्य टारगेट ग्रुप मानती है। इसके पीछे प्रमुख कारण सामाजिक परिवर्तनों में उनकी कारगर भूमिका के साथ वित्तीय विश्वसनीयता भी है। कई अध्ययनों से यह चीज सामने भी आई हैकि महिलाएं कर्ज राशि के इस्तेमाल में अपने पुरुष समकक्षों से ज्यादा जिम्मेदार होती हैं। पिछले कुछ सालों के लोन रिपेमेंट आंकडे ही उठाएं तो यह स्थिति साफहोजाती है।
पायनियर्स ऑफ वेलफेयर इकोनॉमी
अगर आप जनकल्याण के बारे में सोचते हैं और इस सोच को जमीनी रूप देने के लिए प्रतिबद्ध हैं, तो आप भी कल के यूनिस या अकूला बन सकते हैं..
आज बहुत से युवा हैं, जिनका दुनिया में सकारात्मक बदलाव व विपन्न तबके की खुाशहाली लक्ष्य है। मोहम्मद युनूस से लेकर विक्रम आकूला तक बहुत से लोग इस फेरहिस्त में हैं। मोहम्मद युनूस- एक सोच ने किया कमाल
एक सामान्य सी सोच को यदि बेहतर दिशा मिले तो वह क्या क माल कर सकती है, कोईबांग्लादेश के मोहम्मद युनूस से सीखे।जी हां, एक कॉलेज के प्रोफेसर के तौर पर कुछ लोगों की मदद से शुरू हुआ, उनका अभियान आज एक विचार की शक्ल ले चुका है, जिससे आज दुनिया के करोडों लोग लाभान्वित हो रहे हैं। माइक्रोफाइनेंसिंग के उनके विचार का उद्देश्य उन लेागों को वित्तीय मदद पहुंचाना था, जो भीषण गरीबी के कारण पारंपरिक बैंकों की नजरों से ओझल रहते हैं। अपने इस विचार को परखने के लिए उन्होंने सर्वप्रथम समाज के कमजोर तबके से आने वाले लोगों, कारीगरों, मामूली व्यवसाइयों, दस्तकारों आदि को बैंक लोन दिलाने में गारंटर बनना शुारू किया, जिसके आश्चर्यजनक फायदे देखने को मिले। 1983 में उनके ये प्रयास, बांग्लादेश ग्रामीण बैंक के रूप में सामने आए और 2006 में उन्हें अर्थशास्त्र के नोबेल प्राइज से नवाजा गया।
विक्रम अकूला- नाम ही ब्रांड हैं
देश में गरीबी, आर्थिक तंगहाली ने आंध्रप्रदेश के विक्रम अकूला को इस दिशा में सोचने को मजबूर किया। उन्होंने सर्वप्रथम देश के अभावग्रस्त क्षेत्रों से आने वाली गरीब महिलाओं को दस्तकारी, बुनाई, कताई, पशुापालन जैसे कामों के लिए फाइनेंस करना प्रारंभ किया। बेहतर रिपेंमेंट रेट व उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार ने उन्हें इस क्षेत्र में आगे बढने के लिए प्रेरित किया। 1997 में उन्होंने एक नॉन प्रॉफिट ऑर्गेनाइजेशन एसकेएस माइक्रोफाइनेंस की स्थापना की। आज इसकी कामयाबी का अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि यह देश के 22 प्रदेशों के करीब 70 लाख परिवारों तक पहुंच बना चुका है व इस दौरान दी गई 5 बिलियन डॉलर की कर्ज राशि यहां लेागों की आर्थिक सेहत संवार रही है।
सीके प्रहलाद- फोकस निचले तबके पर
जब भी आम संसाधनों की गरीब आदमी तक पुहंच की बात आएगी, अर्थशास्त्री सीके प्रहलाद का नाम जरूर लिया जाएगा। अपनी पुस्तक द फॉरच्यून एट द बॉटम आफपिरामिड में वे गरीबी निवारण का एक बिजनेस मॉडल सामने लाते हैं, जिसका मकसद समाजिक पिरामिड के सबसे निचले हिस्से तक वस्तुओं व सेवाओं की आमद बढाना है। अक्सर देखा जाता हैकि सरकारें समाज के अभावहीन वर्ग तक केवल जीवन की जरूरी चीजें पहुुंचना ही कर्त्तव्य समझती है, लेकिन जहां बात लग्जरी व सेवाओं की आती है, तो वे इससे दूर हटते नजर आती है। इस बिजनेस मॉडल में इन्हीं लोगों को टारगेट ग्रुप माना गया है। आज दुनिया की कई बडी कंपनियां उनके इसी मॉडल पर चल गरीब से गरीब आदमी तक अपनी सेवाएं, उत्पाद तो पहुंचा ही रहे हैं, साथ ही ग्रोथ की इबारत भी लिख रही हैं।
आमर्त्य सेन- मदर टेरेसा ऑफ इकोनॉमिक्स
अभी तक ज्यादातर अर्थशास्त्री इकोॉमिक के गूढ नियमों व गतिविधयों के बारे में ही फोकस किया करते थे, लेकिन आमर्त्य सेन इस लिहाज सें अलग है। उन्होंने वेलफेयर इकोनॉमी के पुरानी अवधारणा को प्रासांगिक बनाया व हूमेन डेवलपमेंट थ्योरी, फूड सेक्योरटी जैसे मुद्दों को अर्थशास्त्र की भाषा दी। उनकी अनेक थ्योरियों में सोशल च्वाइसेज सबसे महत्वपूर्णसमझी जाती है। नोबेल प्राइज विजेता सेन को अर्थशास्त्र का मदर टेरेसा कहा जाता है। उनके प्रभाव का अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि आज दुनिया की कईइकोनॉमी इनवर्टेड पिरामिड की अवधारणा (जिसमें समाज के सबसे निचले तबको को सबसे ऊपर रखा जाता है।)को अमल में ला रहे हैं।
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छोटे ऋण, बडे ख्वाब
आज माइक्रोफाइनेंस आम आदमी की आर्थिक बेहतरी का सबसे अच्छा विकल्प बन रहा है। यही कारण है कि सरकार भी इस दिशा में प्रयासरत है और अनेक तरह की सुविधाएं भी प्रदान कर रही है। यह ठीक है कि भारत के लिए यह कांसेप्ट नया है लेकिन लोन रिपेमेंट लेवल, एंटरपे्रन्योरशिप, सोशल एंटरप्रेन्योरशिप आदि में इसकी कामयाब भूमिका देखते हुए इसे तेजी से प्रमोट किया जा रहा है। इस कार्यक्रम के तहत न केवल टारगेट ग्रुप को लोन सब्सिडी प्रदान की जाती है, बल्कि एनजीओ, सेल्फ हेल्प गु्रप (एसएचजी) आदि के माध्यम से उपयुक्तप्रशिक्षण भी दिया जाता है। इन प्रशिक्षण कार्यक्रमों में इंटरप्रेन्योर डेवलेपमेंट प्रोग्राम (इडीआई) स्मॉल इंडस्ट्री सर्विसेज इंस्टीट्यूट (एसआईएसआई), सिडबी, नाबार्ड आदि कारगर भूमिका में होते हैं। ऐसे में यदि आपके पास एक अच्छी योजना व उसे क्रियान्वित करने की क्षमता है तो यकीन मानिए इंटरप्रेन्योरशिप का यह क्षेत्र आपके कॅरियर का ब्रेकथ्रू प्वाइंट बन सकता है। जरूरत है, तो बस स्किल पहचाने की।
गरीब आदमी, बेहतर उद्यमी
1976 में बांग्लादेश के चिटगांव यूनिवर्सिटी में पढाने वाले युवा प्रोफेसर मोहम्मद युनूस ने अपने कमाई से 27 डॉलर जरूरतमंद कारीगरों को ऋण के तौर पर दिए। उद्देश्य था आर्थिक तंगहाली से जूझ रहे इन लोगों के काम को गति देना। इन लोगों ने भी युनूस को निराश नहीं किया। उनका धंधा तो चमका ही साथ ही युवा प्रोफेसर को गरीब आदमी बेहतर उद्यमी होता है, यदि उसे आर्थिक सहूलियतें मुहैया कराईजाएं तो वह एक ईमानदार ऋण ग्राहक साबित होता है। का परिवर्तनकारी विचार भी मिला। पूरे माइक्रोफाइनेसिंग की धारणा इसी विचार पर टिकी है, जिसके सहारे आज बांग्लादेश ही नहीं, दुनिया के कई लाख परिवार पूरे स्वाभिमान के साथ अपने पैरों पर खडे हैं। इसकी कामयाबी का अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैंकि अकेले बांग्लादेश में ही 5.3 मिलियन लोग (ग्रामीण बैंक के माध्यम से) इस थ्योरी के सहारे अपनी जिंदगी संवार रहे हैं। भारत में भी यह सेक्टर युवाओं में आशा का संचार कर रहा है।
विजन से मिलता है लोन
यदि आपकेभीतर एक विजन है, लेकिन आर्थिक परिस्थितियां आपके पक्ष में नहीं हैं तो चिंता की जरूरत नहीं है। माइक्रोक्रेडिट यहां आपकी परेशानियों का हल है। आज इस क्षेत्र में कईक्रियान्वयन एजेसियां मसलन जिला ग्राम विकास अभिकरण, जिला शहरी विकास अभिकरण, खंड विकास कार्यालय पूरे देश में कार्यरत हैं, जो इंडीविजुअल व ग्रुप फ ाइनेंस की व्यवस्था करते हैं, लेकिन इसके लिए पहले आपको इन एजेसियों को अपनी योजना व उसकी रूपरेखा बतानी होगी। उसके बाद ये संस्थाएं आपके प्रोजेक्ट को निकटवर्ती बैंकों में प्रेषित करती हैं। जहां बैंक आपकी गतिविधि व उत्पादकता का अनुमान लगा आसान किस्तों पर ऋण उपलब्ध कराती है। यही नहीं इस दौरान आपको मिलने वाली सब्सिडी (अनुदान) को ऋण के साथ समायोजित किया जाता है।
सेवा के साथ कॅरियर भी
माइक्रोफाइनेंस आज व्यवसायिक सुविधाओं के अलावा सामाजिक उत्थान के क्षेत्र में भी अपना दायरा बढा रहा है। देश की कई सामजिक संस्थाएं इसकी ही मदद से समस्याओं व जनहित के मुद्दों की ओर फोकस कर रही हैं। इंटरवेंशन विद माइक्रोफाइनेंस फॉर एड्स एंड जेंडर एक्विलिटी (आइएमएजीइ) एक ऐसा ही इंटरवेंशन है, जो माइक्रोफाइनेंस सुविधाओं की मदद से दुनिया के कई हिस्सों में एड्स जागरूकता से लेकर महिला सशक्तीकरण जैसे कई कार्यक्रम चला रहा है। इन कार्यक्रमों में सिस्टर फॉर लाइफसबसे महत्वपूर्णहै। इस इंटरवेंशन में ऐसे समर्पित युवाओं का चयन किया जाता है जो पीडित मानवता के लिए काम करने को तत्पर हों। इस कार्यक्रम के प्रथम चरण में इन युवाओं के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। बाद में इन्हीं लोगों को अलग-अलग शहरों के प्रमुख सेंटर में भेज सुधार कार्यक्रमों को गति दी जाती है। देखा जा रहा हैकि आज जनसंख्या दबाव व तेजी से होते मशीनीकरण के चलते बेरोजगारी बडा संकट बन चुकी है। यह संकट उस वर्ग के लिए और भी विपदाकारी है, जो आर्थिक रूप से विपन्न है।
माइक्रोक्रेडिट, इस वर्ग को कई उम्दा विकल्प देती है। असल में माइक्रोक्रेडिट, फाइनेंसिंग की एक ऐसी धारणा है, जिसमें निम्न आय वर्ग के लोगों को व्यैक्तिक या समूह में आय अर्जन की गतिविधयों के लिए ऋण प्रदान किया जाता है। चूंकि यह ऋण आकार में छोटा होता है। इसलिए इसे माइक्रोफाइनेंस कहा जाता है। इन ऋणों के साथ सब्सिडी का भी प्रावधान होता है।
किस्मत संवारते कोर्सेज
देश में माइक्रफाइनेंस सेक्टर तेजी से बढ रहा है। उस लिहाज से अभी भी योग्य लोगों की कमी है। इस बीच बडी संख्या में सरकारी व प्राइवेट प्रोफेशेनल संस्थान माइक्रोफाइनेंसिंग के क्षेत्र में नए-नए कोसर्ेज के साथ प्रवेश कर रहे हैं। इसमे कई शॉर्ट टर्म ट्रेनिंग लेवल प्रोग्राम हैं तो कुछ डिग्री लेवल कोर्सेज (एमबीए) भी हैं। तो ग्राम, ब्लॉक, जिला स्तर पर भी स्वरोजगार कें द्रित प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाएं जा रहे हैं। इसके अलावा रूरल डेवलेपमेंट, रूरल मैनेजमेंट संस्थानों में भी इससे संबधित कार्यक्रम संचालित किए जाते हैं।
ग्रुप ग्रेडिंग करे राह आसान
समूह बनाकर फाइनेंस देने का प्रचलन पिछले दस सालों में प्रचलन में आया है, जिसमें ग्रामीण व नगरीय क्षेत्रों के लोगों के (10 से 20) समूह बनाए जाते हैं। इस समूह को बचत करना व पारस्परिक उधार लेनदेन आदि के गुण सिखाए जाते हैं। उसके बाद उस ग्रुप की समूह ग्रेडिंग की जाती है, जिसमें कुछ प्रश्नावलियों के माध्यम से उस समूह की एप्रोच देखी जाती है। (इन क्वैश्चनेयर में सफलता के लिए ग्रुप को न्यूनतम 60 फीसदी अंक लाने पडते हैं)। तत्पश्चात ही किसी वित्तीय संस्थान से उन्हें सामूहिक लाभार्जन गतिविधियों के लिए लोन मिलता है। इस दौरान समूह की गतिविधियों पर उक्त एजेसियां न केवल नजर रखती हैं बल्कि उन्हें समय-समय पर मार्गदर्शन भी देती हैं। अब तो इन एजेंसियों के साथ कई एनजीओ भी ऋण दिलवाने के काम में विशेष प्रयास कर रहे हैं।
जहां पगडंडियां लेती हैं हाईवे की शक्ल
स्वरोजगार के साथ ही सामाजिक प्रतिष्ठा दिलानेवाला क्षेत्र है माइक्रोफाइनेंस। यदि आप भी समाजिक परिवर्तनों की श्रृंखला में अपना योगदान देने चाहते तो इससे बेहतर क्षेत्र कोई नहीं है .. इन दिनों माइक्रोफाइनेंस के क्षेत्र में आएबूम के चलते यहां कॅरियर की कई पगडंडियां बडे रास्तों का रूप ले चुके हैं। आंकडे बताते हैं कि आज देश में 10 करोड जरूरतमंद परिवार ऐसे हैं, जिनको माइक्रोफाइनेंस की आवश्यकता है। तो वहीं तमाम सरकारी, गैर सरकारी प्रयासों के बावजूद अभी भी केवल देश के 10 फीसदी लोगों तक ही इसकी पहुंच बन पाई है।
प्राइवेट सेक्टर: पहल से बनती पहचान
माइक्रोफाइनेंस आज की तारीख में देश में आर्थिक सामाजिक बदलावों का अहम टूल बन कर उभरा है। इसकी सबसे बडी खासियत यही है कि यहां किसी भी व्यक्ति को शुरुआत करने के लिए फंड की नहीं बल्कि विशिष्ट सोच की दरकार होती है, जिसके सहारे आप आसानी से फंड के हकदार बन सकते हैं। वैसे भी सरकारी के साथ प्राइवेट सेक्टर भी इन दिनों माइक्रोफाइनेंस क्षेत्र में लोगों की वित्तीय जरूरतें पूरी करने के लिए आगे आ रहे हैं। खुद देश में पिछले कुछ समय में नॉन बैकिंग फाइनेंस कं पनी, एनजीओ, एमएफआई (माइक्रोफाइनेंस इंस्टीट्यूट) की संख्या तेजी से बढी है। ये संस्थान आज अपने प्रयासों से देश में जमीनी स्तर पर बदलाव के साथ, युवाओं को अवसरों की सौगात भी दे रहे हैं।
सरकारी क्षेत्र: बढी जागरूकता, बढे अवसर
दुनिया में माइक्रोक्रेडिट कॉन्सेप्ट को पॉपुलर बनाने वाले बांग्लादेश के मोहम्मद यूनिस का एक कथन काफी चचिर्त है जिसके अनुसार गरीब आदमी की स्थिति घने जंगल में उस बोनसाई पौधे की तरह होती है जो धूप पानी जैसे मौलिक संसाधनों के अभाव के कारण ग्रोथ नहीं पा पाता। ठीक उसी तरह समाज के अभावग्रस्त लोग भी संसाधनों तक पहुंच न हो पाने के चलते अपेक्षित ग्रोथ से दूर ही रह जाते हैं। आज गवर्नमेंट सेक्टर, गरीबों व संसाधनों के बीच इसीअंतर को पाटने में लगा है।
सेल्फ इंप्लॉयमेंट: सेल्फ मेड मैन बनने की राह
अपनी किस्मत अपने हाथ लिखने वालों के लिए माइक्रोक्रेडिट सेक्टर बहुत कुछ ऑफर करता है। वैसे भी फाइनेंसिंग के इस प्रारूप का मूल उद्देश्य स्वरोजगार को ही बढावा देना है। उस पर तेजी से बढती अर्थव्यवस्था के बीच सरकार भी इस क्षेत्र में (स्वरोजगार) रूचि दिखा रही है। अपने इन्हीं प्रयासों की कडी में आज सरकार, देश में वित्तीय संसाधन मुहैया कराने वाले संस्थानों की पूरी श्रृंखला खडी कर रही है।ं जिनकी मौजूदगी मेंआप एग्रीकल्चर, बी कीपिंग, ग्रॉसरी, डेयरी, हार्टीकल्चर, पौल्ट्री, जैसे क्षेत्रों में अवसर तलाश सकते हैं। ग्रामीण, कस्बाई क्षेत्रों में तो ये कार्यक्रम नए सामाजिक, आर्थिक परिवर्तनों के वाहक बन रहे हैं।
महिलाएं : फ्रंट रनर
महिलाओं के लिए इस फील्ड में अवसर बेहतर हुए हैं। सरकार भी आज इस तरह की लोन सुविधाओं के लिए महिलाओं को मुख्य टारगेट ग्रुप मानती है। इसके पीछे प्रमुख कारण सामाजिक परिवर्तनों में उनकी कारगर भूमिका के साथ वित्तीय विश्वसनीयता भी है। कई अध्ययनों से यह चीज सामने भी आई हैकि महिलाएं कर्ज राशि के इस्तेमाल में अपने पुरुष समकक्षों से ज्यादा जिम्मेदार होती हैं। पिछले कुछ सालों के लोन रिपेमेंट आंकडे ही उठाएं तो यह स्थिति साफहोजाती है।
पायनियर्स ऑफ वेलफेयर इकोनॉमी
अगर आप जनकल्याण के बारे में सोचते हैं और इस सोच को जमीनी रूप देने के लिए प्रतिबद्ध हैं, तो आप भी कल के यूनिस या अकूला बन सकते हैं..
आज बहुत से युवा हैं, जिनका दुनिया में सकारात्मक बदलाव व विपन्न तबके की खुाशहाली लक्ष्य है। मोहम्मद युनूस से लेकर विक्रम आकूला तक बहुत से लोग इस फेरहिस्त में हैं। मोहम्मद युनूस- एक सोच ने किया कमाल
एक सामान्य सी सोच को यदि बेहतर दिशा मिले तो वह क्या क माल कर सकती है, कोईबांग्लादेश के मोहम्मद युनूस से सीखे।जी हां, एक कॉलेज के प्रोफेसर के तौर पर कुछ लोगों की मदद से शुरू हुआ, उनका अभियान आज एक विचार की शक्ल ले चुका है, जिससे आज दुनिया के करोडों लोग लाभान्वित हो रहे हैं। माइक्रोफाइनेंसिंग के उनके विचार का उद्देश्य उन लेागों को वित्तीय मदद पहुंचाना था, जो भीषण गरीबी के कारण पारंपरिक बैंकों की नजरों से ओझल रहते हैं। अपने इस विचार को परखने के लिए उन्होंने सर्वप्रथम समाज के कमजोर तबके से आने वाले लोगों, कारीगरों, मामूली व्यवसाइयों, दस्तकारों आदि को बैंक लोन दिलाने में गारंटर बनना शुारू किया, जिसके आश्चर्यजनक फायदे देखने को मिले। 1983 में उनके ये प्रयास, बांग्लादेश ग्रामीण बैंक के रूप में सामने आए और 2006 में उन्हें अर्थशास्त्र के नोबेल प्राइज से नवाजा गया।
विक्रम अकूला- नाम ही ब्रांड हैं
देश में गरीबी, आर्थिक तंगहाली ने आंध्रप्रदेश के विक्रम अकूला को इस दिशा में सोचने को मजबूर किया। उन्होंने सर्वप्रथम देश के अभावग्रस्त क्षेत्रों से आने वाली गरीब महिलाओं को दस्तकारी, बुनाई, कताई, पशुापालन जैसे कामों के लिए फाइनेंस करना प्रारंभ किया। बेहतर रिपेंमेंट रेट व उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार ने उन्हें इस क्षेत्र में आगे बढने के लिए प्रेरित किया। 1997 में उन्होंने एक नॉन प्रॉफिट ऑर्गेनाइजेशन एसकेएस माइक्रोफाइनेंस की स्थापना की। आज इसकी कामयाबी का अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि यह देश के 22 प्रदेशों के करीब 70 लाख परिवारों तक पहुंच बना चुका है व इस दौरान दी गई 5 बिलियन डॉलर की कर्ज राशि यहां लेागों की आर्थिक सेहत संवार रही है।
सीके प्रहलाद- फोकस निचले तबके पर
जब भी आम संसाधनों की गरीब आदमी तक पुहंच की बात आएगी, अर्थशास्त्री सीके प्रहलाद का नाम जरूर लिया जाएगा। अपनी पुस्तक द फॉरच्यून एट द बॉटम आफपिरामिड में वे गरीबी निवारण का एक बिजनेस मॉडल सामने लाते हैं, जिसका मकसद समाजिक पिरामिड के सबसे निचले हिस्से तक वस्तुओं व सेवाओं की आमद बढाना है। अक्सर देखा जाता हैकि सरकारें समाज के अभावहीन वर्ग तक केवल जीवन की जरूरी चीजें पहुुंचना ही कर्त्तव्य समझती है, लेकिन जहां बात लग्जरी व सेवाओं की आती है, तो वे इससे दूर हटते नजर आती है। इस बिजनेस मॉडल में इन्हीं लोगों को टारगेट ग्रुप माना गया है। आज दुनिया की कई बडी कंपनियां उनके इसी मॉडल पर चल गरीब से गरीब आदमी तक अपनी सेवाएं, उत्पाद तो पहुंचा ही रहे हैं, साथ ही ग्रोथ की इबारत भी लिख रही हैं।
आमर्त्य सेन- मदर टेरेसा ऑफ इकोनॉमिक्स
अभी तक ज्यादातर अर्थशास्त्री इकोॉमिक के गूढ नियमों व गतिविधयों के बारे में ही फोकस किया करते थे, लेकिन आमर्त्य सेन इस लिहाज सें अलग है। उन्होंने वेलफेयर इकोनॉमी के पुरानी अवधारणा को प्रासांगिक बनाया व हूमेन डेवलपमेंट थ्योरी, फूड सेक्योरटी जैसे मुद्दों को अर्थशास्त्र की भाषा दी। उनकी अनेक थ्योरियों में सोशल च्वाइसेज सबसे महत्वपूर्णसमझी जाती है। नोबेल प्राइज विजेता सेन को अर्थशास्त्र का मदर टेरेसा कहा जाता है। उनके प्रभाव का अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि आज दुनिया की कईइकोनॉमी इनवर्टेड पिरामिड की अवधारणा (जिसमें समाज के सबसे निचले तबको को सबसे ऊपर रखा जाता है।)को अमल में ला रहे हैं।
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