Friday, 15 June 2012

The GreatTajmahal, My India, jaha kan kan me basta hai bharat by chiragan ताजमहल, जहा कण कण में बसता है भारत, मेरा भारत द्वारा चिरागन

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My india jaha kan kan me basata hai bharat Poster by chiragan जहा कण कण में बसता है भारत, मेरा भारत द्वारा चिरागन

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Ganga aarti at varanshi ghaat, My India By Chiragan बनारस में गंगा जी के घाट पर गंगा आरती, मेरा भारत द्वारा चिरागन

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Jaha kan kan me basata hai baharat, Mera bharat by Chiragan जहा कण कण में बसता है भारत, मेरा भारत द्वारा चिरागन

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Jaha kan kan me basata hai bharat, Mera Bharat by Chiragan जहा कण कण में बसता है भारत, मेरा भारत द्वारा चिरागन

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Dekh tere sansarki halat kya ho gayi bhagvaan. Save Water by chiragan देख तेरे संसार की हालत क्या हो गयी भगवान्. जल का सरक्षण करे. द्वारा चिरागन

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Kahi kuch aise hi halat humari prithavi ke bhi to nahi hai? by chiragan कही कुछ ऐसे ही हालात हमारी पृथ्वी के भी तो नहीं है? द्वारा चिरागन

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u learn from your mistakes & then other will learn from your success by chiragan आप अपनी गलतियों से सीखते है, और उसके बाद दुसरे आपके उपलब्धियों से, द्वारा चिरागन

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Mistakes increases your experience & experience decreases your mistakes by chiragan गलतिया आपके अनुभव को बढ़ाती है, और अनुभव आपकी गलतियों को घटाता है. द्वारा चिरागन

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Sunday, 10 June 2012

Save Water, Save Nation By : Chiragan

Save Water, Save Nation By : Chiragan

हिंदी अपना कर देश का मान बढ़ाये द्वारा : चिरागन

हिंदी अपना कर देश का मान बढ़ाये द्वारा : चिरागन Hindi apna kar desh kaa man badhaye

hum bharat me aamir hai aur aap by chiragan

hum bharat me aamir hai aur aap by chiragan
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aadha hindustan bhukha pet soyega by chiragan

aadha hindustan bhukha pet soyega by chiragan

कितनी अजीब बात है - जब लोग किसी को पसंद करते है तो उसकी बुराई भूल जाते है, और, जब किसी से नफरत करते है तो उसकी अच्छाई भूल जाते है...

कितनी अजीब बात है -
जब लोग किसी को पसंद करते है तो उसकी बुराई भूल जाते है,
और, जब किसी से नफरत करते है तो उसकी अच्छाई भूल जाते है...

जिन्दगी में अच्छे लोगो की तलाश मत करो, "खुद अच्छे बन जाओ" आपसे मिल कर शायद किसी की तलाश पूरी हो जाए...

जिन्दगी में अच्छे लोगो की तलाश मत करो,
"खुद अच्छे बन जाओ"
आपसे मिल कर शायद किसी की तलाश पूरी हो जाए...

पसंद आये तो शेयर जरूर करे...! गाड़ी से डर नहीं लगता साहेब,,,,, "पेट्रोल से दर लगता है"

Gadi se dar nahi lagta saheb, petrol se dar lagta hai. गाड़ी से डर नहीं लगता साहेब,,,,, "पेट्रोल से दर लगता है"

शिक्षा ही बेटी की पूंजी है... दहेज़ नहीं, उसे पढाओ, बेटी बचाओ,.... पढेगी बेटी, बढ़ेगी बेटी...!

शिक्षा ही बेटी की पूंजी है... दहेज़ नहीं, उसे पढाओ, बेटी बचाओ,.... पढेगी बेटी, बढ़ेगी बेटी...!
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Think a world, Without the TREE... SAVE TREE. by Chiragan

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Friday, 8 June 2012

क्या बेटियों के जन्म को हम सच मायने में लक्ष्मी मानते है by चिरागन

बच्चा पैदा होते ही अकसर डूबे हुए स्वर में लोगों को यह कहते हुए सुना है, लक्ष्मी आई है! हिन्दू धर्म में लक्ष्मी धन, वैभव और सम्पन्नता का प्रतीक मानी जाती हैं! क्या आपको यह बात कुछ अटपटी लगी यदि घर में लक्ष्मी आई है, तो खुशी होनी चाहिए, ना कि दुख। देश के अधिकतर लोग बेटी के पैदा होते ही उसके लिए धन एकत्र करना शुरू कर देते हैं। उसकी पढ़ाई-लिखाई, देख-रेख सभी इसलिए होती है ताकि उसकी शादी अच्छे घर में हो और वहां वह आराम से बस सके। दूसरी ओर बेटे की पढ़ाई और पालन-पोषण पूंजीनिवेश है। देखा जाए तो बेटी के पालन-पोषण को लेकर सामाजिक सोच में कहीं भी लक्ष्मी का रूप नजर नहीं आता। हर तरह से विचारधारा यही है, कि बेटी मतलब खर्च। हालांकि गर्भ में बच्चे का लिंग पता करना या बताना कानूनी जुर्म है, परन्तु वास्तव में लगभग सभी वर्ग के लोगों को यह सुविधा आसानी से उपलब्ध है। गर्भपात भी उतनी ही आसानी से करवाया जा सकता है। क्या बच्चे के पैदा होने से पहले उसका लिंग पता करना जुर्म है? सभी विकसित देशों में, गर्भ में ही बच्चे का लिंग पता करना सामान्य बात है। ऐसा जानने के बाद वे आने वाले बच्चे के स्वागत की तैयारी करने लगते हैं। लड़के के लिए नीले रंग के कपड़े, बिस्तर आदि और लड़की के लिए गुलाबी वस्त्र, कमरे की सजावट वगैरह। तो यह समझना जरूरी है कि अपने आप में गर्भ में लिंग का पता करवाना कोई गलत बात नहीं। हमारे देश में इसे जुर्म का दर्जा इसलिए मिला क्योंकि देश में लड़कों की तुलना में हर वर्ष लड़कियां कम होती ही जा रही हैं और राजस्थान जैसे राज्यों में ऐसे कई गांव हैं जहां पिछले 50 सालों से बारात नहीं आई। 2012 में भी देश में स्त्रियों की यह दयनीय दशा क्यों है, यह जानना जरूरी है। यह विषय हम सभी के दिल के बहुत पास है अथवा होना चाहिए क्योंकि हममें से ऐसा कोई भी नहीं जो इससे अछूता हो। हिंदी फिल्मों के प्रसिद्ध अभिनेता आमिर खान ने हाल ही में सामाजिक विषयों पर धारावाहिक शुरू किया है, सत्यमेव जयते। पिछले हफ्ते विषय था दहेज। प्रस्तुति भावनात्मक थी और दहेज को लेकर अपने दुखभरे किस्से, प्रोग्राम देखने वाले दर्शकों को छू रहे थे। ऐसा इसलिए क्योंकि कहीं न कहीं वे सभी इस व्यथा का हिस्सा हैं और यह उनका भी दर्द है। अंत में दहेज की प्रथा को कैसे समाज से निकाला जाए, विचार और सुझाव दिये गये। ऐसा कोई भी सुझाव नहीं था, जिससे यह समस्या पूरी तरह से हल हो सके। कानूनी रूप से लड़कियों की सुरक्षा, विकास और पुरुष से समानता के लिए बहुत से प्रयत्न किये गए हैं, परन्तु सामाजिक स्वीकृति के लिए जागरूक लोग भी रीति-रिवाजों की परंपरा को तोड़ने से डरते हैं। यह समझाना कि दहेज अपने आप में सामाजिक बुराई है, विवादास्पद है। हिन्दू धर्म की अनेक प्रथाओं की तरह दहेज की परिभाषा और प्रथा भी कई हजार सालों में विकृत हो गयी है। प्राचीन भारत में लड़के और लड़कियों के अधिकार को समान रूप से लड़की की शादी के वक्त, पिता अपनी संपित्त में से उसके उचित हिस्से को, गहनों आदि के रूप में देता था। ऐसा करने के पश्चात, लड़की का अपने भाई से संपत्ति को लेकर कोई मतभेद होने का कोई कारण नहीं होता था। आज आधुनिक कानून के अनुसार लड़की का भी पिता की संपत्ति पर उतना ही अधिकार है, जितना कि लड़के का। परन्तु जैसे अभी बताया, चाहे दहे ज के रूप में ही सही, सदियों से हिन्दू विवाह में ऐसा सामान्य था। अपने विकृत रूप में दहेज में पिता अपनी बेटी को क्या दे, यह लड़के वालों के लोभ पर निर्भर करने लगा और धीरे-धीरे सामाजिक अभिशाप बन गया। अपने मौजूदा विकृत रूप में, यह किसी भी बेटी के माता-पिता के लिए बोझ है और बेटी का पैदा होना एक दुखद समाचार है। कन्या के जन्म पर खुश होने वाले लोगों को भी यह चिंता तो रहती ही है कि एक दिन उसकी शादी करनी होगी, जिसके खर्च के लिए उसके बचपन से ही धन एकत्रित करना अनिवार्य है। शादी पर लगाये लाखों-करोड़ों रुपयों के बाद यदि लड़की यह कहते हुए घर आती है कि उसके ससुराल वाले उसे परेशान करते हैं या उसके पति से उसकी नहीं बनती तो उसके भविष्य से ज्यादा उसकी शादी पर खर्च की गयी रकम याद आती है। यदि शादी टूट गयी तो शादी पर किये प्रयत्न और पैसे पानी में मिल जायेंगे। दूसरी शादी का मतलब एक बार फिर उतना ही खर्चा। विकसित देशों की तरह हमारे समाज में भी स्त्री का स्थान वही हो सकता है, जो पुरुष का है, जहां माता-पिता को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता हो कि उनके घर लड़की पैदा हुई या लड़का। ऐसा होने के लिए अत्यंत आवश्यक है कि हमारे देश में भी विवाह की संस्था की आधार रेखा समान हो। धर्म कोई भी हो, शादी के लिए दम्पति को कोर्ट में जा कर पहले शादी को पंजीकृत करवाना अनिवार्य हो। जहां इस बात का खुलासा भी करना आवश्यक हो कि लड़की के पिता अपनी कन्या को क्या संपत्ति, धन, गहने आदि दे रहे हैं। यदि लड़की और लड़के के परिवार सादगी से शादी संपन्न करना चाहें तो कोर्ट के पास ऐसे प्रावधान भी होने चाहिये। हमारे देश में, जहां योग्य वर की कीमत बंधी हुई है, जैसे- आईएएस के कुछ करोड़, इंजीनियर के कुछ लाख। यदि सामाजिक स्वीकृति से शादी कोर्ट में ही संपन्न हो तो कन्या का होना किसी को भी बोझ नहीं लगेगा। बेटियों को भी माता-पिता प्रेमपू र्वक शिक्षित कर उतना ही अपना समझेंगे जितना कि बेटों को। जब शादी दो दिलों का मिलन होगी न कि सौदा, जब बेटी पराया धन नहीं कहलाएगी तभी होगा हमारे देश में भी लक्ष्मी का वास।
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तम्बाकू से होने वाले रोग कारन, लक्षण और उपचार by चिरागन

डॉ. सुनील वर्मा, फिजीशियन, सहारा अस्पताल, लखनऊ
तंबाकू जहर है। यह हर रूप में नुकसान पहुंचाता है। अकसर तंबाकू सेवन की शुरुआत कॉलेज में दोस्तों के साथ होती है, जो बाद में ऑफिस और घर में साथ नहीं छोड़ती। आंकड़ों से पता चलता है कि हर वर्ष भारत में धूम्रपान की वजह से लगभग नौ लाख लोगों की मौत होती है। इनमें कैंसर से मरने वालों की संख्या लगभग सात लाख होती है। इसकी वजह यह है कि तंबाकू में 3000 से अधिक प्रकार के हानिकारक रसायन पाये जाते हैं जो सीधे शरीर के हर हिस्से को नुकसान पहुंचाते हैं। जैसे अमोनिया, कार्बन मोनोऑक्साइड, मेथेनॉल, निकोटिन, कोलतार, रेडियोएक्टिव तत्व आदि। ’ग्लोबल यूथ टोबैको’ सव्रे के अनुसार, अपने देश में 65 प्रतिशत पुरुष और 20 प्रतिशत से अधिक महिलाएं किसी ना किसी रूप में तंबाकू का सेवन कर रही हैं। कैंसर के एक चौथाई मामले तंबाकू के कारण होते हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, एक सिगरेट पीने से आयु तकरीबन साढ़े पांच मिनट कम हो जाती है।
तंबाकू से होने वाली बीमारियां
तंबाकू चबाने से मुंह का कैंसर, खाने की नली, सांस की नली और जननांग का कैंसर होता है। धूम्रपान करने से मुंह का कैंसर, खाने और सां स की नली का कैंसर, फेफड़े, लैरिंक्स, पेट, पित्त की थैली और पेशाब की थैली का कैंसर होता है। हृदय रोग जैसे ब्लड प्रेशर बढ़ना और हार्ट अटैक। सांस का रोग जैसे क्रॉनिक ओबस्ट्रक्टिव पॉलमोनरी डिजीज। यही नहीं, स्मोकिंग से टीबी होने का खतरा भी चार गुना बढ़ जाता है। गर्भपात, बच्चों में विकृतियां और महिलाओं में अनियंत्रित माहवारी। धूम्रपान करने वाले लोगों में सेक्स संबंधी समस्या भी होती है। अकसर देखा गया है कि लोग तनाव को दूर करने के लिए तंबाकू का सेवन करते हैं लेकिन हकीकत इससे अलग है। तंबाकू का सेवन करने वाला व्यक्ति तनाव से ग्रस्त होता है।
भारत के आंकड़े
तंबाकू के सेवन से लगभग नौ लाख लोगों की मौत होती है। 20 प्रतिशत पुरुष और 5 प्रतिशत महिलाओं की मौत 30 से 69 वर्ष के बीच की अवस्था में तंबाकू की वजह से होती है। 62 प्रतिशत महिलाएं जो तंबाकू का सेवन करती हैं, वे 69 वर्ष के पहले ही मर जाती हैं। एक तिहाई से अधिक लोग बीड़ी का सेवन करते हैं। बीड़ी का एक चौथाई हिस्सा एक पूरी सिगरेट के बराबर नुकसान करता है। अगर कोई व्यक्ति रोजाना एक सिगरेट पीता है और वह दस साल तक जिंदा रहता है तो एक बीड़ी रोज पीने से वह छह साल में ही मर जाएगा। बीड़ी और सिगरेट पीने वाले व्यक्ति की मृत्युदर 50 प्रतिशत बढ़ जाती है।
सिगरेट में मिलने वाले हानिकारक रसायन
एक्टोन- यह एक प्रकार का सॉल्वेंट है जिसका प्रयोग केमिकल फैक्ट्रियों में किया जाता है। मेथेनॉल- मेथेनॉल एक प्रकार का पेट्रोलियम पदार्थ है। इसका सबसे अधिक प्रयोग अंतरिक्ष में जाने वाले रॉकेट में ईधन के रूप में किया जाता है। अमोनिक एसिड- इसका प्रयोग कपड़ा धोने वाले पाउडर और साबुन में किया जाता है। कैडमियम- इसका प्रयोग विद्युत वाली बैटरियों में किया जाता है जो तेजाब के बीच में लगाया जाता है। डीडीटी- यह एक प्रकार की कीटनाशक दवा है। इसका नुकसान इतना ज्यादा है कि सरकार ने इसको कीटनाशक के रूप में भी इस्तेमाल करने पर रोक लगा दी है। विनॉ यल क्लोराइड- इसका प्रयोग प्लास्टिक कंपनियां प्लास्टिक बनाने के मैटीरियल के रूप में करती हैं। आर्सेनिक- आर्सेनिक जानलेवा रसायन है। शरीर में जाने के बाद गुर्दे और फेफड़े बुरी तरह प्रभावित होते हैं। टॉलविन- यह एक प्रकार का औद्योगिक रसायन है।
तंबाकू से संबं धित विश्व के आंकड़े
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार वर्ष 2006 में हर वर्ष तंबाकू सेवन से मरने वाले लोगों की संख्या लगभग 54 लाख थी। जिस तरह धूम्रपान तेजी से बढ़ रहा है, यह आंकड़ा 2030 तक बढ़कर एक करोड़ हो जाएगा। विकासशील देशों में वर्ष 2030 तक धूम्रपान से मरने वाले लोगों की संख्या लगभग 80 लाख प्रति वर्ष हो जाएगी। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार 20वीं शताब्दी में तंबाकू की वजह से एक अरब लोगों की असमय मौत हो चुकी है। आंकड़ों से पता चलता है कि अमेरिका जैसे विकसित देशों में धूम्रपान करने वाले लोगों की संख्या घट रही है जबकि विकासशील देशों में इसकी संख्या तेजी से बढ़ रही है।
कैसे छोड़ें तंबाकू
तंबाकू छोड़ने के तीन महत्वपूर्ण चरण होते हैं। पहला क्विक डे। इसी दिन निर्धारित किया जाता है कि आज के बाद से तंबाकू के किसी भी उत्पाद का सेवन नहीं करना है। दूसरा विदड्राल पीरियड। इस दौरान, अगर तंबाकू की तलब होती है तो कुछ चबायें जैसे च्युइंगम, इलायची आदि। तीसरा और अंतिम चरण होता है मेंटेन फेज। इसमें तय करना होता है कि तंबाकू का सेवन पूरी दुनिया करे लेकिन यह मेरे लिए नुकसानदेह है। इसलिए इसे कभी हाथ नहीं लगाएंगे। इसके अलावा, अपने आसपास के लोगों को अपने फैसले से अवगत करायें। उनसे सहयोग लें। दिन में कम से कम दो-तीन बार नहायें। जब तंबाकू की लत लगे तब अपने को व्यस्त रखने की कोशिश करें। टीवी देखें या बच्चों के साथ मौज-मस्ती करें।
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पैरो में सुजन के कारन, लक्षण और उपचार by चिरागन

अकसर अपने देश में लोग पैरों की सूजन और चकत्तेदार काले निशान व दर्द से पीड़ित रहते हैं। यह शिकायत प्राय: बनी रहती है कि सुबह के वक्त पैरों में सूजन नहीं के बराबर रहती है, पर शाम होते-होते वहां सूजन हो जाती है। विशेषकर यह अवस्था अधेड़ उम्र की महिलाएं व अत्यधिक वजन लिए हुए गृहिणियों में पायी जाती हैं। इस अवस्था को मेडिकल भाषा में सीवीआई कहते हैं। अगर यह काले निशान आने पर सही इलाज नहीं कराया गया तो इनकी परिणित धीरे-धीरे घाव के रूप में दिखने लगती है।
अचानक आई सूजन
जीवन शैली में बदलाव, न चलने की आदत व ऑफिस में कम्प्यूटर के सामने घंटों बैठे रहने की मजबूरी, पैरों के लिए बड़ी घातक साबित हो रही है। इस तरह के लोगों के पैरों की नसों (वेन्स) में खून के कतरों के जमा होने का खतरा हमेशा मंडराता रहता है। नसों में खून का जमाव होने की अवस्था को मेडिकल भाषा में डीप वेन थोम्बोसिस (डीवीटी) कहते हैं। यह डीवीटी की अवस्था मरीज की जान को खतरे में डाल देती है। अगर समय रहते किसी वैस्क्युलर सर्जन से इलाज न कराया गया तो टांगों में जमे हुए खून के कतरे टूट जाते हैं और स्वतंत्र हो करके ऊपर दिल की ओर चढ़ जाते हैं। वहां से आगे जाकर फेफड़े की रक्त नली को जाम कर देते हैं। इस घटना को पल्मोनरी एम्बोलिज्म कहते हैं। यह अवस्था जानलेवा हो सकती हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि पैरों में अचानक आई सूजन जान जाने का सबब बन सकती है।
अन्य कारण
वेन्स की बीमारी के अलावा पैरों में सूजन के कई अन्य कारण भी होते हैं जैसे फील पांव यानी एलिफैन्टियेंसिस, गुर्दे व दिल का रोग, ब्लडप्रेशर की दवा का सेवन (’एम्लोडिपिन’ इत्यादि)। फील पांव का रोग अकसर नमी या तराई वाले इलाकों में ज्यादा पाया जाता हैं, जहां मच्छरों की बहुतायत होती हैं। सूजन के कारणों का निदान करने पर ही सूजन से छुटकारा मिल पाता है।
इलाज न करवाने का नतीजा
अगर पैरों की सूजन को ऐसे ही छोड़ दिया जाये तो इसके दो दुष्परिणाम होते हैं। एक तो उभरी हुई नसें फूलते- फूलते अन्त में फट जाती हैं और रक्त स्रव यानी ब्लीडिंग आरम्भ हो जाती है। कभी-कभी बहुत ज्यादा खून बहने के कारण अस्पताल में भर्ती होने की नौबत आ जाती है। दूसरा नुकसान यह होता है कि पैरों में खुजली शुरू होती हैं। खुजाने के बाद उससे पीले रंग का खून का सत रिसने लगता हैं और पैरों में एक्जि़मा पैदा हो जाता है जो अन्तत: गन्दे, गीले व लाइलाज़ घाव के रूप में परिवर्तित हो जाता हैं। इसलिये पैरों की सूजन को गम्भीरता से लें।
सूजन होने पर
पैरों में अचानक आई सूजन या स्थाई सूजन होने पर ऐसे अस्पताल में जायें जहां पर वैस्क्युलर सर्जरी का महकमा हो और वैस्क्युलर सर्जन की चौबीस घंटे की उपलब्धता हो। अस्पताल जाने से पहले सुनिश्चित कर लें कि वहां एंजियोग्राफी की सुविधा जरूर हो। साथ ही, आधुनिकतम जांच जैसे एमआरआई, फेफड़ों का परफ्यूजन स्केन, डॉप्लर स्टडी व वेनोग्राफी की सुविधाएं हों।
पैरों में स्थाई सूजन
विवाहेतर संबंध की पक्षध लेकिन दैहिक संबंधों के प्यार हो सकता है। बिना के भी कोई हमारे परिवा हो सकता है, जिसके परिवार भावनात्मक सके। खैर, ये निजी सकते हैं, लेकिन जो किया, वह जस्टीफाइ दूसरे ब्याह स् बीवी की संतान के देश में रहते हैं, वह अब भी औसतन संरचना के लिए परिवार सीमित में आमिर की ज्यादा लगी। पाने की जिद अपने बच्चे कोख से ब् जिससे अ उनके पति हैं। अपनी किसी मर्दवादी का जा पिता जन् व्य् ठ पैरों में स्थाई सूजन अगर पैरों में बराबर सूजन बनी रहती है और सुबह व शाम सूजन में कोई खास बदलाव नहीं आता तो इसके दो कारण होते हैं। एक तो गंदा खून ऊपर दिल की ओर ठीक से नहीं पहुंचता है, जिससे पैरों में ऑक्सीजन रहित गंदे खून का जमाव होना शुरू हो जाता है। सुबह के वक्त सूजन थोड़ा हल्का मालूम पड़ता है लेकिन शाम तक अपनी पुरानी अवस्था में लौट आता है। दूसरा कारण पैरों की अन्दरूनी वेन्स में रुकावट हो जाना है। इस रुकावट का ज्यादातर कारण शुरुआती दिनों में पर्याप्त इलाज के अभाव में खून के कतरे स्थाई रूप से पैरों की अन्दरूनी शिराओं (डीप वेन्स) में जमा हो जाना है। इसके चलते पैरों में एकत्र हुए गंदे खून के लिए ऊपर चढ़ने का मार्ग अवरुद्ध हो जाता है। इन सबका मिलाजुला असर पैरों में स्थाई सूजन के रूप में परिणत हो जाता है। इस अवस्था को मेडिकल भाषा में पीटीएस यानी पोस्ट थौम्बॉटिक सिन्ड्रोम कहते हैं। इसलिए आपको चाहिए कि जब कभी पैरों के वेन्स में खून के कतरों के जमाव का अंदेशा हो तो बगैर देर किये किसी वैस्क्युलर सर्जन से परामर्श लें और उनकी निगरानी में प्रभावी इलाज करायें।
सूजन व नीली नसें
जब कोई भी व्यक्ति सुबह नियमित रूप से नहीं टहलता है या उसकी पैदल चलने व व्यायाम करने की आदत अब तक बनी ही नहीं है, तो पैरों का ड्रेनेज सिस्टम बाधित हो जाता है और वेन्स के अन्दर स्थित कपाट यानी दरवाजे नार्मल तरीके से अपना काम नहीं कर पाते। इससे पैरों में गंदा खून एकत्रित होने लगता है और निर्धारित सीमा के बाद त्वचा के नीचे स्थित ऊपरी सतह की वेन्स यानी शिराएं, अत्यधिक खून के जमाव के कारण फूलनी शुरू हो जाती हैं। इन फूली हुई नसों को वेरीकोस वेन्स कहते हैं। ये फूली वेन्स केचुएं या मकड़ी के जाले की तरह त्वचा पर उभर आती हैं। अगर आपने आरामतलबी की दिनर्चया अपना ली तो ‘करेला नीम पर चढ़ने’ वाली कहावत लागू हो जाती है। इसके परिणामस्वरूप ये फूली हुई नसें साइज में और बड़ी हो जाती हैं।
इलाज की विधाएं
अगर पै एक तो ब्लीडिंग में भर्ती शुरू पैरों पिइलाज की विधाएं अगर पैर की सूजन अचानक आई होती है तो खून के कतरों को घोलने के लिए विशेष किस्म की दवाइयां खून की नली के जरिये दी जाती हैं। इसके लिए अस्पताल में आधुनिक आईसीयू की सुविधाएं होनी आवश्यक हैं। पैरों की सूजन वाले ज्यादातर मरीजों में ऑपरेशन की जरूरत कम पड़ती है, पर विशेष दवाइयों और अन्य बिना ऑपरेशन वाली खास तकनीकों का इस्तेमाल किया जाता है। मरीज को नियमित दवा, व्यायाम, व अन्य जरूरी सलाह का कड़ाई से पालन करना पड़ता है। आज के दौर में पैरों की सूजन के लिए लेजर तकनीक व आरएफए तकनीक का इस्तेमाल करना होता हैं, जिसमें खाल पर कोई कट नहीं लगाना पड़ता और मरीज अगले दिन ही काम पर वापस आ सकता है। पैरों की सूजन में लापरवाही न बरतें।
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सूरज की घातक किरणे by चिरागन

झुर्रि यां
येल यूनिवर्सिटी में डम्रेटोलॉजिस्ट के एसोसिएट क्लीनिकल प्रोफेसर एलीसिया डी जाल्का के अनुसार, सूर्य की अल्ट्रा वाइलेट (यूबी) यानी पराबैंगनी किरणों आपकी त्वचा की लचीलेपन को ढीला करती हैं। इससे त्वचा में सिलवटें दिखने लगती हैं और ये झुर्रियों का रूप ले लेती हैं। इससे आप समय से पहले बूढ़ी लगने लगती हैं। इससे त्वचा को नुकसान पहुंचने के साथ-साथ उसकी चमक भी कम होती है। ये डार्क सन स्पॉट्स के कारण भी बनतेहैं। ऐसे में, सन ब्लॉक्स पहनने और सूरज की तेज किरणों से बचाने वाले कपड़े पहनने से भी इसकी किरणों से होने वाले नुकसान को कम किया जा सकता है। सूरज की किरणों के कारण सन डैमेज होना मुमकिन है यानी प्रतिदिन लंबे समय तक यदि आप सूरज की किरणों सहेंगी तो यह आपकी त्वचा के सेल्स के डीएनए की क्षति का कारण बनेगा। ऐसे में या तो ये सेल्स खत्म हो जाते हैं या फिर अपने मैकेनिज्म सिस्टम के जरिये रिपेयर हो जाते हैं। यदि नुकसान बहुत ज्यादा गंभीर होता है और सेल्स इन्हें पर्याप्त रूप से रिपेयर नहीं कर पाए तो ये स्किन कैंसर के रूप में भी सामने आ सकते हैं।
संक्रामक बीमारी
बहुत ज्यादा देर तक सूरज की किरणों को झेलते रहने का निगेटिव असर इम्यून सिस्टम पर भी पड़ता है जो बीमारियों से लड़ने वाला हमारे शरीर की प्राकृतिक रक्षा पण्राली है। यूवी किरणों बैक्टीरियल एजेंट से प्रतिरोधक क्षमता को कमजोर करती हैं और संक्रमण कां खतरा बढ़ाती हैं। यूवी रेडिएशन स्मॉल पॉक्स, हर्पीज सिप्लेक्स वायरस और मुंह के छाले आदि का कारण बनते हैं।
आंखों की केयर
कॉन्रेल यूनिवर्सिटी मेडिकल कॉलेज में डम्रेटोलॉजिस्ट के क्लीनिकल एसोसिएट प्रो. स्टाकी पी. सलोव के अनुसार सूरज की किरणों में बहुत ज्यादा समय तक रहना मोतियाबिंद का कारण बनता है। यह मस्क्युलर डिजेनरेशन की ऐसी स्थिति है जिसे पट्रेजियम कहते हैं तथा जिनमें आंखों के सफेद हिस्से में पीले-पीले धब्बे से नजर आने लगते हैं। उनके अनुसार चाहे आप मानें या न मानें लेकिन ज्यादा देर तक सूरज की तेज किरणों में रहने के कारण आपकी आंखों में मेलानोमा का विकास होता है। इसलिए घर से निकलने से पहले अच्छी कंपनी के सनग्लासे स जो यूवी प्रोटेक्शन वाले हों, को पहनना न भूलें।
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तंबाकू का सेवन जटिल स्वास्थ्य समस्या

विज्ञापन कम्पनी में कार्यरत 30 वर्षीय पुरुष ओपीडी में अपनी पत्नी के साथ आता है। उसे धूम्रपान को छोड़ने के लिए मदद की जरूरत थी। उसने हमें बताया कि वह रोज लगभग 20 से 30 सिगरेट पी जाता है। उसने सिगरेट को छोड़ने की काफी बार कोशिश की लेकिन हर बार वह ऐसा नहीं कर सका। उसने हमें यह भी बताया कि उसने सिगरेट पीना अपने स्कूल में ही अपने दोस्तों के साथ मजे लेने के लिए शुरू किया था। बाद में वह कॉलेज परीक्षा के दौरान नियमित रूप से सिगरेट पीने लगा था। 2 से 3 सालों के अंदर ही वह बहुत ज्यादा सिगरेट पीने लगा। उसने इसे अपने काम के तनाव के साथ जोड़ लिया था। उसे परामर्श के कई सत्रों में हिस्सा दिलवाया गया जिसमें व्यवहारात्मक परिवर्तन तथा जीवन शैली में सुधार भी शामिल था। ध्यान लगाने ने भी उसकी मदद की। चार सप्ताह के इलाज के बाद उसने धीरे-धीरे सिगरेट पीना बंद कर दिया। इस समय वह पिछले तीन माहों से लगातार हमारे सलाह-सत्र में आ रहा है और अभी तक नॉन- स्मोकर बना हुआ है।
तंबाकू मुक्त संसार
31 मई को 24 घंटों के लिए धूम्रपान से दूर रहने की मुहिम, र्वल्ड नो-टोबैको डे के रूप में मनाया जाता है। यह मुहिम पूरे संसार मे तंबाकू के खिलाफ काम कर रहे देशों को आपस में जोड़ती है। तंबाकू का उपभोग वास्तव में काफी बड़ी समस्या है और हम सभी इसका दाम चुका रहे हैं। तंबाकू हर साल पूरी दुनिया में 30 लाख लोगों को अपना शिकार बनाता है, जिसमें से लगभग 10 प्रतिशत दूसरों के कारण इसका शिकार होते हैं। भारत 10.2 करोड़ लोगों के साथ दुनिया का दूसरा अग्रणी तंबाकू उपभोक्ता है। बल्कि हकीकत में भारत में होने वाली स्वास्थ्य समस्याओं में से लगभग 40 प्रतिशत की जड़ में तंबाकू ही है। चौंकाने वाले आंकड़े हमें यह भी बताते हैं कि 10 साल से कम उम्र के लगभग 35 प्रतिशत बच्चे कम से कम एक बार तो किसी न किसी रूप में तंबाकू का स्वाद ले चुके हैं। तंबाकू का प्रयोग सामाजिक-सांस्कृतिक हौवा भी है। काफी हद तक सिगरेट पीना, सीखने वाला व्यवहार जैसा होता है। छोटे बच्चे और युवा होते किशोर अपने आसपास
में इसे होता देखकर सीख जाते हैं। मीडिया भी फिल्मी सितारों को सिगरेट पीते हुए प्रस्तुत करता है और बच्चे भी इन्हीं से प्रेरित होकर सिगरेट उठा लेते हैं। सिगरेट पीना शुरू-शुरू में शौक से ही शुरू होता है। कभी-कभी तो सिगरेट पीने वाले युवाओं को उनके साथियों के बीच नायक समझा जाता है। सबसे ज्यादा खतरनाक है, सिगरेट पीने को तनाव मुक्त होने से जोड़ना। सिगरेट पीने की प्रवृत्ति परीक्षाओं के दौरान बढ़ती जाती है। इसके साथ ही अन्य तनाव की परिस्थितियों में लोग सिगरेट की तरफ मुड़ जाते हैं तथा तनाव से निपटने के लिए सिगरेट व अन्य तंबाकू उत्पाद लेने लगते हैं। तंबाकू ही दुनिया में असमय होने वाली मौतों का सबसे बड़ा कारण है लेकिन खुशी की बात यह है कि अब हम इसके खिलाफ असहाय नहीं है। तंबाकू मुक्त समाज की रचना करने के लिए हमें हर किसी का सहयोग और साथ चाहिए, व्यक्तिगत तथा समाज दोनों के ही स्तर पर। बस जरूरत है सभी जागरूक व जिम्मेदार लोगों के साथ जुड़ने की और कदम बढ़ाने की। फिर चाहे वे अभिभावक हों, स्कूल, मीडिया, मानसिक चिकित्सक या बड़े स्तर पर समाज हो। इस बारे में डॉ. समीर पारिख के कुछ सुझाव :
अभिभावक
कम आयु से ही बच्चे अपने माता-पिता की नकल करने लगते हैं, उनका अनुसरण करने लगते हैं। हम बच्चों के सबसे पहले रोल मॉडल होते हैं। तो अभिभावक के रूप मे हम जब भी कोई सिगरेट सुलगाते हैं या तंबाकू का कोई भी उत्पाद खाते हैं तो हम बच्चों को तंबाकू की ओर पहला कदम बढ़ाने को प्रोत्साहित करते हैं। अभिभावकों को एक जिम्मेदार रोल मॉडल होना चाहिए। बच्चों को तनाव से निपटने के सही उपायों को बताना चाहिए तथा साथ ही बच्चों को उनके भ्रम और मन में चल रहे तूफानों के बारे में बताने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।
स्कूल
सिर्फ तंबाकू के बारे में बात करके ही बच्चों में तंबाकू खाने की प्रवृत्ति नहीं बढ़ सकती। स्कूलों को भी तंबाकू और तंबाकू के नुकसानों को बताना चाहिए तथा सिगरेट पीने के बारे में जो भी भ्रामक धारणाएं हैं उनके बारे में बात करनी चाहिए। साथ ही बच्चों को जिंदगी की अन्य दक्षताओं के बारे में प्रशिक्षण प्रदान किए जाने चाहिए जैसे कि तनाव या संघर्षं से निपटने के तरीके। इन्हें स्कूल के पाठ्यक्रम का ही एक हिस्सा बनाना चाहिए।
मानसिक चिकित्सक असर डालने वाले लोगों को ये आदत छोड़ने के लिए कहने के साथ साथ, मानसिक चिकित्सकों कर यह नैतिक जिम्मेदारी भी हो ती है कि वे तंबाकू के उपभोग के खिलाफ बोलें, तंबाकू के प्रयोग को कम करें तथा स्कूलों, कॉलेजों तथा समुदायों के साथ मिलकर जागरूकता की मुहिम चलाएं।
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विदेशी भाषा और उसमे कैरियर द्वारा चिरागन

मंडलीकरण के इस दौर में एक देश को दूसरे देश से जोड़ने में भाषा अहम रोल निभा रही है। चाहे शैक्षिक आदान-प्रदान हो या राजनीतिक व आर्थिक संबंध को मजबूती प्रदान करने का, भाषा एक पुल के रूप में काम करती है। विदेशी भाषाओं की इस अहमियत को देखते हुए छात्रों में हिन्दी, अंग्रेजी जैसी संपर्क भाषा के अलावा विदेशों में बड़े पैमाने पर बोली जाने वाली भाषा सीखने की ललक बढ़ी है। दिल्ली विविद्यालय में छात्रों की इस चाहत और रोजगार के क्षेत्र में अवसरों को ध्यान में रखते हुए जगह-जगह कोर्स चलाए जा रहे हैं। इनमें डिग्री से लेकर सर्टिफिकेट, डिप्लोमा और एडवांस डिप्लोमा तक है। डिग्री कोर्स में दाखिले की प्रक्रिया शुरू है। आवेदन की अंतिम तारीख 18 जून है। 21 जून को प्रवेश परीक्षा होगी। खास बात यह कि इस कोर्स में बारहवीं के छात्रों को काफी कम अंक पर प्रवेश का मौका मुहैया कराया जाता है। डिग्री कोर्स : नॉर्थ कैंपस के आर्ट्स फैकल्टी स्थित जर्मन एंड रोमंस स्टडीज विभाग चार विदेशी भाषाओं में बीए आनर्स की डिग्री कोर्स चलाता है। फ्रेंच, जर्मन, स्पैनिश, इटैलियन में चलने वाले इस कोर्स में 100 सीटें हैं। ओबीसी कोटे के बाद इसमें 36 फीसदी इजाफा हुआ है। यहां दाखिले के लिए आयोजित प्रवेश परीक्षा में बैठने के लिए न्यूनतम 50 फीसदी अंकों के साथ12वीं पास होना चाहिए। प्रवेश परीक्षा में साइंस, आर्ट्स या कॉमर्स किसी भी स्ट्रीम का छात्र बैठ सकता है। इन कोर्सेज में आवेदन 4 जून से 18 जून तक किया जा सकता है। करियर : यहां डिग्री कोर्स करने के बाद छात्रों को दुभाषिया, विदेशी दूतावास, अनुवादक, भाषा शिक्षक, टूरिस्ट सेंटर या कॉल सेंटर में काम करने का मौका मिलता है। मीडिया और बेंगलुरू व हैदराबाद के आईटी कंपनियों में भी इनके लिए अवसर सामने आते हैं। इस तरह के अवसर सर्टिफिकेट, डिप्लोमा करने के बाद भी मिल सकते हैं। विभाग में पार्टटाइम कोर्स : यहां मुख्य कैंपस में पोचरुगीज, रोमैनियन में सर्टिफिकेट कोर्स, फ्रेंच, स्पेनिश, इटैलियन में पोर्चुगीज में डिप्लोमा तथा फ्रेंच, स्पेनिश, इटैलियन व पोर्चुगीज में एडवांस डिप्लोमा कराया जाता है। इनमें दाखिले के लिए न्यूनतम योग्यता 12वीं पास है। स्लावोनिक एंड फीनो उग्रेरियन स्टडीज विभाग : नॉर्थ कैंपस के ट्यूटोरियल बिल्डिंग में भी कई विदेशी भाषा के कोर्स चल रहे हैं। इनमें बल्गेरियन, चेक, पोलिश, हंगेरियन, क्रोयेशिएन व रशियन में सर्टिफिकेट, डिप्लोमा व एडवांस डिप्लोमा है। ये कोर्स पार्ट टाइम के रूप में चलाए जाते हैं। दाखिले के लिए 12वीं पास होना चाहिए। बल्गेरियन व रशियन में फुलटाइम इंटेंसिव कोर्स है। दाखिला जुलाई से अगस्त तक चलता है। ईस्ट एशियन स्टडीज विभाग : सोशल साइंस के भवन में स्थित इस विभाग में चाइनीज में सर्टिफिकेट, डिप्लोमा व एडवांस डिप्लोमा का कोर्स है। जापानी भाषा में डिप्लोमा व एडवांस डिप्लोमा व कोरियन भाषा में सर्टिफिकेट, डिप्लोमा व एडवांस डिप्लोमा है। इनमें पार्ट व फुलटाइम, दोनों तरह के कोर्स हैं। दाखिला जून-जुलाई में होता है। विभागों के अलावा कॉलेजों में भी पार्टटाइम कोर्स के रूप में विदेशी भाषा के कोर्स कराए जा रहे हैं। ये सभी विभाग के निर्देशन में चल रहे हैं।
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पर्यावरण और उसमे कैरियर द्वारा चिरागन

पर्यावरण का करें वरण हमारा जीवन पूरी तरह पर्यावरण पर आश्रित है। तेजी से बढ़ते शहरीकरण और औद्योगिकीकरण ने हमारे पर्यावरण के संतुलन को बुरी तरह बिगाड़ दिया है। यही कारण है कि वैिक तौर पर इसके प्रति सरकारें और लोग गंभीर और सजग हुए हैं। सुरक्षित पर्यावरण की गंभीरता को समझते हुए इसके अध्ययन को लेकर दुनिया के तमाम देश सामने आए हैं। यही कारण है कि जहां विभिन्न संस्थानों और विविद्यालयों में तमाम तरह के कोर्स उपलब्ध हैं, वहीं इस क्षेत्र में करियर की अनेक संभावनाओं ने भी जन्म लिया है
हमारा जीवन पूरी तरह पर्यावरण पर टिका है। इसके बिना पृथ्वी पर जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती। भोजन से लेकर घर, कपड़े, जल, सूर्य का प्रकाश, वायु या जीवन को समर्थन देने वाला कोई अन्य पदार्थ, सबकुछ हमें पर्यावरण ही देता है। लेकिन तेजी से बढ़ते शहरीकरण और औद्योगिकीकरण ने हमारे पर्यावरण के संतुलन को बुरी तरह प्रभावित किया है। यही कारण है कि इसके खतरों के देखते हुए वैिक तौर पर इसके प्रति लोग गंभीर और सजग हुए हैं। आज के दौर में पर्यावरण विशेषज्ञों या पर्यावरण वैज्ञानिकों के सामने बहुत बड़ी जिम्मेदारी यह है कि वे पर्यावरण के अनुकूल विकास की पण्रालियां तैयार करें।
पर्यावरण मामले में गंभीरता बरतते हुए इसके अध्ययन को लेकर दुनिया के तमाम देश सामने आए हैं। यही कारण है कि जहां विभिन्न संस्थानों और विविद्यालयों में तमाम तरह के कोर्स उपलब्ध हैं, वहीं करियर की संभावनाओं ने भी जन्म लिया है। पर्यावरण विज्ञान मूल रूप से ऊर्जा संरक्षण, जैव विविधता, जलवायु परिवर्तन, भूजल तथा मृदा संदूषण तथा वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण, औद्योगिक प्रदूषण, वाहन प्रदूषण तथा प्लास्टिक जोखिम को दूर करने के लिए विकसित की गई कई तकनीक का अध्ययन है। पाठ्यक्रम एवं पात्रता एजुकेशन, कंसल्टिंग और इंजीनियरिंग में रुचि रखने वाले छात्र पर्यावरण विज्ञान में बीटेक करने के बाद एमटेक कर सकते हैं। बीटेक के लिए मुख्य योग्यता 12 वीं तक फिजिक्स, केमेस्ट्री और गणित विषयों का अध्ययन करना चाहिए। स्नातक स्तर पर कुछ ही यूनिवर्सिटी में पर्यावरण विज्ञान में बीएससी डिग्री का पाठय़क्रम है। पर्यावरण विज्ञान में एमएससी जैसे स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम भी कर सकते हैं। इस पाठ्यक्रम की अवधि दो वर्ष है। इनके अतिरिक्त, पर्यावरण विज्ञान तथा पर्यावरण प्रबंधक में अल्पकालीन स्नातकोत्तर डिप्लोमा कार्यक्रम भी हैं। छात्र पर्यावरण विज्ञान में एमफिल तथा पीएचडी भी कर सकते हैं।
संभावनाएं इस क्षेत्र में शोध संस्थानों के अलावा उद्योग, एनजीओ, सरकारी संस्थानों, लोक उपक्रम, होटल, बैंक, प्रकाशन समूह के अलावा सलाहकार के रूप में काम करने के अवसर हैं। पर्यावरण वैज्ञानिक ही नहीं बल्कि पर्यावरण इंजीनियर, इनवायरमेंटल बायोलाजिस्ट, इनवायरमेंटल मॉडेलर के साथ ही इनवायरमेंटल जर्नलिस्ट के लिए भी इसमें असीम अवसर है। अध्यापन के क्षेत्र में इनवायरमेंटल साइंस में ग्रेजुएट शिक्षक के रूप में भी कार्य कर सकते हैं। एनजीओ आमतौर पर इनवायरमेंटल साइंस में एमएससी या ब्ाी ए स्ा स्ाी उम्मीदवारों को अवसर देती है। पर्यावरण विज्ञान में मास्टर या ड ा ॅ क् ट र डिग्रीधारी व्यक्ति अपने ज्ञान तथा अनु भव के अनु सार को ई अच्छा पद/रोजगार प्राप्त कर सकता है।
इसके अलावा, अंतरराष्ट्रीय संगठन मसलन, जलवायु परिवर्तन संबंधी अंत: सरकारी पैनल (आईपीसीसी),संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी), भू-पण्राली शासन परियोजना सहित विभिन्न देशों के दूतावास तथा पर्यावरण से जुड़े अन्य अंतरराष्ट्रीय संगठन भी इस फील्ड में सक्रिय हैं और यहां नौ करी की विभिन्न संभावनाएं हैं। पारिश्रमिक पर्यावरण विज्ञान के क्षेत्र में शोधकर्ता के रूप में जहां 15-20 हजार रुपये से शुरुआत की जा सकती है। वहीं, निजी क्षेत्रों, एनजीओ, शिक्षण संस्थाओं और सलाहकार के रूप में 20-25 हजार रुपये मासिक वेतन आसानी से पा सकते हैं। अध्यापन के फील्ड में इनवायरमेंटल साइंस में ग्रेजुएट शिक्षक की भी मांग बढ़ी है।
जरूरी गुण सफल होने के लिए पर्यावरण से संबंधित मुद्दों के लिए प्रतिबद्धता हो। जलवायु में बदलाव की जानकारी इकट्ठा करने एवं समाज सेवा का जज्बा हो। फील्ड सव्रे टेक्नीक के जानकार हो। टीम के साथ कार्य करने या टीम का नेतृत्व करने की क्षमता हो। रिसर्च स्किल्स के साथ समस्याओं को हल करने की क्षमता हो। टाइम मैनेजमेंट, रिस्क एसेसमेंट, टीम वर्क, प्रॉब्लेम सॉल्विंग और एनालिसिस आदि मामलों में प्लान करने व प्रोजेक्ट को मैनेज करने के गुण हों। इस फील्ड में करियर बनाने के लिए प्रबल अभिरुचि तथा इच्छा हो।
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जंग का साहस भी विजय

खिलाड़ी हो या कोई अदना सा शख्स, दोनों के भीतर जीत और चित संबंधी भावनाएं होती हैं। इन्हीं दोनों के बीच वह मजबूत से पहले वाली यानी जीत संबंधी भावना के पलड़ा भारी करने की कोशिश करता रहता है।
अगर आप सोचते हैं कि आप विजयी हो सकते हैं, तो आप वै सा कर भी सकते हैं लेकिन याद रखिए, विजयी होने के लिए ईमानदारी से उस पर डटे रहना बहुत जरूरी है। रेस को जीतने वाला अपने शरीर और अपनी भावनाओं पर कुछ न कुछ खरोंच भी सह लेता है। लेकिन आप रेस में हिस्सा लेने की ठान लिये तो इसका अर्थ है कि आप रेस को जीतने के लिए उसमें शिरकत कर रहे थे । ओलम्पिक में शिरकत करने वाला शायद ही कोई खिलाड़ी हो, जिसके भीतर जीतने का जज्बा कूट-कूटकर न भरा हो। स्कूलों में यदा-कदा होते छोटे-मोटे खेलों को भी हम जीतना ही चाहते हैं। आखिर वह अपने लिए थोड़े ही खेल रहा होता है बल्कि उसे इस बात का अच्छी तरह अहसास रहता है कि उसके देश का एक-एक बच्चा उसे उम्मीदों भरी नजरों से देख रहा है। गजब अहसास है खेल में देश का प्रतिनिधित्व करना!
खिलाड़ी हो या कोई सामान्य-सा शख्स, दोनों के भीतर जीत और चित संबंधी भावनाएं होती हैं। इन्हीं दोनों के बीच वह मजबूती से पहले वाली यानी जीत संबंधी भावना के पलड़ा भारी करने की कोशिश करता रहता है। हमेशा से वह बात कभी-कभी कही जाती रही है कि जीत की भावना का कोई विकल्प नहीं है। हर कोई हर पल जीतना चाहता है। आप नींद पूरी कर उठते हैं, तो उठने का अर्थ है कि आप अब सोना नहीं चाहते। इस तरह नींद को जीत चुके होते हैं। कोई कठिन चीज याद हो जाए तो इसका अर्थ है कि याद करने संबंधी कठिनाई को जीत चुके हैं। जब आप टीम के सदस्य बन कर खेलते हैं, तो वैयक्तिक गवरेक्ति महत्वपूर्ण नहीं होती। बल्कि सामूहिक दमखम मायने रखता है। इसी तरह, जब आप जीतते हैं तो ये मायने नहीं रखता कि आप एक इंच या एक मील के अंतर से जीते। यहां भी विजय ही मायने रखती है। अडिग विास मजबूत विास का ही नाम होता है। कोई भी जीत किसी किले को फतह करने से कम नहीं है। बस, इच्छा-शक्ति हो कि इसे फतह करना ही करना है। अगर ऐसी इच्छा-शक्ति नदारद है तो जिंदगी भर जंग लड़ते रखिए, नतीजा मुट्ठी के बीच से सरकती रेत जैसा होना है। जंग का साहस नहीं, तो विजयश्री असंभव, दौड़ने की हिम्मत नहीं, तो दौड़ जीत कर तमगा गले में लटकाने का सपना असंभव। अर्थात उच्च स्तर का साहस विजयश्री की ओर झुकाकर उसे सृजनशील कर्म पथ के सामने खड़ा कर देता है और आपकी भावनाएं उभारकर उसे अपने करीब आने में बाध्य कर देता है।
(ब्रिटेन में जन्मे विलियम हैज्लेट चित्रकार, दार्शनिक और साहित्यक आलोचक थे)

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क्या करें 12वीं के बाद द्वारा चिरागन

बारहवीं के रिजल्ट की घोषणा होने के साथ ही छात्र उलझन में पड़ जाते हैं कि उन्हें किस फील्ड में आगे जाना चाहिए, उन्हें सामान्य कोसरे में एडमिशन लेना चाहिए या फिर किसी प्रोफेशनल कोर्स में। जिन छात्रों के अच्छे मार्क्‍स होते हैं, उन्हें तो तुरंत विभिन्न को सरे और संस्थानों में एडमिशन मिल जाता है लेकिन सबसे अधिक परेशानी होती है, कम अंक लाने वाले छात्रों को। यदि बारहवीं में आपके कम मार्क्‍स आए हैं तो चिंता करने की आवश्यकता नहीं है। यदि आपको मनमाफिक संस्थान में एडमिशन नहीं मिलता है तो आपके लिए कॉरेसपांडेंस कोर्स है ही। फुल टाइम कोर्स न सही, शॉर्ट टर्म कोर्स भी हैं। जनरल कोर्स में नहीं तो वोकेशनल कोर्स या प्रोफे शनल कोर्स में भी एडमिशन लिया जा सकता है। कंप्यूटर कोर्स, एनिमेशन, बीपीओ , फैशन डिजाइनिंग, फिल्म मेकिंग, मीडिया आदि ऐसे फील्ड हैं, जहां किताबी ज्ञान के बनिस्पत अनुभव और नई चीजों की ललक मायने रखती है। वर्तमान में, विभिन्न संस्थानों और विविद्यालयों में दर्जनों शॉर्ट टर्म, पार्ट टाइम के अलावा जॉब ऑरियेंटेड कोर्स हैं
सीए/सीएस/सीडब्ल्यूए/सीएफए/बीकॉम आज के दौर में चार्टर्ड एकाउंटेंट की जरूरत सभी कंपनियों के अलावा बैंकों और स्टॉक ब्रोकर्स को होती है। जिस पूंजीवादी दौर से भारत गुजर रहा है, उसमें सबसे अधिक मांग इससे जुड़े प्रोफेशनलों की ही है। इसकी डिग्री लेने के बाद आप चीफ एकाउंटेंट, चीफ फाइनेंस ऑफीसर और चीफ मैनेजर के रूप में काम कर सकते हैं। काम के दौरान ऑडिटिंग एंड इनश्योरेंस, टैक्स कंसलटेंसी, फाइनेंशियल कंसलटेंसी, प्रोजेक्ट प्लॉनिंग एंड कंसलटेंसी आदि से संबंधित काम कर सकते हैं। कॉस्ट एकाउंटेंसी करने के बाद प्राइवेट इंटरप्राइजेज, गवर्नमेंट सेक्टर, बैंकिंग एंड फाइनेंस सेक्टर, चीफ कंट्रोलर के रूप में काम किया जा सकता है। जो लोग कंपनी सेक्रेटरी की डिग्री हासिल करते हैं, वे स्टॉक एक्सचेंज और कंपनी लॉ बोर्ड में आसानी से नौकरी हासिल करते हैं।
कस्टमर रिलेशनिशप मैनेजर हालांकि एविएशन फील्ड की कई कंपनियां घाटे में चल रही हैं, बावजूद इसके एयरपोर्ट मैनेजमेंट एंड कस्टमर से जुड़े लोगों की मांग बनी हुई है। इसके तहत रिजव्रेशन एंड टिकटिंग स्टाफ, ग्राउंड स्टाफ, ट्रैफिक असिस्टेंट और कस्टमर सर्विस एक्जीक्यूटिव के तौर पर काम कर सकते हैं। इससे संबंधित कोर्स में एडमिशन इंटरव्यू और क्वालीफाइंग एग्जाम के आधार पर होता है। इस कोर्स की अवधि 12 महीने की होती है। एयर टिकटिंग भी इसी के तहत आता है और इससे संबंधित दो से छह महीने से लेकर एक साल के कोर्स उपलब्ध हैं। इसके जरिए छात्र जान सकेंगे कि किस तरह संबंधित फ्लाइट्स की बुकिंग के साथ टिकट लिया जाता है। साथ ही, पैसेंजर को आने-जाने के लिए गाइड करने के साथ दूसरी आवश्यकताओं की जानकारी भी दे सकते हैं। वे टाइम टेबल बताते हैं, एयरलाइंस शेड्यूल के साथ गाइड और टैरिफ बुक की जानकारी भी पैसेंजर को देते हैं। इसके अलावा, आप इंटरनेट ऑपरेटर, बैंकिंग, ट्रैवल एजेंसीज, एयरलाइंस कंपनियां, ट्रांसपोर्टर्स, बिजनेस-टू-बिजनेस आदि के तौर पर भी काम कर सकते हैं। बतौर सीआरएम इंजीनियर, सीआरएम फंक्शनल कंसल्टेंट, सीआरएम टेक्निकल कंसल्टेंट और सीआरएम आर्किटेक्ट की भी मांग काफी बढ़ी है।
सप्लाई चेन मैनेजमेंट कोर्स भारत में सैकड़ों ऐसी कंपनियां हैं जो सप्लाई चेन मार्केट में अपने पांव पसार रही हैं। ‘चेन ऑफ आउटलेट्स’ और डिस्ट्रीब्यूशन चैनल की बढ़ती दुनिया के कारण इसके जानकार लोगों की मांग काफी है। हर तीसरा घर सप्लाई चेन के कारोबार से जुड़ा है। इससे जुड़े कोर्स में एडमिशन बारहवीं के बाद ही हो सकता है। इस फील्ड में वही टिक सकता है जो बेस्ट हो क्योंकि इनका काम ट्रांसपोर्टेशन सेक्टर से लेकर एविएशन, लॉजिस्टिक कंपनियों, शिपिंग कॉरपोरेशन से लेकर मल्टी प्रोडक्ट कंपनियों में होता है।
इवेंट मैनेजमेंट शहरों में होने वाले कार्यक्रमों का आयोजन अब काफी भव्य होता है। इन आयोजनों की व्यवस्था को इवेंट मैनेजमेंट और इसे सफल बनाने वालों को इवेंट मैनेजर कहा जाता है। इस जुड़ा कर्मी किसी भी आयोजन की शुरुआत से लेकर आखिरी तक होने वाले हर कार्यक्रम की देखरेख और नियंतण्रकरता है। इसके तहत फैशन शो, संगीत समारोह, विवाह समारोह, थीम पार्टी, प्रदर्शनी, कॉरपोरेट सेमिनार, प्रोडक्ट लांचिंग और फिल्मों के प्रीमियर आदि प्रोग्राम आते हैं। इवेंट मैनेजमेंट से डिप्लोमा कोर्स में एडमिशन बारहवीं के बाद मिल जाता है। कोर्स के बाद कोई भी पब्लिक रिलेशन्स कंपनी ज्वाइन की जा सकती है।
एनिमेशन एंड वेब डिजाइनिंग बच्चों में एनिमेशन फिल्में देखने का काफी शौक होता है। बॉलीवुड से हॉलीवुड तक और टीवी मीडिया से लेकर वीडियो गेम्स तक में मल्टीमीडिया और एनिमेशन का बोलबाला है। यही कारण है कि पोस्ट प्रोडक्शन हाउस, टीवी चैनलों, विज्ञापन एजेंसियों व कंपनियों और गेम इंडस्ट्री में इससे जुड़े लोगों की जबर्दस्त मांग है। थ्रीडी फिल्मों का दौर तो आ ही चुका है जो पूरी तरह से टीम वर्क होता है। इससे संबंधित कोर्स कई संस्थानों में चलाए जाते हैं और एडमिशन 12वीं के आधार पर ही होता है। इसके अलावा, वेबसाइट डिजाइनिंग में भी अपार संभावनाएं हैं लेकिन इसके पहले आपको एचटीएमएल, सीएसएस, फोटोशॉप, जावा स्क्रिप्ट आदि पर कमांड की जरूरत होगी। शुरु आती चरणों में आठ से दस हजार तक कमा सकते हैं।यदि आपकी अंग्रेजी या हिंदी पर बेहतर कमांड है और आपको टाइपिंग आती है तो आप कॉपी राइटर, कंटेंट राइटर और मास कम्युनिकेशन फील्ड में अपना भाग्य आजमा सकते हैं। अनुभव के बाद आप इस फील्ड में मनमाफिक पैसे कमा सकते हैं।
फॉरेन लैंग्वेज वैिक दौर में विदेशी भाषा तथा संस्कृति को जानना महत्वपूर्ण है क्योंकि इसमें नौकरी के अनेक अवसर उपलब्ध हैं। विदेशी भाषा के महत्व को समझते हुए देश के तमाम संस्थान और विविद्यालय अपने यहां विदेशी भाषा का कोर्स संचालित कर रहे हैं। मल्टीनेशनल कंपनियों में भी दुभाषिये की जरूरत होती है। यहां व्यापक पैमाने पर रिपोर्ट, ट्रांजैक्शन सहित तरह-तरह का अनुवाद का काम किया जाता है। वर्तमान दौर में फ्रेंच, जर्मन, इटालियन, जापानी, स्पैनिश, रशियन, अरैबिक, पर्शियन और चीनी भाषा जानने वालों की मांग बढ़ी है। विदेशी भाषा सीखकर आप दुभाषिये, टूरिस्ट गाइड, एयर हॉस्टेस, फ्लाइट स्टीर्वड के अलावा होटलों में पब्लिक रिलेशन्स अफसर के तौर पर भी काम कर सकते हैं।
बुक पब्लिशिंग ‘नॉलेज इकोनॉमी’ के बढ़ते दबाव के कारण बुक पब्लिशिंग इंडस्ट्री काफी ग्रोथ कर रही है। भारत ही नहीं, पूरी दुनिया में इसमें करियर ऑपरच्युनिटी बढ़ी है। हालांकि बुक पब्लिशिंग से संबंधित कई कोर्स उपलब्ध हैं लेकिन ट्रेनिंग कोर्स इन बुक पब्लिशिंग, कोर्स इन पब्लिशिंग, डिप्लोमा इन प्रिंटिंग एंड पब्लिशिंग, र्सटििफकेट कोर्स इन बाइंडिंग एंड फिनिशिंग प्रमुख हैं, जो 12वीं के बाद किए जा सकते हैं। इससे संबंधित कोर्स करने के बाद बतौर प्रूफ रीडर, प्रोजेक्ट असिस्टेंट, कॉपी एडिटर, असिस्टेंट एडिटर, सब- एडिटर, रिसर्च एडिटर आदि की नौकरी कर सकते हैं।
इंटरप्रेन्योरशिपिंग कारोबारी माहौल में आज हर कोई कारोबारी बनना चाहता है लेकिन कुछ ही लोग इसमें सफल हो सकते हैं। इसलिए, यदि वे शुरू में खास मुद्दों को जान लें कि उनमें क्या-क्या खास गुण होने चाहिए, जिससे वे बेहतर कारोबारी हो सकते हैं, तो उनका सपना पूरा हो सकता है। यही कारण है कि टाटा इंस्टीटय़ूट ऑफ सोशल साइंस ने भी अपने यहां इंटरप्रेन्योरशिप में डिग्री वाले पाठय़क्रम की शुरुआत की है। इंटर के बाद संबंधित संस्थानों और विविद्यालयों से सर्टिफिकेट और डिप्लोमा कोर्स किया जा सकता है।
विज्ञापन आज के दौर में विज्ञापन की दुनिया काफी अहम हो गई है। इस फील्ड में आप जितना रचनात्मक रहेंगे, आपके लिए आगे का रास्ता उतना ही खुला होगा। भारत में इससे संबंधित कई तरह के कोर्स बारहवीं के बाद उपलब्ध हैं। इसके बाद आप रेडियो, टीवी, फिल्म, प्रिंट या दूसरे माध्यम में बतौर एडवरटाइजिंग एक्जीक्यूटिव, क्रिएटिव राइटर, पब्लिक रिलेशन्स अफसर, पोस्टर राइटर, कॉपी राइटर, प्रोडक्शन प्रमोटर, स्क्रिप्ट राइटर, ग्राफिक डिजाइनर आदि के काम कर सकते हैं।
ब्यूटी कोर्स फैशन का दौर हमेशा से है और लोग इसके प्रति अधिक जागरूक हुए हैं। छोटे से लेकर बड़े शहरों तक की गलियों में आपको ब्यूटी पार्लर मिल जाएंगे। इससे संबंधित कोर्स में एडमिशन 12वीं के बाद मिल जाता है। हालांकि इस फील्ड में आगे बढ़ने के लिए कुछ व्यक्तिगत गुणों को तवज्जो देना आवश्यक होता है, मसलन विनम्रता, कौशल, दो स्ताना व्यवहार, आत्मविास जैसे गुण होने आवश्यक हैं। इससे संबंधित कोर्स में थ्योरी के साथ प्रैक्टिकल नॉलेज भी दी जाती है। कोर्स खत्म होने के बाद बतौर ब्यूटीशियन आप या तो किसी कंपनी में काम कर सकते हैं या फिर प्राइवेट सैलून भी खोल सकते हैं।
मेडिकल टूरिज्म भारत में तेजी से बढ़ती चिकित्सीय सुविधाओं के कारण यहां मेडिकल टूरिज्म के प्रति लोगों का रुझान बढ़ा है। अब कई बड़ी- छोटी ट्रैवल एजेंसियां ने अपने यहां मेडिकल टूरिज्म का बाकायदा डिपार्टमेंट बना रखा है। यदि आपको थोड़ी-बहुत अंग्रेजी आती है और आप बेहतर ढंग से अंग्रेजी में बात कर सकते हैं तो यह फील्ड आपके लिए काफी महत्वपूर्ण है। कोर्स खत्म करने के बाद आप सिर्फ भारत में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी नौकरी कर सकते हैं क्योंकि ट्रैवल एजेंसी के साथ एयरलाइंस और गवर्नमेंट ऑर्गेनाइजेशन आपको मौका दे सकते हैं। इसके अलावा, टूर और टूरिज्म का फील्ड भी लोगों को जमकर लुभा रहा है।
साउंड रिकॉर्डिग कोर्स फिल्म की दुनिया काफी बड़ी होती है। पिछले कुछ समय से यहां साउंड रिकॉर्डिंग से जुड़े लोगों की मांग बढ़ी है। इसके जानकारों को फिल्म डायरेक्शन, फिल्म एडिटिंग से लेकर डांस आदि में रोजगार मिल जाता है। यह ऐसा टेक्निकल फील्ड है जिसकी मांग हमेशा से रही है क्योंकि डॉक्युमेंट्री फिल्मों, रेडियो ब्रॉडकास्टिंग आदि में इनकी जरूरत पड़ती है। इससे संबंधित कोर्स अंडर-ग्रेजुएट लेवल से लेकर पोस्ट ग्रेजुएट लेवल तक उपलब्ध है। यदि आपका मनमाफिक विषयों में ग्रेजुएशन में एडमिशन नहीं हो पा रहा है तो निराश होने की जरूरत नहीं है। देश के विभिन्न शहरों में सरकारी और गैर-सरकारी दोनों संस्थान हैं, जहां इससे संबंधित कोर्स की पढ़ाई होती है।
विनीत
10वीं के बाद
सर्टिफिकेट विजुअल आर्ट्स-पेंटिंग, एप्लायड आर्ट्स, स्कल्पचर परफॉर्मि ग आर्ट्स-थियेटर आर्ट्स, हिन्दुस्तानी म्यूजिक, कर्नाटक म्यूजिक, भरतनाटय़म, कथक होम बेस्ड हेल्थ केयर कम्युनिटी रेडियो टूरिज्म स्टडी न्यूट्रिशन एंड चाइल्ड केयर फूड सेफ्टी ह्यूमन राइट्स कंज्यूमर प्रोटेक्शन को-ऑपरेशन, को-ऑपरेटिव लॉ एंड बिजनेस लॉ लाइफ लांग लर्निग एनर्जी टेक्नोलॉजी एंड मैनेजमेंट
और भी हैं कोर्सेज डिप्लोमा इन जनरल र्नसंिग एंड मिडवाइफरी डिप्लोमा कोर्स इन रेडियोलॉजी असिस्टेंट डिप्लोमा इन प्रोस्थेटिक्स एंड आथ्रेटिक्स बेसिक एंड एडवांस मेडिकल लैब टेक्नोलॉजी र्सटििफकेट इन मेडिकल लैब टेक्नीशियन डिप्लोमा डायलिसिस टेक डिप्लोमा एक्स-रे एंड ईसीजी टेक डिप्लोमा इन ऑपरेशन र्सटििफकेट इन वार्ड एटेनडेंट मेडिकल ट्रांसक्रिप्शन डिप्लोमा इन फाम्रेसी एयरक्राफ्ट मेंटेनेंस इंजीनियरिंग कंप्यूटर ऑपरेटर एंड प्रोग्रामिंग असिस्टेंट सेक्टेरियल प्रैक्टिस फैशन टेक्नोलॉजी फ्रंट ऑफिस असिस्टेंट कॉल सेंटर असिस्टेंट डेस्कटॉप पब्लिशिंग ऑपरेटर स्टेनोग्राफी र्सटििफकेट इन ट्रेवल एंड टूरिस्ट डिजिटल फोटोग्राफी बुक कीपिंग एंड एकाउंटेंसी डोएक ’ओ‘ लेवल डिप्लोमा इन एडवांस्ड सॉफ्टवेयर टेक्नोलॉजी र्सटििफकेट इन इनफॉम्रेशन टेक्नोलॉजी र्सटििफकेट इन यूएनआई एंड सी र्सटििफकेट इन कम्प्यूटर एप्लीकेशन्स कोर्स इन लो कल एरिया नेटवर्किंग डीटीपी डिप्लोमा इन कंप्यूटर्स इन ऑफिस मैनेजमेंट कॉपी राइटर्स र्सटििफकेट इन फ्लैश एंड फोटोशॉप इंटरनेट मार्केटिंग मास कम्युनिकेशन डिप्लोमा इन एक्टिंग एंड डायरेक्शन
संस्थान इंदिरा गांधी नेशनल ओपन यूनिवर्सिटी, नई दिल्ली जामिया मिल्लिया इस्लामिया, नई दिल्ली दिल्ली विविद्यालय, दिल्ली लखनऊ विविद्यालय, लखनऊ पटना विविद्यालय, पटना
डिप्लोमा यूथ इन डेवलपमेंट वर्क अर्ली चाइल्डहुड केयर एंड एजुकेशन न्यूट्रिशियन एंड हेल्थ एजुकेशन टूरिज्म स्टडीज एक्वाकल्चर क्रिएटिव राइटिंग उर्दू एचआईवी एंड फैमिली एजुकेशन वुमेंस इम्पावरमेंट एंड डेवलपमेंट पैरालीगल प्रैक्टिस पंचायत ले वल एडिमिनिस्ट्रेशन एंड डेवलपमेंट वेल्यू एडेड प्रोडक्ट्स फ्रॉम फ्रूट्स एंड वेजिटेबल्स डेयरी टेक्नोलॉजी मीट टेक्नोलॉजी सर्टिफिकेट जापानी लैंग्वेज जर्मन लैंग्वेज डिजास्टर मैनेजमेंट इनवायरनमेंटल स्टडीज एनजीओ मैनेजमेंट बिजनेस स्किल्स फंक्शनल इंग्लिश हेल्थकेयर, वेस्ट मैनेजमेंट सेरीकल्चर ऑग्रेनिक फार्मिग वाटर हाव्रेस्टिंग एंड मैनेजमेंट इनफॉम्रेशन टेक्नोलॉजी कम्युनिकेशन स्किल्स फॉर बीपीओ, आईटीज एंड रिलेटेड सेक्टर इंटरप्रेन्योरशिप लाइब्रेरी टेक्नोलॉजी ज्वैलरी डिजाइनिंग बैचलर डिग्री आर्ट कंप्यूटर एप्लीकेशन सोशल वर्क लाइब्रेरी एंड इनफॉम्रेशन साइंस प्रीपरेटरी प्रोग्राम

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वारानाशी में वरुणा और गंगा की स्थिति द्वारा चिरागन


कभी 'पानी' की दौलत से आबाद काशी नगरी के अब बेपानी होने का खतरा मंडराने लगा है। असि नदी नाले में लुप्त हो चुकी है, वरुणा नाला बनने के कगार पर है तो गंगा भी पाताल की ओर रुख करती जा रही हैं। हालात यही रहे तो वह समय दूर नहीं जब हमारे सामने एक तरफ होगा विशाल 'नाला' तो दूसरी तरफ 'अकाल' जैसे हालात।
Varuna and ganga sangam by chiragan
विशेषज्ञ लगातार चेताते आ रहे हैं कि गंगा को बचाना ही संभावित संकटों का एक मात्र विकल्प है। यहां बताते चलें कि जो ढाल वर्षा जल को नदी की ओर निस्तारित करे वह भू-भाग उस नदी का बेसिन होता है। यह निस्तारण सतही और भूमिगत जल के रूप में होता है। ये प्रमुख रूप से चार होते हैं। एक बेसिन की ढाल, दूसरा बाढ़ क्षेत्र का ढाल, तीसरा किनारे का ढाल और चौथा नदी के तल का ढाल। इसे गंगा की शक्ति भी कहते हैं। ये चारो ढाल ही वातावरण को संतुलित करने के साथ नदी की व्यवस्था को भी नियंत्रित करते हैं। अब इसे काशी नगरी और गंगा के संदर्भ में देखा जाए तो पहले यह नगरी तीन नदियों से घिरी थी। पूरब में गंगा, दक्षिण में असि और उत्तर में वरुणा। ढाल के हिसाब से ही ये तीनों नदियां अपने-अपने बेसिन क्षेत्र को पानी से लबालब किये रहती थी। गर्मी के दिनों में जब इनका जलस्तर गिरता था तो इनके बेसिन क्षेत्र के तालाब, कुंड, कुएं अपना पानी देकर गंगा के जलस्तर को बरकरार रखते थे। बेहिसाब जल दोहन और शहर भर का अवजल गिराए जाने से असि नदी का स्वरूप बदल कर नाले में तब्दील हो गया। इस नदी की भूमि पर देखते-देखते कंक्रीट की इमारतें खड़ी हो गई।
कमोवेश गंगा और वरुणा भी दिनों दिन इसी गति की शिकार होती जा रही है। पहले गंगा का दोहन सीमित था तो प्रदूषक तत्वों का गंगा की ओर निस्तारण भी कम हुआ करता था। कुंड, तालाब, कुएं आदि गंगा के 'वॉटर बैंक' हुआ करते थे, जो गर्मी के दिनों में भूमिगत जल के रूप में अपनी सेवा देकर गंगा के जलस्तर को गिरने नहीं देते थे तो बेसिन क्षेत्र भी स्वाभाविक रूप से संतुलित था। इधर के दिनों में गंगा के बेसिन क्षेत्र को बिना व्यवस्थित किए अवैज्ञानिक तरीके से जहां गंगा जल का दोहन शुरू हुआ तो प्रदूषक तत्वों का भार भी बेहिसाब बढ़ा। गंगा के 'वॉटर बैंकों' का वजूद भी समाप्ति के कगार पर हैं। ऐसे में बेसिन क्षेत्र भी असंतुलित और अव्यवस्थित होता जा रहा है, जो सूखती गंगा, भूमिगत जलस्तर में गिरावट और अव्यवस्थित पर्यावरण के रूप में हमारे सामने है।
1.5 मीटर की रफ्तार से घट रहा भूमिगत जलस्तर : प्रो. चौधरी
varuna ghat at varanshi by chiragan
बीएचयू में गंगा अन्वेषण केंद्र के संस्थापक रहे प्रो. यूके चौधरी ने बताया कि गंगा बेसिन से 1.5 से 2.00 प्रतिशत की रफ्तार से मृदा क्षरण बढ़ता जा रहा है। गंगा बेसिन का भूमिगत जल स्तर 1.5 से 2.5 मीटर प्रतिवर्ष की रफ्तार से गिरता जा रहा है। गंगा बेसिन की उर्रवा शक्तियां उसी अनुपात में घटती जा रही हैं जिस अनुपात में गंगा नदी का जल स्तर घटता जा रहा है। बताया कि यहां यह जान लेना भी जरूरी होगा कि सतही जल के निस्तारण क्रिया को रोकना बाढ़ नियंत्रण होता है और भूमिगत जल के भंडार को बढ़ाना अकाल नियंत्रण होता है। यदि वर्षा के पूर्व कुंड, तालाब और कुएं को एक बार फिर वजूद में ला दिया गया तो भूमिगत जल भंडार इस स्तर तक बढ़ाया जा सकता है कि अनावृष्टि का कोई प्रभाव गंगा बेसिन पर न पड़े। और फिर जब भूमिगत जलाशय के स्तर में वृद्धि होगी तो नदी के न्यूनतम जल प्रवाह की जरूरत स्वत: पूरी होने लगेगी। यही संतुलन पर्यावरण को भी संतुलित बनाएगा।
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विज्ञान में वह सारी ताकत है, जिससे हर जरूरतों को पूरा किया जा सके। सवाल सिर्फ यह है कि हम उससे क्या हासिल करना चाहते हैं। डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम

विज्ञान में वह सारी ताकत है, जिससे हर जरूरतों को पूरा किया जा सके। सवाल सिर्फ यह है कि हम उससे क्या हासिल करना चाहते हैं।
-पूर्व राष्ट्रपति व मिसाइल मैन, डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम
पूर्व राष्ट्रपति व मिसाइल मैन, डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम
घटना 2004 के उत्तरार्ध की है। बोस्टन में रहने वाले भारतीय मूल के सलमान ने न्यू ओलियांस में रहने वाली अपनी भतीजी के लिए खाली समय में अलग-अलग सब्जेक्ट पर अपने लेक्चर्स को वीडियो रिकॉर्ड कर यू-ट्यूब में डालना शुारू किया। अब नादिया अपने तमाम विषयों से जुडी प्रॉब्लम्स का हल इन वीडियोज में ढूंढ सकती थी, वह भी अपनी सुविधा के अनुसार। वीडियो रिकॉर्डिग के जरिए शुरू हुई अध्ययन-अध्यापन की इस शुरूआत को आज अमेरिका में एजूकेशन क्रांति का दर्जादिया जा रहा है। सवाल यह है कि आखिर ये सब हुआ कैसे? किस तरह यह असंभव सी दिखने वाली चीज आसान हुई? तो जवाब है विज्ञान के रचनात्मक इस्तेमाल से। इसने एक चीज और स्पष्ट क ी है कि यदि मानव विकास में विज्ञान का तालमेल हो, तो दुनिया की सूरत संवरने में ज्यादा वक्त नहीं लगने वाला। यही कारण है कि हर देश की सरकारें साइंस स्टूडेंट्स को अधिक से अधिक पढाने के लिए अनेक तरह का प्रोत्साहन देती हैं।

पूर्व राष्ट्रपति व मिसाइल मैन, डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम
क्यों है साइंस का क्रेज?
साइंस में काफी कॅरियर होने की वजह से इसे कॅरियर का खजाना कहा जा सकता है। आज विकास की परिकल्पना साइंस के बिना अधूरी है, क्योंकि नई खोज अनवरत अध्ययन और प्रयोग से संभव होती हैं। साइंस के स्टूडेंट्स अपनी बेहतरीन कॅरियर बनाने के साथ ही देश के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। नई खोज साइंस के बिना संभव नहीं है। इसके अलावा जीवन रक्षक दवाइयों के निर्माण से लेकर देश की सुरक्षा में भी साइंस प्रोफेशनल अहम होते हैं। आज विज्ञान की इतनी शाखाएं हैं कि आप अपनी रुचि और जरूरत के अनुरूप किसी भी क्षेत्र में कॅरियर बना सकते हैं। विज्ञान में अधिक से अधिक प्रोफेशनल्स आने की वजह से ही हम आज तरक्की की ट्रेडमिल पर तेजी से दौड रहे हैं। चीजें धीरे-धीरे ही सही, हमारे अनुकूल हो रही हैं। इसके अलावा 12वीं में यदि आपके पास साइंस है तो आप अपनी मनमर्जी से किसी भी स्ट्रीम में स्विचओवर कर सकते हैं।
माइंड सेट है महत्वपूर्ण
सोचने का तरीका अलग होना चाहिए
खुद पर भरोसा
औरों से अलग बनाने की सोच
लगातार प्रयास करने का जज्बा
बढिया कैलकुलेशन व तार्किक क्षमता
प्रयोग व विश्लेषण में रुचि
एकेडमिक लेवल पर साइंस विषय में अच्छे मा‌र्क्स
राष्ट्रीय विज्ञान दिवस
देश के जाने माने वैज्ञानिक सीवी रमन ने 28 फरवरी 1928 को अपनी विश्व विख्यात खोज रमन प्रभाव की घोषणा की थी। उनकी इसी उपलब्धि के उपलक्ष्य में भारत सरकार ने पहली बार 28 फरवरी 1987 को विज्ञान दिवस के रूप में मनाया। तभी से हर साल राष्ट्रीय विज्ञान व प्रौद्योगिकी परिषद के तत्वाधान में राष्ट्रीय विज्ञान दिवस का आयोजन किया जा रहा है। खोज के लिए उन्हें 1930 में भौतिकी का नोबेल प्राइज मिला। उनकी महान उपलब्धियों और अद्वितीय प्रतिभा को देखते हुए उन्हें 1954 मे भारत रत्न दिया गया। साइंस स्टूडेंट्स के लिए प्रमुख स्कॉलरशिप हैं:
साइंस स्कॉलरशिप
राजीव गांधी नेशनल फेलोशिप ल्ल एनसीईआरटी जूनियर प्रोजेक्ट फेलोशिप
विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर (जेआरएफ प्रोग्राम) ल्ल इंदिरा गांधी सेंटर फॉर एटॉमिक रिसर्च (जेआरएफ प्रोग्राम) ल्ल सीएसआईआर स्कॉलरशिप प्रोग्राम ल्ल लेडी मेहरबाई डी. टाटा स्कॉलरशिप प्रोग्राम ल्ल रमन्ना स्कॉलरशिप प्रोग्राम ल्ल फास्ट ट्रैक स्कीम फॉर यंग स्कॉलरशिप ल्ल नेशनल सांइस ओलंपियाड ल्ल किशोर वैज्ञानिक प्रोत्साहन योजना (केवीपीवाई)
टेक्सटाइल इंजीनिय¨रग
भारत में बनने वाले कपडे की बढिया क्वालिटी, डिजाइन आदि के चलते भारतीय कपडे व इससे जुडे कच्चे माल की मांग पूरी दुनिया में है। इसी के चलते यह फील्ड साइंस वर्ग केयुवाओं के लिए बेहतरीन राहें देता है। वे सभी युवा जिनके पास चार वर्षीय बीई (टेक्सटाइल), बीटेक (टेक्सटाइल इंजीनियरिंग), एमई, एमटेक जैसी डिग्रियां हैं या डिप्लेामा डिग्रियां हैं, उनके पास इस क्षेत्र में इंट्री के पूरे मौके हैं।
न्यूक्लियर इंजीनिय¨रग
न्यूक्लियर एनर्जी को भविष्य का ऊर्जाविकल्प माना जा रहा है। कम प्रदूषणक ारी व ऊर्जा उत्पादन की असीमित क्षमताओं के चलते न्यूक्लियर इंजीनियरिंग में कॅरियर स्कोप बढा है। सांइस (पीसीएम ग्रुप) के स्टूडेंट्स को यह क्षेत्र काफी कुछ ऑफर करता है।
स्पेस इंजीनिय¨रग
कृषि, विज्ञान, मेडिकल, जलवायु, डिफेंस जैसे सभी क्षेत्रों के विकास में स्पेस इंजीनियरिंग अप्रत्यक्ष रूप से बडी भूमिका निभाती है। ऐसे में स्पेस इंडस्ट्री विज्ञान वर्ग के छात्रों के लिए उम्दा विकल्प बन चुकी है।
आईटी
यदि आप12वीं सांइस स्ट्रीम से हैं तो कंप्यूटर इंजीनिय¨रग में बीटेक, बीई, एमई, एमटेक जैसे कोर्स कर इस सेक्टर में खुद की स्टेबिलिटी तय कर सकते हैं। देश के साथ विदेशों मे बढती आईटी प्रोफेशनल की मांग के कारण इस क्षेत्र में अच्छी कॅरियर ऑपरच्यूनिटीज पनप रही हैं।
फॉरेस्ट्री
वानिकी किसी भी देश की पारिस्थतिकी व अर्थव्यवस्था पर गहरा असर छोडती है। इस कारण सरकारें वनों केप्रबंधन पर आज खास ध्यान दे रही हैं। इस फील्ड में ग्रेजुएट व पीजी कोर्सकरके आप वाइल्ड लाइफ व एनीमल से जुडी अनेक संस्थाओं, वन विभाग, वाइल्ड लाइफ कंसल्टेंट के तौर पर काम के अवसर पा सकते हैं।
एग्रीकल्चर साइंस
देश के कुल जीडीपी में 23 फीसदी हिस्सेदारी रखने वाले एग्रीकल्चर सेक्टर की अहमियत को कम नहीं आंका जा सकता। एग्रीकल्चर साइंस में ग्रेजुएट व पीजी डिग्रीधारकों के लिए कृषि विवि, एनजीओ, एग्रीकल्चर ऑफिसर,रिसर्चर के तौर पर कॅरियर क ी कई मंजिलें हैं।
फिशरीज
ग्लोबलाइजेशन और सी फूड की बढती लोकप्रियता के बीच आज फिशरीज एक फायदेमंद कॅरियर बन चुका है। इस क्षेत्र में प्रोफेशनल्स को फिशरी मैनेजमेंट के साथ फिश जेनेटिक्स, ओसेनोग्राफी, इन्वायरनमेंटल साइंस में भी काम करना होता है।
स्वायल कंजरवेशन
भारत जैसे कृषि प्रधान देश में भूमि की उर्वरता, उसकी क्षमताएं काफी मायने रखती है। यही कारण है कि देश की कई एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटीज में चलने वाले स्वाइल/वाटर कंजरवेशन कोर्स काफी उपयोगी हो चले हैं। इसके अंतर्गत स्वाइल सर्वे, स्वाइल मैनेजमेंट, हाइड्रोलॉजिक प्लान्स की डिजाइन, रिसर्च जैसे काम आते हैं।
डॉक्टर है पहली पसंद
विकल्पों की बहुलता के बाद भी12वीं (पीसीबी) स्टूडेंटस की पहली पसंद डॉक्टर बनने का होता है। यह एक ऐसा क्षेत्र है, जहां12वीं पीसीबी ग्रुप के लोगों को ही जगह मिलती है। इस फील्ड में आप एमबीबीएस, एमएस, एमडी कोर्स करके कॅरियर को बुलंद रुतबा भी दे सकते हैं।
बायोइंफॉर्मेटिक्स
बायोइंफॉर्मेटिक्स एक तेजी से उभरता हुआ क्षेत्र है, जिसमें मॉलीक्यूलर बायोलॉजी के ज्ञान को इंफॉर्मेशन टेक्नोलाजी का कॉन्सेप्ट नईदिशा दे रहा है। इस क्षेत्र में12वीं में सांइस स्ट्रीम के स्टूडेंट्स को वरीयता मिलती है।
बायोटेक्नोलॉजी
बदलती लाइफस्टाइल में बायोटेक्नोलॉजी की भूमिका व्यापक हुई है। शायद इसके चलते इस फील्ड में इंट्री लेने वाले छात्रों की तादाद भी बढी है। बायोटेक्नोलॉजी में बीएससी, बीटेक, बीई समेत डिप्लोमा कोर्स के भी ऑप्शन हैं।
बायोकेमिकल इंजीनियरिंग
यहां इंजीनियरिंग के कॉन्सेप्ट व बायोलॉजी की समझ दोनों ही अहम हैं। इस क्षेत्र में उपयुक्त योग्यता रखने वालों के पास बायोटेक्नोलॉजी फ‌र्म्स, बायोलॉजिकल लैब्स, फूड बिवरेज कंपनी, एग्रीकल्चर, केमिकल इंडस्ट्री में जॉब्स के पूरे मौके होते हैं।
फूड टेक्नोलॉजी
बिजी लाइफस्टाइल के बीच पोषण की बढी जरूरतों के कारण फूड टेक्नोलॉजी आज भरोसेमंद कॅरियर बना है। इसके अंतर्गत फूड प्रोसेसिंग,स्टोरेज व प्रिजर्वेशन, पैकेजिंग, डिस्ट्रब्यूटिंग जैसे काम आते हैं। इसमें बीएससी इन फूड टेक्नोलॉजी (3 साल),एमएससी (2साल) जैसे डिग्री कोर्स के साथ कई सर्टिफिकेट कोर्स भी प्रचलित हैं।
साइंस: जरूरत ने बदली तस्वीर
विज्ञान की तेज चाल आज मिथक नहीं बल्कि सुखद सच्चाई है। यही कारण है कि जरूरत के अनुरूप साइंस ने कई नए क्षेत्र डेवलप किए हैं, जिस कारण साइंस के स्टूडेंट्स को कॅरियर च्वाइस के कई विकल्प मिले हैं.. कहा जाता हैकि मानव का पहला अविष्कार पेड के गोल तने से तैयार किया गया पहिया था। वह पहिया जिस पर से लुढकते-लुढकते मानव सभ्यता आज तरक्की क ी रफ्तार पकड चुकी है। तब इंसान को न तो न्यूटन के गति विषयक नियमों की जानकारी थी और न ही घर्षण के सिद्धांत से ही कुछ लेना देना था। बावजूद इसके आवश्यकता का सिद्धांत तो कहीं न कहीं था ही, जिसने तत्कालिक जरूरत के मुताबिक इंसान को अविष्कार करने की सहज प्रेरणा दी। इस दौरान तेजी से वर्गीकरण से साइंस की कई ब्रांचेज भी जन्म ले चुकी हैं। यहां न तो अवसरों की कमी है, न उनसे मिलने वाली सौगातों की। जरूरत है, तो बस रुचि के अनुरूप अपने क्षेत्रों का चयन करके कठिन मेहनत करने की।
इंजीनियरिंग है बैकबोन
इंजीनियरिंग सेक्टर देश की इकोनॉमी काबैकबोन कहलाता है। इसकी अहमियत इसलिए भी हैकि देश की तरक्की में योगदान देने वाले कई सेक्टर इससे जुडे हैं। ये सेक्टर तेज विकास दर और जोरदार इंप्लॉयमेंट पोटेंशियल के चलते युवाओं क ी खास पंसद बने हुए हैं। 12वीं के बाद इस क्षेत्र की ओर अधिकतर स्टूडेंट्स का रुझान इसी बात को दर्शाता है। इन सबके बीच यदि आप भी इंजीनियरिंग के बहुरंगी संसार में खुद को आजमाना चाहते हैं तो विकल्प ही विकल्प हैं।
डिफेंस साइंस
स्ट्रीम है मेन स्ट्रीम
रक्षा क्षेत्र में हमेशा से युवा जोश के साथ-साथ साइंटिफिक सोच की दरकार होती है। यहां बतौर ऑफिसर इंट्री क ी न्यूनतम योग्यता 10+2(सांइस) होती है। इसमें मैथ्स व बायो दोनों ही वर्गो के युवाओं को जगह मिलती है। सेना की मेडिकल कोर, इंजीनियरिंग कोर ,एयरफोर्स में पायलट व अन्य टेक्निकल पोस्ट के लिए साइंस वर्ग के कैंडिडेट्स ही अप्लाईकर सकते हैं। एनडीए, सीडीएस, डायरेक्ट इंट्री स्कीम, एसएसबी जैसे कई माध्यमों से आप सशस्त्र सेनाओं के किसी भी अंग में अपनी जगह बना सकते हैं। इसके अलावा आप कॉलेज में साइंस के लेक्चरर व स्कूलों में साइंस टीचर बनकर आनेवाली पीढी को योग्य बना सकते हैं।
एग्रीकल्चर: द परफेक्ट कॅरियर ऑप्शंस
कृषि आज देश के लोगों को रोजगार देने वाला सबसे बडा जरिया है। कुल जीडीपी में इसका बडा योगदान है। कृषि की विषद उपयोगिता देखते हुए इसके प्रसार को लेकर प्रयास किए जा रहे हैं। आज इस क्षेत्र में साइंस स्ट्रीम से संबध रखने वाले फ्रेशर्स, एग्रीकल्चर ग्रेजुएट, एक्सप‌र्ट्स की भारी मांग है।
मेडिकल में जॉब
साइंस ग्रुप में केवल मैथ्स ही नहीं बल्कि बायो स्ट्रीम स्टूडेंट्स के लिए भी अच्छे अवसर होते हैं। अब तक माना जाता था कि बायो स्टूडेंट्स के पास अवसर केवल मेडिकल प्रोफेशनल तक ही सीमित हैं, लेकिन यह धारणा पीछे छूटती नजर आ रही है। इन दिनो बायोलॉजी वर्ग के छात्रों के लिए बायो टेक्नोलॉजी, बायोइंफॉर्मेटिक्स से लेकर फूड प्रोसेसिंग, इन्वायरनमेंटल साइंस, एग्रीकल्चर में शानदार मौके पनप रहे हैं। ये सब ऐसे सेक्टर हैं, जिसमें सिर्फ बायो ग्रुप के स्टूडेंट्स ही कॅरियर बना सकते हैं।
टॉप कॅरियर, टॉप एग्जाम
एआईईईई व आईआईटीजेईई: इंजीनियरिंग क्षेत्र में टॉप जॉब्स के लिए एआईईईई व आईआईटीजेईई महत्वपूर्ण एग्जाम है। देश के सर्वश्रेष्ठ इंजीनियरिंग संस्थानों में प्रवेश के लिए हर साल देश के लाखों युवा इन परीक्षाओं भाग लेते हैं।
एआईपीएमटी: 12वीं बायो वर्ग के वे छात्र जो डॉक्टर बन अपनी किस्मत संवारना चाहते हैं, उनके लिए ये परीक्षा सबसे अहम है। ऑल इंडिया लेवल पर इस परीक्षा का आयोजन देश और राज्य स्तर पर किया जाता है। आईएफएस: भारतीय वन सेवा,अखिल भारतीय सेवाओं में आईएएस,आईपीएस की तीसरी कडी है। वहीं राज्य स्तर पर राज्य वन सेवा व अधीस्थ वन सेवा होती हैं। एग्रीकल्चर व फॉरेस्ट्री में कॅरियर देखने वाले कैंडिडेट्स के लिए यह परीक्षा बडी संभावना जगाती है।
आईसीएआर: एग्रीकल्चर में प्रवेश चाहने वाले स्टूडेंट्स के लिए यह परीक्षा अहम होती है। इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चर रिसर्च यानी आईसीएआर यूजी और पीजी प्रोग्राम के लिए एआईईईए परीक्षा आयोजित करती है। बीआईटीएसएटी: यह परीक्षा भी साइंस स्टूडेंट के लिए काफी महत्वपूर्ण है। इसमें इंजीनियरिंग के अलावा साइंस से रिलेटेड कई तरह के कोर्स की पढाई होती है।
जेएनयू कम्बाइंड बायोटेक्नोलॉजी टेस्ट: बायोटेक्नोलॉजी में प्रवेश पाने वाले स्टूडेंट्स के लिए यह परीक्षा काफी अहम होती है। बायोटेक्नोलॉजी में प्रवेश के लिए आईआईटी और जेएनयू के अलावा देश में कई बडे संस्थान हैं, जिसमें बेहतरीन कॅरियर बनाया जा सकता है।
आईआईएसटी: इंडियन इंस्टीटयूट ऑफ स्पेस साइंस एंड टेक्नोलॉजी, स्पेस साइंस में रुचि रखनेवाले स्टूडेंट्स को एडमिशन देती है। आप इसमें एडमिशन लेकर स्पेस साइंस से संबंधित कोर्स में एडमिशन ले सकते हैं।
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१२ के बाद एकेडमिक कैरियर by चिरागन

इस समय प्राय: सभी स्टूडेंट्स प्रोफेशनल कोर्स की परीक्षा देने के बाद एकेडमिक कोर्स के बारे में भी सोच रहे होंगे। अगर आप भी एकेडमिक कोर्स के बारे में सोच रहे हैं, तो हम बता रहे हैं कि आपके लिए क्यों है बेहतर कोर्स..
आज का जॉब सिनारियो तेजी से बदल रहा है। इन दिनों किसी खास जॉब में फिट बैठने के लिए प्रोफेशनल कोर्स करना समय की मांग बन गई है। लेकिन एकेडमिक फील्ड की भी अलग महत्ता है। युवाओं के पास प्रोफेशनल कोर्स के बेहतर विकल्प होने के बावजूद एकेडमिक कोर्स की महत्ता बनी हुई है। आज भी बेहतर कॉलेज में एडमिशन के लिए युवाओं की लंबी कतार लगती है और बेहतर परसेंटेज प्राप्त करने वाले अभ्यर्थियों को ही वरीयता मिलती है। अगर आप एकेडमिक कोर्स में दाखिला लेना चाहते हैं, तो आपके पास कॅरियर के अनेक रास्ते हैं, जहां आप बेहतर मंजिल की तलाश कर सकते हैं।
एकेडमिक में हैं बेहतर अवसर एकेडमिक फील्ड अच्छा है या प्रोफेशनल, अक्सर स्टूडेंट्स इसी उधेडबुन में रहते हैं। वे सोचते हैं कि इसमें बेहतर अवसर नहीं हैं। इस संबंध में विशेषज्ञ कहते हैं कि एकेडमिक फील्ड चुनने वाले कैंडिडेट्स के लिए अवसरों की कमी नहीं है। बस जरूरत है जानकारी की। इन दिनों कुछ स्टूडेंट्स को यह भी लगता है कि बीए प्रोग्राम या पास की प्रासंगिकता खत्म हो गई है और ऑनर्स कोर्स ही सही है। कॅरियर विशेषज्ञ की मानें, तो ऑनर्स की अपेक्षा बीए प्रोग्राम में स्टूडेंट्स के लिए ऑप्शंस ज्यादा होते हैं। इस कारण दोनों ही कोर्स का महत्व इस समय बरकरार है।
किस तरह के होते हैं कोर्स
एकेडमिक कोर्सो में बीए-ऑनर्स, बीए-प्रोग्राम, बीएससी-मैथ, बीएससी-बॉयो, बीएससी-एग्रिकल्चर जैसे तमाम तरह के तीन वर्षीय कोर्स उपलब्ध हैं। इसके बाद दो वर्षीय एमए, एमएससी और आगे एमफिल, पीएचडी भी किया जा सकता है। बीए-ऑनर्स और प्रोग्राम में भी विभिन्न विषयों के विकल्प मौजूद हैं। इसके अलावा, बीकॉम कोर्स है। बीकॉम करने के बाद कई नई राहें खुल सकती हैं। फिर चाहें, तो आगे एमकॉम भी कर सकते हैं। इसी तरह, बारहवीं के बाद पांच वर्षीय एकीकृत लॉ कोर्स करके एडवोकेट या लीगल एडवाइजर के रूप में कॅरियर की शुरुआत की जा सकती है।
कोर्स कॉम्बिनेशन पर दें ध्यान
अंडरग्रेजुएट कोर्स आपके कॅरियर की नींव निर्धारित करते हैं। ग्रेजुएशन के बाद ही आप एमए, एमफिल, रिसर्च या आगे की पढाई में बेहतर कर सकते हैं। इसलिए जिस विषय में रुचि है, उसे ही चुनें तो बेहतर होगा। इन दिनों इंजीनियरिंग, मेडिकल, लॉ, टीचिंग जैसे परंपरागत विषयों के साथ-साथ सैकडों नए विकल्प भी सामने आ गए हैं। ऐसे में एक या दो विषय में ही उच्च शिक्षा हासिल करने की जो मजबूरी पहले थी, वह अब नहीं है। इस कारण विषय के चयन में इस बात का अवश्य ध्यान रखें। इससे बेहतर विकल्प मिलेंगे। जैसे, यदि इंग्लिश ऑनर्स में दाखिला लेने का मन बना रहे हैं, तो रुचि के अनुरूप इकोनॉमिक्स या एकाउंटेंसी ले सकते हैं। इससे फायदा यह होगा कि यदि इंग्लिश ऑनर्स में दाखिला न भी मिल पाए, तो दूसरे विषयों में दाखिला मिल सकता है। इसी तरह, साइंस की फील्ड भाती है, तो यहां भी आपको इसी फार्मूला पर अमल करना चाहिए। यदि साइंस से बीएससी करते हैं, तो उस विषय को वरीयता दें, जिसमें बीएससी के बाद बेहतर विकल्प हों। उदाहरण के लिए न्यूक्लियर साइंस, नैनो-टेक्नोलॉजी, इंडस्ट्रियल केमिस्ट्री आदि में यदि बीएससी हैं, तो बिना बीटेक किए एमटेक कर सकते हैं। इसके अलावा इन दिनों कम्प्यूटर साइंस, इलेक्ट्रॉनिक्स, बॉयोटेक्नोलॉजी, फूड टेक्नोलॉजी और फिशरीज से संबंधित विषय भी काफी पॉपुलर हो रहे हैं। आप कॅरियर चुनते समय इन बातों का ध्यान रखेंगे, तो आगे बढने में परेशानी नहीं होगी। आप जिस फील्ड में कॅरियर बनाना चाहते हैं, सुनिश्चित करें कि संबंधित योग्यता आपमें हैं या नहीं!
विशेषज्ञों से लें सलाह
12वीं के बाद आप एक ऐसे चौराहे पर खडे होते हैं, जहां आकर अक्सर कई दुविधाएं सामने होती हैं। क्या करें, क्या नहीं, किस विषय को चुनें, क्या बेहतर है और कितना स्कोप? ऐसे तमाम सवाल परेशान करते हैं, तो आपको काउंसलर की मदद जरूर लेनी चाहिए। मार्गदर्शन न मिलने के कारण हो सकता है कि आप गलत दिशा में कदम बढा लें और बाद में रिकवरी का भी मौका न मिले। ऐसी हालत में कुछ स्टूडेंट्स अपने मित्रों की देखा-देखी कोर्स का चुनाव कर लेते हैं या फिर अपने अभिभावक की इच्छा को अनमने ढंग से स्वीकार कर लेते हैं। काउंसलर की मदद से आप इस तरह की परेशानी से बच सकते हैं। कहने का आशय यह है कि जिन कैंडिडेट्स को एकेडमिक फील्ड में रुचि है, पढाई का शौक है, विषय को गहराई से समझने की भूख है, उनके लिए अवसरों की कोई कमी नहीं है। किसी भी क्षेत्र में सफल होने के लिए आपकी रुचि, योग्यता और ईमानदार कोशिश ही रंग लाती है। इस कारण आप खुद निर्धारित करें कि आप किस क्षेत्र में बेहतर प्रदर्शन कर सकते हैं।
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