Bhikhari thakur भिखारी ठाकुर |
भिखारी ठाकुर ने बिदेसिया, भाई-विरोध, बेटी-वियोग, विधवा-विलाप, कलयुग-प्रेम, राधेश्याम बहार, गंगा-स्नान, पुत्र-वध, गबरघिचोर, बिरहा-बहार, नकलभांड के नेटुआ, और ननद-भउजाई आदि नाटकों की रचना की। भजन-कीर्तन और गीत-कविता आदि की लगभग इतनी ही पुस्तकें प्रकाशित हुईं। लोक प्रचलित धुनों में रचे गये गीतों और मर्मस्पर्शी कथानक वाले नाटक बिदेसिया ने भोजपुरीभाषी जनजीवन की चिंताओं को अभिव्यक्ति दी। जीविका की तलाश में दूरस्थ नगरों की ओर गये लोगों की गांव में छूट गयी स्त्रियों की विविध छवियों को उन्होंने रंगछवियों में रूपांतरित किया। अपनी लोकोपयोगिता के चलते बिदेसिया भिखारी ठाकुर के समूचे सृजन का पर्याय बन गया। बेटी-वियोग में स्त्री-पीड़ा का एक और रूप सामने था। पशु की तरह किसी भी खूंटे से बांध दिये जाने का दुख और वस्तु की तरह बेच कर धन-संग्रह के लालच की निकृष्टता को उन्होंने अपने इस नाटक का कथ्य बनाया और ऐसी रंगभाषा रची जिसकी अर्थदीप्ति से गह्वरों में छिपीं नृशंसताएं उजागर हो उठीं। यह अतिशयोक्ति नहीं है और जनश्रुतियों में दर्ज है कि बेटी-वियोग के प्रदर्शन से भोजपुरीभाषी जीवन में भूचाल आ गया था। भिखारी ठाकुर को विरोध का सामना करना पड़ा। पर यह विरोध सांच की आंच के सामने टिक न सका। उनकी आवाज़ और अपेक्षाकृत टांसदार हो उठी। इतनी टांसदार कि आज़ादी के बाद भी स्त्री-पीड़ा का नाद बन हिंदी कविता तक पहुंची। बेटी-वियोग का नाम उन दिनों ही गुम हो गया और जनता ने इसे नया नाम दिया – बेटी-बेचवा। गबरघिचोर नाटक में भिखारी ठाकुर विस्मित करते हैं। उनकी पृष्ठभूमि ऐसी नहीं थी कि उन्होंने खड़िया का घेरा पढ़ा या देखा हो। कोख पर स्त्री के अधिकार के बुनियादी प्रश्न को वह जिस कौशल के साथ रचते हैं, वह लोकजीवन के गहरे यथार्थ में धंसे बिना सम्भव नहीं।
भिखारी ठाकुर पर यह आरोप लगता रहा कि वह स्वतंत्रता संग्राम के उथल-पुथल भरे समय में निरपेक्ष होकर नाचते-गाते रहे। यह सवाल उठता रहा कि क्या सचमुच भिखारी ठाकुर के नाच का आज़ादी से कोई रिश्ता था। उनके नाच का आज़ादी से बड़ा सघन रिश्ता था। अंग्रेज़ों से देश की मुक्ति के कोलाहल के बीच उनका नाच आधी आबादी के मुक्ति-संघर्ष की ज़मीन रच रहा था। भिखारी ठाकुर की आवाज़ अधरतिया की आवाज़ थी। अंधेरे में रोती-कलपती और छाती पर मुक्के मारकर विलाप करती स्त्रियों का आवाज़। यह आवाज़ आज भी भटक रही है। राष्ट्रगान से टकरा रही है। (आलोचना पत्रिका में पूर्व प्रकाशित लेख का संपादित अंश)
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