भारतीय प्रशासनिक सेवा के एक भ्रष्ट अफसर की संपत्ति जब्त कर बिहार ने रास्ता दिखाया है। यह रास्ता सुशासन की ओर जाता है, जहां विकास की ओर तेजी से डग भरता प्रदेश पारदर्शी शासन-प्रशासन का बेहतरीन उदाहरण प्रस्तुत कर रहा है। कभी बिहार नकारात्मक छवि के लिए पूरे देश में कुख्यात था। अब तेजी से छवि बदल रही है। ऐसा एक दिन में नहीं हुआ।
इसके लिए दृढ़ इच्छाशक्ति के साथ-साथ दूरदर्शी नेतृत्व का होना बेहद जरूरी है। झारखंड भी कभी बिहार का अंग हुआ करता था। उस वक्त शिकायत होती थी कि खनिज से भरपूर इस इलाके की उपेक्षा होती है। इसी के आधार पर अलग झारखंड राज्य के आंदोलन ने गति पकड़ी। 15 नवंबर 2000 को राज्य गठित होने की उमंग लोगों के भीतर थी। शुरू में उत्साह बरकरार रहा। बिहार हमें ईष्र्या की नजर से देखता था। राज्य को कुदरत ने वह सब कुछ दिया था जो समृद्धि के लिए आवश्यक है परंतु वक्त के साथ-साथ तस्वीर विकृत होती चली गई। झारखंड वहीं खड़ा रहा या पीछे खिसकता गया और बिहार की प्रगति को हम रोल मॉडल मानने लगे। राज्य के उप मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने सार्वजनिक मंच पर स्वीकारा कि इससे अच्छे तो हम बिहार में थे। आखिरकार इसके लिए जिम्मेदार कौन है? महज 11 वर्ष के किशोरवय में झारखंड के माथे पर घोटाले दर घोटाले के दाग हैं। एक पूर्व मुख्यमंत्री जेल की हवा खा रहे हैं। उसकी कैबिनेट के चार पूर्व सहयोगी भी वहां उनका साथ दे रहे हैं। कई वरिष्ठ आइएएस अधिकारी भी जेल में हैं। इन सबों पर घोर वित्तीय अनियमितता के गंभीर आरोप हैं। सरकारी खजाने को ऐसे अफसरों ने अपने खाते का पैसा समझा और जमकर लूटपाट मचाई। नियम-कायदे-कानून धरे के धरे रह गए। एक संदेश गया कि लूटने की छूट है। हाल के दिनों में झारखंड में भी सरकार ने सख्ती बरती है। ऐसे लोगों की फाइल खंगाली जा रही हैं, जिन्होंने गबन कर अपने खजाने भरे। दर्जनों वैसे अधिकारियों की पेंशन रोकी गई है, जो घोटाले के आरोप में चिन्हित किए गए थे। बहरहाल कड़ाई बरतने का यह सही समय है। बिहार में जिस अफसर की संपत्ति जब्त करने का आदेश सरकार ने दिया है, वे लंबे समय तक झारखंड में भी अपनी सेवाएं दे चुके हैं। उनके किलेनुमा आलीशान मकान में अब विद्यालय खोलने की तैयारी बिहार सरकार कर रही है। झारखंड सरकार ऐसे उदाहरणों से सबक ले और भ्रष्टाचार पर वार करने की कार्रवाई लगातार चलाए।
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