यूरोप के जिप्सियों का
संबंध भारत से है, यह कोई नई जानकारी नहीं है। नई बात यह है कि यूरोप में
इन लोगों की जड़ें पिछले अनुमानों से कहीं ज्यादा गहरी हैं। जीन
वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि उतरी पश्चिमी भारत (संभवत: आज का पंजाब) से
एक ही आबादी के लोगों ने करीब 1500 वर्ष पहले यूरोप जाना शुरू कर दिया था।
आज ये लोग यूरोप के प्राय: हर देश में रहते हैं, अलग-अलग बोलियां बोलते
हैं और अलग-अलग धर्मों का पालन करते हैं। जिप्सी समुदाय यूरोप का सबसे बड़ा
अल्पसंख्यक वर्ग है। इनकी आबादी करीब 1.1 करोड़ है। उनकी संख्या यूरोप के
कई देशों की आबादी की बराबरी करती है।
जिप्सी लोगों को रोमा अथवा रोमानी भी कहा जाता है। वैज्ञानिकों के मुताबिक ये लोग भारत से सबसे पहले यूरोप के बाल्कन प्रायद्वीप (रोमानिया, बुल्गेरिया, सर्बिया, स्लोवाकिया आदि) पहुंचे थे। वहां से करीब 900 साल पहले उन्होंने यूरोप के दूसरे देशों में फैलना शुरू किया। ये लोग संभवत: 1513 में ब्रिटेन पहुंचे थे। स्पेन के पोम्पेयु फाब्रा विश्वविद्यालय के जीव-विज्ञान संस्थान के वैज्ञानिकों ने जिप्सी लोगों के आनुवंशिक स्रोतों पर अनुसंधान किया है।
संस्थान के एक प्रमुख वैज्ञानिक, प्रो. डेविड कोमास का कहना है कि यूरोप के रोमानी समुदाय यूरोपीय आबादी का एक बहुत ही महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसी वजह से हम उनकी आबादी का इतिहास जानना चाहते हैं। इन लोगों का अभी तक वैज्ञानिक अध्ययन नहीं हो पाया है क्योंकि इन लोगों के उद्गम और दूसरे देशों में उनके फैलाव के बारे कोई लिखित इतिहास नहीं है। अत: रिसर्चरों ने उनका आनुवंशिक इतिहास जानने के लिए यूरोप में फैले हुए 13 रोमानी समूहों के आनुवंशिक आंकड़े एकत्र किए। इन आंकड़ों के विस्तृत अध्ययन के बाद उन्होंने इस बात की पुष्टि कर दी कि यूरोपीय रोमानी लोगों का मूल स्थान भारत ही है।
'करेंट बायलॉजी' पत्रिका में प्रकाशित इस अध्ययन के सह-लेखक, डच वैज्ञानिक प्रो. मैन्फ्रेड कैसर का कहना है कि यूरोपीय लोगों की संपूर्ण आनुवंशिक तस्वीर तैयार करने के लिए रोमानी लोगों की आनुवंशिक विरासत को समझना बहुत जरूरी है। मानव के विकास क्रम और स्वास्थ्य विज्ञान जैसे विभिन्न क्षेत्रों के लिए भी इस तरह का अध्ययन आवश्यक है। ब्रिटेन के लोग शुरू-शुरू में यह मानते थे कि रोमानी लोग मिस्र से आए हैं। प्रारंभिक यूरोपीय इतिहास में जिप्सियों का उल्लेख खानाबदोश समुदाय के रूप में किया गया है। इन लोज्जें की संगीत में प्रवीणता और उनके अद्भुत घुड़सवारी कौशल का भी उल्लेख मिलता है। जिप्सियों का सबसे पुराना उल्लेख 15 वीं शताब्दी में स्पेन से आया था। जिप्सी लोगों को पारंपरिक रूप से खानाबदोश के रूप में जाना जाता है। यूरोप की संस्कृति के विभिन्न रूपों, खासकर संगीत और लोक नृत्यों पर जिप्सियों ने गहरी छाप छोड़ी है। मशहूर स्पेनी डांस, फ्लेमेंको रोमानी प्रभाव की जीती जागती मिसाल है।
सदियों से यूरोपीय महाद्वीप में रहने के बावजूद जिप्सियों को आज भी समाज में सम्मानजनक स्थान नहीं मिला है। हिटलर के समय करीब पांच लाख जिप्सियों का नरसंहार हुआ था। वे आज भी विभिन्न देशों में नफरत, उत्पीड़न और भेदभाव के शिकार हैं। फ्रांस में सार्कोजी प्रशासन और इटली में बर्लुस्कोनी प्रशासन के दौरान जिप्सियों को चुन कर निशाना बनाया गया। इटली में तो उन्हें जबरन बेदखल भी किया गया। ज्यादातर जिप्सी परिवार गरीबी से जूझ रहे हैं। हंगरी में यूरोपीय रोमा अधिकार केंद्र के प्रमुख रॉबर्ट कुशनर का कहना है कि हंगरी में छठी शताब्दी से जिप्सी लोग बसे हुए हैं। इतनी सदियां गुजरने के बावजूद उनके प्रति भेदभाव जारी है।
ये लोग नौकरियां पाने और अपने बच्चों को अच्छे स्कूलों में भेजने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। यूरोपीय धरती पर गहरी जड़ों के बावजूद उन्हें मुख्यधारा से अलग रखा जाता है। नेताओं के भाषणों में उनके प्रति अक्सर जहर उगला जाता है। कुशनर के अनुसार आने वाले समय में अनेक यूरोपीय देशों के कार्यबल में करीब 25 प्रतिशत लोग जिप्सी होंगे। अत: आर्थिक, नैतिक और सामाजिक कारणों से जिप्सियों के प्रति भेदभाव की समस्या से निपटना बहुत जरूरी है। समाज में जिप्सियों को प्रतिष्ठित स्थान दिलाने के लिए उनके मानव अधिकार बहाल किए जाने चाहिए।
जिप्सी लोगों को रोमा अथवा रोमानी भी कहा जाता है। वैज्ञानिकों के मुताबिक ये लोग भारत से सबसे पहले यूरोप के बाल्कन प्रायद्वीप (रोमानिया, बुल्गेरिया, सर्बिया, स्लोवाकिया आदि) पहुंचे थे। वहां से करीब 900 साल पहले उन्होंने यूरोप के दूसरे देशों में फैलना शुरू किया। ये लोग संभवत: 1513 में ब्रिटेन पहुंचे थे। स्पेन के पोम्पेयु फाब्रा विश्वविद्यालय के जीव-विज्ञान संस्थान के वैज्ञानिकों ने जिप्सी लोगों के आनुवंशिक स्रोतों पर अनुसंधान किया है।
संस्थान के एक प्रमुख वैज्ञानिक, प्रो. डेविड कोमास का कहना है कि यूरोप के रोमानी समुदाय यूरोपीय आबादी का एक बहुत ही महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसी वजह से हम उनकी आबादी का इतिहास जानना चाहते हैं। इन लोगों का अभी तक वैज्ञानिक अध्ययन नहीं हो पाया है क्योंकि इन लोगों के उद्गम और दूसरे देशों में उनके फैलाव के बारे कोई लिखित इतिहास नहीं है। अत: रिसर्चरों ने उनका आनुवंशिक इतिहास जानने के लिए यूरोप में फैले हुए 13 रोमानी समूहों के आनुवंशिक आंकड़े एकत्र किए। इन आंकड़ों के विस्तृत अध्ययन के बाद उन्होंने इस बात की पुष्टि कर दी कि यूरोपीय रोमानी लोगों का मूल स्थान भारत ही है।
'करेंट बायलॉजी' पत्रिका में प्रकाशित इस अध्ययन के सह-लेखक, डच वैज्ञानिक प्रो. मैन्फ्रेड कैसर का कहना है कि यूरोपीय लोगों की संपूर्ण आनुवंशिक तस्वीर तैयार करने के लिए रोमानी लोगों की आनुवंशिक विरासत को समझना बहुत जरूरी है। मानव के विकास क्रम और स्वास्थ्य विज्ञान जैसे विभिन्न क्षेत्रों के लिए भी इस तरह का अध्ययन आवश्यक है। ब्रिटेन के लोग शुरू-शुरू में यह मानते थे कि रोमानी लोग मिस्र से आए हैं। प्रारंभिक यूरोपीय इतिहास में जिप्सियों का उल्लेख खानाबदोश समुदाय के रूप में किया गया है। इन लोज्जें की संगीत में प्रवीणता और उनके अद्भुत घुड़सवारी कौशल का भी उल्लेख मिलता है। जिप्सियों का सबसे पुराना उल्लेख 15 वीं शताब्दी में स्पेन से आया था। जिप्सी लोगों को पारंपरिक रूप से खानाबदोश के रूप में जाना जाता है। यूरोप की संस्कृति के विभिन्न रूपों, खासकर संगीत और लोक नृत्यों पर जिप्सियों ने गहरी छाप छोड़ी है। मशहूर स्पेनी डांस, फ्लेमेंको रोमानी प्रभाव की जीती जागती मिसाल है।
सदियों से यूरोपीय महाद्वीप में रहने के बावजूद जिप्सियों को आज भी समाज में सम्मानजनक स्थान नहीं मिला है। हिटलर के समय करीब पांच लाख जिप्सियों का नरसंहार हुआ था। वे आज भी विभिन्न देशों में नफरत, उत्पीड़न और भेदभाव के शिकार हैं। फ्रांस में सार्कोजी प्रशासन और इटली में बर्लुस्कोनी प्रशासन के दौरान जिप्सियों को चुन कर निशाना बनाया गया। इटली में तो उन्हें जबरन बेदखल भी किया गया। ज्यादातर जिप्सी परिवार गरीबी से जूझ रहे हैं। हंगरी में यूरोपीय रोमा अधिकार केंद्र के प्रमुख रॉबर्ट कुशनर का कहना है कि हंगरी में छठी शताब्दी से जिप्सी लोग बसे हुए हैं। इतनी सदियां गुजरने के बावजूद उनके प्रति भेदभाव जारी है।
ये लोग नौकरियां पाने और अपने बच्चों को अच्छे स्कूलों में भेजने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। यूरोपीय धरती पर गहरी जड़ों के बावजूद उन्हें मुख्यधारा से अलग रखा जाता है। नेताओं के भाषणों में उनके प्रति अक्सर जहर उगला जाता है। कुशनर के अनुसार आने वाले समय में अनेक यूरोपीय देशों के कार्यबल में करीब 25 प्रतिशत लोग जिप्सी होंगे। अत: आर्थिक, नैतिक और सामाजिक कारणों से जिप्सियों के प्रति भेदभाव की समस्या से निपटना बहुत जरूरी है। समाज में जिप्सियों को प्रतिष्ठित स्थान दिलाने के लिए उनके मानव अधिकार बहाल किए जाने चाहिए।
No comments:
Post a Comment