पश्चिम के लोगों को लेकर
यहां एक धारणा बनी हुई है, जैसे वे जिंदगी भर सिर्फ घूमते-फिरते और ऐश करते
रहते हैं। इनका दांपत्य जीवन हम भारतीयों की तरह लंबे समय तक नहीं निभ
पाता। संबंध कभी भी टूट जाते हैं और दोनों झटपट दूसरा पार्टनर खोज कर
अपने-अपने रास्ते चल देते हैं। मैंने कई जगह यूरोपियनों को देख कर यह महसूस
किया कि वे घूमने या तो अकेले या फिर दोस्तों के साथ आते हैं। बीवी बच्चों
के साथ मुझे इक्का दुक्का ही नजर आए।
इसलिए मैं भी ऐसा ही सोचती थी, लेकिन बीते दिनों ऋषिकेश में एक विदेशी महिला के साथ मिलकर मेरी ये सोच काफी हद तक बदल गई। अभी कुछ दिन पहले अपने ऋषिकेश प्रवास के दौरान मैं एक स्थानीय रेस्तरां में लंच करने गई। साथ वाली सीट पर एक विदेशी महिला अकेली बैठी थी। जैसे ही उससे नजर मिली, मैं मुस्कुराई और हाथ उठा कर 'हाय' कहा। जवाब में उसने मुझे हाथ जोड़ कर अपने अंदाज में 'नमस्ते' कहा। बातचीत के दौरान पता लगा कि उसका नाम पिगरेट है। ऋषिकेश वह जर्मनी से अपने घुटने के दर्द का आयुर्वेदिक इलाज करवाने आई थी। उसके किसी दोस्त ने बताया था कि भारत के ऋषिकेश में घुटने के दर्द का बढ़िया आयुवेर्दिक इलाज होता है।
वहां वह एक आश्रम में पिछले दो महीनों से ठहरी हुई थी। कहने को उसकी उम्र 59 साल थी पर वह 40 से ऊपर की नहीं लगती थी। कुछ देर बाद बोली कि तुम्हारे बराबर का तो मेरा बेटा है। फिर मेरे चौदह वर्षीय बेटे को देखकर बोली- इसके जितना मेरा पोता है। अपने पोते के बारे में बात करते हुए उसकी आंखों में वात्सल्य उमड़ता दिख रहा था। पिगरेट के दो बेटे हैं। एक बेटा अपने परिवार के साथ अमेरिका में रहता है क्योंकि वह वहीं नौकरी करता है जबकि दूसरा बेटा अपने परिवार सहित पिगरेट और उनके पति के साथ रहता है।
मुझे उनसे मिलकर पता चला कि फिरंगी भी भरे-पूरे परिवार में साथ रहते हैं। पिगरेट जर्मनी में एक स्पेशल स्कूल के बच्चों के साथ काम करती हैं। वह भारत अकेली और पहली बार आई थी और अब काफी हद तक ठीक होकर वापस अपने देश जा रही थी। पिगरेट ने बताया कि जर्मनी में भी स्त्री-पुरुष की बराबरी को लेकर हालत बहुत अच्छी नहीं है। वहां की नई पीढ़ी के लड़के तो अब काफी हद तक लड़कियों को बराबर समझने लगे हैं, लेकिन पुरानी पीढ़ी अब भी पुरातनपंथी सोच में ही जी रही है। पिगरेट ने कहा कि जब मैं तुम्हारे जितनी थी, तब मेरे पास नई जगहें घूमने के लिए पैसे नहीं थे, लेकिन अब हैं तो मैंने मौका नहीं गंवाया। उसने जाते-जाते मुझे भी सलाह दी कि जितनी नई जगहें देख सकती हो देखो। किसी जगह को अच्छी तरह से देखकर जो ज्ञान मिलता है वह अनमोल होता है और हमेशा याद रहता है।
इसलिए मैं भी ऐसा ही सोचती थी, लेकिन बीते दिनों ऋषिकेश में एक विदेशी महिला के साथ मिलकर मेरी ये सोच काफी हद तक बदल गई। अभी कुछ दिन पहले अपने ऋषिकेश प्रवास के दौरान मैं एक स्थानीय रेस्तरां में लंच करने गई। साथ वाली सीट पर एक विदेशी महिला अकेली बैठी थी। जैसे ही उससे नजर मिली, मैं मुस्कुराई और हाथ उठा कर 'हाय' कहा। जवाब में उसने मुझे हाथ जोड़ कर अपने अंदाज में 'नमस्ते' कहा। बातचीत के दौरान पता लगा कि उसका नाम पिगरेट है। ऋषिकेश वह जर्मनी से अपने घुटने के दर्द का आयुर्वेदिक इलाज करवाने आई थी। उसके किसी दोस्त ने बताया था कि भारत के ऋषिकेश में घुटने के दर्द का बढ़िया आयुवेर्दिक इलाज होता है।
वहां वह एक आश्रम में पिछले दो महीनों से ठहरी हुई थी। कहने को उसकी उम्र 59 साल थी पर वह 40 से ऊपर की नहीं लगती थी। कुछ देर बाद बोली कि तुम्हारे बराबर का तो मेरा बेटा है। फिर मेरे चौदह वर्षीय बेटे को देखकर बोली- इसके जितना मेरा पोता है। अपने पोते के बारे में बात करते हुए उसकी आंखों में वात्सल्य उमड़ता दिख रहा था। पिगरेट के दो बेटे हैं। एक बेटा अपने परिवार के साथ अमेरिका में रहता है क्योंकि वह वहीं नौकरी करता है जबकि दूसरा बेटा अपने परिवार सहित पिगरेट और उनके पति के साथ रहता है।
मुझे उनसे मिलकर पता चला कि फिरंगी भी भरे-पूरे परिवार में साथ रहते हैं। पिगरेट जर्मनी में एक स्पेशल स्कूल के बच्चों के साथ काम करती हैं। वह भारत अकेली और पहली बार आई थी और अब काफी हद तक ठीक होकर वापस अपने देश जा रही थी। पिगरेट ने बताया कि जर्मनी में भी स्त्री-पुरुष की बराबरी को लेकर हालत बहुत अच्छी नहीं है। वहां की नई पीढ़ी के लड़के तो अब काफी हद तक लड़कियों को बराबर समझने लगे हैं, लेकिन पुरानी पीढ़ी अब भी पुरातनपंथी सोच में ही जी रही है। पिगरेट ने कहा कि जब मैं तुम्हारे जितनी थी, तब मेरे पास नई जगहें घूमने के लिए पैसे नहीं थे, लेकिन अब हैं तो मैंने मौका नहीं गंवाया। उसने जाते-जाते मुझे भी सलाह दी कि जितनी नई जगहें देख सकती हो देखो। किसी जगह को अच्छी तरह से देखकर जो ज्ञान मिलता है वह अनमोल होता है और हमेशा याद रहता है।
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