Saturday, 18 May 2013

ग्रामसभा के अधिकार

1.            ग्राम संबंधी भूमि व्यवस्था एवं भू-राजस्व संबंधी जो भी अभिलेख, अधिकार आदि आज तहसील (तालुका) या अंचल को हैं, वे सब ग्रामसभा में निहित होंगे, जैसे-ज़मीन की बिक्री, आवंटन आदि के अधिकार.
2.            बड़ी सिंचाई योजनाओं में गांव के खेतों में पानी के बंटवारे का अधिकार या सिंचाई के स्थानीय स्रोतों पर ग्रामसभा का अधिकार होगा.
3.            वैसे ही गांव के अंदर या ग्राम के खेतों को बिजली के आवंटन का अधिकार ग्रामसभा का होगा.
4.            गांव संबंधी सभी करों की वसूली ग्रामसभा द्वारा होगी और ग्रामसभा को 10 प्रतिशत वसूली ख़र्च दिया जाएगा. भू-राजस्व पूरा ग्रामसभा का माना जाएगा.
5.            ग्राम संबंधी अन्य करों में लागत ख़र्च छोड़कर सभी मुनाफ़ा ग्रामसभा का माना जाएगा.
6.            ग्रामसभा को गांव के विकास कार्यों के लिए उसके निवासियों की आय का 30वां भाग या 40वां भाग या जो भाग ग्रामसभा समय-समय पर तय करे, वह ग्राम कोष के लिए वसूल करने का अधिकार होगा.
7.            केंद्र के या राज्य के अप्रत्यक्ष करों का कम से कम 50 प्रतिशत ग्रामसभा को उसकी जनसंख्या के अनुपात में दिया जाए.
8.            ग्राम के विकास के लिए ऋण लेने और पूंजी खड़ी करने का अधिकार ग्रामसभा को होगा.
9.            सिंचाई, गंवाई जंगल, गोचर-भूमि, शिक्षा, आरोग्य एवं सुरक्षा का अधिकार और दायित्व ग्रामसभा को होगा. गांव को लगने वाला एक साल का अनाज ग्रामसभा गांव में रखेगी. उसके बाद का अतिरिक्त अनाज लेवी द्वारा या अन्य तरी़के से ऊपर की सरकारें ग्रामसभा की सम्मति से ले जा सकेंगी.
10.          गांव के अंदर राशनिंग की दुकान चलाने का अधिकार ग्राम सभा को होगा.
11.          ग्राम से संबद्ध लेखपाल, शिक्षक, ट्यूबवेल ऑपरेटर, वन-रक्षक, पतरौल, ग्रामसेवक, पंचायत सचिव, स्वास्थ्य निरीक्षक आदि गांव से संबद्ध सभी कर्मचारी ग्रामसभा के अधीन ही कार्य करेंगे. उनकी पदोन्नति, वेतन वृद्धि आदि के सिलसिले में उनकी चरित्र-पंजिका में आख्या अंकित करना ग्रामसभा के अधिकार में होगा.
12.          गांव के सभी लोगों को पूरे समय अथवा फुर्सत के समय काम देने के लिए ग्रामोद्योगों और कुटीर उद्योगों को ऐसे ढंग से विकसित करना होगा कि गांव में पैदा होने वाले हर कच्चे माल को उसके पक्के रूप में परिवर्तित किया जा सके, ताकि गांव से बाहर कच्चे माल की बजाय पक्के रूप में ही निर्यात हो, ग्राम सभा का उत्तरदायित्व होगा.
13.          गांव में बाहर से आने वाले, गांव के लिए अहितकर अथवा अलाभकर या हानिकर किसी भी माल को प्रतिबंधित करने का अधिकार ग्राम सभा को होगा.
14.          पुलिस-हस्तक्षेप के विशिष्ट वादों को छोड़कर गांव संबंध सभी राजस्व, सिविल एवं क्रिमिनल वादों के निर्णय और निबटारे का अधिकार और दायित्व ग्रामसभा द्वारा चुनी हुई न्याय समिति (लोक अदालत) को होगा.
15.          ग्रामसभा अपनी उन आवश्यकताओं के लिए, जो उसके सीमा क्षेत्र में हल नहीं हो सकती हैं, अपने पड़ोसी ग्रामसभाओं के सहयोग से कार्य करेगी.
16.          ग्रामोद्योगों को बाधा पहुंचाने वाले व्यवसायों को रोकना एवं बंद करना ग्रामसभा का दायित्व और अधिकार होगा.
17.          ग्रामसभा मानव शक्ति एवं पशु शक्ति के उपरांत नई शक्तियों के ऐसे स्रोतों का, जो उसकी समझ और पकड़ में हो, विकास और उपयोग करेगी. जैसे-वायु शक्ति, सौर शक्ति, जल शक्ति, गोबर गैस आदि.
18.          सार्वजनिक निर्माण-क्षेत्र में मेलों, बाज़ारों, क्रय-स्थानों, हाटों, तांगा-स्टैंडों एवं गाड़ियों के ठहरने के स्थानों का नियमन, नियंत्रण और निर्माण ग्रामसभा के अधिकार में होगा.
19.          गांव के हर प्रकार के पशुधन को विकसित करना और मरने के बाद उसका पूरा-पूरा उपयोग करना ग्रामसभा का दायित्व होगा.
20.          गांव के सामाजिक उत्थान के लिए अस्पृश्यता निवारण, नशाबंदी, स्त्री-पुरुष समानता, सर्व धर्म समभाव का शिक्षण और इनको प्रेरित करने वाले कार्यक्रमों का आयोजन करना ग्रामसभा का कर्तव्य होगा.
21.          ग्रामसभा-क्षेत्र में सच्चे भाईचारे, प्रेमभाव और शांति स्थापना के लिए विषमता-निराकरण और आर्थिक समानता का प्रयत्न आवश्यक है, जो ग्रामसभा का पुनीत दायित्व होगा.
22.          शासन की ऊपर की इकाइयां गांव के लोगों से व्यवहार सामान्यतय: ग्रामसभा के मार्फत करेंगी.
23.          ग्रामसभा को भंग करने का अधिकार ग्रामसभा की कार्यसमिति को होगा.
यह तो हुई ग्रामसभा, लेकिन आख़िर गांव कैसा होना चाहिए, यह तय करने का अधिकार और उसे वैसा स्वरूप देने की ज़िम्मेदारी वहां के निवासियों की है. सहयोगात्मक लोकतंत्र में यानी लोकतंत्र के विकेंद्रीकरण के ऊपर के प्रस्तावित ढांचे में नगर और क़स्बों का कोई जिक्र नहीं किया गया है. निश्‍चय ही यह इस विकेंद्रीकरण को अधूरा रखने वाली चीज होगी. यद्यपि विशालकाय शहरों में आमने-सामने वाला समाज नहीं रहता है, अत: परिस्थिति भिन्न एवं जटिल होने से लोकतंत्र का वैसा का वैसा देहातों के लिए लागू होने वाला ढांचा खड़ा करना कठिन है, तो भी शहरी भारत के

मोहल्लों के निवासियों को यानी मोहल्ला सभा को सत्ता के उचित अधिकार देने होंगे और शहरी क्षेत्र की लोकतंत्रीय संस्थाओं को भी इस ढांचे के साथ शामिल करना होगा. यद्यपि बड़े क़स्बे या शहर प्राथमिक इकाई नहीं हैं, तो भी बड़े शहरों की भी प्राथमिक शहरी समुदायों यानी मोहल्लों या कम्यूनों के रूप में कल्पना की जा सकती है. यूगोस्लाविया के शहर इसी ढांचे पर हैं. ऐसी परिस्थिति में ऊपर या आगे के वर्णन में ग्राम शब्द से मतलब स़िर्फ गांव से ही नहीं होगा. वह एक ऐसी प्राथमिक सामुदायिक इकाई होगी, जिससे गांव अथवा शहर दोनों का बोध होगा. म्यूनिसिपल क़ानूनों को इस प्रकार संशोधित किया जाना चाहिए, जिससे शहरी स्वायत्त संस्थाओं में भी इस सहयोगात्मक लोकतंत्र के सिद्धांतों का समावेश किया जा सके.

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