Saturday, 19 July 2014

होटल इंडस्ट्री

टूरिस्ट की बढ़ती संख्या की वजह से हॉस्पिटैलिटी इंडस्ट्री में काफी तेजी देखी जा रही है। रिपोर्ट के मुताबिक, इस साल 83 हजार के अधिक लोगों को इस इंडस्ट्री में नौकरियां मिल सकती हैं। स्वागत करने को तैयार इस सेक्टर में आप भी बना सकते हैं करियर..
विदेशी सैलानियों के बीच भारत पसंदीदा डेस्टिनेशन के रूप में उभरा है और पिछले कुछ वर्र्षो में यहां आने वाले सैलानियों की संख्या में तेजी से वृद्धि हुई है। इससे होटल इंडस्ट्री में भी तेजी देखी जा सकती है। भारत में होटल इंडस्ट्री के विकास का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि एशिया प्रशांत क्षेत्र में भारत चीन के बाद दूसरे स्थान पर है। इस फील्ड में संभावनाओं को देखते हुए होटल मैनेजमेंट से जुड़े कोर्स कर लेते हैं, तो भविष्य में चमकदार करियर बनाया जा सकता है।
होटल इंडस्ट्री और टूरिजम सेक्टर
होटल इंडस्ट्री का सीधे तौर पर टूरिस्ट से जुड़ा होता है। यदि टूरिस्ट आते हैं, तो होटल इंडस्ट्री को काफी बढ़ावा मिलता है। 12वींपंचवर्षीय योजना के मुताबिक, 2016 तक भारत में 11.24 मिलियन विदेश टूरिस्ट के आने की संभावना है। वहींइस दौरान 1451.46 मिलियन घरेलू टूरिस्ट भी होंगे। प्लानिंग कमीशन के मुताबिक, 2016 तक देश में करीब 50 लाख रूम्स की जरूरत होगी।
कैसे मिलेगी एंट्री
12वीं पास स्टूडेंट होटल मैनेजमेंट में डिप्लोमा या डिग्री हासिल कर सकते हैं। नेशनल काउंसिल फॉर होटल मैनेजमेंट एेंड कैटरिंग टेक्नोलॉजी के संस्थानों में बीएससी इन हास्पिटैलिटी एेंड होटल मैनेजमेंट कोर्स में दाखिले के लिए संयुक्तप्रवेश परीक्षा होती है। इसके लिए 12वीं में कैंडिडेट्स का 50 प्रतिशत मा‌र्क्स होना जरूरी है।
कौन-कौन से कोर्स
एलबीआईआईएचएम के डायरेक्टर कमल कुमार के मुताबिक, 12वीं के बाद बीए इन होटल मैनेजमेंट, डिप्लोमा इन होटल मैनेजमेंट, बैचलर डिग्री इन होटल मैनेजमेंट, डिप्लोमा इन होटल एेंड कैटरिंग मैनेजमेंट, बैचलर डिग्री इन हॉस्पिटैलिटी साइंस, बीएससी होटल मैनेजमेंट एेंड कैटरिंग साइंस जैसे कोर्स कर सकते हैं। इसकी अवधि 6 महीने से 3 साल तक है। इसके अलावा, पीजी डिप्लोमा इन होटल मैनेजमेंट, एमएससी इन होटल मैनेजमेंट और एमए इन होटल मैनेजमेंट कोर्स कर सकते हैं। इसकी अवधि 2 साल है। पर्सनल स्किल
इस इंडस्ट्री में करियर बनाने के इच्छुक स्टूडेंट्स की पर्सनैलिटी आकर्षक होने के साथ-साथ इसके लिए कम्युनिकेशन स्किल भी शानदार होनी चाहिए। तार्किक सोच के साथ-साथ एडमिनिस्ट्रेशन स्किल भी अच्छी होनी चाहिए।
जॉब के मौके
सुंदरदीप ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशन की एग्जिक्यूटिव डायरेक्टर डाक्टर अंजू सक्सेना के मुताबिक, होटल मैनेजमेंट कोर्स करने के बाद आप होटल एवं हॉस्पिटैलिटी इंडस्ट्री में मैनेजमेंट ट्रेनी के रूप में कार्य की शुरुआत कर सकते हैं। इसके अलावा, होटलों में किचन मैनेजमेंट, हाउसकीपिंग मैनेजमेंट, एयरलाइन कैटरिंग, केबिन सर्विसेज, सर्विस सेक्टर में गेस्ट या कस्टमर रिलेशन एग्जिक्यूटिव, फास्ट फूड चेन, रिसॉर्ट मैनेजमेंट, क्रूज शिप होटल मैनेजमेंट, गेस्ट हाउसेज, हॉस्पिटल ऐडमिनिस्ट्रेशन, कैटरिंग, रेलवे या बैंक या बड़े संस्थानों में कैटरिंग या कैंटीन आदि में भी जॉब्स मिल सकती हैं।
सैलरी पैकेज
करियर के शुरुआती दौर में 12 -18 हजार रुपये प्रति माह मिल सकते हैं। कुछ वषरें का अनुभव हासिल करने के बाद सैलरी अच्छी हो सकती है।
ई-मार्केटिंग का जमाना
जेपी बिजनेस स्कूल नोएडा द्वारा सोशल मीडिया और ई-मार्केटिंग पर नेशनल कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया गया। इसमें सोशल मीडिया और ई-मार्केटिंग पर आधारित रिसर्च और नई जानकारियां शेयर की गईं। इस मौके पर जेआइआइटी नोएडा के वाइस चांसलर प्रो. एससी सक्सेना ने कहा कि टेक्नोलॉजी के माध्यम से बिजनेस ऑर्गेनाइजेशन में काफी चेंज आया है। जेईएस के सीईओ डॉ.वाई मेदुरी ने अपने भाषण में ई-बिजनेस द्वारा विकसित और इस्तेमाल किए जा रहे रेवेन्यू मॉडल पर जोर दिया। इसके बाद एनआइआइटी टेक्नोलॉजीज के एशिया पैसेफिक इंडिया और मिडिल ईस्ट के प्रेसिडेंट अरविंद मेहरोत्रा ने सेल्फ सर्विस प्रोपगेशन यूजिंग डिजिटल एसेट फॉर कस्टमर्स ऐंड इंसाइड द आर्गेनाइजेशन विषय पर बताया कि कैसे सोशल मीडिया की मदद से औद्योगिक संस्थाएं कंज्यूमर्स की भावनाओं को प्रभावित कर रही हैं। गूगल कंज्यूमर मार्केटिंग के हेड गुनीत सिंह ने गूगल द्वारा अपनाए जा रहे न्यू मीडिया और एडवरटाइजिंग स्ट्रैटेजी की ओर लोगों का ध्यान आकर्षित कराया। आइएमआइ दिल्ली की प्रो. डॉ. नीना सोंधी ने वर्चुअल व‌र्ल्ड में कस्टमर्स को इंगेज करने के उपायों पर रोशनी डाली। कॉन्फ्रेस में कॉर्पोरेट जगत से एमएमटीसी, आइएमआरबी, जेपी होटल्स, जेपी ग्रीन्स, जेपी सीमेंट, जेआइएलआइटी ऐंड जेपी कॉर्पोरेट कम्युनिकेशन आदि के प्रतिनिधि शामिल हुए।

ख़ुशी ना दे पाएं हर एक को गर मुमकिन ना हो तो पीड़ा भी न पहुँचायें..!!

सब शब्दों का ही तो खेल है ..!
मीठे हुए तो दिल में उतर शीतलता दे जाते है ..!!
कभी तीखे हुए तो दिल में कटार बन जख्म दे जाते है ..!
मन में कितना भी अंतर्द्वंद चल रहा है,ये कौन जान पाता है ..!!
क्या कहा किन शब्दों से हमने खुद को अभिव्यक्त किया बस ..!
वही सामने वाले ने समझा और हमारे लिए अपनी धारणा बना ली ..!!
आपके कहे शब्द किसी का दिल न दुःखायें जाने -अनजाने कुछ ऐसा ना कह जाये ..!
सामने वाला दुखी हो जाये या अपमानित समझे खुद को सके सामने ..!!
कोशिश कीजिये जो भी कहें सोच समझ का तोल-मोल कर बोलें शब्दों की महिमा को समझें.!
ख़ुशी ना दे पाएं हर एक को गर मुमकिन ना हो तो पीड़ा भी न पहुँचायें..!!

Thursday, 3 July 2014

अब पैरा मेडिकल में बना सकते है ब्राइट फ्यूचर

भारत में पैरा मेडिकल का क्षेत्र तेजी से ग्रोथ कर रहा है। एक अनुमान के मुताबिक, 2020 तक इस क्षेत्र में 90 लाख प्रोफेशनल्स की जरूरत होगी। आप बायोलॉजी के स्टूडेंट्स हैं और इस ग्रोइंग फील्ड में करियर बनाना चाहते हैं, तो आपका फ्यूचर ब्राइट हो सकता है?
आज भारत हेल्थकेयर सेक्टर में हॉट डेस्टिनेशन के रूप में उभरा है। दुनियाभर से लोग यहां मेडिकल चेकअप और इलाज के लिए पहुंच रहे हैं। इस कारण जिस रफ्तार से हॉस्पिटल्स और लैब्स की संख्या बढ़ रही है, उसी अनुपात में पैरा मेडिकल प्रोफेशनल्स की डिमांड भी बढ़ रही है। एक अनुमान के मुताबिक, भारत में वर्ष 2015 तक 60 लाख से अधिक और वर्ष 2020 तक 90 लाख पैरा मेडिकल प्रोफेशनल्स की जरूरत पड़ेगी। योजना आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत को लगभग 10 लाख नर्सो और बड़ी संख्या में पैरा मेडिकल प्रोफेशनल्स की कमी झेलनी पड़ रही है। हालांकि पैरा मेडिकल के तहत बहुत सारे प्रोफेशन आते हैं, लेकिन इसमें मेडिकल लेबोरेट्री टेक्नोलॉजी को काफी हॉट प्रोफेशन माना जा रहा है। आज मेडिकल लेबोरेट्री टेक्नोलॉजिस्ट की डिमांड निजी क्षेत्र के हॉस्पिटल्स के साथ-साथ सरकारी क्षेत्र के हॉस्पिटल्स में भी खूब हैं।
कैसे होगी एंट्री?
आज लैब टेक्नोलॉजिस्ट के रूप में करियर बनाने के लिए कई रास्ते खुल गए हैं। आप चाहें, तो इससे संबंधित कोर्स, जैसे- सर्टिफिकेट इन मेडिकल लैब टेक्नोलॉजी (सीएमएलटी), बीएससी मेडिकल लेबोरेट्री टेक्नोलॉजी (बीएससी एमएलटी), डिप्लोमा इन मेडिकल लेबोरेट्री टेक्नोलॉजी (डीएमएलटी) जैसे कोर्स कर सकते हैं। इस बारे में दिल्ली पैरा मेडिकल ऐंड मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट की प्रिंसिपल अरुणा सिंह का कहना है कि मेडिकल लेबोरेट्री टेक्नोलॉजी कोर्स के तहत स्टूडेंट्स को ब्लड, यूरिन आदि के अलावा शरीर के तमाम फ्लूइड्स की जांच में ट्रेंड किया जाता है। आमतौर पर इस तरह के कोर्स 12वीं के बाद किए जा सकते हैं। डिप्लोमा कोर्स में प्रवेश के लिए 12वीं में बॉयोलॉजी सब्जेक्ट का होना जरूरी है। डिप्लोमा कोर्स की अवधि दो वर्ष की होती है। वैसे, इस फील्ड में जॉब तो बीएससी या डिप्लोमा करने के बाद भी मिल जाती है, लेकिन पोस्ट ग्रेजुएट कोर्स के बाद आपकी डिमांड विशेषज्ञ के रूप होने लगती है।
वर्क प्रोफाइल
इस फील्ड में दो तरह के प्रोफेशनल्स काम करते हैं-एक मेडिकल लेबोरेट्री टेक्निशियन और दूसरे मेडिकल लेबोरेट्री टेक्नोलॉजिस्ट। दोनों का वर्क प्रोफाइल अलग-अलग होता है। मुख्य रूप से मेडिकल टेक्निशियन का कार्य सैंपल को टेस्ट करना होता है। यह काफी जिम्मेदारी भरा कार्य होता है। जांच के दौरान थोड़ी-सी गलती किसी के लिए जानलेवा साबित हो सकती है, क्योंकि डॉक्टर लैब रिपोर्ट के आधार पर ही इलाज और दवा लिखते हैं। टेक्निशियन के काम को तीन हिस्सों में विभाजित किया जा सकता है- नमूना तैयार करना, जांच की मशीनों को ऑपरेट करना एवं उनका रखरखाव और जांच की रिपोर्ट तैयार करना। टेक्निशियन नमूना तैयार करने के बाद मशीनों के सहारे इसे टेस्ट करते हैं और एनालिसिस के आधार पर रिपोर्ट तैयार करते हैं। स्पेशलाइज्ड उपकरणों और तकनीक का इस्तेमाल कर टेक्निशियन सारे टेस्ट करते हैं। वहींमेडिकल लेबोरेट्री टेक्नोलॉजिस्ट रोगी के खून की जांच, टीशू, माइक्रोआर्गनिज्म स्क्रीनिंग, केमिकल एनालिसिस और सेल काउंट से जुड़े परीक्षण करते हैं। टेक्नोलॉजिस्ट का काम भी जिम्मेदारी भरा होता है। ये ब्लड बैंकिंग, क्लिनिकल केमिस्ट्री, इम्यूनोलॉजी और माइक्रोबायोलॉजी के क्षेत्र में काम करते हैं। इसके अलावा, टेक्नोलॉजिस्ट साइटोटेक्नोलॉजी, फेलबोटॉमी, यूरिन एनालिसिस, कॉग्यूलेशन, पैरासीटोलॉजी और सेरोलॉजी से संबंधित परीक्षण भी करते हैं। वर्क एक्सपीरियंस के साथ टेक्नोलॉजिस्ट लैब या हॉस्पिटल में सुपरवाइजर या मैनेजमेंट की पोस्ट तक पहुंच सकते हैं। ट्रेंड टेक्नोलॉजिस्ट लेबोरेट्री मैनेजर, कंसल्टेंट, सुपरवाइजर, हेल्थकेयर ऐडमिनिस्ट्रेशन, हॉस्पिटल आउटरीच कॉर्डिनेशन, लेबोरेट्री इंफॉर्मेशन सिस्टम एनालिस्ट, कंसल्टेंट, एजुकेशनल कंसल्टेंट, कोऑर्डिनेटर, हेल्थ ऐंड सेफ्टी ऑफिसर के तौर पर भी काम कर सकते हैं।
ग्रोइंग फील्ड
भारत मेडिकल टूरिज्म का ग्लोबल हब बन चुका है। यहां पड़ोसी देशों के अलावा, अमेरिका और यूरोपीय देशों के लोग भी सस्ते इलाज के लिए आते हैं। उदारीकरण ने हेल्थकेयर इंडस्ट्री और खासकर मेडिकल टूरिज्म की तरक्की और फलने-फूलने की राह को व्यापक बना दिया है। यह फील्ड 15 फीसदी की दर से आगे बढ़ रही है। वर्ष 2012 में यह इंडस्ट्री 78.6 बिलियन डॉलर की थी, जिसे वर्ष 2017 तक 158.2
बिलियन डॉलर तक पहुंच जाने की उम्मीद है। इस फील्ड में गवर्नमेंट सेक्टर में जॉब वैकेंसीज का इंतजार करना पड़ सकता है, लेकिन प्राइवेट सेक्टर में ऐसी बात नहीं है। अगर आप चाहें, तो शुरुआत में प्राइवेट लैब के साथ जुड़ कर काम शुरू कर सकते हैं। अगर बीएससी मेडिकल लैब टेक्नोलॉजिस्ट हैं, तो अपना लैब भी खोल सकते हैं। क्वालिफिकेशन और एक्सपीरियंस के बाद टेक्निशियन भी टेक्नोलॉजिस्ट के तौर पर भी काम करना शुरू कर सकते हैं।
पैरा मेडिकल का दायरा
पैरा मेडिकल फील्ड में नसिर्ग के अलावा, मेडिकल लैब टेक्नोलॉजी, ऑपरेशन थियेटर टेक्नोलॉजी, फिजियोथेरेपी और ऑक्यूपेशनल थेरेपी, कार्डियक टेक्नोलॉजी, डायलिसिस/ रेनल डायलिसिस टेक्नोलॉजी, ऑर्थोटिक और प्रोस्थेटिक टेक्नोलॉजी, ऑप्टोमेट्री, फार्मेसी, रेडियोग्राफी/रेडियोथेरेपी, हॉस्पिटल एडमिनिस्ट्रेशन / मैनेजमेंट, मेडिकल रिकॉर्ड संचालन, ऑडियोलॉजी ऐंड स्पीच थेरेपी, डेंटल हाइजिन ऐंड डेंटल मैकेनिक, डेंटल सेरामिक टेक्नोलॉजी आदि आते हैं।
सैलरी पैकेज
इस फील्ड में काम करने वाले प्रोफेशनल्स की शुरुआती सैलरी 12-20 हजार रुपये प्रतिमाह होती है। अनुभव के बाद सैलरी बढ़ने के साथ-साथ आप अपना लैब भी खोल सकते हैं।

क्या पॉलिटेक्निक है राइट ऑप्शन?

10वीं-12वींके बाद टेक्निकल कोर्स में एडमिशन लेने के इच्छुक स्टूडेंट्स के लिए पॉलिटेक्निक राइट ऑप्शन हो सकता है। वैसे, आज के जॉब मार्केट में पॉलिटेक्निक से जुड़े स्टूडेंट्स की जबरदस्त डिमांड है। आइए जानते हैं, पॉलिटेक्निक में कैसे एडमिशन लिया जा सकता है और क्या हैं इसके फायदे?
स्कूल की दुनिया से बाहर निकलते ही हर साल हजारों स्टूडेंट्स इंजीनियर बनने का सपना देखने लगते हैं, लेकिन कई स्टूडेंट्स महंगी फीस और अच्छे मा‌र्क्स नहीं आने की वजह से बड़े संस्थानों में इंजीनियरिंग की पढ़ाई का सपना पूरा नहींकर पाते। ऐसे में 12वीं के बाद बीटेक की चार साल की डिग्री की बजाय 10वीं या 12वीं के बाद तीन साल का डिप्लोमा करके भी जॉब मार्केट में कदम रखने का ऑप्शन मौजूद है। ऐसे स्टूडेंट्स के लिए पॉलिटेक्निक सुनहरा अवसर लेकर आता है। यह उन्हें तकनीकी और व्यावसायिक कोर्स का अवसर प्रदान करता है। दरअसल, ये कोर्स ऐसे होते हैं, जिसे पूरा करने के बाद खुद का व्यवसाय शुरू करने के लिए या फिर अच्छी जगह नौकरी करने की स्किल से लैस करता है।
क्या है पॉलिटेक्निक?
आमतौर पर पॉलिटेक्निक ऑ‌र्ट्स और साइंस से संबंधित डिप्लोमा और सर्टिफिकेट कोर्स ऑफर करते हैं। इसे टेक्निकल डिग्री कोर्स के नाम से भी जाना जाता है। पॉलिटेक्निक से संबंधित टेक्निकल कोर्स भी ऑल इंडिया काउंसिल ऑफ टेक्निकल एजुकेशन (एआईसीटीई) द्वारा संचालित होते हैं। इसका मुख्य उद्देश्य स्टूडेंट्स के प्रैक्टिकल और टेक्निकल स्किल को इंप्रूव करना है। वैसे, पॉलिटेक्निक संस्थान कई तरह के होते हैं। राज्य स्तर पर सरकारी, निजी और महिला पॉलिटेक्निक संस्थान सक्रिय हैं। यहां से आप डिप्लोमा और सर्टिफिकेट कोर्स कर सकते हैं। इसके तहत आमतौर पर फैशन डिजाइन, टेक्सटाइल डिजाइन, इंजीनियरिंग, मास कम्युनिकेशन, इंटीरियर डिजाइन, होटल मैनेजमेंट आदि से जुड़े कोर्स करवाए जाते हैं। कोर्स की अवधि एक से चार साल तक की होती है। इनमें दाखिला पाकर कम समय में ही अपने करियर में पंख लगा सकते हैं। इतना ही नहीं, कोर्स समाप्त होने के बाद जूनियर इंजीनियर बनने का रास्ता भी खुल जाता है। महिला पॉलिटेक्निक संस्थानों में महिलाओं पर केंद्रित स्किल वाले कोर्स होते हैं।
क्वालिफिकेशन
इस कोर्स में दाखिले के लिए 10वीं में कम से कम 50 फीसदी अंकों के साथ पास होना जरूरी है। ऐसे
स्टूडेंट्स आगे चलकर बीटेक के लिए होने वाली परीक्षा में भी शामिल हो सकते हैं। उन्हें तीन साल के कोर्स के बाद डिग्री भी मिल जाती है। 10वीं पास स्टूडेंट्स को राज्य स्तर पर कई संस्थान मेरिट के आधार पर तो कई राज्य स्तरीय संस्थान कॉमन एंट्रेंस एग्जाम के जरिए दाखिला देते हैं। इंजीनियरिंग में डिप्लोमा करने वाले स्टूडेंट्स चाहें, तो आगे पढ़ाई करके बीटेक की डिग्री भी हासिल कर सकते हैं। इंजीनियरिंग कॉलेजों में ऐसे स्टूडेंट्स को लैटरल एंट्री के तहत दाखिला दिया जाता है।
खूब है डिमांड
श्रीवेंकटेश्वरा यूनिवर्सिटी के चांसलर सुधीर गिरि के मुताबिक, सरकारी हो या फिर प्राइवेट सेक्टर्स, हर जगह जूनियर इंजीनियर्स की जबरदस्त डिमांड है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, आने वाले समय में लाखों डिप्लोमा होल्डर्स जूनियर इंजीनियर्स की जरूरत होगी। पॉलिटेक्निक कई लिहाज से फायदेमंद है। सबसे अहम बात यह है कि पॉलिटेक्निक में दाखिला लेने के लिए किसी बड़े एजुकेशनल क्वालिफिकेशन की जरूरत नहीं है। देखा जाए तो, आज पॉलिटेक्निक से डिप्लोमा करने के बाद कंपनियों और संस्थानों में कई तरह के अवसर उपलब्ध हैं। बड़ी बात यह है कि उन्हें कंपनियों में आम प्रोफेशनल्स की तुलना में अच्छी सैलरी और सुविधाएं ऑफर की जाती हैं।
सैलरी पैकेज
पॉलिटेक्निक डिप्लोमाधारी स्टूडेंट्स के लिए नौकरी हासिल करना आसान हो जाता है। पॉलिटेक्निक किए हुए प्रोफेशनल्स की शुरुआती सैलरी 15 से 20 हजार रुपये के बीच होती है। अगर आपने कोर्स के दौरान बेहतरीन परफॉर्म किया है, तो कैंपस इंटरव्यू में ही आपको नौकरी के कई अच्छे ऑफर मिल सकते हैं।
पॉलिटेक्निक के खास कोर्स
मैकेनिकल इंजीनियरिंग, सिविल इंजीनियरिंग, ऑटोमोबाइल इंजीनियरिंग, पैकेजिंग टेक्नोलॉजी, इलेक्ट्रिकल ऐंड इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग, इलेक्ट्रॉनिक्स ऐंड कम्युनिकेशन इंजीनियरिंग, अप्लाइड इलेक्ट्रॉनिक्स ऐंड इंस्ट्रूमेंटेशन, कम्प्यूटर इंजीनियरिंग, इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी,माइनिंग इंजीनियरिंग, मेटलॉर्जिकल इंजीनियरिंग, टेक्सटाइल टेक्नोलॉजी, केमिकल इंजीनियरिंग, केमिकल इंजीनियरिंग इन प्लास्टिक ऐंड पॉलिमर्स, पेट्रोकेमिकल्स इंजीनियरिंग, लेटर टेक्नोलॉजी, प्रिटिंग टेक्नोलॉजी, फुटवियर टेक्नोलॉजी, आर्किटेक्चर कोर्सेज, एयरक्राफ्ट मेंटिनेंस इंजीनियरिंग, मास कम्युनिकेशन, इंटीरियर डिजाइनिंग, होटल मैनेजमेंट, कॉमर्शियल ऐंड फाइन आर्ट, मास कम्युनिकेशन, इंटीरियर डिजाइन, ऑफिस मैनेजमेंट ऐंड कम्प्यूटर ऐप्लिकेशन, कम्प्यूटर साइंस आदि।

ऐसे बनाएं फायर इंजीनियरिंग में अपना करियर

अगर आपको 'आग' से खेलना पसंद है, तो फायर इंजीनियरिंग को करियर के रूप में अपना सकते हैं। इस फील्ड में जॉब ऑप्शंस भी शानदार हैं। इंटरनेशनल फायरफाइटर्स डे के मौके पर जानते हैं कैसे इस फील्ड में एंट्री की जा सकती है..
आमतौर पर गर्मी के महीनों में आग लगने की घटनाएं बढ़ जाती हैं। वैसे, ऊंची-ऊंची इमारतें, बड़े-बड़े मॉल्स आदि भी आग से पूरी तरह सुरक्षित नहींहैं। यदि आग अनियंत्रित हो जाए, तो काफी नुकसान भी उठाना पड़ता है। ऐसी स्थिति से निपटने के लिए फायरफाइटर्स की जरूरत होती है। इस तरह के प्रोफेशनल्स फायर इंजीनियरिंग से जुड़े लोग होते हैं, जो जानते हैं कि आग को कैसे नियंत्रित किया जा सकता है।
क्वालिफिकेशन
फायर इंजीनियरिंग से जुड़े अधिकांश कोर्स ग्रेजुएट स्तर पर उपलब्ध हैं, जिसके लिए साइंस सब्जेक्ट से बारहवीं पास होना जरूरी है। फायर इंजीनियरिंग से रिलेटेड सर्टिफिकेट और डिप्लोमा कोर्स भी कर सकते हैं। कोर्स के दौरान आग बुझाने के विभिन्न पहलुओं के बारे में जानकारी दी जाती हैं। साथ में, बिल्डिंग निर्माण के बारे में भी बताया जाता है, ताकि आग लगने की स्थिति में उसे बुझाने में ज्यादा परेशानी न हो। इसमें फिजिकल फिटनेस के मा‌र्क्स भी जोड़े जाते हैं। पुरुष के लिए 50 किलो के वजन के साथ 165 सेमी. लंबाई और आईसाइट 6/6, सीना सामान्य रूप से 81 सेमी. और फुलाने के बाद 5 सेमी. फैलाव होना जरूरी है। महिला का वजन 46 किलो और लंबाई 157 सेमी और आईसाइट 6/6 होनी चाहिए।
कोर्सेज
-बीई फायर इंजीनियरिंग।
-बीटेक फायर ऐंड सेफ्टी इंजीनियरिंग।
-सर्टिफिकेट कोर्स इन फायर ऐंड सेफ्टी इंजीनियरिंग (सीएफएसई)।
-डिप्लोमा इन फायर ऐंड इंडस्ट्रियल सेफ्टी इंजीनियरिंग।
-डिप्लोमा इन फायर ऐंड सेफ्टी इंजीनियरिंग मैनेजमेंट (डीएफएसइएम)।
-डिप्लोमा इन फायर ऐंड सेफ्टी इंजीनियरिंग 8डिप्लोमा इन फायर इंजीनियरिंग।
-डिप्लोमा इन इंडस्ट्रियल सेफ्टी इंजीनियरिंग।
-पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा इन फायर ऐंड सेफ्टी इंजीनियरिंग।
फायर इंजीनियर्स का वर्क।
फायर इंजीनियर्स का कार्य काफी चुनौतीपूर्ण होता है। इसके लिए साहस के साथ-साथ समाज के प्रति प्रतिबद्धता जरूरी है। फायर इंजीनियर का कार्य इंजीनियरिंग डिजाइन, ऑपरेशन और मैनेजमेंट से संबंधित होता है। फायर इंजीनियर की प्रमुख जिम्मेदारी दुर्घटना के समय आग के प्रभाव को खत्म करना या फिर सीमित करना होता है। इसके लिए वे अग्निसुरक्षा के विभिन्न तरीकों का इस्तेमाल करते हैं। अग्निशमन के आधुनिक उपकरणों के इस्तेमाल और उसके रखरखाव की तकनीक में सुधार करना भी इनकी ही जिम्मेदारी होती है।
जॉब प्रोफाइल
इस फील्ड में आप असिस्टेंट, सेफ्टी इंस्पेक्टर, सेफ्टी इंजीनियर, सेफ्टी ऑफिसर, सेफ्टी सुपरवाइजर, फायर प्रोटेक्शन टेक्नीशियन, सेफ्टी ऑडिटर, फायर सुपरवाइजर, हेल्थ असिस्टेंट, एनवायरनमेंट ऑफिसर, फायर ऑफिसर आदि के रूप में काम कर सकते हैं।
जॉब ऑप्शन
फायर इंजीनियरिंग से जुड़े लोगों के लिए गवर्नमेंट और पब्लिक सेक्टर में काफी संभावनाएं हैं। इस फील्ड सेजुड़े प्रोफेशनल्स रेलवे, एयरफोर्ट ऑथॉरिटी ऑफ इंडिया, डिफेंस, इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड, ओएनजीसी, माइंस, रिफाइनरिज, पेट्रोकेमिकल्स कॉम्प्लेक्स आदि में जॉब की तलाश कर सकते हैं। सैलरी पैकेज
जूनियर या असिस्टेंट फायर इंजीनियर की शुरुआती सैलरी 10-25 हजार रुपये प्रतिमाह हो सकती है।
प्राइवेट सेक्टर में कुछ वर्ष का वर्क एक्सपीरियंस रखने वाले प्रोफेशनल्स को वरीयता मिलती है और सैलरी काबिलियत के अनुसार मिलती है।

बढ़ती डिमांड में एनर्जी इंजीनियरिंग

भारत में एनर्जी की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए गवर्नमेंट के साथ-साथ प्राइवेट सेक्टर की कंपनियां भी कई प्रोजेक्ट्स पर काम कर रही हैं। ऐसे में एनर्जी इंजीनियरिंग से जुड़े प्रोफेशनल्स की डिमांड बढ़ने लगी है। क्या है इस फील्ड में संभावनाएं?
बायोफ्यूल की लगातार घटती क्वांटिटी और देश में एनर्जी की बढ़ती डिमांड को देखते हुए एनर्जी प्रोडक्शन पर बल देना सरकार की प्राथमिकता बन गई है। इस सोच के तहत साल 2050 तक न्यूक्लियर रिएक्टर्स से कुल एनर्जी प्रोडक्शन का करीब 25 फीसदी हिस्सा पैदा करने लॉन्ग टर्म प्लान तैयार किया गया है। इसी क्रम में 2020 तक बीस हजार मेगावाट इलेक्ट्रिसिटी का एक्स्ट्रा प्रोडक्शन न्यूक्लियर एनर्जी रिसोर्सेज से किया जाएगा। एनर्जी मिनिस्ट्री के मुताबिक, आगामी पांच साल में इस फील्ड में करीब पांच लाख करोड़ रुपये का निवेश करना होगा, तभी बढ़ती एनर्जी जरूरतों को पूरा किया जा सकेगा। न सिर्फ देश की बड़ी-बड़ी कंपनियां बल्कि दुनिया भर की तमाम बड़ी न्यूक्लियर रिएक्टर सप्लायर कंपनियां, जैसे- जीई हिटैची, वेस्टिंग हाउस भी इस ओर नजरें गड़ाए बैठी हैं। ऐसे में एनर्जी इंजीनियर की मांग का बढ़ना स्वाभाविक है।
एलिजिबिलिटी
एनर्जी इंजीनियरिंग में बीई या बीटेक करने के लिए फिजिक्स, केमिस्ट्री और मैथमैटिक्स के साथ 12वीं पास होना जरूरी है। इसमें बीटेक करने के बाद एमटेक भी किया जा सकता है। ज्यादातर इंस्टीट्यूट्स में एडमिशन एंट्रेस एग्जाम से होता है। वैसे, यह ग्रेजुएट लेवल के मुकाबले पोस्ट ग्रेजुएट लेवल पर ज्यादा सक्सेज माना जाता है। मास्टर्स कोर्स में एनर्जी के रिन्यूएबल सोर्स और नॉन ट्रेडिशनल सोर्सेज में सुधार पर अधिक बल दिया जाता है।
स्किल्स
सफल एनर्जी इंजीनियर बनने के लिए लॉजिकल और एनालिटिकल होना बहुत जरूरी है। इस फील्ड में बहुत अधिक लोगों से संपर्क करने की आवश्यकता नहीं पड़ती, इसलिए एक इंट्रोवर्ट स्टूडेंट भी आसानी से एनर्जी इंजीनियर बन सकता है। अक्सर कई-कई दिनों तक घर से बाहर जाने की जरूरत पड़ती है, इसलिए घर से दूर रहने की भी आदत होनच् चाहिए। इसके अलावा आपमें पेशेंस भी होना चाहिए।
अपच्ॅ‌र्च्युनिटी
क्लाइमेट चेंज और ग्लोबल वार्मिंग के बारे में बढ़ती जागरूकता के चलते एनर्जी इंजीनियरिंग की बहुत डिमांड है। सरकारी संस्थानों, खासकर राज्यों की रिन्यूएबल एनर्जी डेवलपमेंट एजेंसीज में स्किल्ड लोगों की जबरदस्त डिमांड है। सरकार ने इंडस्ट्रीज के लिए एनर्जी ऑडिटिंग, एनर्जी कंजर्वेशन और एनर्जी मैनेजमेंट में स्पेशलाइजेशन करने वालों के अप्वाइंटमेंट को भी अनिवार्य कर दिया है। इस फील्ड में सैलरी ऑर्गेनाइजेशन पर निर्भर करती है। शुरुआती दौर में आपकी सैलरी 20-30 हजार रुपये प्रतिमाह हो सकती है।