Siksha ka star ki gavaah chiraga ke project ke douran ki ek photo |
कुछ सालों में उत्तर-प्रदेश में शिक्षक के पद पर बहुत सारी नियुक्तियां हुयीं हैं और अभी और भी नियुक्तियां होनी बाकि है ! देखा जाये तो ये उत्तर-प्रदेश सरकार की बहुत ही अच्छी पहल है इस से बहुत सारे लोगों की बेरोजगारी दूर हुयी है ! लेकिन इसके दुसरे पहलु को देखा जाये तो ये उत्तर-प्रदेश के भविष्य के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है ! ऐसे - ऐसे लोगों की न्युक्तियाँ हुयीं हैं जिन्हें सही तरीके से हिन्दी न तो लिखना आता है और न ही पढना आता हैं , और अंग्रेजी की बात तो बहुत दूर है ! ऐसे में कोई कैसे कह सकता है की उत्तर-प्रदेश में शिक्षा के लिए किये जा रहे कार्य सही दिशा में जा रहा है ! एक तो पहले से ही विद्द्यालयों और महाविद्द्यालयों के शिक्षक गण शिक्षा को व्यवसाय बना दिए हैं अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने के बजाय वो छात्रों को अपने यहाँ पढने के लिए मजबूर कर रहे हैं ! और इसमें निजी विद्द्यालयों की तो बात ही छोड़ दीजिए , निजी विद्द्यालय तो नाच - गाने ही में लिप्त रहते हैं !
कुछ दिनों पहले मैं अपने गाँव से शहर ( इलाहाबाद ) आ रही थी ! जिस रास्ते से मैं आ रही थी उसी रास्ते में मेरे गाँव का प्राथमिक विद्द्यालय मिलता है , जब मैं वहां से गुजर रही थी तो शिक्षक के पद पे नयी - नयी नियुक्ति जिनकी हुयी थी वही कक्षा में पढ़ा रही थी ! जब मैंने देखा तो सहसा मेरे मन में उत्सुक्तापूर्ण विचार आया की क्यों न रुक कर देखा जाये की नयी शिक्षिका महोदया पढ़ाने के लिए क्या - क्या नए - नए तरीके इस्तेमाल करती हैं ! बच्चे बहुत शोर गुल कर रहे थे जिसके कारन मुझे कुछ सुनाई नहीं दे रहा था की वो क्या पढ़ा रही हैं ! लेकिन थोड़ी देर बाद जैसे ही उनकी नजर मेरे ऊपर पड़ी तो वो बच्चों को शांत कराने लगी ! उन्होंने बच्चों से शुर , लय और ताल में एक सवाल पूछा की, पपीता खाया है जी ???? बच्चों ने भी उसी लय और ताल में जवाब दिया की जी ............! तब मैंने सोचा की शायद मैडम पपीता में पाए जाने वाले विटामिन के बारे में बतायेंगी ! उसके लिए मैं थोड़ी देर और रुक गयी ! लेकिन वो उससे आगे बढ़ ही नहीं रहीं थी , फिर उन्होंने बच्चों से एक सवाल और किया और इस बार का सवाल मुझे चौका दिया , उनका सवाल था की किसके - किसके घर पे पपीता का पेड़ है ?? ये सवाल मुझे हजम नहीं हुआ और मुझे शक हुआ की शायद कुछ गड़बड़ है ! फिर मैं कक्षा के दीवार के पीछे छिप कर खड़ी हो गयी और बगल वाली खिड़की से झांक कर देखने लगी तो मैंने देखा की मैडम बाहर निकल कर किसीको ढूंढ़ रही थी , फिर मैं समझ गयी की शायद वो मुझे ढूंढ़ रही हैं थोड़ी देर इधर - उधर देखने के बाद वो बच्चे से एक कुर्सी मंगवा कर बाहर में बैठ कर स्वेटर बुनने लगीं ! ये तो कुछ भी नहीं है , मैं आपको एक और किस्सा बताती हूँ की एक मेरे बहुत दूर की रिश्तेदार इलाहाबाद परीक्षा देने आयीं हुयी थी , उत्तर-प्रदेश सरकार के व्दारा दक्षता परीक्षा ली जा रही थी उसीको देने आयीं हुयीं थी ! जब वो शाम को परीक्षा देने के बाद मेरे घर आयीं तो मेरी सहेली ने पूछा की परीक्षा कैसा गया ?? तो उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया तो मेरी सहेली ने फिर पूछा तो इस बार भी उन्होंने कुछ नहीं बोला ! इसी तरह ३ - ४ बार ये सिलसिला चला लेकिन कोई जवाब नहीं मिला फिर उनके पति देव ने बताया की वो कम सुनती हैं थोडा ऊँचा बोलिए ! इस बार खुद उनके पति देव ने ऊँची आवाज में पूछा तब जाकर उन्होंने अवधी में कहा की " ठीके गेलै " ! अब सोचिये की वो बच्चों को क्या पढ़ाती होंगी , अगर वो किसी बच्चे से पूछती होगी की भारत के प्रधानमंत्री कौन हैं ?? और अगर बच्चे बोले की अखिलेश यादव तो वो तो उसे भी सही कर देंगी ! मेरा मकसद उनका मजाक उड़ाना कतई नहीं है , मुझे मालूम है की वो कुदरत की मार है भगवान न करे की किसी को भी ये सब देखना पड़े ! इस तरह के बहुत सारे ऐसे किस्से हैं , पुरे उत्तर-प्रदेश में यही स्थिति है ! और उपर दिए गए सारे किस्से मेरे आँखों देखि और कानो सुनी है !
मैं कुछ सवाल पूछना चाहती हूँ की जिस आधार पे नियुक्तियां ली जा रही है क्या वो सही है ?? इसके लिए जो पात्रता रखी गयी है क्या वो सही है ?? जितनी भी नियुक्तियां हुयी है उसमे प्रमुख रूप से दो पात्रता है , एक तो कोई टीचर ट्रेनिंग ले रखा हो और दूसरा दसवीं बारहवीं एवं स्नातक में लाये गए प्राप्तांक के प्रतिशत के आधार पे ! लेकिन ये पात्रता मुखिया और शिक्षा पदाधिकारी के तरफ से रखी गयी है ! जो १० - १५ साल पहले टीचर ट्रेनिंग किया हो और उस समय से न तो कलम पकड़ा हो और न ही किताब पलटा हो , क्या वो बच्चे को सही ढंग से पढ़ा पाएंगे ? जो चोरी और पैरवी से बहुत ज्यादा नंबर ले आये हों , क्या वो बच्चे को सही शिक्षा दे पाएंगे ? वो तो खुद जब उस तरीके से पास किये हो तो बच्चे को भी तो वही सिखायेंगे ! और जो टेबल के निचे से काम करवा रहे हो उनकी तो बात ही निराली है ! इनलोगों से ज्यादा पढ़ा लिखा हुआ , इनसे ज्यादा उर्जावान , इनसे ज्यादा अपने काम के प्रति समर्पित युवा दर - दर की ठोकरे खा रहे हैं , या यों कहे की उन्हें मजबूर किया जा रहा है ! और वो भी सिर्फ इसलिए की उनके पास टीचर ट्रेनिंग का प्रमाण - पत्र नहीं है , उनके पास पैसे नहीं है , वो इन्लोग जैसों से कुछ नंबर से पीछे हैं ! ये जो पात्रता राखी गयी है क्या वो सही है ?? क्या ये सरकार का शिक्षा के क्षेत्र में सही कदम है ?
सरकार को फिर से इस पे विचार करना चाहिए ! उच्च शिक्षा के साथ - साथ इन सबो पे भी ध्यान देना होगा , बच्चपन से ही उनके आधार को मजबूत बनाना होगा ! पाठ्यक्रम में बदलाव करने की जरुरत है , क्योंकि सोचिये की, छठी वर्ग के अंग्रेजी में बहुत ही सरल वाक्य पढने को मिलते हैं ,जैसे " यह एक लड़का है " लेकिन सातवीं में लम्बी - लम्बी कठिन कहानी एवं कविता पढने को मिलता है, जिसे बच्चे सही से पढ़ नहीं पाते और समझने की बात तो दूर है ! क्या इसमें बदलाव लाने की जरुरत नहीं है ? इसे पूरी व्यवस्था को बिलकुल बदलने की जरुरत है ! और नियुक्ति के लिए लिखित परीक्षा एवं मौखिक परीक्षा ली जाये ! ताकि सही लोगों का नियुक्ति हो सके ! जिससे शिक्षा के स्तर को उठाया जा सके !
ये लेखक के निजी विचार है! लेखक का परिचय:
Pinki Devi S. G. P. B. M., Awadh University, Faizabad |
No comments:
Post a Comment