Hume pani ke saath rishta banana hi hoga. by Chiragan |
उनके राज्य में बरसात नहीं हो रही थी तो वे राजमहल छोड़कर खुद खेतों में हल चलाने के लिए निकल आए। लेकिन आज के जमाने में ऐसा संभव नहीं दिखता। हमारे राजनेताओं को इसकी कोई चिंता नहीं है। न तो वह खुद पानी का इस्तेमाल कम कर रहे हैं और न ही उन्हें समस्या की विकरालता का अंदाजा ही है जबकि होना यह चाहिए कि उन्हें जल संकट को लेकर तमाम पहलू पर गंभीरता से ध्यान देना चाहिए लेकिन इसके लिए तो उन्हें राजा जनक की तरह जमीन पर आना होगा। इसके लिए मौजूदा व्यवस्था में राजनेता क्या आम आदमी भी तैयार नहीं दिखता?
प्रकृति का उपभोग नहीं, उपयोग करना होगा इसकी मिसाल बन चुकी हैं-हमारी नदियां। भारत में अब एक भी नदी ऐसी नहीं बची है जिसके तट पर आप आचमन कर सकें, उसके पानी को पीने का साहस जुटा पाएं। हमारी नदियां नालों में तब्दील होती जा रही हैं। जब कोई नदी नाले में तब्दील होने लगे तो समझना चाहिए कि यह भ्रष्टाचार का चरमोत्कर्ष है। यह बताता है कि राज्य की शासन व्यवस्था और समाज की जीवनशैली में गिरावट आ चुकी है। इसके लिए जरूरी है कि हमें और हमारे राजनेताओं को अपने जीवन में सदाचार अपनाना होगा। सदाचार का सीधा मतलब है कि आप इस धरती से जितना लेते हो, प्रकृति का जितना उपयोग करते हो, कम से कम उतना तो उसे वापस कर दो।
Hume pani ke saath rishta banana hi hoga. by Chiragan |
इन दिनों क्या हो गया है कि महानगरों और शहरों में पर्यावरण का फैशन चल निकला है। लोग सभा-गोष्ठियां करते हैं, फोटो खिंचवा लेते हैं। बस पर्यावरण की चिंता पूरी हो गई। तो इससे बदलाव नहीं होगा। बदलाव सबसे पहले खुद में आना चाहिए। आप पानी को बचाने के लिए संरक्षित रखने के लिए क्या-क्या करते हैं, यह महत्वपूर्ण है। जिस दिन देश का हर शख्स इस बात को समझ लेगा, भारत में पानी का कोई संकट नहीं होगा। संकट नहीं हो, इसके लिए सरकारों को भी चेतने की जरूरत है। उन्हें नदियों को बचाने के लिए कारगर नीतियों को बनाने की तरफ ध्यान देना होगा। नदियों को नाले में तब्दील होने से बचाने का काम युद्ध स्तर पर होना चाहिए। इसके अलावा, कानून ऐसा बनाया जाना चाहिए जिससे पानी पर सबका बराबर का हक हो। आज यह भी देखने को मिल रहा है कि किसी इलाके को आम आदमी पानीदार बनाते हैं और बाद में सरकार आकर कहती है कि यह पानी तो सरकार का है और सरकार इसका जैसे चाहे इस्तेमाल करेगी। यह अन्याय है। इसके अलावा बरसात की एक-एक बूंद को सहेज कर उसके इस्तेमाल के प्रबंधन की ओर ध्यान देना होगा। दरअसल, मानसून के आने में ऐसा विलंब सरकार और समाज दोनों के लिए चेतावनी ही है।
ये लेखक के निजी विचार है! लेखक का परिचय:
Manoj Kumar B.ed Student RMLU, Faizabad |
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