CANCER VIRUS BY CHIRAGAN |
कैंसर रोग दो प्रकार का होता है- उपत्वक कैंसर और संयोजक तंतुओं का कैंसर।
उपत्वक कैंसर :-
उपत्वक कैंसर होंठों, स्तनों और श्लैष्मिक और स्नैहिक झिल्ली के ऊपरी परत पर होने वाला कैंसर रोग है।
संयोजक तंतुओं का कैंसर अर्थात मांसार्बुद :-
यह कैंसर जल जाने या हडडी टुटने के कारण चोट लगने से कर्कटिका होने पर होता है।
कैंसर रोग का कारण :-
मानसिक परेशानी अधिक होना, अधिक चिन्ता करना, तम्बाकू पीने के लिए मिट्टी
का चिलम का प्रयोग करना, अगले दान्तों से जीभ बार-बार कटने के कारण जख्म
पैदा होना, बराबर एक्स-रे करवाना, मिट्टी का तेल बराबर शरीर पर प्रयोग करना
आदि के कारणों से कैंसर रोग होता है। स्त्रियों के स्तन अधिक दिनों तक
कठोर होने, मासिकधर्म के बन्द होने के समय या एकाएक किसी भी आंतरिक अंग से
खून का स्राव होने पर उन सभी अंगों में कैंसर रोग हो सकता है।
आमाशय में अधिक दिनों तक जख्म बने रहने पर, आहार नली में या बड़ी आंत में रोग पैदा करने वाले जीवाणु पैदा होने, गहरी चोट लगने के कारण एवं शरीर की अन्य खराबी के कारण भी कैंसर रोग हो सकता है। सिर का पुराना दर्द, स्नायुशूल, त्वचा का रोग एवं वात रोग अधिक दिनों तक बने रहने के कारण तथा खून में खराबी उत्पन्न होने से कैंसर रोग होता है। कभी-कभी यह रोग वंशानुगत भी होता रहता है। अर्बुद जल्दी ठीक न होने पर उसे ठीक करने के लिए उसे ऑपरेशन किया जाता है लेकिन कभी-कभी अर्बुद निकल जाने के बाद भी उसका कुछ अंश रह जाने पर यह अन्य दूसरे अंगों पर दुबारा हमला कर देता है जिससे कैंसर फिर से होने की संभावना बढ़ जाती है।
अगर अर्बुद (कैंसर) रोग हो तो उसे ठीक करने के लिए होम्योपैथिक औषधि का
प्रयोग करना उचित होता है। यदि औषधि से लाभ न हो तो एक्स-रे या रेडियम की
किरण का प्रयोग करना या ऑपरेशन के द्वारा अर्बुद को निकलवा लेना चाहिए।
कैंसर रोग में विभिन्न औषधियों के द्वारा उपचार :-
हाईड्रैस्टिस :-
कैंसर
रोग के शुरुआती अवस्था में जब कैंसर का घाव न बना हो और किसी अंग में दर्द
हो तो हाइड्रैस्टिस औषधि की 30 शक्ति का प्रयोग करना चाहिए। इसके सेवन से
रोग के लक्षण समाप्त होकर रोग ठीक हो जाता है। इस तरह के कैंसर रोग के
शुरुआती लक्षण उन व्यक्तियों में दिखाई देता है जिसमें कमजोरी होती है,
शरीर पीला हो जाता है, खून की कमी हो जाती है, शरीर इतना पतला हो जाता है
कि हडिडयां दिखाई देने लगती हैं, रोगी के चेहरे की चमक समाप्त हो जाती है,
रोगी उदास व उत्साहीन रहता है, भूख नहीं लगती है, कब्ज रहती है। इस तरह के
शारीरिक लक्षण वाले व्यक्ति में अधिकतर कैंसर रोग उत्पन्न होते हैं।
हाईड्रैस्टिस औषधि की निम्न शक्ति का प्रयोग 8-8 घंटे पर तब तक रोगी को
कराते रहें जब तक रोग के लक्षण समाप्त न हो जाएं।
रेडियम ब्रोम :-
कैंसर रोग में रेडियम ब्रोम औषधि की 30 से 200 शक्ति के बीच की कोई भी शक्ति का प्रयोग सप्ताह में एक बार करने से लाभ मिलता है।
फाइटोलैक्का :-
यह
औषधि शरीर की ग्रंथियों पर विशेष प्रभाव डालती है। गांठे सूज जाती है,
उनमें जलन होती है, रोगी में ग्रंथि शोथ के साथ मोटापा आ जाता है, रोगी के
शरीर में खून का संचार शिथिल हो जाता है एवं अधिक आलस्य आने लगता है। इस
तरह के लक्षणों वाले रोगियों में कैंसर रोग होता है। इस तरह के लक्षणों से
साथ उत्पन्न कैंसर रोग के लक्षणों में फाइटोलैक्का औषधि की 3 शक्ति का
प्रयोग करना चाहिए।
आर्स आयोडाइड :-
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सेलिनियम या हाइड्रैस्टिनम :-
कैंसर
रोग में सेलिनियम औषधि की 30 से 200 शक्ति और हाइड्रैस्टिनम औषधि की 3x
मात्रा से 30 शक्ति का प्रयोग सप्ताह में एक बार करने से आराम मिलता है।
लेपिस ऐल्बम :-
यदि
कैंसर रोग से पीड़ित रोगी को अधिक जलन महसूस होती हो और रोगग्रस्त भाग से
अधिक स्राव होता हो तो लेपिस ऐल्बम औषधि की 2x मात्रा का प्रयोग करना अधिक
लाभकारी होता है। यह औषधि गर्भाशय के कैंसर में अधिक लाभकारी मानी गई है।
एक्स-रे :-
अधिक
कष्टकारी कैंसर रोग होने पर एक्स-रे औषधि की 30 से 200 शक्ति के बीच की
कोई भी शक्ति का प्रयोग किया जा सकता है। इस औषधि का सेवन सप्ताह में एक
बार करना चाहिए।
कार्सिनोसीन :-
यदि
किसी रोगी में कैंसर होने की संभावना दिखाई दें या परिवार में किसी को
कैंसर रोग हो गया हो तो उसे कार्सिनोसीन औषधि की 200 शक्ति का सेवन सप्ताह
में एक बार करना चाहिए। इससे कैंसर रोग होने का डर समाप्त हो जाता है।
कोनायम :-
कैंसर रोग को ठीक करने के लिए कोनायम औषधि की 6 या 30 शक्ति का प्रयोग किया जाता है। इस औषधि से कैटेरेक्ट भी दूर होता है।
किसी भी अंग में होने वाले कैंसर रोग को दूर करने के लिए इस औषधियों का प्रयोग करना बेहद लाभकारी होता है।
सेलिनियम या हाइड्रैस्टिनम :-
कैंसर
रोग में सेलिनियम औषधि की 30 से 200 शक्ति और हाइड्रैस्टिनम औषधि की 3x
मात्रा से 30 शक्ति का प्रयोग सप्ताह में एक बार करने से आराम मिलता है।
ऑरम-मेट :-
यदि कैंसर वाले स्थान से स्राव होता हो तो ऑरम-मेट औषधि की 3x मात्रा विचूर्ण या शक्ति का उपयोग करना लाभकारी होता है।
कार्सिनोसिन :-
कार्सिनोसिन
औषधि की 30 से 200 शक्ति की बीच की शक्ति का प्रयोग कैंसर रोग में किया जा
सकता है। इस औषधि का सेवन सप्ताह में एक बार करना चाहिए।
विभिन्न अंगों का कैंसर रोग में औषधियों का प्रयोग :-
जीभ का कैंसर :-
- जीभ के कैंसर को ठीक करने के लिए थूजा औषधि की 3x मात्रा का सेवन 6-6 घंटे के अंतर पर करना चाहिए और थूजा औषधि के मूलार्क को सुबह-शाम रूई के फाये से रोगग्रस्त स्थान पर लगाना चाहिए।
- कैंसर रोग में दो महीने तक में कई सुधार होते हुए न दिखाई दे तो कैलि-साईनेट औषधि की 3x मात्रा का सुबह-शाम सेवन करें। इस औषधि की जीभ पर विशेष क्रिया होती है। अगर जीभ पर घाव हो गया हो, जीभ के किनारी कड़ी पड़ गई हो, मुंह से आवाज न निकलती हो, बोल नहीं पा रहा हो लेकिन रोगी में सोचने व समझने की शक्ति ठीक हो तो ऐसी अवस्था में कैलि साइनेट औषधि की 6 या 200 शक्ति का सेवन रोगी को कराना लाभकारी होता है।
- जीभ के कैंसर रोग में उपचार करने के लिए फेरम-पिक औषधि की 3x मात्रा तथा हाइड्रैस्टिस औषधि के मदरटिंचर का प्रयोग किया जाता है।
होंठों का कैंसर :-
होंठों के कैंसर रोग में विभिन्न औषधियों का प्रयोग किया जाता है जो इस प्रकार है -
- लाइकोपोडियम की 6 शक्ति का प्रयोग हर 8-8 घंटे के अंतर पर करने से कैंसर रोग में लाभ मिलता है।
- सीपिया औषधि की 3 शक्ति का प्रयोग हर 6-6 घंटे के अंतर पर 0.12 ग्राम की मात्रा में लेने से कैंसर में लाभ मिलता है।
- केनेविन सैटाइवा औषधि के मूलार्क की 2 बूंद की मात्रा में 15 दिन में एक बार लेने से भी होंठ के कैंसर में लाभ मिलता है।
- होंठ या त्वचा के कैंसर रोग में आर्स आयोडाइड औषधि की 3x मात्रा का सेवन 0.12 ग्राम की मात्रा में दिन में 3 बार लेने से लाभ मिलता है।
- होंठ या त्वचा के कैंसर होने पर अन्य औषधि के सेवन के साथ आर्सेनिक औषधि की 3x मात्रा का लोशन बनाकर सुबह-शाम रोगग्रस्त स्थान पर लगाने से और बीच-बीच में कार्सिनोसीनम औषधि की 200 शक्ति या एपिथीलियोमीनम औषधि की 200 शक्ति का सेवन 15 दिन में एक बार करने से लाभ मिलता है। इसके प्रयोग से होंठ व त्वचा के कैंसर दोनों में ही लाभ मिलता है।
छाती का कैंसर :-
- अगर छाती पर कोई गांठ पड़ जाए तथा दर्द हो और यह निश्चित न हो कि यह कैंसर है या नहीं तो ब्रायोनिया औषधि की 1 शक्ति का प्रयोग 8-8 घंटे के अंतर पर करने से लाभ मिलता है।
- यदि इस कैंसर में दर्द न हो तो कैलकेरिया आयोडाइड औषधि की 3x मात्रा की 4-4 बूंदें हर 7 घंटे के अंतर पर करने से लाभ मिलता है। अगर रोगी कमजोर होता जाए और गांठ भी बढ़ती जाए तो आर्स आयोडाइड औषधि की 3x मात्रा का प्रयोग 0.12 ग्राम की मात्रा में दिन में 3 बार लेना चाहिए।
- यदि परिवार में किसी को कैंसर रोग हुआ हो तो उस कैंसर का असर परिवार के अन्य सदस्यों पर न पड़े इसके लिए कार्सिनोसीनम औषधि की 200 शक्ति 15 दिन में एक बार सेवन करना चाहिए और यदि कैंसर रोग हो तो ऊपर बताए गए औषधि का प्रयोग करें।
- यदि छाती का कैंसर रोग होने का कारण पता चल जाए तो स्किरहीनम औषधि की 200 शक्ति या कार्सिनोसीनियम औषधि की 200 शक्ति का प्रयोग सप्ताह में एक बार या 15 दिनों में करने से लाभ मिलता है।
जरायु का कैंसर :-
- कैंसर जरायु में हो गया हो और छाती के कैंसर की तरह ही लक्षण दिखाई दे तो एपिहिस्टीरीनम औषधि की 200 शक्ति सप्ताह में 2 बार करना चाहिए। इसके साथ रूटा औषधि के मूलार्क की 2 बूंद की मात्रा में चीनी मिले दूध में मिलाकर 15 दिन में एक बार लेना चाहिए।
- जरायु के कैंसर रोग में हाईड्रैस्टिस औषधि को ग्लिसरीन के साथ बराबर मात्रा में मिलाकर जरायु को धोना चाहिए।
- जरायु के कैंसर रोग में हाईड्रैस्टिस की ऑयन्टमेंट का भी प्रयोग करने से लाभ होता है।
- यदि गर्भाशय से खून का स्राव अधिक हो तो हाईड्रैस्टिम के स्थान पर हैमामेलिस औषधि का प्रयोग लोशन की तरह किया जा सकता है।
- जरायु ग्रीव के कैंसर रोग में आर्स आयोड औषधि की 3x मात्रा या पल्स औषधि की 3x मात्रा का प्रयोग किया जाता है।
हडिडयों का कैंसर :-
हडिडयों का कैंसर रोग होने पर इन औषधियों का प्रयोग किया जाता है-
- हडिडयों का कैंसर रोग होने पर फॉस्फोरस औषधि की 30 शक्ति का प्रयोग 6-6 घंटे के अंतर पर प्रयोग में लिया जा सकता है।
- सिमफाइटम औषधि की 30 शक्ति का प्रयोग हर 4 घंटे के अंतर पर प्रयोग करने हडिडयों का कैंसर रोग में लाभ मिलता है।
- ऑराम आयोडाइड औषधि की 3x मात्रा को हर 6-6 घंटे पर रोगी को देने से हडिडयों का कैंसर रोग ठीक होता है।
- हड्डी के कैंसर रोग में सिमफाइटम औषधि के मूलार्क टूटी हुई हड्डी के ऊपर लिंट में भिगोंकर लगाना से और औषधियों का सेवन करने से अधिक लाभ मिलता है।
- हडिडयों के कैंसर में यदि अधिक दर्द हो तो एकोन-रेडिक्स औषधि के मूलार्क थोड़ी-थोड़ी देर पर (फी) आधे बूंद की मात्रा में तब तक सेवन कराना चाहिए जब तक नींद न आ जाए। कैंसर (कर्कट) में अधिक कष्ट व दर्द हो तो इस औषधि का प्रयोग किया जा सकता है।
पेट का कैंसर :-
- पेट के कैंसर रोग में औरनिथोगैलम औषधि का प्रयोग किया जाता है। इस औषधि के मूलार्क की 1 बूंद की मात्रा पानी में डालकर रोगी को पिलाना चाहिए। इसके प्रयोग से रोगी को काली उल्टी होती है और आराम महसूस होता है। अगर औषधि की पहली मात्रा लेने से कोई प्रतिक्रिया न हो तो 48 घंटे बाद दूसरी मात्रा लें।
- पेट के कैंसर में अगर पेट में जलन, बेचैनी हो, रोगी को थोड़ा पानी पीने का मन करता हो एवं गर्म सेंक से आराम मिलता हो तो इस तरह के लक्षण दिखाई देने पर आर्सेनिक औषधि का सेवन करना चाहिए।
- पेट के कैंसर होने पर ऐसे लक्षणों में चेलिडोनियम औषधि की 1m मात्रा या C.M मात्रा लेने से भी लाभ मिलता है। फास्फोरस से भी पेट के कैंसर रोग में लाभ मिलता है।
गलकोष और गले का कैंसर :-
गलकोष और गले की नली का कैंसर होने पर फेरफ पिकरिक औषधि की 3x मात्रा या थूजा औषधि की 1x मात्रा का प्रयोग किया जाता है।
बड़ी आंत का कैंसर :-
बड़ी आंत की निचले भाग में कैंसर होने पर हाइड्रैस्टिस औषधि की 1x या सैलबिया औषधि के मदरटिंचर का प्रयोग किया जाता है।
स्थूलान्त्र
(कोलोन) का कैंसर रोग होने पर हाइड्रैस्टिस औषधि की 6x, क्रोकस औषधि के
मदरटिंचर का उपयोग किया जाता है और नासूर के लिए सिलिका औषधि की 6 शक्ति का
प्रयोग किया जाता है।
दाहिने स्तन का कैंसर :-
दाहिने स्तन का कैंसर होने पर आर्स आयोड औषधि की 3x मात्रा और हाइड्रैस्टिस औषधि की 6x मात्रा का प्रयोग किया जाता है।
अन्य अंगों का कैंसर रोग :-
- जिगर में कैंसर होने के साथ पेट रोगग्रस्त होने पर आर्स आयोड औषधि की 3x मात्रा और हाइड्रैस्टिस औषधि के मदरटिंचर का प्रयोग किया जाता है।
- उरू के हड्डी में कैंसर होने पर साइलिसिया औषधि की 200 शक्ति का प्रयोग किया जाता है।
- बाएं उरू की हड्डी में कैंसर होने पर सिलिका की 6 शक्ति का उपयोग करना हितकारी होता है।
- नाक के कैंसर होने पर नेट्रम-म्यूर औषधि की 200 शक्ति का प्रयोग किया जाता है।
- बगल की बढ़ हुई ग्रंथि में कैंसर रोग होने पर बार-बार नश्तर लगवाने के बाद भी यदि रोग ठीक न हो तो साइलिशिया औषधि की 200 शक्ति का उपयोग करने से रोग में पूर्ण लाभ मिलता है।
- निम्न क्रम के कैंसर रोग विशेषकर जलन पैदा करने वाले कैंसर रोग को ठीक करने के लिए आर्सेनिक औषधि का प्रयोग करना उचित होता है और हाइड्रैस्टिस औषधि के मदरटिंचर या 3x मात्रा को रोगग्रस्त भाग पर लगाना उचित होता है।
- गर्भाशय या गांठ में कैंसर होने पर कार्बो-ऐनि औषधि की 1x मात्रा का विचूर्ण प्रयोग करने से लाभ होता है।
कैंसर होने पर अन्य औषधियों का प्रयोग :-
- कैंसर रोग में ऊपर बताए गए औषधियों से उपचार करते समय बीच-बीच में अन्य औषधियों का प्रयोग करने से लाभ मिलता है ये इस प्रकार हैं :- काण्डियुरेंगों- 1x, आयोड- 6x, कैलि ब्रोम- 30, एसिड कार्ब, रूटा के मदरटिंचर, फाइटो- 2x, सिकेलि- 30, क्रियोजोट- 30, सैंगुनेरिया- 1x, आरम आयोड- 3x, कैल्के आयोड- 3x, हाइड्रोकोटाइल ऐसेट- 3x, सल्फर- 30, सिम्फाइटम के मदरटिंचर या युफोर्बियम- 6 आदि।
- कैलि-सायानेटस- 3 शक्ति का प्रयोग जीभ के कैंसर होने पर किया जाता है। हेक्लालावा, हेलोनियस, प्लैटिना सिफिलिनम आदि।
- कोनायम औषधि की 6 से 30 शक्ति का प्रयोग चोट आदि लगने से होने वाले कैंसर रोग में किया जाता है।
- एकिनेशिया औषधि के मदरटिंचर (4 से 10 बूंद की मात्रा में) या लैकेसिस औषधि की 6 शक्ति का प्रयोग गहरा लाल या नीला या खाकी रंग का कैंसर रोग होने पर किया जाता है।
- आर्स आयोड औषधि की 3x शक्ति का प्रयोग कभी भी पानी के साथ सेवन नहीं करना चाहिए।
- गेलियम ऐपाराइना औषधि के मदरटिंचर का प्रयोग दूध के साथ 30 से 60 बूंद रूटा औषधि को मिलाकर दिन में 3 बार लिया जाता है।
- कैंसर रोग में स्क्रोफुलिया के मदरटिंचर और आर्निथोगेलम औषधि के मदरटिंचर का प्रयोग करना लाभदायक होता है।
भोजन और परहेज :-
- कैंसर रोग में यदि रोगी के शरीर से अधिक बदबू आती हो तो कार्बोलिक एसिड की पाउडर या आयोडोफार्म की पाउडर या कोयले की पुल्टीय का प्रयोग करना चाहिए। स्तन में कैंसर होने पर हाथ को अधिक हिलना-डुलना नहीं चाहिए और रोगी को बदहजमी से बचना चाहिए।
- दूध, नमक, शराब, मांस, मछली, मिर्ची, चाय, कॉफी, सेम, मसूर की दाल, अण्डा या उड़द की दाल आदि का सेवन नहीं करना चाहिए।
- रोगी के लिए मांस के बदले पनीर का सेवन करना लाभकारी होता है। रोगी को ताजे फल का सेवन करना चाहिए। खुली हवा में घुमना चाहिए। खाना खाने के बाद या पहले हल्का आराम करना चाहिए।
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