Monday, 30 April 2012

पोलियो (Poliyo)

polio vaccination by chiragan
साधारणत: यह देखा गया है कि बच्चों को पोलियो की बीमारी टॉयफाइड बुखार के बिगड़ जाने से हो जाती है। लोगों की मान्यता है कि बुखार में हवा लग जाने से यह रोग हो जाता है परन्तु यह धारणा पूरी तरह से गलत है इसका कारण यह बिल्कुल भी नहीं है। सच्चाई यह है कि दवाईयां ज्यादा इस्तेमाल करने से बच्चों को ये रोग होता है। ज्यादा दवाइयों के प्रयोग का सीधा प्रभाव बच्चों की नस-नाड़ियों पर पड़ता है, जो पोलियों के रूप में प्रकट होता है। बच्चों के अंग बहुत कोमल होते हैं। ये कोमल अंग दवा का प्रभाव सहन नहीं कर पाते। दवा रोग को दबाने के लिए दी जाती है। दवा के प्रभाव से जैसे ही एक रोग दबता है, वैसे ही बच्चों की टांगों को या एक टांग को या शरीर के आधे भाग और हाथ को बेकार कर देता है तथा बच्चा अपंग हो जाता है। दवा का प्रभाव अगर इन अंगों पर नहीं पड़ता तो बच्चें की आंखों पर पड़ जाता है, जिससे बच्चे की आंखें कमजोर हो जाती हैं। छोटी आयु में ही उनकी आंखों पर ऐनक चढ़ जाती है। यदि रोग के उभरते ही उसका सही उपचार नहीं किया जाए, तो बच्चा जीवन-भर के लिए अपाहिज बन जाता है। उसके माता-पिता उसका दोबारा दवाईयों से उपचार कराने लगते हैं। बच्चें को गर्म दवाइयां दी जाती हैं, जिससे कोई विशेष लाभ तो होता नहीं, बल्कि हानि अवश्य होती है। पोलियों का उपचार दवाईयां नहीं, बल्कि प्राकृतिक चिकित्सा और फिजिपोथैरपी हैं।

polio infected child
   पोलियो रोग के कारण रोगी को बुखार, सिरदर्द, गले में दर्द तथा मांसपेशियों में बहुत तेज दर्द होता है। इस रोग में धीरे-धीरे रोगी की मांसपेशियां सूखने लगती है। इस रोग के कारण रोगी को चलने-फिरने में दिक्कत आती है। इस रोग के कारण बच्चे की एक टांग या एक हाथ या फिर दोनों हाथ-पैर पतले हो जाते हैं जिसके कारण उसे चलने फिरने या कोई कार्य करने में दिक्कत आती है। इस रोग के कारण शरीर के जोड़ों की हडि्डयों में कमजोरी आ जाती है तथा रोगी को बहुत कष्टों का सामना करना पड़ता है।
चिकित्सा:-
          पोलियो रोग में मालिश का इस्तेमाल करना बहुत लाभदायक होता है। पोलियो से पीड़ित बच्चे की मालिश धूप में करें। बच्चे का जो अंग पोलियो से ग्रस्त हों, उसके साथ पीठ की मालिश भी जरूर करनी चाहिए। पीठ के निचले भाग की गर्म-ठण्डी मालिश करें। `एपसम साल्ट´ मिले गर्म पानी से भरे टब में रोगी को पहले 3 मिनट के लिए बैठाना चाहिए। टब में पानी इतना हो कि रोगी की कमर तक आ जाए। टांगें भी पानी में डुबोकर रखें। उसके बाद 2 मिनट के लिए रोगी को ठण्डे पानी के टब मे बैठाएं। इस प्रकार 4 बार में पूरे 20 मिनट तक रोगी को गर्म-ठण्डा सेंक देना चाहिए, साथ ही सेंक के दौरान रोगी के सिर को भिगोकर ठण्डा कर लें तथा उस पर गीला तौलिया रख दें। सेंक की शुरुआत गर्म सेंक से और समाप्ति ठण्डे पानी से करें।
          अब धूप में रोगी की मालिश करें। मालिश यदि मछली के तेल (काण्ड लीवर ऑयल) से की जाए तो बहुत लाभ होता है। मालिश में मांसपेशियों को मसलना, झकझोरना, मरोड़ना, ठोक देना, थपथपाना, खड़ी थपकी, कटोरी थपकी और कंपन देना आदि क्रियाओं का प्रयोग करें। पोलियों से पीड़ित रोगियों की रोजाना मालिश करनी चाहिए। पोलियो रोग में काफी धैर्य और सहनशीलता रखने की आवश्यकता है क्योंकि इस विधि के उपयोग के नतीजे काफी समय बाद आते हैं। इस उपचार में 2 महीने से लेकर 1 साल तक का समय लग सकता है। निश्चित होकर बच्चे का उपचार कराते रहें। पोलियो को दवाई से दूर नहीं किया जा सकता, इसका उपचार तो मात्र मालिश और प्राकृतिक चिकित्सा ही है।
          मालिश के साथ ही बच्चों के अंगों की भी कसरत करवाते रहना चाहिए। पहले तो बच्चे को आप खुद ही कसरत करवाते रहें, फिर यदि बच्चे की टांग थोड़ा-सी भी काम करने लगती है, तो बच्चे को टांग मोड़ने, ऊपर उठाने, हाथों से किसी चीज को पकड़ने, खींचने, ऊपर-नीचे करने आदि कसरतें करने का निर्देश दें। यदि बच्चा अपने आप उठ-बैठ नहीं सकता है तो उसे सहारा देकर उठाना-बैठाना भी चाहिए। इससे विशेष लाभ होता है।
          बताई गई कसरतों को करने के बाद बच्चें को आराम से लिटा देना चाहिए। इससे कसरत से शरीर में आई थकावट धीरे-धीरे समाप्त हो जाती है।
          पोलियो की बीमारी में बिजली की मालिश और `हल्का शोंक ट्रीटमेंट´ भी कुछ लाभ देते हैं। रोगी का उपचार करते समय उसके खान-पान पर भी विशेष ध्यान देना चाहिए। ध्यान रखें कि उपचार के दौरान बच्चे को कभी भी कब्ज नहीं होनी चाहिए। यदि उसके पेट में कब्ज हो तो उसे 250 ग्राम पानी का एनिमा देना चाहिए।
          ध्यान रखें कि बच्चों को एनिमा देने से घबराने की जरूरत नहीं होनी चाहिए क्योंकि यह केवल दिखावा ही होता है। 250 ग्राम पानी का एनिमा कोई हानि नहीं करता है। बच्चे को गोद में लिटाकर उसकी कमर को ऊंचा करके, गुदा नली की तरफ रखकर एनिमा दिया जाए। इस प्रकार एनिमा इसलिए दिया जाता है, क्योंकि बच्चा पानी को अन्दर रोक नहीं सकता। वह उसे तुरन्त बाहर निकाल देगा। कपड़े खराब न होने पाएं, इसलिए बच्चे को इस प्रकार बिठाया जाए कि अन्दर का मल निकलकर नाली में या चिलमची में, जो आगे रखी हो, उसी में ही गिरे।
          ध्यान रखें कि उपचार के दौरान बच्चे को कभी अनाज नहीं देना चाहिए। गाय का ताजा दूध या एक गिलास उबला हुआ दूध और फल और फलों के रस पर उसे रखा जाए। कच्ची सब्जी या उबली सब्जियों का रस भी दिया जा सकता है। फलों में अंगूर, सेब, नाशपाती, संतरा, सूखे फलों में किशमिश, मुनक्का और अंजीर आदि विशेष लाभदायक होता हैं। सूखे फल रोगी को देने से पहले उन्हें 12-14 घंटे तक भिगोकर रखना चाहिए।

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कुष्ठ (कोढ) Kodh (Kustha)

कोढ़ का रोग बेसिलस लेप्रो नाम के कीटाणु के कारण फैलता है। यह रोग 3 तरह का होता है।
ग्रंधिक कुष्ठ :
           इस प्रकार के कोढ़ में शुरूआत में रोगी के शरीर में जगह-जगह पर लाल रंग की फुंसियां निकल जाती है जिनमें बहुत तेज दर्द होता है। इसके बाद इन फुंसियों का मुंह खुल जाता है और इनमें गहरा जख्म बन जाता है। इस ग्रंधिक कुष्ठ रोग में आंख की पलक, नाक, कान आदि की श्लैष्मिक झिल्ली गलकर गिरने लगती है।
 वातिक कुष्ठ :
            वातिक कुष्ठ रोग की शुरूआत अक्सर स्नायु पर होती है। रोगी का शरीर जगह-जगह से संवेदनशील हो जाता है और फिर शरीर की त्वचा सुन्न हो जाती है। इस तरह का कोढ़ होने पर अगर रोगी के शरीर को कहीं पर भी छुओ तो उसको किसी तरह का एहसास नहीं होता। रोगी को कभी ग्रंधिक तो कभी वातिक कुष्ठ (कोढ़) के लक्षण दिखाई देने लगते हैं।
मिश्रित कुष्ठ :
          मिश्रित कुष्ठ के रोग में ग्रंधिक और वातिक दोनों तरह के रोग के लक्षण पाये जाते हैं।
 कारण :
kodh (Kustha) patient by chiragan
            कोढ़ का रोग ज्यादातर उन लोगों को होता है जो हमेंशा प्रकृति के विरूद्ध भोजन खाते हैं जैसे कि मांस का सेवन करने के बाद दूध पी लेना। इससे खून के अन्दर जीवाणु पहुंचकर खून को खराब कर देते हैं जिसकी वजह से कोढ़ का रोग पैदा हो जाता है। इसकी समय पर चिकित्सा नहीं कराने पर कोढ़ के जीवाणु खून में बड़ी तेज रफ्तार से फैलकर त्वचा को गला देते हैं। शरीर में अलग-अलग अंगों में इसके जख्म दिखाई पड़ने लगते हैं। कोढ़ के जख्मों में मवाद बहने लगता है। इस मवाद में भी कुष्ठ (कोढ़) के जीवाणु मौजूद होते हैं। इस मवाद के संपर्क में आने वाले लोग भी कोढ़ के शिकार हो जाते हैं।
लक्षण :
           कुष्ठ (कोढ़) के रोग की शुरुआत में रोगी को खुजली होती है और फिर उसके शरीर में जख्म बन जाते हैं। जख्मों में सूजन होने पर मवाद निकलने लगती है। धीरे-धीरे जख्म फैलने लगते हैं और जहां पर जख्म होता है वहां की त्वचा भी सड़ जाती है। हाथों और पैरों की उंगलियों में कोढ़ होने पर उंगलियां गलने लगती है। कोढ़ का रोगी धूप में चल फिर भी नहीं सकता क्योंकि धूप में चलने फिरने में उसे बहुत जलन और दर्द होता है।

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हैजा (कालरा) विसूचिका, कालरा, उलाउठा तथा कै-दस्त cholera, Haija

परिचय :    हैजा एक भयंकर रोग है जो गर्मियों से अन्त में या वर्षा ऋतु के शुरू में फैलता है। यदि इसका इलाज समय रहते नहीं किया जाता है तो रोगी की मृत्यु तक हो जाती है। यह बड़ी तेजी से फैलता है। इसके जीवाणु शरीर में पानी या भोजन के द्वारा प्रवेश करते हैं। यह बासी भोजन, थूक, उल्टी, मल, कृमि आदि द्वारा फैलता है, अर्थात् गन्दे स्थान में रहने, हजम न होने वाली वस्तुएं खाने, अनियमित परिश्रम के बाद पानी पी लेने, गन्दा पानी, अधिक या फास्ट फूड खाने से यह रोग फैलता है।
Colara, Haija by chiragan
बचाव या परहेज :
           हैजे की बीमारी में रोगी को पानी नहीं पिलाना चाहिए। प्यास लगने पर पीने के लिए थोड़ा-थोड़ा सौंफ अथवा पोदीने का रस पिलाया जा सकता है यदि पानी के बिना रोगी की जान बचाना कठिन जान पड़े तो पानी को उबालें और जब वह सोलहवां भाग मात्र रह जाय, तब ठंड़ा करके घूंट-घूंट पीने को दें। बर्फ का टुकड़ा भी चुसाया जा सकता है।
          रोगी को ठंड़ न लगने दें तथा उसका शरीर गर्म बना रहे, इसका ध्यान रखें। बोतलों में गर्म पानी भरकर उसके दोनों पैरों के बीच में रखें, इससे गर्मी बनी रहेगी, परन्तु पानी इतना गर्म भी न हो कि रोगी के पैर जलने लगे।
           रोगी जिस कमरे में हो, उसमें कपूर का दीपक जलायें तथा रोगी के हाथों में कपूर रखकर उसे सूंघने की सलाह दें। हाथ-पैरों की ऐंठन दूर करने के लिए तेल में कपूर मिलाकर मलना चाहिए। शरीर ठंड़ा पड़ जाने पर उसके हाथ-पैरों में सोंठ का चूर्ण मलें तथा कपूर, कस्तूरी एवं मकरध्वज मिलाकर शहद के साथ चटायें। उल्टी दूर करने के लिए पेट पर राई का लेप करना हितकर रहता है। रोगी का पेशाब रुक गया हो तो उसे खोलने में देर न करें। ठंड़ा अथवा कच्चा पानी रोगी को भूलकर भी नहीं पिलाना चाहिए।
 कारण :
Colara, Haija by chiragan
           यह रोग प्रदूषित आहार, अति भोजन आदि कारणों से होता है, किन्तु भोजन न करने अर्थात् भूखे रहने से भी हो जाता है। खाली पेट रहने पर गर्मी में लू का प्रकोप आसानी से होता है, इसलिए गर्मियों में पानी अधिक पीना चाहिए।
  • रोग की पहचान (लक्षण) :
  • उल्टी-दस्त।
  • दस्त की शक्ल चावल के माण्ड जैसी पतली होती है।
  • प्यास अधिक लगना।
  • पेशाब बन्द हो जाना।
  • दिन-प्रतिदिन कमजोरी।
  • आंखे भीतर की ओर धंस जाती हैं।
  • हाथ-पैरों में पीड़ा व अकड़न प्रारंभ हो जाती है।
  • शरीर ठंड़ा पड़ने लगता है।
  • शरीर में पानी की मात्रा कम हो जाती है।
नोट : हैजे में निम्नलिखित अवस्थाएं देखी जाती हैं।
आक्रमण अवस्था : मामूली पतले दस्तों के साथ सिर्फ कमजोरी मालूम होती है, उल्टी भी होती है।
पूर्ण विकसित अवस्था : पूर्ण वेग के साथ दस्त और हाथ-पैरों में ऐंठन, प्यास, बेचैनी और आंखों का भीतर धंसना।
शीतांग अवस्था : इस भयानक अवस्था में रोगी का शरीर बर्फ के समान ठंड़ा हो जाता है। नाड़ी छूट जाती है, ललाट पर पसीना आता है। दस्त और प्यास की अधिकता के कारण उल्टी ज्यादा होती है।
          इस अवस्था में रोगी की शीघ्र मृत्यु हो जाती है। परन्तु जब रोगी अच्छा होने को होता है, तब नीचे लिखी चौथी अवस्था देखी जाती है।
प्रतिक्रिया अवस्था : कुछ देर तक शान्त रहकर रोगी का शरीर गर्म होने लगता है। मूत्र की थैली में मूत्र जमा होने लगता है या मूत्र हो जाता है। धीरे-धीरे रोगी आरोग्य लाभ करता है।
परिणामावस्था : अच्छी तरह आराम नहीं होने पर रोग फिर आक्रमण कर देता है। मूत्र का न होना, तन्द्रा, हिचकी, उल्टी आदि फिर हो जाते हैं। कई रोगी इस अवस्था को भोगकर भी ठीक हो जाते हैं। परन्तु अधिकतर रोगी इस अवस्था में प्राण त्याग देते हैं।
पेशाब बन्द रहने की स्थिति में निम्न योग लाभकारी होता है।
  • शुद्ध पारद और शुद्ध गंधक 5-5 ग्राम लेकर, खरल में कज्जली कर लें और उसे 30 ग्राम असली जवाखार (यवक्षार) में मिलाकर, ठीक से खरल करके रखें। इसकी मात्रा आधा से एक ग्राम तक, मिश्रीयुक्त ठंड़े पानी के साथ दें तो पेशाब हो जायेगा।
  • पतले दस्त और उल्टी की स्थिति में लालमिर्च, अजवाइन, शुद्ध कर्पूर, शुद्ध अफीम और शुद्ध कुचला समान भाग लेकर, जल योग से चना के बराबर गोलियां बना लें। मात्रा- 1 से 3 गोली तक रोग और रोगी की प्रकृति के अनुसार ठंड़े पानी के साथ देने से लाभ होगा।
  • नाभि के नीचे मूत्र की थैली में मूत्र जमा है या नहीं प्रथम इस बात की परीक्षा करनी चाहिए। यदि मूत्र जमा हो तो सलाई द्वारा मूत्र निकाल देना चाहिए।
ऐंठन : हाथ-पैरों की ऐंठन को दूर करने के लिए कपूर की मालिश करनी चाहिए। तेल में कपूर मिलाकर मालिश करना भी उत्तम है। गर्म पानी को बोतल में भरकर सेंकना भी लाभदायक है।
शीतांग होने पर : रोगी के हाथ-पैरों में सोंठ के चूर्ण या किसी अन्य गरम तेल की मालिश करनी चाहिए तथा मकरध्वज, कस्तूरी और कपूर मिलाकर शहद के साथ चटाना चाहिए।
नोट : पेडू पर मिट्टी की पट्टी, ठंड़ा घर्षण कटिस्नान अथवा मेहन स्नान हैजा एवं मूत्र खोलने की सर्वोत्तम प्राकृतिक चिकित्सा है।
पथ्य :
  • दो-तीन दिन बाद खाने के लिए मूंग की दाल से या तोरई से रोटी देनी चाहिए।
  • पुदीने की चटनी बराबर देते रहना चाहिए।
  • दलिया, पतली खिचड़ी तथा अजवाइन का रस रोग शान्त होने के बाद भी बराबर देते रहना चाहिए।
  • रोगी को ठीक होने के 48 घण्टे बाद तक रोटी इत्यादि न दें। इससे पहले दलिया दें। 

हैजा रोग के लक्षण-

  • हैजा रोग से पीड़ित रोगी को उल्टियां और पीले रंग के पतले दस्त होने लगते हैं तथा उसके शरीर में ऐंठन तथा दर्द होने लगता है।
  • रोगी व्यक्ति को पेट में दर्द, बेचैनी, प्यास, जम्भाई, जलन तथा हृदय और सिर में दर्द होने लगता है।
  • हैजा रोग के कारण रोगी व्यक्ति का शरीर ठंडा तथा पीला पड़ जाता है और उसकी आंखों के आगे गड्ढ़े बन जाते हैं।
  • इस रोग से पीड़ित रोगी के होंठ, दांत और नाखून काले पड़ जाते हैं।
  • कभी-कभी तो इस रोग के कारण रोगी व्यक्ति की हडि्डयां अपने जोड़ों पर से काम करना बंद कर देती है।

हैजा रोग होने का कारण-

  • यह एक प्रकार का संक्रामक रोग है जो कई प्रकार की मक्खियों तथा दूषित पानी से फैलता है।
  • इस रोग के होने का सबसे प्रमुख कारण गलत तरीके से खान-पान तथा दूषित भोजन का सेवन करना है।
  • दूषित भोजन के कारण शरीर में दूषित द्रव्य जमा होने लगता है जिसके कारण हैजा रोग हो जाता है।
  • हैजा रोग अक्सर अर्जीण (बदहजमी) रोग के हो जाने के कारण होता है।
  • यदि किसी व्यक्ति की पाचनक्रिया खराब हो जाती है तो भी उसको यह रोग हो सकता हैं।
हैजा रोग का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार-
  • हैजा रोग से पीड़ित रोगी को पानी में नींबू या नारियल पानी मिलाकर पीना चाहिए ताकि उसके शरीर में पानी की कमी पूरी हो सकें और उल्टी करते समय दूषित द्रव्य शरीर से बाहर निकल सके।
  • इस रोग से पीड़ित रोगी को पुदीने का पानी पिलाने से भी बहुत अधिक लाभ मिलता है।
  • लौंग को पानी में उबालकर रोगी को पिलाने से हैजा रोग ठीक होने लगता है।
  • हैजा रोग से पीड़ित रोगी को तुलसी की पत्ती और कालीमिर्च पीसकर सेवन कराने से हैजा रोग ठीक हो जाता है।
  • इस रोग से पीड़ित रोगी को प्याज तथा नींबू का रस गर्म पानी में मिलाकर पिलाने से हैजा रोग ठीक हो जाता है।
  • हैजा रोग को ठीक करने के लिए रोगी के पेट पर गीली मिट्टी की पट्टी करनी चाहिए तथा इसके बाद रोगी को एनिमा क्रिया करानी चाहिए ताकि उसका पेट साफ हो सके। फिर इसके बाद रोगी को गर्म पानी से गरारे कराने चाहिए और इसके बाद उसे कटिस्नान कराना चाहिए। इस प्रकार से उपचार करने से हैजा रोग ठीक होने लगता है।
  • हैजा रोग से पीड़ित रोगी जब तक ठीक न हो जाए तब तक उसे नींबू के रस को पानी में मिलाकर पिलाते रहना चहिए और उसे उपवास रखने के लिए कहना चाहिए। यदि रोगी व्यक्ति को कुछ खाने की इच्छा भी है तो उसे फल खाने के लिए देने चाहिए।
  • हैजा रोग को ठीक करने के लिए सबसे पहले इस रोग के होने के कारणों को दूर करना चाहिए फिर इसके बाद इसका उपचार कराना चाहिए।
  • हैजा रोग को ठीक करने के लिए किसी प्रकार की दवाईयों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।
  • इस रोग से पीड़ित रोगी को स्वच्छ स्थान पर रहना चाहिए जहां पर हवा और सूर्य की रोशनी ठीक तरह से प्राप्त हो सके।
  • इस रोग से पीड़ित रोगी को जब प्यास लग रही हो तो उसे हल्का गुनगुना पानी देना चाहिए।
  • हैजा रोग से पीड़ित रोगी के हाथ-पैर जब ऐंठने लगे तो उसके हाथ तथा पैरों को गर्म पानी में डुबोकर रखना चाहिए फिर उस पर गर्म कपड़ा लपेटना चाहिए।
  • हैजा रोग को ठीक करने के लिए नीली बोतल के सूर्य तप्त जल की 28 मिलीलीटर की मात्रा में नींबू का रस मिलाकर 5 से 10 मिनट के बाद रोगी को लगातार पिलाते रहना चाहिए। यह पानी रोगी को तब तक पिलाते रहना चाहिए जब तक कि रोगी को उल्टी तथा दस्त होना बंद नहीं हो जाते हैं।
हैजा रोग से बचने के उपाय-
  • इस रोग से बचने के लिए कभी भी अजीर्ण रोग (बदहजमी) नहीं होने देना चाहिए।
  • इस रोग से बचने के लिए मैले तथा भीड़-भाड़ वाले स्थानों पर कभी भोजन का सेवन नहीं करना चाहिए।
  • व्यक्ति को कभी-भी मलत्याग करने वाली जगह पर नहीं रहना चाहिए।
  • बासी खाद्य पदार्थों, सड़े-गले खाद्य पदार्थों तथा खुले हुए स्थान पर रखी मिठाइयों का सेवन नहीं करना चाहिए।
  • ऐसे कुएं तलाबों तथा जलाशयों के जल को कभी भी पीना नहीं चाहिए। जिनके आस-पास गंदगी फैली हो या फिर जिनका पानी गंदा हो।
  • गर्मी के दिनों में लू चलती है, उससे बचकर रहना चाहिए तथा धूप में बाहर नहीं निकलना चाहिए।
  • जब भोजन कर रहे हो तो उस समय पानी नहीं पीना चाहिए बल्कि भोजन करने के 2 घण्टे बाद पानी पीना चाहिए।
  • भोजन हमेशा सादा करना चाहिए तथा आवश्यकता से अधिक नहीं करना चाहिए।
  • हैजा रोग से बचने के लिए भोजन भूख से अधिक नहीं करना चाहिए।
  • हैजा रोग से बचने के लिए भोजन में प्याज, पोदीना, नींबू तथा पुरानी पकी इमली का सेवन करना चाहिए।
  • हैजा रोग से बचने के लिए सभी व्यक्तियों को प्रतिदिन एक या आधा नींबू का रस पानी में मिलाकर पीना चाहिए। इस पानी को पीने से खून साफ हो जाता है और हैजा होने का डर बिल्कुल भी नहीं रहता है।
  • खाने वाली चीजों को हमेशा ढककर रखना चाहिए ताकि इन चीजों पर मक्खियां न बैठ सके।
  • रात के समय में अधिक जागना नहीं चाहिए।
  • अधिक काम करने से बचना चाहिए ताकि शरीर में थकावट न हो सके।
  • संभोग करने की गलत नीतियों से बचे क्योंकि गलत तरीके से संभोग करने से भी हैजा रोग हो सकता है।
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चेचक Chickenpox Part-II

परिचय:-
Chechak Badi mata by Chiragan
          जब चेचक का रोग किसी व्यक्ति को हो जाता है तो इस रोग को ठीक होने में 10-15 दिन लग जाते हैं। लेकिन इस रोग में चेहरे पर जो दाग पड़ जाते हैं उसे ठीक होने में लगभग 5-6 महीने का समय लग जाता है। यह रोग अधिकतर बसन्त ऋतु तथा ग्रीष्मकाल में होता है। यदि इस रोग का उपचार जल्दी ही न किया जाए तो इस रोग के कारण  रोगी व्यक्ति की  मृत्यु हो सकती है।
 चेचक का रोग 3 प्रकार का होता है-
1. रोमान्तिका या दुलारी माता
2. मसूरिका (छोटी माता या शीतला माता)
3. बड़ी माता (शीतला माता)
रोमान्तिका (दुलारी माता):-
          जब किसी व्यक्ति को रोमान्तिका का रोग हो जाता है तो इसके दाने उसके शरीर की त्वचा के रोमकूपो पर निकलते हैं। इसलिए इस चेचक को रोमान्तिका कहते हैं। इस प्रकार के चेचक से पीड़ित रोगी की मृत्यु नहीं होती है। इस रोग में निकलने वाले दाने 2-3 दिन में ठीक हो जाते हैं। यह रोग 12 वर्श से कम आयु के बच्चों को अधिक होता है। इस रोग के दाने बहुत बारीक होते हैं। चेचक का रोमान्तिका रोग अपने आप ही ठीक हो जाता है।
रोमान्तिका (दुलारी माता) के लक्षण-
          रोमान्तिका रोग में रोगी व्यक्ति के चेहरे पर लाल रंग के दाने निकलने लगते हैं तथा जब ये दाने निकलते हैं तो रोगी व्यक्ति को बुखार हो जाता है और बैचेनी सी होने लगती हैं। यह दाने 2-3 दिनों के बाद फफोलों का रूप ले लेते हैं तथा इसके बाद कुछ दिनों बाद ये सूख कर झड़ने लगते हैं।
मसूरिका (छोटी माता या शीतला माता):-
          जब किसी व्यक्ति को चेचक का मसूरिका रोग हो जाता है तो उसके शरीर पर मसूर की दाल के बराबर के दाने निकलने लगते हैं। इसलिए इसे चेचक का मसूरिका रोग कहते हैं। इस चेचक को ठीक होने में कम से कम 11-12 दिनों का समय लग जाता है। कभी-कभी इस चेचक को ठीक होने में बहुत अधिक समय भी लग जाता है। इस चेचक के कारण शरीर पर घाव भी हो जाते हैं, जिससे रोगी के शरीर में कहीं-कहीं निशान भी पड़ जाते हैं। इस रोग के कारण त्वचा पर पड़े निशान कम से कम 2 महीने के बाद साफ होते हैं। यह बहुत ज्यादा संक्रामक रोग है। इस रोग के दाने कम से कम 10 दिनों में निकल आते हैं। जब यह रोग आक्रमक होता है तो रोगी के शरीर पर बहुत सारे दाने निकल आते है और इनके निकलने के 5-6 घण्टों के अन्दर ही इनमें पीब भर जाती है और दाने 1-2 दिनों में फफोलों की तरह त्वचा पर नज़र आने लग जाते हैं। यदि इस रोग का उपचार सही से किया जाए तो यह कुछ ही दिनों में ये ठीक हो जाते हैं।
मसूरिका रोग के लक्षण-
          जब रोगी को मसूरिका चेचक हो जाता है तो उसे बुखार हो जाता है, सिर में दर्द होने लगता है, उसकी आंखें पानी से भर आती हैं और उसे जुकाम हो जाता है। रोगी को रोशनी अच्छी नहीं लगती है, खांसी हो जाती है, छींके आने लगती है। मसूरिका रोग में रोगी के शरीर पर कम से कम 2 दिनों में दाने निकलने लगते हैं। इस रोग में दाने कभी-कभी बिना बुखार आए भी निकलने लगते हैं।
बड़ी माता (शीतला माता)-
          चेचक रोग में बड़ी माता से पीड़ित व्यक्ति को बहुत अधिक परेशानी होती है। इस चेचक के रोग को ठीक होने में कम से कम 20 से 30 दिनों का समय लग जाता है तथा इसके निशान त्वचा पर जीवन भर रहते हैं।
बड़ी माता (शीतला माता) के लक्षण-
  • बड़ी माता (शीतला माता) चेचक के दाने बड़े-बड़े फफोलों के रूप में शरीर पर निकलने लगते हैं इसलिए इसको बड़ी माता कहते हैं। जब इसके दाने फूटते हैं तो उनमे से पानी निकलने लगता है और कभी-कभी उनमें पीब तथा मवाद भी पड़ जाती है तथा बदबू भी आने लगती है। इस चेचक के कारण रोगी की आंखों में फुल्ली पड़ जाती है या रोगी बहरा हो जाता है। इस चेचक के दाग गहरे होते हैं तथा जीवन भर नहीं मिटते है।
  • जिस व्यक्ति को चेचक के दाने निकलने को होते हैं, उस व्यक्ति की भूख मर जाती है, रोगी की जीभ का स्वाद बिगड़ जाता है, उसके शरीर में सुस्ती, कमजोरी और सिर में भारीपन होने लगता है। रोगी व्यक्ति को कब्ज रहने लगता है तथा उसकी रीढ़ की हड्डी में दर्द भी होने लगता है।
चेचक रोग होने का कारण:-
          किसी भी तरह का चेचक रोग होने का सबसे प्रमुख कारण शरीर में दूषित द्रव्य का जमा हो जाना है। यह एक संक्रामक रोग है जो एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को भी हो जाता है। यह रोग गन्दगी के तथा गन्दे पदार्थों का सेवन करने से होता है।
चेचक रोग का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार :-
  • चेचक रोग से पीड़ित रोगी को पूरे दिन में कई बार पके नारियल का पानी के चेचक के दागों पर लगाना चाहिए। इस प्रकार से प्रतिदिन कुछ दिनों तक उपचार करने से चेचक के दाग ठीक होने लगते हैं।
  • रोमान्तिका चेचक को ठीक करने के लिए रोगी व्यक्ति को सफाई वाले स्थानों पर ही आराम करना चाहिए तथा उसे भोजन में दूध और फलों का सेवन अधिक मात्रा में करना चाहिए। यदि रोगी व्यक्ति को कब्ज हो तो उसे एनिमा क्रिया करनी चाहिए। इस प्रकार से उपचार करने से यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
  • मसूरिका चेचक के रोग में रोगी व्यक्ति को छाया में आराम करना चाहिए तथा यह ध्यान रखना चाहिए कि वह जहां पर आराम कर रहा है वह स्थान साफ-सुथरा तथा हवादार होना चाहिए। रोगी व्यक्ति को अपनी आंखों को गुलाब जल या फिटकरी के पानी से दिन में 2-3 बार धोना चाहिए तथा इसके बाद पलकों को आपस में चिपकने से बचाने के लिए अच्छी किस्म की बैसलीन या शुद्ध घी का काजल लगाना चाहिए। रोगी व्यक्ति को प्रतिदिन गुनगुने पानी से एनिमा क्रिया करनी चाहिए और अधिक मात्रा में पानी पीना चाहिए। पानी में नींबू के रस को मिलाकर पीने से रोगी को बहुत फायदा मिलता है। जब तक बुखार न उतर जाए तब तक रोगी को कुछ भी नहीं खाना चाहिए। जब बुखार ठीक हो जाए तब रोगी को फलों का रस पीना चाहिए। रोगी व्यक्ति को दोपहर के समय फल तथा सब्जियों का सेवन करना चाहिए। इसके बाद रोगी व्यक्ति को 3-4 दिनों बाद नाश्ते में 1 गिलास दूध तथा फलों का रस पीना चाहिए फिर सामान्य भोजन करना चाहिए। इस प्रकार से प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार करने से मसूरिका चेचक जल्द ही ठीक हो जाता है।
  • यदि चेचक के दाग बहुत अधिक पुराना हो गए हो तो ये बहुत मुश्किल से ठीक होते हैं। जब चेचक के दाने सूखकर झड़ने लगे तो उन पर साफ गीली मिट्टी का लेप अच्छी तरह से कुछ दिनों तक लगातार लगाने से चेचक के दाग कुछ ही दिनों में दूर हो जाते हैं तथा रोगी का चेहरा भी साफ हो जाता है।
  • बड़ी माता के रोग को ठीक करने के लिए करेले की बेल, पत्ते तथा फल के 10 मिलीलीटर रस में 1 चम्मच शहद मिलकर रोगी व्यक्ति को दिन में 3 बार चटाने से बहुत अधिक लाभ मिलता है।
  • कच्चे करेले को काटकर पानी में उबाल लें। फिर उस पानी को गुनगुना ही दिन में कम से कम 3 बार रोगी को प्रतिदिन पिलाएं। इससे कुछ ही दिनों में बड़ी माता का रोग ठीक हो जाता हैं।
  • पानापोटी के 3-4 पत्ते और 7 कालीमिर्च के दानों को एक साथ पीसकर पानी में मिलाकर 3 दिनों तक रोगी को पिलाने से बड़ी माता  ठीक हो जाती है।
  • रुद्राक्ष को पानी में घिसकर चेचक के रोगी के घावों पर लगाने से उसकी जलन दूर होती है और घाव भी जल्दी ठीक होते हैं।
  • चेचक के रोग से पीड़ित रोगी का उपचार करने के लिए सबसे पहले रोगी व्यक्ति को कुछ दिनों उपवास रखना चाहिए। उपवास के दौरान रोगी को पानी में नींबू का रस मिलाकर दिन में कम से कम 6 बार पीना चाहिए तथा गुनगुने पानी से एनिमा क्रिया करनी चाहिए ताकि पेट साफ हो सके। रोगी व्यक्ति को सुबह तथा शाम के समय में उदरस्नान तथा मेहनस्नान करना चाहिए।
  • चेचक के निशानों को दूर करने के लिए अंकोल का तेल, आटे और हल्दी को एक साथ मिलाकर लेप बना लें। इस लेप को चेहरे पर कुछ दिनों तक लगाने से चेचक के दाग चेहरे से दूर हो जाते हैं और चेहरा साफ हो जाता है।
  • बनफ्शा की जड़, कूट, जलाया हुआ बारहसिंगा, मुर्दासंग, अर्मनी का बुरादा तथा उशुक को 1-1 ग्राम लेकर मक्खन मिले दूध में पीसकर लेप बना लें। इस लेप को चेचक के निशानों पर कुछ दिनों तक प्रतिदिन लगाने से यह निशान कुछ दिनों में ही साफ हो जाते हैं।
  • हाथी के दांत का चूर्ण, अर्मनी का बुरादा और पामोलिव साबुन को आपस में मिलाकर लेप तैयार कर लें। इस लेप को रात को सोते समय चेहरे पर चेचक के निशानों पर लगाएं और सुबह के समय में उठने पर चेहरे को पानी से धो डालें। इस प्रकार से प्रतिदिन चेहरे पर लेप करने से कुछ ही दिनों में चेचक के दाग समाप्त हो जाते हैं और चेहरा बिल्कुल साफ और सुन्दर बन जाता है।


चेचक (शीतला)
Small pox


विभिन्न औषधियों से चिकित्सा :-
जेल्सीमियम :-
          यह रोग होने पर जब बुखार तेज चढ़ जाए और अधिक बेचैनी हो रही हो तो इस औषधि की 3 या 30 शक्ति की मात्रा का उपयोग अधिक लाभदायक है।
वेरियोलीनम :-
  1. वेरियोलीनम औषधि शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाती है। इस औषधि से चिकित्सा करने के लिए इसकी 200 शक्ति की मात्रा का प्रयोग करना चाहिए।
  2. इस औषधि के प्रभाव से चेचक ठीक होने लगता है। इस रोग प्रतिरोधक औषधि को सप्ताह में एक बार सेवन करने से लाभ मिलता है।
  3. चेचक रोग को ठीक करने के लिए वेरियोलीनम औषधि के साथ ही बीच-बीच में सल्फर औषधि की 200 शक्ति की मात्रा का उपयोग करना अधिक लाभदायक होता है।
  4. यदि रोग ठीक हो जाने के बाद भी चेचक का दाग ठीक न हो तो उसे ठीक करने के लिए भी इस औषधि का उपयोग किया जा सकता है। इस औषधि के द्वारा चिकित्सा करने के लिए सबसे पहले इसकी 6x या 12x मात्रा का उपयोग सप्ताह में एक बार दें। इसे लगातार तीन सप्ताह तक देते रहने से रोग पूरी तरह से ठीक हो सकता है।
ऐकोनाइट :-
          ऐकोनाइट औषधि का उपयोग तब करते हैं जब चेचक रोग के लक्षण शुरू हुए हो और तेज बुखार के साथ ही बेचैनी हो रही हो। यह इस रोग को ठीक करने में बहुत असरदार औषधि है। ऐसे लक्षणों को ठीक करने में इस औषधि की अपेक्षा बेलाडोना औषधि का उपयोग भी बहुत अधिक लाभदायक है।
मैलेन्ड्रिनम :-
          मैलेन्ड्रिनम औषधि शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाती है और चेचक रोग को भी ठीक करने में लाभकारी है।
ब्रायोनिया :-
          चेचक रोग के शुरू-शुरू के लक्षणों में यह औषधि बहुत अधिक उपयोगी है। इस रोग से पीड़ित रोगी में और भी कई प्रकार के लक्षण होते हैं जैसे- तेज उल्टी आना, सिर में तेज दर्द होना, बुखार होने के साथ ही शरीर पर दाने निकलना और जी मिचलाना आदि। ऐसे लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग का उपचार करने के लिए ब्रायोनिया औषधि की 30 शक्ति की मात्रा का प्रयोग किया जाता है। इस औषधि से उपचार करते समय यह भी ध्यान रखना चाहिए कि रोगी जब हरकत करता है तो उसे परेशानी होती है।
थूजा :-
          थूजा औषधि का प्रयोग चेचक रोग की दूसरी अवस्था में करते हैं जब इस प्रकार के लक्षण हो जाते हैं- दाने दूध के समान सफेद और पीब युक्त हो या काले दाने हो, दाने सूजी हुई त्वचा पर निकल रहे हो, इन दानों से अधिक बदबू आ रही हो। ऐसे लक्षण होने पर चिकित्सा करने के लिए इस औषधि की 30 शक्ति की मात्रा का प्रयोग करने से लाभ मिल सकता है। यह औषधि शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी बढ़ाती है।
ऐन्टिम टार्ट :-
          चेचक रोग होने पर जब चेचक के फफोले पड़ जाए तो रोग को ठीक करने के लिए इस औषधि की 6x मात्रा का प्रयोग करने से अधिक लाभ मिलता है। इस रोग के होने के साथ ही छालों में पीब बन रहे हो तो भी ऐन्टिम टार्ट औषधि के द्वारा उपचार किया जा सकता है। रोगी के श्वास नली में सूजन हो, ब्रौंको-न्यूमोनिया हो, खांसी हो रही हो, छाती में घड़घड़ की आवाजें हो रही हो और साथ ही चेचक के दाने हो तब इस औषधि से उपचार करना और भी अधिक लाभकारी है। ऐन्टिम टार्ट औषधि से तब भी उपचार कर सकते हैं जब अधिक मात्रा में दाने शरीर पर निकल आए।
हाइड्रेस्टिस :-
          यह औषधि चेचक रोग को ठीक करने में अधिक लाभकारी है। हाइड्रेस्टिस औषधि की 30 शक्ति की मात्रा का उपयोग रोग को ठीक करने के लिए करना चाहिए।
मर्क-सौल :-
          इस औषधि की 30 शक्ति की मात्रा के द्वारा उपचार तब किया जाता है जब चेचक रोग में फफोले पकने लगें और रोग की अवस्था तीसरी अवस्था में बदल जाए।
क्रोटेलस :-
          यह औषधि सांप के विष से बनाई जाती है। इस औषधि का प्रयोग तब करते हैं जब चेचक रोग का स्वरूप अधिक खतरनाक होने लगे। इस औषधि की 6 शक्ति के द्वारा ही उपचार करना चाहिए।
हैमैमेलिस :-
          यदि चेचक रोग से पीड़ित रोगी को रक्त स्राव हो रहा हो तो उसके रोग को ठीक करने के लिए इस औषधि की 6 शक्ति की मात्रा का उपयोग लाभदायक है।
हिपर सल्फ :-
          चेचक रोग में इसका उपयोग चेचक के दाने को पकाने के लिए किया जाता है। इस औषधि की 30 शक्ति की मात्रा का प्रयोग करना चाहिए।

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चेचक (बड़ी माता) Big Chickenpox


परिचय-
Chechak chickenpox  Badi mata by chiragan
          चेचक के रोग में बुखार के बाद शरीर पर लाल दाने निकलते हैं। ये दाने 2 से 3 दिन के बाद फफोले का रूप ले लेते हैं। 4 से 5 दिन में इन दानों में से पपड़ी जमकर नीचे गिरने लगती है। चेचक में बुखार और प्रदाह (जलन) के कारण रोगी को काफी बैचेनी होती है। इस रोग को ठीक होने में कम से कम 7 से 10 दिन तक लग जाते हैं।
कारण :
          चेचक के रोग को घरेलू भाषा में `माता´ या `‘शीतला´ भी कहते हैं। यह रोग अक्सर उन बच्चों को होता है जिनके शरीर में शुरू से ही गर्मी होती है तथा उनकी उम्र 2 से 4 साल तक की होती है। कभी-कभी यह औरतों और बड़ों में भी हो जाता है। इस रोग के फैलने का कारण वायरस (जीवाणु) हैं। इसके जीवाणु थूक, मलमूत्र (टट्टी-पेशाब) और नाखूनों में पाये जाते हैं। सूक्ष्म (छोटे-छोटे) जीवाणु हवा में घुल जाते हैं और सांस लेते समय ये जीवाणु अन्दर चले जाते हैं। इस रोग को आर्युवेद में मसूरिका के नाम से जाना जाता है।
लक्षण -
          चेचक (माता) होने पर शरीर का तापमान बढ़ जाता है। यह बुखार 104 डिग्री फारेनहाइट हो जाता है। रोगी को बेचैनी होने लगती है। उसे बहुत ज्यादा प्यास लगती है और पूरे शरीर में दर्द होने लगता है। दिल की धड़कन तेज हो जाती है और साथ में जुकाम भी हो जाता है। 2-3 दिन के बाद बुखार तेज होने लगता है। शरीर पर लाल-लाल दाने निकलने लगते हैं। दानों में पानी जैसी मवाद पैदा हो जाती है और 7 दिनों में दाने पकने लगते हैं जोकि धीरे-धीरे सूख जाते हैं। दानों पर खुरण्ड (पपड़ी) सी जम जाती है। कुछ दिनों के बाद खुरण्ड (पपड़ी) तो निकल जाती है लेकिन उसके निशान रह जाते हैं।
भोजन और परहेज :
  • छोटे बच्चों को चेचक होने पर दूध, मूंग की दाल, रोटी और हरी सब्जियां तथा मौसमी फल खिलाने चाहिए या उनका जूस पिलाना चाहिए।
  • चेचक के रोग से ग्रस्त रोगी के घर वालों को खाना बनाते समय सब्जी में छोंका नहीं लगाना चाहिए।
  • रोगी को तली हुई चीजें, मिर्चमसाले वाला भोजन और ज्यादा ठंड़ी या ज्यादा गर्म चीजें नहीं देनी चाहिए।
  • अगर बुखार तेज हो तो दूध और चाय के अलावा रोगी को कुछ नहीं देना चाहिए।
  • दरवाजे पर नीम के पत्तों की टहनी लटका देनी चाहिए। 
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Monday, 23 April 2012

What is Chickenpox | चिकनपोक्स “वेरीसेल्ला (varicella)“, “छोटीमाता” By Chiragan

Chickenpox | चिकनपोक्स “वेरीसेल्ला (varicella)“, “छोटीमाता”

 1.  संक्षिप्त वर्णन

    Chickenpox rash
  • प्रकार - एक तरह का संक्रमित बीमारी
  • कारण - वेरीसेल्ला वायरस
  • प्रसार - छूने से और सांस लेने से फैलता है
  • अन्य नाम - “वेरीसेल्ला (varicella)“, हिन्दी में “छोटीमाता”
  • मुख्य लक्षण – बुखार, फुंसी, खुजली, खाने-पीने में तकलीफ, डिहाईड्रेशन
  • इलाज - इसका लक्षण के अनुसार, प्रमुख इलाज घर पर ही होता है

2.  लक्षण

Chickenpox rash
चिकनपोक्स के दाने
बच्चों में इस बीमारी के मुख्य लक्षण हैं – तेज़ बुखार, समूचे शरीर में फुंसी निकलना, बहुत अधिक खुजली, थकान, खाने-पीने में तकलीफ, शरीर में पानी का कमी या डिहाईड्रेशन, सिरदर्द और अन्य बातें। यह फुंसी शुरू में चेहरे और छाती पर होता है, और फिर जल्द ही सारे शरीर में फैल जाता है। इसमें करीब शरीर में 250 से 500 दाने निकलते हैं।
बच्चों में यह बीमारी करीब 1 से 2 हफ्ते तक रहता है। इस दौरान उनको स्कूल नहीं भेजना चाहिए। करीब 10 में से 1 बच्चे अस्पताल में भर्ती हो सकते हैं|
आधिकांश लोग को यह बीमारी बचपन में हो चुका होता है, जिससे कि उन्हें याद भी नहीं रहता है। लेकिन, जब यह बीमारी पहले बार व्यस्क लोगों में होता है, तो यह और भी तकलीफदायक होता है।
कुछ लोग जिनके शरीर का इम्युनिटी कमजोर है, जैसे कि “एच आई वी” का बीमारी हो या फिर कोई दवा ले रहे हों, जैसे कि बहुत हफ्तों तक स्टीरोयड (steroid) ले रहे हों, उन लोगों में यह बीमारी अधिक कष्टदायक होता है।
Smallpox vs chickenpox rash
स्मालपोक्स और चिकनपोक्स के दाने में अंतर

3.  प्रसार

चिकनपोक्स वायरस के संक्रमण से होता है। इस वायरस को वेरीसेल्ला – ज़ोस्टर (varicella-zoster virus) कहते हैं। यह वायरस एक व्यक्ति से दूसरे वयक्ति तक हवा से, जैसे कि छींकने से या खांसने से, अथवा छूने से जैसे कि हाथ मिलाने से या किसी मरीज द्वारा छुये गये वस्तु को छूने से हो सकता है। यह वायरस बहुत प्रबल होता है, जिससे कि किसी मरीज़ के फुंसी के फूटने से भी वायरस हवा में फैल सकता है, और दूसरों को संक्रमित करने में सक्षम होता है।
चिकनपोक्स का मरीज़, अपने बीमारी के फुंसी निकलने के 1 से 2 दिन पहले से यह बीमारी फैला सकता है। इसका अर्थ है कि कोई दूसरा व्यक्ति किसी मरीज के संगति में रह सकता है, बगैर इस ज्ञान के कि उसको चिकनपोक्स है। यह मरीज फिर फुंसी के सूखने तक दूसरों को फैला सकता है। जिस दूसरे व्यक्ति को किसी मरीज से सामना होता है, अगर उसको चिकनपोक्स के खिलाफ इम्युनिटी नहीं है, तो उसको भी 2 से 3 हफ्ते में चिकनपोक्स हो सकता है।

4.  समस्या

इस बीमारी से उत्तपन फुंसी में अनेक प्रकार के अन्य संक्रमण हो सकता है, जिससे कि विभिन्न अंगों में बीमारी हो सकता है, जैसे कि चर्म का, फेफड़ा का, हड्डी का, खून का, दिमाग का, और अन्य बीमारी। बहुत कम लोगों में यह बीमारी जानलेवा भी हो सकता है।

5.  देखभाल

चिकनपोक्स के इलाज के लिए कोई दवा नहीं होता है| इसका लक्षण के अनुसार, प्रमुख इलाज घर पर ही होता है। कोई भी दवा देने से पहले पढ़ लेना चाहिये कि उसमें क्या है?
नीचे लिखे हुये कुछ बातों का ध्यान रखें और मरीज का देखभाल करें -
  1. खुजली कम करने के लिये -
    1. दिन में तीन-चार बार ठंडे पानी से नहाना चाहिये, जिससे कि शरीर को ठंडक पहुंच सके।
    2. केलामाइन लोशन (calamine lotion) का इस्तेमाल करें।
    3. डाइफेनहाइड्रामिन या बेनाड्रिल (Diphenhydramine or Benadryl) लोशन का इस्तेमाल न करें, क्योंकि यह घाव से शरीर में घुसकर अनचाहा असर पहुंचा सकता है।
  2. बुखार कम करने के लिये -
    1. एसिटाअमिनोफेन (acetaminophen) या पेरासिटामोल (paracetamol) युक्त दवा का इस्तेमाल करें
    2. इबुप्रोफेन (ibuprofen) युक्त दवा का इस्तेमाल करें
    3. एसपिरिन (aspirin) युक्त दवा का इस्तेमाल, बच्चों में न करें, क्योंकि इससे एक अलग बीमारी हो सकता है, जिसे बच्चे का दिमाग और कलेजा (liver) खराब हो सकता है। इसे रेयस सिंड्रोम (Reye’s syndrome) कहते हैं, और यह जानलेवा भी हो सकता है।
    4. तेज बुखार के लिये, दिन में तीन-चार बार, सिर पर भिगोया हुआ पट्टी रखें।
  3. खाने के लिये -
    1. जितना हो सके मरीज को वो खाने मिले, जिसे वो खा-पी सके और उसके लिये रुचि हो
    2. तरल खाना अधिक करके न दें
    3. ठंडा पेय जल, लस्सी, शरबत दें
    4. खट्टा जूस, जैसे नारंगी का जूस न दें
    5. गर्म खाना जैसे कि चिकन, मटन, अंडा इत्यादि न दें
    6. अधिक मिर्चावाला खाना न दें
    7. डिहाईड्रेशन के लिये जांच करें, और घरेलू इलाज शुरू करें
  4. बाहर जाने के लिये -
    1. जब तक सारे फुंसी सूख न जायें, तब तक मरीज को बाहर नहीं जाना चहिये, जिससे कि यह बीमारी दूसरों को न फैल जाये।
    2. डाक्टर के पास जाने से पहले उनको फोन कर दें, जिससे कि आपके मरीज को वो अलग से देख सकें

6.  टीका

चिकनपोक्स के दो टीका लेने से आप अपने बच्चे को चिकनपोक्स से बचा सकते हैं। हर बच्चे में इस बीमारी का अलग-अलग रूप होता है, अर्थात किसी बच्चे में मामूली होता है, तो कुछ में भयानक होता है। जब इसके लिये टीका उपलब्ध है, तो फिर व्यर्थ में किसी जानलेवा बीमारी से यूं ही सामना नहीं करना चाहिये।

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Cancer in India | भारत में कैंसर By Chiragan

1.  भारत में रोग से मृत्यु का अनुमानित प्रतिशत

यह डाटा, वर्ल्ड हेल्थ आरगेनाइजेशन (World health Organization, http://www.who.int ) से लिया गया है। यह डाटा साल 2002 का है। उस पर आधारित यह साल 2005 और साल 2030 के लिये अनुमान लगाया गया था कि भारत में विभिन्न बीमारीयों से मृत्यु का क्या प्रतिशत होगा।
यह डाटा, वर्ल्ड हेल्थ आरगेनाइजेशन (World health Organization, http://www.who.int ) से लिया गया है। यह डाटा साल 2002 का है। उस पर आधारित यह साल 2005 और साल 2030 के लिये अनुमान लगाया गया था कि भारत में विभिन्न बीमारीयों से मृत्यु का क्या प्रतिशत होगा।
संक्षेप में, अगले 25 साल में, भारत में संक्रमित बीमारी कम होंगे (दूसरे नम्बर पर), और बाकीं सभी अन्य बीमारी से मृत्यु बढेंगे। खास करके दिल और नसों का बीमारी या कार्डियो-वेस्कुलर डिसोरडर (Cardio-vascular disorder), मृत्यु का सबसे बड़ा कारण बन जायेगा। अगले 25 साल में, भारत में कैंसर से भी मृत्यु, डेढ गुना अधिक हो जायेगा।
Cancer By Chiragan
“अन्य दीर्घकालिक रोग” उन रोगों को कहते हैं, जो कि लम्बे समय तक रहता है, जैसे कि डायबिटीज़, ग्रंथि रोग, दिमागी बीमारी, सांस की बीमारी, जनांग की बीमारी, चर्म रोग, मांस-पेशियों की बीमारी, जन्म से ही बच्चे में दोष, मुंह में रोग और अन्य बीमारी।

2.  कैंसर किस अंग में होता है।

कैंसर किसी भी अंग में हो सकता है। यह निर्भर करता है आपके खाने-पीने और रहने के तौर-तरीके से। इसके अलावा कुछ कैंसर किसके घर में खानदानी होता है, मतलब कि पिता या मां या उनके पुर्वज के तरफ से आया होता है। अन्य कुछ बातें जो कि कैंसर होने के लिये जरूरी होता है जैसे कि जाति, समुदाय, रंग, लिंग, व्यायाम करना, दवा, और अन्य कारण। यहां पर भारतीय महिलाओं और पुरुषओं मे कैंसर के नये मरीज़ के बारे में बताया गया है।

3.  भारत में महिलाओं में कौन – कौन से कैंसर होते हैं?

  • भारत में महिलाओं में तीन तरह के कैंसर सबसे ज्यादा होते हैं। वो हैं -
    • पहले स्थान पर है सरविक्स और युटेरस का कैंसर
    • दूसरे स्थान पर है स्तन या ब्रेस्ट का कैंसर
    • तीसरे स्थान पर है खून में एक तरह का कैंसर जिसे लिम्फोमा कहते हैं
    • इसके बाद अन्य कैंसर होते हैं,
संकोच और शर्म के कारण, भारत में, उपर लिखे कैंसर के बारे में बात नहीं किया जाता है। यहां तक कि सामान्य महिला को सरविक्स किसे कहते हैं, यह पता भी नहीं होता है। और सरविक्स का कैंसर, हर साल, सबसे अधिक नये मरीज़ करता है और सबसे अधिक मौत का कारण बनता है। जब तक सरविक्स के कैंसर के लक्षण के प्रकट होने पर डाक्टर के पास जाते हैं, तब तक आधिकांश समय बहुत देर हो जाता है।

4.  भारत में पुरुषों में कौन – कौन से कैंसर होते हैं?

  • भारत में पुरुषों में तीन तरह के कैंसर सबसे ज्यादा होते हैं। वो हैं -
    • पहले स्थान पर है फेफड़ा और सांस का नली (Trachea, Lungs)
    • दूसरे स्थान पर है मुंह और गला (Mouth, Oro-pharyngeal Cancer)
    • तीसरे स्थान पर है इसोफेगस या खाने का नली (Esophagus)
    • इसके बाद अन्य कैंसर होते हैं,
अत्याधिक सिग्रेट, बीड़ी, हुक्का और अन्य तम्बाकू के कारण फेफड़ा और सांस का नली का कैंसर सबसे ज्यादा होता है। वैसे ही हमेशा मुंह में पान, सुपारी, गुटख़ा और अनगिनत प्रकार के जर्दा और खैनी से मुंह और गला का कैंसर दूसरे स्थान पर हैं। कभी – कभी आप ये सब नहीं भी लेते होंगे, लेकिन यह कैंसर हो सकता है। जरूरी बात यह है कि सर्वप्रथम, ये व्यस्न नहीं लेना चाहिये और अगर कोई नया बदलाव दिखाई दे या महसूस करें, तो तुरंत किसी अच्छे डाक्टर से दिखलाना चाहिये।

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Cataract केटेरेक्ट (मोतियाबिंद) By Chiragan

1.  केटेरेक्ट (मोतियाबिंद) किसको कहते हैं?

यह आंखों में लेंस के धुंधलापन को कहते हैं, जिससे कि दिखाई देने में दिक्कत होता है| यह एक या दोनों आंख में हो सकता है|
सामान्य रूप में दिखाई देनामोतियाबिन्द में दिखाई देना

2.  लक्षण

  • धुंधला दिखाई देना
  • अंधेरा में देखने में दिक्कत होना
  • रोशनी नहुत तेज दिखना
  • दोहरा दिखाई देना
  • रंग साफ़ से दिखाई नहीं देना
  • बार बार चश्मा बदलना

3.  जांच

  • "विजूअल एक्यूटी (visual acuity)" - दूर से अक्षर पढ़ने का क्षमता
  • आंखों में दवा डाल कर, डाक्टर द्वारा जांच
  • टोनोमेटरी - आंखों में प्रेशर का जांच
Acute CataractAge related cataractCongenital cataract
एक्यूट केटेरेक्टबुढ़ापे में केटेरेक्टजन्म से केटेरेक्ट

4.  केटेरेक्ट के प्रकार

  • उम्र के साथ
    • यह उम्र के साथ अधिक लोगों में होता है| कुछ लोगों में यह 40 से 50 साल से ही शुरू हो जाता है| लेकिन, अधिक लोगों में 60 साल के बाद दिखाई देने में खास दिक्कत होने लगता है|
    • कुछ नवजात शिशु में केटेरेक्ट हो सकता है|
  • किसी कारण से केटेरेक्ट होना-
    • आंख में कोई बीमारी - ग्लूकोमा, चोट लगने के बहुत समय बाद
    • शरीर में कोई बीमारी - डायबिटीज़, कोई तरह के रेडिएशन के बाद

5.  इलाज - सर्जरी

कुछ लोगों को, जिन्हें कम केटेरेक्ट होता है, उनको चश्मा लगाने से लाभ हो सकता है| लेकिन पूरा इलाज के लिए सर्जरी जरूरी है| अगर आपको केटेरेक्ट के कारण देखने में दिक्कत होता है, जैसे कि पढ़ने में, टी वी देखने में, गाड़ी चलाने में, तो अपने आंख के डाक्टर से सर्जरी के लिए परामर्श लें| साथ ही, अगर आपको अन्य कोई बीमारी है, तो उसको ध्यान में रख कर सर्जरी करना होगा|
केटेरेक्ट का सर्जरी कोई आपातकालीन सर्जरी नहीं होता है| यह आप अपने सुविधा अनुसार करा सकते हैं| अगर आपके दोनों आंखों में केटेरेक्ट है, तो एक आंख के सर्जरी और दूसरे आंख के सर्जरी के बीच में करीब 2 महीना रुकना चाहिए|
सर्जरी करीब 90 प्रतिशत लोग में आंखों का रोशनी वापस ला सकता है| यह एक सीधा-साधा और सुरक्षित सर्जरी होता है| लेकिन ध्यान रखें कि आप अपना सर्जरी किसी विश्वासनीय और साफ़-सुथरे जगह से करायें, क्योंकि इसमें इन्फेक्शन होने का सर्जरी नाकामयाब होने का डर रहता है|

6.  सर्जरी में क्या होता है?

सर्जरी में दो चरण होता है| इस सर्जरी में आंख के आगे के स्तर में, या कोर्निया में, चीरा दिया जाता है| पहले चरण में आंख से खराब लेंस को हटाया जाता है, और दूसरे चरण में एक प्लास्टिक का लेंस को लगा दिया जाता है| आप इस प्लास्टिक के लेंस को देख या महसूस नहीं कर सकते हैं| यह प्लास्टिक का लेंस आपके देखने में मदद करेगा|

7.  सर्जरी के प्रकार

सर्जरी के पहले चरण में आंख से खराब लेंस को हटाया जाता है| यह दो तरह से किया जा सकता है|
  • फेको-इमलसीफेकेशन या फेको (Phaco-emulsification or Phaco) - इसमें कोर्निया में एक छोटा चीरा दिया जाता है| फिर तरंगों द्वारा, लेंस को तोड़कर, उसका घोल बना दिया जाता है| इस घोल को बाहर खींच लिया जाता है| आजकल अधिकतर सर्जरी इस तरह से होता है|
  • एक्स्ट्रा-केप्सुलर सर्जरी (extra-capsular surgery) - इसमें कोर्निया में एक बड़ा चीरा डालकर, लेंस को बिना तोड़े हुए निकाला जाता है| 
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एच आइ वी का जांच Test of HIV by Chiragan

1.  एच आइ वी का जांच

एच आइ वी का जांच बताता है कि क्या आप एच आइ वी के वाइरस से संक्रमित हैं? एच आइ वी के वाइरस से एड्स होता है। एच आइ वी से संक्रमित होने पर, आपका शरीर रोग प्रतिकारक कण बनाता है, जिसे “ऐंटीबौडीज़ (Antibodies)” कहते हैं। एच आइ वी के जांच में, अगर आपके खून में “ऐंटीबौडीज़” पाया जाता है, तो इसका मतलब है कि आप एच आइ वी के रोगी हैं, और आप “एच आइ वी पोजीटिव (HIV Positive)” हैं।
Red ribbon by chiragan
एच आइ वी के अन्य जांच भी हैं, जो उन लोगों में किया जाता है जिन्हे मालूम है कि वो एच आइ वी से संक्रमित हैं। इन जांचों से पता चलता है कि आपके शरीर में वाइररस कितने तेजी से बढ रहा है [वाइररस की गिनती या वाइरल लोड टेस्ट, तथ्यपत्र 125 (Viral Load Test)] या आपके शरीर के प्रतिरक्षा की अवस्था कया है [सी डी 4 सेल की गिनती या सी डी 4 काउंट, तथ्यपत्र 124 (CD4 Count)]?

2.  कैसे करें

आप एच आइ वी का जांच सरकारी अस्पताल या किसी मान्यता प्राप्त प्रयोगशाला में करा सकते हैं। जांच का परिणाम लगभग 2 हफ्ते में आ जाता है।
साधारण्त:, एच आइ वी का जांच खून में होता है। कुछ नये जांच एच आइ वी के ऐंटीबौडीज़ को मुँह के पानी में (थूक में नहीं), गाल के अंदर खुरचने से या पेशाब में जांच कर सकते हैं।
“रेपिड (rapid) एच आइ वी जांच” सिर्फ आधे घंटे में हो जाता है। किंतु, कभी कभार इसमें गलतफ़हमी भी हो सकता है। इस वजह से कोइ भी “एच आइ वी पोजीटिव जांच” को फिर से करना चाहिये। एच आइ वी के लिये “मान्यता प्राप्त घरेलू जांच” अभी उपलब्ध नहीं हैं। 

3.  कब करें

अगर आप एड्स से संक्रमित होते हैं, तो आपके प्रतिरक्षा को ऐंटीबौडीज़ बनाने में करीब 3 हफ्तों से 2 महीनों तक लग सकता है। अगर आपको लगता है कि आपको एड्स से संक्रमण हुआ है, तो आपको जांच कराने से पहले कम से कम दो महीना रुकना चहिये। आप अभी भी जांच करा सकते हैं, किंतु 3 महिने के बाद आपको फिर से जांच करना चहिये।
इस दौरान, एच आइ वी वाइरस आपके शरीर में बढते हैं, लेकिन आप जांच में “एच आइ वी पोजीटिव” नहीं होते हैं, और इसे विनडो पीरीएड (Window period) कहते हैं। लेकिन, आप दूसरों को एड्स फैला सकते हैं। 5 प्रतिशत लोग, ऐंटीबौडीज़ बनाने में, 2 महीने से अधिक समय लेते हैं। सम्भावित संक्रमण के 3 से 6 महीनों के बाद, एच आइ वी का जांच निर्णानायक होता है। किंतु, इसका कोई गारंटी नहीं है कि कौन कब इतना ऐंटीबौडीज़ बनायगा कि जांच में पता चल सके। अगर आपको, अपने लक्षणों का कारण समझ न आए, तो डाक्टर से जरूर राय लेना चहिये, और एच आइ वी का जांच फिर से कराना चाहिये।

4.  संक्रमण के तुरंत बाद जांच

कुछ जांच हैं जो एच आइ वी के वाइरस के बहुत ही छोटे अंश या अनुवंशिक (viral genes) को नाप सकते हैं, जिसे वाइरल लोड टेस्ट कहते हैं। यह जांच, ऐंटीबौडीज़ बनने से पहले भी किया जा सकता है। इसी के जैसा एक और जांच है जिसे “न्युक्लिक एसिड टेस्ट (nucleic acid test)” कहते हैं। ये दोनों जांच, बल्ड बैंक (Blood bank) में दान किय हुए खून में एच आइ वी के जांच के लिय उपयोगी हैं। लेकिन, ये दोनों जांच किसी व्यक्ती के संक्रमण के निर्णय के लिये नहीं किया जाता है, क्योंकि ये महंगे हैं और अधिक भूल भी होते हैं।

5.  एच आइ वी पोजीटिव

एच आइ वी के जांच में, अगर आपके खून में “ऐंटीबौडीज़” पाया जाता है, तो इसका मतलब है कि आप एच आइ वी के रोगी हैं, और आप “एच आइ वी पोजीटिव (HIV Positive)” हैं। यह परिणाम आपके सलाहकार के द्वारा दिया जायेगा, जो यह बतलायागा कि आगे कया होगा, कहाँ जाऎं और अन्य सहायता कहाँ मिलेगा।
HIV Infection By Chiragan
“एच आइ वी पोजीटिव” होना या “एच आइ वी का संक्रमण” होना, का ये मतलब नहीं है कि आपको “एड्स” है। बहुत सारे लोग “एच आइ वी पोजीटिव” होते हैं, किंतु वो सालों तक बीमार नहीं पड़ते हैं। देखें तथ्यपत्र 101 एड्स कया है?
अगर आपके जांच में कुछ नहीं मिला (नेगेटिव) है और अगर आपको पिछले 3 महीनों में एच आइ वी का संक्रमण नहीं हुआ है, तो आपको एच आइ वी नहीं है। आगे, अपने आपको एच आइ वी से बचाऎं (देखें 103, एच आइ वी के प्रसार को रोकना)।

6.  क्या जांच गुप्त रहता है?

एच आइ वी का जांच का परिणाम सिर्फ आपको दिया जाता है। आपके सहमति के बाद ही आपके पति या पत्नी या अन्य को बताया जाता है। अगर आप एच आइ वी पोजीटिव हैं, तो स्वस्थ्य विभाग को सूचित किया जाता है। आपके रिपोर्ट गोपनिय रखें जाते हैं। जब कभी गुमनाम जांच किया जाता है, तो वह जांच किसी व्यक्ति से मिला नहीं सकते।

7.  क्या जांच ठीक से होता है?

ऐंटीबौडीज़ की जांच 99.5 प्रतिशत सही होता है। आपको परिणाम बताने से पहले, यह जांच दो से तीन बार अलग अलग तरीके से पक्का किया जाता है। पूर्णरूप से निश्चित करने के लिये अन्य जांच हैं जैसे कि सपलीमेंटल ई/आर/एस (Supplemental E/R/S) या वेस्टर्न ब्लाट (Western Blot)|
दो स्थिती में जांच गलत हो सकता है, जैसे -
  • संक्रमित माँ के बच्चे को । इसमें नवजात शिशु को माँ से ऐंटीबौडीज़ मिल जाता है, जिस कारण से, कुछ महीनों तक बच्चा को एच आइ वी न होने के बावज़ूद, जांच में एच आइ वी पोजीटिव होता है। इस स्थिती में वाइरल लोड टेस्ट किया जा सकता है।
  • और जैसे पहले बताया गया है, संक्रमण के पहले 3 महीनों में विनडो पीरीएड होता है। इसमें जांच गलत हो सकता है।

8.  सारांश

एच आइ वी से संक्रमित होने पर, आपका शरीर रोग प्रतिकारक कण बनाता है, जिसे “ऐंटीबौडीज़” कहते हैं। एच आइ वी के जांच में, अगर आपके खून में “ऐंटीबौडीज़” पाया जाता है, तो इसका मतलब है कि आप एच आइ वी के रोगी हैं, और आप “एच आइ वी पोजीटिव (HIV Positive)” हैं। संक्रमण के पहले 3 महीनों में विनडो पीरीएड होता है। इसमें जांच गलत हो सकता है। नवजात शिशु में ऐंटीबौडीज़ का जांच काम नहीं करता है।
अगर आप जांच में “एच आइ वी पोजीटिव” आ जाते हैं, तो स्वस्थ्य विभाग को सूचित किया जाता है। आपके रिपोर्ट गोपनिय रखें जाते हैं। “एच आइ वी पोजीटिव” होना, का ये मतलब नहीं है कि आपको “एड्स” है, किंतु आप एड्स के बारे में और जानिये और आपको अपना ख्याल रखना चहिये ।

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What is HIV ? By chiragan

Hiv by chiragan

Hiv by chiragan



Hiv by chiragan
The Human Immune System

  • In order to understand HIV, one must understand the human immune system. The first line of defense is a person’s skin, mucous membranes, and other secretions which prevent pathogens from ever entering your body. Pathogens are considered things your body does not want, for example bacteria and viruses.
  • The second line of defense includes nonspecific mechanisms which attempt to contain the spread of pathogens throughout one’s body. The second line of defense relies heavily on the use of white blood cells, which ingest invading organisms. About 5% of white blood cells are made of monocytes, which develop into macrophages. The role of these macrophages is vital to the human immune system, as they are able to engulf pathogens without having to self destruct.
  • The body’s third line of defense is a highly specific means of distinguishing “self” from “non-self” and destroying all “non-self”. All of one person’s cells are marked with a unique set of proteins which label them as “self”. Certain cells in the body are capable of recognizing every antigen (molecules belonging to viruses/bacteria) that may enter one’s body over a lifetime. These cells include macrophages, T-Cells, B Cells, and interior thymus cells. These cells rely on Helper T-Cells to alert them of antigens in the body, thus creating an immune response. Once recognized, Killer T-Cells actively destroy pathogens and even the body’s own cells if that have been invaded by a pathogen.
How HIV attacks the Body
  • As commonly known, HIV cannot penetrate your immune systems first line of defense. You cannot contract HIV by breathing bad air or by holding the hand of somebody who is HIV positive. You have to work hard to become infected by doing things such as sharing contaminated needles, or by having unprotected sex with an infected person. Unfortunately, infected mothers can also transmit the virus to their unborn children or by means of breast milk. Basically, once HIV is in your system it is already to your third and final line of defense.
  • HIV doesn’t target just any cell, it goes right for the cells that want to kill it, i.e. the monocytes, macrophages, and Helper T-Cells. Once HIV infects these cells, T-Cells come along and destroy those infected cells, thus one’s own body is killing off the mechanisms needed to destroy the virus. The virus can infect 10 billion cells a day, yet only 1.8 billion can be replaced daily. Thus, after many years of a constant battle, the body has insufficient numbers of T-Cell to mount an immune response against infections. At the point when the body is unable to fight off infections, a person is said to have the disease AIDS. This means that it is not the virus or the disease that ultimately kills a person; it is the inability to fight of something as minor as the common cold.
How does HIV get into cells and infect them?

  • Helper T-Cells bind to antigen presenting cells (APC’s) by means of a receptor on the cell surface called CD4. HIV is able to use it’s own gp120 (a protein on the surface of HIV) to bind to a cells CD4. HIV also binds to coreceptors CCR5 and CXCR4 of the cell surface. HIV’s membrane fuses to the cell membrane and gains entry into the cell. HIV is one of the few retroviruses, meaning that it can convert its two strands of RNA into DNA by use of the enzyme reverse transcriptase. Because it has two copies of its RNA, it has two chances to in case one of the strands does not work properly or is damaged. The virus then permanently integrates the newly formed DNA into the host’s genome. This means the cells is able to release more HIV into your body, and the process continues. 
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HIV life cycle by Chiragan

HIV life cycle

Entry

HIV life cycle
HIV budding from an infected cell
HIV life cycle by chiragan
HIV can only replicate (make new copies of itself) inside human cells. The process typically begins when a virus particle bumps into a cell that carries on its surface a special protein called CD4. The spikes on the surface of the virus particle stick to the CD4 and allow the viral envelope to fuse with the cell membrane. The contents of the HIV particle are then released into the cell, leaving the envelope behind.

Reverse Transcription and Integration

Once inside the cell, the HIV enzyme reverse transcriptase converts the viral RNA into DNA, which is compatible with human genetic material. This DNA is transported to the cell's nucleus, where it is spliced into the human DNA by the HIV enzyme integrase. Once integrated, the HIV DNA is known as provirus.

Transcription and Translation

HIV provirus may lie dormant within a cell for a long time. But when the cell becomes activated, it treats HIV genes in much the same way as human genes. First it converts them into messenger RNA (using human enzymes). Then the messenger RNA is transported outside the nucleus, and is used as a blueprint for producing new HIV proteins and enzymes.

Assembly, Budding and Maturation

Among the strands of messenger RNA produced by the cell are complete copies of HIV genetic material. These gather together with newly made HIV proteins and enzymes to form new viral particles. The HIV particles are then released or 'bud' from the cell. The enzyme protease plays a vital role at this stage of the HIV life cycle by chopping up long strands of protein into smaller pieces, which are used to construct mature viral cores. 
The newly matured HIV particles are ready to infect another cell and begin the replication process all over again. In this way the virus quickly spreads through the human body. And once a person is infected, they can pass HIV on to others in their bodily fluids.

HIV life cycle by chiragan

HIV life cycle by chiragan

HIV life cycle by chiragan
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