polio vaccination by chiragan |
साधारणत:
यह देखा गया है कि बच्चों को पोलियो की बीमारी टॉयफाइड बुखार के बिगड़ जाने
से हो जाती है। लोगों की मान्यता है कि बुखार में हवा लग जाने से यह रोग
हो जाता है परन्तु यह धारणा पूरी तरह से गलत है इसका कारण यह बिल्कुल भी
नहीं है। सच्चाई यह है कि दवाईयां ज्यादा इस्तेमाल करने से बच्चों को ये
रोग होता है। ज्यादा दवाइयों के प्रयोग का सीधा प्रभाव बच्चों की
नस-नाड़ियों पर पड़ता है, जो पोलियों के रूप में प्रकट होता है। बच्चों के
अंग बहुत कोमल होते हैं। ये कोमल अंग दवा का प्रभाव सहन नहीं कर पाते। दवा
रोग को दबाने के लिए दी जाती है। दवा के प्रभाव से जैसे ही एक रोग दबता है,
वैसे ही बच्चों की टांगों को या एक टांग को या शरीर के आधे भाग और हाथ को
बेकार कर देता है तथा बच्चा अपंग हो जाता है। दवा का प्रभाव अगर इन अंगों
पर नहीं पड़ता तो बच्चें की आंखों पर पड़ जाता है, जिससे बच्चे की आंखें
कमजोर हो जाती हैं। छोटी आयु में ही उनकी आंखों पर ऐनक चढ़ जाती है। यदि रोग
के उभरते ही उसका सही उपचार नहीं किया जाए, तो बच्चा जीवन-भर के लिए
अपाहिज बन जाता है। उसके माता-पिता उसका दोबारा दवाईयों से उपचार कराने
लगते हैं। बच्चें को गर्म दवाइयां दी जाती हैं, जिससे कोई विशेष लाभ तो
होता नहीं, बल्कि हानि अवश्य होती है। पोलियों का उपचार दवाईयां नहीं,
बल्कि प्राकृतिक चिकित्सा और फिजिपोथैरपी हैं।
polio infected child |
पोलियो रोग
के कारण रोगी को बुखार, सिरदर्द, गले में दर्द तथा मांसपेशियों में बहुत
तेज दर्द होता है। इस रोग में धीरे-धीरे रोगी की मांसपेशियां सूखने लगती
है। इस रोग के कारण रोगी को चलने-फिरने में दिक्कत आती है। इस रोग के कारण
बच्चे की एक टांग या एक हाथ या फिर दोनों हाथ-पैर पतले हो जाते हैं जिसके
कारण उसे चलने फिरने या कोई कार्य करने में दिक्कत आती है। इस रोग के कारण
शरीर के जोड़ों की हडि्डयों में कमजोरी आ जाती है तथा रोगी को बहुत कष्टों
का सामना करना पड़ता है।
चिकित्सा:-
पोलियो रोग में मालिश का इस्तेमाल करना बहुत लाभदायक होता है। पोलियो से
पीड़ित बच्चे की मालिश धूप में करें। बच्चे का जो अंग पोलियो से ग्रस्त हों,
उसके साथ पीठ की मालिश भी जरूर करनी चाहिए। पीठ के निचले भाग की
गर्म-ठण्डी मालिश करें। `एपसम साल्ट´ मिले गर्म पानी से भरे टब में रोगी को
पहले 3 मिनट के लिए बैठाना चाहिए। टब में पानी इतना हो कि रोगी की कमर तक आ
जाए। टांगें भी पानी में डुबोकर रखें। उसके बाद 2 मिनट के लिए रोगी को
ठण्डे पानी के टब मे बैठाएं। इस प्रकार 4 बार में पूरे 20 मिनट तक रोगी को
गर्म-ठण्डा सेंक देना चाहिए, साथ ही सेंक के दौरान रोगी के सिर को भिगोकर
ठण्डा कर लें तथा उस पर गीला तौलिया रख दें। सेंक की शुरुआत गर्म सेंक से
और समाप्ति ठण्डे पानी से करें।
अब धूप में रोगी की मालिश करें। मालिश यदि मछली के तेल (काण्ड लीवर ऑयल)
से की जाए तो बहुत लाभ होता है। मालिश में मांसपेशियों को मसलना, झकझोरना,
मरोड़ना, ठोक देना, थपथपाना, खड़ी थपकी, कटोरी थपकी और कंपन देना आदि
क्रियाओं का प्रयोग करें। पोलियों से पीड़ित रोगियों की रोजाना मालिश करनी
चाहिए। पोलियो रोग में काफी धैर्य और सहनशीलता रखने की आवश्यकता है क्योंकि
इस विधि के उपयोग के नतीजे काफी समय बाद आते हैं। इस उपचार में 2 महीने से
लेकर 1 साल तक का समय लग सकता है। निश्चित होकर बच्चे का उपचार कराते
रहें। पोलियो को दवाई से दूर नहीं किया जा सकता, इसका उपचार तो मात्र मालिश
और प्राकृतिक चिकित्सा ही है।
मालिश के साथ ही बच्चों के अंगों की भी कसरत करवाते रहना चाहिए। पहले तो
बच्चे को आप खुद ही कसरत करवाते रहें, फिर यदि बच्चे की टांग थोड़ा-सी भी
काम करने लगती है, तो बच्चे को टांग मोड़ने, ऊपर उठाने, हाथों से किसी चीज
को पकड़ने, खींचने, ऊपर-नीचे करने आदि कसरतें करने का निर्देश दें। यदि
बच्चा अपने आप उठ-बैठ नहीं सकता है तो उसे सहारा देकर उठाना-बैठाना भी
चाहिए। इससे विशेष लाभ होता है।
बताई गई कसरतों को करने के बाद बच्चें को आराम से लिटा देना चाहिए। इससे
कसरत से शरीर में आई थकावट धीरे-धीरे समाप्त हो जाती है।
पोलियो की बीमारी में बिजली की मालिश और `हल्का शोंक ट्रीटमेंट´ भी कुछ
लाभ देते हैं। रोगी का उपचार करते समय उसके खान-पान पर भी विशेष ध्यान देना
चाहिए। ध्यान रखें कि उपचार के दौरान बच्चे को कभी भी कब्ज नहीं होनी
चाहिए। यदि उसके पेट में कब्ज हो तो उसे 250 ग्राम पानी का एनिमा देना
चाहिए।
ध्यान रखें कि बच्चों को एनिमा देने से घबराने की जरूरत नहीं होनी चाहिए
क्योंकि यह केवल दिखावा ही होता है। 250 ग्राम पानी का एनिमा कोई हानि नहीं
करता है। बच्चे को गोद में लिटाकर उसकी कमर को ऊंचा करके, गुदा नली की तरफ
रखकर एनिमा दिया जाए। इस प्रकार एनिमा इसलिए दिया जाता है, क्योंकि बच्चा
पानी को अन्दर रोक नहीं सकता। वह उसे तुरन्त बाहर निकाल देगा। कपड़े खराब न
होने पाएं, इसलिए बच्चे को इस प्रकार बिठाया जाए कि अन्दर का मल निकलकर
नाली में या चिलमची में, जो आगे रखी हो, उसी में ही गिरे।
ध्यान रखें कि उपचार के दौरान बच्चे को कभी अनाज नहीं देना चाहिए। गाय का
ताजा दूध या एक गिलास उबला हुआ दूध और फल और फलों के रस पर उसे रखा जाए।
कच्ची सब्जी या उबली सब्जियों का रस भी दिया जा सकता है। फलों में अंगूर,
सेब, नाशपाती, संतरा, सूखे फलों में किशमिश, मुनक्का और अंजीर आदि विशेष
लाभदायक होता हैं। सूखे फल रोगी को देने से पहले उन्हें 12-14 घंटे तक
भिगोकर रखना चाहिए।
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