कोढ़ का रोग बेसिलस लेप्रो नाम के कीटाणु के कारण फैलता है। यह रोग 3 तरह का होता है।
ग्रंधिक कुष्ठ :
इस प्रकार के कोढ़ में शुरूआत में रोगी के शरीर में जगह-जगह पर लाल रंग की
फुंसियां निकल जाती है जिनमें बहुत तेज दर्द होता है। इसके बाद इन फुंसियों
का मुंह खुल जाता है और इनमें गहरा जख्म बन जाता है। इस ग्रंधिक कुष्ठ रोग
में आंख की पलक, नाक, कान आदि की श्लैष्मिक झिल्ली गलकर गिरने लगती है।
वातिक कुष्ठ :
वातिक कुष्ठ रोग की शुरूआत अक्सर स्नायु पर होती है। रोगी का शरीर जगह-जगह
से संवेदनशील हो जाता है और फिर शरीर की त्वचा सुन्न हो जाती है। इस तरह
का कोढ़ होने पर अगर रोगी के शरीर को कहीं पर भी छुओ तो उसको किसी तरह का
एहसास नहीं होता। रोगी को कभी ग्रंधिक तो कभी वातिक कुष्ठ (कोढ़) के लक्षण
दिखाई देने लगते हैं।
मिश्रित कुष्ठ :
मिश्रित कुष्ठ के रोग में ग्रंधिक और वातिक दोनों तरह के रोग के लक्षण पाये जाते हैं।
कारण :
kodh (Kustha) patient by chiragan |
कोढ़ का रोग ज्यादातर उन लोगों को होता है जो हमेंशा प्रकृति के विरूद्ध
भोजन खाते हैं जैसे कि मांस का सेवन करने के बाद दूध पी लेना। इससे खून के
अन्दर जीवाणु पहुंचकर खून को खराब कर देते हैं जिसकी वजह से कोढ़ का रोग
पैदा हो जाता है। इसकी समय पर चिकित्सा नहीं कराने पर कोढ़ के जीवाणु खून
में बड़ी तेज रफ्तार से फैलकर त्वचा को गला देते हैं। शरीर में अलग-अलग
अंगों में इसके जख्म दिखाई पड़ने लगते हैं। कोढ़ के जख्मों में मवाद बहने
लगता है। इस मवाद में भी कुष्ठ (कोढ़) के जीवाणु मौजूद होते हैं। इस मवाद के
संपर्क में आने वाले लोग भी कोढ़ के शिकार हो जाते हैं।
लक्षण :
कुष्ठ (कोढ़) के रोग की शुरुआत में रोगी को खुजली होती है और फिर उसके शरीर
में जख्म बन जाते हैं। जख्मों में सूजन होने पर मवाद निकलने लगती है।
धीरे-धीरे जख्म फैलने लगते हैं और जहां पर जख्म होता है वहां की त्वचा भी
सड़ जाती है। हाथों और पैरों की उंगलियों में कोढ़ होने पर उंगलियां गलने
लगती है। कोढ़ का रोगी धूप में चल फिर भी नहीं सकता क्योंकि धूप में चलने
फिरने में उसे बहुत जलन और दर्द होता है।
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