सवाल उठता है कि राज्य के किसान आखिर क्या करें? सरकार की मदद और अपनी
मेहनत के बल पर किसानों ने धान के रूप में खेतों से सोना पैदा किया। अब उसी
सोने को वे माटी के मोल बेचने को परेशान हैं। सरकार दावा कर रही है कि
किसानों से वाजिब दाम पर धान की खरीद हो रही है। राज्य का खाद्य एवं
उपभोक्ता संरक्षण मंत्रालय दो-चार दिन के अंतराल पर रिकार्ड खरीद का दावा
कर देता है। अभी दो दिन पहले ही विभागीय मंत्री ने दावा किया कि फरवरी के
अंतिम दिन तक करीब 10 लाख मीट्रिक टन धान की खरीद हो चुकी है। कुछ देर के
लिए मंत्री के दावे को सही मान लें तब भी मामला अधिक उत्साहजनक नहीं लगता।
इसलिए कि धान खरीद का कुल लक्ष्य 30 लाख मीट्रिक टन से अधिक है और करीब
डेढ़ महीने से खरीद हो रही है। इसी गति से खरीद जारी भी रही तो लक्ष्य पूरा
करने में कम से कम तीन महीने और लगेंगे। इसी दौर में गेहूं की फसल भी
तैयार होकर आ जाएगी। धान की खरीद में फिसड्डी महकमा गेहूं की खरीद में
कितनी तेजी दिखा पाएगा, इसे आसानी से समझा जाएगा। असल में राजधानी में बैठे
विभाग के जिम्मेवार लोग कागज-पत्तर और लिखा-पढ़ी पर अधिक भरोसा कर रहे
हैं। स्थानीय इकाइयां कागज पर लिखकर फैक्स कर देती हैं कि धान की खरीद हो
गई। हाकिम भी भरोसा कर लेते हैं। मगर जमीन पर हकीकत जानने या किसानों की
शिकायतों पर गंभीर रुख अपनाने की कोशिश नहीं होती है। आप देखें कि किसानों
की शिकायतें किस स्तर की हैं। पहली शिकायत यह कि धान बेचने के लिए उन्हें
मिन्नतें करनी पड़ती हैं। संबंधित लोगों को खुश करना पड़ता है। वे खुश तो
होते हैं, पर बाद में अधिक खुश होना चाहते हैं। उनकी इस खुशी के लिए
किसानों को समर्थन मूल्य से समझौता करना पड़ता है। यह समर्थन मूल्य साढ़े
बारह सौ रुपया प्रति कुंतल निर्धारित है।
किसान बताते हैं उदारवादी साहब कुछ कम कीमत पर धान बेच देने पर खुश हो जाते हैं। जबकि बड़े पेट वाले की खुशी और अधिक कम कीमत पर धान बेचने पर आती है। इतनी मशक्कत के बाद उन्हें चेक दिया जाता है। चेक का भुगतान लेना भी आसान नहीं है। पिछले 28 फरवरी को ही विधानसभा में सत्तारूढ़ दल के एक सदस्य ने कहा कि किसानों को दिए गए चेक बाउंस हो रहे हैं। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार खेती-किसानी पर बहुत जोर दे रहे हैं। कृषि रोड मैप भी बना है। मगर बिचौलिए सरकार के किए पर पानी फेरने का मौका हाथ से नहीं जाने दे रहे हैं। वैसे इन बिचौलियों की भूमिका को खत्म करना मुश्किल नहीं है।
Virendra Kushwaha
किसान बताते हैं उदारवादी साहब कुछ कम कीमत पर धान बेच देने पर खुश हो जाते हैं। जबकि बड़े पेट वाले की खुशी और अधिक कम कीमत पर धान बेचने पर आती है। इतनी मशक्कत के बाद उन्हें चेक दिया जाता है। चेक का भुगतान लेना भी आसान नहीं है। पिछले 28 फरवरी को ही विधानसभा में सत्तारूढ़ दल के एक सदस्य ने कहा कि किसानों को दिए गए चेक बाउंस हो रहे हैं। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार खेती-किसानी पर बहुत जोर दे रहे हैं। कृषि रोड मैप भी बना है। मगर बिचौलिए सरकार के किए पर पानी फेरने का मौका हाथ से नहीं जाने दे रहे हैं। वैसे इन बिचौलियों की भूमिका को खत्म करना मुश्किल नहीं है।
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