संध लोक सेवा आयोग और उसका बढ़ता अंग्रेजी प्रेम
सोते
रहिए... संघ लोक सेवा आयोग ने धीरे से अंग्रेजी को अनिवार्य ही नहीं
बनाया, किसी भारतीय भाषा को पास करने की जरूरत भी खत्म कर दी। अंग्रेजी की
परीक्षा के नंबर अब मेरिट में भी जुड़ेंगे। पहले अंग्रेजी के साथ-साथ किसी
एक भारतीय भाषा में न्यूनतम अंक प्राप्त करना होता था और नंबर मेरिट में
नहीं जुड़ते थे।
ताजा फैसले के बाद आईएएस, आईपीएस की लिस्ट में
कान्वेंटियों की भरमार होगी जबकि भारतीय भाषाओं से पढ़े लिखे टुकुर टुकुर
निहारेंगे।...अजीब बात है, इस मुद्दे पर शिवसेना जैसी पार्टी ही मुखर है,
जबकि हिंदी का झंडा उठाने वाले मुलायम से लेकर नीतीश कुमार तक चुप हैं। ये
फैसला दलितों के लिए भी बड़ी मुश्किल पैदा करेगा, लेकिन मायावती से भी
उम्मीद नहीं। उम्मीद तो वामपंथियों से भी नहीं, जिनके लिए हिंदी कभी मुद्दा
नहीं रही। हिंदी बुद्धिजीवियों, आलोचकों, पत्रकारों, साहित्यकारों में भी
कोई सुगबुगाहट नहीं दिख रही है।... इस आत्महीनता को भांपकर ही शायद मनमोहन
सिंह में हिम्मत आई थी कि वे आक्सफोर्ड जाकर अंग्रेजी सिखाने के लिए
अंग्रेजों को शुक्रिया अदा करें.....कभी-कभी तो लगता है कि हिंदी को भी एक
अदद राज ठाकरे की जरूरत है...मित्रों को छूट है कि इसके लिए मुझे जी भर कर
गाली दें...बुरा नहीं मानूंगा..
No comments:
Post a Comment