जब फागुन रँग झमकते हो तब देख बहारेँ होली की |
गुलजार खिले हो परियोँ के और मजलिस की तैयारी हो |
कपड़ो पर रँग के छीटोँ से खुश रँग अजब गुलकारी हो |
मुँह लाल, गुलाबी आँखे हो और हाथोँ मेँ पिचकारी हो |
उस रँग भरी पिचकारी को अँगिया पर तक कर मारी हो |
सीनो से रँग ढलकतेँ हो तब देख बहारेँ होली की . -"नजीर अकबराबादी"
रोली, अबीर, गुलाल,चन्दन से तो मनाते होली सभी हम तो सबको प्रेम रंग लगाए जोकि ना छुटे कभीआप सभी को होली की हार्दिक शुभकामनाए इस आशा के साथ की ये होली सभी के जीवन में ख़ुशियों के ढेर सरे रंग भर दे ....!!
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