सड़क
चौराहों, गावो कस्बो और देश विदेश से श्रधालुओ का जत्था लगातार कुम्भ पहुच
रहा था, बच्चो युवाओं का उत्साह, दादा दादी की आस्था पूरे वेग से उछाल मार
रही थी। कोई डूबकी लगा रहा था तो कोई भष्म लगाकर झूम रहा था, कोई आचमन कर
रहा था तो कोई आरती उतार रहा था। जल, जनसमूह और जत्थों का अनूठा मिलन दिख
रहा था, फर्क करना मुश्किल था कौन अमीर था कौन गरीब?, कौन देशी था कौन
परदेशी? पर हा कुछ सामान था सबमे तो वो था गंगा के प्रति आस्था और उसमे
अटूट विश्वाश। ये कुछ अंश है चिरागन की कुम्भ पर आने वाली दोकुमेंट्री
फिल्म के जिसको बनाने में मै और मेरे कई सहयोगी बड़ी सिद्दत से लगे है आशा
है ये अंश आपको पसंद आये होंगे। [किंजल]
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