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Thursday, 7 August 2014

कटहल का प्रयोग

कटहल (Jackfruit )-
कटहल का प्रयोग बहुत से कामों में किया जाता है | कच्चे कटहल की सब्जी बहुत स्वादिष्ट बनती है तथा पक जाने पर अंदर का गूदा खाया जाता है | कटहल के बीजों की सब्जी भी बनाई जाती है | आमतौर पर यह सब्जी की तरह ही प्रयोग में आता है परन्तु कटहल में कई औषधीय गुण भी पाये जाते हैं| कटहल में कई महत्वपूर्ण प्रोटीन्स,कार्बोहाइड्रेट्स के अलावा विटामिन्स भी पाये जाते हैं |
कटहल के औषधीय गुण -



१- पके हुए कटहल के सेवन से गैस और बदहज़मी में लाभ होता है |

२- कटहल की पत्तियों को छाया में सुखाकर चूर्ण बना लें | यह चूर्ण एक छोटी चम्मच की मात्रा में प्रतिदिन सेवन करने से पेट के अलसर में आराम मिलता है |

३- कटहल की छाल घिसकर लेप बना लें | यह लेप मुहँ के छालों पर लगाने से छाले दूर होते हैं |

४- कटहल के पत्तों को गर्म करके पीस लें और इसे दाद पर लेप करें | इससे दाद ठीक होता है |

५- कटहल के पत्तों पर घी लगाकर एक्ज़िमा पर बाँधने से आराम मिलता है

६- कटहल के ८-१० बीजों के चूर्ण का क्वाथ बनाकर पीने से नकसीर में लाभ होता है |

Wednesday, 6 August 2014

अमरबेल

अमरबेल -
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यह एक ही वृक्ष पर प्रतिवर्ष पुनः नवीन होती है तथा यह वृक्षों के ऊपर फैलती है , भूमि से इसका कोई सम्बन्ध नहीं रहता अतः आकाशबेल आदि नामों से भी पुकारी जाती है | अमरबेल एक परोपजीवी और पराश्रयी लता है , जो रज्जु [रस्सी ] की भांति बेर , साल , करौंदे आदि वृक्षों पर फ़ैली रहती है | इसमें से महीन सूत्र निकलकर वृक्ष की डालियों का रस चूसते रहते हैं , जिससे यह तो फलती- फूलती जाती है , परन्तु इसका आश्रयदाता धीरे - धीरे सूखकर समाप्त हो जाता है | आज हम अमरबेल के कुछ औषधीय गुणों की चर्चा कर रहे हैं ----

१-अमरबेल को तिल के तेल में या शीशम के तेल में पीसकर सर पर लगाने से गंजेपन में लाभ होता है तथा बालों की जड़ मज़बूत होती हैं | यह प्रयोग धैर्य पूर्वक लगातार पांच से छह सप्ताह करें |
२- लगभग ५० ग्राम अमरबेल को कूटकर १ लीटर पानी में पकाकर , बालों को धोने से बाल सुनहरे व चमकदार बनते हैं तथा बालों का झड़ना व रुसी की समस्या इत्यादि भी दूर होती हैं |
३- अमरबेल के १०-२० मिलीलीटर रस को जल के साथ प्रतिदिन प्रातःकाल पीने से मस्तिष्कगत तंत्रिका [Nervous System ] रोगों का निवारण होता है |
४- अमरबेल के १०मिली स्वरस में ५ ग्राम पिसी हुई काली मिर्च मिलाकर खूब घोटकर नित्य प्रातः काल ही रोगी को पिला दें | तीन दिन में ही ख़ूनी और बादी दोनों प्रकार की बवासीर में विशेष लाभ होता है |
५- अमरबेल को पीसकर थोड़ा गर्म कर लेप करने से गठिया की पीड़ा में लाभ होता है तथा सूजन शीघ्र ही दूर हो जाती है । अमरबेल का काढ़ा बनाकर स्नान करने से भी वेदना में लाभ होता है |
६- अमरबेल के २-४ ग्राम चूर्ण को या ताज़ी बेल को पीस कर थोड़ी सी सोंठ और थोड़ा सा घी मिलाकर लेप करने से पुराना घाव भी भर जाता है |

Wednesday, 5 June 2013

Saturday, 18 May 2013

जल, जंगल और ज़मीन बचाने में जुटे आदिवासी

हमारे देश के कुछ राज्य ऐसे हैं, जिन्हें प्रकृति ने सजाया है, तो कुछ राज्य ऐसे भी हैं, जिन्हें प्रकृति ने अपनी सारी नेमतें प्रदान कर दी हैं. दरअसल, झारखंड भी ऐसा ही एक राज्य है, जहां प्राकृतिक संपदा भरपूर है. यहां से निकलने वाले खनिज पदार्थ विश्‍व में सर्वश्रेष्ठ और उच्च गुणवत्ता वाले होते हैं. यदि इसका नियमानुसार दोहन किया जाए, तो न स़िर्फ देश तरक्क़ी कर सकता है, बल्कि स्थानीय आदिवासी समुदाय का जीवन भी समृद्ध हो सकता है. इसलिए यदि आज़ादी के बाद से अब तक का इतिहास देखें, तो साफ़ ज़ाहिर होता है कि यहां की प्राकृतिक संपदा का केवल अब तक दोहन ही किया गया है. चाहे वह अविभाजित बिहार का अंग रहने के दौरान हो, अथवा 13 वर्ष पूर्व अलग अस्तित्व में आने के बाद की परिस्थितियां. इन वर्षों में राज्य में राजनीतिक उठापटक के अतिरिक्त कुछ भी नहीं बदला है. सरकारी मशीनरी ने यहां की खनिज संपदा का जमकर दोहन किया और अब झारखंड की भूमि पर बहुराष्ट्रीय कंपनियों की गिद्ध दृष्टि है. दरअसल, वे पावर प्लांट और स्टील प्लांट के नाम पर ज़मीन हथियाना चाहती हैं, लेकिन स्थानीय आदिवासी इसका लगातार विरोध कर रहे हैं. राज्य के पूर्वी सिंहभूम के क्षेत्र में स्टील एवं संथाल परगना के दुमका ज़िले के काठीकुंड में पावर प्लांट के नाम पर भूमि अधिग्रहण के ख़िलाफ़ आदिवासी अपनी आवाज़ें बुलंद करते रहे हैं. काठीकुंड में पावर प्लांट के नाम पर आमगाछी पोखरियाद में एक हज़ार एकड़ ज़मीन के लिए एक निजी कंपनी ज़मीन लेने के लिए प्रयासरत है. हालांकि दोनों ही स्थानों पर कंपनी के प्रतिनिधियों का विभिन्न रूपों में प्रतिकात्मक विरोध किया गया था.
दरअसल, विकास के नाम पर विगत कई वर्षों से झारखंड के आदिवासी विस्थापन का दर्द बहुत झेल चुके हैं और इनसे सबक़ लेकर वे अब जान देंगे, ज़मीन नहीं देंगे, के नारे लगाते हुए कुर्बानी देने से भी पीछे नहीं हट रहे हैं. अहिंसक विरोध कर रहे आदिवासियों को गोली का शिकार होना पड़ा है. हज़ारों आदिवासियों पर म़ुकदमे दर्ज किए गए और गिरफ्तार कर उन्हें जेल में डाला गया. काठीकुंड में प्रस्तावित पावर प्लांट का विरोध झारखंड उलगुलान मंच के बैनर तले किया गया. आमगाछी गांव में गोलीकांड के ख़िलाफ़ प्रख्यात सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर ने भी यहां आकर अपना विरोध दर्ज कराया था. उनका कहना था कि वर्तमान सरकारी विकास का मॉडल आदिवासियों के जीवन और सभ्यता के विरुद्ध है, इसलिए इसे क़तई म़ंजूर नहीं किया जा सकता है. आदिवासियों के विनाश की क़ीमत पर विकास का ख़ाका तैयार करना, अन्याय से अधिक और कुछ भी नहीं है. उन्होंने झारखंड में हुए एमओयू को स्थगित करने और आदिवासी-मूलवासी से मेमोरेंडम ऑफ विजन की बात पर भी ज़ोर देकर नई बहस छेड़ दी. आदिवासियों के अहिंसक आंदोलन पर पुलिस की लाठी और गोली दुर्भाग्यपूर्ण घटना है. उन्होंने आंदोलनकारियों को माओवादी बताए जाने पर कड़ी आपत्ति जताई और कहा कि आंदोलन करने वाले आदिवासियों को इस दृष्टिकोण से देखना क़तई उचित नहीं होगा.
ग़ौरतलब है कि काठीकुंड गोलीकांड और आदिवासियों के जंगल और ज़मीन से विस्थापन की गूंज विधानसभा से निकलकर लोकसभा तक पहुंच चुकी है. ग्राम सभा को, जो अधिकार पेसा ऐक्ट एवं समता जजमेंट द्वारा दिए गए हैं, उसका खुल्लम खुल्ला उल्लंघन हो रहा है. प्रशासन द्वारा धारा 144 का जवाब जनता भी अहिंसक तरी़के से दे रही है. पत्थर उद्योग भी अब ग्राम सभा की अनुमति के बिना चालू नहीं हो रहे हैं. सच तो यह है कि पूंजीवाद, उद्योग, विकास, विस्थापन और सरकारी दृष्टिकोण के इस संघर्ष में कई संगठनों के आने से आंदोलन और तेज़ हो गया है. हालांकि विस्थापन के विरोध में छेड़े गए जन आंदोलन को दबाने का प्रयास सरकार की ओर से लगातार किया जा रहा है. प्रयास इस बात का भी किया गया कि मीडिया में इसकी ख़बरें वैसी ही आएं, जैसा कि उद्योगपति चाहते हैं. मीडिया में इस बात को प्रचारित करने का प्रयास किया जा रहा है कि स्थानीय आदिवासी विकास के ख़िलाफ़ हैं, जबकि उन्हें पूरा मुआवज़ा दिया जा रहा है, जो वास्तविकता से पूरी तरह विपरीत है. इस संबंध में राज्य के नौकरशाहों के साथ साथ जनप्रतिनिधियों का भी मूकदर्शक बने रहना, सबसे अधिक चौंकाने वाला रहा है. एक कटु सच यह भी है कि आदिवासियों के मसीहा कहलाने का दावा करने वाले नेता आदिवासियों के सामने अब बेनक़ाब इसलिए हो चुके हैं, क्योंकि विभिन्न प्रकार की चुनौतियों को सामने लाकर विस्थापन के असल मुद्दे को ही एक साज़िश के तहत हाशिये पर ढकेला जा रहा है. कभी वनों का राज्य कहलाने वाले झारखंड में आज लगभग 27.66 प्रतिशत ही जंगल बचे हैं, और इसलिए पूरा राज्य धीरे-धीरे पर्यावरण असंतुलन का शिकार होता जा रहा है. जल, जंगल एवं ज़मीन आदिवासियों की पहचान है, इसलिए इस पर हमला आदिवासी संस्कृति के साथ अन्याय ही होगा. देखा जाए, तो जंगल केवल आदिवासियों की ही नहीं, बल्कि हम शहरों में रहने वालों के लिए भी आवश्यक हैं. ऐसी स्थिति में यदि प्राकृतिक आपदा को रोकना है, तो जंगल को बचाना अति आवश्यक है. उल्लेखनीय है कि विश्‍व मंच पर सतत विकास की परिकल्पना इसी संदर्भ में परिभाषित की गई थी. इसलिए मात्र विकास के नाम पर जंगल को उजाड़ना अथवा किसी को भी विस्थापित करना, अंतराष्ट्रीय नियमों का उल्लंघन होगा. यदि समय रहते इस ओर ध्यान नहीं दिया गया, तो न स़िर्फ आदिवासी संस्कृति को नुक़सान होगा, बल्कि आने वाले वर्षों में किसी प्राकृतिक महाआपदा को झेलने के लिए हमें तैयार रहना होगा. (चरखा)
जनचेतना के लिए चौथी दुनिया से साभार 

Sunday, 10 June 2012

Think a world, Without the TREE... SAVE TREE. by Chiragan

Think a world, Without the TREE... SAVE TREE. by Chiragan
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