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Thursday, 2 December 2021

आबादी का बड़ा वरनेबल और मासूम है ,उसे बचाने की कलेक्टिव जिम्मेदारी सभी बड़ो की है

 

7th क्लास में थे तो एक क्लास मैट्स था .खूब क्रिकेट खेलता , साइकिल तेज चलाते मस्ती करता .3 रोज वो लगातार स्कूल नही आया ,मालूम चला उसकी मम्मी नही रही .कई दिनों बाद वो स्कूल आया .पर जैसे अपने आप को कही छोड़ आया था .बेतरतीब कपड़ो में आता ,लंच में टिफिन शेयर नहीं करता ,क्रिकेट के मैदान से दूर रहता साइकिल भी बहुत धीमे धीमे चलाकर घर अकेला लौटने लगा .कुछ महीनों बाद हम देहरादून शिफ्ट हो गये .शहर और स्कूल कुछ वक़्तों के लिए छूट गया. 
 

 
 
अब पीछे मुड़ कर देखता हूँ तो लगता है वो कितने "दुख" में था .उसे काउंसलिंग की जरूरत थी ,किसी बड़े की ,स्नेह की .सरकारी स्कूलों में काउंसलर के बारे में सोचना भी उस वक़्त अकल्पनीय था .कितने बच्चे, कितने बचपन दुख से अकेले सालो लड़ते है बिना ये जाने के उन्हें कैसे लड़ना है .कल एक 21 साल की लड़की अपने भतीजे को दिखाने आयी कोरोना ने उसके माता पिता ,दादी को उससे छीन लिया .उसके घुंघराले बाल देख अपना वो क्लासमेट्स याद आ गया .दुनिया की कोई ताकत किसी बच्चे को उसकी मां पिता वापस नही दे सकते पर दुख को एब्सॉर्ब करने ,"हरने "में उसकी इनविजिबल मदद कर सकते है .स्नेह ,प्यार ,संवाद और अपेक्षाकृत ज्यादा टॉलरेंट एनवायरमेंट समाज बना कर .
मैं नही जानता किसी स्कूल के कॅरिकुलम में टीचरों को भी मेन्टल हेल्थ के कुछ सेशन की ट्रेनिंग या "Greif Awareness " जैसे विषयों से इंट्रोड्यूस कराया जाता है या नही .या प्राइवेट स्कूलों में अपॉइंटेड कायून्सलर योग्यता के सभी मानक पूरे करते है या नही .पर यकीन मानिए आबादी का ये हिस्सा बड़ा वरनेबल और मासूम है ,उसे बचाने की कलेक्टिव जिम्मेदारी सभी बड़ो की है .
P.S -तस्वीर गूगल से दुख की पांचों स्टेज को दिखाती है .
 
Writer : Anurag Arya

Monday, 29 November 2021

दुनिया के कई हिस्से है और कुछ हिस्सों की दुनिया मे ईश्वर की उपस्थिति लेट हुई है ,और उस दुनिया को अब भी मनुष्य ही चला रहे है

 

जानते है इस देश मे
सबसे बड़ा अपराध क्या है?
" गरीब होना "
किसी ने लिखा था "कानून" और "न्याय "दो अलग चीज़े है !
जब पुलिस और व्यवस्था ही आपको अपराधी साबित करे और आपको अपने आप को निर्दोष साबित करने के लिए ,अपने "सर्वाइवल" के लिए आपको अदालत में खुद ही लड़ाई लड़नी पड़े .
ये लोकतांत्रिक व्यवस्था की "बुनियाद में डिफेक्ट "आने की निशानी हैं जो लोकतंत्र के उस मूल सिद्दांत से उसे हटाती है जिसमे सबसे अंतिम पायदान पर खड़ा हुआ व्यक्ति भी बराबर है .
ये जरूरी नही के आप इसे जीत जायेगे ,और इसे जीतने में आपको कितने वर्ष लगे ,आपके जीवन के कितने साल इस लड़ाई को लड़ने में जाया होंगे .आर्थिक और सामाजिक मुश्किलों की तो अलग फेरहिस्त है .लोकतंत्र में ताकते अपने हितों और सत्ता के लिए ऐसे ही अपनी ताकत का दुरुपयोग करती है .और प्रतिरोध की अनुपस्थिति उन्हें किसी भी जवाबदेही से मुक्त तो बनाती ही है क्रूर भी. सामाजिक व्यवस्था की कुरीतियों से लड़ते लड़ते हमारे समाज ने दूसरी नई कुरीतियों को ज़िंदा रखने की तरकीबें सीख ली है.
हमारे यहां अदालतों को केंद्र में रखकर , अंतिम पंक्ति के व्यक्ति के लिए न्याय के लिये लड़ाई पर कमोबेश कम फिल्मे बनी है .
गोविंद निहलानी की नसीर ओम पुरी और अमरीश पुरी को लेकर बनाई गई फ़िल्म "आक्रोश",
"जोली एल एल बी" का प्रथम भाग और यथार्थ के बेहद नजदीक अदालतों और सिस्टम के क्रूर उदासीन चेहरे को रिफ्लेक्ट करती मराठी फिल्म "कोर्ट "मुझे याद आती है इसके अलावा
"जोली एल एल बी 2" और" मुल्क" दो ऐसी फिल्में है जो मुख्य धारा के सिनेमा को रिप्रजेंट करती है
"जय भीम "अपने प्रजेंटेशन में मराठी फिल्म "कोर्ट" जितनी यथार्थवादी और दृश्यों को लेकर उतनी सचेत फ़िल्म नही है पर फिर भी मुख्य धारा के सिनेमा के ऑडिएंस की लिमिटेशन को ध्यान में रखकर बनाई गई फ़िल्म है जिसकीं कुछ कमियों को नजरअंदाज किया जा सकता है .
 
 

 
फ़िल्म इसलिए देखी जानी चाहिए
क्योंकि ये कानून की व्यवस्था के मार्गो की पड़ताल करती है जिसमे पुलिस वकील और अदालत है .
जातियों को लेकर पूर्वाग्रह से भरा समाज है .ये वापस रिकॉल कराती अब भी हम एक ऐसी व्यवस्था में रह रहे है जो दो खांचों में विभाजित है .एक "इनविजिबल लाइन!" ने दो खाने बना रखे है एक तरफ अमीर है और दूसरी तरफ गरीब .
गरीबी के हर्डल बहुत है उसे हर आवश्यक चीज़ के लिए एक हर्डल पार करना होता है.गुजरते वक़्त के साथ व्यवस्थाये दुरस्त होने के बजाय और असक्षम होती जा रही हैं,ट्रांसपेरेंट और अंतिम व्यक्ति की रीच में होने के बजाय दूर ओर अधिक ऊंची होती जा रही है.
व्यवस्थाओं पर व्यक्तियों का कब्जा हो रहा है , उन्हें प्लांड वे में और कमजोर किया जा रहा है ताकि उनका लोकतांत्रिक चरित्र और कमजोर किया जा सके .
शहरी समाज का एक हिस्सा जो कंफर्टेबल ज़ोन में रहता आया है वो इस निर्मित व्यवस्था की क्रूरता से अनजान है .
फ़िल्म के कई हिस्से आपको क्रूर लगेंगे पर यही सच है विशेष कर थाने के दृश्य ,घरों से खींच कर सस्पेक्टेड के साथ किया जाने वाला बर्ताव ,पुलिस वालों की बॉडी लैंग्वेज . उनमे गिल्ट का अभाव.
जातियां केवल गांव में ही नही शहरों में भी बेताल की तरह लोगो की पीठ से लदी है .पढ़े लिखे लोगो की पीठ जो बेताल को ही नही छोड़ना चाहती .
फ़िल्म देखिये क्योंकि ये बतायेगी के इसी दुनिया के कई हिस्से है और कुछ हिस्सों की दुनिया मे ईश्वर की उपस्थिति लेट हुई है ,और उस दुनिया को अब भी मनुष्य ही चला रहे है.
 
Writer : Anurag Arya

Sunday, 28 November 2021

खुदा जैसी कोई शै है भी तो बड़ी तकलीफ में है

 

एक रोज पीडिएट्रिक वार्ड में एक 2 दिन का बच्चा आया ,ना मालूम किसका ! कोई उसे छोड़ गया था .
"मै उस मां के बारे में सोच रहा हूँ जो उसे छोड़ गयी ,वो सारी उम्र इसे नहीं भूलेगी !" उसने कहा
"तुम खुदा में यकीन करते हो " मैंने उससे पूछा था जैसे अपने यकीन को टटोल रहा था .
"खुदा जैसी कोई शै है भी तो बड़ी तकलीफ में है "
उस रात हम उसी पुल पर बैठे. तकलीफों में आपको कुछ जगहों की आदत हो जाती है. हमने सिगरेट का सारा पैकेट ख़त्म कर दिया था. अपने- अपने कमरों में हम दोनों उस रात सोये नहीं थे .
 

 
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वो कहती है" तुमने अगर ज़िन्दगी में कुछ फैसले अलग लिए होते तो शायद किसी और तरह के होते "
"यकीन से नही कह सकता"
"तुम डेस्टीनेशन में यकीन करते हो"
"हम अपने फैसलों का ही हासिल होते है ,आदमी के मिजाज की कई वजहें होती है .
मैं उसकी नाइत्तेफाकी महसूस कर लेता हूँ . पर इस उम्र तक आते आते मैंने अपने मिज़ाज़ में बहुत सी चीज़ों को देखा था कमाल की बात थी जिन्हें मैंने नही चुना था पर वे मेरे मिजाज का हिस्सा था . शहर भी आदमी के मिजाज की तबियत तय करने में शामिल होते है
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कोई कहता है "तुम अपना वक़्त कागजो में जाया करते हो "
मै कहता हूँ "दरसल मै शनाख्त कर रहा हूँ खुद की , और आसान नहीं होती शनाख्त। हर आदमी एक उम्र में अपने अपने तरीके से अपनी शनाख्त करता है कोई दौड़ कर ,कोई गिटार बजा कर ,कोई कैमरों के संग. मै कागजो में अपने हमशक़्ल को ढूंढ रहा हूँ !

Saturday, 19 July 2014

ख़ुशी ना दे पाएं हर एक को गर मुमकिन ना हो तो पीड़ा भी न पहुँचायें..!!

सब शब्दों का ही तो खेल है ..!
मीठे हुए तो दिल में उतर शीतलता दे जाते है ..!!
कभी तीखे हुए तो दिल में कटार बन जख्म दे जाते है ..!
मन में कितना भी अंतर्द्वंद चल रहा है,ये कौन जान पाता है ..!!
क्या कहा किन शब्दों से हमने खुद को अभिव्यक्त किया बस ..!
वही सामने वाले ने समझा और हमारे लिए अपनी धारणा बना ली ..!!
आपके कहे शब्द किसी का दिल न दुःखायें जाने -अनजाने कुछ ऐसा ना कह जाये ..!
सामने वाला दुखी हो जाये या अपमानित समझे खुद को सके सामने ..!!
कोशिश कीजिये जो भी कहें सोच समझ का तोल-मोल कर बोलें शब्दों की महिमा को समझें.!
ख़ुशी ना दे पाएं हर एक को गर मुमकिन ना हो तो पीड़ा भी न पहुँचायें..!!

Thursday, 3 July 2014

अब पैरा मेडिकल में बना सकते है ब्राइट फ्यूचर

भारत में पैरा मेडिकल का क्षेत्र तेजी से ग्रोथ कर रहा है। एक अनुमान के मुताबिक, 2020 तक इस क्षेत्र में 90 लाख प्रोफेशनल्स की जरूरत होगी। आप बायोलॉजी के स्टूडेंट्स हैं और इस ग्रोइंग फील्ड में करियर बनाना चाहते हैं, तो आपका फ्यूचर ब्राइट हो सकता है?
आज भारत हेल्थकेयर सेक्टर में हॉट डेस्टिनेशन के रूप में उभरा है। दुनियाभर से लोग यहां मेडिकल चेकअप और इलाज के लिए पहुंच रहे हैं। इस कारण जिस रफ्तार से हॉस्पिटल्स और लैब्स की संख्या बढ़ रही है, उसी अनुपात में पैरा मेडिकल प्रोफेशनल्स की डिमांड भी बढ़ रही है। एक अनुमान के मुताबिक, भारत में वर्ष 2015 तक 60 लाख से अधिक और वर्ष 2020 तक 90 लाख पैरा मेडिकल प्रोफेशनल्स की जरूरत पड़ेगी। योजना आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत को लगभग 10 लाख नर्सो और बड़ी संख्या में पैरा मेडिकल प्रोफेशनल्स की कमी झेलनी पड़ रही है। हालांकि पैरा मेडिकल के तहत बहुत सारे प्रोफेशन आते हैं, लेकिन इसमें मेडिकल लेबोरेट्री टेक्नोलॉजी को काफी हॉट प्रोफेशन माना जा रहा है। आज मेडिकल लेबोरेट्री टेक्नोलॉजिस्ट की डिमांड निजी क्षेत्र के हॉस्पिटल्स के साथ-साथ सरकारी क्षेत्र के हॉस्पिटल्स में भी खूब हैं।
कैसे होगी एंट्री?
आज लैब टेक्नोलॉजिस्ट के रूप में करियर बनाने के लिए कई रास्ते खुल गए हैं। आप चाहें, तो इससे संबंधित कोर्स, जैसे- सर्टिफिकेट इन मेडिकल लैब टेक्नोलॉजी (सीएमएलटी), बीएससी मेडिकल लेबोरेट्री टेक्नोलॉजी (बीएससी एमएलटी), डिप्लोमा इन मेडिकल लेबोरेट्री टेक्नोलॉजी (डीएमएलटी) जैसे कोर्स कर सकते हैं। इस बारे में दिल्ली पैरा मेडिकल ऐंड मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट की प्रिंसिपल अरुणा सिंह का कहना है कि मेडिकल लेबोरेट्री टेक्नोलॉजी कोर्स के तहत स्टूडेंट्स को ब्लड, यूरिन आदि के अलावा शरीर के तमाम फ्लूइड्स की जांच में ट्रेंड किया जाता है। आमतौर पर इस तरह के कोर्स 12वीं के बाद किए जा सकते हैं। डिप्लोमा कोर्स में प्रवेश के लिए 12वीं में बॉयोलॉजी सब्जेक्ट का होना जरूरी है। डिप्लोमा कोर्स की अवधि दो वर्ष की होती है। वैसे, इस फील्ड में जॉब तो बीएससी या डिप्लोमा करने के बाद भी मिल जाती है, लेकिन पोस्ट ग्रेजुएट कोर्स के बाद आपकी डिमांड विशेषज्ञ के रूप होने लगती है।
वर्क प्रोफाइल
इस फील्ड में दो तरह के प्रोफेशनल्स काम करते हैं-एक मेडिकल लेबोरेट्री टेक्निशियन और दूसरे मेडिकल लेबोरेट्री टेक्नोलॉजिस्ट। दोनों का वर्क प्रोफाइल अलग-अलग होता है। मुख्य रूप से मेडिकल टेक्निशियन का कार्य सैंपल को टेस्ट करना होता है। यह काफी जिम्मेदारी भरा कार्य होता है। जांच के दौरान थोड़ी-सी गलती किसी के लिए जानलेवा साबित हो सकती है, क्योंकि डॉक्टर लैब रिपोर्ट के आधार पर ही इलाज और दवा लिखते हैं। टेक्निशियन के काम को तीन हिस्सों में विभाजित किया जा सकता है- नमूना तैयार करना, जांच की मशीनों को ऑपरेट करना एवं उनका रखरखाव और जांच की रिपोर्ट तैयार करना। टेक्निशियन नमूना तैयार करने के बाद मशीनों के सहारे इसे टेस्ट करते हैं और एनालिसिस के आधार पर रिपोर्ट तैयार करते हैं। स्पेशलाइज्ड उपकरणों और तकनीक का इस्तेमाल कर टेक्निशियन सारे टेस्ट करते हैं। वहींमेडिकल लेबोरेट्री टेक्नोलॉजिस्ट रोगी के खून की जांच, टीशू, माइक्रोआर्गनिज्म स्क्रीनिंग, केमिकल एनालिसिस और सेल काउंट से जुड़े परीक्षण करते हैं। टेक्नोलॉजिस्ट का काम भी जिम्मेदारी भरा होता है। ये ब्लड बैंकिंग, क्लिनिकल केमिस्ट्री, इम्यूनोलॉजी और माइक्रोबायोलॉजी के क्षेत्र में काम करते हैं। इसके अलावा, टेक्नोलॉजिस्ट साइटोटेक्नोलॉजी, फेलबोटॉमी, यूरिन एनालिसिस, कॉग्यूलेशन, पैरासीटोलॉजी और सेरोलॉजी से संबंधित परीक्षण भी करते हैं। वर्क एक्सपीरियंस के साथ टेक्नोलॉजिस्ट लैब या हॉस्पिटल में सुपरवाइजर या मैनेजमेंट की पोस्ट तक पहुंच सकते हैं। ट्रेंड टेक्नोलॉजिस्ट लेबोरेट्री मैनेजर, कंसल्टेंट, सुपरवाइजर, हेल्थकेयर ऐडमिनिस्ट्रेशन, हॉस्पिटल आउटरीच कॉर्डिनेशन, लेबोरेट्री इंफॉर्मेशन सिस्टम एनालिस्ट, कंसल्टेंट, एजुकेशनल कंसल्टेंट, कोऑर्डिनेटर, हेल्थ ऐंड सेफ्टी ऑफिसर के तौर पर भी काम कर सकते हैं।
ग्रोइंग फील्ड
भारत मेडिकल टूरिज्म का ग्लोबल हब बन चुका है। यहां पड़ोसी देशों के अलावा, अमेरिका और यूरोपीय देशों के लोग भी सस्ते इलाज के लिए आते हैं। उदारीकरण ने हेल्थकेयर इंडस्ट्री और खासकर मेडिकल टूरिज्म की तरक्की और फलने-फूलने की राह को व्यापक बना दिया है। यह फील्ड 15 फीसदी की दर से आगे बढ़ रही है। वर्ष 2012 में यह इंडस्ट्री 78.6 बिलियन डॉलर की थी, जिसे वर्ष 2017 तक 158.2
बिलियन डॉलर तक पहुंच जाने की उम्मीद है। इस फील्ड में गवर्नमेंट सेक्टर में जॉब वैकेंसीज का इंतजार करना पड़ सकता है, लेकिन प्राइवेट सेक्टर में ऐसी बात नहीं है। अगर आप चाहें, तो शुरुआत में प्राइवेट लैब के साथ जुड़ कर काम शुरू कर सकते हैं। अगर बीएससी मेडिकल लैब टेक्नोलॉजिस्ट हैं, तो अपना लैब भी खोल सकते हैं। क्वालिफिकेशन और एक्सपीरियंस के बाद टेक्निशियन भी टेक्नोलॉजिस्ट के तौर पर भी काम करना शुरू कर सकते हैं।
पैरा मेडिकल का दायरा
पैरा मेडिकल फील्ड में नसिर्ग के अलावा, मेडिकल लैब टेक्नोलॉजी, ऑपरेशन थियेटर टेक्नोलॉजी, फिजियोथेरेपी और ऑक्यूपेशनल थेरेपी, कार्डियक टेक्नोलॉजी, डायलिसिस/ रेनल डायलिसिस टेक्नोलॉजी, ऑर्थोटिक और प्रोस्थेटिक टेक्नोलॉजी, ऑप्टोमेट्री, फार्मेसी, रेडियोग्राफी/रेडियोथेरेपी, हॉस्पिटल एडमिनिस्ट्रेशन / मैनेजमेंट, मेडिकल रिकॉर्ड संचालन, ऑडियोलॉजी ऐंड स्पीच थेरेपी, डेंटल हाइजिन ऐंड डेंटल मैकेनिक, डेंटल सेरामिक टेक्नोलॉजी आदि आते हैं।
सैलरी पैकेज
इस फील्ड में काम करने वाले प्रोफेशनल्स की शुरुआती सैलरी 12-20 हजार रुपये प्रतिमाह होती है। अनुभव के बाद सैलरी बढ़ने के साथ-साथ आप अपना लैब भी खोल सकते हैं।

क्या पॉलिटेक्निक है राइट ऑप्शन?

10वीं-12वींके बाद टेक्निकल कोर्स में एडमिशन लेने के इच्छुक स्टूडेंट्स के लिए पॉलिटेक्निक राइट ऑप्शन हो सकता है। वैसे, आज के जॉब मार्केट में पॉलिटेक्निक से जुड़े स्टूडेंट्स की जबरदस्त डिमांड है। आइए जानते हैं, पॉलिटेक्निक में कैसे एडमिशन लिया जा सकता है और क्या हैं इसके फायदे?
स्कूल की दुनिया से बाहर निकलते ही हर साल हजारों स्टूडेंट्स इंजीनियर बनने का सपना देखने लगते हैं, लेकिन कई स्टूडेंट्स महंगी फीस और अच्छे मा‌र्क्स नहीं आने की वजह से बड़े संस्थानों में इंजीनियरिंग की पढ़ाई का सपना पूरा नहींकर पाते। ऐसे में 12वीं के बाद बीटेक की चार साल की डिग्री की बजाय 10वीं या 12वीं के बाद तीन साल का डिप्लोमा करके भी जॉब मार्केट में कदम रखने का ऑप्शन मौजूद है। ऐसे स्टूडेंट्स के लिए पॉलिटेक्निक सुनहरा अवसर लेकर आता है। यह उन्हें तकनीकी और व्यावसायिक कोर्स का अवसर प्रदान करता है। दरअसल, ये कोर्स ऐसे होते हैं, जिसे पूरा करने के बाद खुद का व्यवसाय शुरू करने के लिए या फिर अच्छी जगह नौकरी करने की स्किल से लैस करता है।
क्या है पॉलिटेक्निक?
आमतौर पर पॉलिटेक्निक ऑ‌र्ट्स और साइंस से संबंधित डिप्लोमा और सर्टिफिकेट कोर्स ऑफर करते हैं। इसे टेक्निकल डिग्री कोर्स के नाम से भी जाना जाता है। पॉलिटेक्निक से संबंधित टेक्निकल कोर्स भी ऑल इंडिया काउंसिल ऑफ टेक्निकल एजुकेशन (एआईसीटीई) द्वारा संचालित होते हैं। इसका मुख्य उद्देश्य स्टूडेंट्स के प्रैक्टिकल और टेक्निकल स्किल को इंप्रूव करना है। वैसे, पॉलिटेक्निक संस्थान कई तरह के होते हैं। राज्य स्तर पर सरकारी, निजी और महिला पॉलिटेक्निक संस्थान सक्रिय हैं। यहां से आप डिप्लोमा और सर्टिफिकेट कोर्स कर सकते हैं। इसके तहत आमतौर पर फैशन डिजाइन, टेक्सटाइल डिजाइन, इंजीनियरिंग, मास कम्युनिकेशन, इंटीरियर डिजाइन, होटल मैनेजमेंट आदि से जुड़े कोर्स करवाए जाते हैं। कोर्स की अवधि एक से चार साल तक की होती है। इनमें दाखिला पाकर कम समय में ही अपने करियर में पंख लगा सकते हैं। इतना ही नहीं, कोर्स समाप्त होने के बाद जूनियर इंजीनियर बनने का रास्ता भी खुल जाता है। महिला पॉलिटेक्निक संस्थानों में महिलाओं पर केंद्रित स्किल वाले कोर्स होते हैं।
क्वालिफिकेशन
इस कोर्स में दाखिले के लिए 10वीं में कम से कम 50 फीसदी अंकों के साथ पास होना जरूरी है। ऐसे
स्टूडेंट्स आगे चलकर बीटेक के लिए होने वाली परीक्षा में भी शामिल हो सकते हैं। उन्हें तीन साल के कोर्स के बाद डिग्री भी मिल जाती है। 10वीं पास स्टूडेंट्स को राज्य स्तर पर कई संस्थान मेरिट के आधार पर तो कई राज्य स्तरीय संस्थान कॉमन एंट्रेंस एग्जाम के जरिए दाखिला देते हैं। इंजीनियरिंग में डिप्लोमा करने वाले स्टूडेंट्स चाहें, तो आगे पढ़ाई करके बीटेक की डिग्री भी हासिल कर सकते हैं। इंजीनियरिंग कॉलेजों में ऐसे स्टूडेंट्स को लैटरल एंट्री के तहत दाखिला दिया जाता है।
खूब है डिमांड
श्रीवेंकटेश्वरा यूनिवर्सिटी के चांसलर सुधीर गिरि के मुताबिक, सरकारी हो या फिर प्राइवेट सेक्टर्स, हर जगह जूनियर इंजीनियर्स की जबरदस्त डिमांड है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, आने वाले समय में लाखों डिप्लोमा होल्डर्स जूनियर इंजीनियर्स की जरूरत होगी। पॉलिटेक्निक कई लिहाज से फायदेमंद है। सबसे अहम बात यह है कि पॉलिटेक्निक में दाखिला लेने के लिए किसी बड़े एजुकेशनल क्वालिफिकेशन की जरूरत नहीं है। देखा जाए तो, आज पॉलिटेक्निक से डिप्लोमा करने के बाद कंपनियों और संस्थानों में कई तरह के अवसर उपलब्ध हैं। बड़ी बात यह है कि उन्हें कंपनियों में आम प्रोफेशनल्स की तुलना में अच्छी सैलरी और सुविधाएं ऑफर की जाती हैं।
सैलरी पैकेज
पॉलिटेक्निक डिप्लोमाधारी स्टूडेंट्स के लिए नौकरी हासिल करना आसान हो जाता है। पॉलिटेक्निक किए हुए प्रोफेशनल्स की शुरुआती सैलरी 15 से 20 हजार रुपये के बीच होती है। अगर आपने कोर्स के दौरान बेहतरीन परफॉर्म किया है, तो कैंपस इंटरव्यू में ही आपको नौकरी के कई अच्छे ऑफर मिल सकते हैं।
पॉलिटेक्निक के खास कोर्स
मैकेनिकल इंजीनियरिंग, सिविल इंजीनियरिंग, ऑटोमोबाइल इंजीनियरिंग, पैकेजिंग टेक्नोलॉजी, इलेक्ट्रिकल ऐंड इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग, इलेक्ट्रॉनिक्स ऐंड कम्युनिकेशन इंजीनियरिंग, अप्लाइड इलेक्ट्रॉनिक्स ऐंड इंस्ट्रूमेंटेशन, कम्प्यूटर इंजीनियरिंग, इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी,माइनिंग इंजीनियरिंग, मेटलॉर्जिकल इंजीनियरिंग, टेक्सटाइल टेक्नोलॉजी, केमिकल इंजीनियरिंग, केमिकल इंजीनियरिंग इन प्लास्टिक ऐंड पॉलिमर्स, पेट्रोकेमिकल्स इंजीनियरिंग, लेटर टेक्नोलॉजी, प्रिटिंग टेक्नोलॉजी, फुटवियर टेक्नोलॉजी, आर्किटेक्चर कोर्सेज, एयरक्राफ्ट मेंटिनेंस इंजीनियरिंग, मास कम्युनिकेशन, इंटीरियर डिजाइनिंग, होटल मैनेजमेंट, कॉमर्शियल ऐंड फाइन आर्ट, मास कम्युनिकेशन, इंटीरियर डिजाइन, ऑफिस मैनेजमेंट ऐंड कम्प्यूटर ऐप्लिकेशन, कम्प्यूटर साइंस आदि।

ऐसे बनाएं फायर इंजीनियरिंग में अपना करियर

अगर आपको 'आग' से खेलना पसंद है, तो फायर इंजीनियरिंग को करियर के रूप में अपना सकते हैं। इस फील्ड में जॉब ऑप्शंस भी शानदार हैं। इंटरनेशनल फायरफाइटर्स डे के मौके पर जानते हैं कैसे इस फील्ड में एंट्री की जा सकती है..
आमतौर पर गर्मी के महीनों में आग लगने की घटनाएं बढ़ जाती हैं। वैसे, ऊंची-ऊंची इमारतें, बड़े-बड़े मॉल्स आदि भी आग से पूरी तरह सुरक्षित नहींहैं। यदि आग अनियंत्रित हो जाए, तो काफी नुकसान भी उठाना पड़ता है। ऐसी स्थिति से निपटने के लिए फायरफाइटर्स की जरूरत होती है। इस तरह के प्रोफेशनल्स फायर इंजीनियरिंग से जुड़े लोग होते हैं, जो जानते हैं कि आग को कैसे नियंत्रित किया जा सकता है।
क्वालिफिकेशन
फायर इंजीनियरिंग से जुड़े अधिकांश कोर्स ग्रेजुएट स्तर पर उपलब्ध हैं, जिसके लिए साइंस सब्जेक्ट से बारहवीं पास होना जरूरी है। फायर इंजीनियरिंग से रिलेटेड सर्टिफिकेट और डिप्लोमा कोर्स भी कर सकते हैं। कोर्स के दौरान आग बुझाने के विभिन्न पहलुओं के बारे में जानकारी दी जाती हैं। साथ में, बिल्डिंग निर्माण के बारे में भी बताया जाता है, ताकि आग लगने की स्थिति में उसे बुझाने में ज्यादा परेशानी न हो। इसमें फिजिकल फिटनेस के मा‌र्क्स भी जोड़े जाते हैं। पुरुष के लिए 50 किलो के वजन के साथ 165 सेमी. लंबाई और आईसाइट 6/6, सीना सामान्य रूप से 81 सेमी. और फुलाने के बाद 5 सेमी. फैलाव होना जरूरी है। महिला का वजन 46 किलो और लंबाई 157 सेमी और आईसाइट 6/6 होनी चाहिए।
कोर्सेज
-बीई फायर इंजीनियरिंग।
-बीटेक फायर ऐंड सेफ्टी इंजीनियरिंग।
-सर्टिफिकेट कोर्स इन फायर ऐंड सेफ्टी इंजीनियरिंग (सीएफएसई)।
-डिप्लोमा इन फायर ऐंड इंडस्ट्रियल सेफ्टी इंजीनियरिंग।
-डिप्लोमा इन फायर ऐंड सेफ्टी इंजीनियरिंग मैनेजमेंट (डीएफएसइएम)।
-डिप्लोमा इन फायर ऐंड सेफ्टी इंजीनियरिंग 8डिप्लोमा इन फायर इंजीनियरिंग।
-डिप्लोमा इन इंडस्ट्रियल सेफ्टी इंजीनियरिंग।
-पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा इन फायर ऐंड सेफ्टी इंजीनियरिंग।
फायर इंजीनियर्स का वर्क।
फायर इंजीनियर्स का कार्य काफी चुनौतीपूर्ण होता है। इसके लिए साहस के साथ-साथ समाज के प्रति प्रतिबद्धता जरूरी है। फायर इंजीनियर का कार्य इंजीनियरिंग डिजाइन, ऑपरेशन और मैनेजमेंट से संबंधित होता है। फायर इंजीनियर की प्रमुख जिम्मेदारी दुर्घटना के समय आग के प्रभाव को खत्म करना या फिर सीमित करना होता है। इसके लिए वे अग्निसुरक्षा के विभिन्न तरीकों का इस्तेमाल करते हैं। अग्निशमन के आधुनिक उपकरणों के इस्तेमाल और उसके रखरखाव की तकनीक में सुधार करना भी इनकी ही जिम्मेदारी होती है।
जॉब प्रोफाइल
इस फील्ड में आप असिस्टेंट, सेफ्टी इंस्पेक्टर, सेफ्टी इंजीनियर, सेफ्टी ऑफिसर, सेफ्टी सुपरवाइजर, फायर प्रोटेक्शन टेक्नीशियन, सेफ्टी ऑडिटर, फायर सुपरवाइजर, हेल्थ असिस्टेंट, एनवायरनमेंट ऑफिसर, फायर ऑफिसर आदि के रूप में काम कर सकते हैं।
जॉब ऑप्शन
फायर इंजीनियरिंग से जुड़े लोगों के लिए गवर्नमेंट और पब्लिक सेक्टर में काफी संभावनाएं हैं। इस फील्ड सेजुड़े प्रोफेशनल्स रेलवे, एयरफोर्ट ऑथॉरिटी ऑफ इंडिया, डिफेंस, इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड, ओएनजीसी, माइंस, रिफाइनरिज, पेट्रोकेमिकल्स कॉम्प्लेक्स आदि में जॉब की तलाश कर सकते हैं। सैलरी पैकेज
जूनियर या असिस्टेंट फायर इंजीनियर की शुरुआती सैलरी 10-25 हजार रुपये प्रतिमाह हो सकती है।
प्राइवेट सेक्टर में कुछ वर्ष का वर्क एक्सपीरियंस रखने वाले प्रोफेशनल्स को वरीयता मिलती है और सैलरी काबिलियत के अनुसार मिलती है।

बढ़ती डिमांड में एनर्जी इंजीनियरिंग

भारत में एनर्जी की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए गवर्नमेंट के साथ-साथ प्राइवेट सेक्टर की कंपनियां भी कई प्रोजेक्ट्स पर काम कर रही हैं। ऐसे में एनर्जी इंजीनियरिंग से जुड़े प्रोफेशनल्स की डिमांड बढ़ने लगी है। क्या है इस फील्ड में संभावनाएं?
बायोफ्यूल की लगातार घटती क्वांटिटी और देश में एनर्जी की बढ़ती डिमांड को देखते हुए एनर्जी प्रोडक्शन पर बल देना सरकार की प्राथमिकता बन गई है। इस सोच के तहत साल 2050 तक न्यूक्लियर रिएक्टर्स से कुल एनर्जी प्रोडक्शन का करीब 25 फीसदी हिस्सा पैदा करने लॉन्ग टर्म प्लान तैयार किया गया है। इसी क्रम में 2020 तक बीस हजार मेगावाट इलेक्ट्रिसिटी का एक्स्ट्रा प्रोडक्शन न्यूक्लियर एनर्जी रिसोर्सेज से किया जाएगा। एनर्जी मिनिस्ट्री के मुताबिक, आगामी पांच साल में इस फील्ड में करीब पांच लाख करोड़ रुपये का निवेश करना होगा, तभी बढ़ती एनर्जी जरूरतों को पूरा किया जा सकेगा। न सिर्फ देश की बड़ी-बड़ी कंपनियां बल्कि दुनिया भर की तमाम बड़ी न्यूक्लियर रिएक्टर सप्लायर कंपनियां, जैसे- जीई हिटैची, वेस्टिंग हाउस भी इस ओर नजरें गड़ाए बैठी हैं। ऐसे में एनर्जी इंजीनियर की मांग का बढ़ना स्वाभाविक है।
एलिजिबिलिटी
एनर्जी इंजीनियरिंग में बीई या बीटेक करने के लिए फिजिक्स, केमिस्ट्री और मैथमैटिक्स के साथ 12वीं पास होना जरूरी है। इसमें बीटेक करने के बाद एमटेक भी किया जा सकता है। ज्यादातर इंस्टीट्यूट्स में एडमिशन एंट्रेस एग्जाम से होता है। वैसे, यह ग्रेजुएट लेवल के मुकाबले पोस्ट ग्रेजुएट लेवल पर ज्यादा सक्सेज माना जाता है। मास्टर्स कोर्स में एनर्जी के रिन्यूएबल सोर्स और नॉन ट्रेडिशनल सोर्सेज में सुधार पर अधिक बल दिया जाता है।
स्किल्स
सफल एनर्जी इंजीनियर बनने के लिए लॉजिकल और एनालिटिकल होना बहुत जरूरी है। इस फील्ड में बहुत अधिक लोगों से संपर्क करने की आवश्यकता नहीं पड़ती, इसलिए एक इंट्रोवर्ट स्टूडेंट भी आसानी से एनर्जी इंजीनियर बन सकता है। अक्सर कई-कई दिनों तक घर से बाहर जाने की जरूरत पड़ती है, इसलिए घर से दूर रहने की भी आदत होनच् चाहिए। इसके अलावा आपमें पेशेंस भी होना चाहिए।
अपच्ॅ‌र्च्युनिटी
क्लाइमेट चेंज और ग्लोबल वार्मिंग के बारे में बढ़ती जागरूकता के चलते एनर्जी इंजीनियरिंग की बहुत डिमांड है। सरकारी संस्थानों, खासकर राज्यों की रिन्यूएबल एनर्जी डेवलपमेंट एजेंसीज में स्किल्ड लोगों की जबरदस्त डिमांड है। सरकार ने इंडस्ट्रीज के लिए एनर्जी ऑडिटिंग, एनर्जी कंजर्वेशन और एनर्जी मैनेजमेंट में स्पेशलाइजेशन करने वालों के अप्वाइंटमेंट को भी अनिवार्य कर दिया है। इस फील्ड में सैलरी ऑर्गेनाइजेशन पर निर्भर करती है। शुरुआती दौर में आपकी सैलरी 20-30 हजार रुपये प्रतिमाह हो सकती है।

Saturday, 18 May 2013

ग्रामसभा के अधिकार

1.            ग्राम संबंधी भूमि व्यवस्था एवं भू-राजस्व संबंधी जो भी अभिलेख, अधिकार आदि आज तहसील (तालुका) या अंचल को हैं, वे सब ग्रामसभा में निहित होंगे, जैसे-ज़मीन की बिक्री, आवंटन आदि के अधिकार.
2.            बड़ी सिंचाई योजनाओं में गांव के खेतों में पानी के बंटवारे का अधिकार या सिंचाई के स्थानीय स्रोतों पर ग्रामसभा का अधिकार होगा.
3.            वैसे ही गांव के अंदर या ग्राम के खेतों को बिजली के आवंटन का अधिकार ग्रामसभा का होगा.
4.            गांव संबंधी सभी करों की वसूली ग्रामसभा द्वारा होगी और ग्रामसभा को 10 प्रतिशत वसूली ख़र्च दिया जाएगा. भू-राजस्व पूरा ग्रामसभा का माना जाएगा.
5.            ग्राम संबंधी अन्य करों में लागत ख़र्च छोड़कर सभी मुनाफ़ा ग्रामसभा का माना जाएगा.
6.            ग्रामसभा को गांव के विकास कार्यों के लिए उसके निवासियों की आय का 30वां भाग या 40वां भाग या जो भाग ग्रामसभा समय-समय पर तय करे, वह ग्राम कोष के लिए वसूल करने का अधिकार होगा.
7.            केंद्र के या राज्य के अप्रत्यक्ष करों का कम से कम 50 प्रतिशत ग्रामसभा को उसकी जनसंख्या के अनुपात में दिया जाए.
8.            ग्राम के विकास के लिए ऋण लेने और पूंजी खड़ी करने का अधिकार ग्रामसभा को होगा.
9.            सिंचाई, गंवाई जंगल, गोचर-भूमि, शिक्षा, आरोग्य एवं सुरक्षा का अधिकार और दायित्व ग्रामसभा को होगा. गांव को लगने वाला एक साल का अनाज ग्रामसभा गांव में रखेगी. उसके बाद का अतिरिक्त अनाज लेवी द्वारा या अन्य तरी़के से ऊपर की सरकारें ग्रामसभा की सम्मति से ले जा सकेंगी.
10.          गांव के अंदर राशनिंग की दुकान चलाने का अधिकार ग्राम सभा को होगा.
11.          ग्राम से संबद्ध लेखपाल, शिक्षक, ट्यूबवेल ऑपरेटर, वन-रक्षक, पतरौल, ग्रामसेवक, पंचायत सचिव, स्वास्थ्य निरीक्षक आदि गांव से संबद्ध सभी कर्मचारी ग्रामसभा के अधीन ही कार्य करेंगे. उनकी पदोन्नति, वेतन वृद्धि आदि के सिलसिले में उनकी चरित्र-पंजिका में आख्या अंकित करना ग्रामसभा के अधिकार में होगा.
12.          गांव के सभी लोगों को पूरे समय अथवा फुर्सत के समय काम देने के लिए ग्रामोद्योगों और कुटीर उद्योगों को ऐसे ढंग से विकसित करना होगा कि गांव में पैदा होने वाले हर कच्चे माल को उसके पक्के रूप में परिवर्तित किया जा सके, ताकि गांव से बाहर कच्चे माल की बजाय पक्के रूप में ही निर्यात हो, ग्राम सभा का उत्तरदायित्व होगा.
13.          गांव में बाहर से आने वाले, गांव के लिए अहितकर अथवा अलाभकर या हानिकर किसी भी माल को प्रतिबंधित करने का अधिकार ग्राम सभा को होगा.
14.          पुलिस-हस्तक्षेप के विशिष्ट वादों को छोड़कर गांव संबंध सभी राजस्व, सिविल एवं क्रिमिनल वादों के निर्णय और निबटारे का अधिकार और दायित्व ग्रामसभा द्वारा चुनी हुई न्याय समिति (लोक अदालत) को होगा.
15.          ग्रामसभा अपनी उन आवश्यकताओं के लिए, जो उसके सीमा क्षेत्र में हल नहीं हो सकती हैं, अपने पड़ोसी ग्रामसभाओं के सहयोग से कार्य करेगी.
16.          ग्रामोद्योगों को बाधा पहुंचाने वाले व्यवसायों को रोकना एवं बंद करना ग्रामसभा का दायित्व और अधिकार होगा.
17.          ग्रामसभा मानव शक्ति एवं पशु शक्ति के उपरांत नई शक्तियों के ऐसे स्रोतों का, जो उसकी समझ और पकड़ में हो, विकास और उपयोग करेगी. जैसे-वायु शक्ति, सौर शक्ति, जल शक्ति, गोबर गैस आदि.
18.          सार्वजनिक निर्माण-क्षेत्र में मेलों, बाज़ारों, क्रय-स्थानों, हाटों, तांगा-स्टैंडों एवं गाड़ियों के ठहरने के स्थानों का नियमन, नियंत्रण और निर्माण ग्रामसभा के अधिकार में होगा.
19.          गांव के हर प्रकार के पशुधन को विकसित करना और मरने के बाद उसका पूरा-पूरा उपयोग करना ग्रामसभा का दायित्व होगा.
20.          गांव के सामाजिक उत्थान के लिए अस्पृश्यता निवारण, नशाबंदी, स्त्री-पुरुष समानता, सर्व धर्म समभाव का शिक्षण और इनको प्रेरित करने वाले कार्यक्रमों का आयोजन करना ग्रामसभा का कर्तव्य होगा.
21.          ग्रामसभा-क्षेत्र में सच्चे भाईचारे, प्रेमभाव और शांति स्थापना के लिए विषमता-निराकरण और आर्थिक समानता का प्रयत्न आवश्यक है, जो ग्रामसभा का पुनीत दायित्व होगा.
22.          शासन की ऊपर की इकाइयां गांव के लोगों से व्यवहार सामान्यतय: ग्रामसभा के मार्फत करेंगी.
23.          ग्रामसभा को भंग करने का अधिकार ग्रामसभा की कार्यसमिति को होगा.
यह तो हुई ग्रामसभा, लेकिन आख़िर गांव कैसा होना चाहिए, यह तय करने का अधिकार और उसे वैसा स्वरूप देने की ज़िम्मेदारी वहां के निवासियों की है. सहयोगात्मक लोकतंत्र में यानी लोकतंत्र के विकेंद्रीकरण के ऊपर के प्रस्तावित ढांचे में नगर और क़स्बों का कोई जिक्र नहीं किया गया है. निश्‍चय ही यह इस विकेंद्रीकरण को अधूरा रखने वाली चीज होगी. यद्यपि विशालकाय शहरों में आमने-सामने वाला समाज नहीं रहता है, अत: परिस्थिति भिन्न एवं जटिल होने से लोकतंत्र का वैसा का वैसा देहातों के लिए लागू होने वाला ढांचा खड़ा करना कठिन है, तो भी शहरी भारत के

मोहल्लों के निवासियों को यानी मोहल्ला सभा को सत्ता के उचित अधिकार देने होंगे और शहरी क्षेत्र की लोकतंत्रीय संस्थाओं को भी इस ढांचे के साथ शामिल करना होगा. यद्यपि बड़े क़स्बे या शहर प्राथमिक इकाई नहीं हैं, तो भी बड़े शहरों की भी प्राथमिक शहरी समुदायों यानी मोहल्लों या कम्यूनों के रूप में कल्पना की जा सकती है. यूगोस्लाविया के शहर इसी ढांचे पर हैं. ऐसी परिस्थिति में ऊपर या आगे के वर्णन में ग्राम शब्द से मतलब स़िर्फ गांव से ही नहीं होगा. वह एक ऐसी प्राथमिक सामुदायिक इकाई होगी, जिससे गांव अथवा शहर दोनों का बोध होगा. म्यूनिसिपल क़ानूनों को इस प्रकार संशोधित किया जाना चाहिए, जिससे शहरी स्वायत्त संस्थाओं में भी इस सहयोगात्मक लोकतंत्र के सिद्धांतों का समावेश किया जा सके.

भारतीय जनता अनेकता में एकता की मिसाल

हिंदू संस्कृति जिस धरती पर समृद्ध हुई, उसकी आबादी के बारे में हम जान चुके हैं कि वह मूलतः चार जातियों का मिश्रण रही है. इन्हीं जातियों के बीच के वैवाहिक संबंधों ने हमारी संस्कृति को बहुरंगा स्वरूप प्रदान किया. विविधता में एकता हमारी सांस्कृतिक पहचान रही है. न स़िर्फ जातीय, बल्कि भाषाई आधार पर भी भारत की विविधता ग़ौर के क़ाबिल है. अलग-अलग क्षेत्रों में अलग भाषाएं बोली जाती हैं. उत्पत्ति के लिहाज़ से उन्हें  अलग-अलग भाषाई समूहों में वर्गीकृत किया जाता है. इन भाषाओं की अपनी लिपियां हैं, अपना साहित्य है और एक समृद्ध सांस्कृतिक विरासत भी. भाषाशास्त्रियों ने इस देश में बोली जाने वाली भाषाओं को कई वर्गों में विभाजित किया है. 76.4 फीसदी लोग आर्य भाषा समूह की बोली बोलते हैं, 20.6 फीसदी द्रविड़ और 3 फीसदी लोग शबर-कराती भाषाभाषी माने गए हैं. मंगोल जाति के लोग तिब्बती-चीनी परिवार की भाषाएं बोलते हैं. इस भाषा पर आर्य भाषाओं का प्रभाव भी देखने को मिलता है. तमिल, तेलुगू, कन्नड़ और मलयालम द्रविड़ परिवार की मुख्य भाषाएं हैं, जो तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और केरल में बोली जाती हैं. द्रविड़ भाषाओं के अनेक शब्द और प्रयोग आर्य भाषाओं में आ गए हैं, जबकि संस्कृत के अनेक शब्द द्रविड़ भाषाओं में मिल गए हैं. फिर भी भारत के दक्षिणी राज्यों में उक्त चार भाषाएं ही प्रचलित हैं. दक्षिण भारत से बाहर भी दो जगहों पर द्रविड़ भाषा बोले जाने के सबूत हैं. यह इस बात का सबूत है कि द्रविड़ लोग कभी भारत के दूसरे हिस्सों में भी फैले थे. उदाहरण के तौर पर, बलूचिस्तान की ब्रहुई भाषा द्रविड़ समूह की भाषा मानी जाती है, जबकि झारखंड के प्रमुख आदिवासी ओरांव जो भाषा बोलते हैं, वह भी द्रविड़ों से मिलती-जुलती है.
हिंदी, उर्दू, बांग्ला, मराठी, गुजराती, उड़िया, पंजाबी, असमी और कश्मीरी आदि आर्य भाषाएं बताई गई हैं, जो संस्कृत की परंपरा से उत्पन्न हुई हैं. भारत से बाहर आर्य भाषाओं का संबंध इंडो-जर्मन भाषा समूह से है. प्राचीन पारसी, यूनानी, लातीनी, केल्ट, त्युतनी, जर्मन और स्लाव आदि भाषाओं के साथ हमारी संस्कृति का बहुत निकट का संबंध था और वह नाता आज भी है. लातीनी प्राचीन इटली की भाषा थी और अब इटली, फ्रांस और स्पेन में उसकी वंशज भाषाएं मौजूद हैं. प्राचीन केल्ट की मुख्य वंशज आजकल की गैलिक यानी आयरलैंड की भाषा है. जर्मन,
ओलंदेज(डच), अंग्रेज़ी, डेन और स्वीडिश आदि भाषाएं जर्मन या त्युतनी परिवार की हैं. आधुनिक रूस एवं पूर्वी यूरोप की भाषाएं स्लाव परिवार की हैं. इन सब भाषाओं का परिवार आर्य वंश कहलाता है. इंडो-जर्मन परिवार की भाषाओं में जो समानता है, उसी से यह अनुमान लगाया गया है कि प्राय: समस्त यूरोपीय भाषाएं उसी भाषा परिवार से निकली हैं, जिस परिवार के भारतीय आर्य थे. यही नहीं, ऋग्वेद केवल भारतीय आर्यों का ही नहीं, बल्कि विश्व भर के आर्यों का सबसे प्राचीन ग्रंथ है. वेद समूची मनुष्य जाति का प्राचीनतम ग्रंथ है. 19वीं सदी में जब इस सत्य का प्रचार हुआ, तब विश्व भर के अनेक विद्वान संस्कृत का अध्ययन करने लगे और इसी अध्ययन के परिणामस्वरूप आर्य वंश के विस्तृत इतिहास की रचना की जाने लगी. संस्कृत को सभी आर्यों की मूल भाषा सिद्ध करते हुए मैक्समूलर ने लिखा था कि संसार भर की आर्य भाषाओं में जितने भी शब्द हैं, वे संस्कृत की स़िर्फ पांच सौ धातुओं से निकले हैं.
विभिन्न भाषाओं के आधार पर भारत में जातियों की जो पहचान की गई है, उसका उल्लेख करते हुए डॉ. सुनीति कुमार चटर्जी ने लिखा है कि भारतीय जनसंख्या की रचना जिन लोगों को लेकर हुई है, वे मुख्यत: तीन भाषाओं-ऑष्ट्रिक अथवा आग्नेय, द्रविड़ और इंडो-यूरोपीय (हिंद-जर्मन) में विभक्तकिए जा सकते हैं. नीग्रो से लेकर आर्य तक इस देश में जो भी आए, उनकी भाषाएं इन भाषाओं के भीतर समाई हुई हैं. असल में, भारतीय जनता की रचना आर्यों के आगमन के बाद ही पूरी हुई. उसे ही हम आर्य या हिंदू सभ्यता कहते हैं. आर्यों ने भारत में जातियों और संस्कृतियों का जो समन्वय किया, उसी से हिंदू समाज और हिंदू संस्कृति का निर्माण हुआ. बाद में मंगोल, यूनानी, यूची, शक, आभीर, हूण और तुर्क जो भी आए, इसमें विलीन होते चले गए. सच में रक्त, भाषा और संस्कृति हर लिहाज़ से भारत की जनता अनेकता में एकता की मिसाल है.
जनचेतना के लिए चौथी दुनिया से साभार 

Monday, 25 March 2013

चिरागन परिवार की तरफ से आप सब को होली की शुभकामनाए!

चिरागन परिवार की तरफ से आप सब को होली की शुभकामनाए

चिरागन परिवार की तरफ से आप सब को होली की शुभकामनाए !


जब फागुन रँग झमकते हो तब देख बहारेँ होली की |
गुलजार खिले हो परियोँ के और मजलिस की तैयारी हो |
कपड़ो पर रँग के छीटोँ से खुश रँग अजब गुलकारी हो |
मुँह लाल, गुलाबी आँखे हो और हाथोँ मेँ पिचकारी हो |
उस रँग भरी पिचकारी को अँगिया पर तक कर मारी हो |
सीनो से रँग ढलकतेँ हो तब देख बहारेँ होली की . -"नजीर अकबराबादी" 


रोली, अबीर, गुलाल,चन्दन से तो मनाते होली सभी हम तो सबको प्रेम रंग लगाए जोकि ना छुटे कभीआप सभी को होली की हार्दिक शुभकामनाए इस आशा के साथ की ये होली सभी के जीवन में ख़ुशियों के ढेर सरे रंग भर दे ....!!

A Documentary film & Photography Exhibition by Students & Team of Chiragan. Coming soon. For more update join us on facebook Page: www.fb.com/kumbhprayag

A Documentary film & Photography Exhibition by Students & Team of Chiragan. Coming soon. For more update join us on facebook Page: www.fb.com/kumbhprayag Maha Kumbh Mela, Sangam, Allahabad, India

Friday, 15 March 2013

संचार माध्यमों (मीडिया) का भ्रष्टाचार

2जी स्पेक्‍ट्रम घोटाला मामला ने देश में भ्रष्टाचार को लेकर एक नई इबादत लिख दी। इस पूरे मामले में जहां राजनीतिक माहौल भ्रष्टाचार की गिरफ्त में दिखा वहीं लोकतंत्र का प्रहरी मीडिया भी राजा के भ्रष्टाचार में फंसा दिखा। राजा व मीडिया के भ्रष्टाचार के खेल को मीडिया ने ही सामने लाय। हालांकि यह पहला मौका नहीं है कि मीडिया में घुसते भ्रष्टचार पर सवाल उठा हो! मीडिया को मिशन समझने वाले दबी जुबां से स्वीकारते हैं कि नीरा राडिया प्रकरण ने मीडिया के अंदर के उच्च स्तरीय कथित भ्रष्टाचार को सामने ला दिया है और मीडिया की पोल खोल दी है।
हालांकि, अक्सर सवाल उठते रहे हैं, लेकिन छोटे स्तर पर। छोटे-बडे़ शहरों, जिलों एवं कस्बों में मीडिया की चाकरी बिना किसी अच्छे मासिक तनख्वाह पर करने वाले पत्रकारों पर हमेशा से पैसे लेकर खबर छापने या फिर खबर के नाम पर दलाली के आरोप लगते रहते हैं। खुले आम कहा जाता है कि पत्रकरों को खिलाओ-पिलाओ-कुछ थमाओं और खबर छपवाओ। मीडिया की गोष्ठियों में, मीडिया के दिग्गज गला फाड़ कर, मीडिया में दलाली करने वाले या खबर के नाम पर पैसा उगाही करने वाले पत्रकारों पर हल्ला बोलते रहते
लोकतंत्र पर नजर रखने वाला मीडिया भ्रष्टाचार के जबड़े में है। मीडिया के अंदर भ्रष्टाचार के घुसपैठ पर भले ही आज हो हल्ला हो जाये, यह कोई नयी बात नहीं है। पहले निचले स्तर पर नजर डालना होगा। जिलों/कस्बों में दिन-रात कार्य करने वाले पत्रकार इसकी चपेट में आते हैं, लेकिन सभी नहीं। अभी भी ऐसे पत्रकार हैं, जो संवाददाता सम्मेलनों में खाना क्या, गिफ्ट तक नहीं लेते हैं। संवाददाता सम्मेलन कवर किया और चल दिये। वहीं कई पत्रकार खाना और गिफ्ट के लिए हंगामा मचाते नजर आते हैं।
वहीं देखें, तो छोटे स्तर पर पत्रकारों के भ्रष्ट होने के पीछे सबसे बड़ा मुद्दा आर्थिक शोषण का आता है। छोटे और बड़े मीडिया हाउसों में 15 सौ रूपये के मासिक पर पत्रकारों से 10 से 12 घंटे काम लिया जाता है। उपर से प्रबंधन की मर्जी, जब जी चाहे नौकरी पर रखे या निकाल दे। भुगतान दिहाड़ी मजदूरों की तरह है। वेतन के मामले में कलम के सिपाहियों का हाल, सरकारी आदेशपालों से भी बुरा है। ऐसे में यह चिंतनीय विषय है कि एक जिले, कस्बा या ब्‍लॉक का पत्रकार, अपनी जिंदगी पानी और हवा पी कर तो नहीं गुजारेगा? लाजमी है कि खबर की दलाली करेगा? वहीं पर कई छोटे-मंझोले मीडिया हाउसों में कार्यरत पत्रकारों को तो कभी निश्चित तारीख पर तनख्वाह तक नहीं मिलती है। छोटे स्तर पर कथित भ्रष्ट मीडिया को तो स्वीकारने के पीछे, पत्रकारों का आर्थिक कारण, सबसे बड़ा कारण समझ में आता है, जिसे एक हद तक मजबूरी का नाम दिया जा सकता है।

भ्रष्टाचार और स्विस बैंक

भारतीय गरीब है लेकिन भारत देश कभी गरीब नहीं रहा" - ये कहना है स्विस बैंक के डाइरेक्टर का. स्विस बैंक के डाइरेक्टर ने यह भी कहा है कि भारत का लगभग 280 लाख करोड़ रुपये उनके स्विस बैंक में जमा है . ये रकम इतनी है कि भारत का आने वाले 30 सालों का बजट बिना टैक्स के बनाया जा सकता है.
या यूँ कहें कि 60 करोड़ रोजगार के अवसर दिए जा सकते है. या यूँ भी कह सकते है कि भारत के किसी भी गाँव से दिल्ली तक 4 लेन रोड बनाया जा सकता है.
ऐसा भी कह सकते है कि 500 से ज्यादा सामाजिक प्रोजेक्ट पूर्ण किये जा सकते है. ये रकम इतनी ज्यादा है कि अगर हर भारतीय को 2000 रुपये हर महीने भी दिए जाये तो 60 साल तक ख़त्म ना हो. यानी भारत को किसी वर्ल्ड बैंक से लोन लेने कि कोई जरुरत नहीं है. जरा सोचिये ... हमारे भ्रष्ट राजनेताओं और नोकरशाहों ने कैसे देश को लूटा है और ये लूट का सिलसिला अभी तक 2011 तक जारी है.
इस सिलसिले को अब रोकना बहुत ज्यादा जरूरी हो गया है. अंग्रेजो ने हमारे भारत पर करीब 200 सालो तक राज करके करीब 1 लाख करोड़ रुपये लूटा.
मगर आजादी के केवल 64 सालों में हमारे भ्रस्टाचार ने 280 लाख करोड़ लूटा है. एक तरफ 200 साल में 1 लाख करोड़ है और दूसरी तरफ केवल 64 सालों में 280 लाख करोड़ है. यानि हर साल लगभग 4.37 लाख करोड़, या हर महीने करीब 36 हजार करोड़ भारतीय मुद्रा स्विस बैंक में इन भ्रष्ट लोगों द्वारा जमा करवाई गई है.
भारत को किसी वर्ल्ड बैंक के लोन की कोई दरकार नहीं है. सोचो की कितना पैसा हमारे भ्रष्ट राजनेताओं और उच्च अधिकारीयों ने ब्लाक करके रखा हुआ है!
विकिपीडिया से कुछ अंश लिए गए।

महाशक्ति के रूप में भारत का भविष्य

राजनीतिक पार्टियों का मूल उद्देश्य सत्ता पर काबिज रहना है। इन्होंने युक्ति निकाली है कि गरीब को राहत देने के नाम पर अपने समर्थकों की टोली खड़ी कर लो। कल्याणकारी योजनाओं के कार्यान्वयन के लिए भारी भरकम नौकरशाही स्थापित की जा रही है। सरकारी विद्यालयों एवं अस्पतालों का बेहाल सर्वविदित है। सार्वजनिक वितरण प्रणाली में ४० प्रतिशत माल का रिसाव हो रहा है। मनरेगा के मार्फत्‌ निकम्मों की टोली खड़ी की जा रही है। १०० रुपये पाने के लिये उन्हें दूसरे उत्पादक रोजगार छोड़ने पड़ रहे हैं। अत: भ्रटाचार और असमानता की समस्याओं को रोकने में हम असफल हैं। यही हमारी महाशक्ति बनने में रोड़ा है।
उपाय है कि तमाम कल्याणकारी योजनाओं को समाप्त करके बची हुयी रकम को प्रत्येक मतदाता को सीधे रिजर्व बैंक के माध्यम से वितरित कर दिया जाये। प्रत्येक परिवार को कोई २००० रुपये प्रति माह मिल जायेंगे जो उनकी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति को पर्याप्त होगा। उन्हें मनरेगा में बैठकर फर्जी कार्य का ढोंग नहीं रचना होगा। वे रोजगार करने और धन कमाने को निकल सकेंगे। कल्याणकारी योजनाओं में व्याप्त भ्रटाचार स्वत: समाप्त हो जायेगा। इस फार्मूले को लागू करने में प्रमुख समस्या राजनीतिक पार्टियों का सत्ता प्रेम है। सरकारी कर्मचारियों की लॉबी का सामना करने का इनमें साहस नहीं है। सारांश है कि भारत महाशक्ति बन सकता है यदि राजनीतिक पार्टियों द्वारा कल्याणकारी कार्यक्रमों में कार्यरत सरकारी कर्मचारियों की बड़ी फौज को खत्म किया जाये। इन पर खर्च की जा रही रकम को सीधे मतदाताओं को वितरित कर देना चाहिये। इस समस्या को तत्काल हल न करने की स्थिति में हम महाशक्ति बनने के अवसर को गंवा देंगे।
यह सच है कि भारत महाशक्ति बनने के करीब है परन्तु हम भ्रष्टाचार की वजह से इस से दूर होते जा रहे है। भारत के नेताओ को जब अपने फालतू के कामो से फुरसत मिले तब ही तो वो इस सम्बन्ध मे सोच सकते है उन लोगो को तो फ्री का पैसा मिलता रहे देश जाये भाड मे।भारत को महाशक्ति बनने मे जो रोडा है वो है नेता। युवाओ को इस के लिये इनके खिलाफ लडना पडेगा,आज देश को महाशक्ति बनाने के लिये एक महाक्रान्ति की जरुरत है,क्योकि बदलाव के लिये क्रान्ति की ही आवश्यकता होती है लेकिन इस बात का ध्यान रखना पडेगा की भारत के रशिया जैसे महाशक्तिशाली देश की तरह टुकडे न हो जाये,अपने को बचाने के लिये ये नेता कभी भी रुप बदल सकते है।
Annu
विकिपीडिया से कुछ अंश लिए गए।

Thursday, 7 March 2013

संध लोक सेवा आयोग और उसका बढ़ता अंग्रेजी प्रेम

सोते रहिए... संघ लोक सेवा आयोग ने धीरे से अंग्रेजी को अनिवार्य ही नहीं बनाया, किसी भारतीय भाषा को पास करने की जरूरत भी खत्म कर दी। अंग्रेजी की परीक्षा के नंबर अब मेरिट में भी जुड़ेंगे। पहले अंग्रेजी के साथ-साथ किसी एक भारतीय भाषा में न्यूनतम अंक प्राप्त करना होता था और नंबर मेरिट में नहीं जुड़ते थे।
ताजा फैसले के बाद आईएएस, आईपीएस की लिस्ट में कान्वेंटियों की भरमार होगी जबकि भारतीय भाषाओं से पढ़े लिखे टुकुर टुकुर निहारेंगे।...अजीब बात है, इस मुद्दे पर शिवसेना जैसी पार्टी ही मुखर है, जबकि हिंदी का झंडा उठाने वाले मुलायम से लेकर नीतीश कुमार तक चुप हैं। ये फैसला दलितों के लिए भी बड़ी मुश्किल पैदा करेगा, लेकिन मायावती से भी उम्मीद नहीं। उम्मीद तो वामपंथियों से भी नहीं, जिनके लिए हिंदी कभी मुद्दा नहीं रही। हिंदी बुद्धिजीवियों, आलोचकों, पत्रकारों, साहित्यकारों में भी कोई सुगबुगाहट नहीं दिख रही है।... इस आत्महीनता को भांपकर ही शायद मनमोहन सिंह में हिम्मत आई थी कि वे आक्सफोर्ड जाकर अंग्रेजी सिखाने के लिए अंग्रेजों को शुक्रिया अदा करें.....कभी-कभी तो लगता है कि हिंदी को भी एक अदद राज ठाकरे की जरूरत है...मित्रों को छूट है कि इसके लिए मुझे जी भर कर गाली दें...बुरा नहीं मानूंगा..

Tuesday, 5 March 2013

कुम्भ पर आने वाली दोकुमेंट्री फिल्म

सड़क चौराहों, गावो कस्बो और देश विदेश से श्रधालुओ का जत्था लगातार कुम्भ पहुच रहा था, बच्चो युवाओं का उत्साह, दादा दादी की आस्था पूरे वेग से उछाल मार रही थी। कोई डूबकी लगा रहा था तो कोई भष्म लगाकर झूम रहा था, कोई आचमन कर रहा था तो कोई आरती उतार रहा था। जल, जनसमूह और जत्थों का अनूठा मिलन दिख रहा था, फर्क करना मुश्किल था कौन अमीर था कौन गरीब?, कौन देशी था कौन परदेशी? पर हा कुछ सामान था सबमे तो वो था गंगा के प्रति आस्था और उसमे अटूट विश्वाश। ये कुछ अंश है चिरागन की कुम्भ पर आने वाली दोकुमेंट्री फिल्म के जिसको बनाने में मै और मेरे कई सहयोगी बड़ी सिद्दत से लगे है आशा है ये अंश आपको पसंद आये होंगे। [किंजल]