Sunday 28 November 2021

खुदा जैसी कोई शै है भी तो बड़ी तकलीफ में है

 

एक रोज पीडिएट्रिक वार्ड में एक 2 दिन का बच्चा आया ,ना मालूम किसका ! कोई उसे छोड़ गया था .
"मै उस मां के बारे में सोच रहा हूँ जो उसे छोड़ गयी ,वो सारी उम्र इसे नहीं भूलेगी !" उसने कहा
"तुम खुदा में यकीन करते हो " मैंने उससे पूछा था जैसे अपने यकीन को टटोल रहा था .
"खुदा जैसी कोई शै है भी तो बड़ी तकलीफ में है "
उस रात हम उसी पुल पर बैठे. तकलीफों में आपको कुछ जगहों की आदत हो जाती है. हमने सिगरेट का सारा पैकेट ख़त्म कर दिया था. अपने- अपने कमरों में हम दोनों उस रात सोये नहीं थे .
 

 
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वो कहती है" तुमने अगर ज़िन्दगी में कुछ फैसले अलग लिए होते तो शायद किसी और तरह के होते "
"यकीन से नही कह सकता"
"तुम डेस्टीनेशन में यकीन करते हो"
"हम अपने फैसलों का ही हासिल होते है ,आदमी के मिजाज की कई वजहें होती है .
मैं उसकी नाइत्तेफाकी महसूस कर लेता हूँ . पर इस उम्र तक आते आते मैंने अपने मिज़ाज़ में बहुत सी चीज़ों को देखा था कमाल की बात थी जिन्हें मैंने नही चुना था पर वे मेरे मिजाज का हिस्सा था . शहर भी आदमी के मिजाज की तबियत तय करने में शामिल होते है
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कोई कहता है "तुम अपना वक़्त कागजो में जाया करते हो "
मै कहता हूँ "दरसल मै शनाख्त कर रहा हूँ खुद की , और आसान नहीं होती शनाख्त। हर आदमी एक उम्र में अपने अपने तरीके से अपनी शनाख्त करता है कोई दौड़ कर ,कोई गिटार बजा कर ,कोई कैमरों के संग. मै कागजो में अपने हमशक़्ल को ढूंढ रहा हूँ !

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