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Friday, 3 December 2021

इनके एक हाथ मे यूरिन बैग है दूसरे में बिस्किट का पैकेट ,ये अपनी" डायलेसिस" का इंतज़ार कर रहे है . नही !!

 

इनके एक हाथ मे यूरिन बैग है दूसरे में बिस्किट का पैकेट ,ये अपनी" डायलेसिस" का इंतज़ार कर रहे है .
नही !!
 

 
 
इस तस्वीर का मतलब आपको इमोशनल करना नही है !
वेटिंग रूम में आज सुबह एक 4 साल के बच्चे से दूसरी फैमिली के 7 साल के बच्चे का खिलौना टूट गया ,उसकी मां ने उसे डांटना शुरू किया तो 7 साल के उस बच्चे ने उन्हें डांटने से मना किया .उन
7 साल के एक साहबजादे को "ज्यूवेनाइल डायबेटिक" है ,दिन में 3 दफे इन्सुलिन लेते हैं.
एक 6 साल की बच्ची को स्टेज पर अपनी बेस्ट परफॉर्मेंस के अवार्ड को लेकर अपने दूसरे क्लासमेट्स को स्टेज पर बुला रही है . नीचे उसकी मां की आंखों में आंसू थे पास बैठी दूसरी मां को लगा वे "ज्यादा सेंसिटिव" है
"फर्स्ट टाइम ऑन स्टेज "उन्होंने पूछा!
मां ने कहा
"जब पैदा हुई थी 450 ग्राम की थी ,छोटी सी .डॉक्टर ने कहा बचेगी नही
पहले दो दिन वो जितनी दफे सांस लेती मैं उसकी छाती पर उतनी दफे हाथ रखती .आज सुबह से जब से उसे तैयार कर रही थी वो दिन याद कर रही हूं इसलिए भावुक हो रही हूं ."
तीनो इसी दुनिया की बाते है .
असल बाते .
दुनिया में कितने ऐसे लोग है जो खामोशी से अपने हिस्से की लड़ाई लड़ रहे है.उन चीज़ों के लिए जिनकी नेमत हमको, आपको हासिल है ,फिर भी वे तल्ख नही है
नाराज नही है और हम ज़िन्दगी में कितना समय बेफज़ूल के गरूर और तल्खी में जाया कर देते है .
 
Writer Anurag Arya

Thursday, 2 December 2021

आबादी का बड़ा वरनेबल और मासूम है ,उसे बचाने की कलेक्टिव जिम्मेदारी सभी बड़ो की है

 

7th क्लास में थे तो एक क्लास मैट्स था .खूब क्रिकेट खेलता , साइकिल तेज चलाते मस्ती करता .3 रोज वो लगातार स्कूल नही आया ,मालूम चला उसकी मम्मी नही रही .कई दिनों बाद वो स्कूल आया .पर जैसे अपने आप को कही छोड़ आया था .बेतरतीब कपड़ो में आता ,लंच में टिफिन शेयर नहीं करता ,क्रिकेट के मैदान से दूर रहता साइकिल भी बहुत धीमे धीमे चलाकर घर अकेला लौटने लगा .कुछ महीनों बाद हम देहरादून शिफ्ट हो गये .शहर और स्कूल कुछ वक़्तों के लिए छूट गया. 
 

 
 
अब पीछे मुड़ कर देखता हूँ तो लगता है वो कितने "दुख" में था .उसे काउंसलिंग की जरूरत थी ,किसी बड़े की ,स्नेह की .सरकारी स्कूलों में काउंसलर के बारे में सोचना भी उस वक़्त अकल्पनीय था .कितने बच्चे, कितने बचपन दुख से अकेले सालो लड़ते है बिना ये जाने के उन्हें कैसे लड़ना है .कल एक 21 साल की लड़की अपने भतीजे को दिखाने आयी कोरोना ने उसके माता पिता ,दादी को उससे छीन लिया .उसके घुंघराले बाल देख अपना वो क्लासमेट्स याद आ गया .दुनिया की कोई ताकत किसी बच्चे को उसकी मां पिता वापस नही दे सकते पर दुख को एब्सॉर्ब करने ,"हरने "में उसकी इनविजिबल मदद कर सकते है .स्नेह ,प्यार ,संवाद और अपेक्षाकृत ज्यादा टॉलरेंट एनवायरमेंट समाज बना कर .
मैं नही जानता किसी स्कूल के कॅरिकुलम में टीचरों को भी मेन्टल हेल्थ के कुछ सेशन की ट्रेनिंग या "Greif Awareness " जैसे विषयों से इंट्रोड्यूस कराया जाता है या नही .या प्राइवेट स्कूलों में अपॉइंटेड कायून्सलर योग्यता के सभी मानक पूरे करते है या नही .पर यकीन मानिए आबादी का ये हिस्सा बड़ा वरनेबल और मासूम है ,उसे बचाने की कलेक्टिव जिम्मेदारी सभी बड़ो की है .
P.S -तस्वीर गूगल से दुख की पांचों स्टेज को दिखाती है .
 
Writer : Anurag Arya

Monday, 29 November 2021

दुनिया के कई हिस्से है और कुछ हिस्सों की दुनिया मे ईश्वर की उपस्थिति लेट हुई है ,और उस दुनिया को अब भी मनुष्य ही चला रहे है

 

जानते है इस देश मे
सबसे बड़ा अपराध क्या है?
" गरीब होना "
किसी ने लिखा था "कानून" और "न्याय "दो अलग चीज़े है !
जब पुलिस और व्यवस्था ही आपको अपराधी साबित करे और आपको अपने आप को निर्दोष साबित करने के लिए ,अपने "सर्वाइवल" के लिए आपको अदालत में खुद ही लड़ाई लड़नी पड़े .
ये लोकतांत्रिक व्यवस्था की "बुनियाद में डिफेक्ट "आने की निशानी हैं जो लोकतंत्र के उस मूल सिद्दांत से उसे हटाती है जिसमे सबसे अंतिम पायदान पर खड़ा हुआ व्यक्ति भी बराबर है .
ये जरूरी नही के आप इसे जीत जायेगे ,और इसे जीतने में आपको कितने वर्ष लगे ,आपके जीवन के कितने साल इस लड़ाई को लड़ने में जाया होंगे .आर्थिक और सामाजिक मुश्किलों की तो अलग फेरहिस्त है .लोकतंत्र में ताकते अपने हितों और सत्ता के लिए ऐसे ही अपनी ताकत का दुरुपयोग करती है .और प्रतिरोध की अनुपस्थिति उन्हें किसी भी जवाबदेही से मुक्त तो बनाती ही है क्रूर भी. सामाजिक व्यवस्था की कुरीतियों से लड़ते लड़ते हमारे समाज ने दूसरी नई कुरीतियों को ज़िंदा रखने की तरकीबें सीख ली है.
हमारे यहां अदालतों को केंद्र में रखकर , अंतिम पंक्ति के व्यक्ति के लिए न्याय के लिये लड़ाई पर कमोबेश कम फिल्मे बनी है .
गोविंद निहलानी की नसीर ओम पुरी और अमरीश पुरी को लेकर बनाई गई फ़िल्म "आक्रोश",
"जोली एल एल बी" का प्रथम भाग और यथार्थ के बेहद नजदीक अदालतों और सिस्टम के क्रूर उदासीन चेहरे को रिफ्लेक्ट करती मराठी फिल्म "कोर्ट "मुझे याद आती है इसके अलावा
"जोली एल एल बी 2" और" मुल्क" दो ऐसी फिल्में है जो मुख्य धारा के सिनेमा को रिप्रजेंट करती है
"जय भीम "अपने प्रजेंटेशन में मराठी फिल्म "कोर्ट" जितनी यथार्थवादी और दृश्यों को लेकर उतनी सचेत फ़िल्म नही है पर फिर भी मुख्य धारा के सिनेमा के ऑडिएंस की लिमिटेशन को ध्यान में रखकर बनाई गई फ़िल्म है जिसकीं कुछ कमियों को नजरअंदाज किया जा सकता है .
 
 

 
फ़िल्म इसलिए देखी जानी चाहिए
क्योंकि ये कानून की व्यवस्था के मार्गो की पड़ताल करती है जिसमे पुलिस वकील और अदालत है .
जातियों को लेकर पूर्वाग्रह से भरा समाज है .ये वापस रिकॉल कराती अब भी हम एक ऐसी व्यवस्था में रह रहे है जो दो खांचों में विभाजित है .एक "इनविजिबल लाइन!" ने दो खाने बना रखे है एक तरफ अमीर है और दूसरी तरफ गरीब .
गरीबी के हर्डल बहुत है उसे हर आवश्यक चीज़ के लिए एक हर्डल पार करना होता है.गुजरते वक़्त के साथ व्यवस्थाये दुरस्त होने के बजाय और असक्षम होती जा रही हैं,ट्रांसपेरेंट और अंतिम व्यक्ति की रीच में होने के बजाय दूर ओर अधिक ऊंची होती जा रही है.
व्यवस्थाओं पर व्यक्तियों का कब्जा हो रहा है , उन्हें प्लांड वे में और कमजोर किया जा रहा है ताकि उनका लोकतांत्रिक चरित्र और कमजोर किया जा सके .
शहरी समाज का एक हिस्सा जो कंफर्टेबल ज़ोन में रहता आया है वो इस निर्मित व्यवस्था की क्रूरता से अनजान है .
फ़िल्म के कई हिस्से आपको क्रूर लगेंगे पर यही सच है विशेष कर थाने के दृश्य ,घरों से खींच कर सस्पेक्टेड के साथ किया जाने वाला बर्ताव ,पुलिस वालों की बॉडी लैंग्वेज . उनमे गिल्ट का अभाव.
जातियां केवल गांव में ही नही शहरों में भी बेताल की तरह लोगो की पीठ से लदी है .पढ़े लिखे लोगो की पीठ जो बेताल को ही नही छोड़ना चाहती .
फ़िल्म देखिये क्योंकि ये बतायेगी के इसी दुनिया के कई हिस्से है और कुछ हिस्सों की दुनिया मे ईश्वर की उपस्थिति लेट हुई है ,और उस दुनिया को अब भी मनुष्य ही चला रहे है.
 
Writer : Anurag Arya

Sunday, 28 November 2021

खुदा जैसी कोई शै है भी तो बड़ी तकलीफ में है

 

एक रोज पीडिएट्रिक वार्ड में एक 2 दिन का बच्चा आया ,ना मालूम किसका ! कोई उसे छोड़ गया था .
"मै उस मां के बारे में सोच रहा हूँ जो उसे छोड़ गयी ,वो सारी उम्र इसे नहीं भूलेगी !" उसने कहा
"तुम खुदा में यकीन करते हो " मैंने उससे पूछा था जैसे अपने यकीन को टटोल रहा था .
"खुदा जैसी कोई शै है भी तो बड़ी तकलीफ में है "
उस रात हम उसी पुल पर बैठे. तकलीफों में आपको कुछ जगहों की आदत हो जाती है. हमने सिगरेट का सारा पैकेट ख़त्म कर दिया था. अपने- अपने कमरों में हम दोनों उस रात सोये नहीं थे .
 

 
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वो कहती है" तुमने अगर ज़िन्दगी में कुछ फैसले अलग लिए होते तो शायद किसी और तरह के होते "
"यकीन से नही कह सकता"
"तुम डेस्टीनेशन में यकीन करते हो"
"हम अपने फैसलों का ही हासिल होते है ,आदमी के मिजाज की कई वजहें होती है .
मैं उसकी नाइत्तेफाकी महसूस कर लेता हूँ . पर इस उम्र तक आते आते मैंने अपने मिज़ाज़ में बहुत सी चीज़ों को देखा था कमाल की बात थी जिन्हें मैंने नही चुना था पर वे मेरे मिजाज का हिस्सा था . शहर भी आदमी के मिजाज की तबियत तय करने में शामिल होते है
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कोई कहता है "तुम अपना वक़्त कागजो में जाया करते हो "
मै कहता हूँ "दरसल मै शनाख्त कर रहा हूँ खुद की , और आसान नहीं होती शनाख्त। हर आदमी एक उम्र में अपने अपने तरीके से अपनी शनाख्त करता है कोई दौड़ कर ,कोई गिटार बजा कर ,कोई कैमरों के संग. मै कागजो में अपने हमशक़्ल को ढूंढ रहा हूँ !

Monday, 8 November 2021

8 नवम्बर 2016-8 नवम्बर 2021 : देश की आर्थिक बर्बादी के पाँच साल पूरे

 

8 नवम्बर 2016-8 नवम्बर 2021 : देश की आर्थिक बर्बादी के पाँच साल पूरे
आज नोटबन्दी को पाँच साल पूरे हुए हैं, कमाल की बात यह है कि बीजेपी इस बात का कोई उत्सव नही मना रही है दरअसल अंदर ही अंदर सब जानते है कि हमने नोटबन्दी कर पाया तो कुछ नही बल्कि खोया बहुत कुछ है, मीडिया में जो आज के दिन के बारे में लेख छपे है उनमें सिर्फ यही बात कही जा रही है कि 8 अक्टूबर 2021 तक 28.30 लाख करोड़ रुपये का कैश था जोकि 4 नवंबर 2016 को उपलब्ध कैश के मुकाबले 57.48 फीसदी अधिक है. इसका मतलब हुआ कि लोगों के पास पांच साल में कैश 57.48 फीसदी यानी कि 10.33 लाख करोड़ रुपये बढ़ गया. 
 

 
 
4 नवंबर 2016 को लोगों के पास 17.97 लाख करोड़ रुपये की नगदी थी जो नोटबंदी का ऐलान (8 नवंबर 2016) होने के बाद 25 नवंबर 2016 को 9.11 लाख करोड़ रुपये रह गई. इसका मतलब हुआ कि 25 नवंबर 2016 के लेवल से 8 अक्टूबर 2021 तक आने में 211 फीसदी नगदी बढ़ गई. जनवरी 2017 में लोगों के पास 7.8 लाख करोड़ रुपये की नगदी थी.
 
लेकिन यह तस्वीर का सिर्फ एक पहलू है इस आँकड़े से कैश बबल पर फैलाए गए मोदी सरकार के झूठ के कलई खुलती ही है साथ ही यह भी महत्वपूर्ण तथ्य है कि नोटबन्दी के जीडीपी ग्रोथ पूरी तरह से बैठ गई है 2015-1016 के दौरान जीडीपी की ग्रोथ रेट 8.01 फ़ीसदी के आसपास थी वो पिछले साल 2020-21 में माइनस में 7.3% दर्ज की गयी 
 
मनमोहन सिंह ने नोटबन्दी के एक साल बाद सात नवंबर, 2017 को भारतीय संसद में कहा था कि ये एक आर्गेनाइज्ड लूट है, लीगलाइज्ड प्लंडर (क़ानूनी डाका) है......अर्थशास्त्री ज्या द्रेज ने कहा था कि नोटबन्दी एक पूरी रफ्तार से चलती कार के टायरों पर गोली मार देने जैसा कार्य हैं नोटबन्दी के पाँच साल बाद उनकी बात पूरी तरह से सच साबित हुई .....
 
writer : Girish Malviya

Friday, 16 November 2012

Utar Pradesh Government Start women power help line for women. अब मै नहीं डरती क्योकि मुझे मालूम है वूमेन पॉवर हेल्प लाइन नंबर। अगर कोई आपको फ़ोन, मैसेज, mms करके परेशान कर रहा है तो निशुल्क पुलिस को फोन करे। आपकी पहचान को गोपनीय रखा जायेगा। आपको कभी, कही नहीं बुलाया जायेगा।सेवा केवल उत्तर प्रदेश में। चिरागन की एक पहल। जागरूकता के लिए इशे शेयर करे।

Utar Pradesh Government Start women power help line 1090 for women. its totally  free and safe. अब मै नहीं डरती क्योकि मुझे मालूम है वूमेन पॉवर हेल्प लाइन नंबर। अगर कोई आपको फ़ोन, मैसेज, mms करके परेशान कर रहा है तो निशुल्क पुलिस को फोन करे। आपकी पहचान को गोपनीय रखा जायेगा। आपको कभी, कही नहीं बुलाया जायेगा।सेवा केवल उत्तर प्रदेश में। चिरागन की एक पहल। जागरूकता के लिए इशे शेयर करे।

Saturday, 20 October 2012

हमारी शिक्षा का स्तर और बच्चो का भविष्य

Siksha ka star ki gavaah chiraga ke project ke douran ki ek photo
कहा जाता है की जिस ईमारत की नींव मजबूत होती है वो ईमारत भी मजबूत होती है ! ये हमारे जीवन पे भी लागु होता है खास कर शिक्षा के क्षेत्र में ! हमें ये हमेशा ध्यान देना होगा की हम अपने बच्चे को जो शिक्षा दे रहे हैं या दिलवा रहे हैं वो सही है या नहीं ! अभिभावक का काम इतना ही पे ख़त्म नहीं होता है की वो अपने बच्चे का किसी स्कूल में नामांकन करवा दिए और उनकी जिम्मेदारी ख़त्म हो गयी ! अभिभावकों को ये सुनिश्चित करना पड़ेगा की हमें भी अपने बच्चे के लिए समय निकलना होगा , कम से कम १ घंटा ही सही लेकिन अपने बच्चे के ऊपर समय दीजिये ! क्योंकि पहला विद्द्यालय तो घर ( माँ , बाप ) ही होता है ! जिससे हम अपने बच्चे की परवरिश के साथ - साथ बच्चे की शिक्षा के स्तर को भी ऊपर उठा सकें ! तभी बच्चे के साथ - साथ उत्तर-प्रदेश एवं भारत का भविष्य उज्जवल होगा !
कुछ सालों में उत्तर-प्रदेश में शिक्षक के पद पर बहुत सारी नियुक्तियां हुयीं हैं और अभी और भी नियुक्तियां होनी बाकि है ! देखा जाये तो ये उत्तर-प्रदेश सरकार की बहुत ही अच्छी पहल है इस से बहुत सारे लोगों की बेरोजगारी दूर हुयी है ! लेकिन इसके दुसरे पहलु को देखा जाये तो ये उत्तर-प्रदेश के भविष्य के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है ! ऐसे - ऐसे लोगों की न्युक्तियाँ हुयीं हैं जिन्हें सही तरीके से हिन्दी न तो लिखना आता है और न ही पढना आता हैं , और अंग्रेजी की बात तो बहुत दूर है ! ऐसे में कोई कैसे कह सकता है की उत्तर-प्रदेश में शिक्षा के लिए किये जा रहे कार्य सही दिशा में जा रहा है ! एक तो पहले से ही विद्द्यालयों और महाविद्द्यालयों के शिक्षक गण शिक्षा को व्यवसाय बना दिए हैं अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने के बजाय वो छात्रों को अपने यहाँ पढने के लिए मजबूर कर रहे हैं ! और इसमें निजी विद्द्यालयों की तो बात ही छोड़ दीजिए , निजी विद्द्यालय तो नाच - गाने ही में लिप्त रहते हैं !
कुछ दिनों पहले मैं अपने गाँव से शहर ( इलाहाबाद ) आ रही थी ! जिस रास्ते से मैं आ रही थी उसी रास्ते में मेरे गाँव का प्राथमिक विद्द्यालय मिलता है , जब मैं वहां से गुजर रही थी तो शिक्षक के पद पे नयी - नयी नियुक्ति जिनकी हुयी थी वही कक्षा में पढ़ा रही थी ! जब मैंने देखा तो सहसा मेरे मन में उत्सुक्तापूर्ण विचार आया की क्यों न रुक कर देखा जाये की नयी शिक्षिका महोदया पढ़ाने के लिए क्या - क्या नए - नए तरीके इस्तेमाल करती हैं ! बच्चे बहुत शोर गुल कर रहे थे जिसके कारन मुझे कुछ सुनाई नहीं दे रहा था की वो क्या पढ़ा रही हैं ! लेकिन थोड़ी देर बाद जैसे ही उनकी नजर मेरे ऊपर पड़ी तो वो बच्चों को शांत कराने लगी ! उन्होंने बच्चों से शुर , लय और ताल में एक सवाल पूछा की, पपीता खाया है जी ???? बच्चों ने भी उसी लय और ताल में जवाब दिया की जी ............! तब मैंने सोचा की शायद मैडम पपीता में पाए जाने वाले विटामिन के बारे में बतायेंगी ! उसके लिए मैं थोड़ी देर और रुक गयी ! लेकिन वो उससे आगे बढ़ ही नहीं रहीं थी , फिर उन्होंने बच्चों से एक सवाल और किया और इस बार का सवाल मुझे चौका दिया , उनका सवाल था की किसके - किसके घर पे पपीता का पेड़ है ?? ये सवाल मुझे हजम नहीं हुआ और मुझे शक हुआ की शायद कुछ गड़बड़ है ! फिर मैं कक्षा के दीवार के पीछे छिप कर खड़ी हो गयी और बगल वाली खिड़की से झांक कर देखने लगी तो मैंने देखा की मैडम बाहर निकल कर किसीको ढूंढ़ रही थी , फिर मैं समझ गयी की शायद वो मुझे ढूंढ़ रही हैं थोड़ी देर इधर - उधर देखने के बाद वो बच्चे से एक कुर्सी मंगवा कर बाहर में बैठ कर स्वेटर बुनने लगीं ! ये तो कुछ भी नहीं है , मैं आपको एक और किस्सा बताती हूँ की एक मेरे बहुत दूर की रिश्तेदार इलाहाबाद परीक्षा देने आयीं हुयी थी , उत्तर-प्रदेश सरकार के व्दारा दक्षता परीक्षा ली जा रही थी उसीको देने आयीं हुयीं थी ! जब वो शाम को परीक्षा देने के बाद मेरे घर आयीं तो मेरी सहेली ने पूछा की परीक्षा कैसा गया ?? तो उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया तो मेरी सहेली ने फिर पूछा तो इस बार भी उन्होंने कुछ नहीं बोला ! इसी तरह ३ - ४ बार ये सिलसिला चला लेकिन कोई जवाब नहीं मिला फिर उनके पति देव ने बताया की वो कम सुनती हैं थोडा ऊँचा बोलिए ! इस बार खुद उनके पति देव ने ऊँची आवाज में पूछा तब जाकर उन्होंने अवधी में कहा की " ठीके गेलै " ! अब सोचिये की वो बच्चों को क्या पढ़ाती होंगी , अगर वो किसी बच्चे से पूछती होगी की भारत के प्रधानमंत्री कौन हैं ?? और अगर बच्चे बोले की अखिलेश यादव तो वो तो उसे भी सही कर देंगी ! मेरा मकसद उनका मजाक उड़ाना कतई नहीं है , मुझे मालूम है की वो कुदरत की मार है भगवान न करे की किसी को भी ये सब देखना पड़े ! इस तरह के बहुत सारे ऐसे किस्से हैं , पुरे उत्तर-प्रदेश में यही स्थिति है ! और उपर दिए गए सारे किस्से मेरे आँखों देखि और कानो सुनी है !
मैं कुछ सवाल पूछना चाहती हूँ की जिस आधार पे नियुक्तियां ली जा रही है क्या वो सही है ?? इसके लिए जो पात्रता रखी गयी है क्या वो सही है ?? जितनी भी नियुक्तियां हुयी है उसमे प्रमुख रूप से दो पात्रता है , एक तो कोई टीचर ट्रेनिंग ले रखा हो और दूसरा दसवीं बारहवीं एवं स्नातक में लाये गए प्राप्तांक के प्रतिशत के आधार पे ! लेकिन ये पात्रता मुखिया और शिक्षा पदाधिकारी के तरफ से रखी गयी है ! जो १० - १५ साल पहले टीचर ट्रेनिंग किया हो और उस समय से न तो कलम पकड़ा हो और न ही किताब पलटा हो , क्या वो बच्चे को सही ढंग से पढ़ा पाएंगे ? जो चोरी और पैरवी से बहुत ज्यादा नंबर ले आये हों , क्या वो बच्चे को सही शिक्षा दे पाएंगे ? वो तो खुद जब उस तरीके से पास किये हो तो बच्चे को भी तो वही सिखायेंगे ! और जो टेबल के निचे से काम करवा रहे हो उनकी तो बात ही निराली है ! इनलोगों से ज्यादा पढ़ा लिखा हुआ , इनसे ज्यादा उर्जावान , इनसे ज्यादा अपने काम के प्रति समर्पित युवा दर - दर की ठोकरे खा रहे हैं , या यों कहे की उन्हें मजबूर किया जा रहा है ! और वो भी सिर्फ इसलिए की उनके पास टीचर ट्रेनिंग का प्रमाण - पत्र नहीं है , उनके पास पैसे नहीं है , वो इन्लोग जैसों से कुछ नंबर से पीछे हैं ! ये जो पात्रता राखी गयी है क्या वो सही है ?? क्या ये सरकार का शिक्षा के क्षेत्र में सही कदम है ?
सरकार को फिर से इस पे विचार करना चाहिए ! उच्च शिक्षा के साथ - साथ इन सबो पे भी ध्यान देना होगा , बच्चपन से ही उनके आधार को मजबूत बनाना होगा ! पाठ्यक्रम में बदलाव करने की जरुरत है , क्योंकि सोचिये की, छठी वर्ग के अंग्रेजी में बहुत ही सरल वाक्य पढने को मिलते हैं ,जैसे " यह एक लड़का है " लेकिन सातवीं में लम्बी - लम्बी कठिन कहानी एवं कविता पढने को मिलता है, जिसे बच्चे सही से पढ़ नहीं पाते और समझने की बात तो दूर है ! क्या इसमें बदलाव लाने की जरुरत नहीं है ? इसे पूरी व्यवस्था को बिलकुल बदलने की जरुरत है ! और नियुक्ति के लिए लिखित परीक्षा एवं मौखिक परीक्षा ली जाये ! ताकि सही लोगों का नियुक्ति हो सके ! जिससे शिक्षा के स्तर को उठाया जा सके !
ये लेखक के निजी विचार है! लेखक का परिचय:
Pinki Devi
S. G. P. B. M.,
Awadh University, Faizabad

आखिर क्यों मुझे माँ का आँचल भी नसीब नहीं? मेरे माँ बाप की गरीबी ही क्या मेरा कसूर है? चिरागन का एक सवाल आपसे.. सोचे क्या गरीबी अभिशाप है?

आखिर क्यों मुझे माँ का आँचल भी नसीब नहीं?
मेरे माँ बाप की गरीबी ही क्या मेरा कसूर है?
चिरागन का एक सवाल आपसे.. सोचे क्या गरीबी अभिशाप है? Aakhir kyo mujhe maa ka anchal bhi nasib nahi hota? Mere maa baap ki garibi hi kya mera kasoor hai?

बच्चो के मस्तिष्क का बेहतर विकास

बच्चो के मस्तिष्क के बेहतर विकास के लिए विशेषज्ञों द्वारा सलाह दी जाती है कि बचपन से ही ब्रेन एक्सरसाइज करवाई जाये. ब्रेन एक्सरसाइज ज्यादा थकाने वाला और बोरिंग नहीं होना चाहिए. उसे मजेदार होने के साथ ही उसमें बधे का ज्यादा से ज्यादा इन्वॉल्वमेंट होना भी जरूरी है जिससे उन्हें दिये गये चैलेंजेज को पूरा करने के लिए वे अपने दिमाग का भरपूर इस्तेमाल करें. कुछ तकनीक जिससे बच्चो  के ब्रेन के एक्सरसाइज के साथ ही उनकी संज्ञानात्मक (कॉग्रिटिव) क्षमता भी बढती है. शोध बताते हैं कि बच्चो के ब्रेन का अधिकतम विकास १३ वर्ष की आयु तक हो जाता है. इसलिए हम जितनी जल्दी  बच्चो की मेंटल एक्सरसाइज की शुरुआत करेंगे , सुपर ब्रेन के विकास के उतने ही चांसेस ज्यादा होंगे.  बच्चोमें संज्ञानात्मक कौशल बढाने से उन्हें किसी चीज में फोकस करने में सहायता मिलती है, उनकी सोचने की क्षमता बढती है, वे प्लानिंग और प्राथमिकता के बारे में सीखते हैं, उनकी याद रखने और विजुलाइजेशन की क्षमता बढती है. बच्चो का ब्रेन एक्सरसाइज बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि इसका उनके सोचने और
बिहेवियरल पै टर्न पर लंबे समय तक के लिए असर पडता है.मजेदार एक्टिविटीज और क्रॉर्सवल्ड पजल या स्क्रबल खेलना जैसे क्रासवर्ल्ड को सुलझाना आदि बधे में ध्यान लगाने और सोचने की शक्ति में सहायता करते हैं. इस तरह की एक्टिविटीज से बधों के ब्रेन सेल्स की एक्सरसाइज होती है. मेंटल मैथ सदियों पुरानी तकनीक है मेंटल मैथ. यह मस्तिष्क के लेफ्ट और राइट दोनों ओर के फंक्शंस को इम्प्रूव करता है. यह मस्तिष्क की सोचने की क्षमता बढाने का प्रभावशाली तरीका है. साथ ही मस्तिष्क के फंक्शंस के विकास और उसकी मजबूती भी बढाते हैं. शतरंज शतरंज जैसे खेल उनके मस्तिष्क को स्टीमुलेट करने में सहायता करते हैं. बधों को ध्यान केंद्रित करने और रणनीति सीखाने में इस तरह के खेल बहुत मददगार होते हैं. मेमोरी एक्सरसाइज बहुत कम उम्र से ही मेमोरी एक्सरसाइज की शुरुआत कर देनी चाहिए. इसे आप बधे को उसके नाम की स्पेलिंग याद करवाकर कर सकती हैं. इसके अलावा घर केसदस्यों के नाम, टेलीफोन नंबर याद करवाएं और फिर धीरे-धीरे दूसरी कॉम्प्लेक्स चीजों को याद करवाने की कोशिश करें. नयी भाषा सिखाएं आपके बधे में लैंग्वेज स्किल का विकास होना भी बेहद जरूरी है क्योंकि यह उसके संपूर्ण विकास के लिए जरूरी है. कोई नयी भाषा सीखने से हमारे मस्तिष्क को चुनौती मिलती है और इससे मस्तिष्क की शक्ति भी बढती है. हॉबीज बढायें जब बधे नयी एक्टिविटीज सीखते हैं या उसमें भाग लेते हैं, उस दौरान मस्तिष्क उसे नये चैलेंज के रूप में ग्रहण करता है. यह ब्रेन की एक्टिविटी और उसके फंक्शन में इम्प्रूवमेंट लाता है. हालांकि दिये गये ब्रेन एक्सरसाइज बहुत सीमित है क्योंकि ब्रेन एक्सरसाइज की कोई सीमा नहीं है. बधे को फिजीकल एक्टिविटीज में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करें और पर्याप्त नींद लेने दें. यह उन्हें रिलैक्स होने में सहायता करेगा. साथ ही साथ बच्चो  के साथ मजेदार एक्टिविटीज करना न भूलें और उसे हंसने का खूब मौका दें क्योंकि स्ट्रेस फ्री माइंड और एक्टिव ब्रेन के लिए लाफ्टर सबसे बेहतर टॉनिक माना जाता है. 
ये लेखक के निजी विचार है! लेखक का परिचय:
Mamta Maurya
Home Science Department,
Allahabad University

Thursday, 27 September 2012

एक सवाल आपसे? क्या एक असहाय लड़की को न्याय दिलाना जुर्म है? अभी कुछ देर पहले 9.55pm पर चिरागन संस्था (NGO) के निदेशक जी के पर्सनल मोबाइल पर एक अज्ञात नंबर से दो बार फ़ोन आयाऔर जान से मरवाने की धमकी देने के साथ-साथ उन्हें और संस्था को फर्जी F IR कराके झूठे मुक़दमे में फ़साने की धमकी दी गयी! अगर भविष्य में लड़की को, निदेशक जी को या संस्था को कुछ होता है तो इसके पूरे जिम्मेदार लड़की के परिजन, पुलिश और प्रशाशन होगे. लड़की को न्याय दिलाने के लिए कृपया इशे शेयर करे. A Press note & Apeel by: chiragan ngo

एक सवाल आपसे? क्या एक असहाय लड़की को न्याय दिलाना जुर्म है? अभी कुछ देर पहले 9.55pm पर चिरागन संस्था (NGO) के निदेशक जी के पर्सनल मोबाइल पर एक अज्ञात नंबर से दो बार फ़ोन आयाऔर जान से मरवाने की धमकी देने के साथ-साथ उन्हें और संस्था को फर्जी F
IR कराके झूठे मुक़दमे में फ़साने की धमकी दी गयी! अगर भविष्य में लड़की को, निदेशक जी को या संस्था को कुछ होता है तो इसके पूरे जिम्मेदार लड़की के परिजन, पुलिश और प्रशाशन होगे.
लड़की को न्याय दिलाने के लिए कृपया इशे शेयर करे.

Wednesday, 5 September 2012

News published on 24 august 2012 in I Next Allahabad (Event: Awwa week 2012 organised by Indian army & Chiragan on 23 August 2012)

News published on 24 august 2012 in I Next Allahabad (Event: Awwa week 2012 organised by Indian army & Chiragan on 23 August 2012)

News published on 24 august 2012 in AAJ Allahabad (Event: Awwa week 2012 organised by Indian army & Chiragan on 23 August 2012)

News published on 24 august 2012 in AAJ Allahabad (Event: Awwa week 2012 organised by Indian army & Chiragan on 23 August 2012)

News published on 24 august 2012 in Hindustan Allahabad (Event: Awwa week 2012 organised by Indian army & Chiragan on 23 August 2012)

News published on 24 august 2012 in Hindustan Allahabad (Event: Awwa week 2012 organised by Indian army & Chiragan on 23 August 2012)

News published on 24 august 2012 in Our Leader Allahabad (Event: Awwa week 2012 organised by Indian army & Chiragan on 23 August 2012)

News published on 24 august 2012 in Our Leader Allahabad (Event: Awwa week 2012 organised by Indian army & Chiragan on 23 August 2012)

News published on 24 august 2012 in Jansandesh Times Allahabad (Event: Awwa week 2012 organised by Indian army & Chiragan on 23 August 2012)

News published on 24 august 2012 in Jansandesh Times Allahabad (Event: Awwa week 2012 organised by Indian army & Chiragan on 23 August 2012)

News published on 24 august 2012 in Prayag Raj Times Allahabad (Event: Awwa week 2012 organised by Indian army & Chiragan on 23 August 2012)

News published on 24 august 2012 in Prayag Raj Times Allahabad (Event: Awwa week 2012 organised by Indian army & Chiragan on 23 August 2012)