Tuesday 27 March 2012

कॅरियर और ऑनलाइन वेबसाइट्स (Careert and Online Website)

आज जो समय के साथ कदम ताल कर सकता है, वही कामयाब है। जो इससे जरा सा भी पिछडा, उसको फर्श पर पहुंचते देर नहीं लगती। जिस टेक्नोलॉजी के बूते भारत ने कभी तरक्की का ककहरा सीखने की शुरुआत की थी, आज वही टेक्नोलॉजी देश की कामयाबी के महाग्रंथ रच रही है। केवल देश की तरक्की ही क्यों, रोजमर्रा की जिंदगी में भी इसने अपना मुकम्मल असर छोडा है। ऑफिस, घर, डिपार्टमेंटल स्टोर, स्कूल कॉलेज सभी जगह आईटी आज की जरूरत बन चुकी है। उन्नत आईटी सेवा की बदौलत आज विश्व की प्रमुख परीक्षाओं के साथ-साथ भारत में भी सभी प्रमुख परीक्षाएं ऑनलाइन हो रही हैं। जीमैट, जीआरई, टॉफेल के अलावा कैट, इंजीनियरिंग, लॉ, सीटीईटी सभी परीक्षाएं ऑनलाइन हो चुकी हैं या होने की तैयारी में है। विशेषज्ञों के अनुसार आनेवाले समय में यही एकमात्र परीक्षा का तरीका होगा। यही कारण है कि सभी संस्थान इस नई परीक्षा प्रणाली को लागू कर रहे हैं।
नई जेनरेशन, नई परीक्षा
भारत में ऑनलाइन का प्रचलन तेजी से बढ रहा है। चाहे आपको टिकट की बुकिंग करानी हो, बैंक से पैसे का ट्रांजैक्शन करना हो या फिर चैटिंग करनी हो-ये सभी काम आप आनॅलाइन के माध्यम से कर सकते हैं। इसकी विशेषता को देखते हुए अब ऑनलाइन एग्जाम भी देश की कई परीक्षाओं में शुरू हो गए हैं। सरल शब्दों में कहें तो ऑनलाइन एग्जाम एक नई तकनीक है, जिसमें इंटरनेट की मदद से आप परीक्षा दे सकते हैं। बस इसमें आपके पास लॉग इन आईडी व पासवर्ड की जरूरत होती है, जो सामान्यतय: एडमिनस्ट्रेटर प्रदान करता है। हां तेज नेवीगेशन के लिए आपका कंप्यूटर फै्रंडेली होना जरूरी है। इसमें इतनी आसानी रहती है कि ग्रामीण पृष्ठभूमि के लोग भी इस परीक्षा को आसानी से दे सकते हैं।
कंप्यूटर पर होते हैं एग्जाम

ऑनलाइन एग्जाम के तहत स्टूडेंट्स को परीक्षा देने शहर के किसी खास सेंटर पर जाना होता है, जहां कंप्यूटर खोलने पर उसके सामने प्रश्नों का एक सेट आ जाता है। ये प्रश्न ऑब्जेक्टिव टाइप होते हैं, जिनमें चार उत्तरों में से किसी एक को चुनना होता है। कई बार प्रश्नपत्र के एक से अधिक खंड होते हैं। इनमें से आप अपनी पसंद के अनुसार खंड चुन सकते हैं। सभी प्रश्नों को हल करने के लिए निर्धारित समय-सीमा होती है। यह सीमा खत्म होते ही पेपर अपने आप क्लोज हो जाता है। ऑनलाइन एग्जाम के लिए सेंटर पर इंस्ट्रक्टर उपस्थित होते हैं, जो कोई परेशानी होने पर उसे दूर करते हैं, लेकिन इस तरह का एग्जाम देने के लिए स्टूडेंट्स यदि कंप्यूटर पर पहले से प्रैक्टिस कर लें तो बेहतर होगा।
बेहतर टेक्नोलॉजी, बेहतर रिजल्ट
परीक्षार्थियों की लगातार बढती संख्या के कारण रिटेन एग्जाम लेना कठिन होता जा रहा है। उस पर लगने वाला समय, बढते वित्तीय बोझ के कारण शिक्षा संस्थान व रिक्रू टर दोनों ही पिछले कुछ समय से नए विकल्प की तलाश कर रहे थे। ऑनलाइन एग्जाम इस मामले में उन्हें सटीक ऑप्शन देता है, जहां आप इंटरनेट पर देश-दुनिया के किसी भी संस्थान के लिए इंट्रेस एग्जाम दे सकते हैं, नौकरी के लिए इंटरव्यू दे सकते हैं, सेमेस्टर एग्जाम दे सकते हैं आदि। दूसरी ओर इसका फायदा उन संस्थानों को भी मिल रहा है, जो कर्मचारियों की कमी से जूझ रहे हैं। इसके अलावा समय की बचत, किफायती व सुविधाजनक होने के नाते इन दिनों इसकी लोकप्रियता काफी बढ चुकी है।
जरूरत जैसी, एग्जाम वैसा
ऑनलाइन एग्जाम कई मायनों में फायदों का सबब बन रहा है। देखा जाए तो इसमें संस्थान व स्टूडेंट दोनों को ही काफी सुविधा होती है, क्योंकि इसमें न संस्थान को मुद्रित प्रश्नपत्रों, उत्तर पुस्तिकाओं व बडी संख्या में परीक्षकों की जरूरत होती है और न छात्रों को पेन, पेंसिल, स्केल जैसे संसाधनों की। समय की बचत होती है वो अलग से। इसके साथ इसमें एक अन्य फायदा शीघ्र रिजल्ट प्राप्त होना होता है, जहां पेपर देने के ठीक बाद आप अपना स्कोर जान सकते हैं। इसके अलावा लिखित परीक्षा में जहां एक ही तिथि में देश के विभिन्न केंद्रों पर स्टूडेंट्स के बैठने की व्यवस्था करनी होती है, वहीं ऑनलाइन टेस्ट में प्राय: स्टूडेंट्स के लिए एक ही दिन परीक्षा देने की बाध्यता नहीं होती, क्योंकि प्रश्नपत्रों के बहुत सारे सेट होने के कारण सभी स्टूडेंट्स को एक ही दिन ऑनलाइन टेस्ट नहीं देना होता। इस तरह एक ही तिथि में परीक्षा होने के कारण बडी संख्या में स्टूडेंट्स के लिए सीटिंग अरेंजमेंट की व्यवस्था भी नहीं करनी पडती है। यही कारण है कि प्राय: सभी परीक्षाएं ऑनलाइन हो रही है।
आईटी सेक्टर ने बढाई रौनक
भारत कल तक इस क्षेत्र में दोयम दर्जे की हैसियत रखता था, इस समय हर बीतते साल के साथ वह इस सेक्टर का मंझा हुआ खिलाडी बन चुका है। आज हालात यह हैं कि दुनिया के करीब एक चौथाई कंप्यूटर सॉफ्टवेयर व बीपीओ सेवाएं भारत से ही संचालित हो रही हैं। रोजगार देने में भी पिछले कई सालों से यह सेक्टर अव्वल है। ऑनलाइन जैसी तकनीकी सेवाएं इसी आईटी की बदौलत संभव हुई हैं। आज ऑनलाइन एग्जाम से लेकर बाकी ऑनलाइन सेवाओं में हम तेजी से आगे बढ रहे हैं, उसके पीछे आईटी सेक्टर में हमारी तेज ग्रोथ ही जिम्मेदार है। ऑनलाइन एग्जाम की जिम्मेदारी प्राय: कॉम्प्रिहेंसिव टेस्टिंग ऐंड एसेसमेंट सेवा देने वाली कंपनियों को दी जाती है, जिसमें ईटीएस प्रोमैट्रिक,माइक्रोसॉफ्ट इंडिया, एनआइआइटी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।
प्रमुख एग्जाम हुए ऑनलाइन
देश में आज ऑनलाइन एग्जाम की अहमियत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि राष्ट्रीय व राज्य स्तर पर आयोजित होने वाले कई एग्जाम मसलन, इंजीनिय¨रग, प्रबंधन, बी-एड, लॉ आदि तेजी से ऑनलाइन किए जा रहे हैं। यहां कुछ ऐसीे ही एग्जाम व संस्थान दिए जा रहे हैं, जो ऑनलाइन हो चुके हैं-
अब सीटीईटी भी ऑनलाइन
तकनीक के प्रति युवाओं के बढते रूझान को देखते हुए केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड सीबीएसई ने इंजीनियरिंग में दाखिले के लिए होने वाले ऑल इंडिया इंजीनियरिंग इंट्रेंस एग्जाम एआईईईई के बाद अब सेंट्रल टीचर एलिजिबिलिटी टेस्ट सीटीईटी को भी ऑनलाइन करने की तैयारी कर ली है। बोर्ड ने दोनों ही परीक्षाओं को प्रोफेशनल मानते हुए इन्हें कम्प्यूटर बेस्ड टेस्ट फॉर प्रोफेशनल एंट्रेस एग्जाम पीईई 2012 की श्रेणी में रखा है। पीईई के आयोजन के लिए बोर्ड ने विभिन्न एजेंसियों से आवदेन मांगे हैं, जो इनका सफल संचालन करने में सक्षम हों। गौरतलब है कि सीबीएसई ने वर्ष 2011 में पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर एआईईईई को पेपर टेस्ट के साथ-साथ ऑनलाइन भी आयोजित किया था। अब न सिर्फ इसे विस्तार देने की तैयारी की जा रही है, बल्कि 26 जून को पहली बार आयोजित हुए सीटीईटी को भी बोर्ड ऑनलाइन करने की कोशिश में है। कैट के लिए आवेदन करने वाले छात्रों की संख्या में हर साल करीब 40 हजार की बढोत्तरी हो रही है। ऑनलाइन व्यवस्था शुरू होने से इस परीक्षा में शामिल होने वाले आवेदकों को खासी सुविधा हो गई है। कैट के लिए जीआरई पैटर्न अपनाया गया है। सभी प्रोफेशनल परीक्षा भी ऑनलाइन हो रही है।
टीचर्स के लिए ई-टीचिंग ट्रेनिंग
आईटी क्षेत्र में हुए हालिया बदलावों को देखते हुए कई बडे संस्थान अध्यापकों की ऑनलाइन टीचिंग की व्यवस्था करा रहे हैं। माना यह जा रहा है इससे अध्यापन कार्य बहुआयामी हो सकेगा, जिसका सर्वाधिक लाभ स्टूडेंट्स को मिलेगा। इस कार्य के लिए उन्होंने कई कंपनियों से हाथ मिलाया है। बकौल यूनिवर्सिटी प्राय: सभी टीचर्स को कम्प्यूटर की बेसिक जानकारी तो है, लेकिन ई-टीचिंग की कामयाबी के लिए उन्हें बाकायदा प्रशिक्षण देना भी जरूरी है। ट्रेनिंग के दौरान उन्हें खास तौर पर यह बताया जाता है कि कैसे इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर स्टूडेंट्स को ज्यादा से ज्यादा फोकस करने में मदद करें। इसके कई फायदे भी नजर आ रहे हैं। इसका सबसे ज्यादा फायदा यह हो रहा है कि अब स्टूडेंट्स के साथ टीचर भी टेक्नोसेवी हो गए हैं, जिससे गुणवत्तापूर्ण शिक्षा में बढोत्तरी हो रही है।
आसान है परीक्षा
यह ठीक है कि देश के कई संस्थान अब ऑन लाइन प्रवेश परीक्षा ले रहे हैं तो कई इम्प्लॉयर भी अपने कर्मचारियों के चयन में ऑनलाइन एग्जाम का सहारा ले रहे हैं, लेकिन इससे डरने की जरूरत नहीं है। विशेषज्ञ मानते हैं कि अब तो देश की कई महत्वपूर्ण परीक्षाएं ऑनलाइन हो गई हैं और निकट भविष्य में अन्य परीक्षाएं भी इसी पैटर्न पर आधारित होंगी। इसलिए आवश्यक है कि हर स्टूडेंट ऑनलाइन प्रणाली को अच्छी तरह समझ ले। जो स्टूडेंट्स यह समझते हैं कि उन्हें फिलहाल ऐसी कोई परीक्षा नहीं देनी है, उन्हें भी पहले से इस बारे में सचेत हो जाना चाहिए। वैसे यह परीक्षा बहुत आसान है। अगर आपने कभी कंप्यूटर इस्तेमाल नहीं किया है, तो भी आप इससे एक-दो घंटे में आसानी से परिचित हो सकते हैं। बेहतर होगा कि आप इंटरनेट से प्रैक्टिस सेट लोड कर उसका अधिक से अधिक अभ्यास करें।
करें ऑनलाइन प्रैक्टिस
इन दिनों ऑनलाइन परीक्षाओं में बेहतर प्रदर्शन के लिए मॉडल टेस्ट पेपर उपलब्ध हैं, जहां आप एकदम ऑनलाइन एग्जाम जैसी कंडीशन्स में मॉक टेस्ट दे सकते हैं। वे लोग जो ज्यादा कंप्यूटर सेवी नहीं है, उनके लिए ये टेस्ट और भी कारगर हैं। ऐसी कई वेबसाइट्स हैं जहां आपको विभिन्न कंपटिटिव एग्जाम के साथ सीबीएसई (पीसीएम, एसएसटी), जेएनयू, डीयू इंट्रेस के कई मॉडल टेस्ट पेपर हल करने को मिलते हैं। इन साइट्स में
www.wiziq.com
www.tcyonline.com
www.jumbotests.com
आदि प्रमुख हैं।
भाषा सिखाने वाली प्रमुख ऑनलाइन वेबसाइट्स
ऑनलाइन स्पेनिश के लिए वेबसाइट
21 देशों की ऑफिशियल भाषा स्पेनिश का काफी क्रेज है। यह यूरोपीय यूनियन की ऑफिशियल भाषा होने के अलावा संयुक्त राष्ट्रसंघ की आधिकारिक भाषाओं में शामिल है। अगर आप भी इस भाषा को सीखना चाहते हैं, तो भारत में इससे संबंधित कई तरह के कोर्स उपलब्ध हैं। अगर आप किसी कारणवश कॉलेज नहीं जा सकते हैं, लेकिन घर बैठे ही स्पेनिश भाषा बोलना और लिखना सीखना चाहते हैं, तो आप इंटरनेट के माध्यम से इस भाषा को आसानी से सीख सकते हैं। इस भाषा को सिखाने के लिए कई वेबसाइट्स उपलब्ध हैं। इनमें से कुछ पैसे लेकर सिखाती हैं, तो कुछ पर बिना पैसे के आप सीख सकते हैं।
www.studyspanish.com
www.studyspanishonline.org
ऐसी साइट्स हैं, जो आपको ऑनलाइन स्पेनिश सीखने में मदद करती हैं।
अगर सीखनी हो ऑनलाइन अंग्रेजी
अंग्रेजी विश्व की प्राय: सभी देशों में बोली और समझी जाने वाली महत्वपूर्ण भाषा है। अगर अंग्रेजी की बेहतर समझ है, तो आप विश्व के किसी भी कोने में रह सकते हैं और लोगों को अपनी बात बता सकते हैं। भारत में अंग्रेजी का क्रेज सिर चढकर बोल रहा है। कंप्यूटर की अच्छी समझ और बेहतर अंग्रेजी के ज्ञान की बदौलत भारतीय आईटी इंजीनियर प्रमुख कंपनियों की पहली पसंद हैं। यदि आप भी ऑॅनलाइन के माध्यम से अंग्रेजी लिखना और बोलना चाहते हैं, तो आप घर बैठे वेबसाइट के माध्यम से इसका लाभ उठा सकते हैं। वैसे तो अंग्रेजी भाषा सिखाने के लिए कई ऑनलाइन वेबसाइट्स हैं, लेकिन http://learnenglish.britishcouncil.org/en/
www.englishlink.com
वेबसाइट्स के माध्यम से आप अंग्रेजी आसानी से बोलने के साथ लिखना भी सीख सकते हैं।
सीखें फ्रैंच ऑनलाइन
विदेश में ऑनलाइन का प्रचलन काफी वर्षो से है। वहां की प्राय: सभी परीक्षाएं ऑनलाइन होती हैं। ऑनलाइन एग्जाम के जरिए आप प्रोफेशनल कोर्सेज व संस्थानों में तो इंट्री ले ही सकते हैं, साथ ही घर बैठे तरह-तरह की विदेशी भाषाएं भी सीख सकते हैं। यदि आप फॉरेन लैंग्वेज सीखने के इच्छुक हैं तो भी ऑनलाइन लर्रि्नग आपको कई विकल्प सुझाती है।
www.clickonfrench.com
एक ऐसी साइट है, जो आपको ऑनलाइन फ्रैंच सीखने में मदद करती है। गौरतलब है कि आज फ्रैंच दुनिया की दूसरी सबसे ज्यादा पढी व समझी जाने वाली भाषा है। खुद भारत में 3000 से ज्यादा फ्रै च कंपनियां काम कर रही हैं। ऐसे में ऑनलाइन फ्रैंच भाषा सीख कर आप खुद के लिए इस दिशा में एक कॅरियर विकल्प जरूर बना सकते हैं। इसके अलावा आप ऑनलाइन के माध्यम से अंग्रेजी भी सीख सकते हैं। इस प्रकार आप घर बैठे ही फ्रैंच सीख सकते हैं।
ध्यान रखने वाली बातें
अगर अपना कंप्यूटर व इंटरनेट कनेक्शन है, तो उस पर संबंधित विषयों के प्रैक्टिस सेट डाउनलोड करके उन्हें हल करने का बार-बार अभ्यास करें। ऐसे कई सेट विभिन्न साइटों से मुफ्त मिल सकते हैं। ल्ल अगर आपके पास अपना कम्प्यूटर व नेट कनेक्शन नहीं है, तो आप नजदीक के किसी साइबर कैफे में जाकर वहां इंटरनेट का इस्तेमाल कर सकते हैं।
वे लोग जो पहली बार ऑनलाइन पेपर दे रहे हैं, हो सकता है कि उनको यह टेस्ट देने में कठिनाई हो। ऐसे में इससे परिचित होने के लिए कंप्यूटर पर प्रैक्टिस जरूर करनी चाहिए, अन्यथा स्टूडेंट्स का प्रदर्शन 20 से 25 फीसदी तक प्रभावित हो सकता है।
पहले अपने विषयों को कंपलीट करें और उसके बाद कंप्यूटर पर अभ्यास करें, क्योंकि ऑनलाइन टेस्ट में पूछे जाने वाले प्रश्न पहले की तरह आपके कोर्स पर ही आधारित होंगे।

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छोटी-छोटी पूंजी के सहारे किस्मत संवारे (Set your life with Small Money)

छोटी-छोटी पूंजी के सहारे अभावग्रस्त व्यक्ति को अपने पैरों पर खडा करना माइक्रोफाइनेंस है। इनके दायरे में छोर्ट आय वाले वे सभी व्यक्ति होते हैं, जिनको अपना व्यवसाय चलाने के लिए मामूली रकम की दरकार होती है। दरअसल, इन लोगों को बैंक से छोटी रकम लेना मुश्किल होता है। इसलिए माइक्रोफाइनेंस संस्था ऐसे लोगों को पहचानकर कर्ज के रूप में ऋण देने के अलावा प्रशिक्षण भी देती है। आज देश की प्रतिव्यक्ति आय लगातार बढ रही है, कुल जीडीपी मूल्य के मामले में हम 45 लाख करोड का आंकडा पार करने वाले दुनिया क ी 12 अर्थव्यवस्थाओं में शामिल हो गए हैं, लेकिन देश में गरीबी कम नहीं हो रही है। देश की समृद्धि का सबसे बडा श्चोत मानी जाने वाली कृषि, युवाओं को आकर्षित कर पाने में विफल है। यहां माइक्रोफाइनेंस इस प्रश्न का सबसे मुफीद जवाब बन सकता है। माइक्रोफाइनेंस आज इन्हीं वित्तीय निर्णयों की मजबूत जमीन तैयार कर रहा है। अगर इस मॉडल को वृहद स्तर पर अपनाया जाता है, तो देश में गरीबी कम करने के साथ इससे जुडे लोगों का कॅरियर भी संवारा जा सकता है।
छोटे ऋण, बडे ख्वाब
आज माइक्रोफाइनेंस आम आदमी की आर्थिक बेहतरी का सबसे अच्छा विकल्प बन रहा है। यही कारण है कि सरकार भी इस दिशा में प्रयासरत है और अनेक तरह की सुविधाएं भी प्रदान कर रही है। यह ठीक है कि भारत के लिए यह कांसेप्ट नया है लेकिन लोन रिपेमेंट लेवल, एंटरपे्रन्योरशिप, सोशल एंटरप्रेन्योरशिप आदि में इसकी कामयाब भूमिका देखते हुए इसे तेजी से प्रमोट किया जा रहा है। इस कार्यक्रम के तहत न केवल टारगेट ग्रुप को लोन सब्सिडी प्रदान की जाती है, बल्कि एनजीओ, सेल्फ हेल्प गु्रप (एसएचजी) आदि के माध्यम से उपयुक्तप्रशिक्षण भी दिया जाता है। इन प्रशिक्षण कार्यक्रमों में इंटरप्रेन्योर डेवलेपमेंट प्रोग्राम (इडीआई) स्मॉल इंडस्ट्री सर्विसेज इंस्टीट्यूट (एसआईएसआई), सिडबी, नाबार्ड आदि कारगर भूमिका में होते हैं। ऐसे में यदि आपके पास एक अच्छी योजना व उसे क्रियान्वित करने की क्षमता है तो यकीन मानिए इंटरप्रेन्योरशिप का यह क्षेत्र आपके कॅरियर का ब्रेकथ्रू प्वाइंट बन सकता है। जरूरत है, तो बस स्किल पहचाने की।
गरीब आदमी, बेहतर उद्यमी
1976 में बांग्लादेश के चिटगांव यूनिवर्सिटी में पढाने वाले युवा प्रोफेसर मोहम्मद युनूस ने अपने कमाई से 27 डॉलर जरूरतमंद कारीगरों को ऋण के तौर पर दिए। उद्देश्य था आर्थिक तंगहाली से जूझ रहे इन लोगों के काम को गति देना। इन लोगों ने भी युनूस को निराश नहीं किया। उनका धंधा तो चमका ही साथ ही युवा प्रोफेसर को गरीब आदमी बेहतर उद्यमी होता है, यदि उसे आर्थिक सहूलियतें मुहैया कराईजाएं तो वह एक ईमानदार ऋण ग्राहक साबित होता है। का परिवर्तनकारी विचार भी मिला। पूरे माइक्रोफाइनेसिंग की धारणा इसी विचार पर टिकी है, जिसके सहारे आज बांग्लादेश ही नहीं, दुनिया के कई लाख परिवार पूरे स्वाभिमान के साथ अपने पैरों पर खडे हैं। इसकी कामयाबी का अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैंकि अकेले बांग्लादेश में ही 5.3 मिलियन लोग (ग्रामीण बैंक के माध्यम से) इस थ्योरी के सहारे अपनी जिंदगी संवार रहे हैं। भारत में भी यह सेक्टर युवाओं में आशा का संचार कर रहा है।
 
विजन से मिलता है लोन
यदि आपकेभीतर एक विजन है, लेकिन आर्थिक परिस्थितियां आपके पक्ष में नहीं हैं तो चिंता की जरूरत नहीं है। माइक्रोक्रेडिट यहां आपकी परेशानियों का हल है। आज इस क्षेत्र में कईक्रियान्वयन एजेसियां मसलन जिला ग्राम विकास अभिकरण, जिला शहरी विकास अभिकरण, खंड विकास कार्यालय पूरे देश में कार्यरत हैं, जो इंडीविजुअल व ग्रुप फ ाइनेंस की व्यवस्था करते हैं, लेकिन इसके लिए पहले आपको इन एजेसियों को अपनी योजना व उसकी रूपरेखा बतानी होगी। उसके बाद ये संस्थाएं आपके प्रोजेक्ट को निकटवर्ती बैंकों में प्रेषित करती हैं। जहां बैंक आपकी गतिविधि व उत्पादकता का अनुमान लगा आसान किस्तों पर ऋण उपलब्ध कराती है। यही नहीं इस दौरान आपको मिलने वाली सब्सिडी (अनुदान) को ऋण के साथ समायोजित किया जाता है।
सेवा के साथ कॅरियर भी
माइक्रोफाइनेंस आज व्यवसायिक सुविधाओं के अलावा सामाजिक उत्थान के क्षेत्र में भी अपना दायरा बढा रहा है। देश की कई सामजिक संस्थाएं इसकी ही मदद से समस्याओं व जनहित के मुद्दों की ओर फोकस कर रही हैं। इंटरवेंशन विद माइक्रोफाइनेंस फॉर एड्स एंड जेंडर एक्विलिटी (आइएमएजीइ) एक ऐसा ही इंटरवेंशन है, जो माइक्रोफाइनेंस सुविधाओं की मदद से दुनिया के कई हिस्सों में एड्स जागरूकता से लेकर महिला सशक्तीकरण जैसे कई कार्यक्रम चला रहा है। इन कार्यक्रमों में सिस्टर फॉर लाइफसबसे महत्वपूर्णहै। इस इंटरवेंशन में ऐसे समर्पित युवाओं का चयन किया जाता है जो पीडित मानवता के लिए काम करने को तत्पर हों। इस कार्यक्रम के प्रथम चरण में इन युवाओं के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। बाद में इन्हीं लोगों को अलग-अलग शहरों के प्रमुख सेंटर में भेज सुधार कार्यक्रमों को गति दी जाती है। देखा जा रहा हैकि आज जनसंख्या दबाव व तेजी से होते मशीनीकरण के चलते बेरोजगारी बडा संकट बन चुकी है। यह संकट उस वर्ग के लिए और भी विपदाकारी है, जो आर्थिक रूप से विपन्न है।
माइक्रोक्रेडिट, इस वर्ग को कई उम्दा विकल्प देती है। असल में माइक्रोक्रेडिट, फाइनेंसिंग की एक ऐसी धारणा है, जिसमें निम्न आय वर्ग के लोगों को व्यैक्तिक या समूह में आय अर्जन की गतिविधयों के लिए ऋण प्रदान किया जाता है। चूंकि यह ऋण आकार में छोटा होता है। इसलिए इसे माइक्रोफाइनेंस कहा जाता है। इन ऋणों के साथ सब्सिडी का भी प्रावधान होता है।
किस्मत संवारते कोर्सेज
देश में माइक्रफाइनेंस सेक्टर तेजी से बढ रहा है। उस लिहाज से अभी भी योग्य लोगों की कमी है। इस बीच बडी संख्या में सरकारी व प्राइवेट प्रोफेशेनल संस्थान माइक्रोफाइनेंसिंग के क्षेत्र में नए-नए कोसर्ेज के साथ प्रवेश कर रहे हैं। इसमे कई शॉर्ट टर्म ट्रेनिंग लेवल प्रोग्राम हैं तो कुछ डिग्री लेवल कोर्सेज (एमबीए) भी हैं। तो ग्राम, ब्लॉक, जिला स्तर पर भी स्वरोजगार कें द्रित प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाएं जा रहे हैं। इसके अलावा रूरल डेवलेपमेंट, रूरल मैनेजमेंट संस्थानों में भी इससे संबधित कार्यक्रम संचालित किए जाते हैं।
ग्रुप ग्रेडिंग करे राह आसान
समूह बनाकर फाइनेंस देने का प्रचलन पिछले दस सालों में प्रचलन में आया है, जिसमें ग्रामीण व नगरीय क्षेत्रों के लोगों के (10 से 20) समूह बनाए जाते हैं। इस समूह को बचत करना व पारस्परिक उधार लेनदेन आदि के गुण सिखाए जाते हैं। उसके बाद उस ग्रुप की समूह ग्रेडिंग की जाती है, जिसमें कुछ प्रश्नावलियों के माध्यम से उस समूह की एप्रोच देखी जाती है। (इन क्वैश्चनेयर में सफलता के लिए ग्रुप को न्यूनतम 60 फीसदी अंक लाने पडते हैं)। तत्पश्चात ही किसी वित्तीय संस्थान से उन्हें सामूहिक लाभार्जन गतिविधियों के लिए लोन मिलता है। इस दौरान समूह की गतिविधियों पर उक्त एजेसियां न केवल नजर रखती हैं बल्कि उन्हें समय-समय पर मार्गदर्शन भी देती हैं। अब तो इन एजेंसियों के साथ कई एनजीओ भी ऋण दिलवाने के काम में विशेष प्रयास कर रहे हैं।
जहां पगडंडियां लेती हैं हाईवे की शक्ल
स्वरोजगार के साथ ही सामाजिक प्रतिष्ठा दिलानेवाला क्षेत्र है माइक्रोफाइनेंस। यदि आप भी समाजिक परिवर्तनों की श्रृंखला में अपना योगदान देने चाहते तो इससे बेहतर क्षेत्र कोई नहीं है .. इन दिनों माइक्रोफाइनेंस के क्षेत्र में आएबूम के चलते यहां कॅरियर की कई पगडंडियां बडे रास्तों का रूप ले चुके हैं। आंकडे बताते हैं कि आज देश में 10 करोड जरूरतमंद परिवार ऐसे हैं, जिनको माइक्रोफाइनेंस की आवश्यकता है। तो वहीं तमाम सरकारी, गैर सरकारी प्रयासों के बावजूद अभी भी केवल देश के 10 फीसदी लोगों तक ही इसकी पहुंच बन पाई है।
प्राइवेट सेक्टर: पहल से बनती पहचान
माइक्रोफाइनेंस आज की तारीख में देश में आर्थिक सामाजिक बदलावों का अहम टूल बन कर उभरा है। इसकी सबसे बडी खासियत यही है कि यहां किसी भी व्यक्ति को शुरुआत करने के लिए फंड की नहीं बल्कि विशिष्ट सोच की दरकार होती है, जिसके सहारे आप आसानी से फंड के हकदार बन सकते हैं। वैसे भी सरकारी के साथ प्राइवेट सेक्टर भी इन दिनों माइक्रोफाइनेंस क्षेत्र में लोगों की वित्तीय जरूरतें पूरी करने के लिए आगे आ रहे हैं। खुद देश में पिछले कुछ समय में नॉन बैकिंग फाइनेंस कं पनी, एनजीओ, एमएफआई (माइक्रोफाइनेंस इंस्टीट्यूट) की संख्या तेजी से बढी है। ये संस्थान आज अपने प्रयासों से देश में जमीनी स्तर पर बदलाव के साथ, युवाओं को अवसरों की सौगात भी दे रहे हैं।
सरकारी क्षेत्र: बढी जागरूकता, बढे अवसर
दुनिया में माइक्रोक्रेडिट कॉन्सेप्ट को पॉपुलर बनाने वाले बांग्लादेश के मोहम्मद यूनिस का एक कथन काफी चचिर्त है जिसके अनुसार गरीब आदमी की स्थिति घने जंगल में उस बोनसाई पौधे की तरह होती है जो धूप पानी जैसे मौलिक संसाधनों के अभाव के कारण ग्रोथ नहीं पा पाता। ठीक उसी तरह समाज के अभावग्रस्त लोग भी संसाधनों तक पहुंच न हो पाने के चलते अपेक्षित ग्रोथ से दूर ही रह जाते हैं। आज गवर्नमेंट सेक्टर, गरीबों व संसाधनों के बीच इसीअंतर को पाटने में लगा है।
सेल्फ इंप्लॉयमेंट: सेल्फ मेड मैन बनने की राह
अपनी किस्मत अपने हाथ लिखने वालों के लिए माइक्रोक्रेडिट सेक्टर बहुत कुछ ऑफर करता है। वैसे भी फाइनेंसिंग के इस प्रारूप का मूल उद्देश्य स्वरोजगार को ही बढावा देना है। उस पर तेजी से बढती अर्थव्यवस्था के बीच सरकार भी इस क्षेत्र में (स्वरोजगार) रूचि दिखा रही है। अपने इन्हीं प्रयासों की कडी में आज सरकार, देश में वित्तीय संसाधन मुहैया कराने वाले संस्थानों की पूरी श्रृंखला खडी कर रही है।ं जिनकी मौजूदगी मेंआप एग्रीकल्चर, बी कीपिंग, ग्रॉसरी, डेयरी, हार्टीकल्चर, पौल्ट्री, जैसे क्षेत्रों में अवसर तलाश सकते हैं। ग्रामीण, कस्बाई क्षेत्रों में तो ये कार्यक्रम नए सामाजिक, आर्थिक परिवर्तनों के वाहक बन रहे हैं।
महिलाएं : फ्रंट रनर
महिलाओं के लिए इस फील्ड में अवसर बेहतर हुए हैं। सरकार भी आज इस तरह की लोन सुविधाओं के लिए महिलाओं को मुख्य टारगेट ग्रुप मानती है। इसके पीछे प्रमुख कारण सामाजिक परिवर्तनों में उनकी कारगर भूमिका के साथ वित्तीय विश्वसनीयता भी है। कई अध्ययनों से यह चीज सामने भी आई हैकि महिलाएं कर्ज राशि के इस्तेमाल में अपने पुरुष समकक्षों से ज्यादा जिम्मेदार होती हैं। पिछले कुछ सालों के लोन रिपेमेंट आंकडे ही उठाएं तो यह स्थिति साफहोजाती है।
पायनियर्स ऑफ वेलफेयर इकोनॉमी
अगर आप जनकल्याण के बारे में सोचते हैं और इस सोच को जमीनी रूप देने के लिए प्रतिबद्ध हैं, तो आप भी कल के यूनिस या अकूला बन सकते हैं..
आज बहुत से युवा हैं, जिनका दुनिया में सकारात्मक बदलाव व विपन्न तबके की खुाशहाली लक्ष्य है। मोहम्मद युनूस से लेकर विक्रम आकूला तक बहुत से लोग इस फेरहिस्त में हैं। मोहम्मद युनूस- एक सोच ने किया कमाल
एक सामान्य सी सोच को यदि बेहतर दिशा मिले तो वह क्या क माल कर सकती है, कोईबांग्लादेश के मोहम्मद युनूस से सीखे।जी हां, एक कॉलेज के प्रोफेसर के तौर पर कुछ लोगों की मदद से शुरू हुआ, उनका अभियान आज एक विचार की शक्ल ले चुका है, जिससे आज दुनिया के करोडों लोग लाभान्वित हो रहे हैं। माइक्रोफाइनेंसिंग के उनके विचार का उद्देश्य उन लेागों को वित्तीय मदद पहुंचाना था, जो भीषण गरीबी के कारण पारंपरिक बैंकों की नजरों से ओझल रहते हैं। अपने इस विचार को परखने के लिए उन्होंने सर्वप्रथम समाज के कमजोर तबके से आने वाले लोगों, कारीगरों, मामूली व्यवसाइयों, दस्तकारों आदि को बैंक लोन दिलाने में गारंटर बनना शुारू किया, जिसके आश्चर्यजनक फायदे देखने को मिले। 1983 में उनके ये प्रयास, बांग्लादेश ग्रामीण बैंक के रूप में सामने आए और 2006 में उन्हें अर्थशास्त्र के नोबेल प्राइज से नवाजा गया।
विक्रम अकूला- नाम ही ब्रांड हैं
देश में गरीबी, आर्थिक तंगहाली ने आंध्रप्रदेश के विक्रम अकूला को इस दिशा में सोचने को मजबूर किया। उन्होंने सर्वप्रथम देश के अभावग्रस्त क्षेत्रों से आने वाली गरीब महिलाओं को दस्तकारी, बुनाई, कताई, पशुापालन जैसे कामों के लिए फाइनेंस करना प्रारंभ किया। बेहतर रिपेंमेंट रेट व उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार ने उन्हें इस क्षेत्र में आगे बढने के लिए प्रेरित किया। 1997 में उन्होंने एक नॉन प्रॉफिट ऑर्गेनाइजेशन एसकेएस माइक्रोफाइनेंस की स्थापना की। आज इसकी कामयाबी का अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि यह देश के 22 प्रदेशों के करीब 70 लाख परिवारों तक पहुंच बना चुका है व इस दौरान दी गई 5 बिलियन डॉलर की कर्ज राशि यहां लेागों की आर्थिक सेहत संवार रही है।
सीके प्रहलाद- फोकस निचले तबके पर
जब भी आम संसाधनों की गरीब आदमी तक पुहंच की बात आएगी, अर्थशास्त्री सीके प्रहलाद का नाम जरूर लिया जाएगा। अपनी पुस्तक द फॉरच्यून एट द बॉटम आफपिरामिड में वे गरीबी निवारण का एक बिजनेस मॉडल सामने लाते हैं, जिसका मकसद समाजिक पिरामिड के सबसे निचले हिस्से तक वस्तुओं व सेवाओं की आमद बढाना है। अक्सर देखा जाता हैकि सरकारें समाज के अभावहीन वर्ग तक केवल जीवन की जरूरी चीजें पहुुंचना ही क‌र्त्तव्य समझती है, लेकिन जहां बात लग्जरी व सेवाओं की आती है, तो वे इससे दूर हटते नजर आती है। इस बिजनेस मॉडल में इन्हीं लोगों को टारगेट ग्रुप माना गया है। आज दुनिया की कई बडी कंपनियां उनके इसी मॉडल पर चल गरीब से गरीब आदमी तक अपनी सेवाएं, उत्पाद तो पहुंचा ही रहे हैं, साथ ही ग्रोथ की इबारत भी लिख रही हैं।
आम‌र्त्य सेन- मदर टेरेसा ऑफ इकोनॉमिक्स
अभी तक ज्यादातर अर्थशास्त्री इकोॉमिक के गूढ नियमों व गतिविधयों के बारे में ही फोकस किया करते थे, लेकिन आम‌र्त्य सेन इस लिहाज सें अलग है। उन्होंने वेलफेयर इकोनॉमी के पुरानी अवधारणा को प्रासांगिक बनाया व हूमेन डेवलपमेंट थ्योरी, फूड सेक्योरटी जैसे मुद्दों को अर्थशास्त्र की भाषा दी। उनकी अनेक थ्योरियों में सोशल च्वाइसेज सबसे महत्वपूर्णसमझी जाती है। नोबेल प्राइज विजेता सेन को अर्थशास्त्र का मदर टेरेसा कहा जाता है। उनके प्रभाव का अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि आज दुनिया की कईइकोनॉमी इनवर्टेड पिरामिड की अवधारणा (जिसमें समाज के सबसे निचले तबको को सबसे ऊपर रखा जाता है।)को अमल में ला रहे हैं।

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मां के बनाए खाने.....

सत्तर के दशक की चर्चित बॉलिवुड फिल्म दीवार में दो भाइयों के बीच का एक संवाद बड़ा मशहूर हुआ था, जिसमें एक भाई कहता है, मेरे पास दौलत है, बंगला है, गाड़ी है, तुम्हारे पास क्या है? और इसके जवाब में दूसरा भाई कहता है, मेरे पास मां है। मां के साथ रहने के कई फायदों में से एक फायदा तो यह है कि उसके हाथ का स्वादिष्ट खाना खाने को मिलता है। अपने देश के अधिकांश मर्दों को अपनी मां के हाथ के खाने के आगे सब कुछ फीका ही लगता है। शायद इसके पीछे कोई मनोवैज्ञानिक कारण हो।

मुमकिन है खाने के स्वाद से ज्यादा अहम हो उसे बनाने या परोसने वाले की भावना। लेकिन हाल के एक रिसर्च में पता चला है कि ब्रिटेन के पुरुष भी इस मामले में भारतीय पुरुषों से अलग नहीं हैं। वे पत्नी या गर्लफ्रेंड के बनाए व्यंजनों से कहीं ज्यादा अपनी मां के बनाए खाने को पसंद करते हैं। एक इंटरटेनमेंट चैनल 'फूड नेटवर्क यूके' ने 2000 पुरुषों पर एक सर्वेक्षण किया, जिसमें एक चौथाई लोगों ने स्वीकार किया कि वे अपनी पत्नी को बताए बगैर चुपके से अपनी मां के पास खाना खाने पहुंच जाते हैं। हालांकि इनका अपनी पत्नी से मधुर संबंध रहा है। इसमें एक और दिलचस्प बात का पता चला।

मांएं शायद ही कभी पहले से तैयार खाना अपने बेटे को खिलाती हैं, जबकि ज्यादातर पत्नियां फ्रिज में रखी चीजों को ही माइक्रोवेव में गर्म करके फिर से परोस देती हैं। असल में उनका बहुत सारा समय दफ्तर और बच्चों की देखरेख में निकल जाता है, इसलिए वे खाने को अपने हिसाब से मैनेज करती हैं। सर्वेक्षण में कई लोगों ने बताया कि उन्होंने अपनी मां से रेसिपी लेकर अपनी पत्नी को दी है। लेकिन कई पत्नियों को अपनी सास की रेसिपी लेना पसंद नहीं आया। कई बार तो खाने की वजह से पति-पत्नी में खटपट भी हो जाती है।

काश, उन पत्नियों ने यह हिंदुस्तानी मुहावरा सुना होता कि मर्दों के दिल का रास्ता पेट से होकर ही जाता है। इसलिए समझदार पत्नियां पति को प्रसन्न करने के लिए उस दिन कुकिंग पर खास ध्यान देती हैं। पर बेेटे के साथ उनका रिश्ता कुछ अलग ही होता है, क्योंकि वे उसकी हरेक आदत को उसके जन्म से ही देखती हैं। इसीलिए उनका बनाया खाना बड़े होने पर भी बच्चे को एक अलग तरह का आस्वाद देता है। 


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Wednesday 21 March 2012

A Short notes on Japanese Encephalitis (Dimagi Bukhar)

Japanese Encephalitis (JE) is an illness caused by infection with a flavivirus that belongs to the family Flaviviridae. This virus is a part of a group of viruses known as arboviruses that are spread by arthropods (mosquitoes or ticks).
The JE virus is carried by a variety of different mosquitoes, but not all. Mosquitoes spread the virus between humans and animals, and Culex annulirostris.
People can be infected with the JE virus and may have asymptomatic infections (not feel sick).
Symptoms include very severe headaches, fever, tremors, convulsions, paralysis and coma. Some patients may have neck stiffness and sleepiness. Severe cases may go from confusion to delirium to coma.
In horses the virus causes encephalitis, and in pigs it causes still births. 
japanese encephalitis Dimagi bukhar life cycle by chiragan

japanese encephalitis Dimagi bukhar life cycle by chiragan

japanese encephalitis Dimagi bukhar life cycle by chiragan

Japanese encephalitis is diagnosed by doing laboratory tests on blood samples to find either the virus or the antibodies that are produced by the body as a reaction to the virus.
The JE virus is spread by mosquitoes, and people may be infected when bitten by a mosquito carrying the virus. Mothers can also pass on the virus to their unborn baby, which causes still births.
The lifecycle of the JE virus involves mosquitoes, vertebrate animals and water birds.
Adult female mosquitoes need blood to develop their egg batches, and can become infected with the virus when feeding on the blood of an infected animal.The virus then multiplies inside the saliva glands of infected females, which inject the virus into animals or humans they later feed on.
Pigs and wild waterbirds are important hosts for the virus, because it can multiply to very high levels in their blood. This increases the chances of mosquitoes being infected when feeding on them.
The virus is not transmitted from person to person, and a mosquito remains infected f
Children younger than 15 years are most at risk of having a severe illness, and the JE mortality rate is highest in children aged 5-9 years. 

How do we prevent it from occurring?

Community education on the disease, and how it is spread, is the main method for reducing the occurrence of JE. Education programs should highlight the importance of reducing mosquito populations and avoiding being bitten. Preventative measures discussed may include:
  • Removing mosquito-breeding sites from around communities. Sites include blocked roof gutters, pot plant drip trays, and any containers that may hold water after rain (tins, tyres or jars).
  • Keeping swimming pools full and well maintained, and fishponds stocked with fish to stop mosquitoes breeding in them.
  • Screening septic tank vents and rainwater tanks, and flushing unused toilets once a week to stop mosquitoes breeding in them.
  • Screening living areas, and using mosquito bed-nets to keep out mosquitoes. Mosquito coils and mats can be used to kill adult mosquitoes in the home.
  • Avoiding being outside in areas where mosquitoes are present just before sunset or sunrise, and for 2 hours after, because this is when they are most active.
  • Wearing loose light-coloured long-sleeved shirts and long trousers, socks and covered footwear to prevent being bitten by mosquitoes. Clothing can be sprayed with mosquito repellents for further protection.
  • Using insect repellents in areas where mosquitoes are active. Repellents containing 20-30% diethyl toluaminde (DEET) offer the best protection. However, they should not be used on small children. Repellents containing around 6% DEET are available, which are registered for use on kids. Repellents need to be applied every 4 hours.
  • Sleeping under mosquito nets, because repellents do not last all night long. 
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जापानी बुखार का कहर और सावधानी

जापानी बुखार हालांकि बहुत खतरनाक है और इसके लिए कोई पुख्ता इलाज भी नहीं है लेकिन यदि थोड़ी सी सावधानी बरती जाएं तो निश्चित रूप से जापानी बुखार से निजात पाई जा सकती है। जापानी बुखार कहने को अभी बहुत अधिक नहीं फैला है लेकिन इस वायरस के फैलने की उम्मीदें लगातार बनी हुई हैं। इसीलिए आप डरने के बजाय सावधानी बरतेंगे तो बेहतर है।

दरअसल जिन 17 सुअरों के रक्‍त में जापानी इंसेफ्लाइटिस वायरस की पुष्टि हुई है वह रिपोर्ट नई नहीं है यानी इन सुअरों के रक्त का सैंपल सितंबर में लिया गया था जबकि इसके नतीजे नवंबर में सामने आए हैं जो कि खतरे की घंटी है।
japanese encephalitis Dimagi bukhar life cycle by chiragan
गौरतलब है कि सितंबर में दिल्ली में ही चार मरीज जापानी बुखार से पीडि़त थे जिसके बाद सुअरों के रक्त की जांच की गई और वह रिपोर्ट अक्तूबर के अंत तक आई जिसे 27 नवंबर को रिलीज किया गया और सार्वजनिक तौर पर इस रिपोर्ट को 15 दिसंबर को रिलीज किया गया। खुशी की बात है कि फिलहाल जापानी इंसेफ्लाइटिस वायरस से पीडि़त कोई मरीज नहीं है, ना ही इसका कोई संभावित मरीज भी है। लेकिन परेशानी की बात ये है कि दिमागी बुखार या जापानी बुखार का कहर अगले साल के सिंतबर के आसपास अपना कहर बरपा सकता है।

इस बात का सीधा नतीजा ये निकलता है कि राजधानी में अभी जापानी बुखार का मंडरा रहा खतरा कम हो गया है लेकिन फिर भी आपको जागरूक होने की बेहद जरूरत है।

दरअसल, सर्दियों में मच्छर जनित बीमारियां कम ही होती हैं लेकिन गर्मियों में मच्छरों की अधिकता के कारण कई तरह की बीमारियां भी हो जाती है। इस बाबत जनस्‍वास्‍थ्‍य विभाग के कर्त्ताधर्ताओं का कहना है कि जापानी बुखार से संबंधित रिपोर्ट जारी कर लोगों को डराना नहीं बल्कि चेताना था और जागरूक करना था कि जापानी बुखार के वायरस सूअर के माध्यम से हो सकता है जिससे वे समय से पहले सावधानी बरतें। हालांकि जापानी बुखार एक मरीज से दूसरे मरीज में नहीं फैलता लेकिन मच्छरों द्वारा ये संक्रमित बुखार है। बहरहाल, आपको जापानी बुखार से सावधानी बरतने की जरूरत है और अपने आसपास सफाई रखने की जरूरत है।
By: अनुराधा गोयल, ओन्‍ली माई हैल्‍थ सम्पादकीय विभाग

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