Sunday 7 December 2014

बचत को बढ़ावा देने में ई कामर्स मददगार

पिछले कुछ वर्षो में देश में ई कामर्स का विस्तार तेजी से हुआ है। ई कामर्स के जरिये अब कोई भी व्यक्ति घर बैठे देश-विदेश की किसी भी दुकान से मनचाही वस्तु आनलाइन खरीद सकता है। आनलाइन खरीदारी में ग्राहक को कई वस्तुएं बाजार मूल्य से कम पर मिल जाती हैं जिससे ग्राहक की बचत में इजाफा होता है
 पिछले कुछ वर्षो में देश में आनलाइन शापिंग का क्रेज काफी तेजी से बढ़ा है। एक अनुमान के मुताबिक मौजूदा समय में देश में करीब 20 करोड़ लोग इंटरनेट का इस्तेमाल कर रहे हैं और इनमें से दो करोड़ लोग आनलाइन शापिंग सुविधा का इस्तेमाल कर रहे हैं। दुनिया के पांच खरब डालर के रिटेल कारोबार में आनलाइन रिटेल कारोबार की हिस्सेदारी करीब सवा अरब डालर से भी ज्यादा है। एक रिपोर्ट के अनुसार आनलाइन रिटेल कारोबार में अगले दस साल में करीब 60 फीसद की वृद्धि होने वाली है। आनलाइन शापिंग के बढ़ते कारोबार को देखते हुए दर्जनों ई कामर्स कंपनियां इस क्षेत्र में उतर चुकी हैं और कई उतरने को तैयार हैं। एसोचैम की एक रिपोर्ट के अनुसार देश में सबसे ज्यादा आनलाइन शापिंग दिल्ली में की जाती है। मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, बेंगलुरू, हैदराबाद, जयपुर और लखनऊ जैसे शहरों में भी आनलाइन शापिंग का क्रेज तेजी से बढ़ा है।
क्या है ई कॉमर्स हर कारोबार को करने के लिए कोई न कोई विधि अपना
ई जाती है। जैसे अपने उत्पादों को आम आदमी तक पहुंचाने के लिए कंपनियां पहले डिस्ट्रीब्यूटर बनाती हैं, फिर डिस्ट्रीब्यूटरों द्वारा डीलरों की नियुक्ति की जाती है और डीलरों द्वारा कंपनी के उत्पादों को रिटेलरों तक पहुंचाया जाता है और रिटेलर इस उत्पाद को ग्राहकों के हाथ सीधे बेचता है। इस तरह एक उत्पाद कंपनी से ग्राहक तक पहुंचने में चार चरणों या चैनल से गुजरता है। इस लिहाज से चार लोगों या संस्थाओं का हित (कमीशन) भी इसमें जुड़ता जाता है और जो चीज कंपनी से एक रपए में निकलती है, बाजार तक पुहंचते-पहुंचते चार रपए की हो जाती है। इसी तरह डोर टू डोर शापिंग भी कारोबार की एक विधि है। इस विधि के तहत कंपनी अपने कर्मचारियों की मदद से अपने उत्पादों को सीथे क्रेता के घर तक पहुंचाती है। इसमें कंपनी का उत्पाद कंपनी से निकलने के बाद सिर्फ एक चैनल के जरिये ग्राहक तक पहुंचता है इसलिए इसमें सिर्फ व्यक्ति या संस्था का हित अथवा कमीशन जुड़ा होता है। इस वजह से डोर टू डोर बिकने वाली वस्तु बाजार में मिलने वाली वस्तु से कुछ सस्ती होती है। ठीक इसी तरह ई कामर्स भी कारोबार की एक विधि है। इस विधि में कंपनियां अपने उत्पादों को आनलाइन प्लेटफार्म के जरिये बेचती हैं और इसमें कंपनी से जो उत्पाद निकलता है उसको आनलाइन कंपनी द्वारा इंटरनेट के माध्यम से बेचा जाता है। इस हिसाब से इसमें भी उत्पाद के कंपनी से निकलने से लेकर ग्राहक के हाथ पहुंचने तक बीच में सिर्फ एक चैनल होता है जिसकी वजह से इसमें सिर्फ एक व्यक्ति या संस्था (ई कामर्स कंपनी) का हित या कमीशन होता है। इस वजह से ई कामर्स कंपनी के जरिये आनलाइन बेचे जाने वाले उत्पाद बाजार मूल्य से कुछ कम कीमत पर मिल जाते हैं।
कैसे काम करती हैं ई कॉमर्स कंपनियां आनलाइन शापिंग के बढ़ते शौक से देश में कई ई कामर्स कंपनियों का कारोबार चमकने लगा है। अमेजन, फ्लिपकार्ट, स्नैपडील जैसी कई कंपनियां भारत व अन्य देशों में कारोबार कर रही हैं। यह कंपनियां निर्माताओं से सीधे माल की खरीद करके अपने वेयर हाउस में रखती हैं और आनलाइन डिमांड आने पर इसे कुरियर कंपनियों के माध्यम से क्रेता तक पहुंचाती हैं। निर्माताओं से सीधे माल खरीदने के अलावा यह कंपनियां विभिन्न शहरों में फैले रिटेलरों से भी संपर्क में रहती हैं। क्रेता से आर्डर मिलने पर छोटे से छोटे शहर में भी यह अपने उत्पाद रिटेलरों के माध्यम से संबंधित व्यक्ति तक पहुंचा देती हैं। उदाहरण के तौर पर अगर किसी कंपनी को किसी राज्य के छोटे से शहर में एलसीडी टीवी चाहिए तो यह ई कामर्स कंपनी उक्त शहर के रिटेल कारोबारी से संपर्क करके संबंधित व्यक्ति को एलसीडी टीवी उपलब्ध करा देगी। इन उत्पादों की कीमत ई कामर्स कंपनी द्वारा सीधे कंपनी से खरीदकर बेचे जाने वाले उत्पाद की तुलना में कुछ ज्यादा होती है क्योंकि इसमें लोकर डीलर का कमीशन भी जुड़ जाता है।
ग्राहकों को कई फायदे आनलाइन शापिंग और बाजार जाकर शापिंग करने पर खरीदार को कई तरह के फायदे होते हैं। उत्पादों की कीमतें कम होती हैं, बाजार जाने में लगने वाला खर्च इंटरनेट ट्रांजेक्शन शुल्क की तुलना में काफी कम होता है, समय की बचत होती है और ग्राहकों की बचत में इजाफा होता है। ग्राहक इस बचत को किसी निवेश योजना में निवेश कर बढ़िया रिटर्न हासिल कर सकता है।
डाक विभाग भी ई कॉमर्स में जल्द ही डाक विभाग भी ई कामर्स के क्षेत्र में उतरने जा रहा है। डाक विभाग अपने विशाल नेटवर्क के जरिये ई कामर्स कंपनियों को कड़ी टक्कर दे सकता है। इंडिया पोस्ट के इस क्षेत्र में उतरने के बाद दूर दराज के इलाकों में भी ई कामर्स का विस्तार होगा और आटा, दाल, चावल और महीने का राशन भी लोग ई कामर्स के जरिये खरीद सकेंगे। खादी एवं ग्रामोद्योग मंत्रालय ने पहले ही अपने उत्पादों को ई कामर्स के जरिये बेचने की घोषणा कर दी है।

Thursday 27 November 2014

पीपीएफ में निवेश की बढ़ाएं चमक

जो लोग अपने निवेश पर कोई जोखिम लेना पसंद नहीं करते उनके लिए लोक भविष्य निधि (पीपीएफ) एक बढ़िया विकल्प है। इस योजना के तहत छोटी-छोटी बचत करके लंबी अवधि में बड़ा फंड तैयार कर सकते हैं। रिटायरमेंट प्लानिंग और टैक्स सेविंग के लिए यह योजना काफी उपयोगी साबित होती है। इस योजना में निवेश की प्रक्रिया काफी सरल है। पीपीएफ एक सरकारी योजना है जिस पर हर वित्त वर्ष के लिए ब्याज घोषित किया जाता है। फिलहाल इस योजना में सालाना 8.7 फीसद की दर से ब्याज मिल रहा है। सरकार नया वित्त वर्ष शुरू होने से पहले ब्याज की घोषणा करती है। यदि आप अपने पीपीएफ खाते में सुनियोजित तरीके से पैसा जमा करते हैं तो ब्याज के रूप में ज्यादा कमाई कर सकते हैं।
योजना का आकर्षण पीपीएफ में निवेश की प्रक्रिया काफी आसान है। देश के डाकघरों और विभिन्न बैंकों की चुनिंदा शाखाओं में जाकर मामूली सी कागजी कार्रवाई करके पीपीएफ का खाता खुलवा सकते हैं। इस योजना की मैच्योरिटी 15 साल बाद होती है। पीपीएफ में महज 500 रपए से भी खाता खुलवा सकते हैं। इस खाते में एक वित्त वर्ष के दौरान अब अधिकतम 1.5 लाख रपए जमा कर सकते हैं। यह राशि एकमुश्त या अधिकतम 12 किस्तों में जमा कराई जा सकती है। यदि कोई व्यक्ति 25 साल की उम्र में नौकरी लगते ही पीपीएफ में हर साल 50,000 रपए जमा कराता है तो 40 साल की उम्र में उसे 15.45 लाख रपए मिलेंगे। इस रकम के जरिए कोई बड़ा लक्ष्य हासिल किया जा सका है।
कैसे करें शुरुआत मौजूदा परिदृश्य में पीपीएफ निवेश का अच्छा विकल्प है। फिर भी लोग इस योजना का फायदा नहीं उठा पाते। यदि आप अपना पीपीएफ खाता खुलवाना चाहते हैं तो नजदीकी डाकघर में जाकर संपर्क करें। सार्वजनिक क्षेत्र के एसबीआई, पीएनबी और निजी क्षेत्र के आईसीआईसीआई जैसे कई बैंकों की चुनिंदा शाखाओं में भी पीपीएफ खाता खुलवाया जा सकता है। पीपीएफ खाता खोलने के लिए आपका संबंधित बैंक शाखा में बचत खाता होना जरूरी नहीं है। इसके लिए एक साधारण फार्म भरना होगा जिसके साथ अपना पहचान पत्र, निवास प्रमाण पत्र और दो फोटो लगाने होंगे। मामूली औपचारिकताएं पूरी करके आपका पीपीएफ खाता खुल जाएगा। फिलहाल बैंकों में आनलाइन पीपीएफ खाता खुलवाया जा सकता है। इसका फायदा यह होगा कि नेट बैंकिंग के जरिए इसमें कभी भी और कहीं से भी निवेश कर सकते हैं।
ब्याज की गणना पीपीएफ योजना में फिलहाल 8.7 फीसद की दर से चक्रवृद्धि ब्याज मिल रहा है। यह ब्याज पीपीएफ खाते में बकाया राशि पर लगता है जो साल के अंत में खाते में जोड़ा जाता है। इसका महत्वपूर्ण पहलू यह है कि ब्याज की गणना हर माह की जाती है। इसकी प्रक्रिया यह है कि महीने की पांच तारीख से माह की अंतिम तारीख के बीच खाते में जमा सबसे कम राशि पर ब्याज लगाया जाता है। यदि आप ज्यादा ब्याज कमाना चाहते हैं तो इसके लिए अपने पीपीएफ खाते में जो भी रकम जमा कराएं उसे पांच तारीख से पहले ही कराएं। उदाहरण के लिए आपके खाते में पहले से एक लाख रपए जमा हैं और आपने 10 दिसम्बर को उसमें 50,000 रपए और जमा कराते हैं। इस स्थिति में दिसम्बर महीने में आपको सिर्फ एक लाख रपए रपए पर ही ब्याज मिलेगा। यदि यह रकम पांच दिसम्बर या उससे पहले जमा कराई जाती है आपको 1.5 लाख रपए पर ब्याज मिलेगा। इस एवज में मिलने वाली अतिरिक्त रकम लंबी अवधि में रिटर्न बढ़ाने में काफी उपयोगी होती है।
कंपाउंडिंग का असर पीपीएफ योजना लंबी अवधि की है जिसका लॉक इन पीरियड 15 साल है। जाहिर है इसमें से आप लंबी अवधि तक रकम नहीं निकाल सकते। हालांकि आड़े वक्त में एक निश्चित अवधि के बाद लोन का विकल्प है। इस योजना में सबसे बड़ा फायदा निवेश पर मिलने वाले ब्याज पर ब्याज से होता। ब्याज पर मिलने वाले ब्याज को ही कंपाउंडिंग (चक्रवृद्धि) कहते हैं। लंबी अवधि में कंपाउंडिंग का असर काफी प्रभावी होता है। इसीलिए निवेश पोर्टफोलियो में पीपीएफ को जरूर शामिल करना चाहिए।
सोने पर सुहागा आयकर में छूट हासिल करने के लिए पीपीएफ अन्य योजनाओं पर भारी पड़ता है। इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसमें जीवन बीमा योजनाओं की तरह आपको हर साल बड़ी किस्त नहीं देनी। एक वित्त वर्ष में महज 500 रपए जमा कराके भी खाते को चालू रखा जा सकता है। दूसरा बड़ा फायदा यह है कि निवेश के समय कर छूट का लाभ मिलता और मैच्योरिटी के समय मिलने वाली रकम भी पूरी तरह से टैक्स फ्री होती है। यदि इस योजना में बुद्धिमानी के साथ निवेश किया जाए तो आयकर छूट और ब्याज के रूप में ज्यादा लाभ अर्जित कर सकते हैं।

Friday 21 November 2014

महिलाओं के लिए अमेरिका में पढ़ने के अवसर

वकालत शिक्षा, परोपकार और शोध द्वारा महिलाओं और लड़कियों का समान रूप से विकास अमेरिकन एसोसिएशन ऑफ यूनिवर्सिटी वुमेन यानी एएयूडब्ल्यू का उद्देश्य है। एएयूडब्ल्यू आर्थिक और शैक्षिक बाधाओं को दूर करता है जिससे महिलाओं को करियर बनाने का अच्छा मौका मिलता है। एएयूडब्ल्यू उन महिलाओं का, जो अमेरिका की नागरिक नहीं हैं या पर्मानेंट रेजीडेंट नहीं हैं, को अमेरिका में रहकर फुलटाइम स्टडी या रिसर्च करने का अवसर प्रदान करता है। ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट, दोनों कोर्सो को वहां की मान्यता प्राप्त संस्थाओं के सहयोग से कराया जाता है। एएयूडब्ल्यू राज्यस्तरीय नेटवर्क है जिसमें 170,000 सदस्य और सपोटर्स हैं, 1,000 स्थानीय ब्रांच हैं और 800 कॉलेज और यूनिवर्सिटी इसके पार्टनर्स हैं। खासतौर से शैक्षिक कार्यक्रमों के लिए प्राइवेट फंडिंग के लिए एएयूडब्ल्यू राष्ट्र का सबसे बड़ा स्रेत है जो सीधे महिलाओं और लड़कियों को लाभान्वित करता है। हर साल एएयूडब्ल्यू 200 से ज्यादा महिलाओं को फेलोशिप और ग्रांट
प्रदान करता है। मूल रूप से एएयूडब्ल्यू विविधतापूर्ण मेंबरशिप को मान्यता देता है। इस संस्थान में लैंगिक, जाति, उम्र, राष्ट्रीय ता, मूल, अशक्तता या वर्ग जैसी कोई बाधाएं नहीं हैं। योग्यता इस अंतरराष्ट्रीय फेलोशिप का अस्तित्व 1917 से है। यह फेलोशिप अमेरिका में एक वर्षीय ग्रेजुएट या पोस्ट ग्रेजुएट कार्यक्रम में अध्ययन के लिए सहयोग करता है। इसे उन महिलाओं को प्रदान किया जाता है जो अमेरिकी नागरिक नहीं होती। जिन महिलाओं के पास डय़ूल सिटीजनशिप यानी अमेरिकी नागरिकता के साथ ही दूसरे देश की नागरिका हो, तो वह भी इस स्कॉलरशिप की पात्र नहीं हो सकतीं। उन्हीं महिलाओं को प्राथमिकता दी जाती है जो पहले से ही नगर, समाज या प्रोफेशनल वर्क में महिलाओं और लड़कियों की प्रगति की प्रतिज्ञा लेती हैं। यह फेलोशिप अमेरिका में अध्ययन करने का अवसर देती है, इसमें इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ यूनिवर्सिटी वुमेन की गिनी-चुनी सदस्यों को ही अवसर मिलता है। पाठय़क्रम पूरा होने के पश्चात कैंडीडेट में अपने होम कंट्री लौट कर करियर बनाने का इरादा होना जरूरी है। कैंडीडेट्स को अंग्रेजी में निपुण होना आवश्यक है, नहीं तो उसे इस बात का सत्यापन कराना होगा कि उसकी क्षेत्रीय भाषा अंग्रेजी है या उसने अंग्रेजी में सेकेंड्री डिप्लोमा या इंग्लिश-स्पीकिंग इंस्टीट्यूशन से अंडर ग्रेजुएट डिग्री या फिर उसने इंग्लिश स्पीकिंग कॉलेज या यूनिवर्सिटी से अक्टूबर 2012 और सितम्बर 2014 के बीच फुलटाइम अध्ययन कर रखा है। स्कॉ लरशिप्स के प्रारूप मास्टर्स/प्रोफेशनल फेलोशिप : 18,000 डॉलर डॉक्टोरेट फे लोशिप : 20,000 डॉलर पोस्ट डॉक्टोरल फेलोशिप : 30,000 डॉलर इंटरनेशनल फेलोशिप्स फंड केवल शैक्षिक खर्च, रहने का खर्च, निर्भर बच्चे की देखभाल और प्रोफेशनल मीटिंग के लिए यात्रा का खर्च देता है। कॉन्फ्रेंस या सेमिनार लंबे समय से नहीं हुआ है लेकिन फेलोशिप का दस प्रतिशत इसके लिए मिल सकता है। अंतिम तिथि मास्टर्स/फस्र्ट प्रोफेशनल डिग्री या डॉक्टोरल प्रोग्राम में दाखिला लेने के लिए 1 दिसम्बर 2014 है। पोस्ट डॉक्टोरल के लिए आवेदन करने वाले कैंडीडेट्स को अपना डॉक्टोरेट डिग्री का प्रूफ देना होगा। आवेदन का प्रारूप आवेदन और सपोर्टिंग डॉक्युमेंट्स को ऑनलाइन जमा किया जा सकता है।

Wednesday 12 November 2014

क्या आप जानते हैं की निवेश कम उम्र और बड़ी उम्र में शुरू करने से बचत में बड़ा अंतर आ जाता है।

क्या आप जानते हैं की निवेश कम उम्र और बड़ी उम्र में शुरू करने से बचत में बड़ा अंतर आ जाता है। आप निवेश की शुरु आत जल्दी करेंगे तो आपको जल्द ही इसका रिटर्न मिलेगा और आप इस रिटर्न का एक बार फिर से निवेश कर करेंगे। जो लोग अपनी स्टुडेंट लाइफ खत्म होने के बाद नौकरी ज्वाइन करते हैं, उन्हें शुरू से ही निवेश की आदत डालनी चाहिए। इससे आपको कंपाउंडिंग रिटर्न का फायदा मिल सकेगा। निवेश के बारे में जानने के लिए बेहद जरूरी है कि कंपाउडिंग की ताकत को समझा जाए और इसे बढ़ावा दिया जाए। यह दो सिद्धांतों पर काम करता है- पुनर्निवेश और समय। जब पैसे को किसी वित्तीय उत्पाद में लगाया जाता है तो यह ब्याज या रिटर्न अर्जित करता है। ब्याज की राशि कई बातों पर निर्भर करती है जैसे निवेश राशि, ब्याज दर और समय। निवेश राशि साधारण ब्याज या चक्रवृद्धि ब्याज अर्जित करती है। साधारण ब्याज महज
मूलधन पर देय होता है वहीं मिश्रित ब्याज मूलधन के साथ प्रत्येक वर्ष अर्जित ब्याज पर देय होता है। साल दर साल मूलधन की राशि नियमित रूप से बढ़ती जाती है। ध्यान रखने योग्य पहलू है ब्याज दर। कंपाउंडिंग का प्रभाव उदहारण के लिए 10,000 रपए की रकम को 10 वर्षो के लिए अलग-अलग ब्याज दर पर निवेश किए जाने पर रिटर्न इए प्रकार होगा- 10 फीसद पर : 25,937 रपए 11 फीसद पर : 28,394 रपए 12 फीसद पर : 31,085 रपए ब्याज दर में मामूली सा अंतर भी आपके निवेश पर बड़ा प्रभाव डाल सकता है। एसआईपी के जरिए किए गए निवेश में कंपाउंडिंग रिटर्न का फायदा देखने को मिलता है। इसमें एक छोटी सी रकम बड़ी रकम में बदल जाती है। इसमें ब्याज पर ब्याज की आमदनी होती जाती है। जो लोग कम उम्र से निवेश की शुरु आत करने के इच्छुक होते हैं। कई बार उन्हें पता नहीं होता कि वे इसमें कदम कैसे रखें। ऐसी स्थिति में निवेश शुरू करने के लिए म्यूचुअल फंड बेहतरीन विकल्प है। आप इसमें निवेश के लिए निश्चित राशि निकाल कर रखें। इसमें से कुछ राशि का इस्तेमाल निवेश में करें बाकी को इससे जुड़े खर्चो का प्रबंधन करने में लगाएं। जल्द करें शुरुआत अगर आप युवा हैं तो यह मत समझिए कि अभी तो बहुत समय है, बचा लेंगे। आप जितनी जल्दी शुरुआत करेंगे, उतना आपको कम बचाना पड़ेगा। जैसा कि एक 25 वर्षीय युवा को केवल हर माह 5000 रपए ही बचाने होंगे मगर 35 वर्षीय व्यक्ति को इसके लिए हर माह 11000 रपए बचाने होंगे। वर्तमान समय में निवेश के कई साधन हमारे समक्ष मौजूद हैं। इनमें बैंक, पोस्ट ऑफिस, जीवन बीमा, शेयर बाजार, म्यूचुअल फंड, बांड और रीयल एस्टेट शामिल है। आपको अपनी जोखिम क्षमता एवं समय के अनुरूप निवेश माध्यमों का चयन करना चाहिए। मिसाल के तौर पर अगर आपके पास पांच-साल के निवेश के लिए एक लाख रपए हैं तो इसे आप ऐसी फिक्स्ड रिटर्न योजना में निवेश करके पूंजी को सुरक्षित रख सकते हैं जिसमें निवेश की अवधि के अंत में आपकी शुरुआती निवेश के बराबर परिपक्वता हो। जोखिम का आकलन आप कितने समय के लिए निवेश करना चाहते हैं। आपको भविष्य की अपनी महत्वपूर्ण योजनाओं को पूरा करने के लिए कब और कितने पैसों की जरूरत पड़ सकती है, इसका खाका खींच कर रखिए। आपके जोखिम उठाने की क्षमता कितनी है। किसी भी निवेश में अच्छा रिटर्न पाने की उम्मीद करते समय उसके न्यूनतम जोखिम को ध्यान में जरूर रखें। एसआईपी की भी कई ऐसी खूबियां हैं जिनके बारे में हर निवेशक को जानना जरूरी है ताकि इनका पूरा फायदा उठाया जा सके। सारा निवेश एक ही जगह नहीं करें। जोखिम घटने का पूरा फायदा उठाने लिए आपको अपना पूरा निवेश ऐसी विविध संपत्तियों करना चाहिए जिनका आपस में कोई संबंध नहीं हो। निश्चित आय इक्विटी, रीयल एस्टेट, गोल्ड और निवेश के अन्य विकल्पों में लगाई जानी चाहिए। निवेश के पहले हर तरह की जानकारी इकट्ठी करना जरूरी होता है। स्टाक मार्केट में निवेश अगर भविष्य की आर्थिक जरूरतों और सपनों को पूरा करने के लिए अन्य संपत्तियों की तरह शेयरों में निवेश नहीं किया जाता है तो पर्याप्त पैसा नहीं बनाया जा सकता क्योंकि मुद्रास्फीति की मार और करों के बोझ से आप बच नहीं सकते, जो कई बार मिलने वाले रिटर्न को नकारात्मक कर देते हैं। जब शेयरों में धन लगाएं तो अलग-अलग सेक्टरों की कंपनियों में लगाएं। एक ही सेक्टर की ज्यादा कंपनियों में भी पैसा नहीं लगाएं। एफएमसीजी, फार्मा जैसे डिफेंसिव सेक्टर के शेयर खरीद कर पोर्टफोलियो मजबूत कर सकते हैं। ज्यादा रिटर्न के लालच में निवेश न करें बल्कि जरूरत और रिस्क की क्षमता के हिसाब से ही निवेश करें। निवेश का तरीका अपने विचारों के अनुरूप होना चाहिए। शेयर खरीदने के साथ ही उसे बेचने का लक्ष्य तय करना चाहिए। टारगेट प्राइस पर पहुंचने पर ही उसे बेचना चाहिए। टिप्स के आधार पर निवेश नहीं करना चाहिए क्योंकि उससे नुकसान की आशंका रहती है। शेयर बाजार में पैसा बनाना बहुत आसान है उसी प्रकार खोना भी बहुत आसान है। इससे बचा जा सकता है अगर आप स्वंय शेयर बाजार के बारे में अधिक से अधिक जानकारी एकत्र करें, शोध करें और दूसरों के दिए टिप्स पर न जाएं।

Sunday 2 November 2014

किसे-कितना मुनाफा और किसे कितना घाटा

देश में आजकल स्टॉक एक्सचेंज का कारोबार एक बार फिर उफान पर है। मुंबई स्टॉक एक्सचेंज और नेशनल स्टॉक एक्सचेंज में हर दिन होने वाले कारोबार पर सैकड़ों लोगों की सुबह से नजरें रहती हैं। कौन-सा शेयर कितना चढ़ा और कितना गिरा, किसे-कितना मुनाफा और किसे कितना घाटा हुआ आदि। हालांकि इस कारोबार का फामरूला सबकी समझ से परे है। जो इसे समझते हैं, वे ही इसमें रात-दिन मुनाफा और कमाई की राह ढूंढते हैं। स्टॉक एक्सचेंज और इससे जुड़े कारोबार की ही गुत्थी सुलझाने और इससे जुड़े करियर की ओर राह दिखाने के लिए देश के विभिन्न शिक्षण संस्थानों ने हाल के वर्षो में कैपिटल मार्केट का कोर्स तैयार किया है। कहीं पार्ट टाइम, तो कहीं फुलटाइम के रूप में चलाया जा रहा यह कोर्स छात्रों में कैपिटल मार्केट की आधारभूत समझ पैदा करता है। पढ़ाई के बाद इस क्षेत्र में करियर और कमाई का रास्ता भी दिखाता है। दिल्ली विविद्यालय के रामजस कॉलेज ने इस क्षेत्र में करियर की राह दिखाने के लिए ही कुछ वर्ष पहले इससे जुड़ा शॉर्ट टर्म कोर्स कैपिटल मार्केट शुरू किया था। इसकी देखादेखी कई और कॉलेजों में इसे चलाया गया था।
लेकिन आर्थिक मंदी और दिल्ली विविद्यालय के कोर्स में फेरबदल की वजह से यह बीच में बंद हो गया था। हालांकि निजी शिक्षण संस्थानों में यह कोर्स अब भी सफलतापूर्वक चलाया जा रहा है। देश-विदेश में शेयर बाजार की मौजूदगी को देखते हुए सीबीएसई ने भी कुछ साल पहले बारहवीं स्तर पर फाइनेंशियल मार्केट मैनेजमेंट का पेपर स्कूलों में ऑफर किया था। स्कूलों के इस कोर्स को नेशनल स्टॉक एक्सचेंज की मदद से तैयार किया गया था। स्कूलों, सरकारी कॉलेजों के अलावा देश में कई निजी संस्थानों ने इससे जुड़े कोर्स छात्रों के सामने पेश किए हैं। कहीं यह सर्टिफिकेट के रूप में है तो कहीं डिप्लोमा और डिग्री कोर्स के रूप में सफलतापूर्वक चलाया जा रहा है। इस कोर्स में दाखिला लेकर शेयर बाजार की दुनिया में अपनी किस्मत चमका सकते हैं। कोर्स की रूपरेखा स्टॉक मार्केट ऑपरेशंस से जुड़े कोर्स के तहत छात्रों को स्टॉक एक्सचेंज में लाइव ट्रेडिंग कैसे होती है। उनमें कौन-कौन से र्टम्स यानी तकनीकी और व्यावसायिक शब्दावली इस्तेमाल में आती है, उन शब्दों के सही मायने क्या हैं- इसकी जानकारी दी जाती है। शेयर बाजार क्या है, यह किस-किस तरह का है, उसकी कीमत कैसे देखी जाती है, उन कीमतों में उतार-चढ़ाव का आकलन और उसकी जानकारी भी छात्रों को दी जाती है। एक निवेशकर्ता के नाते किस शेयर में कब और कितना निवेश करना फायदेमंद है, यह भी कोर्स में बताया जाता है। भारतीय प्रतिभूति बाजार और उसके रेग्युलेशन की जानकारी भी छात्रों को दी जाती है। यहां प्राइमरी मार्केट, सेकेंड्री मार्केट और जमाकर्ताओं के प्रोफाइल से भी रू-ब-रू कराया जाता है। सरकारी प्रतिभूति बाजार और डेरिवेटिव्स मार्केट का ज्ञान दिया जाता है । निवेश के तौर-तरीके के बारे में बताया जाता है। इनमें इस्तेमाल होने वाले गणितीय फामरूले की जानकारी दी जाती है। कमोडिटी मार्केट्स, बॉण्ड मार्केट, म्यूचुअल फंड्स और रिस्क मैनेजमेंट जैसी चीजें भी कोर्स में शामिल हैं। गणितीय फामरूले और आंकड़ों का प्रयोग किस रूप में होता है इसका ज्ञान कराया जाता है। दाखिला कैसे इस कोर्स में कई संस्थानों में दाखिला आमतौर बारहवीं पास छात्रों को दिया जाता है। लेकिन बहुत सारे संस्थानों में स्नातक या उसके बाद ज्ञान कराया जाता है। जिन छात्रों की पृष्ठभूमि कॉमर्स की है उन्हें दाखिला के दौरान विशेष प्राथमिकता दी जाती है। खास बात यह है कि छात्रों को इस फील्ड का व्यावहारिक अनुभव हो, इसके लिए ये कोर्स कई जगहों पर स्टॉक एक्सचेंज की मदद से चलाए जा रहे हैं। दिल्ली विविद्यालय के साउथ कैंपस में मास्टर इन फाइनेंस एंड कंट्रोल प्रोग्राम में भी इससे संबंधित विषय की पढ़ाई होती है। यहां छात्रों को दाखिला अखिल भारतीय प्रवेश परीक्षा के आधार पर दिया जाता है। कहा जा सकता है कि यह इस क्षेत्र में एक्सपर्ट बनाने वाला कोर्स है। कहां हैं अवसर इस कोर्स को करने के बाद स्टॉक एक्सचेंज, ब्रोकरेज फर्म, म्यूच्युअल फंड कंपनी, बैंक की निवेश सलाह विभाग और कॉरपोरेट जगत के ट्रेजरी विभाग में काम की तलाश की जा सकती है। ऐसे युवाओं के लिए इक्विटी रिसर्च फर्म में भी काम करने के कई मौके हैं। यहां फंड मैनेजर, टेक्निकल एनालिस्ट, पोर्टफोलियो मैनेजर, मर्चेट बैंकर और फॉरेक्स ट्रेडर के रूप में अपनी भूमिका निभा सकते हैं। आमतौर पर ऐसे युवाओं को शुरुआती स्तर पर 30 से 40 हजार रुपये के वेतन मिल जाते हैं। कंपनी खोलकर खुद का व्यवसाय भी कर सकते हैं। क्या कहते हैं विशेषज्ञ दिल्ली विविद्यालय में इस कोर्स के विशेषज्ञ अमित सिंघल कहते हैं, यह कोर्स सीधे-सीधे रोजगार दिलाने के बजाय छात्रों को इस क्षेत्र की समझ पैदा करता है। इस कारण से स्नातक या एमए की पढ़ाई पूरी करने वाले छात्र शेयर बाजार या स्टॉक एक्सचेंज के क्षेत्र में जाने की राह आसान कर सकते हैं। अगर वह इस क्षेत्र में नौकरी करते हैं तो उन्हें इसे समझने के लिए अलग से ट्रेनिंग की जरूरत नहीं पड़ती। सिंघल ने बताया कि छात्रों में समझ पैदा करने के लिए लाइव ट्रेडिंग से रू-ब-रू कराया जाता है। उन्हें कम्प्यूटर पर प्रैक्टिकल कराया जाता है। यह कोर्स ऐ सा है जिसमें साइंस हो या कॉ मर्स या फिर आर्ट्स किसी भी फील्ड का छात्र दाखिला ले सकता है हालांकि कॉमर्स की पृष्ठभूमि के लिए यह ज्यादा उपयुक्त माना जाता है।

Monday 27 October 2014

भारत में घटी ऐतिहासिक घटनाओं की क्रमवार सूची

भारत के सभी ऐतिहासिक घटनाओं की सूची यहाँ दी जा रही हैयह सूची निश्चय ही उन सभी विद्यार्थियों के लिए उपयोगी सिद्ध होगी जो की किसी प्रतियोगी परीक्षा के लिए प्रयासरत हैं या जो भारत के इतिहास मे रूचि रखते हैं

ईसा पूर्व-
2500-1800:  सिंधु घाटी सभ्यता।
599: महावीर का जन्म; 523 ईसा पूर्व मे निर्वाण प्राप्त।
563:  गौतम बुद्ध का जन्म, 483 ईसा पूर्व में निर्वाण प्राप्त।
327-26: सिकंदर द्वारा भारत की खोज एवं यूरोप व भारत के मध्य भूमि मार्ग की शुरुआत।
269-232: भारत में अशोक का काल ।
261: कालिंग का युद्ध ।
57: विक्रम काल की शुरुआत।
30: दक्कन में सातवाह्न वंश की शुरुआत. तथा दक्षिण में पांडय का शासन।

ईसवी-
78: सका काल की शुरुआत।
320: गुप्त काल की शुरुआत।
360: समुद्रगुप्त ने संपूर्ण उत्तर भारत तथा दक्कन के अधिकांश भाग को जीत लिया ।
380-413: चंद्रगुप्ता विक्रमादित्य का शासन, कालिदास का काल, तथा हिंदूवाद का पुनरूत्तान।
606-647: हर्षवर्धन का शासन।
629-645: ह्वेन सांग का भारत आगमन।
622: हिजरी काल की शुरुआत।
712: मुहम्म्द बिन क़ासिम द्वारा सिंध पर अरब का आक्रमण।
1025: महमूद द्वारा सोमनाथ मंदिर को लूटा गया।
1191:  पृथ्वीराज चौहान एवं मुहम्म्द गौरी के मध्य तराईन का प्रथम युद्ध।
1192: तराईन का द्वितीय युद्ध जिसमें पृथ्वीराज चौहान की मुहम्म्द गौरी द्वारा हार।
1206: कुतुब्बुद्दीन ऐबक द्वारा गुलाम वंश की स्थापना।
1329:  पहला भारतीय धरमप्रदेश की स्थापना पोप जॉन आइक्सीच के द्वारा हुई एवं जॉर्डानुस को प्रथम बिशप नियुक्त किया गया।
1459: सन सिटी, जोधपुर , भारत की स्थापना राव जोधा द्वारा की गयी।
1497:  वास्को डी गामा ने भारत यात्रा हेतु कूच किया।
1498: भारत के कालीकट पर वास्को डी गामा का आगमन।
1502: वॅस्को डी गामा की लिस्बन, पुर्तगाल से भारत के लिए दूसरी यात्रा की शुरुआत।
1565: तालिकोटा का युद्ध.  मुस्लिमों द्वारा विजयनगर सेना का ख़ात्मा।
1575:  मुगल बादशाह अकबर ने बंगाल सेना को तूक्रोई के युद्ध में हराया।
1597: डच ईस्ट इंडिया कंपनी  के जहाज़ सुदूर पूर्व की यात्रा पर निकले।
1602: युनाइटेड डच ईस्ट इंडियन कंपनी (वॉक) की स्थापना।
1608: प्रथम इंग्लिश रक्षा सेना का सूरत के तट पर आगमन।
1612: सूरत ,भारत में अँग्रेज़ों एवं पुर्तगालियों के मध्य युद्ध।
1621: डच वेस्ट इंडिया कंपनी को न्यू नेदरलॅंड्स का शासन प्राप्त ।
1633: मिंग  वंश का डच ईस्ट इंडिया कंपनी के साथ युद्ध जिसमें मिंग वंश की विजय ।
1639:  स्थानीय नायक शासकों के लिए ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा चाँदी की भूमि का निर्माण ।
1641: युनाइटेड ईस्ट इंडियन कंपनी  द्वारा मलक्का शहर का जीता जाना ।
1641: वेस्ट इंडिया कंपनी द्वारा साओ पौलो दे लोअंडा को जीता गया ।
1658:  भारत में हार्बर शहर पर डच सेना का कब्जा ।
1668: बंबई पर इंग्लैंड का शासन ।
1668:  चार्ल्स द्वितीय द्वारा बंबई को इसाट इंडिया कंपनी को सौपां गया ।
1690: जॉब चारनॉक द्वारा कलकत्ता शहर की स्थापना ।
1739: करनाल का युद्ध ईरानी बादशाह नादिर शाह एवं पराजित मुगल बादशाह मुहम्म्द शाह के मध्य लड़ा गया ।
1739: नादिर शाह ने भारत के दिल्ली पर कब्जा किया ।
1752: त्रिचीनपल्ली में फ्रांससीसी सेना का अँग्रेज़ी सेना के समक्ष समर्पण ।
1756: भारतीय विद्रोहियों द्वारा ब्रिटिश सेना की पराजय ।
1756: फ्रांस एवं भारत युद्ध: किट्तंनिंग अभियान ।
1756: रॉबर्ट क्लाइव के नेतृत्व मे भारत के फुल्ता पर ब्रिटिश सेना का कब्जा ।
1757: ब्रिटिश सेना का कलकत्ता पर कब्जा ।
1757: रोस्सबच में युद्ध की शुरुआत ।
1760: वणडेवाश का युद्ध. ब्रिटिश सेना द्वारा फ्रांस की हार ।
1761: पानीपत का युद्ध. अफ़ग़ान सेना द्वारा महाराणा प्रताप की पराजय ।
1786: चार्ल्स कॉर्नवॉलिस को भारत का गवर्नर-जनरल नियुक्त किया गया ।
1795: कुर्डला का युद्ध. महाराणा द्वारा मुगलों की हार ।
1798: इंग्लेंड व हैदराबाद के निजाम के मध्य संधि पर हस्ताक्षर ।
1803: आस्सेए का युद्ध. ब्रिटिश-भारतीय सेना द्वारा मराठा सेना की हार ।
1839: ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा आदान पर कब्जा ।
1846: बॅटल ऑफ अल्लवाल , ब्रिटिश सेना द्वारा पंजाब में सिक्खों की हार ।
1846: सोबराओन का युद्ध: ब्रिटिश सेना द्वारा सिक्खों की हार. यह भारत में प्रथम सिक्ख युद्ध था ।
1853: प्रथम यात्री रेल की भारत में शुरूआात यह ट्रेन बंबई से थाने की मध्य चलाई गयी ।
1866: इलाहाबाद उच्च न्यायालय की स्थापना ।
1892: दादाभाई नोरॉजी को ब्रिटेन की संसद के लिए प्रथम भारतीय सदस्य के रूप मे चुना गया ।
1905: बंगाल विभाजन ।
1914: प्रथम विश्व युद्ध की शुरुआत ।
1925: कम्यूनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया की स्थापना ।
1929: प्रथम नौन-स्टॉप वायु यात्रा इंग्लैंड से भारत के मध्य शुरू ।
1932:  भारतीय वायु सेना की स्थापना ।
1936: उड़ीसा को ब्रिटिश भारत के प्रांत के रूप मे मान्यता ।
1939: नेताजी सुभाष चंद्र बोस द्वारा ऑल इंडिया फॉर्वर्ड ब्लॉक की स्थापना ।
1944: जेससामी, ईस्ट-इंडिया  की जापानी सेना द्वारा हार ।
1947: ब्रिटिश शासन से भारत की आज़ादी ।
1947: लॉर्ड माऊंटबेटन को भारत का अंतिम वायासाराय नियुक्त किया गया ।
1947: भारत पाकिस्तान के मध्य रेडकलिफ्फ रेखा की घोषणा ।
1948: लॉर्ड माऊंटबेटन का भारत के गवर्नर जनरल के पद से इस्तीफ़ा ।
1950: भारत एक गणतंत्र के रूप में स्थापित ।
1950: सिक्किम भारत का संरक्षित राज्य बना ।
1952: राज्य सभा की पहली बैठक ।
1956: दिल्ली को भारतीय संघ का क्षेत्र बनाया गया ।
1960: बंबई राज्य को महाराष्ट्र एवं गुजरात मे विभाजित किया गया ।
1971: ग़रबपुर का युद्ध:  भारतीय सेना द्वारा पाक सेना की हार ।
1974: एटम बम के प्रयोग में भारत विश्व का 6ठा राष्ट्र बना ।
1975: सोवियत संघ की सहायता से भारत ने 1स्ट्रीट सेटिलाइट का प्रक्षेपण किया ।
1980: रोहिणी 1, प्रथम भारतीय सेटिलाइट, का कक्षा में प्रक्षेपण ।
1994: भारतीय सुंदरी सुष्मिता सेन ने  43वाँ मिस यूनिवर्स का खिताब जीता ।
1994: ऐश्वर्या राय ने 44वाँ मिस वर्ल्ड का खिताब भारत के नाम किया ।
2008: भारत ने प्रथम अमानवीय चन्द्र मिशन चंद्रयान -1 का प्रक्षेपण किया ।

Sunday 26 October 2014

भारतीय नृत्य कला

हड़प्पा सभ्यता में नृत्य करती हुई लड़की की मूर्ति पाई गई है, जिससे साबित होता है कि इस काल में ही नृत्यकला का विकास हो चुका था। भरत मुनि का नाट्य शास्त्र नृत्यकला का सबसे प्रथम व प्रामाणिक ग्रंथ माना जाता है। इसको पंचवेद भी कहा जाता है।
नाट्यशास्त्र के सिद्धांत के अनुसार नृत्य दो तरह का होता है- मार्गी (तांडव) तथा लास्य। तांडव नृत्य भगवान शंकर ने किया था। यह नृत्य अत्यंत पौरुष और शक्ति के साथ किया जाता है। दूसरी ओर लास्य एक कोमल नृत्य है जिसे भगवान कृष्ण गोपियों के साथ किया करते थे।
एक काल में भारत में नृत्य काफी प्रचलित थे। लेकिन 19वीं शताब्दी तक आते-आते इनका पूरी तरह से पराभाव हो गया। किंतु 20वीं शताब्दी में कई लोगों के प्रयास से नृत्यकला को पुनर्जीवन मिला।

भरतनाट्यम
भरत मुनि के नाट्यशास्त्र पर आधारित भरतनाट्यम अत्यंत परंपराबद्ध तथा शैलीनिष्ठ है। इस नृत्य शैली का विकास दक्षिण भारत के तमिलनाडु में हुआ। प्रारंभ में यह नृत्य मंदिरों में देवदासियों द्वारा किया जाता था, तब इसे आट्टम और सदिर करते थे। इसे वर्तमान रूप प्रदान करने का श्रेय तंजौर चतुष्टय अर्थात पौन्नैया,पिल्लै तथा उनके बंधुओं को है। 20वीं शताब्दी में इसे रवीन्द्रनाथ टैगोर, उदयशंकर और मेनका जैसे कलाकारों के संरक्षण में यह नाट्यकला पुनर्जीवित हो गई।
भरतनाट्यम में पैरों को लयबद्ध तरीके से जमीन में पटका जाता है, पैर घुटने से विशेष रूप से झुके होते हैं एवं हाथ, गर्दन और कंधे विशेष प्रकार से गतिमान होते हैं।
रुक्मिणी देवी अरुण्डेल भारत की सबसे पहली प्रख्यात नृत्यांगना हुई हैं। अन्य प्रमुख कलाकारों में यामिनी कृष्णमूर्ति, सोनल मानसिंह, मृणालिनी साराभाई, मालविका सरकार शामिल हैं।



कुचिपुड़ी
आंध्र प्रदेश के कुचेलपुरम नामक ग्राम में इस नृत्य शैली का उद्भव हुआ। यह शास्त्रीय नृत्य भरतमुनि के नाट्यशास्त्र के नियमों का पालन करता है। इस शैली का विकास तीर्थ नारायण तथा सिद्धेन्द्र योगी ने किया। यह मूलत: पुरुषों का नृत्य है, पर इधर कुछ समय से महिलाओं ने भी इसे अपनाया है। इस नृत्य के लिए कर्नाटक संगीत का प्रयोग किया जाता है और इसका प्रदर्शन रात में होता है। कुचिपुड़ी के प्रमुख कलाकारों में वेदांतम सत्यनारायण, वेम्पत्ति चेन्नासत्यम, यामिनी कृष्णमूर्ति, राधा रेड्डी, राजा रेड्डी आदि शामिल हैं।


ओडिसी
भरतमुनि की नृत्य शैली पर आधारित इस शास्त्रीय नृत्य शैली का उद्भव व विकास दूसरी शताब्दी ई.पू. में उड़ीसा के राजा खारवेल के शासनकाल के दौरान हुआ। 12वीं शताब्दी के बाद वैष्णव धर्म से यह काफी प्रभावित हुई और जयदेव द्वारा रचित अष्टपदी इसका एक आवश्यक अंग बन गई।
ओडिसी में सबसे महत्वपूर्ण तत्व च्भंगीज् और च्कर्णज् होते हैं। इसमें विभिन्न शारीरिक भंगिमाओं में शरीर की साम्यावस्था का अत्यन्त महत्व होता है।
आधुनिककला में ओडिसी के पुनरुत्थान का श्रेय केलूचरण महापात्र को है। संयुक्ता पाणिग्राही, सोनल मानसिंह, मिनाती दास, प्रियवंदा मोहंती आदि ओडिसी की प्रसिद्ध नृत्यांगना हैं।

कत्थक
उत्तर भारत का यह शास्त्रीय नृत्य मूलत: भरतमुनि के नाट्यशास्त्र पर आधारित है। इसका उद्भव वैदिक युग से माना जाता है। बाद में मुस्लिम शासकों के दौरान यह नृत्य शैली मंदिरों से निकलकर राजदरबारों में पहुँच गई। जयपुर, बनारस, राजगढ़ तथा लखनऊ इसके मुख्य केेंद्र थे। लखनऊ के  वाजिद अली शाह के काल में यह कला अपने चरमोत्कर्ष पर पहुँच गई।
यह अत्यंत नियमबद्ध एवं शुद्ध शास्त्रीय नृत्य शैली है, जिसमें पूरा ध्यान लय पर दिया जाता है। इस नृत्य में पैरों की थिरकन पर विशेष जोर दिया जाता है। इसके प्रसिद्ध कलाकार हैं- लच्छू महराज, शम्भू महराज, बिरजू महराज, सितारा देवी, गोपीकृष्ण, शोभना नारायण, मालविका सरकार इत्यादि।


कथकली
केरल राज्य में जन्मी यह नृत्य शैली भरतमुनि के नाट्यशास्त्र पर आधारित है। कथकली भी मंदिरों से जुड़ा नृत्य है और इसे मात्र पुरुष ही करते हैं।
कथकली नृत्य में गति अत्यन्त उत्साहपूर्ण और भड़कीली होती है। इसके साथ इसमें शारीरिक भाव-भंगिमाओं का विशेष महत्व होता है। नर्तक अत्यन्त आकर्षक श्रृंगार का प्रयोग करते हैं। कथाओं के पात्र देवता या दानव होते हैं। 20वीं शताब्दी में वल्लाठोल ने इसके पुनरुत्थान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। कथकली के प्रख्यात कलाकारों में गोपीनाथ, रागिनी देवी, उदयशंकर, रुक्मिणी देवी अरुण्डेल, कृष्णा कुट्टी, माधवन आनंद, शिवरमण इत्यादि शामिल हैं।

मणिपुरी
15-16वीं शताब्दी में वैष्णव धर्म के प्रचार-प्रसार की वजह से मणिपुर में इस नृत्य शैली का उद्भव व विकास हुआ। मणिपुरी के विषय मुख्यतया कृष्ण की रासलीला पर आधारित होते हैं। मणिपुरी की सबसे खास बात शरीर की अत्यन्त आकर्षक एवं मृदु गति होती है जो इसे एक विशिष्ट सौंदर्य प्रदान करती है।
1917 में रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा इस नृत्य को शांतिनिकेतन में प्रवेश दिलाने के बाद यह पूरे देश में लोकप्रिय हो गया। इसके प्रमुख कलाकार हैं- गुरु अमली सिंह, आतम्ब सिंह, झावेरी बहनें, थम्बल यामा, रीता देवी, गोपाल सिंह इत्यादि।


मोहिनी अट्टम
यह केरल राज्य में प्रचलित देवदासी परंपरा का नृत्य है। 19वीं सदी में भूतपूर्व त्रावणकोर के महाराजा स्वाति तिरुनाल ने इसे काफी प्रोत्साहन दिया। बाद में कवि वल्लाठोल ने इसका पुनरुत्थान किया। इस नृत्य के प्रमुख कलाकार हैं- कल्याणी अम्मा, भारती शिवाजी, हेमामालिनी इत्यादि।

कृष्णअट्टम
यह नृत्य शैली लगातार आठ रातों तक चलती है और इसमें भगवान कृष्ण के सम्पूर्ण चरित्र का वर्णन किया जाता है। यह केरल में प्रचलित है।

यक्षगान
कर्नाटक में प्रचलित यह मूल रूप से ग्रामीण प्रकृति का नृत्य नाटक है। हिंदू महाकाव्यों से संबंधित इस नृत्य शैली में विदूषक और सूत्रधार मुख्य भूमिका निभाते हैं।

प्राकृतिक संसाधन और भूमि प्रयोग

पृथ्वी हमें प्राकृतिक संसाधन उपलब्ध कराती है जिसे मानव अपने उपयोगी कार्र्यों के लिए प्रयोग करता है। इनमें से कुछ संसाधन को पुनर्नवीनीकृत नहीं किया जा सकता है, उदाहरणस्वरूप- खनिज ईंधन जिनका प्रकृति द्वारा जल्दी से निर्माण करना संभव नहीं है।पृथ्वी की भूपर्पटी से जीवाश्मीय ईंधन के भारी भंडार प्राप्त होते हैं। इनमें कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस और मीथेन क्लेथरेट शामिल हैं। इन भंडारों का उपयोग ऊर्जा व रसायन उत्पादन के लिए किया जाता है। खनिज अयस्क पिंडों का निर्माण भी पृथ्वी की भूपर्पटी में ही होता है।
पृथ्वी का बायोमंडल मानव के लिए उपयोगी कई जैविक उत्पादों का उत्पादन करता है। इनमें भोजन, लकड़ी, फार्मास्युटिकल्स, ऑक्सीजन इत्यादि शामिल हैं। भूमि आधारित पारिस्थिकीय प्रणाली मुख्य रूप से मृदा की ऊपरी परत और ताजा जल पर निर्भर करती है। दूसरी ओर महासागरीय पारिस्थितकीय प्रणाली भूमि से महासागरों में बहकर गये हुए पोषणीय तत्वों पर निर्भर करती है।


विश्व में भूमि प्रयोग
  

खेती योग्य भूमि 13.13 प्रतिशत
स्थाई फसलें 4.71 प्रतिशत
स्थाई चारागाह 26 प्रतिशत
वन 32 प्रतिशत
शहरी क्षेत्र  1.5 प्रतिशत
अन्य  30 प्रतिशत


तापमान 
तापमान ऊष्मा की तीव्रता अर्थात वस्तु की तप्तता की मात्रा का ज्ञान कराता है। ग्लोब को तीन तापमान क्षेत्रों में विभाजित किया गया है-

उष्णकटिबंधीय क्षेत्र (Tropical zone)- यह कर्क रेखा व मकर रेखा के मध्य स्थित होता है। वर्षपर्यंत उच्च तापमान रहता है।

समशीतोष्ण क्षेत्र (Temperate zone)- यह दोनों गोलाद्र्धों में 23श 30Ó और 66श ३०ज् अक्षांशों के मध्य स्थित है।

शीत कटिबंध क्षेत्र (Frigid Zone) - दोनों गोलाद्र्धों में यह ध्रुवों और 66श ३०ज् अक्षांश के मध्य स्थित है। वर्षपर्यंत यहाँ निम्न तापमान रहता है।
पृथ्वी का औसत तापमान सदैव समान रहता है।


वायुदाब
वायुदाब को प्रति इकाई क्षेत्रफल पर पडऩे वाले बल के रूप में मापते हैं। इसका स्पष्टï तात्पर्य है कि किसी दिए गए स्थान तथा समय पर वहाँ की हवा के स्तम्भ का सम्पूर्ण भार। इसकी इकाई 'मिलीबार' कहलाती है। वायुदाब के क्षैतिज वितरण को देखने पर धरातल पर वायुदाब की 4 स्पष्ट पेटियाँ पाई जाती हैं।
भूमध्यरेखीय निम्न वायुदाब की पेटी (Equational Low Pressure Belt) - धरातल पर भूमध्यरेखा के दोनों ओर ५श अक्षांशों के बीच निम्न वायुदाब की पेटी का विस्तार पाया जाता है। शांत वातावरण के कारण इस पेटी को शांत पेटी या डोलड्रम भी कहते हैं।
उपोष्ण कटिबंधीय उच्च वायुदाब की पेटियाँ (The subtropical high pressure)- भूमध्य रेखा से ३०श-३५श अक्षांशों  पर दोनों गोलाद्र्धों में उच्च वायुदाब की पेटियों  की उपस्थित पाई जाती है। उच्च वायुदाब वाली इस पेटी को 'अश्व अक्षांश' (horse latitude) कहते हैं।
उपध्रुवीय निम्न वायुदाब की पेटियाँ (Sub-Polar low pressure belt)- दोनों गोलाद्र्धों में ६०श से ६५श अक्षांशों के बीच निम्न वायुदाब की पेटियाँ पाई जाती हैं।
ध्रुवीय उच्च वायुदाब की पेटियाँ (Polar high)- यह पेटियाँ ध्रुवों पर पाई जाती हैं। इन क्षेत्रों में न्यूनतम तापमान के कारण ध्रुवीय उच्च वायुदाब की पेटियों का निर्माण होता है।


पवन
क्षैतिज रूप में गतिशील होने वाली हवा को ही पवन कहते है। वायुदाब की विषमताओं को संतुलित करने की दिशा में यह प्रकृति का एक स्वभाविक प्रयास है। धरातल पर निम्न प्रकार की पवन पाई जाती हैं-
प्रचलित पवन (Prevailing Wind) - जो पवन वायुदाब के अक्षांशीय अंतर के कारण वर्ष भर एक से दूसरे कटिबंध की ओर प्रवाहित होती रहती हैं, उसे प्रचलित पवन कहते हैं।  व्यापारिक पवन (trade Winds), पछुआ पवन (westerlies) व ध्रुवीय पवन (Polar winds) इत्यादि प्रचलित पवन के उदाहरण हैं|

सामयिक पवन (periodic winds)- मौसम या समय के साथ जिन पवनों की दिशा में परिवर्तन पाया जाता है, उन्हें सामयिक या कालिक पवन कहा जाता है। पवनों के इस वर्ग में मानसून पवनें, स्थल तथा सागर समीर शामिल हैं।
स्थानीय पवन (Local Winds) - स्थानीय पवनों की उत्पत्ति तापमान तथा दाब के स्थानीय अंतर की वजह से होता है। लू स्थानीय पवन का एक बेहतर उदाहरण है।
आद्र्रता वायुमण्डल में विद्यमान अदृश्य जलवाष्प की मात्रा ही आद्र्रता (Humidity) कहलाती है।

निरपेक्ष आद्र्रता (Absolute humidity) - वायु के प्रति इकाई आयतन में विद्यमान जलवाष्प की मात्रा को निरपेक्ष आद्र्रता कहते हैं.
विशिष्टï आद्र्रता (Specific Humidity) - हवा के  प्रति इकाई भार में जलवायु के भार का अनुपात विशिष्टï आद्र्रता कहलाती है।
सापेक्ष आद्र्रता (Relative Humidity) - एक निश्चित तापमान पर निश्चित आयतन वाली वायु की आद्र्रता सामथ्र्य तथा उसमें विद्यमान वास्तविक आद्र्रता के अनुपात को सापेक्ष आद्र्रता कहते हैं।
बादल
वायुमण्डल में काफी ऊँचाई में जलवाष्प के संघनन से बने जलकणों या हिमकणों की विशाल राशि को बादल कहते हैं। मुख्यत: बादल हवा के रूद्धोष्म (Adiabatic) प्रक्रिया द्वारा ठण्डे होने तथा उसके तापमान के ओसांक बिन्दु तक गिरने के परिणामस्वरूप निर्मित होते हैं। ऊँचाई के अनुसार बादल निम्नलिखित प्रकार के होते हैं-
ऊँचे मेघ - धरातल से 6,000 से 12,000 मी.।
मध्यम मेघ - धरातल से 2,000 से 6,000 मी.
निचले मेघ - धरातल से 2,000 मी. तक।

मानव भूगोल
जनसंख्या का तात्पर्य किसी क्षेत्र अथवा सम्पूर्ण विश्व में निवास करने वाले लोगों की संपूर्ण संख्या से होता है। पृथ्वी के कुल क्षेत्रफल का मात्र आठवां हिस्सा ही मानव के रहने योग्य है। संपूर्ण पृथ्वी के तीन-चौथाई हिस्से में महासागर स्थित हैं जबकि थलमंडल का के 14 फीसदी हिस्से में मरुस्थल और 27 फीसदी हिस्से में पर्वत स्थित हैं। इसके अतिरिक्त काफी ऐसा क्षेत्र है जो मानव के निवास योग्य नहीं है। पृथ्वी के सुदूर उत्तरी क्षेत्र में अंतिम मानव बस्ती एलर्ट है जो नुनावुत, कनाडा के इल्लेसमेरे द्वीप पर स्थित है। दूसरी ओर सुदूर दक्षिण में अंटार्कटिका पर अमुंडसेन-स्कॉट पोल स्टेशन है। 1650 के बाद के लगभग 300 वर्र्षों में विश्व जनसंख्या में इतनी तीव्र गति से वृद्धि हुई है जितनी किसी पूववर्ती काल में अनुमानित नहीं थी। दिसंबर 2009 के आंकड़ों के अनुसार विश्व की जनसंख्या 6,803,000,000 थी। एक मोटे अनुमान के अनुसार 2013 और 2050 में विश्व की जनसंख्या क्रमश: 7 अरब और 9.2 अरब हो जाएगी। जनसंख्या वृद्धि मुख्य रूप से विकासशील देश में ही होगी। जनसंख्या घनत्व के लिहाज से भी विश्व जनसंख्या में काफी विविधता है। दुनिया की बहुसंख्यक जनसंख्या एशिया में निवास करती है। एक अनुमान के अनुसार 2020 तक दुनिया की 60 फीसदी जनसंख्या शहरी क्षेत्रों में निवास कर रही होगी।

Friday 24 October 2014

भारत के प्रमुख ऐतिहासिक शहर व स्थल

अहिछत्र - उ. प्र. के बरेली जिले में स्थिति यह स्थान एक समय पाँचालों की राजधानी थी।

आइहोल- यह स्थान कर्नाटक में स्थित है। इसकी मुख्य विशेषता चालुक्यों द्वारा बनवाए गए पाषाण के मंदिर हैं।

अजंता की गुफाएँ- यह स्थान महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में स्थित है। इसमें 29 बौद्ध गुफाएँ मौजूद हैं। यह गुफाएँ अपनी चित्रकारी के  लिए प्रसिद्ध हैं। इनका काल 2 सदी ई. पू. से 7 शताब्दी ई. तक है।
अमरावती- यह ऐतिहासिक स्थल आधुनिक विजयवाड़ा के निकट स्थित है। सातवाहन वंश के समय में यह स्थान काफी फला-फूला।

अरिकामेडू- चोल काल के दौरान पाँडिचेरी के निकट स्थित समुद्री बंदरगाह।

बादामी या वातापी- कर्नाटक में स्थित यह स्थान चालुक्य मूर्तिकला के  लिए प्रसिद्ध है जो कि गुहा-मंदिरों में पाई जाती है। यह स्थान द्रविड़ वास्तुकला का उत्तम उदाहरण हैै।

चिदाम्बरम- यह स्थान चेन्नई के 150 मील दक्षिण में स्थित है और एक समय यह चोल राज्य की राजधानी थी। यहाँ के मंदिर भारत के प्राचीनतम मंदिरों में से हैं और वे द्रविड़स्थापत्य व वास्तुकला का बखूबी प्रतिनिधित्व करते हैं।
बोध गया- यह स्थान बिहार के  गया जिले में स्थित है। इसी स्थान पर बुद्ध ने ज्ञान प्राप्ति किया था।

एलीफेंटा की गुफा- यह मुंबई से लगभग 6 मील की दूरी पर स्थित है। इसमें 7वीं व 8वीं शताब्दी की पत्थर को काटकर बनाई गई गुफाएँ स्थित हैं।

अयोध्या- यह आधुनिक फैज़ाबाद से कुछ दूरी पर स्थित है। यह कोसल राज्य की राजधानी थी और राम का जन्मस्थान यही है।

एलोरा गुफायें - यह स्थान महाराष्ट्र राज्य के औरंगाबाद जिले के उत्तर-पश्चिम में स्थित है। इसमें पत्थर को काटकर बनाई गईं 34 गुफाएं स्थित हैं।

फतेहपुर सीकरी- यह स्थान आगरा से 23 मील की दूरी पर स्थित है। इसकी स्थापना 1569 में अकबर ने की थी। यहाँ पर 176 फीट ऊँचा बुलंद दरवाजा मौजूद है।

हड़प्पा- पाकिस्तान के पँजाब प्रांत के माँटगोमेरी जिले में स्थित यह स्थल हड़प्पा संस्कृति काल में एक प्रमुख शहर था।

हम्पी - कर्नाटक में स्थित यह स्थान मध्यकालीन युग में विजयनगर साम्राज्य की राजधानी थी।

आगरा- इस शहर की नींव लोदी वंश के बादशाह सिकंदर लोदी ने 1509 में रक्खी थी। बाद में मुगल सम्राटों ने इसे अपनी राजधानी बनाया। शाहजहाँ ने यहीं अपनी पत्नी मुमताज महल की याद में ताजमहल का निर्माण कराया था।

अमृतसर- यहीं पर सिक्खों का पवित्र स्थल स्वर्ण मंदिर स्थित है। इसका निर्माण सिक्खों के चौथे गुरू रामदास ने करवाया था।

अवन्ति- पुराणों में अवन्तिका के नाम से प्रसिद्ध भारत का यह प्राचीन शहर 16 महाजनपदों में शामिल था।

इंद्रप्रस्थ- नई दिल्ली के निकट स्थित यह नगर महाभारत काल में कुरू राज्य की राजधानी थी।

उज्जयिनी- छठी सदी ई. पू. में यह शहर उत्तरी अवन्ति की राजधानी था।

कन्नौज- उत्तर प्रदेश में स्थित यह शहर हर्ष की राजधानी थी।

कन्याकुमारी- पद्मपुराण में वर्णित यह शहर भारत के सुदूर दक्षिण में स्थित है।

कपिलवस्तु- नेपाल के तराई में स्थित इसी जगह में महात्मा बुद्ध का जन्म हुआ था
कांचीपुरम- वर्तमान में कांजीवरम के नाम से विख्यात यह प्राचीन नगर सात पवित्र नगरों में से एक है।

कुशीनगर- उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले में स्थित इसी स्थान पर महात्मा बुद्ध का महापरिनिïर्वाण हुआ था।

खजुराहो- दसवीं से बारहवीं शताब्दी के मध्य चंदेल शासकों द्वारा निर्मित मंदिरों के लिए प्रसिद्ध खजुराहों मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले में स्थित है।

गया- बिहार में स्थित इस नगर की गणना पवित्र नगरियों में की जाती है। यहीं पर बुद्ध को ज्ञान की प्राप्त हुई थी।

जयपुर- 1721 में कछवाहा शासक सवाई जयसिंह ने इस नगर की स्थापना की थी।

झांसी- उत्तर प्रदेश का यह नगर रानी लक्ष्मी बाई की वजह से प्रसिद्ध है।

दौलताबाद- प्राचीनकाल में देवगिरि के नाम से विख्यात यह नगर महाराष्ट्र के औरंगाबाद में स्थित है। मुहम्मद बिन तुगलक ने इसे अपनी राजधानी बनाया था।

पाटलिपुत्र- बिहार स्थित पाटलिपुत्र वर्तमान में पटना के नाम से प्रसिद्ध है। यह मौर्र्यों की राजधानी थी।

पूणे- मराठा सरदार शिवाजी तथा उनके पुत्र शम्भाजी की राजधानी पूणे महाराष्ट्र का एक प्रमुख शहर माना जाता है।

पुरूषपुर- प्रथम शताब्दी ई.पू. में कनिष्क द्वारा स्थापित पुरूषपुर पाकिस्तान के पश्चिमोत्तर सीमा प्रांत में स्थित है। इसे वर्तमान में पेशावर के नाम से जाना जाता है।

प्लासी- प्लासी 1757 में ईस्ट इंडिया कंपनी एवं बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला के बीच हुए युद्ध के लिए प्रसिद्ध है।

प्रयाग- तीर्थराज कहलाने वाला यह नगर गंगा-यमुना के संगम पर बसा है। प्राचीन काल से ही इस स्थली की गणना पवित्र नगरियों में की जाती है। बाद में अकबर ने इसका नाम बदलकर इलाहाबाद कर दिया था।

बीजापुर- युसूफ आदिलशाह द्वारा स्थापित यह नगर कर्नाटक में स्थित है। यहां गोल गुंबज मुहम्मद आदिलशाह का मकबरा है।

भुवनेश्वर- वर्तमान समय में उड़ीसा की राजधानी भुवनेश्वर प्राचीन समय में उत्कल की राजधानी के रूप में प्रसिद्ध था। यहाँ के मंदिर विशेष रूप से प्रसिद्ध हैं।

माउंट आबू- दिलवाड़ा के जैन मंदिर के लिए प्रसिद्ध यह स्थान अरावली पर्वत पर स्थित है।

मथुरा- उत्तर प्रदेश में स्थित यह नगरी भगवान श्रीकृष्ण की जन्म स्थली होने की वजह से प्रसिद्ध है।

मामल्लपुरम- पल्लव नरेश नरसिंह वर्मन द्वारा चेन्नई के पास निर्मित यह नगर वर्तमान में महाबलीपुरम के रुप में विख्यात है। यहां के मंदिर विशेष रूप से प्रसिद्ध हैं।

विजयनगर- इस राज्य की नींव 1336 में तुंगभद्रा नदी के तट पर हरिहर व बुक्का द्वारा रखी गई थी।

श्रवणबेलगोला- कर्नाटक के हसन जिले में स्थित श्रवणबेलगोला जैन धर्म के मुख्य केेंद्र के रूप में प्रसिद्ध है। यहां जैन तीर्र्थंकर बाहुबली की विशाल मूर्ति है।

सारनाथ- यह स्थान उत्तर प्रदेश के वाराणसी के पास स्थित है जहां बुद्ध ने अपना पहला उपदेश दिया था।

कोणार्क- यह स्थान सूर्य मंदिर के लिए विख्यात है।

रामेश्वरम- तमिलनाडु में स्थित यह स्थान रामनाथ स्वामी मंदिर के लिए प्रसिद्ध है।

मदुरै- पाण्ड्य राजाओं की राजधानी एवं तमिलनाडु में स्थित यह नगर मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है।

भीतरगांव- उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले में स्थित यह स्थल गुप्तकालीन ईंटों से बने मंदिर के लिए प्रसिद्ध है।

Thursday 23 October 2014

भारत के राष्ट्रीय प्रतीक

राष्ट्रीय ध्वज
भारत के राष्ट्रीय ध्वज में तीन रंग हैं। राष्टरीय ध्वज  में समान अनुपात में तीन आड़ी पट्टियाँ हैं, गहरा केसरिया रंग ऊपर, सफेद बीच में और गहरा हरा रंग सबसे नीचे है। ध्वज की लम्बाई-चौड़ाई का अनुपात 3:2 है। सफेद पट्टी के बीच में नीले रंग का एक चक्र है। इसका प्रारूप सारनाथ में अशोक सिंह स्तम्भ पर बने चक्र से लिया गया है। इसका व्यास लगभग सफेद पट्टी की चौड़ाई जितना है और इसमें चौबीस तीलियाँ हैं। भारत की संविधान सभा ने राष्ट्रीय-ध्वज का प्रारूप 22 जुलाई 1947 को अपनाया।
राष्ट्रीय पशु
भारत का राष्ट्रीय पशु बाघ है। इसकी आठ प्रजातियों में से भारत में पाई जाने वाली प्रजाति को रायल बंगाल टाइगर के नाम से जाना जाता है। उत्तर पश्चिमी भारत को छोड़कर बाकी सारे देश में यह प्रजाति पाई जाती है। देश के बाघों की घटती संख्या जो 1972 में घटकर 1827 तक आ गयी थी, को थामने के लिए अप्रैल 1973 में बाघ परियोजना नाम से एक वृहद संरक्षण कार्यक्रम शुरू किया गया। बाघ परियोजना के अन्तर्गत देश में अब तक 27 बाघ अभयारण्य स्थापित किए गए हैं जिनका क्षेत्रफल 33,875 वर्ग किलोमीटर है।

राष्ट्रीय पक्षी
भारत का राष्ट्रीय पक्षी मयूर  है। हंस के  आकार  के  इस  रंग-बिरंगे पक्षी की गर्दन लंबी, आँख के नीचे एक सफेद निशान और सिर पर पंखे के आकार की कलगी लगी होती है। नर मयूर,मादा मयूर की अपेक्षा अधिक सुंदर होता है। मयूर भारतीय उप-महाद्वीप में सिंधु नदी के दक्षिण और पूर्व से लेकर, जम्मू और कश्मीर, असम के पूर्व मिजोरम के दक्षिण तक पूरे भारतीय प्रायद्वीप में व्यापक रूप से पाया जाता है। मयूर को लोगों का पूरा संरक्षण मिलता है। इसे धार्मिक या भावात्मक आधार पर कभी भी परेशान नहीं किया जाता है। भारतीय वन्य प्राणी (सुरक्षा) अधिनियम, 1972 के  अंतर्गत  इसे  पूर्ण  संरक्षण प्राप्त है।

राष्ट्रीय चिन्ह
भारत का राष्ट्रीय चिन्ह सारनाथ स्थित अशोक सिंह स्तम्भ की अनुकृति है जो सारनाथ के संग्रहालय में सुरक्षित है। मूल स्तम्भ में शीर्ष पर चार सिंह हैं जो एक-दूसरे की ओर पीठ किए हुए हैं। इनके नीचे घंटे के आकार के पद्म के  ऊपर एक चित्रवल्लरी में एक हाथी, चौकड़ी भरता हुआ एक घोड़ा, एक साँड़ तथा एक सिंह की उभरी हुई मूर्तियाँ हैं जिनके बीच-बीच में चक्र बने हुए हैं। एक ही पत्थर को काटकर बनाए गए इस सिंह स्तम्भ के ऊपर 'धर्मचक्र' रखा था।
भारत सरकार ने यह चिन्ह 26 जनवरी 1950 को अपनाया। इसमें केवल तीन सिंह दिखाई पड़ते हैं, चौथा दिखाई नहीं देता। पट्टी के मध्य में उभरी हुई नक्काशी में चक्र है, जिसके दाईं ओर एक साँड और बाईं ओर एक घोड़ा है। आधार का पद्म छोड़ दिया गया है। दाएं तथा बाएं छोरों पर अन्य चक्रों के किनारे हैं। फलक के नीचे मुंडकोपनिषद का सूत्र 'सत्यमेव जयते' देवनागरी लिपि में अंकित है, जिसका अर्थ है- 'सत्य की ही विजय होती है'।

राष्ट्रगान
रवीन्द्रनाथ ठाकुर द्वारा रचित और संगीतबद्ध 'जन-गण-मन' को संविधान सभा ने भारत के राष्टï्रगान के रूप में 24 जनवरी 1950 को अपनाया था। यह सर्वप्रथम 27 दिसम्बर 1911 को भारतीय राष्टरीय काँग्रेसके कलकत्ता अधिवेशन में गाया गया था। पूरे गीत में पाँच पद हैं। प्रथम पद, राष्ट्रगान का पूरा पाठ है, जो इस प्रकार है :

जन-गण-मन अधिनायक,
जय हे भारत-भाग्य विधाता
पंजाब-सिंधु-गुजरात-मराठा-
द्राविड़ उत्कल बंग
विंध्य-हिमाचल-यमुना-गंगा
उच्छल-जलधि तरंग
तब शुभ नामे जागे,
तब शुभ आशिष माँगे,
गाहे तब जय-गाथा
जन-गण-मंगलदायक जय हे,
भारत-भाग्य विधाता
जय हे, जय हे, जय हे,
जय जय जय जय हे।

राष्ट्रगान के गायन की अवधि लगभग 52 सेकेण्ड है। कुछ अवसरों पर राष्ट्रगान को संक्षिप्त रूप से गाया जाता है जिसमें इसकी प्रथम और अंतिम पंक्तियाँ (गाने का समय लगभग 20 सेकेण्ड) होती हैं।

राष्ट्रगीत
बंकिमचंद्र चटर्जी का लिखा 'वन्दे मातरम्' गीत स्वतंत्रता संग्राम में जन-जन का प्रेरणा स्रोत था। यह गीत प्रथम बार 1896 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन में गाया गया था। इसका प्रथम पद इस प्रकार है :

वन्दे मातरम्
सुजलाम्, सुफलाम्,
मलयज-शीतलाम्,
शस्यश्यामलाम्, मातरम् !
शुभ्रज्योत्सना,
पुलकितयामिनीम्
फुल्लकुसुमित द्रुमदल शोभिनीम्
सुहासिनीम् सुमधुर भाषिणीम्
सुखदाम्, वरदाम्, मातरम् !


राष्ट्रभाषा
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 343 के अनुसार संघ गणराज्य भारत की राजभाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी तय की गई है। इसके अतिरिक्त संविधान द्वारा कुल 18 भाषाएँ शासकीय घोषित की गयी हैं।
भारत की राष्ट्रभाषा हिन्दी है। विश्व में हिन्दी तीसरी सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा (45.7 करोड़ व्यक्ति) है। 

राष्ट्रीय पंचाँग (कैलेण्डर)
ग्रिगेरियन कैलेण्डर के साथ-साथ देशभर के लिए शक संवत् पर आधारित एकरूप राष्ट्रीय पंचाँग स्वीकार किया गया है, जिसका पहला महीना चैत्र है और सामान्य वर्ष 365 दिन का होता है। इसे 22 मार्च 1957 को अपनाया गया।
राष्ट्रीय पंचांग का आधार हिन्दी महीने होते हैं, महीने के दिनों की गणना तिथियों के अनुसार होती है। इनमें घट-बढ़  होने के कारण ही देश में मनाये जाने वाले त्यौहार भी आगे-पीछे होते रहते हैं।

Wednesday 22 October 2014

Happy Dipawali

We meditate on the glory of the creator,
Who has created the Universe,
Who is worthy of Worship,
Who is the embodiment of Knowledge & Light,
Who is a remover of all Sin and Ignorance.
May he enlighten our Intellect.
Happy Deepavali 2014.
We Chiragan NGO & Oknext Group wishes to all of you a vary vary Happy Deepavali.

Wednesday 1 October 2014

कर्मचारी चयन आयोग (एसएससी) ने एसएससी संयुक्त माध्यमिक स्तरीय परीक्षा 2014 करवाने की घोषणा की है.

कर्मचारी चयन आयोग (एसएससी) ने एसएससी संयुक्त माध्यमिक स्तरीय परीक्षा 2014 करवाने की घोषणा की है. उपरोक्त पीक्षा का आयोजन डाटा इंट्री ऑपरेटर और लोअर डिवीजन क्लर्क के पदों को लिए विभिन्न विभागों में किया जाना है.
विदित हो कि उपरोक्त परीक्षा का आयोजन 02 नवंबर 2014 को किया जाना है. इ, परीक्षा काआयोजन देश भर के परीक्षा केद्रों पर किया जाना है.
परीक्षा प्रश्न पत्र में सामान्य योग्यता, अंग्रेजी भाषा, क्वांटिटिव एप्टीट्यूड और सामान्य अध्यन के लिए किया जाना है.
नीचे परीक्षा की तैयारी कर रहे अभ्यर्थियों के लिए कुछ टिप्स दिए जा रहे हैं-
  • परीक्षा केंद्र पर समय से पहले पहुँचेपरीक्षा देने जा रह सभी अभ्यर्थियों को परीक्षा केंद्र पर निर्धारित समय से 30 मिनट पहले पहुँचना चाहिए.यदि संभव हो तो अभ्यर्थियों को परीक्षा केंद्र का एक दिन पहले निरीक्षण कर लेना चाहिए, इससे उन्हें परीक्षा केंद्र पर पहुँचने के समय का एक अनुमान हो जाएगा.
  • आवश्यक कागजात साथ रखें- hdjप्रत्येक अभ्यर्थी के लिए परीक्षा से एक दिन पहले बैग पैक करना बहुत आवश्यक है. प्रवेश पत्र और कोई एक आईडी प्रूफ जैसे वोटर आईडी, पासपोर्ट या पैन कार्ड रख लेना चाहिए. एक वैध आईडी प्रूफ होने से आप सभी संभावित समस्यायों से बच सकते हैं.
  • ज्ञात प्रश्नों को पहले हल करना: परीक्षा भवन में पहुँचने के बाद hdप्रश्नों को हल करने की समय सीमा देख लेनी चाहिए.आसान और ज्ञात प्रश्नों को सर्वप्रथम हल करना चाहिए. यह आपका समय बचाने में मदद करेगा. आसान प्रश्नों को हल करने के बाद मुश्किल और अधिक समय लेने वाले प्रश्नों को हल करना चाहिए.
  • उत्तरमाला जाँचना: सभी अभ्यर्थियों को प्रश्न पत्र हल करने के बाद 15 मिनट तक उत्तरमाला को ध्यानपूर्वक जाँचना चाहिए और फिर जमा करना चाहिए इससे गलत दिए प्रश्नों के उत्तरों को बदला जा सकता है.

Friday 8 August 2014

परियों जैसी प्यारी प्यारी, मिश्री जैसी मधुर है बेटी!

परियों जैसी प्यारी प्यारी, मिश्री जैसी मधुर है बेटी!
एक मानव के जीवन पथ में, फूलों जैसी डगर है बेटी!
जिस आंगन में बेटी न हो वो, उस घर में रहती नीरसता,
कड़ी धूप में जलधारा की, एक मनभावन लहर है बेटी!

बेटी की तुलना बेटों से, करके उसको कम न आंको!
बेटी है बेटों से बढ़कर, कभी रूह में उसकी झांको!

वो कविता का भावपक्ष है, किसी गज़ल की बहर है बेटी!
परियों जैसी प्यारी प्यारी, मिश्री जैसी मधुर है बेटी...

जन्मकाल से ही बेटी को, कुदरत से ये गुण मिलते हैं!
बचपन से ही उसके मन में, नम्र भाव के गुल खिलते हैं!
बेटी के मन में बहता है, सहनशीलता का एक सागर,
नहीं आह तक करती है वो, भले ही उसके हक छिलते हैं!

बेटी तो है ज्योति जैसी, वो घर में उजियारा करती!
वो चिड़ियों की तरह चहककर, घर आंगन को प्यारा करती!

बेटे यहाँ बदल जायें पर, अपनी आठों पहर है बेटी!
परियों जैसी प्यारी प्यारी, मिश्री जैसी मधुर है बेटी....

आशाओं की ज्योति है वो, पूनम जैसी निशा है बेटी!
अंतर्मन को सुख देती है, कुदरत की वो दुआ है बेटी!
"देव" जहाँ में बेटी जैसा, कोई अपना हो नहीं सकता,
किसी मनुज के बिगड़े पथ की, सही सार्थक दिशा है बेटी!

बेटी है तो घर सुन्दर है, बिन बेटी के घर खाली है!
बेटी है तो खिला है उपवन, बेटी है तो हरियाली है!

हंसकर वो कुर्बानी देती, ऐसा पावन रुधिर है बेटी!
परियों जैसी प्यारी प्यारी, मिश्री जैसी मधुर है बेटी!"

"
बेटी-एक ऐसा चरित्र, जिसके बिना किसी मनुज का जीवन पूर्ण नही होता, जिसकी किलकारी के बिना, जिसकी चहक के बिना, कोई घर सम्पूर्ण नहीं होता, वो ऐसा चरित्र जो अपने हर सुख का दमन करते हुए, अपने परिजनों के लिए अपने रुधिर की एक एक बूंद तक कुर्बान कर देती है, तो आइये कुदरत के ऐसा अनमोल चरित्र "बेटी" का सम्मान करें !"

Thursday 7 August 2014

कटहल का प्रयोग

कटहल (Jackfruit )-
कटहल का प्रयोग बहुत से कामों में किया जाता है | कच्चे कटहल की सब्जी बहुत स्वादिष्ट बनती है तथा पक जाने पर अंदर का गूदा खाया जाता है | कटहल के बीजों की सब्जी भी बनाई जाती है | आमतौर पर यह सब्जी की तरह ही प्रयोग में आता है परन्तु कटहल में कई औषधीय गुण भी पाये जाते हैं| कटहल में कई महत्वपूर्ण प्रोटीन्स,कार्बोहाइड्रेट्स के अलावा विटामिन्स भी पाये जाते हैं |
कटहल के औषधीय गुण -



१- पके हुए कटहल के सेवन से गैस और बदहज़मी में लाभ होता है |

२- कटहल की पत्तियों को छाया में सुखाकर चूर्ण बना लें | यह चूर्ण एक छोटी चम्मच की मात्रा में प्रतिदिन सेवन करने से पेट के अलसर में आराम मिलता है |

३- कटहल की छाल घिसकर लेप बना लें | यह लेप मुहँ के छालों पर लगाने से छाले दूर होते हैं |

४- कटहल के पत्तों को गर्म करके पीस लें और इसे दाद पर लेप करें | इससे दाद ठीक होता है |

५- कटहल के पत्तों पर घी लगाकर एक्ज़िमा पर बाँधने से आराम मिलता है

६- कटहल के ८-१० बीजों के चूर्ण का क्वाथ बनाकर पीने से नकसीर में लाभ होता है |

Wednesday 6 August 2014

अमरबेल

अमरबेल -
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यह एक ही वृक्ष पर प्रतिवर्ष पुनः नवीन होती है तथा यह वृक्षों के ऊपर फैलती है , भूमि से इसका कोई सम्बन्ध नहीं रहता अतः आकाशबेल आदि नामों से भी पुकारी जाती है | अमरबेल एक परोपजीवी और पराश्रयी लता है , जो रज्जु [रस्सी ] की भांति बेर , साल , करौंदे आदि वृक्षों पर फ़ैली रहती है | इसमें से महीन सूत्र निकलकर वृक्ष की डालियों का रस चूसते रहते हैं , जिससे यह तो फलती- फूलती जाती है , परन्तु इसका आश्रयदाता धीरे - धीरे सूखकर समाप्त हो जाता है | आज हम अमरबेल के कुछ औषधीय गुणों की चर्चा कर रहे हैं ----

१-अमरबेल को तिल के तेल में या शीशम के तेल में पीसकर सर पर लगाने से गंजेपन में लाभ होता है तथा बालों की जड़ मज़बूत होती हैं | यह प्रयोग धैर्य पूर्वक लगातार पांच से छह सप्ताह करें |
२- लगभग ५० ग्राम अमरबेल को कूटकर १ लीटर पानी में पकाकर , बालों को धोने से बाल सुनहरे व चमकदार बनते हैं तथा बालों का झड़ना व रुसी की समस्या इत्यादि भी दूर होती हैं |
३- अमरबेल के १०-२० मिलीलीटर रस को जल के साथ प्रतिदिन प्रातःकाल पीने से मस्तिष्कगत तंत्रिका [Nervous System ] रोगों का निवारण होता है |
४- अमरबेल के १०मिली स्वरस में ५ ग्राम पिसी हुई काली मिर्च मिलाकर खूब घोटकर नित्य प्रातः काल ही रोगी को पिला दें | तीन दिन में ही ख़ूनी और बादी दोनों प्रकार की बवासीर में विशेष लाभ होता है |
५- अमरबेल को पीसकर थोड़ा गर्म कर लेप करने से गठिया की पीड़ा में लाभ होता है तथा सूजन शीघ्र ही दूर हो जाती है । अमरबेल का काढ़ा बनाकर स्नान करने से भी वेदना में लाभ होता है |
६- अमरबेल के २-४ ग्राम चूर्ण को या ताज़ी बेल को पीस कर थोड़ी सी सोंठ और थोड़ा सा घी मिलाकर लेप करने से पुराना घाव भी भर जाता है |

Tuesday 5 August 2014

कान का दर्द

कान का दर्द -
गर्मियों में कान के अंदरूनी या बाहरी हिस्से में संक्रमण होना आम बात है| अधिकतर तैराकों को ख़ास-तौर पर इस परेशानी का सामना करना पड़ता है | कान में फुंसी निकलने,पानी भरने या किसी प्रकार की चोट लगने की वजह से दर्द होने लगता है | कान में दर्द होने के कारण रोगी हर समय तड़पता रहता है तथा ठीक से सो भी नहीं पाता| बच्चों के लिए कान का दर्द अधिक पीड़ा भरा होता है | लगातार जुक़ाम रहने से भी कान का दर्द हो जाता है |
आज हम आपको कान के दर्द के लिए कुछ घरेलू उपचार बताएंगे -



१- तुलसी के पत्तों का रस निकाल लें| कान में दर्द या मवाद होने पर रस को गर्म करके कुछ दिन तक लगातार डालने से आराम मिलता है |

२- लगभग १० मिली सरसों के तेल में ३ ग्राम हींग डाल कर गर्म कर लें | इस तेल की १-१ बूँद कान में डालने से कफ के कारण पैदा हुआ कान का दर्द ठीक हो जाता है |

३- कान में दर्द होने पर गेंदे के फूल की पंखुड़ियों का रस निकालकर कान में डालने से कान का दर्द ठीक हो जाता है |

४- तिल के तेल में लहसुन की काली डालकर गर्म करें,जब लहसुन जल जाए तो यह तेल छानकर शीशी में भर लें | इस तेल की कुछ बूँदें कान में डालने से कान का दर्द समाप्त हो जाता है |

५- अलसी के तेल को गुनगुना करके कान में १-२ बूँद डालने से कान का दर्द दूर हो जाता है |

६- बीस ग्राम शुध्द घी में बीस ग्राम कपूर डालकर गर्म कर लें | अच्छी तरह पकने के बाद ,ठंडा करके शीशी में भरकर रख लें | इसकी कुछ बूँद कान में डालने से दर्द में आराम मिलता है |

Saturday 19 July 2014

होटल इंडस्ट्री

टूरिस्ट की बढ़ती संख्या की वजह से हॉस्पिटैलिटी इंडस्ट्री में काफी तेजी देखी जा रही है। रिपोर्ट के मुताबिक, इस साल 83 हजार के अधिक लोगों को इस इंडस्ट्री में नौकरियां मिल सकती हैं। स्वागत करने को तैयार इस सेक्टर में आप भी बना सकते हैं करियर..
विदेशी सैलानियों के बीच भारत पसंदीदा डेस्टिनेशन के रूप में उभरा है और पिछले कुछ वर्र्षो में यहां आने वाले सैलानियों की संख्या में तेजी से वृद्धि हुई है। इससे होटल इंडस्ट्री में भी तेजी देखी जा सकती है। भारत में होटल इंडस्ट्री के विकास का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि एशिया प्रशांत क्षेत्र में भारत चीन के बाद दूसरे स्थान पर है। इस फील्ड में संभावनाओं को देखते हुए होटल मैनेजमेंट से जुड़े कोर्स कर लेते हैं, तो भविष्य में चमकदार करियर बनाया जा सकता है।
होटल इंडस्ट्री और टूरिजम सेक्टर
होटल इंडस्ट्री का सीधे तौर पर टूरिस्ट से जुड़ा होता है। यदि टूरिस्ट आते हैं, तो होटल इंडस्ट्री को काफी बढ़ावा मिलता है। 12वींपंचवर्षीय योजना के मुताबिक, 2016 तक भारत में 11.24 मिलियन विदेश टूरिस्ट के आने की संभावना है। वहींइस दौरान 1451.46 मिलियन घरेलू टूरिस्ट भी होंगे। प्लानिंग कमीशन के मुताबिक, 2016 तक देश में करीब 50 लाख रूम्स की जरूरत होगी।
कैसे मिलेगी एंट्री
12वीं पास स्टूडेंट होटल मैनेजमेंट में डिप्लोमा या डिग्री हासिल कर सकते हैं। नेशनल काउंसिल फॉर होटल मैनेजमेंट एेंड कैटरिंग टेक्नोलॉजी के संस्थानों में बीएससी इन हास्पिटैलिटी एेंड होटल मैनेजमेंट कोर्स में दाखिले के लिए संयुक्तप्रवेश परीक्षा होती है। इसके लिए 12वीं में कैंडिडेट्स का 50 प्रतिशत मा‌र्क्स होना जरूरी है।
कौन-कौन से कोर्स
एलबीआईआईएचएम के डायरेक्टर कमल कुमार के मुताबिक, 12वीं के बाद बीए इन होटल मैनेजमेंट, डिप्लोमा इन होटल मैनेजमेंट, बैचलर डिग्री इन होटल मैनेजमेंट, डिप्लोमा इन होटल एेंड कैटरिंग मैनेजमेंट, बैचलर डिग्री इन हॉस्पिटैलिटी साइंस, बीएससी होटल मैनेजमेंट एेंड कैटरिंग साइंस जैसे कोर्स कर सकते हैं। इसकी अवधि 6 महीने से 3 साल तक है। इसके अलावा, पीजी डिप्लोमा इन होटल मैनेजमेंट, एमएससी इन होटल मैनेजमेंट और एमए इन होटल मैनेजमेंट कोर्स कर सकते हैं। इसकी अवधि 2 साल है। पर्सनल स्किल
इस इंडस्ट्री में करियर बनाने के इच्छुक स्टूडेंट्स की पर्सनैलिटी आकर्षक होने के साथ-साथ इसके लिए कम्युनिकेशन स्किल भी शानदार होनी चाहिए। तार्किक सोच के साथ-साथ एडमिनिस्ट्रेशन स्किल भी अच्छी होनी चाहिए।
जॉब के मौके
सुंदरदीप ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशन की एग्जिक्यूटिव डायरेक्टर डाक्टर अंजू सक्सेना के मुताबिक, होटल मैनेजमेंट कोर्स करने के बाद आप होटल एवं हॉस्पिटैलिटी इंडस्ट्री में मैनेजमेंट ट्रेनी के रूप में कार्य की शुरुआत कर सकते हैं। इसके अलावा, होटलों में किचन मैनेजमेंट, हाउसकीपिंग मैनेजमेंट, एयरलाइन कैटरिंग, केबिन सर्विसेज, सर्विस सेक्टर में गेस्ट या कस्टमर रिलेशन एग्जिक्यूटिव, फास्ट फूड चेन, रिसॉर्ट मैनेजमेंट, क्रूज शिप होटल मैनेजमेंट, गेस्ट हाउसेज, हॉस्पिटल ऐडमिनिस्ट्रेशन, कैटरिंग, रेलवे या बैंक या बड़े संस्थानों में कैटरिंग या कैंटीन आदि में भी जॉब्स मिल सकती हैं।
सैलरी पैकेज
करियर के शुरुआती दौर में 12 -18 हजार रुपये प्रति माह मिल सकते हैं। कुछ वषरें का अनुभव हासिल करने के बाद सैलरी अच्छी हो सकती है।
ई-मार्केटिंग का जमाना
जेपी बिजनेस स्कूल नोएडा द्वारा सोशल मीडिया और ई-मार्केटिंग पर नेशनल कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया गया। इसमें सोशल मीडिया और ई-मार्केटिंग पर आधारित रिसर्च और नई जानकारियां शेयर की गईं। इस मौके पर जेआइआइटी नोएडा के वाइस चांसलर प्रो. एससी सक्सेना ने कहा कि टेक्नोलॉजी के माध्यम से बिजनेस ऑर्गेनाइजेशन में काफी चेंज आया है। जेईएस के सीईओ डॉ.वाई मेदुरी ने अपने भाषण में ई-बिजनेस द्वारा विकसित और इस्तेमाल किए जा रहे रेवेन्यू मॉडल पर जोर दिया। इसके बाद एनआइआइटी टेक्नोलॉजीज के एशिया पैसेफिक इंडिया और मिडिल ईस्ट के प्रेसिडेंट अरविंद मेहरोत्रा ने सेल्फ सर्विस प्रोपगेशन यूजिंग डिजिटल एसेट फॉर कस्टमर्स ऐंड इंसाइड द आर्गेनाइजेशन विषय पर बताया कि कैसे सोशल मीडिया की मदद से औद्योगिक संस्थाएं कंज्यूमर्स की भावनाओं को प्रभावित कर रही हैं। गूगल कंज्यूमर मार्केटिंग के हेड गुनीत सिंह ने गूगल द्वारा अपनाए जा रहे न्यू मीडिया और एडवरटाइजिंग स्ट्रैटेजी की ओर लोगों का ध्यान आकर्षित कराया। आइएमआइ दिल्ली की प्रो. डॉ. नीना सोंधी ने वर्चुअल व‌र्ल्ड में कस्टमर्स को इंगेज करने के उपायों पर रोशनी डाली। कॉन्फ्रेस में कॉर्पोरेट जगत से एमएमटीसी, आइएमआरबी, जेपी होटल्स, जेपी ग्रीन्स, जेपी सीमेंट, जेआइएलआइटी ऐंड जेपी कॉर्पोरेट कम्युनिकेशन आदि के प्रतिनिधि शामिल हुए।

ख़ुशी ना दे पाएं हर एक को गर मुमकिन ना हो तो पीड़ा भी न पहुँचायें..!!

सब शब्दों का ही तो खेल है ..!
मीठे हुए तो दिल में उतर शीतलता दे जाते है ..!!
कभी तीखे हुए तो दिल में कटार बन जख्म दे जाते है ..!
मन में कितना भी अंतर्द्वंद चल रहा है,ये कौन जान पाता है ..!!
क्या कहा किन शब्दों से हमने खुद को अभिव्यक्त किया बस ..!
वही सामने वाले ने समझा और हमारे लिए अपनी धारणा बना ली ..!!
आपके कहे शब्द किसी का दिल न दुःखायें जाने -अनजाने कुछ ऐसा ना कह जाये ..!
सामने वाला दुखी हो जाये या अपमानित समझे खुद को सके सामने ..!!
कोशिश कीजिये जो भी कहें सोच समझ का तोल-मोल कर बोलें शब्दों की महिमा को समझें.!
ख़ुशी ना दे पाएं हर एक को गर मुमकिन ना हो तो पीड़ा भी न पहुँचायें..!!

Thursday 3 July 2014

अब पैरा मेडिकल में बना सकते है ब्राइट फ्यूचर

भारत में पैरा मेडिकल का क्षेत्र तेजी से ग्रोथ कर रहा है। एक अनुमान के मुताबिक, 2020 तक इस क्षेत्र में 90 लाख प्रोफेशनल्स की जरूरत होगी। आप बायोलॉजी के स्टूडेंट्स हैं और इस ग्रोइंग फील्ड में करियर बनाना चाहते हैं, तो आपका फ्यूचर ब्राइट हो सकता है?
आज भारत हेल्थकेयर सेक्टर में हॉट डेस्टिनेशन के रूप में उभरा है। दुनियाभर से लोग यहां मेडिकल चेकअप और इलाज के लिए पहुंच रहे हैं। इस कारण जिस रफ्तार से हॉस्पिटल्स और लैब्स की संख्या बढ़ रही है, उसी अनुपात में पैरा मेडिकल प्रोफेशनल्स की डिमांड भी बढ़ रही है। एक अनुमान के मुताबिक, भारत में वर्ष 2015 तक 60 लाख से अधिक और वर्ष 2020 तक 90 लाख पैरा मेडिकल प्रोफेशनल्स की जरूरत पड़ेगी। योजना आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत को लगभग 10 लाख नर्सो और बड़ी संख्या में पैरा मेडिकल प्रोफेशनल्स की कमी झेलनी पड़ रही है। हालांकि पैरा मेडिकल के तहत बहुत सारे प्रोफेशन आते हैं, लेकिन इसमें मेडिकल लेबोरेट्री टेक्नोलॉजी को काफी हॉट प्रोफेशन माना जा रहा है। आज मेडिकल लेबोरेट्री टेक्नोलॉजिस्ट की डिमांड निजी क्षेत्र के हॉस्पिटल्स के साथ-साथ सरकारी क्षेत्र के हॉस्पिटल्स में भी खूब हैं।
कैसे होगी एंट्री?
आज लैब टेक्नोलॉजिस्ट के रूप में करियर बनाने के लिए कई रास्ते खुल गए हैं। आप चाहें, तो इससे संबंधित कोर्स, जैसे- सर्टिफिकेट इन मेडिकल लैब टेक्नोलॉजी (सीएमएलटी), बीएससी मेडिकल लेबोरेट्री टेक्नोलॉजी (बीएससी एमएलटी), डिप्लोमा इन मेडिकल लेबोरेट्री टेक्नोलॉजी (डीएमएलटी) जैसे कोर्स कर सकते हैं। इस बारे में दिल्ली पैरा मेडिकल ऐंड मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट की प्रिंसिपल अरुणा सिंह का कहना है कि मेडिकल लेबोरेट्री टेक्नोलॉजी कोर्स के तहत स्टूडेंट्स को ब्लड, यूरिन आदि के अलावा शरीर के तमाम फ्लूइड्स की जांच में ट्रेंड किया जाता है। आमतौर पर इस तरह के कोर्स 12वीं के बाद किए जा सकते हैं। डिप्लोमा कोर्स में प्रवेश के लिए 12वीं में बॉयोलॉजी सब्जेक्ट का होना जरूरी है। डिप्लोमा कोर्स की अवधि दो वर्ष की होती है। वैसे, इस फील्ड में जॉब तो बीएससी या डिप्लोमा करने के बाद भी मिल जाती है, लेकिन पोस्ट ग्रेजुएट कोर्स के बाद आपकी डिमांड विशेषज्ञ के रूप होने लगती है।
वर्क प्रोफाइल
इस फील्ड में दो तरह के प्रोफेशनल्स काम करते हैं-एक मेडिकल लेबोरेट्री टेक्निशियन और दूसरे मेडिकल लेबोरेट्री टेक्नोलॉजिस्ट। दोनों का वर्क प्रोफाइल अलग-अलग होता है। मुख्य रूप से मेडिकल टेक्निशियन का कार्य सैंपल को टेस्ट करना होता है। यह काफी जिम्मेदारी भरा कार्य होता है। जांच के दौरान थोड़ी-सी गलती किसी के लिए जानलेवा साबित हो सकती है, क्योंकि डॉक्टर लैब रिपोर्ट के आधार पर ही इलाज और दवा लिखते हैं। टेक्निशियन के काम को तीन हिस्सों में विभाजित किया जा सकता है- नमूना तैयार करना, जांच की मशीनों को ऑपरेट करना एवं उनका रखरखाव और जांच की रिपोर्ट तैयार करना। टेक्निशियन नमूना तैयार करने के बाद मशीनों के सहारे इसे टेस्ट करते हैं और एनालिसिस के आधार पर रिपोर्ट तैयार करते हैं। स्पेशलाइज्ड उपकरणों और तकनीक का इस्तेमाल कर टेक्निशियन सारे टेस्ट करते हैं। वहींमेडिकल लेबोरेट्री टेक्नोलॉजिस्ट रोगी के खून की जांच, टीशू, माइक्रोआर्गनिज्म स्क्रीनिंग, केमिकल एनालिसिस और सेल काउंट से जुड़े परीक्षण करते हैं। टेक्नोलॉजिस्ट का काम भी जिम्मेदारी भरा होता है। ये ब्लड बैंकिंग, क्लिनिकल केमिस्ट्री, इम्यूनोलॉजी और माइक्रोबायोलॉजी के क्षेत्र में काम करते हैं। इसके अलावा, टेक्नोलॉजिस्ट साइटोटेक्नोलॉजी, फेलबोटॉमी, यूरिन एनालिसिस, कॉग्यूलेशन, पैरासीटोलॉजी और सेरोलॉजी से संबंधित परीक्षण भी करते हैं। वर्क एक्सपीरियंस के साथ टेक्नोलॉजिस्ट लैब या हॉस्पिटल में सुपरवाइजर या मैनेजमेंट की पोस्ट तक पहुंच सकते हैं। ट्रेंड टेक्नोलॉजिस्ट लेबोरेट्री मैनेजर, कंसल्टेंट, सुपरवाइजर, हेल्थकेयर ऐडमिनिस्ट्रेशन, हॉस्पिटल आउटरीच कॉर्डिनेशन, लेबोरेट्री इंफॉर्मेशन सिस्टम एनालिस्ट, कंसल्टेंट, एजुकेशनल कंसल्टेंट, कोऑर्डिनेटर, हेल्थ ऐंड सेफ्टी ऑफिसर के तौर पर भी काम कर सकते हैं।
ग्रोइंग फील्ड
भारत मेडिकल टूरिज्म का ग्लोबल हब बन चुका है। यहां पड़ोसी देशों के अलावा, अमेरिका और यूरोपीय देशों के लोग भी सस्ते इलाज के लिए आते हैं। उदारीकरण ने हेल्थकेयर इंडस्ट्री और खासकर मेडिकल टूरिज्म की तरक्की और फलने-फूलने की राह को व्यापक बना दिया है। यह फील्ड 15 फीसदी की दर से आगे बढ़ रही है। वर्ष 2012 में यह इंडस्ट्री 78.6 बिलियन डॉलर की थी, जिसे वर्ष 2017 तक 158.2
बिलियन डॉलर तक पहुंच जाने की उम्मीद है। इस फील्ड में गवर्नमेंट सेक्टर में जॉब वैकेंसीज का इंतजार करना पड़ सकता है, लेकिन प्राइवेट सेक्टर में ऐसी बात नहीं है। अगर आप चाहें, तो शुरुआत में प्राइवेट लैब के साथ जुड़ कर काम शुरू कर सकते हैं। अगर बीएससी मेडिकल लैब टेक्नोलॉजिस्ट हैं, तो अपना लैब भी खोल सकते हैं। क्वालिफिकेशन और एक्सपीरियंस के बाद टेक्निशियन भी टेक्नोलॉजिस्ट के तौर पर भी काम करना शुरू कर सकते हैं।
पैरा मेडिकल का दायरा
पैरा मेडिकल फील्ड में नसिर्ग के अलावा, मेडिकल लैब टेक्नोलॉजी, ऑपरेशन थियेटर टेक्नोलॉजी, फिजियोथेरेपी और ऑक्यूपेशनल थेरेपी, कार्डियक टेक्नोलॉजी, डायलिसिस/ रेनल डायलिसिस टेक्नोलॉजी, ऑर्थोटिक और प्रोस्थेटिक टेक्नोलॉजी, ऑप्टोमेट्री, फार्मेसी, रेडियोग्राफी/रेडियोथेरेपी, हॉस्पिटल एडमिनिस्ट्रेशन / मैनेजमेंट, मेडिकल रिकॉर्ड संचालन, ऑडियोलॉजी ऐंड स्पीच थेरेपी, डेंटल हाइजिन ऐंड डेंटल मैकेनिक, डेंटल सेरामिक टेक्नोलॉजी आदि आते हैं।
सैलरी पैकेज
इस फील्ड में काम करने वाले प्रोफेशनल्स की शुरुआती सैलरी 12-20 हजार रुपये प्रतिमाह होती है। अनुभव के बाद सैलरी बढ़ने के साथ-साथ आप अपना लैब भी खोल सकते हैं।

क्या पॉलिटेक्निक है राइट ऑप्शन?

10वीं-12वींके बाद टेक्निकल कोर्स में एडमिशन लेने के इच्छुक स्टूडेंट्स के लिए पॉलिटेक्निक राइट ऑप्शन हो सकता है। वैसे, आज के जॉब मार्केट में पॉलिटेक्निक से जुड़े स्टूडेंट्स की जबरदस्त डिमांड है। आइए जानते हैं, पॉलिटेक्निक में कैसे एडमिशन लिया जा सकता है और क्या हैं इसके फायदे?
स्कूल की दुनिया से बाहर निकलते ही हर साल हजारों स्टूडेंट्स इंजीनियर बनने का सपना देखने लगते हैं, लेकिन कई स्टूडेंट्स महंगी फीस और अच्छे मा‌र्क्स नहीं आने की वजह से बड़े संस्थानों में इंजीनियरिंग की पढ़ाई का सपना पूरा नहींकर पाते। ऐसे में 12वीं के बाद बीटेक की चार साल की डिग्री की बजाय 10वीं या 12वीं के बाद तीन साल का डिप्लोमा करके भी जॉब मार्केट में कदम रखने का ऑप्शन मौजूद है। ऐसे स्टूडेंट्स के लिए पॉलिटेक्निक सुनहरा अवसर लेकर आता है। यह उन्हें तकनीकी और व्यावसायिक कोर्स का अवसर प्रदान करता है। दरअसल, ये कोर्स ऐसे होते हैं, जिसे पूरा करने के बाद खुद का व्यवसाय शुरू करने के लिए या फिर अच्छी जगह नौकरी करने की स्किल से लैस करता है।
क्या है पॉलिटेक्निक?
आमतौर पर पॉलिटेक्निक ऑ‌र्ट्स और साइंस से संबंधित डिप्लोमा और सर्टिफिकेट कोर्स ऑफर करते हैं। इसे टेक्निकल डिग्री कोर्स के नाम से भी जाना जाता है। पॉलिटेक्निक से संबंधित टेक्निकल कोर्स भी ऑल इंडिया काउंसिल ऑफ टेक्निकल एजुकेशन (एआईसीटीई) द्वारा संचालित होते हैं। इसका मुख्य उद्देश्य स्टूडेंट्स के प्रैक्टिकल और टेक्निकल स्किल को इंप्रूव करना है। वैसे, पॉलिटेक्निक संस्थान कई तरह के होते हैं। राज्य स्तर पर सरकारी, निजी और महिला पॉलिटेक्निक संस्थान सक्रिय हैं। यहां से आप डिप्लोमा और सर्टिफिकेट कोर्स कर सकते हैं। इसके तहत आमतौर पर फैशन डिजाइन, टेक्सटाइल डिजाइन, इंजीनियरिंग, मास कम्युनिकेशन, इंटीरियर डिजाइन, होटल मैनेजमेंट आदि से जुड़े कोर्स करवाए जाते हैं। कोर्स की अवधि एक से चार साल तक की होती है। इनमें दाखिला पाकर कम समय में ही अपने करियर में पंख लगा सकते हैं। इतना ही नहीं, कोर्स समाप्त होने के बाद जूनियर इंजीनियर बनने का रास्ता भी खुल जाता है। महिला पॉलिटेक्निक संस्थानों में महिलाओं पर केंद्रित स्किल वाले कोर्स होते हैं।
क्वालिफिकेशन
इस कोर्स में दाखिले के लिए 10वीं में कम से कम 50 फीसदी अंकों के साथ पास होना जरूरी है। ऐसे
स्टूडेंट्स आगे चलकर बीटेक के लिए होने वाली परीक्षा में भी शामिल हो सकते हैं। उन्हें तीन साल के कोर्स के बाद डिग्री भी मिल जाती है। 10वीं पास स्टूडेंट्स को राज्य स्तर पर कई संस्थान मेरिट के आधार पर तो कई राज्य स्तरीय संस्थान कॉमन एंट्रेंस एग्जाम के जरिए दाखिला देते हैं। इंजीनियरिंग में डिप्लोमा करने वाले स्टूडेंट्स चाहें, तो आगे पढ़ाई करके बीटेक की डिग्री भी हासिल कर सकते हैं। इंजीनियरिंग कॉलेजों में ऐसे स्टूडेंट्स को लैटरल एंट्री के तहत दाखिला दिया जाता है।
खूब है डिमांड
श्रीवेंकटेश्वरा यूनिवर्सिटी के चांसलर सुधीर गिरि के मुताबिक, सरकारी हो या फिर प्राइवेट सेक्टर्स, हर जगह जूनियर इंजीनियर्स की जबरदस्त डिमांड है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, आने वाले समय में लाखों डिप्लोमा होल्डर्स जूनियर इंजीनियर्स की जरूरत होगी। पॉलिटेक्निक कई लिहाज से फायदेमंद है। सबसे अहम बात यह है कि पॉलिटेक्निक में दाखिला लेने के लिए किसी बड़े एजुकेशनल क्वालिफिकेशन की जरूरत नहीं है। देखा जाए तो, आज पॉलिटेक्निक से डिप्लोमा करने के बाद कंपनियों और संस्थानों में कई तरह के अवसर उपलब्ध हैं। बड़ी बात यह है कि उन्हें कंपनियों में आम प्रोफेशनल्स की तुलना में अच्छी सैलरी और सुविधाएं ऑफर की जाती हैं।
सैलरी पैकेज
पॉलिटेक्निक डिप्लोमाधारी स्टूडेंट्स के लिए नौकरी हासिल करना आसान हो जाता है। पॉलिटेक्निक किए हुए प्रोफेशनल्स की शुरुआती सैलरी 15 से 20 हजार रुपये के बीच होती है। अगर आपने कोर्स के दौरान बेहतरीन परफॉर्म किया है, तो कैंपस इंटरव्यू में ही आपको नौकरी के कई अच्छे ऑफर मिल सकते हैं।
पॉलिटेक्निक के खास कोर्स
मैकेनिकल इंजीनियरिंग, सिविल इंजीनियरिंग, ऑटोमोबाइल इंजीनियरिंग, पैकेजिंग टेक्नोलॉजी, इलेक्ट्रिकल ऐंड इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग, इलेक्ट्रॉनिक्स ऐंड कम्युनिकेशन इंजीनियरिंग, अप्लाइड इलेक्ट्रॉनिक्स ऐंड इंस्ट्रूमेंटेशन, कम्प्यूटर इंजीनियरिंग, इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी,माइनिंग इंजीनियरिंग, मेटलॉर्जिकल इंजीनियरिंग, टेक्सटाइल टेक्नोलॉजी, केमिकल इंजीनियरिंग, केमिकल इंजीनियरिंग इन प्लास्टिक ऐंड पॉलिमर्स, पेट्रोकेमिकल्स इंजीनियरिंग, लेटर टेक्नोलॉजी, प्रिटिंग टेक्नोलॉजी, फुटवियर टेक्नोलॉजी, आर्किटेक्चर कोर्सेज, एयरक्राफ्ट मेंटिनेंस इंजीनियरिंग, मास कम्युनिकेशन, इंटीरियर डिजाइनिंग, होटल मैनेजमेंट, कॉमर्शियल ऐंड फाइन आर्ट, मास कम्युनिकेशन, इंटीरियर डिजाइन, ऑफिस मैनेजमेंट ऐंड कम्प्यूटर ऐप्लिकेशन, कम्प्यूटर साइंस आदि।

ऐसे बनाएं फायर इंजीनियरिंग में अपना करियर

अगर आपको 'आग' से खेलना पसंद है, तो फायर इंजीनियरिंग को करियर के रूप में अपना सकते हैं। इस फील्ड में जॉब ऑप्शंस भी शानदार हैं। इंटरनेशनल फायरफाइटर्स डे के मौके पर जानते हैं कैसे इस फील्ड में एंट्री की जा सकती है..
आमतौर पर गर्मी के महीनों में आग लगने की घटनाएं बढ़ जाती हैं। वैसे, ऊंची-ऊंची इमारतें, बड़े-बड़े मॉल्स आदि भी आग से पूरी तरह सुरक्षित नहींहैं। यदि आग अनियंत्रित हो जाए, तो काफी नुकसान भी उठाना पड़ता है। ऐसी स्थिति से निपटने के लिए फायरफाइटर्स की जरूरत होती है। इस तरह के प्रोफेशनल्स फायर इंजीनियरिंग से जुड़े लोग होते हैं, जो जानते हैं कि आग को कैसे नियंत्रित किया जा सकता है।
क्वालिफिकेशन
फायर इंजीनियरिंग से जुड़े अधिकांश कोर्स ग्रेजुएट स्तर पर उपलब्ध हैं, जिसके लिए साइंस सब्जेक्ट से बारहवीं पास होना जरूरी है। फायर इंजीनियरिंग से रिलेटेड सर्टिफिकेट और डिप्लोमा कोर्स भी कर सकते हैं। कोर्स के दौरान आग बुझाने के विभिन्न पहलुओं के बारे में जानकारी दी जाती हैं। साथ में, बिल्डिंग निर्माण के बारे में भी बताया जाता है, ताकि आग लगने की स्थिति में उसे बुझाने में ज्यादा परेशानी न हो। इसमें फिजिकल फिटनेस के मा‌र्क्स भी जोड़े जाते हैं। पुरुष के लिए 50 किलो के वजन के साथ 165 सेमी. लंबाई और आईसाइट 6/6, सीना सामान्य रूप से 81 सेमी. और फुलाने के बाद 5 सेमी. फैलाव होना जरूरी है। महिला का वजन 46 किलो और लंबाई 157 सेमी और आईसाइट 6/6 होनी चाहिए।
कोर्सेज
-बीई फायर इंजीनियरिंग।
-बीटेक फायर ऐंड सेफ्टी इंजीनियरिंग।
-सर्टिफिकेट कोर्स इन फायर ऐंड सेफ्टी इंजीनियरिंग (सीएफएसई)।
-डिप्लोमा इन फायर ऐंड इंडस्ट्रियल सेफ्टी इंजीनियरिंग।
-डिप्लोमा इन फायर ऐंड सेफ्टी इंजीनियरिंग मैनेजमेंट (डीएफएसइएम)।
-डिप्लोमा इन फायर ऐंड सेफ्टी इंजीनियरिंग 8डिप्लोमा इन फायर इंजीनियरिंग।
-डिप्लोमा इन इंडस्ट्रियल सेफ्टी इंजीनियरिंग।
-पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा इन फायर ऐंड सेफ्टी इंजीनियरिंग।
फायर इंजीनियर्स का वर्क।
फायर इंजीनियर्स का कार्य काफी चुनौतीपूर्ण होता है। इसके लिए साहस के साथ-साथ समाज के प्रति प्रतिबद्धता जरूरी है। फायर इंजीनियर का कार्य इंजीनियरिंग डिजाइन, ऑपरेशन और मैनेजमेंट से संबंधित होता है। फायर इंजीनियर की प्रमुख जिम्मेदारी दुर्घटना के समय आग के प्रभाव को खत्म करना या फिर सीमित करना होता है। इसके लिए वे अग्निसुरक्षा के विभिन्न तरीकों का इस्तेमाल करते हैं। अग्निशमन के आधुनिक उपकरणों के इस्तेमाल और उसके रखरखाव की तकनीक में सुधार करना भी इनकी ही जिम्मेदारी होती है।
जॉब प्रोफाइल
इस फील्ड में आप असिस्टेंट, सेफ्टी इंस्पेक्टर, सेफ्टी इंजीनियर, सेफ्टी ऑफिसर, सेफ्टी सुपरवाइजर, फायर प्रोटेक्शन टेक्नीशियन, सेफ्टी ऑडिटर, फायर सुपरवाइजर, हेल्थ असिस्टेंट, एनवायरनमेंट ऑफिसर, फायर ऑफिसर आदि के रूप में काम कर सकते हैं।
जॉब ऑप्शन
फायर इंजीनियरिंग से जुड़े लोगों के लिए गवर्नमेंट और पब्लिक सेक्टर में काफी संभावनाएं हैं। इस फील्ड सेजुड़े प्रोफेशनल्स रेलवे, एयरफोर्ट ऑथॉरिटी ऑफ इंडिया, डिफेंस, इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड, ओएनजीसी, माइंस, रिफाइनरिज, पेट्रोकेमिकल्स कॉम्प्लेक्स आदि में जॉब की तलाश कर सकते हैं। सैलरी पैकेज
जूनियर या असिस्टेंट फायर इंजीनियर की शुरुआती सैलरी 10-25 हजार रुपये प्रतिमाह हो सकती है।
प्राइवेट सेक्टर में कुछ वर्ष का वर्क एक्सपीरियंस रखने वाले प्रोफेशनल्स को वरीयता मिलती है और सैलरी काबिलियत के अनुसार मिलती है।

बढ़ती डिमांड में एनर्जी इंजीनियरिंग

भारत में एनर्जी की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए गवर्नमेंट के साथ-साथ प्राइवेट सेक्टर की कंपनियां भी कई प्रोजेक्ट्स पर काम कर रही हैं। ऐसे में एनर्जी इंजीनियरिंग से जुड़े प्रोफेशनल्स की डिमांड बढ़ने लगी है। क्या है इस फील्ड में संभावनाएं?
बायोफ्यूल की लगातार घटती क्वांटिटी और देश में एनर्जी की बढ़ती डिमांड को देखते हुए एनर्जी प्रोडक्शन पर बल देना सरकार की प्राथमिकता बन गई है। इस सोच के तहत साल 2050 तक न्यूक्लियर रिएक्टर्स से कुल एनर्जी प्रोडक्शन का करीब 25 फीसदी हिस्सा पैदा करने लॉन्ग टर्म प्लान तैयार किया गया है। इसी क्रम में 2020 तक बीस हजार मेगावाट इलेक्ट्रिसिटी का एक्स्ट्रा प्रोडक्शन न्यूक्लियर एनर्जी रिसोर्सेज से किया जाएगा। एनर्जी मिनिस्ट्री के मुताबिक, आगामी पांच साल में इस फील्ड में करीब पांच लाख करोड़ रुपये का निवेश करना होगा, तभी बढ़ती एनर्जी जरूरतों को पूरा किया जा सकेगा। न सिर्फ देश की बड़ी-बड़ी कंपनियां बल्कि दुनिया भर की तमाम बड़ी न्यूक्लियर रिएक्टर सप्लायर कंपनियां, जैसे- जीई हिटैची, वेस्टिंग हाउस भी इस ओर नजरें गड़ाए बैठी हैं। ऐसे में एनर्जी इंजीनियर की मांग का बढ़ना स्वाभाविक है।
एलिजिबिलिटी
एनर्जी इंजीनियरिंग में बीई या बीटेक करने के लिए फिजिक्स, केमिस्ट्री और मैथमैटिक्स के साथ 12वीं पास होना जरूरी है। इसमें बीटेक करने के बाद एमटेक भी किया जा सकता है। ज्यादातर इंस्टीट्यूट्स में एडमिशन एंट्रेस एग्जाम से होता है। वैसे, यह ग्रेजुएट लेवल के मुकाबले पोस्ट ग्रेजुएट लेवल पर ज्यादा सक्सेज माना जाता है। मास्टर्स कोर्स में एनर्जी के रिन्यूएबल सोर्स और नॉन ट्रेडिशनल सोर्सेज में सुधार पर अधिक बल दिया जाता है।
स्किल्स
सफल एनर्जी इंजीनियर बनने के लिए लॉजिकल और एनालिटिकल होना बहुत जरूरी है। इस फील्ड में बहुत अधिक लोगों से संपर्क करने की आवश्यकता नहीं पड़ती, इसलिए एक इंट्रोवर्ट स्टूडेंट भी आसानी से एनर्जी इंजीनियर बन सकता है। अक्सर कई-कई दिनों तक घर से बाहर जाने की जरूरत पड़ती है, इसलिए घर से दूर रहने की भी आदत होनच् चाहिए। इसके अलावा आपमें पेशेंस भी होना चाहिए।
अपच्ॅ‌र्च्युनिटी
क्लाइमेट चेंज और ग्लोबल वार्मिंग के बारे में बढ़ती जागरूकता के चलते एनर्जी इंजीनियरिंग की बहुत डिमांड है। सरकारी संस्थानों, खासकर राज्यों की रिन्यूएबल एनर्जी डेवलपमेंट एजेंसीज में स्किल्ड लोगों की जबरदस्त डिमांड है। सरकार ने इंडस्ट्रीज के लिए एनर्जी ऑडिटिंग, एनर्जी कंजर्वेशन और एनर्जी मैनेजमेंट में स्पेशलाइजेशन करने वालों के अप्वाइंटमेंट को भी अनिवार्य कर दिया है। इस फील्ड में सैलरी ऑर्गेनाइजेशन पर निर्भर करती है। शुरुआती दौर में आपकी सैलरी 20-30 हजार रुपये प्रतिमाह हो सकती है।