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Sunday, 2 November 2014

किसे-कितना मुनाफा और किसे कितना घाटा

देश में आजकल स्टॉक एक्सचेंज का कारोबार एक बार फिर उफान पर है। मुंबई स्टॉक एक्सचेंज और नेशनल स्टॉक एक्सचेंज में हर दिन होने वाले कारोबार पर सैकड़ों लोगों की सुबह से नजरें रहती हैं। कौन-सा शेयर कितना चढ़ा और कितना गिरा, किसे-कितना मुनाफा और किसे कितना घाटा हुआ आदि। हालांकि इस कारोबार का फामरूला सबकी समझ से परे है। जो इसे समझते हैं, वे ही इसमें रात-दिन मुनाफा और कमाई की राह ढूंढते हैं। स्टॉक एक्सचेंज और इससे जुड़े कारोबार की ही गुत्थी सुलझाने और इससे जुड़े करियर की ओर राह दिखाने के लिए देश के विभिन्न शिक्षण संस्थानों ने हाल के वर्षो में कैपिटल मार्केट का कोर्स तैयार किया है। कहीं पार्ट टाइम, तो कहीं फुलटाइम के रूप में चलाया जा रहा यह कोर्स छात्रों में कैपिटल मार्केट की आधारभूत समझ पैदा करता है। पढ़ाई के बाद इस क्षेत्र में करियर और कमाई का रास्ता भी दिखाता है। दिल्ली विविद्यालय के रामजस कॉलेज ने इस क्षेत्र में करियर की राह दिखाने के लिए ही कुछ वर्ष पहले इससे जुड़ा शॉर्ट टर्म कोर्स कैपिटल मार्केट शुरू किया था। इसकी देखादेखी कई और कॉलेजों में इसे चलाया गया था।
लेकिन आर्थिक मंदी और दिल्ली विविद्यालय के कोर्स में फेरबदल की वजह से यह बीच में बंद हो गया था। हालांकि निजी शिक्षण संस्थानों में यह कोर्स अब भी सफलतापूर्वक चलाया जा रहा है। देश-विदेश में शेयर बाजार की मौजूदगी को देखते हुए सीबीएसई ने भी कुछ साल पहले बारहवीं स्तर पर फाइनेंशियल मार्केट मैनेजमेंट का पेपर स्कूलों में ऑफर किया था। स्कूलों के इस कोर्स को नेशनल स्टॉक एक्सचेंज की मदद से तैयार किया गया था। स्कूलों, सरकारी कॉलेजों के अलावा देश में कई निजी संस्थानों ने इससे जुड़े कोर्स छात्रों के सामने पेश किए हैं। कहीं यह सर्टिफिकेट के रूप में है तो कहीं डिप्लोमा और डिग्री कोर्स के रूप में सफलतापूर्वक चलाया जा रहा है। इस कोर्स में दाखिला लेकर शेयर बाजार की दुनिया में अपनी किस्मत चमका सकते हैं। कोर्स की रूपरेखा स्टॉक मार्केट ऑपरेशंस से जुड़े कोर्स के तहत छात्रों को स्टॉक एक्सचेंज में लाइव ट्रेडिंग कैसे होती है। उनमें कौन-कौन से र्टम्स यानी तकनीकी और व्यावसायिक शब्दावली इस्तेमाल में आती है, उन शब्दों के सही मायने क्या हैं- इसकी जानकारी दी जाती है। शेयर बाजार क्या है, यह किस-किस तरह का है, उसकी कीमत कैसे देखी जाती है, उन कीमतों में उतार-चढ़ाव का आकलन और उसकी जानकारी भी छात्रों को दी जाती है। एक निवेशकर्ता के नाते किस शेयर में कब और कितना निवेश करना फायदेमंद है, यह भी कोर्स में बताया जाता है। भारतीय प्रतिभूति बाजार और उसके रेग्युलेशन की जानकारी भी छात्रों को दी जाती है। यहां प्राइमरी मार्केट, सेकेंड्री मार्केट और जमाकर्ताओं के प्रोफाइल से भी रू-ब-रू कराया जाता है। सरकारी प्रतिभूति बाजार और डेरिवेटिव्स मार्केट का ज्ञान दिया जाता है । निवेश के तौर-तरीके के बारे में बताया जाता है। इनमें इस्तेमाल होने वाले गणितीय फामरूले की जानकारी दी जाती है। कमोडिटी मार्केट्स, बॉण्ड मार्केट, म्यूचुअल फंड्स और रिस्क मैनेजमेंट जैसी चीजें भी कोर्स में शामिल हैं। गणितीय फामरूले और आंकड़ों का प्रयोग किस रूप में होता है इसका ज्ञान कराया जाता है। दाखिला कैसे इस कोर्स में कई संस्थानों में दाखिला आमतौर बारहवीं पास छात्रों को दिया जाता है। लेकिन बहुत सारे संस्थानों में स्नातक या उसके बाद ज्ञान कराया जाता है। जिन छात्रों की पृष्ठभूमि कॉमर्स की है उन्हें दाखिला के दौरान विशेष प्राथमिकता दी जाती है। खास बात यह है कि छात्रों को इस फील्ड का व्यावहारिक अनुभव हो, इसके लिए ये कोर्स कई जगहों पर स्टॉक एक्सचेंज की मदद से चलाए जा रहे हैं। दिल्ली विविद्यालय के साउथ कैंपस में मास्टर इन फाइनेंस एंड कंट्रोल प्रोग्राम में भी इससे संबंधित विषय की पढ़ाई होती है। यहां छात्रों को दाखिला अखिल भारतीय प्रवेश परीक्षा के आधार पर दिया जाता है। कहा जा सकता है कि यह इस क्षेत्र में एक्सपर्ट बनाने वाला कोर्स है। कहां हैं अवसर इस कोर्स को करने के बाद स्टॉक एक्सचेंज, ब्रोकरेज फर्म, म्यूच्युअल फंड कंपनी, बैंक की निवेश सलाह विभाग और कॉरपोरेट जगत के ट्रेजरी विभाग में काम की तलाश की जा सकती है। ऐसे युवाओं के लिए इक्विटी रिसर्च फर्म में भी काम करने के कई मौके हैं। यहां फंड मैनेजर, टेक्निकल एनालिस्ट, पोर्टफोलियो मैनेजर, मर्चेट बैंकर और फॉरेक्स ट्रेडर के रूप में अपनी भूमिका निभा सकते हैं। आमतौर पर ऐसे युवाओं को शुरुआती स्तर पर 30 से 40 हजार रुपये के वेतन मिल जाते हैं। कंपनी खोलकर खुद का व्यवसाय भी कर सकते हैं। क्या कहते हैं विशेषज्ञ दिल्ली विविद्यालय में इस कोर्स के विशेषज्ञ अमित सिंघल कहते हैं, यह कोर्स सीधे-सीधे रोजगार दिलाने के बजाय छात्रों को इस क्षेत्र की समझ पैदा करता है। इस कारण से स्नातक या एमए की पढ़ाई पूरी करने वाले छात्र शेयर बाजार या स्टॉक एक्सचेंज के क्षेत्र में जाने की राह आसान कर सकते हैं। अगर वह इस क्षेत्र में नौकरी करते हैं तो उन्हें इसे समझने के लिए अलग से ट्रेनिंग की जरूरत नहीं पड़ती। सिंघल ने बताया कि छात्रों में समझ पैदा करने के लिए लाइव ट्रेडिंग से रू-ब-रू कराया जाता है। उन्हें कम्प्यूटर पर प्रैक्टिकल कराया जाता है। यह कोर्स ऐ सा है जिसमें साइंस हो या कॉ मर्स या फिर आर्ट्स किसी भी फील्ड का छात्र दाखिला ले सकता है हालांकि कॉमर्स की पृष्ठभूमि के लिए यह ज्यादा उपयुक्त माना जाता है।

Friday, 24 October 2014

भारत के प्रमुख ऐतिहासिक शहर व स्थल

अहिछत्र - उ. प्र. के बरेली जिले में स्थिति यह स्थान एक समय पाँचालों की राजधानी थी।

आइहोल- यह स्थान कर्नाटक में स्थित है। इसकी मुख्य विशेषता चालुक्यों द्वारा बनवाए गए पाषाण के मंदिर हैं।

अजंता की गुफाएँ- यह स्थान महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में स्थित है। इसमें 29 बौद्ध गुफाएँ मौजूद हैं। यह गुफाएँ अपनी चित्रकारी के  लिए प्रसिद्ध हैं। इनका काल 2 सदी ई. पू. से 7 शताब्दी ई. तक है।
अमरावती- यह ऐतिहासिक स्थल आधुनिक विजयवाड़ा के निकट स्थित है। सातवाहन वंश के समय में यह स्थान काफी फला-फूला।

अरिकामेडू- चोल काल के दौरान पाँडिचेरी के निकट स्थित समुद्री बंदरगाह।

बादामी या वातापी- कर्नाटक में स्थित यह स्थान चालुक्य मूर्तिकला के  लिए प्रसिद्ध है जो कि गुहा-मंदिरों में पाई जाती है। यह स्थान द्रविड़ वास्तुकला का उत्तम उदाहरण हैै।

चिदाम्बरम- यह स्थान चेन्नई के 150 मील दक्षिण में स्थित है और एक समय यह चोल राज्य की राजधानी थी। यहाँ के मंदिर भारत के प्राचीनतम मंदिरों में से हैं और वे द्रविड़स्थापत्य व वास्तुकला का बखूबी प्रतिनिधित्व करते हैं।
बोध गया- यह स्थान बिहार के  गया जिले में स्थित है। इसी स्थान पर बुद्ध ने ज्ञान प्राप्ति किया था।

एलीफेंटा की गुफा- यह मुंबई से लगभग 6 मील की दूरी पर स्थित है। इसमें 7वीं व 8वीं शताब्दी की पत्थर को काटकर बनाई गई गुफाएँ स्थित हैं।

अयोध्या- यह आधुनिक फैज़ाबाद से कुछ दूरी पर स्थित है। यह कोसल राज्य की राजधानी थी और राम का जन्मस्थान यही है।

एलोरा गुफायें - यह स्थान महाराष्ट्र राज्य के औरंगाबाद जिले के उत्तर-पश्चिम में स्थित है। इसमें पत्थर को काटकर बनाई गईं 34 गुफाएं स्थित हैं।

फतेहपुर सीकरी- यह स्थान आगरा से 23 मील की दूरी पर स्थित है। इसकी स्थापना 1569 में अकबर ने की थी। यहाँ पर 176 फीट ऊँचा बुलंद दरवाजा मौजूद है।

हड़प्पा- पाकिस्तान के पँजाब प्रांत के माँटगोमेरी जिले में स्थित यह स्थल हड़प्पा संस्कृति काल में एक प्रमुख शहर था।

हम्पी - कर्नाटक में स्थित यह स्थान मध्यकालीन युग में विजयनगर साम्राज्य की राजधानी थी।

आगरा- इस शहर की नींव लोदी वंश के बादशाह सिकंदर लोदी ने 1509 में रक्खी थी। बाद में मुगल सम्राटों ने इसे अपनी राजधानी बनाया। शाहजहाँ ने यहीं अपनी पत्नी मुमताज महल की याद में ताजमहल का निर्माण कराया था।

अमृतसर- यहीं पर सिक्खों का पवित्र स्थल स्वर्ण मंदिर स्थित है। इसका निर्माण सिक्खों के चौथे गुरू रामदास ने करवाया था।

अवन्ति- पुराणों में अवन्तिका के नाम से प्रसिद्ध भारत का यह प्राचीन शहर 16 महाजनपदों में शामिल था।

इंद्रप्रस्थ- नई दिल्ली के निकट स्थित यह नगर महाभारत काल में कुरू राज्य की राजधानी थी।

उज्जयिनी- छठी सदी ई. पू. में यह शहर उत्तरी अवन्ति की राजधानी था।

कन्नौज- उत्तर प्रदेश में स्थित यह शहर हर्ष की राजधानी थी।

कन्याकुमारी- पद्मपुराण में वर्णित यह शहर भारत के सुदूर दक्षिण में स्थित है।

कपिलवस्तु- नेपाल के तराई में स्थित इसी जगह में महात्मा बुद्ध का जन्म हुआ था
कांचीपुरम- वर्तमान में कांजीवरम के नाम से विख्यात यह प्राचीन नगर सात पवित्र नगरों में से एक है।

कुशीनगर- उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले में स्थित इसी स्थान पर महात्मा बुद्ध का महापरिनिïर्वाण हुआ था।

खजुराहो- दसवीं से बारहवीं शताब्दी के मध्य चंदेल शासकों द्वारा निर्मित मंदिरों के लिए प्रसिद्ध खजुराहों मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले में स्थित है।

गया- बिहार में स्थित इस नगर की गणना पवित्र नगरियों में की जाती है। यहीं पर बुद्ध को ज्ञान की प्राप्त हुई थी।

जयपुर- 1721 में कछवाहा शासक सवाई जयसिंह ने इस नगर की स्थापना की थी।

झांसी- उत्तर प्रदेश का यह नगर रानी लक्ष्मी बाई की वजह से प्रसिद्ध है।

दौलताबाद- प्राचीनकाल में देवगिरि के नाम से विख्यात यह नगर महाराष्ट्र के औरंगाबाद में स्थित है। मुहम्मद बिन तुगलक ने इसे अपनी राजधानी बनाया था।

पाटलिपुत्र- बिहार स्थित पाटलिपुत्र वर्तमान में पटना के नाम से प्रसिद्ध है। यह मौर्र्यों की राजधानी थी।

पूणे- मराठा सरदार शिवाजी तथा उनके पुत्र शम्भाजी की राजधानी पूणे महाराष्ट्र का एक प्रमुख शहर माना जाता है।

पुरूषपुर- प्रथम शताब्दी ई.पू. में कनिष्क द्वारा स्थापित पुरूषपुर पाकिस्तान के पश्चिमोत्तर सीमा प्रांत में स्थित है। इसे वर्तमान में पेशावर के नाम से जाना जाता है।

प्लासी- प्लासी 1757 में ईस्ट इंडिया कंपनी एवं बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला के बीच हुए युद्ध के लिए प्रसिद्ध है।

प्रयाग- तीर्थराज कहलाने वाला यह नगर गंगा-यमुना के संगम पर बसा है। प्राचीन काल से ही इस स्थली की गणना पवित्र नगरियों में की जाती है। बाद में अकबर ने इसका नाम बदलकर इलाहाबाद कर दिया था।

बीजापुर- युसूफ आदिलशाह द्वारा स्थापित यह नगर कर्नाटक में स्थित है। यहां गोल गुंबज मुहम्मद आदिलशाह का मकबरा है।

भुवनेश्वर- वर्तमान समय में उड़ीसा की राजधानी भुवनेश्वर प्राचीन समय में उत्कल की राजधानी के रूप में प्रसिद्ध था। यहाँ के मंदिर विशेष रूप से प्रसिद्ध हैं।

माउंट आबू- दिलवाड़ा के जैन मंदिर के लिए प्रसिद्ध यह स्थान अरावली पर्वत पर स्थित है।

मथुरा- उत्तर प्रदेश में स्थित यह नगरी भगवान श्रीकृष्ण की जन्म स्थली होने की वजह से प्रसिद्ध है।

मामल्लपुरम- पल्लव नरेश नरसिंह वर्मन द्वारा चेन्नई के पास निर्मित यह नगर वर्तमान में महाबलीपुरम के रुप में विख्यात है। यहां के मंदिर विशेष रूप से प्रसिद्ध हैं।

विजयनगर- इस राज्य की नींव 1336 में तुंगभद्रा नदी के तट पर हरिहर व बुक्का द्वारा रखी गई थी।

श्रवणबेलगोला- कर्नाटक के हसन जिले में स्थित श्रवणबेलगोला जैन धर्म के मुख्य केेंद्र के रूप में प्रसिद्ध है। यहां जैन तीर्र्थंकर बाहुबली की विशाल मूर्ति है।

सारनाथ- यह स्थान उत्तर प्रदेश के वाराणसी के पास स्थित है जहां बुद्ध ने अपना पहला उपदेश दिया था।

कोणार्क- यह स्थान सूर्य मंदिर के लिए विख्यात है।

रामेश्वरम- तमिलनाडु में स्थित यह स्थान रामनाथ स्वामी मंदिर के लिए प्रसिद्ध है।

मदुरै- पाण्ड्य राजाओं की राजधानी एवं तमिलनाडु में स्थित यह नगर मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है।

भीतरगांव- उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले में स्थित यह स्थल गुप्तकालीन ईंटों से बने मंदिर के लिए प्रसिद्ध है।

Friday, 8 August 2014

परियों जैसी प्यारी प्यारी, मिश्री जैसी मधुर है बेटी!

परियों जैसी प्यारी प्यारी, मिश्री जैसी मधुर है बेटी!
एक मानव के जीवन पथ में, फूलों जैसी डगर है बेटी!
जिस आंगन में बेटी न हो वो, उस घर में रहती नीरसता,
कड़ी धूप में जलधारा की, एक मनभावन लहर है बेटी!

बेटी की तुलना बेटों से, करके उसको कम न आंको!
बेटी है बेटों से बढ़कर, कभी रूह में उसकी झांको!

वो कविता का भावपक्ष है, किसी गज़ल की बहर है बेटी!
परियों जैसी प्यारी प्यारी, मिश्री जैसी मधुर है बेटी...

जन्मकाल से ही बेटी को, कुदरत से ये गुण मिलते हैं!
बचपन से ही उसके मन में, नम्र भाव के गुल खिलते हैं!
बेटी के मन में बहता है, सहनशीलता का एक सागर,
नहीं आह तक करती है वो, भले ही उसके हक छिलते हैं!

बेटी तो है ज्योति जैसी, वो घर में उजियारा करती!
वो चिड़ियों की तरह चहककर, घर आंगन को प्यारा करती!

बेटे यहाँ बदल जायें पर, अपनी आठों पहर है बेटी!
परियों जैसी प्यारी प्यारी, मिश्री जैसी मधुर है बेटी....

आशाओं की ज्योति है वो, पूनम जैसी निशा है बेटी!
अंतर्मन को सुख देती है, कुदरत की वो दुआ है बेटी!
"देव" जहाँ में बेटी जैसा, कोई अपना हो नहीं सकता,
किसी मनुज के बिगड़े पथ की, सही सार्थक दिशा है बेटी!

बेटी है तो घर सुन्दर है, बिन बेटी के घर खाली है!
बेटी है तो खिला है उपवन, बेटी है तो हरियाली है!

हंसकर वो कुर्बानी देती, ऐसा पावन रुधिर है बेटी!
परियों जैसी प्यारी प्यारी, मिश्री जैसी मधुर है बेटी!"

"
बेटी-एक ऐसा चरित्र, जिसके बिना किसी मनुज का जीवन पूर्ण नही होता, जिसकी किलकारी के बिना, जिसकी चहक के बिना, कोई घर सम्पूर्ण नहीं होता, वो ऐसा चरित्र जो अपने हर सुख का दमन करते हुए, अपने परिजनों के लिए अपने रुधिर की एक एक बूंद तक कुर्बान कर देती है, तो आइये कुदरत के ऐसा अनमोल चरित्र "बेटी" का सम्मान करें !"

Saturday, 10 August 2013

हम है नए अंदाज क्यों हो पुराना

कहा जाता है कि वक्त की रफ्तार आज तक कोई नहीं रोक पाया, यह ऐसा चलनशील पहिया है, जिसकी गतिं ंपर पूरी दुनिया टिकी हुई है। ऐसे में बेहतर होगा कि हम भी इस पहिये की रफ्तार से तारतम्य बैठाएं, नहीं तो पीछे छूटते देर नहीं लगेगी। यही बात कॅरियर के फ्रंट पर भी लागू होती है। आज इंम्प्लॉयर्स की जरूरतें बदली हैं। यदि जॉब चाहिए तो हर लिहाज से खुद का मेकओवर करना होगा। इस मेकओवर में अपनी स्किल्स को धार देना जरूरी बन गया है। जानकार मानते हैं कि इन दिनों युवा जल्दी से जल्दी जॉब पाने की जुगत में महंगे कोर्स तो कर लेते हैं, लेकिन जब इन कोर्सो से मिले तजुर्बे की बात आती है, तो वे फिट नहीं बैठते। यही कारण है कि आज डिग्रीधारी तो बहुत हैं, लेकिन उनके लिए जॉब नहीं हैं। एजूकेशन फॉर ऑल ग्लोबल मॉनिटरिंग रिपोर्ट 2010 के मुताबिक भी यही तस्वीर सामने आती है। बकौल रिपोर्ट आज देश में 60 फीसदी टेक्निकल/वोकेशनल कोर्स किए हुए छात्र कोर्स के बाद अमूमन तीन साल बेरोजगार रहते हैं। ऐसे में आज बडी जरूरत है कि स्टूडेंट्स को क्वालिफाइड बनाने के साथ ही उनके अंदर कार्य करने लायक गुणवत्ता भी विकसित की जाए।
1. मैनेजमेंट : चलाना है तो चलना सीखो
आज वह दौर नहीं रहा, जब अंगुलियों पर गिने जाने लायक एमबीए हुआ करते थे और नौकरी खुद उनके पास चलकर आती थी। आज तो एमबीए डिग्रीधारकों की बहुतायत है। अब जॉब उसी को मिल रहा है, जो कंपनी की अपेक्षाओं पर खरा उतर रहा है। इस कसौटी पर सफल होने के लिए खास स्किल्स डेवलप करनी होगी।
प्रबंधकीय कौशल- इस क्षेत्र में सफल होने के लिए आपको चीजों को बेहतर ढंग से मैनेज करने की कला आनी चाहिए। इस तरह के गुण तभी आ सकते हैं, जब आपमें लोगों की बातें समझने और बेहतर निर्णय लेने की क्षमता होगी।
स्पीकिंग इंग्लिश- आज इंग्लिश भाषा अपना ग्लोबल प्रभाव रखती है। इस कारण इस क्षेत्र में कामयाब वहीं हैं, जो इंग्लिश बोलने में सहज हैं। इस इंडस्ट्री में अधिकतर मैनेजमेंट डिग्री प्राप्त प्रोफेशनल, बेरोजगार इसी कारण हैं कि उन्हें अच्छी अंग्रेजी नहीं आती है।
अपडेटेड नॉलेज- इन गुणों के अलावा व्यवसायिक क्षेत्रों में क्या बदलाव हो रहे हैं, इस बारे में सरकारी नीतियां क्या हैं, कॉरपोरेट सेक्टर का क्या मूड है, आने वाले दिनों में मार्केट ट्रेंड कैसा रहने वाला है, ब्रांड्स की समझ इत्यादि यहां बहुत आवश्यक हैं। यह गुण तभी आ पाएंगे, जब आपको इस क्षेत्र में रुचि होगी।
टीम वर्क- टीम में काम करने की कला एक बडी क्वालिटी होती है। यदि आप कॉरपोरेट सेक्टर में काम कर रहे हैं और टीम वर्क पर यकीन नहीं करते तो जान लें कि कंपनी के साथ-साथ आप पर भी इसका बुरा असर पडेगा।
2. इंजीनिय¨रग : गुणवत्ता से समझौता नहीं
आज यह क्षेत्र देश का सबसे बडा जॉब प्रोवाइडर है। पिछले एक डेढ दशक में इस क्षेत्र की तेज ग्रोथ के चलते बेशक यहां अवसर बढे हैं, लेकिन अवसरों के साथ नियोक्ताओं का सेलेक्शन क्राइटेरिया ऊंचा हो जाने से जॉब की चुनौती भी बडी हुई है। शायद यही कारण है कि आज बीटेक/एमटेक बेरोजगारों की संख्या में साल दर साल इजाफा हो रहा है।
जिज्ञासु नजरिया- अच्छा इंजीनियर वही है, जो हर तकनीकी गुत्थी को सुलझाने में यकीन रखे। लेकिन आजकल के युवा में इसकी कमी देखी जा रही है। यहां यदि तकनीकी विषयों जैसे मैथ्स, फिजिक्स व केमिस्ट्री पर पकड के साथ रुचि नहीं है, तो सफल नहीं हो सकते हैं।
टेक्नोसवी- प्रोफेशनल वर्किग के दौरान ये चीजें खासी मदद देंगी। विशेषज्ञों का मानना है कि डिग्री होल्डर इंजीनियर कंप्यूटर फ्रैंडली तो हैं, लेकिन जिस क्षेत्र में उनसे विशेषज्ञता की दरकार है, उसमें उन्हें महारत नहीं हासिल है।
3. मेडिकल: जज्बात के साथ दृढता भी जरूरी
देश की बढती आबादी, स्वास्थ्य सेवाओं की लगातार कमी के चलते सरकार ने इस ओर तेजी से ध्यान देना शुरू किया है। इसके चलते यहां युवाओं के पास बढिया अवसर तो हैं लेकिन चुनिंदा स्किल्स में मात खा जाने के कारण वे इन अवसरों को कैश नहीं करा पा रहे हैं।
समर्पण- रोगियों, लाचारों का इलाज करते वक्त उनके प्रति समर्पण की भावना इस फील्ड में सफलता की गारंटी है। आज डॉक्टर का पेशा अपनाने वालों में समर्पण की भावना कम, वित्तीय रुझान ज्यादा है।
मानसिक दृढता- यहां कई मौके ऐसे आते हैं, जब आपकी मानसिक दृढता की परीक्षा होती है। दृढता मानसिक मजबूती से आती है। ऑड वर्किग ऑवर, मरीजों का दर्द, लंबे काम के घंटों के बीच युवाओं में जो मानसिक दृढता चाहिए, आज उनमें इसकी कमी है।
सही समय पर सही निर्णय- भूल शब्द डॉक्टर की डिक्शनरी में नहीं होता। उनकी एक चूक से जान चली जाती है। यही कारण है कि उन्हें धरती पर भगवान का दर्जा प्राप्त है। लेकिन यह गुण लंबे अनुभव से ही आता है।
4. डिफेंस: चाहिए परफेक्शन
डिफेंस में काम करना शान का सबब माना जाता है। आखिर ऐसा हो भी क्यों न, देश की रक्षा से बडा काम और हो भी कौन सकता है। इस क्षेत्र में इंट्री के पहले सुनिश्चित कर लें कि आपमें इस तरह के गुण हैं।
फिजिकल फिटनेस- इस फील्ड में वही लोग बेहतर कर सकेंगे, जिनके फिजिकल फिटनेस का स्तर व स्टेमिना असाधारण होगा। पर आज युवाओं की शारीरिक क्षमता/फिटनेस स्तर नीचे आया है। शायद यही कारण है कि बडी से बडी रिक्रूटमेंट ड्राइव में भी सेना को निराशा ही हाथ लगती है। यहां आज उन्हें अपने स्तर के लायक युवा नहीं मिल पा रहे।
निर्णय क्षमता- युद्ध की परिस्थितियों या फिर आंतकरोधी अभियानों में कुछ सेंकेड में लिए गए निर्णय लडाई?का रुख मोड देते हैं। इस कारण डिफेंस में तेज निर्णय क्षमता की सख्त जरूरत होती है।
अनुशासन- डिफेंस में इंट्री का पहला और आखिरी मंत्र अनुशासन है। बगैर इसके यहां एक पग बढाना भी मुश्किल होगा।
5. बैंक : स्किल्स हैं तो मुश्किल नहीं
बैकिंगसेक्टर में आज कॅरियर बूम किसी से छिपा नहीं है। यहां अवसरों की बढी दर के कारण युवा तेजी से इस ओर रुझान कर रहे हैं। लेकिन इसके समानांतर बैंकों से युवाओं का स्विचओवर रेट भी बढा है। इसका सबसे प्रमुख कारण है बैंक में काम करने के लिए जरूरी स्किल्स की कमी।
बढिया कैलकुलेशन- यह क्षेत्र पूरी तरह गणनाओं पर ही चलता है। वे छात्र जिनकी कैलकुलेशन पॉवर अच्छी है, यहां बहुत आगे तक बढते हैं। इसके साथ ही करेंट नॉलेज भी जरूरी है।
कूल माइंडेडनेस- इस सेक्टर में आपको कई?बार शार्टटेंपर्ड ग्राहकों से भी निपटना होता है। ऐसे मे मानसिक रूप से सुलझे व ठंडा दिमाग रखने वाले युवा बैकों की पहली पसंद होते हैं।
6. टीचिंग : अध्ययन आएगा काम
टीचिंग में इन दिनों कॅरियर बनाने वालों की कमी नहीं है। बेहतर सैलरी, काम के निश्चित घंटे, सुविधाओं के चलते यह क्षेत्र हॉट फे वरेट बन चुका है। लेकिन बहुत बार इस फील्ड से युवा असंतुष्ट रहते हैं, कारण-अध्यापन के लिए जरूरी क्वालिटी/ स्किल्स की कमी।
डीप नॉलेज- विषय की गहरी नॉलेज शिक्षा क्षेत्र में स्थिरता पाने की पहली शर्त?है। इस फील्ड में इंट्री लेने वाले युवाओं में आज धीरज की बहुत कमी देखी जा रही है, जिसके चलते अध्यापन के दौरान छात्रों से सामंजस्य न बिठा पाना, आपा खो देना जैसी समस्याएं बहुत आम हैं।
7. मीडिया-परहेज न करें संघर्ष से
मीडिया ऊपर से देखने में तो ग्लैमरस है, लेकिन इस ग्लैमर को पाने का सफर संघर्षो से भरा है। आज बहुत से युवा इस ऊपरी चमक-दमक को देखकर इस फील्ड में आ तो जाते हैं। परिणाम यह होता है कि बहुत बढिया काम आने के बाद भी वे इस क्षेत्र में मनचाही सफलता नहीं पा पाते।
भाषा पर पकड- इस फील्ड में हिंदी-इंग्लिश दोनों ही भाषाओं पर पकड बहुत जरूरी है। अगर आप इन दोनों ही भाषाओं में निपुण हैं तो आपको यहां कामयाब होने से कोई नहीं रोक सकता है।
टाइम मैनजमेंट- मीडिया डेड लाइन बेस्ड प्रोफेशन है, जहां टाइम का मतलब ही है सफलता, दूसरों से आगे। लेकिन वक्त के साथ की जाने वाली इस भागमभाग में अक्सर मीडिया प्रोफेशल्स पर बहुत अधिक दबाव हो जाता है। यही कारण है कि आज इस फील्ड में टिकने वाले लोग कम ही हैं।
नो वर्किग ऑवर : इस फील्ड में आप तभी आएं, जब किसी भी समय काम करने के लिए तैयार रहें और देश के किसी भी कोने में जाने को तत्पर रहें। इस तरह की वर्किग कंडीशन में ढलने में कई युवा असफल हो जाते हैं।
स्किल डेवलपमेंट सतत प्रक्रिया है। अगर जिज्ञासु हैं, तो आप किसी भी क्षेत्र में अपनी स्किल्स बढा सकते हैं.. एक जमाना था जब पढाई लिखाई, डिग्री, क्वालीफिकेशन ही जॉब के लिए पर्याप्त हुआ करती थीं। लेकिन बदलती वैश्विक जरूरतों, बदलते समय में कॅरियर की जरूरतें भी पहले से जुदा हुई हैं। आज आप सिर्फ फलां कोर्स करके या फलां डिग्री हासिल कर कामयाब कॅरियर नहीं बना सकते हैं। आज तो गला काट प्रतिस्पर्धा में ज्यादातर जॉब्स में इंट्री व प्रोग्रेस का पैमाना ही बदल चुका है। एक वैश्विक सर्वे से मिले आकंडे भी इन बदलावों की वकालत करते हैं, जिसके मुताबिक आज कोई भी कंपनी अपने कर्मचारियों के वर्किग आउटपुट के लिए इंतजार नहीं करती। वह चाहती है कि इम्प्लाई पहले ही दिन से कंपनी की मेन स्ट्रीम वर्किग में शामिल हो जाए। ऐसे में कॉलेज लेवल पर चलने वाले फिनिशिंग स्कूल,इंटर्नशिप कोर्सेस जॉब फ्रंट पर आपको और काबिल बनाते हैं।
स्किल्स हैं कामयाबी की कुंजी
एप्पल के सह संस्थापक स्टीव जॉब्स का जीवन, कॅरियर मार्केट में स्किल्स की अहमियत बयां करने वाली परफेक्ट केस स्टडी है, जिसका अध्ययन कर कोई भी तरक्की के पंख पा सकता है। 20 साल की उम्र में उन्होंने एक छोटे से गैराज में एप्पल कंपनी खोली थी। जो महज दस साल के अंतराल में 2 बिलियन डॉलर व 4000 कर्मचरियों वाली विशाल कंपनी बन गई। लेकिन 30 के होते-होते स्टीव को खुद उनकी ही बनाई?कंपनी से निकाल दिया गया। स्टीव बेराजेगार हो गए, उनका देखा हुआ सपना सार्वजनिक तौर पर फेल होता दिखा, उनके जैसे तमाम उद्यमियों के लिए यह बडा झटका था। पर असल कहानी तो यहां से शुरू हुई थी। इसके बाद उन्होंने अपनी नई कंपनियां नेक्स्ट व पिक्सर शुरू कीं, जो आगे चलकर सिलकॉन वैली की सबसे चमचमाता नाम बन गई। आगे स्टीव ने खुद माना कि एप्पल से निकाला जाना उनके कॅरियर का सबसे बडा बे्रकथ्रू था, यह न हुआ होता तो शायद स्टीव स्टीव न होते। आज कॅरियर के फ्रंट पर स्टीव जॉब्स की यह छोटी सी कहानी लाखों युवाओं को सबक दे रही है, और बता रही है कि आपके पास किसी काम करने का खास गुण है, तो अच्छा होगा कि इन गुणों के जरिए कॅरियर मार्केट में बेस्ट डील अंजाम दें। यदि आप में काम का हुनर है, तो काम से दूसरों को मंत्रमुग्ध करने की कोशिश करें।
स्किल डेवलपमेंट का सरकारी प्रयास
आज सरकार अपने देश की कार्ययोग्य जनता की कार्यदक्षता बढाने हेतु प्रयासरत है। लिहाजा इस बार के वित्तीय बजट में सरकार ने नेशनल स्किल डेवलपमेंट फंड के अंतर्गत दिए जाने वाले फंड को 1000 करोड रुपये से बढाकर 2500 करोड कर दिया है। इसके अलावा के्रडिट गांरटी स्कीम व रोजगारपरक कोर्स संचालित करने वाले संस्थानों को सर्विस टैक्स के दायरे से बाहर किया गया है। यही नहीं, युवाओं की स्किल बेस्ड इंडस्ट्री में राह आसान करने के लिए सरकार बैंकों, के जरिए भी उन्हें वित्तीय मदद पहुंचाती है।
एनएसडीसी: स्किल्स होंगी आसान
देश में कौशलपूर्ण कामगारों, कर्मचरियों की जरूरत अरसे से महसूस की जा रही थी। इस कमी को पूरा करने के लिए अक्टूबर 2009 में एनएसडीसी (नेशनल स्किल डेवलेपमेंट कॉर्पोरेशन) की शुरुआत की गई। क्रमश: 49 व 51 फीसदी सरकारी व निजी सहभागिता से चलने वाली अपनी तरह की यह पहली संस्था सन 2022 तक देश में 50 करोड स्किल्ड इंप्लाई?बनाने का लक्ष्य लेकर चल रही है। अभी तक एनएसडीसी ने 21 की सेक्टर चिथ्ति किए हैं, जिनमें मैन्यूफैक्चरिंग, कंस्ट्रक्शन, ऑटोमोबाइल टैक्सटाइल, रिटेल, हेल्थकेयर आदि शामिल हैं। एनएसडीसी के अंतर्गत क्षेत्रीय कौशल परिषदों (एसएससी) का भी प्रावधान किया गया है, जहां क्षेत्रानुसार अलग-अलग सेक्टर में स्किल डेवलपमेंट प्रोग्राम चलाए जाएंगे।

Saturday, 16 March 2013

तनाव से मुक्ति का भारतीय मंत्र: योग

तनाव की वजहें बहुत, निदान सिर्फ एक और वह है ध्यान।  इसका महत्व अब लगभग सभी को पता है और इसकी सैकडों विधियां भी अलग-अलग समुदायों की ओर से बताई जा चुकी हैं। फिर भी मुश्किल है।
गर्मियों की सुबह
सबसे बडी मुश्किल यह है कि करें कैसे? समय तो किसी के पास है नहीं! रोजमर्रा के कामकाज में ही इतना वक्त निकल जाता है कि चुप होकर आधे घंटे बैठना भी संभव नहीं रह गया। लेकिन वास्तव में समय निकालना इतना मुश्किल है नहीं। वो कहते हैं न, जहां चाह वहां राह!अगर आप भी ऐसा महसूस करते हैं तो तैयार हो जाएं। अब आपके लिए बिलकुल सही समय आ गया है। सखी आपके लिए लाई है एक ऐसी विधा जिसके लिए न तो आपको अलग से समय निकालने की जरूरत होगी और न ही कोई मुश्किल। बस एक बार ठान लेने की जरूरत है। गर्मियों का यह समय इस प्रयोग के लिए सबसे मुफीद है। इन दिनों दिन तो बडा होता ही है, सुबह उठने में कोई मुश्किल भी नहीं होती। जैसा कि ठंड के दिनों में आलस के कारण होता है।
यूं तो इस विधा की खूबी यही है कि यह प्रयोग आप जब, जहां और जैसे भी हैं, उसी अवस्था में कर सकते हैं। इसके लिए अलग से कुछ करने की जरूरत नहीं है। ओशो ने इसे नाम दिया है विपस्सना। असल में ध्यान का अर्थ कुछ और नहीं, सिर्फ होश है। आप जो कुछ भी करें सब कुछ करते हुए अपना होश बनाए रखें। अपनी ही आती-जाती सांसों के प्रति, अपने प्रत्येक कार्य के प्रति. चाहे चलना हो या खाना, या फिर व्यावसायिक कामकाज या मनोरंजन ही क्यों न हो, अपनी हर गतिविधि के प्रति होश बनाए रखें। अपने विचारों के प्रति साक्षी भाव बनाए रखें। जो भी आ रहा है या जा रहा है, चाहे वह क्रोध हो या भय या प्रेम या फिर कोई और आवेग या विचार, सबको आते-जाते सिर्फदेखते रहें। उस पर कोई प्रतिक्रिया न करें।
होश बनाए रखें
शुरुआती दौर में निरंतर ध्यान बनाए रखना थोडा मुश्किल हो सकता है। इसके लिए बेहतर होगा कि सुबह-सुबह थोडा समय निकालें। अगर आप मॉर्निग वॉक के लिए निकलते ही हैं तब तो अलग से कुछ करना ही नहीं है। सिर्फइतना करना होगा कि जो आप पहले से कर ही रहे हैं, बस उसी के प्रति होश बना लें। अगर नहीं निकलते तो इन गर्मियों में थोडे दिनों के लिए यह आदत डालें।
गर्मी के दिन इसके लिए इसलिए भी बेहतर हैं कि जाडे की तरह गर्म कपडों का अतिरिक्त बोझ शरीर पर नहीं होगा। शरीर जितना हल्का होता है, ध्यान के लिए उतना ही सुविधाजनक होता है। पार्क में या कहीं भी जब आप मॉर्निग वॉक के लिए निकलें तो बहुत धीमी गति से चलें और चलते हुए अपने चलने के प्रति होश बनाए रखें। यह न सोचें कि आप चल रहे हैं, बल्कि अपने को चलते हुए देखें, ऐसे जैसे कोई और चल रहा हो। इसे बुद्धा वॉकिंग कहते हैं। यह सिर्फ 20 मिनट आपको करना है। फिर धीरे-धीरे यह अपने आप सध जाएगा।

Friday, 15 March 2013

भ्रष्टाचार और स्विस बैंक

भारतीय गरीब है लेकिन भारत देश कभी गरीब नहीं रहा" - ये कहना है स्विस बैंक के डाइरेक्टर का. स्विस बैंक के डाइरेक्टर ने यह भी कहा है कि भारत का लगभग 280 लाख करोड़ रुपये उनके स्विस बैंक में जमा है . ये रकम इतनी है कि भारत का आने वाले 30 सालों का बजट बिना टैक्स के बनाया जा सकता है.
या यूँ कहें कि 60 करोड़ रोजगार के अवसर दिए जा सकते है. या यूँ भी कह सकते है कि भारत के किसी भी गाँव से दिल्ली तक 4 लेन रोड बनाया जा सकता है.
ऐसा भी कह सकते है कि 500 से ज्यादा सामाजिक प्रोजेक्ट पूर्ण किये जा सकते है. ये रकम इतनी ज्यादा है कि अगर हर भारतीय को 2000 रुपये हर महीने भी दिए जाये तो 60 साल तक ख़त्म ना हो. यानी भारत को किसी वर्ल्ड बैंक से लोन लेने कि कोई जरुरत नहीं है. जरा सोचिये ... हमारे भ्रष्ट राजनेताओं और नोकरशाहों ने कैसे देश को लूटा है और ये लूट का सिलसिला अभी तक 2011 तक जारी है.
इस सिलसिले को अब रोकना बहुत ज्यादा जरूरी हो गया है. अंग्रेजो ने हमारे भारत पर करीब 200 सालो तक राज करके करीब 1 लाख करोड़ रुपये लूटा.
मगर आजादी के केवल 64 सालों में हमारे भ्रस्टाचार ने 280 लाख करोड़ लूटा है. एक तरफ 200 साल में 1 लाख करोड़ है और दूसरी तरफ केवल 64 सालों में 280 लाख करोड़ है. यानि हर साल लगभग 4.37 लाख करोड़, या हर महीने करीब 36 हजार करोड़ भारतीय मुद्रा स्विस बैंक में इन भ्रष्ट लोगों द्वारा जमा करवाई गई है.
भारत को किसी वर्ल्ड बैंक के लोन की कोई दरकार नहीं है. सोचो की कितना पैसा हमारे भ्रष्ट राजनेताओं और उच्च अधिकारीयों ने ब्लाक करके रखा हुआ है!
विकिपीडिया से कुछ अंश लिए गए।