Saturday 10 August 2013

हम है नए अंदाज क्यों हो पुराना

कहा जाता है कि वक्त की रफ्तार आज तक कोई नहीं रोक पाया, यह ऐसा चलनशील पहिया है, जिसकी गतिं ंपर पूरी दुनिया टिकी हुई है। ऐसे में बेहतर होगा कि हम भी इस पहिये की रफ्तार से तारतम्य बैठाएं, नहीं तो पीछे छूटते देर नहीं लगेगी। यही बात कॅरियर के फ्रंट पर भी लागू होती है। आज इंम्प्लॉयर्स की जरूरतें बदली हैं। यदि जॉब चाहिए तो हर लिहाज से खुद का मेकओवर करना होगा। इस मेकओवर में अपनी स्किल्स को धार देना जरूरी बन गया है। जानकार मानते हैं कि इन दिनों युवा जल्दी से जल्दी जॉब पाने की जुगत में महंगे कोर्स तो कर लेते हैं, लेकिन जब इन कोर्सो से मिले तजुर्बे की बात आती है, तो वे फिट नहीं बैठते। यही कारण है कि आज डिग्रीधारी तो बहुत हैं, लेकिन उनके लिए जॉब नहीं हैं। एजूकेशन फॉर ऑल ग्लोबल मॉनिटरिंग रिपोर्ट 2010 के मुताबिक भी यही तस्वीर सामने आती है। बकौल रिपोर्ट आज देश में 60 फीसदी टेक्निकल/वोकेशनल कोर्स किए हुए छात्र कोर्स के बाद अमूमन तीन साल बेरोजगार रहते हैं। ऐसे में आज बडी जरूरत है कि स्टूडेंट्स को क्वालिफाइड बनाने के साथ ही उनके अंदर कार्य करने लायक गुणवत्ता भी विकसित की जाए।
1. मैनेजमेंट : चलाना है तो चलना सीखो
आज वह दौर नहीं रहा, जब अंगुलियों पर गिने जाने लायक एमबीए हुआ करते थे और नौकरी खुद उनके पास चलकर आती थी। आज तो एमबीए डिग्रीधारकों की बहुतायत है। अब जॉब उसी को मिल रहा है, जो कंपनी की अपेक्षाओं पर खरा उतर रहा है। इस कसौटी पर सफल होने के लिए खास स्किल्स डेवलप करनी होगी।
प्रबंधकीय कौशल- इस क्षेत्र में सफल होने के लिए आपको चीजों को बेहतर ढंग से मैनेज करने की कला आनी चाहिए। इस तरह के गुण तभी आ सकते हैं, जब आपमें लोगों की बातें समझने और बेहतर निर्णय लेने की क्षमता होगी।
स्पीकिंग इंग्लिश- आज इंग्लिश भाषा अपना ग्लोबल प्रभाव रखती है। इस कारण इस क्षेत्र में कामयाब वहीं हैं, जो इंग्लिश बोलने में सहज हैं। इस इंडस्ट्री में अधिकतर मैनेजमेंट डिग्री प्राप्त प्रोफेशनल, बेरोजगार इसी कारण हैं कि उन्हें अच्छी अंग्रेजी नहीं आती है।
अपडेटेड नॉलेज- इन गुणों के अलावा व्यवसायिक क्षेत्रों में क्या बदलाव हो रहे हैं, इस बारे में सरकारी नीतियां क्या हैं, कॉरपोरेट सेक्टर का क्या मूड है, आने वाले दिनों में मार्केट ट्रेंड कैसा रहने वाला है, ब्रांड्स की समझ इत्यादि यहां बहुत आवश्यक हैं। यह गुण तभी आ पाएंगे, जब आपको इस क्षेत्र में रुचि होगी।
टीम वर्क- टीम में काम करने की कला एक बडी क्वालिटी होती है। यदि आप कॉरपोरेट सेक्टर में काम कर रहे हैं और टीम वर्क पर यकीन नहीं करते तो जान लें कि कंपनी के साथ-साथ आप पर भी इसका बुरा असर पडेगा।
2. इंजीनिय¨रग : गुणवत्ता से समझौता नहीं
आज यह क्षेत्र देश का सबसे बडा जॉब प्रोवाइडर है। पिछले एक डेढ दशक में इस क्षेत्र की तेज ग्रोथ के चलते बेशक यहां अवसर बढे हैं, लेकिन अवसरों के साथ नियोक्ताओं का सेलेक्शन क्राइटेरिया ऊंचा हो जाने से जॉब की चुनौती भी बडी हुई है। शायद यही कारण है कि आज बीटेक/एमटेक बेरोजगारों की संख्या में साल दर साल इजाफा हो रहा है।
जिज्ञासु नजरिया- अच्छा इंजीनियर वही है, जो हर तकनीकी गुत्थी को सुलझाने में यकीन रखे। लेकिन आजकल के युवा में इसकी कमी देखी जा रही है। यहां यदि तकनीकी विषयों जैसे मैथ्स, फिजिक्स व केमिस्ट्री पर पकड के साथ रुचि नहीं है, तो सफल नहीं हो सकते हैं।
टेक्नोसवी- प्रोफेशनल वर्किग के दौरान ये चीजें खासी मदद देंगी। विशेषज्ञों का मानना है कि डिग्री होल्डर इंजीनियर कंप्यूटर फ्रैंडली तो हैं, लेकिन जिस क्षेत्र में उनसे विशेषज्ञता की दरकार है, उसमें उन्हें महारत नहीं हासिल है।
3. मेडिकल: जज्बात के साथ दृढता भी जरूरी
देश की बढती आबादी, स्वास्थ्य सेवाओं की लगातार कमी के चलते सरकार ने इस ओर तेजी से ध्यान देना शुरू किया है। इसके चलते यहां युवाओं के पास बढिया अवसर तो हैं लेकिन चुनिंदा स्किल्स में मात खा जाने के कारण वे इन अवसरों को कैश नहीं करा पा रहे हैं।
समर्पण- रोगियों, लाचारों का इलाज करते वक्त उनके प्रति समर्पण की भावना इस फील्ड में सफलता की गारंटी है। आज डॉक्टर का पेशा अपनाने वालों में समर्पण की भावना कम, वित्तीय रुझान ज्यादा है।
मानसिक दृढता- यहां कई मौके ऐसे आते हैं, जब आपकी मानसिक दृढता की परीक्षा होती है। दृढता मानसिक मजबूती से आती है। ऑड वर्किग ऑवर, मरीजों का दर्द, लंबे काम के घंटों के बीच युवाओं में जो मानसिक दृढता चाहिए, आज उनमें इसकी कमी है।
सही समय पर सही निर्णय- भूल शब्द डॉक्टर की डिक्शनरी में नहीं होता। उनकी एक चूक से जान चली जाती है। यही कारण है कि उन्हें धरती पर भगवान का दर्जा प्राप्त है। लेकिन यह गुण लंबे अनुभव से ही आता है।
4. डिफेंस: चाहिए परफेक्शन
डिफेंस में काम करना शान का सबब माना जाता है। आखिर ऐसा हो भी क्यों न, देश की रक्षा से बडा काम और हो भी कौन सकता है। इस क्षेत्र में इंट्री के पहले सुनिश्चित कर लें कि आपमें इस तरह के गुण हैं।
फिजिकल फिटनेस- इस फील्ड में वही लोग बेहतर कर सकेंगे, जिनके फिजिकल फिटनेस का स्तर व स्टेमिना असाधारण होगा। पर आज युवाओं की शारीरिक क्षमता/फिटनेस स्तर नीचे आया है। शायद यही कारण है कि बडी से बडी रिक्रूटमेंट ड्राइव में भी सेना को निराशा ही हाथ लगती है। यहां आज उन्हें अपने स्तर के लायक युवा नहीं मिल पा रहे।
निर्णय क्षमता- युद्ध की परिस्थितियों या फिर आंतकरोधी अभियानों में कुछ सेंकेड में लिए गए निर्णय लडाई?का रुख मोड देते हैं। इस कारण डिफेंस में तेज निर्णय क्षमता की सख्त जरूरत होती है।
अनुशासन- डिफेंस में इंट्री का पहला और आखिरी मंत्र अनुशासन है। बगैर इसके यहां एक पग बढाना भी मुश्किल होगा।
5. बैंक : स्किल्स हैं तो मुश्किल नहीं
बैकिंगसेक्टर में आज कॅरियर बूम किसी से छिपा नहीं है। यहां अवसरों की बढी दर के कारण युवा तेजी से इस ओर रुझान कर रहे हैं। लेकिन इसके समानांतर बैंकों से युवाओं का स्विचओवर रेट भी बढा है। इसका सबसे प्रमुख कारण है बैंक में काम करने के लिए जरूरी स्किल्स की कमी।
बढिया कैलकुलेशन- यह क्षेत्र पूरी तरह गणनाओं पर ही चलता है। वे छात्र जिनकी कैलकुलेशन पॉवर अच्छी है, यहां बहुत आगे तक बढते हैं। इसके साथ ही करेंट नॉलेज भी जरूरी है।
कूल माइंडेडनेस- इस सेक्टर में आपको कई?बार शार्टटेंपर्ड ग्राहकों से भी निपटना होता है। ऐसे मे मानसिक रूप से सुलझे व ठंडा दिमाग रखने वाले युवा बैकों की पहली पसंद होते हैं।
6. टीचिंग : अध्ययन आएगा काम
टीचिंग में इन दिनों कॅरियर बनाने वालों की कमी नहीं है। बेहतर सैलरी, काम के निश्चित घंटे, सुविधाओं के चलते यह क्षेत्र हॉट फे वरेट बन चुका है। लेकिन बहुत बार इस फील्ड से युवा असंतुष्ट रहते हैं, कारण-अध्यापन के लिए जरूरी क्वालिटी/ स्किल्स की कमी।
डीप नॉलेज- विषय की गहरी नॉलेज शिक्षा क्षेत्र में स्थिरता पाने की पहली शर्त?है। इस फील्ड में इंट्री लेने वाले युवाओं में आज धीरज की बहुत कमी देखी जा रही है, जिसके चलते अध्यापन के दौरान छात्रों से सामंजस्य न बिठा पाना, आपा खो देना जैसी समस्याएं बहुत आम हैं।
7. मीडिया-परहेज न करें संघर्ष से
मीडिया ऊपर से देखने में तो ग्लैमरस है, लेकिन इस ग्लैमर को पाने का सफर संघर्षो से भरा है। आज बहुत से युवा इस ऊपरी चमक-दमक को देखकर इस फील्ड में आ तो जाते हैं। परिणाम यह होता है कि बहुत बढिया काम आने के बाद भी वे इस क्षेत्र में मनचाही सफलता नहीं पा पाते।
भाषा पर पकड- इस फील्ड में हिंदी-इंग्लिश दोनों ही भाषाओं पर पकड बहुत जरूरी है। अगर आप इन दोनों ही भाषाओं में निपुण हैं तो आपको यहां कामयाब होने से कोई नहीं रोक सकता है।
टाइम मैनजमेंट- मीडिया डेड लाइन बेस्ड प्रोफेशन है, जहां टाइम का मतलब ही है सफलता, दूसरों से आगे। लेकिन वक्त के साथ की जाने वाली इस भागमभाग में अक्सर मीडिया प्रोफेशल्स पर बहुत अधिक दबाव हो जाता है। यही कारण है कि आज इस फील्ड में टिकने वाले लोग कम ही हैं।
नो वर्किग ऑवर : इस फील्ड में आप तभी आएं, जब किसी भी समय काम करने के लिए तैयार रहें और देश के किसी भी कोने में जाने को तत्पर रहें। इस तरह की वर्किग कंडीशन में ढलने में कई युवा असफल हो जाते हैं।
स्किल डेवलपमेंट सतत प्रक्रिया है। अगर जिज्ञासु हैं, तो आप किसी भी क्षेत्र में अपनी स्किल्स बढा सकते हैं.. एक जमाना था जब पढाई लिखाई, डिग्री, क्वालीफिकेशन ही जॉब के लिए पर्याप्त हुआ करती थीं। लेकिन बदलती वैश्विक जरूरतों, बदलते समय में कॅरियर की जरूरतें भी पहले से जुदा हुई हैं। आज आप सिर्फ फलां कोर्स करके या फलां डिग्री हासिल कर कामयाब कॅरियर नहीं बना सकते हैं। आज तो गला काट प्रतिस्पर्धा में ज्यादातर जॉब्स में इंट्री व प्रोग्रेस का पैमाना ही बदल चुका है। एक वैश्विक सर्वे से मिले आकंडे भी इन बदलावों की वकालत करते हैं, जिसके मुताबिक आज कोई भी कंपनी अपने कर्मचारियों के वर्किग आउटपुट के लिए इंतजार नहीं करती। वह चाहती है कि इम्प्लाई पहले ही दिन से कंपनी की मेन स्ट्रीम वर्किग में शामिल हो जाए। ऐसे में कॉलेज लेवल पर चलने वाले फिनिशिंग स्कूल,इंटर्नशिप कोर्सेस जॉब फ्रंट पर आपको और काबिल बनाते हैं।
स्किल्स हैं कामयाबी की कुंजी
एप्पल के सह संस्थापक स्टीव जॉब्स का जीवन, कॅरियर मार्केट में स्किल्स की अहमियत बयां करने वाली परफेक्ट केस स्टडी है, जिसका अध्ययन कर कोई भी तरक्की के पंख पा सकता है। 20 साल की उम्र में उन्होंने एक छोटे से गैराज में एप्पल कंपनी खोली थी। जो महज दस साल के अंतराल में 2 बिलियन डॉलर व 4000 कर्मचरियों वाली विशाल कंपनी बन गई। लेकिन 30 के होते-होते स्टीव को खुद उनकी ही बनाई?कंपनी से निकाल दिया गया। स्टीव बेराजेगार हो गए, उनका देखा हुआ सपना सार्वजनिक तौर पर फेल होता दिखा, उनके जैसे तमाम उद्यमियों के लिए यह बडा झटका था। पर असल कहानी तो यहां से शुरू हुई थी। इसके बाद उन्होंने अपनी नई कंपनियां नेक्स्ट व पिक्सर शुरू कीं, जो आगे चलकर सिलकॉन वैली की सबसे चमचमाता नाम बन गई। आगे स्टीव ने खुद माना कि एप्पल से निकाला जाना उनके कॅरियर का सबसे बडा बे्रकथ्रू था, यह न हुआ होता तो शायद स्टीव स्टीव न होते। आज कॅरियर के फ्रंट पर स्टीव जॉब्स की यह छोटी सी कहानी लाखों युवाओं को सबक दे रही है, और बता रही है कि आपके पास किसी काम करने का खास गुण है, तो अच्छा होगा कि इन गुणों के जरिए कॅरियर मार्केट में बेस्ट डील अंजाम दें। यदि आप में काम का हुनर है, तो काम से दूसरों को मंत्रमुग्ध करने की कोशिश करें।
स्किल डेवलपमेंट का सरकारी प्रयास
आज सरकार अपने देश की कार्ययोग्य जनता की कार्यदक्षता बढाने हेतु प्रयासरत है। लिहाजा इस बार के वित्तीय बजट में सरकार ने नेशनल स्किल डेवलपमेंट फंड के अंतर्गत दिए जाने वाले फंड को 1000 करोड रुपये से बढाकर 2500 करोड कर दिया है। इसके अलावा के्रडिट गांरटी स्कीम व रोजगारपरक कोर्स संचालित करने वाले संस्थानों को सर्विस टैक्स के दायरे से बाहर किया गया है। यही नहीं, युवाओं की स्किल बेस्ड इंडस्ट्री में राह आसान करने के लिए सरकार बैंकों, के जरिए भी उन्हें वित्तीय मदद पहुंचाती है।
एनएसडीसी: स्किल्स होंगी आसान
देश में कौशलपूर्ण कामगारों, कर्मचरियों की जरूरत अरसे से महसूस की जा रही थी। इस कमी को पूरा करने के लिए अक्टूबर 2009 में एनएसडीसी (नेशनल स्किल डेवलेपमेंट कॉर्पोरेशन) की शुरुआत की गई। क्रमश: 49 व 51 फीसदी सरकारी व निजी सहभागिता से चलने वाली अपनी तरह की यह पहली संस्था सन 2022 तक देश में 50 करोड स्किल्ड इंप्लाई?बनाने का लक्ष्य लेकर चल रही है। अभी तक एनएसडीसी ने 21 की सेक्टर चिथ्ति किए हैं, जिनमें मैन्यूफैक्चरिंग, कंस्ट्रक्शन, ऑटोमोबाइल टैक्सटाइल, रिटेल, हेल्थकेयर आदि शामिल हैं। एनएसडीसी के अंतर्गत क्षेत्रीय कौशल परिषदों (एसएससी) का भी प्रावधान किया गया है, जहां क्षेत्रानुसार अलग-अलग सेक्टर में स्किल डेवलपमेंट प्रोग्राम चलाए जाएंगे।

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