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Saturday, 13 October 2012
Monday, 1 October 2012
गाधी जयंती पर हम सब की तरफ से उनको श्रधा सुमन, पर क्या आज हम सच में गाँधी जी के दिखाए मूल्यों पर आगे बढ़ रहे है , उनके उन्ही सपनो के भारत को आगे बढ़ा रहे है? जो उन्होंने देखा था... क्या आज का भारत ही है उनके सपनो का भारत? जवाब मिले तो दीजियेगा नहीं तो शेयर करके आगे वाले से पूछियेगा. चिरागन हर उम्मीद की ज्योति
Saturday, 12 November 2011
Friday, 2 September 2011
मेरे देश महान है
इन्सान इन्सान को खा रहा ये केसी भूख है ?
आज मजहब धरम के नाम पर बाट देते है लोगो को
क्या अब हमारी यही पहचान है ?
पहचानना भूल गए हम खुद को
आज क्या हमारी पहचान है ?
देश बिक रहा हैं आम आदमी रोटी जुटाने मैं परेशां है |
तन को ढकते नहीं और देते बड़े बड़े गयान है .
नेता सरे मिलकर बाट रहे इन्सान है
कोई धर्म को लेकर तो कोई जाती को
लेकर यहाँ सब परेशां है .
यह सब हो रहा मेरे देश मैं
भीर भी हम कहते है
मेरा देश महान है ....
यहाँ हर 100 मे से 99 बईमान है
भीर भी मेरे देश महान है
Sunday, 28 August 2011
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है देखना है ज़ोर कितना बाज़ू-ए-क़ातिल में है।
ऐ वतन, करता नहीं क्यूँ दूसरा कुछ बातचीत, देखता हूँ मैं जिसे वो चुप तेरी महफ़िल में है
ऐ शहीद-ए-मुल्क-ओ-मिल्लत, मैं तेरे ऊपर निसार, अब तेरी हिम्मत का चरचा ग़ैर की महफ़िल में है
वक़्त आने पर बता देंगे तुझे, ए आसमान, हम अभी से क्या बताएँ क्या हमारे दिल में है,
खेँच कर लाई है सब को क़त्ल होने की उमीद, आशिकों का आज जमघट कूचा-ए-क़ातिल में है
है लिए हथियार दुश्मन ताक में बैठा उधर, और हम तैयार हैं सीना लिए अपना इधर।
ख़ून से खेलेंगे होली अगर वतन मुश्क़िल में है सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है।
हाथ, जिनमें है जूनून, कटते नही तलवार से, सर जो उठ जाते हैं वो झुकते नहीं ललकार से।'
और भड़केगा जो शोला सा हमारे दिल में है, सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है।
हम तो निकले ही थे घर से बाँधकर सर पर कफ़न, जाँ हथेली पर लिए लो बढ चले हैं ये कदम।
ज़िंदगी तो अपनी मॆहमाँ मौत की महफ़िल में है सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है।
यूँ खड़ा मक़्तल में क़ातिल कह रहा है बार-बार, क्या तमन्ना-ए-शहादत भी किसी के दिल में है?
दिल में तूफ़ानों की टोली और नसों में इन्कलाब, होश दुश्मन के उड़ा देंगे हमें रोको न आज।
दूर रह पाए जो हमसे दम कहाँ मंज़िल में है, सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है।
जिस्म वो क्या जिस्म है जिसमे न हो ख़ून-ए-जुनून क्या लड़े तूफ़ान से जो कश्ती-ए-साहिल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है देखना है ज़ोर कितना बाज़ू-ए-क़ातिल में है।.................''''''''''
ऐ वतन, करता नहीं क्यूँ दूसरा कुछ बातचीत, देखता हूँ मैं जिसे वो चुप तेरी महफ़िल में है
ऐ शहीद-ए-मुल्क-ओ-मिल्लत, मैं तेरे ऊपर निसार, अब तेरी हिम्मत का चरचा ग़ैर की महफ़िल में है
वक़्त आने पर बता देंगे तुझे, ए आसमान, हम अभी से क्या बताएँ क्या हमारे दिल में है,
खेँच कर लाई है सब को क़त्ल होने की उमीद, आशिकों का आज जमघट कूचा-ए-क़ातिल में है
है लिए हथियार दुश्मन ताक में बैठा उधर, और हम तैयार हैं सीना लिए अपना इधर।
ख़ून से खेलेंगे होली अगर वतन मुश्क़िल में है सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है।
हाथ, जिनमें है जूनून, कटते नही तलवार से, सर जो उठ जाते हैं वो झुकते नहीं ललकार से।'
और भड़केगा जो शोला सा हमारे दिल में है, सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है।
हम तो निकले ही थे घर से बाँधकर सर पर कफ़न, जाँ हथेली पर लिए लो बढ चले हैं ये कदम।
ज़िंदगी तो अपनी मॆहमाँ मौत की महफ़िल में है सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है।
यूँ खड़ा मक़्तल में क़ातिल कह रहा है बार-बार, क्या तमन्ना-ए-शहादत भी किसी के दिल में है?
दिल में तूफ़ानों की टोली और नसों में इन्कलाब, होश दुश्मन के उड़ा देंगे हमें रोको न आज।
दूर रह पाए जो हमसे दम कहाँ मंज़िल में है, सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है।
जिस्म वो क्या जिस्म है जिसमे न हो ख़ून-ए-जुनून क्या लड़े तूफ़ान से जो कश्ती-ए-साहिल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है देखना है ज़ोर कितना बाज़ू-ए-क़ातिल में है।.................''''''''''
Friday, 26 August 2011
जनशक्ति की जीत
केंद्र सरकार जिस तरह अन्ना हजारे की शर्ते मानने और उसके तहत जनलोकपाल के तीन महत्वपूर्ण बिंदुओं पर संसद में बहस कराने के लिए तैयार हुई वह जनशक्ति की प्रचंड जीत है। इस जीत के लिए आम जनता को अपने नए नायक अन्ना हजारे का ऋणी होना चाहिए और उनका अभिनंदन करना चाहिए। उसे खुद भी अपनी पीठ थपथपानी चाहिए, क्योंकि उसने अन्ना का साथ देते हुए संयम और अनुशासन का जो परिचय दिया वह अनुकरणीय है। दिल्ली के साथ-साथ शेष देश में जिस तरह लाखों लोग अन्ना के समर्थन में सड़कों पर उतरे और फिर भी शांति बनी रही वह सभी के लिए एक मिसाल है। अन्ना ने अपने दृढ़ निश्चय से न केवल देश की राजनीति को हिला कर रख दिया, बल्कि उसके घोर जनविरोधी रवैये की पोल भी खोल दी। राजनीतिक दलों को इसके लिए लज्जित होना चाहिए कि वे भ्रष्टाचार के खिलाफ जनता के आक्रोश का अहसास क्यों नहीं कर सके? उन्हें यह अनुभूति भी हो जानी चाहिए कि यदि राजनीति के तौर-तरीके नहीं बदले गए तो उनकी प्रतिष्ठा की रक्षा होने वाली नहीं है। वे बेनकाब हो चुके हैं। उन्हें यह साबित करने के लिए बहुत कुछ करना होगा कि वे वास्तव में जनता की भलाई के लिए काम कर रहे हैं। राजनीतिक दलों को यह भी समझ में आ जाना चाहिए कि वास्तविक जनसमर्थन क्या होता है और वह कैसे जुटाया जाता है? नेता वह नहीं जो भाड़े की भीड़ जुटाकर खुद की ताकत का अहसास कराए। नेता वह है जिसके पीछे जनसमूह स्वयं उठ खड़ा हो। अन्ना हजारे की आवाज पर जिस तरह लाखों लोग उनके साथ हो लिए उससे राजनीतिक दलों की आंखें खुल जानी चाहिए। अब उनके लिए संसद की आड़ लेना भी कठिन होगा, क्योंकि देश ने यह अच्छी तरह देखा-समझा कि किस तरह सत्तापक्ष और विपक्ष ने संसद की सर्वोच्चता को अपने लिए ढाल बनाने की कोशिश की।
अब जब सत्तापक्ष के साथ-साथ विपक्ष ने भी समर्पण की मुद्रा अपनाते हुए जनभावनाओं के अनुरूप कदम उठाने का फैसला कर लिया है तब फिर अन्ना हजारे के लिए उचित यही होगा कि वह अपना अनशन त्याग दें। वह अपने अनशन के जरिए राजनीतिक दलों को जो संदेश देना चाहते थे वह उन तक पहुंच गया और संभवत: कहीं अधिक कठोर रूप में। एक सक्षम एवं कारगर लोकपाल का निर्माण करने के लिए संसदीय प्रक्रिया का पालन होने देने में ही सभी का हित है। इसमें संदेह नहीं कि सत्तापक्ष ने उनके साथ-साथ देश की जनता के साथ भी छल करने की कोशिश की और विपक्ष ने भी अपनी जिम्मेदारी का परिचय देने से इंकार किया, लेकिन इस सबके बावजूद कानून बनाने का कार्य संवैधानिक प्रावधानों के अनुरूप ही होना चाहिए। अन्ना हजारे को अनशन का परित्याग करने के साथ ही आंदोलन जारी रखने के अपने फैसले पर भी पुनर्विचार करना चाहिए, क्योंकि जिस उद्देश्य के लिए वह शुरू हुआ था उसकी पूर्ति होती दिख रही है। इसके अतिरिक्त यह भी एक तथ्य है कि हर एक आंदोलन का प्रभाव एक निश्चित अवधि तक ही रहता है। इस तरह के आंदोलन को लंबे समय तक जारी रखना एक कठिन कार्य है। उन्होंने अपने अनशन-आंदोलन से एक प्रखर चेतना पैदा कर राजनीतिक नेतृत्व को जनता की आवाज सुनने के लिए विवश कर दिया और उन्हें यह भरोसा रखना चाहिए कि नेताओं को इस आवाज की गूंज लंबे समय तक सुनाई देती रहेगी।
The article is downloaded from google web.... With heartily, thankfully Regards.... If any One have problem using with this article, so please call or mail us with your detail, we unpublished or delete this Article.
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Prof. Arindam Chaudhuri joins second freedom movement of India
Prof. Arindam Chaudhuri joins second freedom movement of India at Ramila Grounds and speaks to tens of thousands against corruption on team Anna's invitation.
बहुत हुई अब लूट-पाट
जनता के पैसों पर ठाठ
जनता से हो, जनता के हो
सेवक तुम, न कि सम्राट
जाग उठा अब हिंदुस्तान
आम आदमी का खास ईमान...
जनता के पैसों पर ठाठ
जनता से हो, जनता के हो
सेवक तुम, न कि सम्राट
जाग उठा अब हिंदुस्तान
आम आदमी का खास ईमान...
Sunday, 21 August 2011
सर कटा सकते हैं लेकिन सर झुका सकते नही
अन्ना हजारे-सर कटा सकते हैं लेकिन सर झुका सकते नही
पीएम-सर झुका सकते हैं लेकिन सर कटा सकते नही
अन्ना-सैकडो कुर्बानिया देकर हमने ये नैमत पाई है
पीएम-सैकडों महीनों में हमने की काली कमाई है
अन्ना-और अब हम भ्रष्टाचार सहन कर सकते नही
पीएम-और हम जनता के लिये कुछ कर सकते नही.
खूब पता था रावन को ,_राम मुझे मारेंगे|
लेकिन वो तो दृढ निश्चय था -हम कुल को तारेंगे ||
झोक दिया फिर एक -एक को -युद्ध में मर जाने को |
उसे पता था कौन राम है -जिद थी तर जाने को ||
यही हाल है मनमोहन की -कांग्रेस को मरना है |
लेट करो फिर लोक पाल को -नेता कुल तरना है ||
मनमोहन को ज्यादा बोलू -ये मेरी नादानी है |
बोल नहीं मै सकता उनको -वो तो सचमुच ज्ञानी है ||
देश की जनता जिन -जिन पर करती रही भरोसा |
देश के गद्दारों ने जनता को -टुकड़ी रोटी परोसा ||
खाते रहे ये सदा मलाई ,जनता अब तो जाग गई |
राज घराने वाली रानी -पहले से ही भाग गई ||
बुरा हाल अब कांग्रेस का -उसे अन्ना -अन्ना दीखता है |
समाचार में बुरा हाल है -हर पन्ना अन्ना -अन्ना दीखता है ||
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अन्ना की बेदाग ज़िंदगी
शुक्र है ईश्वर का.पिछले 74 साल में अन्ना ने कोई भी काम ऎसा नही किया जो सरकार के हाथ का हथियार बन सका हो.उन्होने ढूंढा तो बहुत मगर कुछ मिला नही.अन्ना से बेहतर और ज्यादा वे जान गये हैं कि अन्ना की पिछ्ली ज़िंदगी कैसे गुज़री.अगर अन्ना ने स्कूल में चाकलेट भी चुराई होती तो ये सरकार उन्हे रामदेव बाबा से भी ज्यादा कूटते और हो सकता है गांधी की फोटो के बगल में अन्ना को ही तस्वीर बना कर लटका देते़.शुक्रिया अन्ना आपकी बेदाग ज़िंदगी का.
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