Thursday 11 July 2013

सरकारी आवासों में रहने की पात्रता

सरकारी आवासों में रहने की पात्रता की अवधि बीत जाने पर भी उनमें जमे रहने की शिकायत पुरानी है। कब्जा जमाए रखने वालों में सेवानिवृत्त नौकरशाहों और जजों से लेकर पूर्व मंत्रियों-सांसदों, विभिन्न आयोगों के सदस्यों और पत्रकारों तक, रसूख रखने वाले तमाम तरह के लोग शामिल हैं। यह स्थिति हमारे राज-काज की एक बड़ी विडंबना की ओर संकेत करती है। जो कानून का पालन सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी से जुड़े थे, वे खुद नियम-कायदे की अनदेखी करते रहते हैं। आबंटित आवासों पर अनधिकृत कब्जा हटाने का मुद्दा लंबे समय से जब-तब उठता रहा है। पर समस्या जस की तस बनी रही है। प्रभावशाली लोगों का कब्जा हटाने की बात आते ही सरकार मानो खुद को लाचार महसूस करती है। उच्चतम न्यायालय ने कई बार इस मामले में सरकार को फटकार लगाई और जवाब तलब किया। मगर शासन के फौरी तौर पर हरकत में आने के अलावा कुछ नहीं हुआ। पहले शीर्ष अदालत की धारणा थी कि सरकार रिहाइशी सुविधा का दुरुपयोग करने वालों के प्रति नरमी बरत रही है। मगर अब उसे लगता है कि सरकार खुद इस समस्या से पीड़ित है। शायद यही कारण है कि अब जवाब तलब करने के बजाय सर्वोच्च अदालत ने अवैध कब्जों की बाबत दिशा-निर्देश जारी किए हैं।
कानून के मुताबिक अगर किसी कर्मचारी-अधिकारी का तबादला हो जाए तो उसके लिए अधिक से अधिक आठ महीनों में सरकारी मकान खाली कर देना अनिवार्य है। अगर कोई मंत्री अपना पद छोड़ चुका है तो यह अवधि एक महीने की है। मगर चाहे अफसर हों या पूर्व मंत्री-सांसद, वे आबंटित आवास खाली करने के निर्धारित समय की कोई परवाह नहीं करते। कई कर्मचारी या अधिकारी मकान खाली करने के सरकारी आदेश के खिलाफ अदालत की शरण में चले जाते हैं, जिसके पीछे मंशा मामले को लटकाए रखने की ही होती है। लिहाजा, अनधिकृत कब्जा हटाने से संबंधित सरकारी आवास अधिनियम, 1971 कारगर साबित नहीं हो सका है। निजी मकानों पर अवैध कब्जे के मामले तो लाखों में होंगे और वे बरसों-बरस अदालतों में घिसटते रहते हैं।
बहरहाल, उच्चतम न्यायालय ने अपने ताजा आदेश में कहा है कि आबंटी को सेवानिवृत्ति से तीन माह पहले मकान खाली करने का नोटिस भेज दिया जाए। उसे सेवानिवृत्ति से पंद्रह दिन के भीतर मकान खाली करना होगा, अगर जरूरी हो तो सिर्फ एक पखवाड़े की और मोहलत दी जा सकती है। जजों को पद से हटने पर एक महीने में और खास परिस्थितियों में दो माह के भीतर सरकारी आवास छोड़ देना चाहिए। संपदा विभाग के नोटिस का पालन न करने वाले कर्मचारियों-अधिकारियों पर सर्वोच्च अदालत ने दंडात्मक किराया लगाने से लेकर उनका कब्जा बलपूर्वक हटाने तक की हिदायत दी है। मंत्रियों-सांसदों के मामले में अदालत की राय है कि नियम का पालन न करने पर उनके विरुद्ध विशेषाधिकार हनन की कार्रवाई की जानी चाहिए। कई लोग आबंटित बंगले में अतिरिक्त निर्माण करा लेते हैं या अपने पूर्वज या प्रिय महापुरुष का स्मारक बनवा देते हैं। अदालत ने इस पर भी रोक लगाने को कहा है। अब गेंद सरकार के पाले में है। उसे इस बात की बगैर परवाह किए कि अवैध कब्जे किनके हैं, इन दिशा-निर्देशों पर कड़ाई से अमल करना चाहिए। वरना यह समस्या लाइलाज हो जाएगी।

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