Saturday, 21 January 2012

भारतीय बच्चे मैथ्स में क्यों पिछड़ रहे हैं?



ट्रेनिंग दें और गणित को रोचक बनाएं 

प्रो. पी.के. चांदला 

प्रख्यात शिक्षाविद् 
पिछले साल ऑस्ट्रेलियन काउंसिल फॉर एजुकेशनल रिसर्च द्वारा किशोरों में मैथ्स और साइंस की जागरूकता के आकलन के बारे में कराए गए 'पीसा' नामक ग्लोबल टेस्ट में भारतीय बच्चों के प्रदर्शन को निराशाजनक बताना खबर का एक पहलू है। इस टेस्ट में 73 देशों के बच्चों ने हिस्सा लिया था और भारत सिर्फ किर्गिस्तान से ऊपर रहा यानी नीचे से दूसरा स्थान हासिल किया। ऐसा ही नतीजा भारतीय संस्था- प्रथम की सातवीं सालाना रिपोर्ट में निकाला गया है। कुछ लोग कह सकते हैं कि खास तौर से गणित में भारतीय बच्चों का पिछड़ना एक बड़ा झटका है।

यह देखते हुए हाईस्कूल-इंटरमीडिएट तक स्टूडेंट मैथ्स में ही सबसे ज्यादा स्कोर करते हैं, एक ग्लोबल टेस्ट में उनका फिसड्डी साबित होना अखबारों की हेडलाइंस बनाने के लिए काफी है। पर क्या इसे भारतीय मेधा की हार माना जाए। मुझे लगता है कि यह मसला ओरिएंटेशन का है। भारतीय बच्चे पहली बार इस टेस्ट में शामिल हुए थे। लगता है कि उन्हें इस टेस्ट के लिए सही ढंग से ट्रेनिंग नहीं मिली। वरना ऐसे टेस्टों में हमारे बच्चे किसी से पीछे नहीं रहते। बल्कि अभी तक तो यही खबरें आती रही हैं कि ब्रिटेन-अमेरिका में भारतीय मूल के बच्चे ही साइंस-मैथ्स में आगे रहते हैं।

इसके बजाय दूसरी चीजों से सहमत हुआ जा सकता है। वह यह कि माध्यमिक स्तर की पढ़ाई के बाद किशोरों-युवाओं की दिलचस्पी खालिस तौर पर मैथ्स में नहीं रह जाती है। इसकी जगह वे कंप्यूटर साइंस, मैनेजमेंट, इंजिनियरिंग, कॉमर्स आदि में बढ़ जाते हैं। पर गणित तो वहां भी है। गणित सिर्फ अंकों का मामूली जोड़-घटाव नहीं है। बल्कि मौजूदा वक्त में अप्लाइड मैथ्स हमारी रोजमर्रा की जिंदगी का आधार है। यह आज के फाइनैंशल मैनेजमेंट, शेयर मार्केट या कहें कि एमबीए से लेकर इंजिनियरिंग तक सभी की बुनियाद में है।

 
हमारे युवा गणित से उस रूप में बेशक नहीं जुड़े हैं जिसका अभिप्राय जॉय ऑफ मैथ्स यानी गणित की गुत्थियों में डूबने-उतराने और उनका मजा लेने से है। पर यह सिर्फ उनकी कमी नहीं है। इसके लिए उन्हें नर्सरी से ही ट्रेनिंग देने की जरूरत है। छोटी उम्र में ही गणित में उनकी दिलचस्पी बढ़ाने की कोशिश हमारे एजुकेशन सिस्टम को करनी होगी।


इंफ्रास्ट्रक्चर खराब है और निवेश भी कम
प्रो. गीता वेंकटरमण
गणितज्ञ, अंबेडकर यूनिवर्सिटी
ग्लोबल टेस्ट पीसा के नतीजे या संस्था- प्रथम की रिपोर्ट के निष्कर्ष से मैं हैरान नहीं हूं। देश के औसत स्कूली सिस्टम से इससे ज्यादा की उम्मीद नहीं की जा सकती। आम तौर पर कक्षाओं में पढ़ाई एग्जाम ओरिएंटेड है। यानी उसमें किसी विषय की समझ पैदा करने और उसमें रुचि जगाने के बजाय रटंत विद्या पर जोर है। इस पर सरकारी स्कूलों के खराब इंफ्रास्ट्र्क्चर और सरकारी शिक्षा में निवेश की कमी से हालात और बिगड़ रहे हैं। स्कूली शिक्षा में आधारभूत सुधार किए बिना ग्लोबल स्टैंडर्ड की परीक्षा में सफलता पाने की कल्पना नहीं की जा सकती। पर जहां तक गणितीय मेधा की बात है तो टेस्ट के खराब नतीजों के आधार पर यह निष्कर्ष नहीं निकाला जाना चाहिए गणित में भारत रसातल में पहुंच गया है या गणित में टैलंट का यहां अभाव है।

जरूरत इसकी है कि देश में मौजूद प्रतिभाओं को विकास के बेहतर मौके उपलब्ध कराए जाएं। साथ ही इंजिनियरिंग आदि को लेकर हमारे मिडिल क्लास में जो ऑब्शेसन पैदा हो गया है जिसके कारण लोग गणित से दूर भाग रहे हैं, उसे भी दूर करने की जरूरत है। जिन छात्रों में गणित को लेकर जरा भी जिज्ञासा होती है, वे उसका खूब आनंद उठाते हैं। किसी गणितीय समस्या का हल करने पर उन्हें जो खुशी मिलती हैं, उसकी तुलना नहीं हो सकती।

चुनौती यह है कि हम अध्यापन के तौर-तरीकों में ऐसा बदलाव लाएं जिससे ज्यादा से ज्यादा छात्रों में गणित के प्रति रुचि पैदा हो और वे उसकी खूबसूरती और आनंद का स्वाद लेना जान सकें। फिलहाल तो हम इन सब में काफी पिछड़े हुए हैं। और ऐसा कर पाना आसान भी नहीं है। इधर एक सकारात्मक पहल एनसीईआरटी और राज्यों की प्राथमिक स्तर की गणित की किताबों में हुआ है। हम देश में वैसी मैथमैटिक लैब बना सकें जहां लोग गणित के रोचक पहलुओं को देख-समझ सकें, तो बहुत बेहतर होगा। लेकिन अभी यह दूर की कौड़ी है। 


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