Thursday, 20 December 2012

गरीब, गरीबी और शिक्षा का अधिकार कानून

गरीब, गरीबी और शिक्षा का अधिकार कानून
पिछले दिनों सुपीम कोर्ट ने अपने एक अहम् फैसले में शिक्षा के अधिकार को क़ानूनी मान्यता दे दी. वैसे तो ये अधिकार केंद्र सरकार ने २००९ में ही दे दिया था लेकिन सरकार के इस निर्णय के खिलाफ प्राइवेट स्कूलों ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल कर कहा था कि यह कानून संविधान कि धरा १९ (१) के तहत निजी शिक्षण संस्थानों के अधिकारों का उल्लंघन करता है उनका तर्क था कि संविधान की धारा १९ (१) निजी संस्थानों को बिना किसी सरकारी हस्तक्षेप के अपना प्रबन्धन करने की स्वतंत्रता देता है. निजी संस्थानों के इस दलील के खिलाफ केंद्र ने दलील दी थी कि यह कानून देश में सामजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े लोगो कि उन्नति में सहायक है. जिसके बाद केंद्र की दलील को मानते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इस कानून को हरी झंडी दे दी. इस कानून के तहत देश के हर ६ साल से १४ साल के बच्चे को मुफ्त शिक्षा हासिल होगी यानि हर बच्चा पहली से आठवी तक मुफ्त और अनिवार्य रूप से पढ़ेगा इसके अतिरिक्त सभी बच्चो को अपने आस-पास के इस स्कूल में दाखिला लेने का हक होगा. सबसे बड़ी बात यह है कि यह कानून प्राईवेट स्कूलों पर भी लागू होगा.
अब प्रश्न यह उठता है शिक्षा के अधिकार का यह कानून क्या व्यवाहरिक रूप में इस देश में लागू हो पायेगा ? क्या वास्तव में इस देश के सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े हुए बच्चो को यह अधिकार शिक्षा दिला पायेगा ? क्या उन्हें कभी यह पता चल पायेगा कि उनके पास भी शिक्षा पाने का संवैधानिक अधिकार है? क्या वास्तव में प्राइवेट स्कूल जिनकी महीने की फीस पांच -पांच हजार रूपये है गरीब बच्चो को अपने स्कूल में दाखिला देंगे जिनके माँ – बाप ५००० तो दूर ५०० रूपये की भी फीस दे पाने में असमर्थ है ?कहने का तात्पर्य यह है कि जिस देश में लाखो बच्चे आर्थिक विषमता के चलते बाल श्रम करने को मजबूर हो उस देश में ऐसे अधिकार का क्या मतलब है ?
वास्तव में ऐसे कानून को देकर सरकार ने एक बार फिर देश में भ्रष्टाचार का एक नया रास्ता खोल दिया. जिस प्रकार अभी तक गरीब छात्रों को मिलने वाली छात्रवृति को आर्थिक रूप से संपन्न बच्चो द्वारा लेने तथा स्कूलों द्वारा गरीब बच्चो की छात्रवृति हजम कर लेने का मामला उजागर होता आया है  उसी तरह आने वाले दिनों इस अधिकार के तहत मिलने वाली सुविधाए भी गरीब बच्चो का न मिलकर उन बच्चो को मिलेगी जिनके अभिभावक आर्थिक रूप से संपन्न है. अब इस कानून के माध्यम से भी शिक्षण संसथान अवैध धन उगाही का कार्यक्रम चालू करेंगे. इस अधिकार के तहत शिक्षण संसथान आरक्षित सीट पर फर्जी प्रमाण पत्रों के माध्यम से उन बच्चो का एडमिशन करेंगे जिनके माँ बाप मोटी रकम शिक्षण संसथान को दे पाने में सक्षम होंगे. मतलब गरीब का बच्चा तो वही का वही रहा जहाँ वो था. हो सकता इस कानून के माध्यम से १० प्रतिशत गरीब बच्चो को शिक्षा मिल जाये लेकिन उन ९० फीसदी बच्चो का क्या होगा जो आने वाले दिनों में भी वही के वही रहेंगे जहाँ वो आज है.
समझ में नहीं आता सरकार कानून को बनाकर क्या पाती. अगर सिर्फ गरीब बच्चो पर कानून की बात करे तो अकेले बच्चो के उत्थान के लिए सरकार ने कई कानून बनाये. जिसमे बाल श्रम का कानून प्रमुख है. इस कानून को बनाने के पीछे भी सरकार की मंशा यही थी १४ साल के का उम्र तक के बच्चे मजदूरी न करके पढने जाये लेकिन परिणाम क्या निकला. आज भी देश में लाखो बच्चे बाल श्रम करने को मजबूर है क्योकि वो आर्थिक रूप से पिछड़े हैं उन्हें शिक्षा से ज्यादा रोटी की जरुरत महसूस होती है.
अगर वास्तव में सरकार गरीब बच्चो के भविष्य को सवारना चाहती है तो पहले उसे इन बच्चो के परिवारवालों का भविष्य सवारना होगा. सरकर को ऐसी योजनाये चलानी होगी जिनसे इस बच्चो के माँ बाप को दो वक़्त की रोटी मिले और वो आर्थिक रूप से संपन हो सके जिस दिन इस देश का हर गरीब परिवार आर्थिक रूप से सपन्न होगा बिना किसी अधिकार और कानून के इस देश का हर बच्चा शिक्षा को हासिल करेगा क्योकि कोई भी माँ बाप ये नहीं चाहता की उसका बच्चा पढने लिखने की उम्र में काम करे लेकिन आर्थिक मज़बूरी इन अभिभावकों मजबूर करती है की वो बच्चो से काम कराये इसलिए यदि सरकार वास्तव में इन बच्चो के उत्थान के प्रति गंभीर है तो ऐसी योजनाये चलाये जो जमीनी रूप में इस बच्चो के परिवार को आर्थिक रूप से मजबूर करे और जब तक ऐसा नहीं होता शिक्षा के अधिकार जैसे कानून इस देश में भ्रष्टाचार को बढ़ायेंगे न की गरीब बच्चो को शिक्षित कर पायेंगे.

ये लेखिका के निजी विचार है।
कु0 अन्नू 
UPRTOU Allahabad

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