Saturday, 1 December 2012

बच्चे के व्यक्तित्व के विकास में माता पिता का योगदान

बच्चे के व्यक्तित्व के विकास में माता पिता का योगदान
किसी भी बच्चे का लालन पालन बेहद जिम्मेदारी का काम है। माता पिता की भूमिका इसलिए भी बहुत अहम है क्योंकि ना केवल हम बीज देते हैं बल्कि ज़मीन, हवा और ऱौशनी भी हमारी जिम्मेदारी है। एक शिशु ने किस माता पिता से जन्म लिया और किस घर और वातावरण में पला बड़ा ,दोनो बातें उसके व्यक्तित्व पर छाप छोड़ते हैं।

सायकोलोजी में एक बेहद दिलचस्प विषय है- ट्राँसैक्शनल अनालिसिस (TRANSACTIONAL aNALYSIS) । इसके अनुसार किसी भी व्यक्ति का व्यक्तित्व तीन खंड़ों ( इगो स्टेट्स) में बाँटा जा सकता है। एडल्ट(वयस्क),चाईल्ड(शिशु) और पेरन्ट(जनक)। 'चाईल्ड' हमारे व्यक्तित्व का शिशु है। नैसर्गिक, निर्दोष, मासूम। यह भावनाओं और अवस्था को ज्यों का त्यों महसूस करता है और उसी के अनुसार प्रतिक्रिया करता है। अनुभव से दूर , और दूरदर्शिता की चिंता बिना का व्यवहार कभी बहुत ही प्यारा और कभी बेहद लापरवाह लगता है।

कुछ लोग कभी बड़े नहीं होते। मस्त रहते हैं और किसी बात की जिम्मेदारी नहीं लेते। ऐसे लोगों के व्यक्तित्व का एक बड़ा हिस्सा चाईल्ड इगो स्टेट है । जहाँ इनका बिंदास होना सुहाता है,वहीं इनकी लापरवाही खलती है।

कुछ इस चाईल्ड को बहुत कम अहमियत देते हैं। वक्त से पहले संजीदा,गँभीर, बेहद जिम्मेदार हो जाते हैं। वे जीवन के बदलते रंगों में आत्मा नहीं डुबो पाते और मासूमियत और नये तरीके की सोच और खोज से दूर रहते हैं।

एडल्ट यानी वयस्क इगो स्टेट हमारे व्यक्तित्व का वह इगो स्टेट है जो समय के साथ बड़ा होता है। अनुभव को अपने व्यक्तित्व में समेट सोच समझ कर व्यवहार करता है।

पेरंट इगो स्टेट हमारे व्यक्तित्व का वो तिहाई हिस्सा है जो हमारे अंदर का जनक है। यह हिस्सा अक्सर बिना किसी फेर बदलाव के हम अपने माता पिता और उन लोगों से जिनका प्रभुत्व हम पर है उनसे ग्रहण करते हैं। और इसीलिए हम अपने माता पिता की तरह चलते हैं, हँसते हैं, खाँसते हैं, त्योहार में कोई खास मिठाई बनाते हैं..किसी खास अंदाज़ में तौलिया रखते हैं, खाने की मेज़ पर बैठते हैं।

माता पिता का एक तिहाई हिस्सा हम में यू ही शामिल हो जाता है। सोचने की बात है कि हम जो और जैसे हैं वह हमारे बच्चे का एक तिहाई व्यक्तित्व तय करता है। इसीलिए अपने व्यवहार से सही उदाहरण देना आवश्यक है। हमारे या उसके चाहे अनचाहे उसका व्यक्तित्व इसे आत्मसात कर लेता है।

हमारे बच्चों में हम जैसे व्यक्तित्व की कामना करते हैं, जरूरी है कि स्वयं हमारे अंदर वैसा व्यक्तित्व हो।

इन्ही इगो स्टेट्स के संदर्भ में समझा जा सकता है कि माता पिता की भूमिका एक शिशु को एक योग्य वयस्क बनाना है। और जहाँ हमारा व्यक्तित्व इस पर असर करता है वहीं हम किस वातावरण में इन्हे पालते हैं भी बेहद महत्वपूर्ण है।

बच्चों में माता पिता का अंश जरूर है किंतु वह हमारा हिस्सा या फैलाव नहीं हैं। उनकी अपनी एक अनुपम उपस्थिति है जो महज हमारे सपनों का विस्तार नहीं है। उनका अपना एक प्रवाह ,एक गति है.....हमारी जिम्मेदारी उसे सही दिशा और मजबूत किनारे देना है।

माता पिता जो कहते हैं वह किसी रेकॉर्डड टेप की तरह हमारे जहन में चलता रहता है। क्या करना चाहिए और क्या नहीं की एक लंबी लिस्ट हम सभी के पास रहती है। बचपन से कही सुनी कितनी बातें हमारे मस्तिष्क में चलती रहती हैं। घर के बाहर चप्पल उतारो,सच बोलो, खाना खाते वक्त बात मत करो, ऊपर बैठ कर पाँव मत हिलाओ, टी वी पास से नहीं देखो वगैरह। कई विचार भी हमें विरासत में मिलते हैं। लड़कियाँ ठहाके मार कर नहीं हँसती, लड़के खाना नहीं परोसेंगे, नैप्पी बदलने का काम माँ का है, माँ बाप से सवाल करना बदतमीज़ी है, औरतों के लिए सीट खाली करनी चाहिए, औरतें चुगली करती हैं,परीक्षा के पहले दही खाकर जाना चाहिए। धर्म, लिंग ,देश,रंग के कितने ही पूर्वाग्रह के लिए यह टेप जिम्मेदार हैं।

करेन होर्नी (Karen Horney)नाम की सायकोअनालिस्ट ने टायरेनी ऑफ शुड्स (Tyranny of Shoulds) का विचार रखा था। इसमें इसी टेप का जिक्र है जो हमारे व्यक्तित्व पर राज़ करता है। जाहिर है यह टेप कई गलत कामों को करने से रोकता है। वँही कई बार इस टेप के चलते हम समर्थ, उनमुक्त राय कायम करने में सक्षम नहीं रहते। अगर माँ और पिता की तरफ से मिला टेप अलग अलग बात कहता हो तो बच्चा उलझ भी सकता है।

माता पिता होने के नाते हमारा कर्तव्य बनता है कि सही टेप अपने बच्चे तक पहुँचायें। और उसे खुद सोचने और समझने और अपने निर्णय सही लेने में सक्षम बनाये।

टायरेनी ऑफ शुड्स की तरह उसके विचार और व्यक्तित्व को परीमित ना करें।

हमें हमारे बच्चे किस वक्त कहाँ और किस हाल में है जानना जरूरी है। आज़ादी की कोई भी गुहार की वजह से हमें इस बात पर लापरवाही नहीं बरतनी चाहिए। बच्चा किस के साथ है, टी वी में क्या देख रहा है, कौन सी पुस्तक पढ़ रहा है, किस तरह का संगीत सुन रहा है ...सब जानकारी रखना ना केवल महत्वपूर्ण है बल्कि समय रहते सचेत होने के लिए आवश्यक भी।

ये लेखक के निजी विचार है! लेखक का परिचय:
Pinki Devi
Teacher 

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