Monday 7 May 2012

पक्षाघात - लकवा - फालिस फेसियल परालिसिस A SHORT NOTE ON PARALISIS, LAKVA

PARALISIS, LAKVA PATIENT BY CHIRAGAN
जब मनुष्य का शरीर चेतना शून्य हो जाता है तो उसका शरीर बाहरी वातावरण में होने वाली घटनाओं का अनुभव नहीं कर पाता है इसी को लकवा, पक्षाघात अथवा फालिस कहा जाता है। जब मनुष्य के मुख का आधा भाग काम करना बन्द कर दे तो उसे मुंह का लकवा या उसे अर्दित कहा जाता है जो लोग अधिक तेज बोलते हैं और गरिष्ठ भोजन खाते हैं तथा भारी वजन उठाने का कार्य करते हैं उन लोगों को मुंह का लकवा होने की अधिक संभावना होती है।
लकवा रोग में रोगी के शरीर की तंतुए शिथिल पड जाती हैं या कहा जाये तो शरीर की संचालन गति समाप्त हो जाती है इसी को लकवा रोग कहते हैं।
कारण-
          लकवा रोग मस्तिष्क में खून का पूर्ण संचरण न होने तथा शरीर की रीढ़ की हड्डी में किसी प्रकार का रोग हो जाने के कारण हो जाता है।


जब मस्तिष्क में रक्तस्राव (खून का बहना) रुक जाता है तो लकवा हो जाता है। इसके अलावा जो लोग पेट में गैस उत्पन्न करने वाले पदार्थ खाते हैं, अधिक मैथुन क्रिया करते हैं, उल्टी-दस्त, मानसिक कमजोरी होने पर और शरीर के नाजुक हिस्से पर चोट लगने, रक्तचाप बढ़ने (हाई ब्लडप्रेशर) और वायु का प्रकोप आदि को लकवे के मुख्य कारण माने जाते हैं।
रोग का शरीर पर प्रभाव तथा लक्षण-
PARALISIS, LAKVA PATIENT BY CHIRAGAN
          मनुष्य के शरीर पर इस रोग का कितना प्रभाव पड़ता है यह इस बात पर निर्भर करता है कि शरीर और मस्तिष्क का कौन-सा भाग कितना प्रभावित हुआ है? यह भी जानना जरूरी है कि मस्तिष्क शरीर के सभी भाग को कितना नियंत्रित रखता है। वैसे देखा जाए तो मस्तिष्क का दायां भाग शरीर के बाएं भाग को नियंत्रण में रखता है जबकि मस्तिष्क का बायां भाग शरीर के दाएं भाग को नियंत्रण में रखता है।
लकवे (पक्षाघात) के निम्नलिखित प्रकार (भेद) होते है-
पूर्णलकवा-
          पूर्णलकवा रोग से मनुष्य के शरीर के आधा भाग (शरीर का दायां भाग हो या बायां भाग) प्रभावित होता है और इससे शरीर का आधा भाग मस्तिष्क के नियंत्रण में नहीं रहता है।
एकांग लकवा-
          इस प्रकार के लकवे में रोगी के शरीर का एक हाथ तथा एक पैर प्रभावित हो जाता है।
अर्द्धांग लकवा-
          इस प्रकार के लकवे से शरीर का आधा भाग (शरीर का दायां या  बायां भाग) प्रभावित होता है और इससे सम्बन्धित अंगों निश्चेतनावस्था (शरीर का आधा भाग कंपकंपाना) (शरीर का आधा भाग सुन पड़ जाना) में लकवा हो जाता है।
निम्नांग लकवा-
          इस प्रकार के लकवे में शरीर मे नाभि से नीचे का सम्पूर्ण भाग अर्थात जांघ तथा पैर का भाग सुन्न हो जाता है।
स्वरयन्त्र का लकवा-
          इस प्रकार के लकवे रोग में रोगी का बोलना आंशिक रूप से बंद हो जाता है ऐसा इसलिए होता है क्योंकि इस रोग में रोगी के मुंह वाला भाग सुन्न पड़ जाता है जिसके कारण रोगी के बोलने की क्रिया नहीं चल पाती है अर्थात वह बोलने में असमर्थ हो जाता है।
आवाज का लकवा-
          इस प्रकार के लकवे के कारण मनुष्य को बोलने में अत्याधिक कष्ट होता है ऐसा इसलिए होता है क्योंकि इस प्रकार के लकवे से मनुष्य की जीभ में ऐंठन तथा जकड़न सी हो जाती है।
मुंह का लकवा-
          इस प्रकार के लकवे से मनुष्य का मुंह तथा चेहरा टेढ़ा-मेढ़ा हो जाता है तथा आंख खुली रहती है और मुंह तथा आंखों से पानी आता रहता है।
उपचार-
          एक्युप्रेशर चिकित्सा द्वारा इन सभी प्रकार के लकवे का इलाज हो सकता है। चिकित्सा करने के लिए नीचे दिए गये चित्र के अनुसार दिए गए प्रतिबिम्ब केन्द्रों पर आवश्यक दबाव देकर लकवे का इलाज कर सकते हैं।
         
लक्षण :
PARALISIS, LAKVA PATIENT BY CHIRAGAN
          लकवा जिस भाग पर होता है उस भाग का रक्तसंचार (खून का बहना) रुक जाने के कारण शरीर के उस अंग की मांसपेशियां या नसे रक्त की कमी के कारण नष्ट हो जाती हैं जिससे शरीर का वह अंग शिथिल या मृत समान हो जाता है। मुंह का लकवा ग्रस्त हो जाने पर बोलने की क्षमता नष्ट हो जाती है। आंख, नाक टेडे़-मेड़े हो जाते हैं। गर्दन सहित मुंह का टेड़ा हो जाना, सिर का हिलना, साफ-साफ नहीं बोल पाना, आंखों तथा मुंह में दर्द रहना आदि इसके लक्षण हैं।
भोजन और परहेज :
  • भोजन के रूप में गेहूं तथा बाजरे के आटे से बनी रोटी खानी चाहिए।
  • परवल, करेला, बैंगन, घिया, तोरई और सहजन की फली इत्यादि को सब्जी के रूप में खाना चाहिए।
  • दूध, पपीता, फालसा, अंजीर और अंगूर आदि फलों का रोजाना खाने के रूप में प्रयोग करना चाहिए।
  • दही, चावल, बर्फ की चीजें, तली हुई चीजें, बेसन तथा पेट में गैस पैदा करने वाले पदार्थों को नहीं खाना चाहिए। 
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