Monday, 30 April 2012

हैजा (कालरा) विसूचिका, कालरा, उलाउठा तथा कै-दस्त cholera, Haija

परिचय :    हैजा एक भयंकर रोग है जो गर्मियों से अन्त में या वर्षा ऋतु के शुरू में फैलता है। यदि इसका इलाज समय रहते नहीं किया जाता है तो रोगी की मृत्यु तक हो जाती है। यह बड़ी तेजी से फैलता है। इसके जीवाणु शरीर में पानी या भोजन के द्वारा प्रवेश करते हैं। यह बासी भोजन, थूक, उल्टी, मल, कृमि आदि द्वारा फैलता है, अर्थात् गन्दे स्थान में रहने, हजम न होने वाली वस्तुएं खाने, अनियमित परिश्रम के बाद पानी पी लेने, गन्दा पानी, अधिक या फास्ट फूड खाने से यह रोग फैलता है।
Colara, Haija by chiragan
बचाव या परहेज :
           हैजे की बीमारी में रोगी को पानी नहीं पिलाना चाहिए। प्यास लगने पर पीने के लिए थोड़ा-थोड़ा सौंफ अथवा पोदीने का रस पिलाया जा सकता है यदि पानी के बिना रोगी की जान बचाना कठिन जान पड़े तो पानी को उबालें और जब वह सोलहवां भाग मात्र रह जाय, तब ठंड़ा करके घूंट-घूंट पीने को दें। बर्फ का टुकड़ा भी चुसाया जा सकता है।
          रोगी को ठंड़ न लगने दें तथा उसका शरीर गर्म बना रहे, इसका ध्यान रखें। बोतलों में गर्म पानी भरकर उसके दोनों पैरों के बीच में रखें, इससे गर्मी बनी रहेगी, परन्तु पानी इतना गर्म भी न हो कि रोगी के पैर जलने लगे।
           रोगी जिस कमरे में हो, उसमें कपूर का दीपक जलायें तथा रोगी के हाथों में कपूर रखकर उसे सूंघने की सलाह दें। हाथ-पैरों की ऐंठन दूर करने के लिए तेल में कपूर मिलाकर मलना चाहिए। शरीर ठंड़ा पड़ जाने पर उसके हाथ-पैरों में सोंठ का चूर्ण मलें तथा कपूर, कस्तूरी एवं मकरध्वज मिलाकर शहद के साथ चटायें। उल्टी दूर करने के लिए पेट पर राई का लेप करना हितकर रहता है। रोगी का पेशाब रुक गया हो तो उसे खोलने में देर न करें। ठंड़ा अथवा कच्चा पानी रोगी को भूलकर भी नहीं पिलाना चाहिए।
 कारण :
Colara, Haija by chiragan
           यह रोग प्रदूषित आहार, अति भोजन आदि कारणों से होता है, किन्तु भोजन न करने अर्थात् भूखे रहने से भी हो जाता है। खाली पेट रहने पर गर्मी में लू का प्रकोप आसानी से होता है, इसलिए गर्मियों में पानी अधिक पीना चाहिए।
  • रोग की पहचान (लक्षण) :
  • उल्टी-दस्त।
  • दस्त की शक्ल चावल के माण्ड जैसी पतली होती है।
  • प्यास अधिक लगना।
  • पेशाब बन्द हो जाना।
  • दिन-प्रतिदिन कमजोरी।
  • आंखे भीतर की ओर धंस जाती हैं।
  • हाथ-पैरों में पीड़ा व अकड़न प्रारंभ हो जाती है।
  • शरीर ठंड़ा पड़ने लगता है।
  • शरीर में पानी की मात्रा कम हो जाती है।
नोट : हैजे में निम्नलिखित अवस्थाएं देखी जाती हैं।
आक्रमण अवस्था : मामूली पतले दस्तों के साथ सिर्फ कमजोरी मालूम होती है, उल्टी भी होती है।
पूर्ण विकसित अवस्था : पूर्ण वेग के साथ दस्त और हाथ-पैरों में ऐंठन, प्यास, बेचैनी और आंखों का भीतर धंसना।
शीतांग अवस्था : इस भयानक अवस्था में रोगी का शरीर बर्फ के समान ठंड़ा हो जाता है। नाड़ी छूट जाती है, ललाट पर पसीना आता है। दस्त और प्यास की अधिकता के कारण उल्टी ज्यादा होती है।
          इस अवस्था में रोगी की शीघ्र मृत्यु हो जाती है। परन्तु जब रोगी अच्छा होने को होता है, तब नीचे लिखी चौथी अवस्था देखी जाती है।
प्रतिक्रिया अवस्था : कुछ देर तक शान्त रहकर रोगी का शरीर गर्म होने लगता है। मूत्र की थैली में मूत्र जमा होने लगता है या मूत्र हो जाता है। धीरे-धीरे रोगी आरोग्य लाभ करता है।
परिणामावस्था : अच्छी तरह आराम नहीं होने पर रोग फिर आक्रमण कर देता है। मूत्र का न होना, तन्द्रा, हिचकी, उल्टी आदि फिर हो जाते हैं। कई रोगी इस अवस्था को भोगकर भी ठीक हो जाते हैं। परन्तु अधिकतर रोगी इस अवस्था में प्राण त्याग देते हैं।
पेशाब बन्द रहने की स्थिति में निम्न योग लाभकारी होता है।
  • शुद्ध पारद और शुद्ध गंधक 5-5 ग्राम लेकर, खरल में कज्जली कर लें और उसे 30 ग्राम असली जवाखार (यवक्षार) में मिलाकर, ठीक से खरल करके रखें। इसकी मात्रा आधा से एक ग्राम तक, मिश्रीयुक्त ठंड़े पानी के साथ दें तो पेशाब हो जायेगा।
  • पतले दस्त और उल्टी की स्थिति में लालमिर्च, अजवाइन, शुद्ध कर्पूर, शुद्ध अफीम और शुद्ध कुचला समान भाग लेकर, जल योग से चना के बराबर गोलियां बना लें। मात्रा- 1 से 3 गोली तक रोग और रोगी की प्रकृति के अनुसार ठंड़े पानी के साथ देने से लाभ होगा।
  • नाभि के नीचे मूत्र की थैली में मूत्र जमा है या नहीं प्रथम इस बात की परीक्षा करनी चाहिए। यदि मूत्र जमा हो तो सलाई द्वारा मूत्र निकाल देना चाहिए।
ऐंठन : हाथ-पैरों की ऐंठन को दूर करने के लिए कपूर की मालिश करनी चाहिए। तेल में कपूर मिलाकर मालिश करना भी उत्तम है। गर्म पानी को बोतल में भरकर सेंकना भी लाभदायक है।
शीतांग होने पर : रोगी के हाथ-पैरों में सोंठ के चूर्ण या किसी अन्य गरम तेल की मालिश करनी चाहिए तथा मकरध्वज, कस्तूरी और कपूर मिलाकर शहद के साथ चटाना चाहिए।
नोट : पेडू पर मिट्टी की पट्टी, ठंड़ा घर्षण कटिस्नान अथवा मेहन स्नान हैजा एवं मूत्र खोलने की सर्वोत्तम प्राकृतिक चिकित्सा है।
पथ्य :
  • दो-तीन दिन बाद खाने के लिए मूंग की दाल से या तोरई से रोटी देनी चाहिए।
  • पुदीने की चटनी बराबर देते रहना चाहिए।
  • दलिया, पतली खिचड़ी तथा अजवाइन का रस रोग शान्त होने के बाद भी बराबर देते रहना चाहिए।
  • रोगी को ठीक होने के 48 घण्टे बाद तक रोटी इत्यादि न दें। इससे पहले दलिया दें। 

हैजा रोग के लक्षण-

  • हैजा रोग से पीड़ित रोगी को उल्टियां और पीले रंग के पतले दस्त होने लगते हैं तथा उसके शरीर में ऐंठन तथा दर्द होने लगता है।
  • रोगी व्यक्ति को पेट में दर्द, बेचैनी, प्यास, जम्भाई, जलन तथा हृदय और सिर में दर्द होने लगता है।
  • हैजा रोग के कारण रोगी व्यक्ति का शरीर ठंडा तथा पीला पड़ जाता है और उसकी आंखों के आगे गड्ढ़े बन जाते हैं।
  • इस रोग से पीड़ित रोगी के होंठ, दांत और नाखून काले पड़ जाते हैं।
  • कभी-कभी तो इस रोग के कारण रोगी व्यक्ति की हडि्डयां अपने जोड़ों पर से काम करना बंद कर देती है।

हैजा रोग होने का कारण-

  • यह एक प्रकार का संक्रामक रोग है जो कई प्रकार की मक्खियों तथा दूषित पानी से फैलता है।
  • इस रोग के होने का सबसे प्रमुख कारण गलत तरीके से खान-पान तथा दूषित भोजन का सेवन करना है।
  • दूषित भोजन के कारण शरीर में दूषित द्रव्य जमा होने लगता है जिसके कारण हैजा रोग हो जाता है।
  • हैजा रोग अक्सर अर्जीण (बदहजमी) रोग के हो जाने के कारण होता है।
  • यदि किसी व्यक्ति की पाचनक्रिया खराब हो जाती है तो भी उसको यह रोग हो सकता हैं।
हैजा रोग का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार-
  • हैजा रोग से पीड़ित रोगी को पानी में नींबू या नारियल पानी मिलाकर पीना चाहिए ताकि उसके शरीर में पानी की कमी पूरी हो सकें और उल्टी करते समय दूषित द्रव्य शरीर से बाहर निकल सके।
  • इस रोग से पीड़ित रोगी को पुदीने का पानी पिलाने से भी बहुत अधिक लाभ मिलता है।
  • लौंग को पानी में उबालकर रोगी को पिलाने से हैजा रोग ठीक होने लगता है।
  • हैजा रोग से पीड़ित रोगी को तुलसी की पत्ती और कालीमिर्च पीसकर सेवन कराने से हैजा रोग ठीक हो जाता है।
  • इस रोग से पीड़ित रोगी को प्याज तथा नींबू का रस गर्म पानी में मिलाकर पिलाने से हैजा रोग ठीक हो जाता है।
  • हैजा रोग को ठीक करने के लिए रोगी के पेट पर गीली मिट्टी की पट्टी करनी चाहिए तथा इसके बाद रोगी को एनिमा क्रिया करानी चाहिए ताकि उसका पेट साफ हो सके। फिर इसके बाद रोगी को गर्म पानी से गरारे कराने चाहिए और इसके बाद उसे कटिस्नान कराना चाहिए। इस प्रकार से उपचार करने से हैजा रोग ठीक होने लगता है।
  • हैजा रोग से पीड़ित रोगी जब तक ठीक न हो जाए तब तक उसे नींबू के रस को पानी में मिलाकर पिलाते रहना चहिए और उसे उपवास रखने के लिए कहना चाहिए। यदि रोगी व्यक्ति को कुछ खाने की इच्छा भी है तो उसे फल खाने के लिए देने चाहिए।
  • हैजा रोग को ठीक करने के लिए सबसे पहले इस रोग के होने के कारणों को दूर करना चाहिए फिर इसके बाद इसका उपचार कराना चाहिए।
  • हैजा रोग को ठीक करने के लिए किसी प्रकार की दवाईयों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।
  • इस रोग से पीड़ित रोगी को स्वच्छ स्थान पर रहना चाहिए जहां पर हवा और सूर्य की रोशनी ठीक तरह से प्राप्त हो सके।
  • इस रोग से पीड़ित रोगी को जब प्यास लग रही हो तो उसे हल्का गुनगुना पानी देना चाहिए।
  • हैजा रोग से पीड़ित रोगी के हाथ-पैर जब ऐंठने लगे तो उसके हाथ तथा पैरों को गर्म पानी में डुबोकर रखना चाहिए फिर उस पर गर्म कपड़ा लपेटना चाहिए।
  • हैजा रोग को ठीक करने के लिए नीली बोतल के सूर्य तप्त जल की 28 मिलीलीटर की मात्रा में नींबू का रस मिलाकर 5 से 10 मिनट के बाद रोगी को लगातार पिलाते रहना चाहिए। यह पानी रोगी को तब तक पिलाते रहना चाहिए जब तक कि रोगी को उल्टी तथा दस्त होना बंद नहीं हो जाते हैं।
हैजा रोग से बचने के उपाय-
  • इस रोग से बचने के लिए कभी भी अजीर्ण रोग (बदहजमी) नहीं होने देना चाहिए।
  • इस रोग से बचने के लिए मैले तथा भीड़-भाड़ वाले स्थानों पर कभी भोजन का सेवन नहीं करना चाहिए।
  • व्यक्ति को कभी-भी मलत्याग करने वाली जगह पर नहीं रहना चाहिए।
  • बासी खाद्य पदार्थों, सड़े-गले खाद्य पदार्थों तथा खुले हुए स्थान पर रखी मिठाइयों का सेवन नहीं करना चाहिए।
  • ऐसे कुएं तलाबों तथा जलाशयों के जल को कभी भी पीना नहीं चाहिए। जिनके आस-पास गंदगी फैली हो या फिर जिनका पानी गंदा हो।
  • गर्मी के दिनों में लू चलती है, उससे बचकर रहना चाहिए तथा धूप में बाहर नहीं निकलना चाहिए।
  • जब भोजन कर रहे हो तो उस समय पानी नहीं पीना चाहिए बल्कि भोजन करने के 2 घण्टे बाद पानी पीना चाहिए।
  • भोजन हमेशा सादा करना चाहिए तथा आवश्यकता से अधिक नहीं करना चाहिए।
  • हैजा रोग से बचने के लिए भोजन भूख से अधिक नहीं करना चाहिए।
  • हैजा रोग से बचने के लिए भोजन में प्याज, पोदीना, नींबू तथा पुरानी पकी इमली का सेवन करना चाहिए।
  • हैजा रोग से बचने के लिए सभी व्यक्तियों को प्रतिदिन एक या आधा नींबू का रस पानी में मिलाकर पीना चाहिए। इस पानी को पीने से खून साफ हो जाता है और हैजा होने का डर बिल्कुल भी नहीं रहता है।
  • खाने वाली चीजों को हमेशा ढककर रखना चाहिए ताकि इन चीजों पर मक्खियां न बैठ सके।
  • रात के समय में अधिक जागना नहीं चाहिए।
  • अधिक काम करने से बचना चाहिए ताकि शरीर में थकावट न हो सके।
  • संभोग करने की गलत नीतियों से बचे क्योंकि गलत तरीके से संभोग करने से भी हैजा रोग हो सकता है।
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