Friday 8 June 2012

तंबाकू का सेवन जटिल स्वास्थ्य समस्या

विज्ञापन कम्पनी में कार्यरत 30 वर्षीय पुरुष ओपीडी में अपनी पत्नी के साथ आता है। उसे धूम्रपान को छोड़ने के लिए मदद की जरूरत थी। उसने हमें बताया कि वह रोज लगभग 20 से 30 सिगरेट पी जाता है। उसने सिगरेट को छोड़ने की काफी बार कोशिश की लेकिन हर बार वह ऐसा नहीं कर सका। उसने हमें यह भी बताया कि उसने सिगरेट पीना अपने स्कूल में ही अपने दोस्तों के साथ मजे लेने के लिए शुरू किया था। बाद में वह कॉलेज परीक्षा के दौरान नियमित रूप से सिगरेट पीने लगा था। 2 से 3 सालों के अंदर ही वह बहुत ज्यादा सिगरेट पीने लगा। उसने इसे अपने काम के तनाव के साथ जोड़ लिया था। उसे परामर्श के कई सत्रों में हिस्सा दिलवाया गया जिसमें व्यवहारात्मक परिवर्तन तथा जीवन शैली में सुधार भी शामिल था। ध्यान लगाने ने भी उसकी मदद की। चार सप्ताह के इलाज के बाद उसने धीरे-धीरे सिगरेट पीना बंद कर दिया। इस समय वह पिछले तीन माहों से लगातार हमारे सलाह-सत्र में आ रहा है और अभी तक नॉन- स्मोकर बना हुआ है।
तंबाकू मुक्त संसार
31 मई को 24 घंटों के लिए धूम्रपान से दूर रहने की मुहिम, र्वल्ड नो-टोबैको डे के रूप में मनाया जाता है। यह मुहिम पूरे संसार मे तंबाकू के खिलाफ काम कर रहे देशों को आपस में जोड़ती है। तंबाकू का उपभोग वास्तव में काफी बड़ी समस्या है और हम सभी इसका दाम चुका रहे हैं। तंबाकू हर साल पूरी दुनिया में 30 लाख लोगों को अपना शिकार बनाता है, जिसमें से लगभग 10 प्रतिशत दूसरों के कारण इसका शिकार होते हैं। भारत 10.2 करोड़ लोगों के साथ दुनिया का दूसरा अग्रणी तंबाकू उपभोक्ता है। बल्कि हकीकत में भारत में होने वाली स्वास्थ्य समस्याओं में से लगभग 40 प्रतिशत की जड़ में तंबाकू ही है। चौंकाने वाले आंकड़े हमें यह भी बताते हैं कि 10 साल से कम उम्र के लगभग 35 प्रतिशत बच्चे कम से कम एक बार तो किसी न किसी रूप में तंबाकू का स्वाद ले चुके हैं। तंबाकू का प्रयोग सामाजिक-सांस्कृतिक हौवा भी है। काफी हद तक सिगरेट पीना, सीखने वाला व्यवहार जैसा होता है। छोटे बच्चे और युवा होते किशोर अपने आसपास
में इसे होता देखकर सीख जाते हैं। मीडिया भी फिल्मी सितारों को सिगरेट पीते हुए प्रस्तुत करता है और बच्चे भी इन्हीं से प्रेरित होकर सिगरेट उठा लेते हैं। सिगरेट पीना शुरू-शुरू में शौक से ही शुरू होता है। कभी-कभी तो सिगरेट पीने वाले युवाओं को उनके साथियों के बीच नायक समझा जाता है। सबसे ज्यादा खतरनाक है, सिगरेट पीने को तनाव मुक्त होने से जोड़ना। सिगरेट पीने की प्रवृत्ति परीक्षाओं के दौरान बढ़ती जाती है। इसके साथ ही अन्य तनाव की परिस्थितियों में लोग सिगरेट की तरफ मुड़ जाते हैं तथा तनाव से निपटने के लिए सिगरेट व अन्य तंबाकू उत्पाद लेने लगते हैं। तंबाकू ही दुनिया में असमय होने वाली मौतों का सबसे बड़ा कारण है लेकिन खुशी की बात यह है कि अब हम इसके खिलाफ असहाय नहीं है। तंबाकू मुक्त समाज की रचना करने के लिए हमें हर किसी का सहयोग और साथ चाहिए, व्यक्तिगत तथा समाज दोनों के ही स्तर पर। बस जरूरत है सभी जागरूक व जिम्मेदार लोगों के साथ जुड़ने की और कदम बढ़ाने की। फिर चाहे वे अभिभावक हों, स्कूल, मीडिया, मानसिक चिकित्सक या बड़े स्तर पर समाज हो। इस बारे में डॉ. समीर पारिख के कुछ सुझाव :
अभिभावक
कम आयु से ही बच्चे अपने माता-पिता की नकल करने लगते हैं, उनका अनुसरण करने लगते हैं। हम बच्चों के सबसे पहले रोल मॉडल होते हैं। तो अभिभावक के रूप मे हम जब भी कोई सिगरेट सुलगाते हैं या तंबाकू का कोई भी उत्पाद खाते हैं तो हम बच्चों को तंबाकू की ओर पहला कदम बढ़ाने को प्रोत्साहित करते हैं। अभिभावकों को एक जिम्मेदार रोल मॉडल होना चाहिए। बच्चों को तनाव से निपटने के सही उपायों को बताना चाहिए तथा साथ ही बच्चों को उनके भ्रम और मन में चल रहे तूफानों के बारे में बताने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।
स्कूल
सिर्फ तंबाकू के बारे में बात करके ही बच्चों में तंबाकू खाने की प्रवृत्ति नहीं बढ़ सकती। स्कूलों को भी तंबाकू और तंबाकू के नुकसानों को बताना चाहिए तथा सिगरेट पीने के बारे में जो भी भ्रामक धारणाएं हैं उनके बारे में बात करनी चाहिए। साथ ही बच्चों को जिंदगी की अन्य दक्षताओं के बारे में प्रशिक्षण प्रदान किए जाने चाहिए जैसे कि तनाव या संघर्षं से निपटने के तरीके। इन्हें स्कूल के पाठ्यक्रम का ही एक हिस्सा बनाना चाहिए।
मानसिक चिकित्सक असर डालने वाले लोगों को ये आदत छोड़ने के लिए कहने के साथ साथ, मानसिक चिकित्सकों कर यह नैतिक जिम्मेदारी भी हो ती है कि वे तंबाकू के उपभोग के खिलाफ बोलें, तंबाकू के प्रयोग को कम करें तथा स्कूलों, कॉलेजों तथा समुदायों के साथ मिलकर जागरूकता की मुहिम चलाएं।
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