Sunday, 7 October 2012

हमने गंगा के घटो पर कई सारे बच्चो को बल मजदूरी, फूल बेचते, काम करते देखा, उनको देख कर मन में कई सारे खयाल आये तो हमने कुछ बाते उन बच्चो से पुछ ही लिया, की क्या बेटा आप लोग ये क्यों करते हो? तो उनका जवाब था ना करे तो इस महगाई में घर का चूल् हा कैसे जलेगा? माँ अकेले कैसे खाना बनाएगी? पापा अकेले कहा से इतने पैसे लायेंगे? और ना जाने क्या क्या जवाब मिला. फिर हमने उनसे पढाई के लिए पुछा तो उन्होंने कहा नहीं करते है, पूछा क्यों? तो जवाब मिला कमाने के लिए, हमने पुछा पढना चाहोगे? जवाब मिला.... हां, हमने पुछा गंगा मैया से कुछ मागने को कहा जाये तो क्या मांगोगे? तो जवाब सुनकर मन मचल उठा.... जवाब था.... गंगा मैया मोहे सिक्षा दिलाई दे, तोहे चुनरी चदैबे...! सोचिये ये हालत इलाहाबाद जैसे महानगर की है जहा पर ना जाने कितने करोडो रुपये खर्च होते है,,, पर सवाल यही है की बदलाव क्यों नहीं नजर आता,,,, क्या सच में करोडो रुपये खर्च होते है? या सरकारी संस्थाओ, एन जी ओ या धर्मार्थ करने का दावा करने वाली संस्थाओं के अफसरों की जेब में जाते है? खैर ये सब बाते चिरागन की तरफ से पिछले एक पखवारे से गंगा किनारे, गंगा जागरूकता के लिए चलाये जा रहे कार्यकर्म " भागीरथी पुनर आह्वान" के अनतर्गत निकल कर सामने आई जिसने दिमाग को सोचने के लिए विवश किया और इस दौरान ली गयी इस तस्वीर को पोस्टर का रूप देकर आपके सामने लाने को विवश किया! पर सवाल अब भी जिन्दा है.....! ये तस्वीर कब बदलेगी?

हमने गंगा के घटो पर कई सारे बच्चो को बल मजदूरी, फूल बेचते, काम करते देखा, उनको देख कर मन में कई सारे खयाल आये तो हमने कुछ बाते उन बच्चो से पुछ ही लिया, की क्या बेटा आप लोग ये क्यों करते हो? तो उनका जवाब था ना करे तो इस महगाई में घर का चूल्
हा कैसे जलेगा? माँ अकेले कैसे खाना बनाएगी? पापा अकेले कहा से इतने पैसे लायेंगे? और ना जाने क्या क्या जवाब मिला. फिर हमने उनसे पढाई के लिए पुछा तो उन्होंने कहा नहीं करते है, पूछा क्यों? तो जवाब मिला कमाने के लिए, हमने पुछा पढना चाहोगे? जवाब मिला.... हां, हमने पुछा गंगा मैया से कुछ मागने को कहा जाये तो क्या मांगोगे? तो जवाब सुनकर मन मचल उठा.... जवाब था.... गंगा मैया मोहे सिक्षा दिलाई दे, तोहे चुनरी चदैबे...! सोचिये ये हालत इलाहाबाद जैसे महानगर की है जहा पर ना जाने कितने करोडो रुपये खर्च होते है,,, पर सवाल यही है की बदलाव क्यों नहीं नजर आता,,,, क्या सच में करोडो रुपये खर्च होते है? या सरकारी संस्थाओ, एन जी ओ या धर्मार्थ करने का दावा करने वाली संस्थाओं के अफसरों की जेब में जाते है?
खैर ये सब बाते चिरागन की तरफ से पिछले एक पखवारे से गंगा किनारे, गंगा जागरूकता के लिए चलाये जा रहे कार्यकर्म " भागीरथी पुनर आह्वान" के अनतर्गत निकल कर सामने आई जिसने दिमाग को सोचने के लिए विवश किया और इस दौरान ली गयी इस तस्वीर को पोस्टर का रूप देकर आपके सामने लाने को विवश किया! पर सवाल अब भी जिन्दा है.....! ये तस्वीर कब बदलेगी?

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