गंगा की कहानी, मानव की जुबानी... गंगा पर आधारित विचार गोष्ठी, सांस्कृतिक कार्यक्रम एव प्रतियोगिता आयोजक: चिरागन |
Monday, 29 October 2012
गंगा की कहानी, मानव की जुबानी... गंगा पर आधारित विचार गोष्ठी, सांस्कृतिक कार्यक्रम एव प्रतियोगिता आयोजक: चिरागन
Saturday, 27 October 2012
अभिभावकों और विद्यालय के शिक्षकों का दायित्व है कि वे बच्चे के मनोभावों को समझें।
Schoolo me atychar By: Chiragan |
यूनिसेफ की एक रिपोर्ट के मुताबिक 65 प्रतिशत बच्चे स्कूलो में यौन शोषण का शिकार होते है। 12 से कम आयु के 41.7 प्रतिशत बच्चे यौन उत्पीड़न से जूझ रहे है। भारत में बाल यौनाचार की बढ़ती घटनाओं का अंदाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि बच्चों के खिलाफ अपराध के मामलों में देश के दस और दुनिया के 35 बड़े शहरों में दिल्ली पहले स्थान पर है। बाल शोषण आधुनिक समाज का एक विकृत और खौफनाक सच बन चुका है। आमतौर पर बाल शोषण को बच्चों के साथ शारीरिक या भावनात्मक दुर्व्यवहार माना जाता है लेकिन कंसलटेंसी डेवलपमेंट सेंटर के अनुसार बच्चे के माता-पिता या अभिभावक द्वारा किया गया हर ऐसा काम बाल शोषण के दायरे में आता है जिससे उस पर बुरा प्रभाव पड़ता हो या ऐसा होने की आशका हो या जिससे बच्चा मानसिक रूप से भी प्रताड़ित महसूस करे। हैरानी की बात तो यह है कि स्वयं को मानवता का पोषक मानने वाला देश 'बाल शोषण' के मुद्दे को ही खारिज कर देता है।
आमतौर पर अभिभावकों को इस तथ्य का अंदाजा ही नहीं होता है कि उनके बच्चे का यौन शोषण उनका कोई अपना ही कर रहा है। ज्यादातर मामलों में देखा गया है कि करीबी रिश्तेदार और जान-पहचान के लोग ही बच्चों या बच्चियों के यौन उत्पीड़न के दोषी होते है। ऐसे में बच्चों को डरा-धमका कर या परिवार की मान-प्रतिष्ठा की दुहाई देकर मुंह बंद रखने को मजबूर किया जाता है। यौन उत्पीड़न के बहुत सारे मामले तो कानून की नजर में आ ही नहीं पाते हालाकि सरकारें और अनेक स्वयंसेवी संगठन जन-जागरण अभियान के जरिए लोगों को ऐसे मामले प्रकाश में लाने को प्रेरित-प्रोत्साहित करते रहते है, मगर उनका अपेक्षित असर नहीं हो पाया है। इसका एक प्रमुख कारण हमारा सामाजिक ढाचा है, जहा 'प्रतिष्ठा' के लिए जान की कीमत भी कम आकी जाती है और अपने झूठे सम्मान को बचाए रखने के लिए अभिभावक अपने बच्चों के खिलाफ हो रहे अत्याचारों को सामने लाने से हिचकते है जो प्रत्यक्ष रूप से उन लोगों के लिए बढ़ावा है, जो नन्हे मासूमों को अपने शोषण का शिकार बनाते है।
जून माह में बच्चों के यौन उत्पीड़न को रोकने के लिए विधि मंत्रालय ने एक नए कानून का मसौदा तैयार किया था। यूं तो प्रस्तावित अधिनियम के ज्यादातर प्रावधान पहले से चले आ रहे है, पर कई मायनों में यह एक नई पहल भी है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि अदालती कार्यवाही को और मानवीय व त्वरित बनाने की कोशिश की गई है। ऐसे मामलों की सुनवाई के लिए हर जिले में विशेष अदालत का गठन और इनके लिए अलग से सरकारी वकील नियुक्त किए जाने का प्रस्ताव अदालती कार्यवाही को बच्चों के अनुकूल बनाएगा। प्रस्तावित अधिनियम का सबसे महत्वपूर्ण पक्ष यह है कि ऐसे मामलों में साल भर के भीतर फैसला सुनाया जाना जरूरी होगा। बाल उत्पीड़न के विरुद्ध इडियन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स की गाइडलाइन में सभी चिकित्सकों को निर्देश दिए गए है कि अगर उन्होंने बाल उत्पीड़न की सूचना समय पर नहीं दी तो उन्हें दो साल की जेल भी हो सकती है, पर इन सबसे ऊपर अभिभावकों और विद्यालय के शिक्षकों का दायित्व है कि वे बच्चे के मनोभावों को समझें और उनकी सुरक्षा के लिए कदम उठाएं।
ये लेखक के निजी विचार है! लेखक का परिचय:
[डॉ. ऋतु सारस्वत: लेखिका स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं]
हमें पानी के साथ तो प्रेम का रिश्ता बनाना ही चाहिए।
दूर-दराज के ग्रामीण इलाकों से लेकर दिल्ली जैसे महानगर में पीने के पानी को लेकर संकट क्यों पैदा हो जाता है? सूखे की आशंका क्यों जताई जाने लगती है? इन सब मुश्किलों का जिम्मेदार मानसून को ठहरा दिया जाता है। लेकिन हमारे समाज में हो क्या रहा है। हम प्रकृति के उपहारों का लालची और भौतिकवादी तरीके से दोहन कर रहे हैं। यह समस्या इसलिए पैदा हो रही है कि हम अपनी जरूरत से कहीं ज्यादा उपयोग कर रहे हैं। इससे भी बड़ी मुश्किल यह है कि सरकारों का ध्यान इसके समुचित प्रबंधन की ओर है ही नहीं।
दरअसल, पानी तो हमारे जीवन का हिस्सा है। उसके बिना जीवन की कल्पना नहीं हो सकती। ऐसे में हमें पानी के साथ तो प्रेम का रिश्ता बनाना ही चाहिए। राजा जनक की एक कहानी तो हम सबने सुनी है।
उनके राज्य में बरसात नहीं हो रही थी तो वे राजमहल छोड़कर खुद खेतों में हल चलाने के लिए निकल आए। लेकिन आज के जमाने में ऐसा संभव नहीं दिखता। हमारे राजनेताओं को इसकी कोई चिंता नहीं है। न तो वह खुद पानी का इस्तेमाल कम कर रहे हैं और न ही उन्हें समस्या की विकरालता का अंदाजा ही है जबकि होना यह चाहिए कि उन्हें जल संकट को लेकर तमाम पहलू पर गंभीरता से ध्यान देना चाहिए लेकिन इसके लिए तो उन्हें राजा जनक की तरह जमीन पर आना होगा। इसके लिए मौजूदा व्यवस्था में राजनेता क्या आम आदमी भी तैयार नहीं दिखता?
प्रकृति का उपभोग नहीं, उपयोग करना होगा इसकी मिसाल बन चुकी हैं-हमारी नदियां। भारत में अब एक भी नदी ऐसी नहीं बची है जिसके तट पर आप आचमन कर सकें, उसके पानी को पीने का साहस जुटा पाएं। हमारी नदियां नालों में तब्दील होती जा रही हैं। जब कोई नदी नाले में तब्दील होने लगे तो समझना चाहिए कि यह भ्रष्टाचार का चरमोत्कर्ष है। यह बताता है कि राज्य की शासन व्यवस्था और समाज की जीवनशैली में गिरावट आ चुकी है। इसके लिए जरूरी है कि हमें और हमारे राजनेताओं को अपने जीवन में सदाचार अपनाना होगा। सदाचार का सीधा मतलब है कि आप इस धरती से जितना लेते हो, प्रकृति का जितना उपयोग करते हो, कम से कम उतना तो उसे वापस कर दो।
यह सदाचार कैसे आएगा? इसके लिए जरूरी है कि सबसे पहले हमें अपने नीति-निर्धारकों या कहें राजनेताओं और नौकरशाहों को शिक्षण दिया जाए। इसके बाद विस्तृत पैमाने पर समाज का शिक्षण हो। इसके बाद खेती, उद्योग-धंधों में प्राकृतिक संसाधनों के समुचित प्रबंधन का कौशल का प्रशिक्षण दिया जाए। अगर प्राकृतिक संसाधनों के समुचित प्रबंधन का कौशल सीख लिया जाए तो शिक्षण की क्या जरूरत होगी? यह सवाल भी उठ सकता है। लेकिन इस बात की जरूरत ज्यादा है कि हम अपने नीति-निर्धारकों और समाज को इस बात का मतलब समझा सकें कि संरक्षण का क्या मतलब होता है? अनुशासित उपयोग के जरिए हम क्या बदलाव ला सकते हैं? हमें लोगों को इस बात के लिए शिक्षित करना होगा कि जब हम प्राकृतिक संसाधनों का जमकर इस्तेमाल करते हैं, दोहन करते हैं तो धरती को बुखार चढ़ आता है। मौसम का मिजाज गरमाने लगता है। सृष्टि को हम कैसे बचा सकते हैं? कैसे बना सकते हैं? इसको लेकर समाज को शिक्षित किए जाने की जरूरत है। हमें इस बात को गांठ बांध कर समझ लेना चाहिए कि सृष्टि को अगर बचाना है तो कम से कम भोग करना होगा और जितना भोग किया है, उससे ज्यादा वापस करना होगा।
इन दिनों क्या हो गया है कि महानगरों और शहरों में पर्यावरण का फैशन चल निकला है। लोग सभा-गोष्ठियां करते हैं, फोटो खिंचवा लेते हैं। बस पर्यावरण की चिंता पूरी हो गई। तो इससे बदलाव नहीं होगा। बदलाव सबसे पहले खुद में आना चाहिए। आप पानी को बचाने के लिए संरक्षित रखने के लिए क्या-क्या करते हैं, यह महत्वपूर्ण है। जिस दिन देश का हर शख्स इस बात को समझ लेगा, भारत में पानी का कोई संकट नहीं होगा। संकट नहीं हो, इसके लिए सरकारों को भी चेतने की जरूरत है। उन्हें नदियों को बचाने के लिए कारगर नीतियों को बनाने की तरफ ध्यान देना होगा। नदियों को नाले में तब्दील होने से बचाने का काम युद्ध स्तर पर होना चाहिए। इसके अलावा, कानून ऐसा बनाया जाना चाहिए जिससे पानी पर सबका बराबर का हक हो। आज यह भी देखने को मिल रहा है कि किसी इलाके को आम आदमी पानीदार बनाते हैं और बाद में सरकार आकर कहती है कि यह पानी तो सरकार का है और सरकार इसका जैसे चाहे इस्तेमाल करेगी। यह अन्याय है। इसके अलावा बरसात की एक-एक बूंद को सहेज कर उसके इस्तेमाल के प्रबंधन की ओर ध्यान देना होगा। दरअसल, मानसून के आने में ऐसा विलंब सरकार और समाज दोनों के लिए चेतावनी ही है।
ये लेखक के निजी विचार है! लेखक का परिचय:
Hume pani ke saath rishta banana hi hoga. by Chiragan |
उनके राज्य में बरसात नहीं हो रही थी तो वे राजमहल छोड़कर खुद खेतों में हल चलाने के लिए निकल आए। लेकिन आज के जमाने में ऐसा संभव नहीं दिखता। हमारे राजनेताओं को इसकी कोई चिंता नहीं है। न तो वह खुद पानी का इस्तेमाल कम कर रहे हैं और न ही उन्हें समस्या की विकरालता का अंदाजा ही है जबकि होना यह चाहिए कि उन्हें जल संकट को लेकर तमाम पहलू पर गंभीरता से ध्यान देना चाहिए लेकिन इसके लिए तो उन्हें राजा जनक की तरह जमीन पर आना होगा। इसके लिए मौजूदा व्यवस्था में राजनेता क्या आम आदमी भी तैयार नहीं दिखता?
प्रकृति का उपभोग नहीं, उपयोग करना होगा इसकी मिसाल बन चुकी हैं-हमारी नदियां। भारत में अब एक भी नदी ऐसी नहीं बची है जिसके तट पर आप आचमन कर सकें, उसके पानी को पीने का साहस जुटा पाएं। हमारी नदियां नालों में तब्दील होती जा रही हैं। जब कोई नदी नाले में तब्दील होने लगे तो समझना चाहिए कि यह भ्रष्टाचार का चरमोत्कर्ष है। यह बताता है कि राज्य की शासन व्यवस्था और समाज की जीवनशैली में गिरावट आ चुकी है। इसके लिए जरूरी है कि हमें और हमारे राजनेताओं को अपने जीवन में सदाचार अपनाना होगा। सदाचार का सीधा मतलब है कि आप इस धरती से जितना लेते हो, प्रकृति का जितना उपयोग करते हो, कम से कम उतना तो उसे वापस कर दो।
Hume pani ke saath rishta banana hi hoga. by Chiragan |
इन दिनों क्या हो गया है कि महानगरों और शहरों में पर्यावरण का फैशन चल निकला है। लोग सभा-गोष्ठियां करते हैं, फोटो खिंचवा लेते हैं। बस पर्यावरण की चिंता पूरी हो गई। तो इससे बदलाव नहीं होगा। बदलाव सबसे पहले खुद में आना चाहिए। आप पानी को बचाने के लिए संरक्षित रखने के लिए क्या-क्या करते हैं, यह महत्वपूर्ण है। जिस दिन देश का हर शख्स इस बात को समझ लेगा, भारत में पानी का कोई संकट नहीं होगा। संकट नहीं हो, इसके लिए सरकारों को भी चेतने की जरूरत है। उन्हें नदियों को बचाने के लिए कारगर नीतियों को बनाने की तरफ ध्यान देना होगा। नदियों को नाले में तब्दील होने से बचाने का काम युद्ध स्तर पर होना चाहिए। इसके अलावा, कानून ऐसा बनाया जाना चाहिए जिससे पानी पर सबका बराबर का हक हो। आज यह भी देखने को मिल रहा है कि किसी इलाके को आम आदमी पानीदार बनाते हैं और बाद में सरकार आकर कहती है कि यह पानी तो सरकार का है और सरकार इसका जैसे चाहे इस्तेमाल करेगी। यह अन्याय है। इसके अलावा बरसात की एक-एक बूंद को सहेज कर उसके इस्तेमाल के प्रबंधन की ओर ध्यान देना होगा। दरअसल, मानसून के आने में ऐसा विलंब सरकार और समाज दोनों के लिए चेतावनी ही है।
ये लेखक के निजी विचार है! लेखक का परिचय:
Manoj Kumar B.ed Student RMLU, Faizabad |
Friday, 26 October 2012
We are Start our new Computer Software, Hardware and Mobile Repairing Training Center on 23 October 2012 at 7 Hashimpur Road, Allahpur, Allahabad, U.P., India By: Chiragan
Wednesday, 24 October 2012
आप सभी को "चिरागन" की और से विजयदशमी की शुभकामनाएं, wish all of you happy Vijaya Dashmi: Chiragan Family
Tuesday, 23 October 2012
जहां दया तहां धर्म है, जहां लोभ तहां पाप। जहां क्रोध तहां काल है, जहां क्षमा तहां आप।। मानव मूल्यों को जागृत करने का चिरागन का एक प्रयास..! Jaha daya taha dharm, jaha lobh taha pap. jaha krodh taha kaal, jaha chama taha aap!
Saturday, 20 October 2012
हमारी शिक्षा का स्तर और बच्चो का भविष्य
Siksha ka star ki gavaah chiraga ke project ke douran ki ek photo |
कुछ सालों में उत्तर-प्रदेश में शिक्षक के पद पर बहुत सारी नियुक्तियां हुयीं हैं और अभी और भी नियुक्तियां होनी बाकि है ! देखा जाये तो ये उत्तर-प्रदेश सरकार की बहुत ही अच्छी पहल है इस से बहुत सारे लोगों की बेरोजगारी दूर हुयी है ! लेकिन इसके दुसरे पहलु को देखा जाये तो ये उत्तर-प्रदेश के भविष्य के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है ! ऐसे - ऐसे लोगों की न्युक्तियाँ हुयीं हैं जिन्हें सही तरीके से हिन्दी न तो लिखना आता है और न ही पढना आता हैं , और अंग्रेजी की बात तो बहुत दूर है ! ऐसे में कोई कैसे कह सकता है की उत्तर-प्रदेश में शिक्षा के लिए किये जा रहे कार्य सही दिशा में जा रहा है ! एक तो पहले से ही विद्द्यालयों और महाविद्द्यालयों के शिक्षक गण शिक्षा को व्यवसाय बना दिए हैं अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने के बजाय वो छात्रों को अपने यहाँ पढने के लिए मजबूर कर रहे हैं ! और इसमें निजी विद्द्यालयों की तो बात ही छोड़ दीजिए , निजी विद्द्यालय तो नाच - गाने ही में लिप्त रहते हैं !
कुछ दिनों पहले मैं अपने गाँव से शहर ( इलाहाबाद ) आ रही थी ! जिस रास्ते से मैं आ रही थी उसी रास्ते में मेरे गाँव का प्राथमिक विद्द्यालय मिलता है , जब मैं वहां से गुजर रही थी तो शिक्षक के पद पे नयी - नयी नियुक्ति जिनकी हुयी थी वही कक्षा में पढ़ा रही थी ! जब मैंने देखा तो सहसा मेरे मन में उत्सुक्तापूर्ण विचार आया की क्यों न रुक कर देखा जाये की नयी शिक्षिका महोदया पढ़ाने के लिए क्या - क्या नए - नए तरीके इस्तेमाल करती हैं ! बच्चे बहुत शोर गुल कर रहे थे जिसके कारन मुझे कुछ सुनाई नहीं दे रहा था की वो क्या पढ़ा रही हैं ! लेकिन थोड़ी देर बाद जैसे ही उनकी नजर मेरे ऊपर पड़ी तो वो बच्चों को शांत कराने लगी ! उन्होंने बच्चों से शुर , लय और ताल में एक सवाल पूछा की, पपीता खाया है जी ???? बच्चों ने भी उसी लय और ताल में जवाब दिया की जी ............! तब मैंने सोचा की शायद मैडम पपीता में पाए जाने वाले विटामिन के बारे में बतायेंगी ! उसके लिए मैं थोड़ी देर और रुक गयी ! लेकिन वो उससे आगे बढ़ ही नहीं रहीं थी , फिर उन्होंने बच्चों से एक सवाल और किया और इस बार का सवाल मुझे चौका दिया , उनका सवाल था की किसके - किसके घर पे पपीता का पेड़ है ?? ये सवाल मुझे हजम नहीं हुआ और मुझे शक हुआ की शायद कुछ गड़बड़ है ! फिर मैं कक्षा के दीवार के पीछे छिप कर खड़ी हो गयी और बगल वाली खिड़की से झांक कर देखने लगी तो मैंने देखा की मैडम बाहर निकल कर किसीको ढूंढ़ रही थी , फिर मैं समझ गयी की शायद वो मुझे ढूंढ़ रही हैं थोड़ी देर इधर - उधर देखने के बाद वो बच्चे से एक कुर्सी मंगवा कर बाहर में बैठ कर स्वेटर बुनने लगीं ! ये तो कुछ भी नहीं है , मैं आपको एक और किस्सा बताती हूँ की एक मेरे बहुत दूर की रिश्तेदार इलाहाबाद परीक्षा देने आयीं हुयी थी , उत्तर-प्रदेश सरकार के व्दारा दक्षता परीक्षा ली जा रही थी उसीको देने आयीं हुयीं थी ! जब वो शाम को परीक्षा देने के बाद मेरे घर आयीं तो मेरी सहेली ने पूछा की परीक्षा कैसा गया ?? तो उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया तो मेरी सहेली ने फिर पूछा तो इस बार भी उन्होंने कुछ नहीं बोला ! इसी तरह ३ - ४ बार ये सिलसिला चला लेकिन कोई जवाब नहीं मिला फिर उनके पति देव ने बताया की वो कम सुनती हैं थोडा ऊँचा बोलिए ! इस बार खुद उनके पति देव ने ऊँची आवाज में पूछा तब जाकर उन्होंने अवधी में कहा की " ठीके गेलै " ! अब सोचिये की वो बच्चों को क्या पढ़ाती होंगी , अगर वो किसी बच्चे से पूछती होगी की भारत के प्रधानमंत्री कौन हैं ?? और अगर बच्चे बोले की अखिलेश यादव तो वो तो उसे भी सही कर देंगी ! मेरा मकसद उनका मजाक उड़ाना कतई नहीं है , मुझे मालूम है की वो कुदरत की मार है भगवान न करे की किसी को भी ये सब देखना पड़े ! इस तरह के बहुत सारे ऐसे किस्से हैं , पुरे उत्तर-प्रदेश में यही स्थिति है ! और उपर दिए गए सारे किस्से मेरे आँखों देखि और कानो सुनी है !
मैं कुछ सवाल पूछना चाहती हूँ की जिस आधार पे नियुक्तियां ली जा रही है क्या वो सही है ?? इसके लिए जो पात्रता रखी गयी है क्या वो सही है ?? जितनी भी नियुक्तियां हुयी है उसमे प्रमुख रूप से दो पात्रता है , एक तो कोई टीचर ट्रेनिंग ले रखा हो और दूसरा दसवीं बारहवीं एवं स्नातक में लाये गए प्राप्तांक के प्रतिशत के आधार पे ! लेकिन ये पात्रता मुखिया और शिक्षा पदाधिकारी के तरफ से रखी गयी है ! जो १० - १५ साल पहले टीचर ट्रेनिंग किया हो और उस समय से न तो कलम पकड़ा हो और न ही किताब पलटा हो , क्या वो बच्चे को सही ढंग से पढ़ा पाएंगे ? जो चोरी और पैरवी से बहुत ज्यादा नंबर ले आये हों , क्या वो बच्चे को सही शिक्षा दे पाएंगे ? वो तो खुद जब उस तरीके से पास किये हो तो बच्चे को भी तो वही सिखायेंगे ! और जो टेबल के निचे से काम करवा रहे हो उनकी तो बात ही निराली है ! इनलोगों से ज्यादा पढ़ा लिखा हुआ , इनसे ज्यादा उर्जावान , इनसे ज्यादा अपने काम के प्रति समर्पित युवा दर - दर की ठोकरे खा रहे हैं , या यों कहे की उन्हें मजबूर किया जा रहा है ! और वो भी सिर्फ इसलिए की उनके पास टीचर ट्रेनिंग का प्रमाण - पत्र नहीं है , उनके पास पैसे नहीं है , वो इन्लोग जैसों से कुछ नंबर से पीछे हैं ! ये जो पात्रता राखी गयी है क्या वो सही है ?? क्या ये सरकार का शिक्षा के क्षेत्र में सही कदम है ?
सरकार को फिर से इस पे विचार करना चाहिए ! उच्च शिक्षा के साथ - साथ इन सबो पे भी ध्यान देना होगा , बच्चपन से ही उनके आधार को मजबूत बनाना होगा ! पाठ्यक्रम में बदलाव करने की जरुरत है , क्योंकि सोचिये की, छठी वर्ग के अंग्रेजी में बहुत ही सरल वाक्य पढने को मिलते हैं ,जैसे " यह एक लड़का है " लेकिन सातवीं में लम्बी - लम्बी कठिन कहानी एवं कविता पढने को मिलता है, जिसे बच्चे सही से पढ़ नहीं पाते और समझने की बात तो दूर है ! क्या इसमें बदलाव लाने की जरुरत नहीं है ? इसे पूरी व्यवस्था को बिलकुल बदलने की जरुरत है ! और नियुक्ति के लिए लिखित परीक्षा एवं मौखिक परीक्षा ली जाये ! ताकि सही लोगों का नियुक्ति हो सके ! जिससे शिक्षा के स्तर को उठाया जा सके !
ये लेखक के निजी विचार है! लेखक का परिचय:
Pinki Devi S. G. P. B. M., Awadh University, Faizabad |
बच्चो के मस्तिष्क का बेहतर विकास
बच्चो के मस्तिष्क के बेहतर विकास के लिए विशेषज्ञों द्वारा सलाह दी जाती
है कि बचपन से ही ब्रेन एक्सरसाइज करवाई जाये. ब्रेन एक्सरसाइज ज्यादा
थकाने वाला और बोरिंग नहीं होना चाहिए. उसे मजेदार होने के साथ ही उसमें
बधे का ज्यादा से ज्यादा इन्वॉल्वमेंट होना भी जरूरी है जिससे उन्हें दिये
गये चैलेंजेज को पूरा करने के लिए वे अपने दिमाग का भरपूर इस्तेमाल करें.
कुछ तकनीक जिससे बच्चो के ब्रेन के एक्सरसाइज के साथ ही उनकी संज्ञानात्मक
(कॉग्रिटिव) क्षमता भी बढती है. शोध बताते हैं कि बच्चो के ब्रेन का
अधिकतम विकास १३ वर्ष की आयु तक हो जाता है. इसलिए हम जितनी जल्दी बच्चो
की मेंटल एक्सरसाइज की शुरुआत करेंगे , सुपर ब्रेन के विकास के उतने ही
चांसेस ज्यादा होंगे. बच्चोमें संज्ञानात्मक कौशल बढाने से उन्हें किसी
चीज में फोकस करने में सहायता मिलती है, उनकी सोचने की क्षमता बढती है, वे
प्लानिंग और प्राथमिकता के बारे में सीखते हैं, उनकी याद रखने और
विजुलाइजेशन की क्षमता बढती है. बच्चो का ब्रेन एक्सरसाइज बहुत महत्वपूर्ण
है क्योंकि इसका उनके सोचने और
बिहेवियरल पै टर्न पर लंबे समय तक के लिए
असर पडता है.मजेदार एक्टिविटीज और क्रॉर्सवल्ड पजल या स्क्रबल खेलना जैसे
क्रासवर्ल्ड को सुलझाना आदि बधे में ध्यान लगाने और सोचने की शक्ति में
सहायता करते हैं. इस तरह की एक्टिविटीज से बधों के ब्रेन सेल्स की
एक्सरसाइज होती है. मेंटल मैथ सदियों पुरानी तकनीक है मेंटल मैथ. यह
मस्तिष्क के लेफ्ट और राइट दोनों ओर के फंक्शंस को इम्प्रूव करता है. यह
मस्तिष्क की सोचने की क्षमता बढाने का प्रभावशाली तरीका है. साथ ही
मस्तिष्क के फंक्शंस के विकास और उसकी मजबूती भी बढाते हैं. शतरंज शतरंज
जैसे खेल उनके मस्तिष्क को स्टीमुलेट करने में सहायता करते हैं. बधों को
ध्यान केंद्रित करने और रणनीति सीखाने में इस तरह के खेल बहुत मददगार होते
हैं. मेमोरी एक्सरसाइज बहुत कम उम्र से ही मेमोरी एक्सरसाइज की शुरुआत कर
देनी चाहिए. इसे आप बधे को उसके नाम की स्पेलिंग याद करवाकर कर सकती हैं.
इसके अलावा घर केसदस्यों के नाम, टेलीफोन नंबर याद करवाएं और फिर धीरे-धीरे दूसरी कॉम्प्लेक्स चीजों को याद करवाने की कोशिश करें. नयी भाषा सिखाएं
आपके बधे में लैंग्वेज स्किल का विकास होना भी बेहद जरूरी है क्योंकि यह
उसके संपूर्ण विकास के लिए जरूरी है. कोई नयी भाषा सीखने से हमारे मस्तिष्क
को चुनौती मिलती है और इससे मस्तिष्क की शक्ति भी बढती है. हॉबीज बढायें
जब बधे नयी एक्टिविटीज सीखते हैं या उसमें भाग लेते हैं, उस दौरान मस्तिष्क
उसे नये चैलेंज के रूप में ग्रहण करता है. यह ब्रेन की एक्टिविटी और उसके
फंक्शन में इम्प्रूवमेंट लाता है. हालांकि दिये गये ब्रेन एक्सरसाइज बहुत
सीमित है क्योंकि ब्रेन एक्सरसाइज की कोई सीमा नहीं है. बधे को फिजीकल
एक्टिविटीज में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करें और पर्याप्त नींद लेने
दें. यह उन्हें रिलैक्स होने में सहायता करेगा. साथ ही साथ बच्चो के साथ
मजेदार एक्टिविटीज करना न भूलें और उसे हंसने का खूब मौका दें क्योंकि
स्ट्रेस फ्री माइंड और एक्टिव ब्रेन के लिए लाफ्टर सबसे बेहतर टॉनिक माना
जाता है.
ये लेखक के निजी विचार है! लेखक का परिचय:
Mamta Maurya Home Science Department, Allahabad University |
Thursday, 18 October 2012
Saturday, 13 October 2012
मुट्ठीभर संकल्पवान लोग, जिनकी अपने लक्ष्य में दृढ़ आस्था है, इतिहास की धारा को बदल सकते हैं। - महात्मा गांधी मानव मूल्यों को जागृत करने का चिरागन का एक प्रयास..!
आर्थिक युद्ध में किसी राष्ट्र को नष्ट करने का सुनिश्चित तरीका है, उसकी मुद्रा को खोटा कर देना और किसी राष्ट्र की संस्कृति और पहचान को नष्ट करने का सुनिश्चित तरीका है, उसकी भाषा को हीन बना देना । राष्ट्र भाषा हिंदी का सम्मान करे! मानव मूल्यों को जागृत करने का चिरागन का एक प्रयास..!
Friday, 12 October 2012
Thursday, 11 October 2012
Wednesday, 10 October 2012
Tuesday, 9 October 2012
क्या आपको नहीं लगता अंग्रेजों के समय के पुलिस एक्ट में बदलाव होना चाहिए।
Monday, 8 October 2012
save girl poster by chiragan:~~ Why any one kill me? B'coz i am a girl...! save my life.
Why any one kill me? B'coz i am a girl...! save my life. by chiragan |
Sunday, 7 October 2012
हमने गंगा के घटो पर कई सारे बच्चो को बल मजदूरी, फूल बेचते, काम करते देखा, उनको देख कर मन में कई सारे खयाल आये तो हमने कुछ बाते उन बच्चो से पुछ ही लिया, की क्या बेटा आप लोग ये क्यों करते हो? तो उनका जवाब था ना करे तो इस महगाई में घर का चूल् हा कैसे जलेगा? माँ अकेले कैसे खाना बनाएगी? पापा अकेले कहा से इतने पैसे लायेंगे? और ना जाने क्या क्या जवाब मिला. फिर हमने उनसे पढाई के लिए पुछा तो उन्होंने कहा नहीं करते है, पूछा क्यों? तो जवाब मिला कमाने के लिए, हमने पुछा पढना चाहोगे? जवाब मिला.... हां, हमने पुछा गंगा मैया से कुछ मागने को कहा जाये तो क्या मांगोगे? तो जवाब सुनकर मन मचल उठा.... जवाब था.... गंगा मैया मोहे सिक्षा दिलाई दे, तोहे चुनरी चदैबे...! सोचिये ये हालत इलाहाबाद जैसे महानगर की है जहा पर ना जाने कितने करोडो रुपये खर्च होते है,,, पर सवाल यही है की बदलाव क्यों नहीं नजर आता,,,, क्या सच में करोडो रुपये खर्च होते है? या सरकारी संस्थाओ, एन जी ओ या धर्मार्थ करने का दावा करने वाली संस्थाओं के अफसरों की जेब में जाते है? खैर ये सब बाते चिरागन की तरफ से पिछले एक पखवारे से गंगा किनारे, गंगा जागरूकता के लिए चलाये जा रहे कार्यकर्म " भागीरथी पुनर आह्वान" के अनतर्गत निकल कर सामने आई जिसने दिमाग को सोचने के लिए विवश किया और इस दौरान ली गयी इस तस्वीर को पोस्टर का रूप देकर आपके सामने लाने को विवश किया! पर सवाल अब भी जिन्दा है.....! ये तस्वीर कब बदलेगी?
गंगा की हालत देख कर कुछ कहने को मन किया और दिल से यही आवाज निकली, राम तेरी गंगा मैली हो गयी, पापियों के पोलीथिन ढोते ढोते, चिरागन की तरफ से पिछले एक पखवारे से गंगा किनारे, गंगा जागरूकता के लिए चलाये जा रहे " भागीरथी पुनर आह्वान" कार्यकर्म के पहले दिन की ये तस्वीर.~! जिसको हमने पोस्टर का रूप देकर आपको भी नदियों के लिए जागृत करने का प्रयास किया है,! अब एक सवाल ... क्या हमारी नदिया केवल पोलीथिन ढोने के लिए रह गयी है?
गुरुकुल में शिक्षा और बालक
Gurukul siksha by chiragan |
संकलन: त्रिलोक चंद जैन जी का प्रकाशित लेख
सूर्य की शक्ति और भारत सोचे जरा
sun diagram by chiragan |
भारत को सौर ऊर्जा का भरपूर वरदान मिला हुआ है। अगर इसका कुशलतापूर्वक इस्तेमाल किया जाए, तो देश हजारों किलोवॉट बिजली का उत्पादन कर सकता है। सौर ऊर्जा बहुत फायदेमंद है, क्योंकि यह प्रदूषण नहीं फैलाती और इसका वितरण आसानी से किया जा सकता है। और सबसे बड़ी बात यह है कि इसके लिए कहीं एक जगह बहुत बड़ा केंद्रीय प्लांट लगाने की जरूरत नहीं है। इसे बेहद आसानी से कई जगहों से, कई छोटी-छोटी यूनिटों से बनाया और बांटा जा सकता है। इससे ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करके जलवायु परिवर्तन से भी निपटा जा सकता है। इसका अधिक से अधिक उपयोग करने के लिए हमें मिलकर अपने लिए सुविधाजनक तकनीक विकसित करनी होगी।
एक अनुमान है कि पृथ्वी प्रतिवर्ष लगभग 1, 20,000 टेरावॉट (सौर ऊर्जा की मात्रा को मापने वाली इकाई) सौर ऊर्जा प्राप्त करती है। और फिलहाल पूरी दुनिया की ऊर्जा खपत सिर्फ 15 टेरावॉट सालाना है। जाहिर है, इस सौर ऊर्जा से हम अपनी जरूरतें बहुत आसानी से पूरी कर सकते हैं। साथ ही भविष्य की बढ़ती जरूरतों को पूरा करने के लिए भी इस अक्षय स्त्रोत पर भरोसा किया जा सकता है। वास्तव में, सौर ऊर्जा ही हमारा वह सबसे बड़ा संसाधन है जिसका उपयोग ऊर्जा की हर जरूरत को पूरा सकता है। यहां एक साल में मनुष्य द्वारा ऊर्जा की जो कुल खपत होती है, उतनी सौर ऊर्जा सिर्फ एक दिन में ही धरती पर पहुंच जाती है। सौर ऊर्जा का इस्तेमाल अब इसलिए भी जरूरी होता जा रहा है क्योंकि जीवाश्म ईंधन के तमाम भंडार तेजी से घट रहे हैं और ग्रीन हाउस गैसों का प्रभाव बढ़ रहा है। साथ ही निकट भविष्य में हमें बिजली क्षेत्र से होने वाले कार्बन उत्सर्जन की सीमा भी कम करनी है।
भारत में साल के 365 दिनों में तकरीबन 250 से 325 दिन अच्छी धूप वाले होते हैं। इन दिनों में सोलर रेडिएशन की तीव्रता काफी ज्यादा होती है। अगर इनका समुचित दोहन किया जाए तो हम अपनी आवश्यकता के अनुरूप सोलर एनर्जी प्राप्त कर सकते हैं। पर इसके लिए हमें सबसे पहले तो मानसिक तौर पर तैयार होना होगा। फिर अपेक्षित तकनीकी संयंत्र लगाने होंगे। जाहिर है, इसके लिए काफी निवेश भी करना होगा।
भारत में सौर ऊर्जा प्राप्त करने लायक दुनिया के कुल भूमि क्षेत्र का 58 फीसदी भाग पाया जाता है। इस मौजूदा स्तर को देखते हुए केवल एक फीसदी भूमि क्षेत्र ही 2031 तक की देश की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए काफी है। लेकिन इस क्षेत्र में जितना काम होना चाहिए था, वह नहीं हो सका है। आज भी हम ऊर्जा के लिए मुख्यत: थर्मल पावर पर आश्रित हैं जबकि हमारे पास कोयले का पर्याप्त भंडार भी नहीं है। हमारे देश में राजस्थान सालाना सबसे अधिक सोलर रेडिएशन प्राप्त करता है। यहां लगभग पूरे साल मिलने वाला भरपूर सोलर रेडिएशन और अनुकूल शर्तें राज्य को ग्रीन एनर्जी का हब बनाने की क्षमता रखती हैं। यह सौर ऊर्जा का सबसे बड़ा प्रोवाइडर बन सकता है। इससे न सिर्फ राज्य की आर्थिक स्थिति बदल सकती है, बल्कि पूरे देश को फायदा पहुंच सकता है। गुजरात में भी इस दिशा में कार्य शुरू हो गया है।
अनिल राणा जी का प्रकाशित लेख
Monday, 1 October 2012
एक अवसर चिरागन के साथ, जीवन की बुलंदियों तक पहुचने की तरफ कदम बढ़ाने का, दूसरो की सहायता कर आत्म संतुस्ती को पाने का!
गाधी जयंती पर हम सब की तरफ से उनको श्रधा सुमन, पर क्या आज हम सच में गाँधी जी के दिखाए मूल्यों पर आगे बढ़ रहे है , उनके उन्ही सपनो के भारत को आगे बढ़ा रहे है? जो उन्होंने देखा था... क्या आज का भारत ही है उनके सपनो का भारत? जवाब मिले तो दीजियेगा नहीं तो शेयर करके आगे वाले से पूछियेगा. चिरागन हर उम्मीद की ज्योति
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