Sunday 7 April 2013

सरकारी बिल और जनलोकपाल बिल में मुख्य अंतर

अगस्त से शुरु हुए मानसून सत्र में सरकार ने जो विधेयक प्रस्तुत किया वह कमजोर और जन लोकपाल के सर्वथा विपरीत था। अन्ना हज़ारे ने इसके खिलाफ अपने पूर्व घोषित तिथि १६ अगस्त से पुनः अनशन पर जाने की बात दुहराई। १६ अगस्त को सुबह साढ़े सात बजे जब वे अनशन पर जाने के लिए तैयारी कर रहे थे, उन्हें दिल्ली पुलिस ने उन्हें घर से ही गिरफ्तार कर लिया। उनके टीम के अन्य लोग भी गिरफ्तार कर लिए गए। इस खबर ने आम जनता को उद्वेलित कर दिया और वह सड़कों पर उतरकर सरकार के इस कदम का अहिंसात्मक प्रतिरोध करने लगी। दिल्ली पुलिस ने अन्ना को मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया। अन्ना ने रिहा किए जाने पर दिल्ली से बाहर रालेगाँव चले जाने या ३ दिन तक अनशन करने की बात अस्वीकार कर दी। उन्हें ७ दिनों के न्यायिक हिरासत में तिहाड़ जेल भेज दिया गया। शाम तक देशव्यापी प्रदर्शनों की खबर ने सरकार को अपना कदम वापस खींचने पर मजबूर कर दिया। दिल्ली पुलिस ने अन्ना को सशर्त रिहा करने का आदेश जारी किया। मगर अन्ना अनशन जारी रखने पर दृढ़ थे। बिना किसी शर्त के अनशन करने की अनुमति तक उन्होंने रिहा होने से इनकार कर दिया। १७ अगस्त तक देश में अन्ना के समर्थन में प्रदर्शन होता रहा। दिल्ली में तिहाड़ जेल के बाहर हजारों लोग डेरा डाले रहे। १७ अगस्त की शाम तक दिल्ली पुलिस रामलीला मैदान में और ७ दिनों तक अनशन करने की इजाजत देने को तैयार हुई।अन्ना को राम्लीला मैदान मै १५ दिन कि अनुमति मिलि,और अब १९ अगस्त से श्री अन्ना राम लीला मेदान मै जन लोकपाल बिल के लिये आनशन जारी रखने पर दृढ़ है| अनशन का आज दसवाँ दिन है | आज २६ अगस्त है फिर भी सरकार अन्ना जी का अन्शन समापत नही करवा पाए |हजारे ने कहा कि अगर जन लोकपाल विधेयक पर संसद चर्चा करती है और इन तीन शर्तों पर सदन के भीतर सहमति बन जाती है तो वह अपना अनशन समाप्त कर देंगे।प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने दोनो पक्षों के बीच जारी गतिरोध को तोड़ने की दिशा में पहली ठोस पहल करते हुए लोकसभा में खुली पेशकश की कि संसद अरूणा राय और डा. जयप्रकाश नारायण सहित अन्य लोगों द्वारा पेश विधेयकों के साथ जन लोकपाल विधेयक पर भी विचार करेगी। उसके बाद विचार विमर्श का ब्यौरा स्थायी समिति को भेजा जाएगा।
सरकारी लोकपाल के पास भ्रष्टाचार के मामलों पर ख़ुद या आम लोगों की शिकायत पर सीधे कार्रवाई शुरु करने का अधिकार नहीं होगा. सांसदों से संबंधित मामलों में आम लोगों को अपनी शिकायतें राज्यसभा के सभापति या लोकसभा अध्यक्ष को भेजनी पड़ेंगी. वहीं प्रस्तावित जनलोकपाल बिल के तहत लोकपाल ख़ुद किसी भी मामले की जांच शुरु करने का अधिकार रखता है. इसमें किसी से जांच के लिए अनुमति लेने की ज़रूरत नहीं है सरकार द्वारा प्रस्तावित लोकपाल को नियुक्त करने वाली समिति में उपराष्ट्रपति. प्रधानमंत्री, दोनो सदनों के नेता, दोनो सदनों के विपक्ष के नेता, क़ानून और गृह मंत्री होंगे. वहीं प्रस्तावित जनलोकपाल बिल में न्यायिक क्षेत्र के लोग, मुख्य चुनाव आयुक्त, नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक, भारतीय मूल के नोबेल और मैगासेसे पुरस्कार के विजेता चयन करेंगे ।

राज्यसभा के सभापति या स्पीकर से अनुमति

सरकारी लोकपाल के पास भ्रष्टाचार के मामलों पर ख़ुद या आम लोगों की शिकायत पर सीधे कार्रवाई शुरु करने का अधिकार नहीं होगा. सांसदों से संबंधित मामलों में आम लोगों को अपनी शिकायतें राज्यसभा के सभापति या लोकसभा अध्यक्ष को भेजनी पड़ेंगी.वहीं प्रस्तावित जनलोकपाल बिल के तहत लोकपाल ख़ुद किसी भी मामले की जांच शुरु करने का अधिकार रखता है. इसमें किसी से जांच के लिए अनुमति लेने की ज़रूरत नहीं है.सरकारी विधेयक में लोकपाल केवल परामर्श दे सकता है. वह जांच के बाद अधिकार प्राप्त संस्था के पास इस सिफ़ारिश को भेजेगा. जहां तक मंत्रीमंडल के सदस्यों का सवाल है इस पर प्रधानमंत्री फ़ैसला करेंगे. वहीं जनलोकपाल सशक्त संस्था होगी. उसके पास किसी भी सरकारी अधिकारी के विरुद्ध कार्रवाई की क्षमता होगी.सरकारी विधेयक में लोकपाल के पास पुलिस शक्ति नहीं होगी. जनलोकपाल न केवल प्राथमिकी दर्ज करा पाएगा बल्कि उसके पास पुलिस फ़ोर्स भी होगी
अधिकार क्षेत्र सीमित
अगर कोई शिकायत झूठी पाई जाती है तो सरकारी विधेयक में शिकायतकर्ता को जेल भी भेजा जा सकता है. लेकिन जनलोकपाल बिल में झूठी शिकायत करने वाले पर जुर्माना लगाने का प्रावधान है.
सरकारी विधेयक में लोकपाल का अधिकार क्षेत्र सांसद, मंत्री और प्रधानमंत्री तक सीमित रहेगा. जनलोकपाल के दायरे में प्रधानमत्री समेत नेता, अधिकारी, न्यायाधीश सभी आएँगे.
लोकपाल में तीन सदस्य होंगे जो सभी सेवानिवृत्त न्यायाधीश होंगे. जनलोकपाल में 10 सदस्य होंगे और इसका एक अध्यक्ष होगा. चार की क़ानूनी पृष्टभूमि होगी. बाक़ी का चयन किसी भी क्षेत्र से होगा.
चयनकर्ताओं में अंतर
सरकार द्वारा प्रस्तावित लोकपाल को नियुक्त करने वाली समिति में उपराष्ट्रपति. प्रधानमंत्री, दोनो सदनों के नेता, दोनो सदनों के विपक्ष के नेता, क़ानून और गृह मंत्री होंगे. वहीं प्रस्तावित जनलोकपाल बिल में न्यायिक क्षेत्र के लोग, मुख्य चुनाव आयुक्त, नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक, भारतीय मूल के नोबेल और मैगासेसे पुरस्कार के विजेता चयन करेंगे.लोकपाल की जांच पूरी होने के लिए छह महीने से लेकर एक साल का समय तय किया गया है. प्रस्तावित जनलोकपाल बिल के अनुसार एक साल में जांच पूरी होनी चाहिए और अदालती कार्यवाही भी उसके एक साल में पूरी होनी चाहिए.
सरकारी लोकपाल विधेयक में नौकरशाहों और जजों के ख़िलाफ़ जांच का कोई प्रावधान नहीं है. लेकिन जनलोकपाल के तहत नौकरशाहों और जजों के ख़िलाफ़ भी जांच करने का अधिकार शामिल है. 

सज़ा और नुक़सान की भरपाई

सरकारी लोकपाल विधेयक में दोषी को छह से सात महीने की सज़ा हो सकती है और धोटाले के धन को वापिस लेने का कोई प्रावधान नहीं है. वहीं जनलोकपाल बिल में कम से कम पांच साल और अधिकतम उम्र क़ैद की सज़ा हो सकती है. साथ ही धोटाले की भरपाई का भी प्रावधान है.
ऐसी स्थिति मे जिसमें लोकपाल भ्रष्ट पाया जाए, उसमें जनलोकपाल बिल में उसको पद से हटाने का प्रावधान भी है. इसी के साथ केंद्रीय सतर्कता आयुक्त, सीबीआई की भ्रष्टाचार निरोधक शाखा सभी को जनलोकपाल का हिस्सा बनाने का प्रावधान भी है.
Collection by: Kinjal kumar

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